Monday 31 October 2022

चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती-त्रिलोचन

  चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती

कवि परिचय


जीवन परिचय-त्रिलोचन का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के चिरानी पट्टी में सन् 1917 में हुआ। इनका मूल नाम वासुदेव सिंह है। ये हिंदी साहित्य में प्रगतिशील काव्यधारा के प्रमुख कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्होंने गद्य और पद्य दोनों में लिखा। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों के आधार पर इन्हें साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इन्हें महात्मा गाँधी पुरस्कार से सम्मानित किया। शलाका सम्मान भी इनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इनका निधन 9 दिसंबर, 2007 में हुआ।

रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

काव्य- धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, शब्द, उस जनपद का कवि हूँ, अरघान, तम्हें सौंपता हूँ. चैती, अमोला, मेरा घर, जीने की कला।

गद्य- देशकाल, रोजनामचा, काव्य और अर्थबोध, मुक्तिबोध की कविताएँ। इसके अलावा, हिंदी के अनेक कोशों के निर्माण में इनका महत्वपूर्ण योगदान है।

साहित्यिक विशेषताएँ-त्रिलोचन बहुभाषाविज्ञ शास्त्री हैं। ये रागात्मक संयम व लयात्मक अनुशासन वाले कवि हैं। इसी कारण इनके नाम के साथी ‘शास्त्री’ जुड़ गया है, लेकिन यह शास्त्रीयता इनकी कविता के लिए बोझ नहीं बनती। ये जीवन में निहित मंद लय के कवि हैं। प्रबल आवेग और त्वरा की अपेक्षा इनके यहाँ काफी कुछ स्थिर है। इनकी भाषा छायावादी रूमानियत से मुक्त है तथा उसका काव्य ठाठ ठेठ गाँव की जमीन से जुड़ा हुआ है। ये हिंदी में सॉनेट (अंग्रेज़ी छद) को स्थापित करने वाले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। कवि बोलचाल की भाषा को चुटीला और नाटकीय बनाकर कविताओं को नया आयाम देता है। कविता की प्रस्तुति का अंदाज कुछ ऐसा है कि वस्तु रूप की प्रस्तुति का भेद नहीं रहता।

पाठ का सारांश



‘चपा काल-काल अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता धरती संग्रह में संकलित है। यह पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है। इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले-काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं। काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस शोषक व्यवस्था के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे।” कलकत्ते पर वज़ गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है।


काव्य की नायिका चंपा अक्षरों को नहीं पहचानती। जब वह पढ़ता है तो चुपचाप पास खड़ी होकर आश्चर्य से सुनती है। वह सुंदर ग्वाले की एक लड़की है तथा गाएँ-भैसें चराने का काम करती है। वह अच्छी व चंचल है। कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है तो कभी कागज। इससे कवि परेशान हो जाता है। चंपा कहती है कि दिन भर कागज लिखते रहते हो। क्या यह काम अच्छा है? कवि हँस देता है। एक दिन कवि ने चंपा से पढ़ने-लिखने के लिए कहा। उन्होंने इसे गाँधी बाबा की इच्छा बताया। चंपा ने कहा कि वह नहीं पढ़ेगी।



गाँधी जी को बहुत अच्छे बताते हो, फिर वे पढ़ाई की बात कैसे कहेंगे? कवि ने कहा कि पढ़ना अच्छा है। शादी के बाद तुम ससुराल जाओगी। तुम्हारा पति कलकत्ता काम के लिए जाएगा। अगर तुम नहीं पढ़ी तो उसके पत्र कैसे पढ़ोगी या अपना संदेशा कैसे दोगी? इस पर चंपा ने कहा कि तुम पढ़े-लिखे झूठे हो। वह शादी नहीं करेगी। यदि शादी करेगी तो अपने पति को कभी कलकत्ता नहीं जाने देगी। कलकत्ता पर भारी विपत्ति आ जाए, ऐसी कामना वह करती है।


व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1.


चंपा काल-काल अच्छर नहीं चन्हती

में जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है 

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है


उसे बड़ा अचरज होता हैं:

इन काले चीन्हीं से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं।



शब्दार्थ

अच्छर-अक्षर। चीन्हती-पहचानती। अचरज-हैरानी। चीन्हों-अक्षरों।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा नामक लड़की की निरक्षरता के बारे में बताते हुए कहता है कि चंपा काले-काले अक्षरों को नहीं पहचानती। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है। जब कवि पढ़ने लगता है तो वह वहाँ आ जाती है। वह उसके द्वारा बोले गए अक्षरों को चुपचाप खड़ी-खड़ी सुना करती है। उसे इस बात की बड़ी हैरानी होती है कि इन काले अक्षरों से ये सभी ध्वनियाँ कैसे निकलती हैं? वह अक्षरों के अर्थ से हैरान होती है।


विशेष–


निरक्षर व्यक्ति की हैरानी का बिंब सुंदर है।

‘काले काले’, ‘खड़ी खड़ी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

ग्राम्य-भाषा का सुंदर प्रयोग है।

सरल व सुबोध खड़ी बोली है।

मुक्त छंद होते हुए भी लय है।

अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


चंपा कौन है? उसे किस चीज का ज्ञान नहीं है?

