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जूझ-श्री आनंद यादव
लेखक परिचय
जीवन परिचय-आनंद यादव का जन्म सन 1935 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। इनका
पूरा नाम आनंद रतन यादव है। इन्होंने मराठी एवं संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर
की डिग्री प्राप्त की। ये बहुत समय तक पुणे विश्वविद्यालय में मराठी विभाग में
कार्यरत रहे। इनकी लगभग पच्चीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने उपन्यास,
कविता व समालोचनात्मक
विधाओं पर लेखन-कार्य किया है। इनकी ‘नटरंग’ पुस्तक बहुत चर्चित रही। ‘जूझ’
उपन्यास पर इन्हें सन 1990 में साहित्य
अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
पाठ का सारांश
यह अंश लेखक के बहुचर्चित आत्मकथात्मक उपन्यास का है। यह एक
किशोर के देखे और भोगे हुए गाँवई जीवन के खुरदरे यथार्थ और उसके रंगारंग परिवेश की
विश्वसनीय जीवंत गाथा है। इस आत्मकथात्मक उपन्यास में जीवन की मर्मस्पर्शी अनूठी
झाँकी है।इस अंश में हर स्थिति में पढ़ने की लालसा लिए धीरे-धीरे साहित्य, संगीत और अन्य विषयों की ओर बढ़ते किशोर के
कदमों की आकुल आहट सुनी जा सकती है।
लेखक के पिता ने उसे पाठशाला जाने से रोक दिया तथा खेती के
काम में लगा दिया। उसका मन पाठशाला जाने के लिए तड़पता था, परंतु वह पिता से कुछ कहने की हिम्मत नहीं रखता
था। उसे पिटाई का डर था। उसे विश्वास था कि खेती से कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि
क्रमश: इससे मिलनेवाला लाभ घट रहा है। पढ़ने के बाद नौकरी लगने पर उसके पास कुछ
पैसे आ जाएँगे। दीवाली के बाद ईख पेरने के लिए कोल्हू चलाया जाता था क्योंकि उसके
पिता को सबसे पहले गुड़ बेचना होता था ताकि ओधिक कीमत मिल सके। हालाँकि पहले ईख
काटने से उसमें रस कम निकलता था। इस वर्ष भी लेखक के पिता ने जल्दी कार्य शुरू
किया।
अत: ईख पेरने का काम सबसे पहले संपन्न हो गया। एक दिन लेखक
धूप में कंडे थाप रही थी और वह बाल्टी में पानी भर-भरकर उसे दे रहा था। अच्छा मौका
देखकर लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की माँ ने अपनी लाचारी प्रकट करते हुए कहा कि
तेरी पढ़ाई-लिखाई की बात करने पर वह बरहेला सुअर की तरह गुर्राता है। लेखक ने
सुझाव दिया कि वह दत्ता जी राव सरकार से उसकी पढ़ाई के बारे में बात करे। माँ
तैयार हो गई। वह बच्चे की तड़पन समझती थी। अत: रात को लेखक की पढ़ाई के संबंध में
बात करने के लिए दत्ता जी राव देसाई के पास गई और उनसे सारी बात बताई।
उसने यह भी बताया कि दादा सारे दिन बाजार में रखमाबाई के
पास गुजार देता है। वह खेती का काम नहीं करता। उसने बच्चे की पढ़ाई इसलिए बंद कर
दी ताकि वह सारे गाँव भर में आजादी के साथ घूमता रहे। यह बात सुनकर देसाई चिढ़ गए।
चलते-चलते लेखक ने यह भी कहा कि यदि वह अब भी कक्षा में पढ़ने लगे तो दो महीने में
पाँचवीं पास कर लेगा और इस तरह उसका साल बच जाएगा। पहले ही उसका एक साल खराब हो
चुका था। राव ने लेखक से कहा कि घर आने पर दादा को मेरे पास भेज देना और घड़ी भर
बाद तुम भी आ जाना। माँ-बेटा ने राव को
सचेत किया कि हमारे आने की बात उसे मत बताना। राव ने उन्हें निर्भय होकर जाने को
कहा। रात को दादा घर पर मालिक दिखाई नहीं दिया। खेत से आ जाने पर इधर भेजना।
यह सुनकर दादा सम्मान की बात समझकर तुरंत चला गया। आधा घंटे
बाद लेखक उन्हें खाने के लिए बुलाने चला गया। राव ने लेखक से पूछा कि कौन-सी कक्षा
में पढ़ता है रे तू? लेखक ने बताया कि
वह पाँचवीं में था, पर अब स्कूल नहीं
जाता क्योंकि दादा ने मना कर दिया। उन्हें खेतों में पानी लगाने वाला चाहिए था।
राव ने दादा से पूछा तो उसने लेखक के कथन को स्वीकार कर लिया। देसाई ने दादा को
खूब फटकार लगाई और कहा कि तुम्हारा ध्यान खेती में नहीं है। बीवी-बच्चों को खेत
में जोतकर खुले साँड़ की तरह घूमता है तथा अपनी मस्ती के लिए लड़के के जीवन की बलि
चढ़ा रहा है। उसने लेखक को कहा कि तू सवेरे पाठशाला जा तथा मन लगाकर पढ़। यदि यह
मना करे तो मेरे पास आना। मैं तुझे पढ़ाऊँगा। लेखक के पिता ने उस पर गलत आदतों का
आरोप लगाया-कंडे बेचना, चारा बेचना,
सिनेमा देखना या जुआ
खेलना, खेती व घर के काम
पर ध्यान न देना आदि। लेखक ने अपने उत्तर से उन्हें संतुष्ट कर दिया।
देसाई ने पूछा कि कभी नापास तो नहीं हुआ। लेखक के मना करने पर उसे पाठशाला
जाने का आदेश देकर घर भेज दिया। बाद में उसने रतनाप्पा को समझाया। दादा ने भी
पाठशाला भेजने की हामी भर दी। घर आकर दादा ने लेखक से यह वचन ले लिया कि दिन
निकलते ही खेत पर जाना और वहीं से पाठशाला पहुँचना। । पाठशाला से छुट्टी होते ही
घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटा भर ढोर चराना और खेतों में ज्यादा काम
होने पर पाठशाला से गैर-हाजिर रहना होगा। लेखक ने सभी शतें स्वीकार कर लीं। लेखक पाँचवीं
कक्षा में जाकर बैठने लगा। कक्षा के दो लड़कों को छोड़कर सभी नए बच्चे थे। वह
बाहरी-अपरिचित जैसा एक बेंच के एक सिरे पर कोने में जा बैठा। वह पुरानी किताबों को
ही थैले में भर लाया। कक्षा के शरारती लड़के ने उसका मजाक उड़ाया और उसका गमछा
छीनकर मास्टर की मेज पर रख दिया। फिर उसे सिर पर लपेटकर मास्टर की नकल उतारनी शुरू
की। तभी मास्टर जी आ गए।
लेखक ने उसे सब कुछ बता दिया। बीच की छुट्टी में लड़कों ने
उसकी धोती खोलने की कोशिश की, परंतु असफल रहे।
वे उसे तरह-तरह से परेशान करते रहे। उसका मन उदास हो गया। उसने माँ से नयी टोपी व
दो नाड़ी वाली चड्ढी मैलखाऊ रंग की मैंगवा ली। धीरे-धीरे लड़कों से परिचय बढ़ गया।
मंत्री नामक मास्टर आए। वे छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। वे लड़के की पीठ पर घूसा
लगाते थे। शरारती लड़के उनसे बहुत डरते थे। वे गणित पढ़ाते थे।
