Friday 30 September 2022

शरदकालीन अवकाश हेतु गृहकार्य कक्षा-12

 

शरदकालीन अवकाश हेतु गृहकार्य

प्रश्न-बैंक

जनसंचार माध्यम और लेखन

पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन प्रक्रिया

 

 

प्रश्न 1:समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में विशेष लेखन किन विषयों पर किया जाता है?

उत्तर –समाचार-पत्र-पत्रिकाओं में विशेष लेखन खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विषयों पर किया जाता है।

 

प्रश्न 2:विशेष लेखन क्यों किया जाता है?

उत्तर –विशेष लेखन इसलिए किया जाता है, क्योंकि इससे समाचार-पत्रों में विविधता आती है और उनका कलेवर बढ़ता है।

पाठकों की व्यापक रुचियों को ध्यान में रखते हुए उनकी जिज्ञासा शांत करते हुए मनोरंजन करने के लिए विशेष लेखन किया जाता है।

 

प्रश्न 3:विशेष संवाददाता किन्हें कहते हैं?

उत्तर –जिन रिपोर्टरों द्वारा विशेषीकृत रिपोर्टिग की जाती है, उन्हें विशेष संवाददाता कहते हैं।

 

प्रश्न 4:क्रिकेट की कमेंट्री करने वाले दो प्रसिदध व्यक्तियों के नाम लिखिए।

उत्तर –नरोत्तम पुरी, जसदेव सिंह, हर्ष भोगले

 

प्रश्न 5:कारोबार एवं व्यापार क्षेत्र से जुड़ी पाँच शब्दावली लिखिए।

उत्तर –मुद्रा-स्फीति,बिकवाली,निवेशक,व्यापार घाटा

 

प्रश्न 6:विशेष लेखन के किन्हीं पाँच क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर –खेल

 अर्थ-व्यापार

 विज्ञान प्रौद्योगिकी

 कृषि

 पर्यावरण

प्रश्न 7:कारोबार और अर्थजगत से जुड़ी रोजमर्रा की खबरें किस शैली में लिखी जाती हैं?

 उत्तर –कारोबार और अर्थजगत से जुड़ी रोजमर्रा की खबरें उलटा पिरामिड शैली में लिखी जाती हैं।

 

प्रश्न 8:विशेषीकृत पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं?

उत्तर –वह पत्रकारिता, जो किसी घटना की तह में जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और पाठकों को उसका महत्त्व बताए, विशेषीकृत पत्रकारिता कहलाती है।

 

 प्रश्न 9:डेस्क से आप क्या समझते हैं? अथवा डेस्क किसे कहते हैं?

 उत्तर –समाचार-पत्रों, टीवी, रेडियो चैनलों में विशेष लेखन के लिए अलग डेस्क होता है, जिन पर समाचारों का संपादन करके छपने योग्य बनाया जाता है।

 

प्रश्न 10:पत्रकारिता में ‘बीट’ शब्द का क्या अर्थ है?

अथवा

मीडिया की भाषा में ‘बीट’ किसे कहते हैं?

उत्तर –समाचार कई प्रकार के होते हैं; जैसे-राजनीति, अपराध, खेल, आर्थिक, फ़िल्म तथा कृषि संबंधी समाचार आदि। संवाददाताओं के बीच काम का बँटवारा उनके ज्ञान एवं रुचि के आधार पर किया जाता है। मीडिया की भाषा में इसे ही बीट कहते हैं।

 

प्रश्न 11:बीट रिपोर्टर की रिपोर्ट कब विश्वसनीय मानी जाती है?

 उत्तर –बीट रिपोर्टर को अपने बीट (क्षेत्र) की प्रत्येक छोटी-बड़ी जानकारी एकत्र करके कई स्रोतों द्वारा उसकी पुष्टि करके विशेषज्ञता हासिल करना चाहिए। तब उसकी खबर विश्वसनीय मानी जाती है।

 

प्रश्न 12:विशेष लेखन क्या है?

उत्तर –अखबारों के लिए समाचारों के अलावा खेल, अर्थ-व्यापार, सिनेमा या मनोरंजन आदि विभिन्न क्षेत्रों और विषयों संबंधित घटनाएँ, समस्याएँ आदि से संबंधित लेखन विशेष लेखन कहलाता है। इस प्रकार के लेखन की भाषा और शैली समाचारों की भाषा-शैली से अलग होती है।

 

प्रश्न 13:विशेष लेखन की भाषा-शैली संबंधी विशेषता का वर्णन कीजिए।

उत्तर –विशेष लेखन किसी विशेष विषय पर या जटिल एवं तकनीकी क्षेत्र से जुड़े विषयों पर किया जाता है, जिसकी अपनी विशेष शब्दावली होती है। इस शब्दावली से संवाददाता को अवश्य परिचित होना चाहिए। उसे इस तरह लेखन करना चाहिए कि रिपोर्ट को समझने में परेशानी न हो।

 

प्रश्न 14:आज विशेष लेखन के कौन-कौन से क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर –आज खेल, कारोबार, सिनेमा, मनोरंजन, फैशन, स्वास्थ्य विज्ञान, पर्यावरण, शिक्षा, जीवनशैली, रहन-सहन जैसे क्षेत्र विशेष लेखन हेतु महत्वपूर्ण हैं।

 

 प्रश्न 15:पत्रकारिता के विभिन्न पहलू कौन-कौन-से हैं?

उत्तर –पत्रकारिता के विभिन्न पहलू हैं-

समाचारों का संकलन,उनका संपादन कर छपने योग्य बनाना,उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में छापकर पाठकों तक पहुँचाना आदि।

 

प्रश्न 16:पत्रकार किसे कहते हैं?