चंपा चुपचाप क्या करती है?

चंपा की हैरानी का कारण बताइए।

आप चांपा को किसका/किनका प्रतीक मान सकते हैं? यहाँ कवि ने किस सामाजिक समस्या की ओर हमारा ध्यान खींचा है?

उत्तर –


चंपा गाँव की अनपढ़ बालिका है। उसे अक्षर ज्ञान नहीं है।

जब कवि पढ़ने लगता है तब वह वहाँ आकर चुपचाप खड़ी-खड़ी सुनती रहती है।

चंपा कवि द्वारा बोले गए अक्षरों को सुनती है। उसे आश्चर्य होता है इन काले अक्षरों से कवि ध्वनियाँ कैसे बोल लेता है। वह ध्वनियों व अक्षरों के संबंध को नहीं समझ पाती।

चंपा गाँव की उन निरक्षर लड़कियों की प्रतीक है जिन्हें पढ़ने-लिखने का अवसर नहीं मिल पाता है। चंपा के माध्यम से कवि ने समाज में फैली निरक्षरता की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।

2.


चंपा सुंदर की लड़की है

सुंदर ग्वाला है: गाएँ-भैंसे रखता है

चंपा चौपायों को लकर

चरवाही करने जाती है

चंपा अच्छी हैं

चंचल हैं


नटखट भी है

कभी-कभी ऊधम करती हैं

कभी-कभी वह कलम चुरा देती है

जैसे तैसे उसे ढूँढ़ कर जब लाता हूँ

पाता हूँ-अब कागज गायब

परेशान फिर हो जाता हूँ 



शब्दार्थ

ग्वाला-गाय चराने वाला। चौपाया-चार पैरों वाले पशु यानी गाय, भैंस, आदि। चरवाही-पशु चराने का काम। चंचल-चुलबुला। नटखट-शरारती। ऊधम-तंग करने वाली हरकतें। गायब-गुम हो जाना।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा के विषय में बताता है कि वह सुंदर नामक ग्वाले की लड़की है। वह गाएँ-भैंसें रखता है। चंपा उन सभी पशुओं को प्रतिदिन चराने के लिए लेकर जाती है। वह बहुत अच्छी है तथा चंचल है। वह शरारतें भी करती है। कभी वह कवि की कलम चुरा लेती है। कवि किसी तरह उस कलम को ढूँढ़कर लाता है तो उसे पता चलता है कि अब कागज गायब हो गया है। कवि इन शरारतों से परेशान हो जाता है।


विशेष-


चंपा के परिवार व उसकी शरारतों के बारे में बताया गया है।

ग्रामीण जीवन का चित्रण है।

सहज व सरल खड़ी बोली है।

मुक्त छंद है।

‘कभी-कभी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


चंपा के पिता के विषय में बताइए।

चंपा क्या करने जाती है?

चंपा का व्यवहार कैसा है?

कवि की परेशानी का क्या कारण है?

उत्तर –


चंपा के पिता का नाम सुंदर है। वह ग्वाला है तथा गाएँ-भैंसें रखता है।

चंपा प्रतिदिन पशुओं को चराने के लिए लेकर जाती है।

चंपा का व्यवहार अच्छा है। वह चंचल है तथा नटखट भी है। कभी-कभी वह बहुत शरारतें करती है।

चंपा कवि की कलम चुरा लेती है। किसी तरीके से कवि उसे ढूँढ़कर लाता है तो उसके कागज गायब मिलते हैं। चंपा की इन हरकतों से कवि परेशान होता है।

3.


चंपा कहती है:

तुम कागद ही गोदा करते ही दिन भर

क्या यह काम बहुत अच्छा है

यह सुनकर मैं हँस देता हूँ

फिर चंपा चुप हो जाती है

चंपा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढूँगी

तुम तो कहते थे गाँधी बाबा अच्छे हैं 


उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

चंपा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढ़ काम सरेगा

गाँधी बाबा की इच्छा है

सब जन पढ़ना-लिखना सीखें

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढूँगी



शब्दार्थ

कागद-कागज। गोदना-लिखते रहना। हारे गाढ़े काम सरेगा-कठिनाई में काम आएगा। जन-आंदमी।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि चंपा को काले अक्षरों से कोई संबंध नहीं है। वह कवि से पूछती है कि तुम दिन-भर कागज पर लिखते रहते हो। क्या यह काम तुम्हें बहुत अच्छा लगता है। उसकी नजर में लिखने के काम की कोई महत्ता नहीं है। उसकी बात सुनकर कवि हँसने लगता है और चंपा चुप हो जाती है। एक दिन चंपा आई तो कवि ने उससे कहा कि तुम्हें भी पढ़ना सीखना चाहिए। मुसीबत के समय तुम्हारे काम आएगा। वह महात्मा गाँधी की इच्छा को भी बताता है। गाँधी जी की इच्छा थी कि सभी आदमी पढ़ना-लिखना सीखें। चंपा कवि की बात का उत्तर देती है कि वह नहीं पढ़ेगी। आगे कहती है कि तुम तो कहते थे कि गाँधी जी बहुत अच्छे हैं। फिर वे पढ़ाई की बात क्यों करते हैं? चंपा महात्मा गाँधी की अच्छाई या बुराई का मापदंड पढ़ने की सीख से लेती है। वह न पढ़ने का निश्चय दोहराती है।


विशेष–


निरक्षर व्यक्ति की मनोदशा का सुंदर चित्रण है।

शिक्षा के प्रति समाज का उपेक्षा भाव स्पष्ट है।

संवाद शैली है।

ग्रामीण जीवन का सटीक वर्णन है।

देशज शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

अनुप्रास अलंकार है।

मुक्त छंद है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


चंपा कवि से क्या प्रश्न करती है?

कवि ने चंपा को क्या सीख दी तथा क्यों?

कवि ने गाँधी का नाम क्यों लिया?

चंपा कवि से गाँधी जी के बारे में क्या तर्क देती है?

उत्तर –


चंपा कवि से प्रश्न करती है कि वह दिनभर कागज को काला करते हैं। क्या उन्हें यह कार्य बहुत अच्छा लगता है।

कवि चंपा को पढ़ने-लिखने की सीख देता है ताकि कष्ट के समय उसे कोई परेशानी न हो।

कवि का मानना है कि ग्रामीण भी गाँधी जी का बहुत सम्मान करते हैं तथा उनकी बात मानते हैं। उन्हें लगा कि शिक्षा के बारे में गाँधी जी की इच्छा जानने के बाद चंपा पढ़ना सीखेगी।

चंपा कवि से कहती है कि अगर गाँधी जी अच्छे हैं तो वे कभी पढ़ने-लिखने के लिए नहीं कहेंगे।

4.


मैंने कहा कि चंपा, पढ़ लेना अच्छा है

ब्याह तुम्हारा होगा, तुम गौने जाओगी,

कुछ दिन बालम सग साथ रह चंपा जाएगा जब कलकत्ता 

बड़ी दूर हैं वह कलकत्ता


केस उसे संदेसा दोगी

कैसे उसके पत्र पढ़ोगी।

चंपा पढ़ लेना अच्छा है।



शब्दार्थ–

ब्याह-शादी। गौने जाना-ससुराल जाना। बालम-पति। संग-साथ। संदेसा-संदेश।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि चंपा को पढ़ने की सलाह देता है तो वह स्पष्ट तौर पर मना कर देती है। कवि शिक्षा के लाभ गिनाता है। वह उसे कहता है कि तुम्हारे लिए पढ़ाई-लिखाई जरूरी है। एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी और तुम अपने पति के साथ ससुराल जाओगी। वहाँ तुम्हारा पति कुछ दिन साथ रहकर नौकरी के लिए कलकत्ता चला जाएगा। कलकत्ता यहाँ से बहुत दूर है। ऐसे में तुम उसे अपने विषय में कैसे बताओगी? तुम उसके पत्रों को किस प्रकार पढ़ पाओगी? इसलिए तुम्हें पढ़ना चाहिए।


विशेष-


शिक्षा के महत्व को सहज तरीके से समझाया गया है।

गाँवों से महानगरों की तरफ पलायनवादी प्रवृत्ति को बताया गया है।

ग्रामीण जीवन का चित्रण है।

संवाद शैली है।

अनुप्रास अलंकार है।

खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

मुक्त छंद है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


कवि ने चंपा को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए क्या तर्क दिया?

कलकत्ता जाने की बात से कथा पता चलता है?

बड़ी दूर है वह कलकत्ता, फिर भी लोग कलकत्ता क्यों जाते हैं?

कवि ने नारी मनोविज्ञान का सहारा लिया है-स्पष्ट करें।

उत्तर –


कवि ने चंपा को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए तर्क दिया है कि शादी के बाद जब तुम्हारा पति कलकत्ता काम के लिए जाएगा तो तुम उसके पास कैसे अपना संदेश भेजोगी तथा कैसे उसके पत्र पढ़ोगी? इसलिए तुम्हें पढ़ना चाहिए।

कलकत्ता जाने की बात से पता चलता है कि महानगरों की तरफ ग्रामीणों की पलावनवादी प्रवृत्ति है। इससे परिवार बिखर जाते हैं।

कलकत्ता बहुत दूर तो है, किंतु महानगर है जहाँ रोजगार के अनेक साधन उपलब्ध हैं। वहाँ रोजी-रोटी के साधन सुलभ हैं। रोजगार पाने की आशा में ही लोग कलकत्ता जाते होंगे।

कवि ने नारी मनोविज्ञान का सहारा लिया है, क्योंकि नारी को सर्वाधिक खुशी अपने पति के नाम व उसके संदेश से मिलती है।

5.