इस कक्षा में वसंत पाटील नाम का कमजोर शरीर वाला व होशियार
लड़का था। वह शांत स्वभाव का था तथा हमेशा पढ़ने में लगा रहता था। मास्टर ने उसे
कक्षा मॉनीटर बना दिया था। लेखक भी उसकी तरह पढ़ने में लगा रहा। वह अपनी
कापी-किताबों को व्यवस्थित रखने लगा। शीघ्र ही वह गणित में होशियार हो गया। दोनों
में दोस्ती हो गई। मास्टर लेखक को ‘आनंदा’ कहने लगे। अब उसका मन पाठशाला में लगने
लगा। न०वा० सौंदलगेकर मास्टर मराठी पढ़ाते थे। पढ़ाते समय वे स्वयं रम जाते थे।
सुरीले कंठ, छद व रसिकता के
कारण वे कविता बहुत अच्छी पढ़ाते थे। उन्हें मराठी व अंग्रेजी की अनेक कविताएँ याद
थीं। वे कविता के साथ ऐसे जुड़े थे कि अभिनय करके भावबोध कराते थे। वे स्वयं भी
कविता रचते थे।
लेखक उनसे बहुत प्रभावित था। खेत पर पानी लगाते समय या ढोर
चराते समय वह मास्टर के अनुसार ही कविताएँ गाता था। वह उन्हीं की तरह अभिनय करता।
उसी समय उसे अनुभव हुआ कि अन्य कविताएँ भी इसी तरह पढ़ी जा सकती हैं। लेखक को
महसूस हुआ कि पहले जिस काम को करते हुए उसे अकेलापन खटकता था, अब वह समाप्त हो गया। उसे एकांत अच्छा लगने
लगा। एकांत के कारण वह ऊँचे स्वर में कविता गा सकता था, नृत्य कर सकता था। उसने कविता गाने की अपनी
पद्धति विकसित की। वह अभिनय के साथ गाने लगा तथा अब उसके चेहरे पर कविता के भाव
आने लगे। मास्टर को लेखक का गायन अच्छा लगा और उससे छठी-सातवीं कक्षा के बालकों के
सामने गवाया। पाठशाला के एक समारोह में भी उससे गवाया। मास्टर स्वयं कविता रचते
थे। उनके पास मराठी कवियों के काव्य-संग्रह थे। वे उन कवियों के संस्मरण भी सुनाते
थे। इस कारण अब वे कवि उसे ‘आदमी’ लगने लगे थे। सौंदलगेकर स्वयं कवि थे।
इस कारण लेखक को यह विश्वास हुआ कि कवि भी उसकी तरह ही
हाड़-मांस का व क्रोध-लोभ का मनुष्य होता है। लेखक को लगा कि वह स्वयं भी कविता कर
सकता है। मास्टर के दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर एक कविता लिखी। लेखक ने
मालती लता व कविता दोनों ही देखी थी। इससे उसे लगा कि वह अपने आस-पास, अपने गाँव, खेतों आदि पर कविता बना सकता है।
भैंस चराते-चराते वह फसलों व जंगली फूलों पर तुकबंदी करने
लगा। वह उन्हें जोर से गुनगुनाता तथा मास्टर को दिखाता। कविता लिखने के लिए वह
कागज व पेंसिल रखने लगा। उनके न होने पर वह लकड़ी के छोटे टुकड़े से भैंस की पीठ
पर रेखा खींचकर लिखता या पत्थर की शिला पर कंकड़ से लिख लेता। कंठस्थ हो जाने पर
उसे पोंछ देता। वह अपनी कविता मास्टर को दिखाता था। कभी-कभी वह रात को ही मास्टर
के घर जाकर कविता दिखाता। वे उसे कविता के शास्त्र के बारे में समझाते। वे उसे छद,
अलंकार, शुद्ध लेखन, लय का ज्ञान कराते। वे उसे पुस्तकें व
कविता-संग्रह भी देते थे। उन्होंने उसे कविता करने के अनेक ढरें सिखाए। इस प्रकार
लेखक को मास्टर की निकटता मिलती और उसकी मराठी भाषा में सुधार आने लगा। शब्दों का
महत्व उसकी समझ में आने लगा।
शब्दार्थ
गड्ढे में धकेलना – पतन की ओर ले जाना। कोल्हू – गन्ने का
रस निकालने वाला यंत्र। बहुतायत – अत्यधिक। भाव नीचे उतरना – सस्ता होना, मंदी आना। जन – मनुष्य। कडे –पशुओं के गोबर से
बने उपले। मन रखना – ध्यान देना। तड़पन – पीड़ा। जोत देना – लगा देना। बाड़ा –
अहाता। जीमने – खाना खाने। राह देखना – इंतजार करना। जिरह –बहस। हजामत बनाना –
फटकारना। श्रम – मेहनत। लागत – खर्च। नायास – अनुत्तीर्ण। बालिस्टर – बैरिस्टर,
वकील। रोते-थोते –
जैसे-तैसे। अपरिचित – अनजान। द्वतजार –प्रतीक्षा। खिल्ली उड़ाना – मजाक बनाना।
पोशाक – वस्त्र। मटमैली – गंदी। गमछा – पतले कपड़े का तौलिया। काछ – धोती का छोर
जिसे जाँघों के बीच से पीछे ले जाकर खोंसते हैं। चोंच मार-मारकर घायल करना –
बार-बार पीड़ा देना। निबाह – निर्वाह। उमग
– उत्साह। मैलखाऊ – जिसमें मैल दिखाई न दे। दहशत – डर, भय। ठोंक देना – पिटाई करना। पसीना छूटना –
भयभीत होना। मुनासिब – उचित। व्यवस्थित – ठीक तरह से। एकाग्रता – ध्यान की अवस्था।
कठस्थ – जबानी याद होना। अभिनय – नाटक करना। संस्मरण – पुरानी बातों की याद। भान –
आभास। दम रोककर – तन्मय होकर। यति-गति – कविता में रुकने व आगे बढ़ने के नियम।
आरोह-अवरोह – स्वर को भावानुसार कम या ज्यादा करना। खटकाना – महसूस करना। अयेक्षा
– तुलना। तुकबदी – छदबद्ध सामान्य कविता। महफिल – सभा। ढरों – शैली। सूक्ष्मता –
बारीकी।
वस्तुपरक प्रश्न-
1. लेखक का दादा जल्दी कोल्हू क्यों चलाता था?
A. जल्दी काम खत्म करने के लिए
B. अधिक पैसे के लिए
C. अपनी आवारागर्दी के लिए
D. आराम करने के लिए
2. लेखक की कक्षा के मॉनीटर का नाम क्या था?
A. वसंत पाटील
B. चव्हाण पाटील
C. मनोहर पाटील
D. राव पाटील
3. कहानी के शीर्षक 'जूझ' का अर्थ है-
A. संघर्ष
B. चालाकी
C. मेहनत
D. कठिनाई
4. 'जूझ' पाठ के रचयिता का नाम है-
A. फणीश्वर नाथ रेणु
B. आनंद यादव
C. धर्मवीर भारती
D. मनोहर श्याम जोशी
5. 'जूझ' उपन्यास मूलतः किस भाषा में रचित है?
A. मराठी
B. गुजराती
C. अवधी
D. ब्रज
6. 'जूझ' के कथानायक का क्या नाम बताया गया है?
A. आनंदा
B. दत्ता जी राव
C. मोहन आनंद
D. कमल आनंद
7. पाठशाला जाने की बात लेखक ने सबसे पहले किससे की?
A. दादा से
B. माँ से
C. दत्ता जी राव से
D. सौंदलगेकर से
8. पढ़ाई के लिए लेखक अपनी माँ के साथ किसके पास गया?
A. दत्ता जी राव
B. दादा
C. सौंदलगेकर
D. इनमें से कोई नहीं
9. सौंदलगेकर किस विषय के अध्यापक थे?
A. अंग्रेज़ी का
B. गणित का
C. मराठी का
D. संस्कृत का
10. लेखक की माँ के अनुसार उसका पति दिनभर किसके पास रहता है?
A. बाला बाई
B. रखमाबाई
C. लखमा बाई
D. मुन्नी बाई
11. खेत का कौन-सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने माँ से पढ़ाई की बात की?