चंपा बोली; तुम कितने झूठे हो, देखा,

हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो 

में तो ब्याह कभी न करूंगी

और कहीं जो ब्याह हो गया


तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी

कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी

कलकत्ते पर बजर गिरे।


शब्दार्थ–

बजर गिरे-वज़ गिरे, भारी विपत्ति आए।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘चंपा काल-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रगतिशील कवि त्रिलोचन हैं। इस कविता में कवि ने पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है। गाँव में साक्षरता के प्रति उदासीनता को चंपा के माध्यम से मुखरित किया गया है।

व्याख्या-कवि द्वारा चंपा को पढ़ने की सलाह पर वह उखड़ जाती है। वह कहती है कि तुम बहुत झूठ बोलते हो। तुम पढ़-लिखकर भी झूठ बोलते हो। जहाँ तक शादी की बात है, तो मैं शादी ही कभी नहीं करूंगी। दूसरे, यदि कहीं शादी भी हो गई तो मैं पति को अपने साथ रखेंगी। उसे कभी कलकत्ता नहीं जाने दूँगी। दूसरे शब्दों में, वह अपने पति का शोषण नहीं होने देगी। परिवारों को दूर करने वाले शहर कलकत्ते पर वज़ गिरे। वह अपने पति को उससे दूर रखेगी।


विशेष–


चंपा की दृष्टि में शिक्षित समाज शोषक है।

चंपा का भोलापन प्रकट हुआ है।

ग्रामीण परिवेश का सजीव चित्रण हुआ है।

मुक्त छद है।

खड़ी बोली है।

‘बजर गिरे’ से शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश जताया गया है।

संवाद शैली है।

अनुप्रास अलंकार है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


चंपा कवि पर क्या आरोप लगाती है तथा क्यों?

चंपा की अपने पति के बारे में क्या कल्पना है?

चंपा कलकत्ते के बारे में क्या कहती है?

शिक्षा के प्रति चंपा की क्या सोच है? उसकी यह सोच कितनी उपयुक्त है?

उत्तर –


चंपा कवि पर झूठ बोलने का आरोप लगाती है कि कवि पढ़ाई के चक्कर में उसकी शादी व फिर पति के कलकत्ता जाने की झूठी बात कहता है।

चंपा अपने पति के बारे में कल्पना करती है कि वह उसे अपने साथ रखेगी तथा कलकत्ता नहीं जाने देगी अर्थात् उसका शोषण नहीं होने देगी।

चंपा कलकत्ते के बारे में कहती है कि उस पर वज़पात हो जाए ताकि वह नष्ट हो जाए। इससे आसपास के लोग वहाँ जा नहीं सकेंगे।

शिक्षा के प्रति चंपा की सोच यह है कि इससे परिवार में बिखराव होता है, लोगों का शोषण होता है। उसकी यह सोच बिल्कुल गलत है, क्योंकि शिक्षा ज्ञान एवं विकास के नए द्वार खोलती है।

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न


1.


चंपा काल-काल अच्छर नहीं चन्हती

में जब पढ़ने लगता हूँ वह आ जाती है 

खड़ी खड़ी चुपचाप सुना करती है


उसे बड़ा अचरज होता हैं:

इन काले चीन्हीं से कैसे ये सब स्वर

निकला करते हैं।


प्रश्न


इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

इस काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –


कवि ने निरक्षर चंपा की हैरानी को स्वाभाविक तरीके से बताया है। वह कहता है कि अक्षरों व उनसे निकलने वाली ध्वनियों से चंपा आश्चर्यचकित होती है।

  ग्राम्य शब्दों अच्छर, चीन्हती, चीन्हों, अचरज से ग्रामीण वातावरण का बिंब साकार हो उठता है।

‘काले काले’, ‘खड़ी खड़ी’ में पुनरुक्तिप्रकाश अंलकार है।

‘सब स्वर’ में अनुप्रास अलंकार है।

प्रसाद गुण है।

मुक्त छद है।

उर्दू देशज शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

भाषा में सहजता व सरलता है।

2.