A. पानी लगाने का काम
B. बिजाई का काम
C. कटाई का काम
D. कोल्हू का काम
12. लेखक पढ़ना क्यों चाहता है?
A. ज्ञान के लिए
B. नौकरी के लिए
C. विद्वान बनने के लिए
D. कवि बनने के लिए
13. लेखक की माँ के अनुसार पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता कैसे गुर्राता है?
A. कुत्ते के समान
B. शेर के समान
C. जंगली सूअर के समान
D. चीते के समान
14. लेखक की माँ के अनुसार उसके पति ने लेखक को पाठशाला जाने से क्यों रोक दिया?
A. खर्चे से बचने के लिए
B. बीमारी से बचने के लिए
C. अनपढ़ता से बचने के लिए
D. खुद काम से बचने के लिए
15. दादा राव साहब के यहाँ तत्काल क्यों चला गया?
A. अपना सम्मान समझकर
B. डरकर
C. पैसों के लालच से
D. घबराकर
16. लेखक के पिता का नाम क्या था?
A. रतनाप्पा
B. कृष्णाप्पा
C. रामाप्पा
D. मोहनाप्पा
17. शर्त के अनुसार पाठशाला जाने से पहले लेखक को सवेरे कितने बजे तक खेत में काम करना होता था?
A. 10 बजे तक
B. 9 बजे तक
C. 11 बजे तक
D. 8 बजे तक
18. स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को कितने घंटे पशु चराने होते थे?
A. दो घंटे
B. तीन घंटे
C. चार घंटे
D. एक घंटा
19. लेखक के कक्षा अध्यापक का नाम क्या था?
A. वसंत
B. सौंदलगेकर
C. मंत्री
D. मोहन
20. “जूझ' कहानी से लेखक की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन हुआ है?
A. पढ़ने की प्रवृत्ति का
B. कविता करने की प्रवृत्ति का
C. लेखन प्रवृत्ति का
D. संघर्षमयी प्रवृत्ति का
21. जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था, उसका नाम क्या था?
A. वसंत
B. चह्वाण
C. मनोहर
D. सुन्दर
22. लेखक को गणित पढ़ाने वाले मास्टर का क्या नाम था?
A. वसंत
B. सौंदलगेकर
C. मंत्री
D. रतनाप्पा
23. लेखक के दादा (पिता) की कैसी प्रवृत्ति थी?
A. परिश्रमी
B. गुस्सैल और हिंसक
C. विनम्र
D. अहिंसक
- जूझ कहानी के लेखक कौन हैं – डॉ आनंद यादव
- आनंद यादव का पूरा नाम क्या हैं – आनंद रतन यादव
- जूझ कहानी में नायक का क्या नाम बताया गया है – आनंदा
- आनंद यादव का जन्म कब हुआ था – सन 1935
- जूझ कहानी किस उपन्यास से ली गई है – मराठी उपन्यास “झोबी”
- इस उपन्यास को कौन सा पुरस्कार मिला है – साहित्य अकादमी
- “झोबी” उपन्यास किस भाषा में लिखा गया हैं – मराठी
- जूझ कहानी के शीर्षक का अर्थ क्या हैं – संघर्ष करना / जुझारुपन
- जूझ कहानी क्या संदेश देती है – संघर्ष करने की सीख देती है
- जूझ कहानी से लेखक की किस प्रवृत्ति का उद्घाटन (पता) हुआ – संघर्षमयी
- जूझ कहानी किस शैली में लिखी गई हैं – आत्मकथात्मक शैली या आत्मकथात्मक उपन्यास । दरअसल जूझ कहानी लेखक आनंद यादव की आत्मकथा का एक हिस्सा है।
- जूझ उपन्यास किस श्रेणी का उपन्यास है – आत्मकथात्मक
- जूझ कहानी मराठी उपन्यास झोबी का एक हिस्सा हैं। इसका हिंदी अनुवाद किसने किया – केशव प्रथम वीर ने
- जूझ कहानी के नायक की चरित्र की विशेषताएं क्या हैं – संघर्षशील , जुझारूपन , परिश्रमी और कविता के प्रति लगाव
- आनंद यादव ने कौन से विषय में स्नातकोत्तर किया – मराठी एवं संस्कृत
- लेखक आनंद यादव के पिता ने उनकी पढ़ाई कब छुड़वा दी – जब वो पांचवी में पढ़ते थे
- लेखक ने दुबारा कौन सी कक्षा में दाखिला लिया – पांचवी कक्षा में
- लेखक के पिता का क्या नाम था – रत्नाप्पा
- लेखक अपने पिता को क्या कहकर पुकारते थे – दादा
- गांव के मुखिया का नाम क्या था – दत्ताजी राव
- लेखक अपने दादा यानि पिता के सामने बोलने की हिम्मत क्यों नहीं करते थे – क्योंकि उसके दादा गुस्सैल व हिंसक स्वभाव के व्यक्ति थे।
- लेखक क्यों पढ़ना चाहते थे – वो पढ़ – लिखकर कोई अच्छी नौकरी पाना चाहते थे।
- पढ़ाई के लिए पिता को राजी करने का दबाव डालने के लिए लेखक अपनी मां के साथ किसके पास गया – दत्ताजी राव के पास
- पाठशाला जाने की बात लेखक ने सबसे पहले किससे की – अपनी मां से
- लेखक को सातवीं कक्षा तक कौन पढ़ाना चाहता था – मां
- लेखक की मां के अनुसार उसके पति ने लेखक को पाठशाला जाने से क्यों रोक दिया – खुद काम से बचने के लिए
- किसके कहने पर लेखक के पिता ने लेखक को स्कूल भेजना शुरू किया – गांव के मुखिया दत्ताजी राव के कहने पर
- पाठशाला जाने का समय किस समय से था – सुबह 11:00 बजे से
- शर्त के अनुसार पाठशाला जाने से पहले लेखक को सवेरे कितने बजे तक खेत में काम करना होता था – 11 बजे तक
- लेखक का दादा (पिता) जल्दी कोल्हू क्यों चलवाता था – क्योंकि वह अपने गुड से अच्छी कमाई करना चाहता था या अधिक पैसे कमाने के लिए
- जूझ पाठ के अनुसार लेखक के घर कोल्हू चलना कब से शुरू होता था – दिवाली के बाद
- लेखक को किसने कविताएं लिखने के लिए प्रोत्साहित किया – उनके मराठी टीचर न. वा. सौंदलगेकर ने
- सौंदलगेकर किस विषय के अध्यापक थे – मराठी
- लेखक पढ़ना क्यों चाहता था – नौकरी करने के लिए
- लेखक की कक्षा के मॉनिटर का क्या नाम था – वसंत पाटील
- पढ़ाई में सुधार के लिए लेखक ने किसका अनुसरण किया – वसंत पाटील
- वसंत पाटील की नकल करने से लेखक को क्या लाभ पहुंचा – वो गणित विषय में प्रवीण हो गए , कक्षा में मॉनिटर जैसा सम्मान मिला व अध्यापक की नजरों में एक अच्छे छात्र की जगह बनी।
- खेत का कौन सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने मां से पढ़ाई की बात की – कोल्हू का काम
- लेखक की मां के अनुसार उसका पति दिन भर बाहर किसके पास रहता था – रखमाबाई
- लेखक का कौन सा काम समाप्त होने के बाद लेखक ने अपनी मां से पढ़ाई की बात की – कोल्हू का काम
- लेखक की मां के अनुसार पढ़ाई की बात करने पर लेखक का पिता कैसे गुर्राता है – जंगली सूअर के समान
- लेखक के दादा (पिता) की प्रवृत्ति कैसी थी – गुस्सैल और हिंसक
- दत्ता राव सरकार ने दादा को क्यों डांटा – लेखक को स्कूल न भेजने के कारण
- लेखक का पिता , दत्ताजी राव के यहां तत्काल क्यों चला गया – अपना सम्मान समझ कर
- दत्ताजी राव सरकार ने लेखक को क्या निर्देश दिए – अगले दिन से स्कूल जाने , मन लगाकर पढ़ाई करने तथा पिता के स्कूल ना भेजने पर तुरंत उनके पास आने का निर्देश दिया
- स्कूल से छुट्टी के बाद लेखक को कितने घंटे पशु चराने होते थे – एक घंटा
- लेखक के कक्षा – अध्यापक का क्या नाम था – मंत्री
- जिस शरारती लड़के ने लेखक के सिर से गमछा छीना था , उसका क्या नाम था – चह्वाण