उस दिन चंपा आई, मैंने कहा कि

चंपा, तुम भी पढ़ लो

हारे गाढ़ काम सरेगा

गाँधी बाबा की इच्छा है

सब जन पढ़ना-लिखना सीखें


चंपा ने यह कहा कि

मैं तो नहीं पढूँगी

तुम तो कहते थे गाँधी बाबा अच्छे हैं

वे पढ़ने लिखने की कैसे बात कहेंगे

मैं तो नहीं पढूँगी


प्रश्न


इस काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

इस काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –


इस काव्यांश में कवि चंपा को पढ़ने की सलाह देता है। वह गाँधी जी की भी यही इच्छा बताता है, परंतु चंपा स्पष्ट रूप से पढ़ने से इनकार कर देती है। उसे शिक्षित युवकों का परदेश में नौकरी करना तनिक भी पसंद नहीं है।

संवादों के कारण कविता सजीव बन गई है।

देशज शब्दों के प्रयोग से ग्रामीण जीवन साकार हो उठता है; जैसे हारे गाढ़े सरेगा आदि।

गाँधी बाबा की इच्छा का अच्छा चित्रण है।

खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

मुक्त छंद होते हुए भी गतिशीलता है।

शांत रस है।

प्रसाद गुण है।

3.


चंपा बोली; तुम कितने झूठे हो, देखा,

हाय राम, तुम पढ़-लिख कर इतने झूठे हो 

में तो ब्याह कभी न करूंगी

और कहीं जो ब्याह हो गया


तो मैं अपने बालम को सँग साथ रखूँगी

कलकत्ता मैं कभी न जाने दूँगी

कलकत्ते पर बजर गिरे।


प्रश्न


काव्यांश की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट करें।

उत्तर –


त्रिलोचन ने ग्रामीण ठाठ को सहजता से प्रकट किया है। ब्याह, बालम, संग, बजर आदि शब्दों से अांचलिकता का पुट मिलता है। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

संवाद शैली का प्रयोग है।

मुक्त छंद होते हुए भी काव्य में प्रवाह है।

‘कलकत्ते पर बजर गिरे’ कटु यथार्थ का परिचायक है।

‘हाय राम’ कहने में नाटकीयता आई है।

‘संग साथ’ में अनुप्रास अलंकार है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न


कविता के साथ

प्रश्न 1:

चंपा ने ऐसा क्यों कहा कि कलकत्ता पर बजर गिरे?

उत्तर –

चंपा नहीं चाहती कि उसका बालम उसे छोड़कर कहीं दूर पैसा कमाने के लिए जाए। कवि ने उसे बताया कि कलकत्ता जो बहुत दूर है वहाँ लोग धन कमाने जाते हैं। चंपा चाहती है कि कलकत्ते का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए तो उसका बालम उसी के पास रहेगा। इसलिए वह कहती है कि कलकत्ते पर बजर गिरे।


प्रश्न 2:

चंपा को इस पर क्यों विश्वास नहीं होता कि गाँधी बाबा ने पढ़ने-लिखने की बात कही होगी?

उत्तर –

चंपा के मन में यह बात बैठी हुई है कि शिक्षित व्यक्ति अपने घर को छोड़कर बाहर चला जाता है। इस कारण वह पढ़ाई-लिखाई को अच्छा नहीं मानती। गाँधी जी का ग्रामीण जीवन पर बहुत अच्छा प्रभाव है। वे लोगों की भलाई की बात करते हैं। अत: वह गाँधी जी द्वारा पढ़ने-लिखने की बात कहने पर विश्वास नहीं करती, क्योंकि पढ़ाई-लिखाई परिवार को तोड़ती है। उनसे लोगों का भला नहीं होता। यह गाँधी जी के चरित्र के विपरीत कार्य है।


प्रश्न 3:

कवि ने चंपा की किन बिशेषताओं का उल्लेख किया है?

उत्तर –

चंपा एक छोटी बालिका है जो काले काले अक्षरों को नहीं पहचानती। कवि के अनुसार वह चंचल और नटखट है। दिन भरे पशुओं को चराने का काम करती है; वह जो करना चाहती है, वही करती है। उसे पढ़ना पसंद नहीं तो नहीं पढ़ती। वह नहीं चाहती कि उसका पति उससे दूर जाए, तो कहती है कलकत्ते पर बजर गिरे।


प्रश्न 4:

आपके विचार में चंपा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मैं तो नहीं पढ़ेंगी?

उत्तर –

चंपा का विश्वास है कि पढ़-लिखकर व्यक्ति अपने परिवार को छोड़कर परदेश जाकर रहने लगता है। इससे घर बिखर जाते हैं। शिक्षित होकर लोग चालाक, घमंडी व कपटी हो जाते हैं। वे परिवार को भूल जाते हैं। महानगरों में जाने वाले लोगों के परिवार बिछोह की पीड़ा सहते हैं। इसलिए उसने कहा होगा कि वह नहीं पढ़ेगी।


कविता के आस-पास

प्रश्न 1:

यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती तो कवि से कैसे बातें करती?

उत्तर –

यदि चंपा पढ़ी-लिखी होती तो कवि से पूछती कि आप क्या लिख रहे हैं? मैं भी वह पढ़ना चाहती हूँ। पढ़ने के लिए कोई किताब माँगती और पढ़ी हुई किताबों के विषय में बातें करती। गांधी जी की धारणा को समझती।


प्रश्न 2:

इस कविता में पूर्वी प्रदेशों की स्त्रियों की किस विडंबनात्मक स्थिति का वर्णन हुआ है?’

उत्तर –

इस कविता में पूर्वी प्रदेशों की स्त्रियों की व्यथा को व्यक्त करने का प्रयास किया गया है। रोजगार की तलाश में युवक कलकत्ता जैसे बड़े शहरों में जाते हैं और वहीं के होकर रह जाते हैं। पीछे उनकी स्त्रियाँ व परिवार के लोग अकेले रह जाते हैं। स्त्रियाँ अनपढ़ होती हैं, अत: वे पति की चिट्ठी भी नहीं पढ़ पातीं और न अपना संदेश भेज पाती हैं। उनका जीवन पिछड़ा रहता है तथा वे पति का वियोग सहन करने को विवश रहती हैं।


प्रश्न 3:

संदेश ग्रहण करने ओर भेजने में असमर्थ होने पर एक अनपढ़ लड़की को जिस वेदना और विपत्ति को भोगना पड़ता है, अपनी कल्पना से लिखिए।

उत्तर –

संदेश ग्रहण न कर पानेवाली अनपढ़ लड़कियों को सदैव दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। वे अपने मन की बात अपने हिसाब से अपने पति या अन्य किसी संबंधी को नहीं लिख पातीं। उन्हें कोई भी संदेश या पत्र किसी और से ही लिखवाना या पढ़वाना पड़ता है। इससे उनके अपने हाथ में कुछ नहीं रहता। विपरीत परिस्थितियों में या कठिनाइयों के समय वे असहाय होकर अपनों तक अपनी दशा की सूचना तक नहीं भेज पातीं। कभी-कभी ऐसी अबोध लड़कियों की उपेक्षा करते हुए परिवारों में दरार पड़ जाती है। अनपढ़ रहकर स्त्री हो या पुरुष अनेक कष्टों को सहन करने के लिए विवश हैं।


प्रश्न 4:

त्रिलोचन पर एन. सी. ई. आर. टी. द्वारा बनाई गई फिल्म देखिए।

उत्तर –

स्वयं करें।


अन्य हल प्रश्न


लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1:

इस कविता का प्रतिपादय बताइए।

उत्तर –

‘चपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ कविता धरती संग्रह में संकलित है। यह पलायन के लोक अनुभवों को मार्मिकता से अभिव्यक्त करती है। इसमें ‘अक्षरों’ के लिए ‘काले काले’ विशेषण का प्रयोग किया गया है जो एक ओर शिक्षा-व्यवस्था के अंतर्विरोधों को उजागर करता है तो दूसरी ओर उस दारुण यथार्थ से भी हमारा परिचय कराता है जहाँ आर्थिक मजबूरियों के चलते घर टूटते हैं। काव्य नायिका चंपा अनजाने ही उस शोषक व्यवस्था के प्रतिपक्ष में खड़ी हो जाती है जहाँ भविष्य को लेकर उसके मन में अनजान खतरा है। वह कहती है ‘कलकत्ते पर बजर गिरे।’ कलकत्ते पर वज़ गिरने की कामना, जीवन के खुरदरे यथार्थ के प्रति चंपा के संघर्ष और जीवन को प्रकट करती है।


प्रश्न 2:

चपा को क्या अचरज होता है तथा क्यों?

उत्तर –

चंपा निरक्षर है। जब कवि अक्षरों को पढ़ना शुरू करता है तो चंपा को हैरानी होती है कि इन अक्षरों से स्वर कैसे निकलते हैं; वह अक्षर व ध्वनि के संबंध को समझ नहीं पाती। उसे नहीं पता कि लिखे हुए अक्षर ध्वनि को व्यक्त करने का ही एक रूप है। निरक्षर होने के कारण वह यह बात समझ नहीं पाती।


प्रश्न 3:

कविता की नायिका चंपा किसका प्रतिनिधित्व करती है?

उत्तर –

कविता की नायिका चंपा देश की निरक्षर व ग्रामीण स्त्रियों का प्रतिनिधित्व करती है। ये अबोध बालिकाएँ प्राय: उपेक्षा का शिकार होती हैं। वे पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक समझकर पढ़ने के अवसर को त्याग देती हैं।


प्रश्न 4:

विवाह और पति के बारे में चपा की क्या धारणा है?

उत्तर –

विवाह की बात सुनते ही चंपा लजाकर शादी करने से मना करती है, परंतु जब पति की बात आती है तो वह सदैव उसे अपने साथ रखने की बात कहती है। वह पति को अलग करने वाले कलकत्ता के विनाश की कामना तक करती है।


प्रश्न 5: लेखक चंपा को पढ़ने के लिए किस प्रकार प्रेरित करता है?