- लेखक को गणित पढ़ाने वाले मास्टर का क्या नाम था – मंत्री
- दादा ने दत्ताजी राव सरकार के सामने लेखक पर क्या आरोप लगाए – सिनेमा देखने जाना , घर व खेती के कार्य में मन न लगाना और व्यर्थ यहां – वहां घूमना।
- दादा ने अपने बेटे के सामने स्कूल जाने के लिए क्या शर्त रखी – स्कूल जाने से पहले खेतों में पानी भरना , स्कूल से आने के बाद जानवर चराना और घर में काम अधिक होने पर स्कूल न जाना।
- लेखक पहले दिन अपनी कक्षा की दीवार से पीठ सटाकर क्यों बैठ गया – क्योंकि शरारती बच्चे उनकी धोती खींच रहे थे।
- आनंदा की कक्षा में शरारत किस कारण कम होने लगी – गणित के अध्यापक द्वारा शरारती बच्चों की पिटाई किए जाने के बाद।
- लेखक को अकेलेपन में आनंद क्यों आने लगा – क्योंकि अकेले में वो अपनी कविताओं को लिख सकते थे , उनको खुलकर गा सकते थे और उनमें अभिनय भी कर सकते थे।
- जूझ कहानी के अनुसार कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया – अब उन्हें अकेलापन अच्छा लगने लगा या अकेलेपन से बोरियत खत्म हो गई।
- लेखक के मराठी शिक्षक की क्या विशेषताएं थी – उनको कविता में छंद , अलंकार , गति आरोह – अवरोह का अच्छा ज्ञान था
- मराठी भाषा की कविताओं के अलावा सौंदलगेकर को किस भाषा की कविताएं कंठस्थ याद थी – गुजराती
- आनंदा और उसकी मां ने , दत्ताजी राव से किस बात के लिए आग्रह किया – उन दोनों की उनके पास आने की बात दादा को न बताने का आग्रह किया।
- “आने दे अब उसे , मैं उसे सुनाता हूं कि नहीं , अच्छी तरह देख”। यह कथन किसने किससे कहा था – दत्ताजी राव ने लेखक की माता से कहा
- अगर आनंदा और उसकी मां ने झूठ का सहारा ना लिए होता तो – आनंदा अशिक्षित ही रह जाते और वो कविताएं भी नहीं लिख पाते
- कविता पाठ करते समय मराठी अध्यापक क्या करते थे – बीच बीच में अपने संस्मरण सुनाते थे।
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
‘जूझ’ शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि
क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केंद्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता
हैं।
उत्तर –
जूझ का साधारण अर्थ है जूझना अथवा संघर्ष करना। यह उपन्यास
अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध करता है। उपन्यास का कथानायक भी जीवनभर स्वयं से और
अपनी परिस्थितियों से जूझता रहता है। यह शीर्षक कथानायक के संघर्षशील वृत्ति का
परिचय देता है। हमारे कथानायक में संघर्ष की भावना है। वह संघर्ष करने के लिए
मजबूर है लेकिन उसका यह संघर्ष ही उसे एक दिन पढ़ा-लिखा इंसान बना देता है। इस
संघर्ष में भी उसने आत्मविश्वास बनाए रखा है। यद्यपि परिस्थितियाँ उसके विरुद्ध
होती हैं तथापि वह अपने आत्मविश्वास के बल इस प्रकार की परिस्थितियों से जूझने में
सफल हो जाता है। वास्तव में कथानक की संघर्षशीलता ही उसकी चारित्रिक विशेषता है।
उपन्यास के शीर्षक से यही केंद्रीय विशेषता उजागर होती है।
प्रश्न 2:
स्वय कविता रच लेने का आत्मविश्वास लखक के मन में कैस पैदा
हुआ?
उत्तर –
लेखक की पाठशाला में मराठी भाषा के अध्यापक न०बा० सौंदलगेकर
कविता के अच्छे रसिक व मर्मज्ञ थे। वे कक्षा में सस्वर कविता-पाठ करते थे तथा लय,
छद, गति-यति, आरोह-अवरोह आदि का ज्ञान कराते थे। लेखक इनकी
देखकर बहुत प्रभावित हुआ। इससे पहले उसे कवि दूसरे लोक के जीव लगते थे। सौंदलगेकर
ने उसे अन्य कवियों के बारे में बताया। वह स्वयं भी कवि थे। इसके बाद आनंद को यह
विश्वास हुआ कि कवि उसी की तरह आदमी ही होते हैं। एक बार उसने देखा कि उसके
अध्यापक ने अपने घर की मालती लता पर ही कविता लिख दी, तब उसे लगा कि वह अपने आस-पास के दृश्यों पर
कविता बना सकता है। इस प्रकार उसके मन में स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास
पैदा हुआ।
प्रश्न 3:श्री सोंदलगकर के
अध्यापन की उन विशषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन
में रुचि जगाई।
अथवा
सौंदलगकर के व्यक्तित्व के आधार पर किसी अध्यापक के लिए
आवश्यक जीवन-मूल्यों पर प्रकाश
डालिए।
उत्तर –श्री सौंदलगेकर मराठी भाषा के अध्यापक थे। वे मराठी भाषा का अध्यापन
बड़े ही सुरुचि ढंग से करवाते थे। उनके पढ़ाने का तरीका सबसे अलग था। पढ़ाते समय
वे पूरी तरह पढ़ाई में ही रम जाया करते थे। छंद की बढ़िया चाल और सुरों का ज्ञान
उन्हें था। उस पर मीठा गला। वे गा-गाकर कविता पाठ करवाते थे। वे सबसे पहले कविता
गाकर सुनाते थे फिरबैठे-बैठे ही अभिनय करते हुए कविता के भावों को ग्रहण करते थे।
प्रश्न 4:कविता के प्रति
लगाव से पहल और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया?उत्तर –
कविता के प्रति लगाव से पहले लेखक को ढोर चराते हुए,
पानी लगाते हुए, दूसरे काम करते हुए अकेलापन बहुत खटकता था। उसे
ऐसा लगता था कि कोई-न-कोई हमेशा साथ में होना चाहिए। उसे किसी के साथ बोलते हुए,
गपशप करते हुए, हँसी-मजाक करते हुए काम करना अच्छा लगता था।
कविता के प्रति लगाव के बाद उसे अकेलेपन से ऊब नहीं होती। अब वह स्वयं से ही खेलना
सीख गया। पहले की अपेक्षा अब उसे अकेला रहना अच्छा लगने लगा। इस स्थिति में वह
ऊँची आवाज़ में कविता गा सकता था। वह अभिनय भी कर सकता था। वह थुई-थुई करके नाच भी
सकता था। इस तरह अब उसे अकेलापन आनंद देने लगा था।
प्रश्न 5:आपके खयाल से
पढ़ाई-लिखाई के सबध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का2 तक सहित उत्तर दें।
उत्तर –मेरे खयाल से
पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया बिलकुल सही था क्योंकि लेखक
को पढ़ने की इच्छा थी जिसे दत्ताजी राव ने सही पहचाना। उसकी प्रतिभा के बारे में
दत्ताजी ने पूरी तरह जान लिया था। वैसे भी लेखक को पढ़ाने के पीछे दत्ताजी राव का
कोई स्वार्थ नहीं था जबकि लेखक के पिता का पढ़ाई-लिखाई के बारे में रवैया बिलकुल
गलत था। वास्तव में लेखक का पिता अपने स्वार्थ के लिए अपने बेटे को नहीं पढ़ाना
चाहता था। उसे पता था कि यदि उसका बेटा स्कूल जाने लगा तो उसे ऐश करने के लिए समय
नहीं मिलेगा। न ही वह टखमाबाई के पास जा सकता था। इसलिए हमें दत्ताजी राव और लेखक
का रवैया पढ़ाई के संबंध में बिलकुल ठीक लगता है।
प्रश्न 6:दत्ता जी राव से
पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि
झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता?