उत्तर –

लेखक चंपा से कहता है कि पढ़ाई कठिन समय में काम आती है। गाँधी बाबा की भी इच्छा थी कि सभी लोग पढ़े-लिखें। साथ ही कवि चंपा को समझाता है कि एक-न-एक दिन तुम्हारी शादी होगी और तुम्हारा पति रोजगार की तलाश में कलकत्ता (कोलकाता) जाएगा। उस समय अपना संदेश पत्र के माध्यम से उस तक पहुँचा सकोगी और पति के पत्र पढ़ सकेगी।


प्रश्न 6:

चंपा ने कवि को झूठा क्यों कहा?

उत्तर –

जब कवि ने उसके विवाह तथा पति के कलकत्ता जाने की बात कही तो वह भड़क उठी। उसने कहा कि तुम पढ़-लिखकर भी बहुत झूठे हो। पहले तो वह विवाह नहीं करेगी। दूसरे, यदि शादी हो भी गई तो वह अपने पति को साथ रखेगी। केवल पढ़ने के लिए इतनी बड़ी कहानी की जरूरत नहीं है। अत: उसने कवि को झूठा कहा।


प्रश्न 7:

गाँधी जी का प्रसंग किस संदर्भ में आया तथा क्यों?

उत्तर –

गाँधी जी का प्रसंग साक्षरता के सिलसिले में आया है। गाँधी जी की इच्छा थी कि सभी लोग पढ़ना-लिखना सीखें। गाँवों में गाँधी जी का अच्छा प्रभाव है। कवि इसी प्रभाव के जरिए चंपा को पढ़ने के लिए तैयार करना चहाता था। इस कारण गाँधी जी का प्रसंग आया।


Monday 17 October 2022

अपू के साथ ढाई साल

अपू के साथ ढाई साल-श्री सत्यजित राय 


प्रश्न 1.पथेर पांचाली फिल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक क्यों चला ?

उत्तर–पथेर पांचाली फ़िल्म की शूटिंग का काम ढाई साल तक चलने के निम्नलिखित कारण थे-उस वक्त लेखक एक विज्ञापन कंपनी में काम करते थे। इसलिए वो कंपनी के काम से फुर्सत मिलने पर ही शूटिंग करते थे।

लेखक के पास पैसों का भी अभाव था। इसीलिए वो पर्याप्त पैसे इकट्ठे होने पर ही शूटिंग करते थे।

शूटिंग करते वक्त लेखक को कई बार प्राकृतिक , स्थान व कलाकार संबंधी समस्याएँ का भी सामना करना पड़ा था।

प्रश्न 2.“अब अगर हम उस जगह बाकी आधे सीन की शूटिंग करते , तो पहले आधे सीन के साथ उसका मेल कैसे बैठता ? उसमें से कंटिन्युइटी नदारद हो जाती”। इस कथन के पीछे क्या भाव है ?

उत्तर–किसी भी फिल्म में निरंतरता व समरूपता ही दर्शकों को प्रभावित करती है। अगर किसी फिल्म में निरंतरता और दृश्यों में समरूपता नहीं होगी तो फिल्म दर्शकों की समझ में नही आएगी।पथेर पांचाली” फ़िल्म में लेखक को रेलवे लाइन के पास काशफूलों से भरे मैदान में शूटिंग करनी थी।चूंकि सीन बहुत बड़ा था इसलिए एक दिन में शूटिंग संभव नही थी। इसीलिए कुछ दिन बाद शूटिंग करने का निर्णय लिया गया।मगर एक सप्ताह बाद जब लेखक वहाँ पहुंचे तो तब तक जानवर सारे काशफूल खा चुके थे। अत: फिल्म के सारे सीन एक जैसे दिखाने और फिल्म में निरंतरता बनाये रखने के लिए लेखक को एक वर्ष का लम्बा इंतजार करना पड़ा । और जब अगले साल उस मैदान में दुबारा काशफूल खिले , तब जाकर सीन के शेष भाग की शूटिंग पूरी की गई। ताकि फिल्म में निरंतरता बनी रहे।

प्रश्न 3.किन दो दृश्यों में दर्शक यह पहचान नहीं पाते कि उनकी शूटिंग में कोई तरकीब अपनाई गई है ?

उत्तर–पहले दृश्य में भूलो नामक कुत्ते को अपू की माँ द्वारा गमले में डाले गए भात को खाते हुए शूट करना था। मगर रात होने व लेखक के पास पैसे खत्म होने के कारण इस पूरे दृश्य की शूटिंग नही हो सकी।

छह महीने बाद जब लेखक दुबारा पैसे इकठ्ठे कर फिल्म की शूटिंग करने उस जगह पहुंचे तब तक भूलो कुत्ते की मौत हो चुकी थी। फिर भूलो कुत्ते से मिलता-जुलता एक और कुत्ता ढूंढकर उस दृश्य को फ़िल्माया गया। मगर यह दृश्य इतना स्वाभाविक था कि फिल्म देखते वक्त दर्शक उसे पहचान नहीं सके ।