उत्तर –स्वयंअनुमान लगाएँ। दत्ता जी राव से पिता पर दबाव
डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि दोनों ने झूठ
का सहारा नहीं लिया. होता तो दत्ता जी राव उसके पिता पर दबाव नहीं दे पाते। लेखक
पिता द्वारा दिए गए ही काम करता। उसकी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाती। वह सारा जीवन
खेती में ही लगा रहता। इस झूठ के बिना हमें यह प्रेरणादायक कहानी भी नहीं मिल
पाती। इस तरह कभी-कभी एक झूठ भी मनुष्य व समाज का विकास करने में सक्षम साबित होता
है।
अन्य हल प्रश्न
I. बोधात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1:पाँचवीं कक्षा
में दुबारा पढ़ने आए लखक की किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?’ ‘जूझ’ कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर –
जो लड़के चौथी पास करके कक्षा में आए थे, लेखक उनमें से गली के दो लड़कों के सिवाय और
किसी को जानता तक नहीं था। जिन लड़कों को वह कम अक्ल और अपने से छोटा समझता था,
उन्हीं के साथ अब उसे
बैठना पड़ रहा था। वह अपनी कक्षा में पुराना विद्यार्थी होकर भी अजनबी बनकर रह
गया। पुराने सहपाठी तो उसे सब तरह से जानते-समझते थे, मगर नए लड़कों ने तो उसकी धोती, उसका गमछा, उसका थैला आदि सब चीजों का मजाक उड़ाना आरंभ कर
दिया। उसके मन में यह दुख भी था कि इतनी कोशिश करके पढ़ने का अवसर मिला तो उसके
आत्मविश्वास में भी कमी आ गई।
प्रश्न 2:‘जूझ’ कहानी में
पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता जी राव की सहायता से एक चाल चली गई हैं। क्या
ऐसा कहना ठीक है?
उत्तर –‘जूझ’ कहानी में पिता को मनाने के लिए माँ और दत्ता
जी राव की सहायता से एक चाल चली गई है। यह कहना बिलकुल ठीक है। लेखक के पिता उसे
पढ़ाना नहीं चाहते थे। वे खुद ऐयाशी करने के लिए बच्चे को खेती के काम में लगाना
चाहते थे। पढ़ने की बात करने पर वे जंगली सुअर की तरह गुर्राते थे। उन पर दत्ता जी
राव का दबाव ही काम कर सकता था। अत: लेखक की माँ व दत्ता जी राव ने मिलकर उन्हें
मानसिक तौर पर घेरा तथा आगे पढ़ने की स्वीकृति ली। यदि यह उपाय नहीं किया जाता तो
लेखक कभी शिक्षित नहीं हो पाता।
प्रश्न 3:‘जूझ’ कहानी में
चित्रित ग्रामीण जीवन का सांक्षप्त वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर –‘जूझ’ कहानी में ग्रामीण जीवन का यथार्थपरक चित्रण
किया गया है। गाँव में किसान, जमींदार आदि कई
वर्ग हैं। लेखक स्वयं कृषिकार्य करता है। उसके पिता बाजार में गुड़ के ऊँचे भाव
पाने के लिए गन्ने की पेराई जल्दी करा देते हैं। गाँव में पूरा परिवार कृषि-कार्य
में लगा रहता है, चाहे बच्चे हों,
महिलाएँ हों या वृद्ध।
कुछ बड़े जमींदार भी होते हैं जिनका गाँव पर काफी प्रभाव होता है। गाँव में कृषक
बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कम ध्यान देते हैं। ग्रामीण स्कूलों में बच्चों के पास
कपड़े भी पर्याप्त नहीं होते। बच्चों को घर व पाठशाला का काम करना पड़ता था।
प्रश्न 4:‘लेखक की माँ उसके
पिता की आदतों से वाकिफ थी।”-लेखक की माँ न लेखक का साथ किस प्रकार दिया?
उत्तर –
लेखक की माँ अपने पति के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ़ थी। वह
जानती थी कि वह अपने लड़के को पढ़ाना नहीं चाहता। पढ़ाई की बात से ही वह बरहेला
सुअर की तरह गुर्राता है। इसके बावजूद वह लेखक का साथ देती है और दत्ता जी राव के
पास जाकर अपने पति के बारे में सारी बातें बताती है। अंत में, वह देसाई को अपने आने की बात पति को न बताने के
लिए भी कहती है।
प्रश्न 5:मंत्री नामक
अध्यापक पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर – मंत्री नामक अध्यापक गणित पढ़ाते थे। वे प्राय:
छड़ी का उपयोग नहीं करते थे। काम न करने वाले बच्चों की गरदन हाथ से पकड़कर उनकी
पीठ पर घूसा लगाते थे। इस प्रकार से बच्चों के मन में दहशत थी। शरारती बच्चे भी
शांत रहने लगे थे। ये पढ़ने वाले बच्चों को प्रोत्साहन देते थे। अगर किसी का सवाल
गलत हो जाता तो वे उसे समझाते थे। एकाध लड़कों द्वारा मूर्खता करने पर उन्हें वहीं
ठोंक देते थे। उनके डर से सभी बच्चे घर से पढ़ाई करके आने लगे।
प्रश्न 6:वसंत पाटिल कौन
है? लेखक ने उससे दोस्ती
क्यों व कैसे की?
उत्तर –
वसंत पाटिल दुबला-पतला, परंतु होशियार लड़का था। वह स्वभाव से शांत था
तथा हर समय पढ़ने में लगा रहता था। वह घर से पूरी तैयारी करके आता था तथा उसके सभी
सवाल ठीक होते थे। वह दूसरों के सवालों की जाँच करता था। उसे कक्षा का मॉनीटर बना
दिया गया था। लेखक भी उसकी देखा-देखी मेहनत करने लगा। उसने बस्ता व्यवस्थित किया,
किताबों पर अखबारी कागज का
कवर चढ़ाया तथा हर समय पढ़ने लगा। उसके सवाल भी ठीक निकलने लगे। वह भी वसंत पाटील
की तरह लड़कों के सवाल जाँचने लगा। इस तरह दोनों दोस्त बन गए तथा एक-दूसरे की
सहायता से कक्षा के अनेक काम करने लगे।
प्रश्न 7:लेखक का पाठशाला
में विश्वास कैसे बढ़ा? ‘जूझ’ कहानी के
आधार पर बताइए।
उत्तर –
जब लेखक को वसंत पाटिल के साथ दूसरे लड़कों के सवाल जाँचने
का काम मिला, तब उसकी वसंत से
दोस्ती हो गई। अब ये दोनों एक-दूसरे की सहायता से कक्षा के अनेक काम निपटाने लगे।
सभी अध्यापक लेखक को ‘आनंदा’ कहकर बुलाने लगे। यह संबोधन भी उसके लिए बड़ा
महत्वपूर्ण था। मानो पाठशाला में आने के कारण ही उसे स्वयं का नाम सुनने को मिला।
‘आनंदा’ की कोई पहचान बनी। एक तो वसंत की दोस्ती, दूसरा अध्यापकों का व्यवहार-इस कारण लेखक का
अपनी पाठशाला में विश्वास बढ़ने लगा।
प्रश्न 8:न०वा०सौंदलगेकर कौन थे?
उनमें क्या विशेषता थी।
उत्तर –
न०वा० सौंदलगेकर लेखक के गाँव के स्कूल में मराठी पढ़ाने
वाले अध्यापक थे। वे कविता बहुत अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। पढ़ाते समय वे स्वयं रम
जाते थे। उनके पास सुरीला गला, छद की बढ़िया चाल
और रसिकता थी। उन्हें पुरानी व नयी मराठी कविताओं के साथ-साथ अंग्रेजी कविताएँ भी
कंठस्थ थीं। उन्हें छदों की लय, गति, ताल इत्यादि अच्छी तरह आते थे। वे स्वयं भी
कविता रचते थे तथा उन्हें सुनाते थे।
प्रश्न 9:‘दत्ता जी राव की
सहायता के बिना ‘जूझ’ कहानी का ‘मैं’ पात्र वह सब नहीं पा सकता था जो उसे
मिला।”-टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –
यह बात बिलकुल सही है कि दत्ता जी राव की सहायता के बिना
लेखक पढ़ नहीं सकता था। यदि दत्ता जी राव लेखक के पिता को नहीं समझाते तो लेखक को
कभी स्कूल नसीब न होता। वह अर्धशिक्षित ही रह जाता तथा गीत, कविता, उपन्यास न लिख पाता। उच्च शिक्षा के अभाव में उसे अपने
खेतों में मजदूर की तरह आजीवन काम करना पड़ता। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसे
जमींदार के खेतों में काम भी करना पड़ता। वस्तुत: उसका जीवन ही अंधकारमय हो जाता।
प्रश्न 10:‘जूझ’ के लेखक के
मन में यह विश्वास कब और कैसे जन्मा कि वह भी कविता की रचना कर सकता है?
अथवा
‘जूझ’ कहानी के लेखक में कविता-रचना के प्रति रुचि कैसे
उत्पन्न हुई?
अथवा
‘जूझ’ के लखक के कवि बनने की कहानी का वर्णन कीजिए।
उत्तर –
लेखक मराठी पढ़ाने वाले अध्यापक न.वा सौंदगलेकर की कला व
कविता सुनाने की शैली से बहुत प्रभावित हुआ। उसे महसूस हुआ कि कविता लिखने वाले भी
हमारे जैसे मनुष्य ही होते हैं। कवियों के बारे में सुनकर तथा कविता सुनाने की
कला-ध्वनि, गति, चाल आदि सीखने के बाद उसे लगा कि वह अपने
आस-पास, अपने गाँव,
अपने खेतों से जुड़े कई
दृश्यों पर कविता बना सकता है। वह भैंस चराते-चराते फसलों या जंगली फूलों पर
तुकबंदी करने लगा। वह हर समय कागज व पेंसिल रखने लगा। वह अपनी कविता अध्यापक को
दिखाता। इस प्रकार उसके मन में कविता-रचना के प्रति रुचि उत्पन्न हुई।
प्रश्न 11:दादा ने मन मारकर
अपने बच्चे को पाठशाला भेजने की बात मान तो ली, पर खेती-बाड़ी के बारे में उससे क्या-क्या वचन
लिए? ‘जूझ’ कहानी के
आधार पर उत्तर दीजिए।
अथवा
बालक आनद यादव के पिता ने किन शतों पर उसे विद्यालय जाने
दिया?
उत्तर –
दादा ने मन मारकर अपने बच्चे को स्कूल भेजने की बात मान तो
ली, पर खेती-बाड़ी के बारे
में उन्होंने निम्नलिखित वचन लिए
पाठशाला जाने से पहले ग्यारह बजे तक खेत में काम करना होगा
तथा पानी लगाना होगा।
सबेरे खेत पर जाते समय ही बस्ता लेकर जाना होगा।
छुट्टी होने के बाद घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटा
भर ढोर चराना होगा।
अगर किसी दिन खेत में ज्यादा काम होगा तो उसे पाठशाला नहीं
जाना होगा।
प्रश्न 12:‘जूझ’ कहानी की
कौन-सी बात आपको सवाधिक प्रेरक लगती हैं?
उत्तर –
‘जूझ’ कहानी में हमें ‘आनंदा’ का जुझारूपन सर्वाधिक प्रेरक
लगता है। वह पढ़ना चाहता है, परंतु पिता बाधक
है। पिता को किसी तरह दबाव डलवाकर मनाया जाता है तो आर्थिक समस्या व काम का बोझ
बाधा उत्पन्न करता है। पाठशाला का अजनबी परिवेश भी उसे परेशान करता है। लेखक इन
सभी विपरीत परिस्थितियों पर जुझारूपन से नियंत्रण पाता है और स्वयं को होशियार
बच्चों की पंक्ति में खड़ा पाता है।
प्रश्न 13:कविता के प्रति
रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका पर ‘जूझ’ कहानी के आधार पर प्रकाश डालिए।उत्तर –
‘जूझ’ कहानी में लेखक के मन में कविताएँ रचने का
प्रेरणा-स्रोत उसका शिक्षक सौंदलगेकर रहे हैं। वस्तुत: शिक्षक का दायित्व बड़ा
होता है। कविता रस, लय, छंद के आधार पर पढ़ाई व गाई जाती है। यदि
शिक्षक का गला सुरीला है तथा उसे छद, अलंकार, लय व ताल आदि का
ज्ञान होता है तो बच्चों में कविता सुनने व रचने की इच्छा जाग्रत होती है। यदि कोई
बच्चा तुकबंदी करके कविता बनाता है तो शिक्षक उसे प्रोत्साहित कर सकता है। उसे
कविता के संबंध में तकनीकी जानकारी दे सकता है तथा उसकी कमियों को दूर करने का
सुझाव दे सकता है। अत: कविता के प्रति रुचि जगाने में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण
होती है।
प्रश्न 14:‘जूझ हैं कहानी के
शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर – ‘जूझ‘ कहानी का शीर्षक पूर्णत : उपयुक्त है। इसमें
एक किशोर के देखे और भोगे हुए गांव के जीवन के खुरदरे यथार्थ और उसके परिवेश की अत्यंत विश्वसनीय गाथा है। इसमें
निम्नमध्यवर्गीय ग्रामीण समाज और लडते–जूझते किसान–मज़दूरों के संघर्ष की भी अनूठी
झाँकी है। कहानी का नायक हर कदम पर संघर्ष करता हैं। वह बचपन में स्कूल में दाखिले
के लिए संघर्ष करता है, फिर कक्षा में
बच्चों को शरारतों से संघर्ष करता है तथा स्कूल में स्वय को स्थापित करने के लिए
मेहनत करता है। साथ ही वह घर तथा खेत जाया करता है। इन लिब कार्यो को अपनी
जुझारूपन की प्रवृत्ति रने वह कर पाता है। कविता लिखने में भी वह संघर्ष करता है।
अत: यह शीर्षक लेखक के जुझारूपन को व्यक्त करता है।
II. निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:किस घटना रने पता
चलता है कि लेखक की माँ उसके मन काँ पांड़। समझ रही थी? ‘जूझ‘ कहानी के अमर पर बताईए।
उत्तर –लेखक पढ़ना चाहता था और उसके पिता उसे पढ़ाने के बजाय
उससे खेत का काम, पशु चराने का काम
कराना चाहते थे। पिता ने अपनी इच्छा को ध्यान में रखकर ही लेखक की पकाई छुड़वा दी
श्री। इसी बात रने लेखक बहुत ही परेशान रहता था। उसका मन दिन–रात अपनी पढाई जारी
रखने की योजनाएँ बनाता रहता था इसी योजना के अनुसार लेखक ने अपनी माँ रने दस्ता जी
राव सरकार के घर चलकर उनकी मदद रने अपने पिता को राजी करने की बात कही। भी ने लेखक
का साथ देने की बात को तुरत आकार कर लिया अपने बटे की पढाई के बारे में वह दत्ता
जी राव देसाई से जाकर बात भी करती है और पति से इस बात को छिपाने का आग्रह भी करती
है। इससे स्पष्ट होता है कि वह लेखक के मन की पीड़ा को समझती थी।
प्रश्न 2:‘जूझ‘ कहानी के
आधार पर दत्ता जी राव देसाई की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
अथवा
दत्ता जी राव देसाई ने लेखक की पढाई काँ समस्या का समाधान
किस प्रकार किया?