दूसरे दृश्य में पैसे न होने के कारण श्रीनिवास मिठाईवाले से अपू व दुर्गा मिठाई नही खरीद पाते हैं। लेकिन वो उसके पीछे दौड़कर मुखर्जी के घर के पास तक जाते हैं। इस दृश्य का कुछ भाग फिल्माया जा चुका था। मगर पैसे की कमी के कारण शूटिंग रोकनी पड़ी थी।

पैसे का इंतजाम होने के बाद लेखक जब दुबारा उस गांव में शूटिंग करने पहुंचे तो पता चला कि श्रीनिवास की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति का देहांत हो चुका है। फिर श्रीनिवास से मिलते-जुलते कद काठी के व्यक्ति को ढूंढ़कर बाकी का सीन फ़िल्माया गया। इस सीन को भी दर्शक पहचान नही पाते हैं।

प्रश्न 4.भूलो की जगह दूसरा कुत्ता क्यों लाया गया ? उसने फिल्म के किस दृश्य को पूरा किया ?

उत्तर–एक दृश्य को आधा फिल्माने के बाद भूलो कुत्ते की मृत्यु हो गई। फिल्म के उस दृश्य को पूरा करने के लिए उससे मिलते-जुलते दूसरे कुत्ते की मदद ली गई |

फ़िल्म का वह दृश्य कुछ इस प्रकार है । अपू  की माँ उसे भात खिला रही हैं और अपू तीर-कमान से खेलने में व्यस्त है। भात खाते-खाते अचानक वह एक तीर छोड़ देता है फिर उस तीर को लाने के लिए भागता है। माँ भी भात की थाली हाथ में लिए उसके पीछे भागती है । पास ही खड़ा भूलो कुत्ता यह सब देख रहा है। उसका ध्यान भात की थाली की ओर है।

यहाँ पर तक का दृश्य भूलो कुत्ते पर फ़िल्माया गया। इसके बाद का दृश्य दूसरे कुत्ते पर फिल्माया गया जिसमें अपू की माँ बचा हुआ भात गमले में डाल देती है जिसे भूलो कुत्ता खा लेता है।

प्रश्न 5.फिल्म में श्रीनिवास की क्या भूमिका थी और उनसे जुड़े बाकी दृश्यों को उनके गुजर जाने के बाद किस प्रकार फिल्माया गया ?

उत्तर–फिल्म में श्रीनिवास की भूमिका एक मिठाई बेचने वाले की थी। मिठाई बेचने वाले श्रीनिवास से संबंधित दृश्य का कुछ भाग फिल्माया जा चुका था। मगर पैसे की कमी के कारण शूटिंग रोकनी पड़ी । पैसे का इंतजाम होने के बाद लेखक जब दुबारा उस गांव पहुंचे तो पता चला कि श्रीनिवास की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति का देहांत हो चुका है।

फिर श्रीनिवास से मिलते-जुलते कद काठी वाले व्यक्ति को ढूढ़कर बाकी का सीन फ़िल्माया गया। जिसमें नये आदमी को कैमरे की तरफ पीठ करके मुखर्जी के घर के गेट के अंदर जाता हुआ दिखाया गया है। हालाँकि दर्शक दोनों में फर्क नही कर पाते हैं।

प्रश्न 6.बारिश का दृश्य चित्रित करने में क्या मुश्किल आई और उसका समाधान किस प्रकार हुआ ?

उत्तर–लेखक को फिल्म में बारिश के एक दृश्य को फिल्माना था लेकिन पैसे की कमी से कारण पूरे बरसात में वो शूटिंग नहीं कर पाये । अक्टूबर में पैसों का इंतजाम हुआ तब तक बारिश खत्म हो चुकी थी।

लेकिन वो शरद ऋतु में वर्षा के इंतजार में अपनी टीम के साथ हर रोज गांव में जाकर बारिश का इंतजार करते थे। और एक दिन आकाश में बादल छाये और धुआँधार बारिश हुई। दुर्गा व अपू  ने बारिश में भीगने का सीन बहुत अच्छे से किया। लेकिन ठंड लगने के कारण दोनों काँपने लगे। तब उन्हें दूध में ब्रांडी मिलाकर पिलाई गई।

प्रश्न 7.किसी फिल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  उन्हें सूचीबद्ध कीजिए ?

उत्तर–किसी फ़िल्म की शूटिंग करते समय फिल्मकार को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है-

धन की कमी।

सही कलाकारों का चयन।

दृश्य के हिसाब से सही जगह का चुनाव करना।  

पशु – पक्षियों व छोटे बच्चों से मनचाहे दृश्य लेना।

कलाकारों के स्वास्थ्य , मृत्यु व अनुपस्थिति का समाधान देखना ।

प्राकृतिक दृश्यों के लिए मौसम पर निर्भरता।

स्थानीय लोगो से तालमेल ।

 प्रभावशाली संगीत

 


अक्क महादेवी

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