उत्तर –
‘जूझ‘ कहानी में दत्ता जी राव देसाई की भूमिका महत्त्वपूर्ण
है। वे गाँव के जमीदार है तथा नेकदिल व उदार हैं। बच्चों व महिलाओँ पर उनका विशेष
स्नेह है। वे हरेक की सहायता करते हैं। लेखक व उसकी माँ ने उन्हें अपनी पीड़ा बताई तो वे पिघल गए तथा निर्णय लिया कि वे लेखक
के दादा की खरी–खनैटी सुनाकर सीधे रास्ते पर लाएँगे। वे साम…दाम–दंड–भेद किसी भी
तरीके से अपनी बात मनवाना चाहते के उन्होंने दादा के आने पर हाल–चाल पूछे तथा
बच्चे की पढाई के सबंध में बात खुलने पर उसे खूब फटकार लगाई। उनकी डाँट से दादा की
विधि, बैठ गई तथा उसने
आनंद की पढाई के लिए सहमति दे दी।
प्रश्न 3:कहानीकार के
शिक्षित होने के संघर्ष में राव साहब का योोगदान की ‘जूझ कहानी के आधार पर स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर –
दत्ता जी राव देसाई गाँव के सम्मानित ज़मींदार हैं। ने
नेकदिल, उदार व रोबीले
हैं। कभी लेखक के पिता उन्हों के खेतों में काम करते थे। लेखक के दादा राव साहब का
सम्मान करते के लेखक ने अपनी भी के साथ राव देसाई को अपनी पढ़ाई तथा पिता के रवैये
के बारे में बताया। राव साहब ने उनकी बात सुनी तथा दादा को भेजने को कहा। जैसे ही
दादा घर आए, लेखक की भी ने
उम्हें राव साहब के पास जाने का संदेश दिया। वहाँ पर राव साहब ने उसे खुब डाँटा।
इस बीच दादा ने लेखक पर आवारागर्दी के आरोप लगाए जिनका उसने हिम्मत से जवाब दिया
राव साहब ने दादा को बच्चे को स्कूल भेजने के लिए कहा, साथ ही यह चेतावनी भी दी कि अगर वह उसे नहीं
पढ़ाएगा तो वे स्वयं उसको पढ़ने का खर्चा देगे। इस प्रकार लेखक की पढ़ाई में दत्ता
जी का बहुत योगदान है।
प्रश्न 4:‘जूझ‘ कहानी के
माध्यम से लेखक ने क्या सीख दी हैं?
उत्तर –
लेखक बचपन से ही प्रतिमासंपन्न था, मगर ढोर चराने और खेत में पानी देने तथा उपले
बनाने में अपनी सारी शक्ति लगा रहा था। पढ़ने की इच्छा भीतर–ही–भीतर कुलबुलाती रहती
थी। सभी उसे छोरे कहकर बुलाते। वह पशुओ जैसा जीवन जी रहा था जब पड़ने का अवसर मिला
तो उसने कविता–पाठ करने में सबको पीछे छोड़ दिया । गणित के सवाल हल करने मैं भी
उसने पा कक्षा को पीछे छोड़ दिया। सभी अध्यापक उसे ‘आनंदा‘ कहकर पुकारते थे,
उरने मानो अपनी स्वय को
पहचान मिल गई । उसे लगा उसके मख निकल आए हैं। वह बहुत ही खुश रहने लगा। मनुष्य के
चौवन में शिक्षा का बहुत महत्त्व है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य पशु के समान होता
है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यही सीख दी है।
प्रश्न 5:‘जूझ‘ आत्मकथात्मक
उपन्यास के मुख्य पात्र के स्वभाव की तीन विशपताआं‘ का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
‘जूझ‘ कहानी का मुख्य पात्र है आनंदा‘ है। उसके स्वभाव की
विशेषताएँ निम्नलिखित है –
पढ़ने को इच्छा…वह पिछले डेढ वर्ष से स्कूल नहीं जा रहा था
क्योकि पिता ने आगे पढाने से मना कर दिया था। इसके बावजूद उसके मन में पढ़ने की
बहुत इच्छा थी। वह अपने मन की बात भी रनै कहता है तथा इस काम में दत्ता जी राव
देसाई को मदद लेता है।
परिश्रमी-आनंदा बेहद परिश्रमी है। वह सुबह खेत पर जाता,
वहाँ हैं स्कूल जाता और
घर लौटकर फिर छोर चराने जाता है। वह सारा दिन काम करता है।
लगनशील-आनंदा हर कार्य को तन्मयता से करता है। वह छह माह के
बाद स्कूल जाता है तथा मेहनत के बल पर शीघ्र ही कक्षा के होशियार बना । अपनी लगन
के करण ही वह कविता भी लिखने लगता ।
प्रश्न 6:” ‘जूझ‘ में गँवई
जीवन के यथार्थ से जूझने का जीवंत चित्रण हैं।“-ड़स कथन पर तर्कसम्मत टिप्पणी
कीजिए।
उत्तर –‘जूझ‘ कहानी में गँवई के जीवन का यथार्थ वर्णन है।
गाँव के बच्चे जीवन में अनेक संघर्ष करते हैं। इस कहानी का पात्र ‘आनंदा‘ भी अपनी
पढ़ाई जारी रखने के लिए संघर्ष करता है। उसका पिता खेत के काम को पढाई रने जादा
महत्त्व देता है और वह आनंदा को स्कूल में पढ़ने नहीं भेजता। आनंदा के मन में पढ़ने
को ललक थी। वह पढ़–लिखकर नौकरी पना चाहता था म परंतु पिता के डर से वह कुछ नहीं कह
पाता। वह माँ को अपनी पोड़। बताता है। माँ उसकी सलाह पर गॉव के ज़मींदार दत्ता जी
राव सरकार रने बात करती है। दस्ता जी ने आनंद के पिता को बुलाकर डॉटा तथा बच्चे को
पढाने के लिए कहा। पिता ने अनेक कठोर शर्तों के साथ पढाई करने की इजाजत है दी। इस
तरह आनंद को सुबह से शाम तक स्कूल व खेत में काम करना पढा। वह हर कदम पर यथार्थ से
जूझता रहा। अंतत: उसने सफलता प्राप्त का ली।
प्रश्न 7:‘जूझ‘ कहानी में
आपकी किस पात्र ने सबसे अधिक प्रभावित किया और क्यों‘? उसकी चारित्रिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘जूझ‘ पाठ के आधार पर राव साहब का चरित्र चित्रण र्काजिए।
उत्तर –‘जूझ‘ कहानी में मुझे सबसे अधिक दत्ता जी राव देसाई
ने प्रभावित किया उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं…
सम्मानित – दत्ता जी राव देसाई गाँव के सम्मानित जमींदार
हैं। वे उदार, नेकदिल व रोबीले
हैँ। बच्चे व महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं।
समझदार – राव साहब बेहद समझदार हैं। वे हर बात को ध्यान से
सुनते है तथा फिर उसका समाधान करते हैं। लेखहुँ व उसकी भी को समस्या को सुनकर ही
वे ‘दादा‘ को बुलाकर उसे बेटे को पकाने की बात समझाते ।
व्यावहारिक – राव साहब व्यावहारिक हैं। वे नियम-नीति जानते
हैं। लेखक की पढ़ाई के बारे में जानने के तहत उसके पिता को बुलाकर आम बातें करते
हैँ। लेखक के बीच में आने पर वे उसकी पढाई के बारे में पूछते हैं। फिर सारी कहानी
सुनकर उसके पिता को डाँटते भी है तथा समझाते भी जा इस तरह वे लेखक की पढाई के लिए
उसे तैयार करते हैं।
तर्कशील – राव साहब बेहद तर्कशील हैं। उसके तर्कों के सामने
लेखक का पिता निरुत्नर हो जाता है।
प्रश्न 8:पाठशाला पहुँचकर
लेखक को किन–किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर –
राव साहब के दबाव के कारण लेखक को दुबारा पढ़ने की इजाज़त
मिली वह पाठशालं। पहुंचा, परंतु वहाँ उसकी
गली के दो लड़को के अलावा सब अपरिचित थे। लेखक जिन्हें अपने से चुद१धहीन समझता था,
अब उन्हों के साथ बैठने
के लिए विवश था। उसके कपड़े भी कक्षा के अनुरूप नहीं थे। उसे अपने अध्यापक का भी
नहीं पता था। वह लटूठं के बने थैले में पुरानी किताबें व कापियों भरकर लाया था। यह
बालुगड़ी की लाल माटी के रंग में मटमैली हुई धोती और गमछा पहनकर आया था तथा अकेला
या शरारती लड़के ने उसका मजाक उडाया तथा उसका गमछा छीनकर अपने सिर पर लपेटकर मास्टर
की नकल करने लगा। उसने गमछा टेबल पर रख दिया । मास्टर ने गमछा देखकर पूछा कि यह
किसका है? लेखक ने उसे
उठाया मास्टर ने उसके बारे में पूछताछ कौ। बीच की छुट्टी में शरारती लड़के ने लेखक
की छोती की काछ दी बार निकालने की कोशिश की, परंतु वह दीवार को तरफ पीठ करके छुटूटी होने तक
बैठा रहा। घर जाते समय वह सीच रहा था कि लड़के उसकी खिल्ली उड़ते हैं, धोती खींचते है, गमछा खींचते हैं, ऐसे में वह केसे महँगा? इससे अच्छा है कि वह पाठशाला न जाए और खेत में
ही काम करता रहे। सबेरे उठते ही वह फिर पाठशाला चला गया। औरे–धीरे उसका
आत्मविश्वास और सहपाठियों रने परिचय बढ़ गया।
प्रश्न 9:‘जूझ‘ के कथानायक
का मन पाठशाला जाने के लिए वयो‘ तड़पता था? उसे की का काम अच्छा क्यों नहीं लगता आ, तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर –“जूझ हैं के कथानायक का मन पाठशाला जाने के लिए
इसलिए तड़पता था क्योंकि उसे शिक्षा से अत्यंत गहरा लगाव था। उसे पता था कि शिक्षा
मनुष्य का सर्वागीण विकास करती है। शिक्षा रने ही व्यक्ति अपनी उन्नति के बारे में
सीच सकता है तथा वह समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर सकता है। संक्षेप में कहा
जा सकता है कि शिक्षा व्यक्ति की उन्नति का दूवार खेलती है। उसे खेती का काम इसलिए
अच्छा नहीं लगता था क्योकि उसे यह विश्वास था कि जन्म–भर खेत में काम करते रहने पर
भी हाथ कुछ नहीं लगेगा। जो बाबा के समय था, वह दादा के समय नहीं रहा। यह खेती हमें गड्ढे
में धकेल रही है। पद जाऊँगा तो नौकरी लग जाएगी, चार पैसे हाथ में रहेंगे, विठोबा आपणा को तरह कुछ धंधा–कारोबार किया जा
सकेगा ।
प्रश्न 10:‘जूझ‘ कहानी
आधुनिक किशीर–किशांरियां” की जिन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा दं सकती हैं? सोदाहरण स्पष्ट कांजिए।
उत्तर –‘हैँजूझ‘ कहानी आज के किशोर–किशोरियों को कई
जीवन–मूल्यों की प्रेरणा है सकती हैँ। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
संघर्षशीलता – किसी कार्य में सफलता माने के लिए संघर्षशील
बहुत आवश्यक है। आज के किशोर– किशोरियों शॉर्टकट रास्ते पर चलकर सफलता पना चाहते
हैं ताकि उन्हें कम–री–कम परिश्रम और संघर्ष करना पहुँ जबकि ‘जूझ‘ कहानी के नायक
को जगह–जगह संघर्ष करना पडा।
दूरदर्शिता – ” जूझ‘ कहानी का नायक आनंदा दूरदशी है। वह
अपनी दूरदर्शिता के यल पर अपने पित्ता को राव साहब के पास भेजने में सफल हो जाता
है और अपने पिता के क्रोध रने बचते हुए उन्हें अपनी पकाई के लिए राजी कर लेता है।
आधुनिक किशोर–किशोरियों को भी दूरदर्शी बनना चाहिए।
परिश्रमी – आधुनिक किशोर–किशोरियों को आनंदा के समान
परिश्रमी बनना चाहिए। आनंदा पकाई के साथ खेल में कठोर परिश्रम करता है और सफलता
अजित करता है।
लग-शीलता – परिश्रम के अलावा किसी काम में सफलता याने के
लिए लगन होना भी आवश्यक है। आनंदा डेढ़ साल बाद विदूयालय जाता है और अपनी लगन से कक्षा के होशियार बच्चों में गिना जाने लगता है। आधुनिक किशोर-किशोरियों को भी
लगनशील बनना चाहिए।
प्रश्न 11:जूझ कहानी का
नायक किन परिस्थितियाँ में अपनी पढाई जारी रख पाता हैं? अगर उसर्का जगह आप हांर्त तो उन विषम
परिस्थितियों में किस प्रकार अपने सपने कां जीवित रख पाते?
उत्तर –‘जूझ है कहानी का नायक आनंदा अर्थात लेखक की
छात्रावस्था में परिस्थितियों अत्यंत विपरीत थीं। उसके पिता के लिए खेती ही सब कुछ
थी। पदा–लिखाई के प्रति उसकी सोच अच्छी न थी। वे लेखक से खेती का काम करवाने के
अलावा पशु चराने का काम भी करवाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने आनंदा की पढाई छुडवा दी थी।
आनंदा उनसे पकाई की बात कहते हुए भी डरता था। उसे डर था कि वे पढाई का नाम सुनते
ही हद्धूडी–पसली एक कर देगे। दस्ता जी राव सरकार के समझाने पर उन्होंने आनंदा को
स्कूल भेजने की स्वीकृति तो है बी, पर यह भी शर्त रख
दी कि प्रतिदिन शाम को खेत पर काम करने जरूर आएगा। “हाँ यहि नहीं आया किसी दिन तो
देख, गाँव मेंजहाँ
मिलेगा यहीं कुचलता हूँ कि नहीं, तुझे। तेरे उपर
पढ़ने का भूत सवार हुआ है। मुझे मालूम है, बैरिस्टर नहीं होने वाला है तू?” इसके अलावा लेखक का दाखिल पाँचवीं कक्षा में
हुआ, जहाँ दो लड़कों को
छोड़कर बाकी सारे लड़के नए थे। उनमें शरारती लड़के उसका मजाक उडाते थे और उसका गमछा
छीनकर अध्यापक की मेज़ यर रख देते के मध्यातर की छुटूटी में बच्चों ने उसकी धोती
खेलकर उसे तंग करने का प्रयास किया, फिर भी लेखक अत्यंत परिश्रम से अपनी पढाई के पति समर्पित
रहा। यदि लेखक को जगह मैं होता तो इन परेशानियों और विपरीत परिस्थितियों के बीच
मैं भी लेखक की तरह अडिग रहता और अपनी पढ़ाई के प्रति कठिन मेहनत करते हुए अपने
सपनों को जीवित रखने का हरसंभव प्रयास करता और सफलता प्राप्त करता।
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