उत्तर –समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए लिखित रूप में सामग्री देने, सूचनाएँ और समाचार एकत्र करने वाले व्यक्ति को पत्रकार कहते हैं।

 

प्रश्न 17:संवाददाता के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर –संवाददाता का प्रमुख कार्य विभिन्न स्थानों से खबरें लाना है।

 

प्रश्न18:संपादक के कार्य लिखिए।

उत्तर –संपादक संवाददाताओं तथा रिपोर्टरों से प्राप्त समाचार-सामग्री की अशुद्धयाँ दूर करते हैं तथा उसे त्रुटिहीन बनाकर प्रस्तुति के योग्य बनाते हैं। वे रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बातों को पहले तथा कम महत्व की बातों को अंत में छापते हैं तथा समाचार-पत्र की नीति, आचार-संहिता और जन-कल्याण का विशेष ध्यान रखते हैं।

 

प्रश्न 19:किन गुणों के होने से कोई घटना समाचार बन जाती है?

उत्तर –नवीनता, लोगों की रुचि, प्रभाविकता, निकटता आदि तत्वों के होने से घटना समाचार बन जाती है।

 

प्रश्न 20:पत्रकारिता किस सिदधांत पर कार्य करती है?

उत्तर –पत्रकारिता मनुष्य की सहज जिज्ञासा शांत करने के सिद्धांत पर कार्य करती है।

 

प्रश्न 21:पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं?

उत्तर –पत्रकारिता के कई प्रमुख प्रकार हैं। उनमें से खोजपरक पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता प्रमुख हैं।

 

प्रश्न 22:समाचार किसे कहते हैं?

उत्तर –समाचार किसी भी ऐसी घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट होता है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।

 

प्रश्न 23:संपादन का अर्थ बताइए।

उत्तर –संपादन का अर्थ है-किसी सामग्री से उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी एवं तथ्यात्मक अशुद्धयों को दूर करते हुए पठनीय बनाना।

 

प्रश्न 24:पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए कौन-कौन-से सिदभांत अपनाए जाते हैं?

उत्तर –पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांत अपनाए जाते हैं-

·       तथ्यों की शुद्धता

·       वस्तुपरकता

·       निष्पक्षता

·       संतुलन

·       स्रोत

 

प्रश्न 25:खोजपरक पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर –सार्वजानिक महत्व के भ्रष्टाचार और अनियमितता को लोगों के सामने लाने के लिए खोजपरक पत्रकारिता की मदद ली जाती है। इसके अंतर्गत छिपाई गई सूचनाओं की गहराई से जाँच की जाती है। इसके प्रमाण एकत्र करके इसे प्रकाशित भी किया जाता है।

 

प्रश्न 26:वॉचडॉग पत्रकारिता क्या है?

उत्तर –जो पत्रकारिता सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है और कोई गड़बड़ी होते ही उसका परदाफ़ाश करती है, उसे वॉचडॉग पत्रकारिता कहते हैं।

 

प्रश्न 27:एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर –जो पत्रकारिता किसी विचारधारा या विशेष उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और जोर-शोर से अभियान चलाती है, उसे एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।

 

प्रश्न 28:वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर –जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करते हैं, उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहते हैं।

 

प्रश्न 29:पेज थ्री पत्रकारिता क्या है?

उत्तर –पेज श्री पत्रकारिता का आशय उस पत्रकारिता से है, जिसमें फ़ैशन, अमीरों की बड़ी-बड़ी पार्टियों, महफ़िलों तथा लोकप्रिय लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार सामान्यत: समाचार-पत्र के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते हैं।

 

प्रश्न 30:पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?

उत्तर –पत्रकार अखबार या अन्य समाचार माध्यमों के लिए लेखन के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे पत्रकारीय लेखन कहते हैं।

 

 

 

 

 

Monday 12 September 2022

कथा-पटकथा

 कथा-पटकथा

कथा :

किस भी फ़िल्म यूनिट या धारावाहिक बनाने वाली कंपनी को ‘पटकथा’ तैयार करने के लिए, सबसे पहले जो चीज़ चाहिए होती है, वो है ‘कथा’। कथा ही नहीं होगी तो पटकथा कैसे कहेगी? अब सवाल यह उठता है कि यह कथा या कहानी हमें कहाँ से मिलेगी? तो इसके कई स्रोत हो सकते हैं हमारे स्वयं के साथ या आसपास की जिंदगी में घटी कोई घटना, अखबार में छपा कोई समाचार, हमारी कल्पनाशक्ति से उपजी कोई कहानी, इतिहास के पन्नों से झाँकता कोई व्यक्तित्व या सच्चा किस्सा अथवा साहित्य की किसी अन्य विधा की कोई रचना। मशहूर उपन्यासों-कहानियों पर फ़िल्म या सीरियल बनाने की परंपरा काफ़ी पुरानी है।

अभी कुछ वर्ष पूर्व ही शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास देवदास को हिंदी में तीसरी बार फ़िल्माया गया। इसके अलावा भी हिंदी के कई जाने-माने लेखको-मुंशी प्रेमचंद, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, मन्नू भंडारी आदि की तमाम रचनाओं को समय-समय पर रुपहले परदे पर उतारा गया है। दूरदर्शन तो अकसर ही साहित्यिक-रचनाओं को आधार बनाकर धारावाहिक, टेलीफ़िल्मों आदि का निर्माण करवाता रहता है। अमेरिका-यूरोप में तो ज़्यादातर कामयाब उपन्यास और नाटक फ़िल्म का विषय बन जाते हैं।

पटकथा :

अब मसला उठता है पटकथा लिखने का। फ़िल्म या टी.वी. की पटकथा की संरचना नाटक की संरचना से बहत मिलती है। अंग्रेजी में तो इसे कहते ही ‘स्क्रीनप्ले’ हैं। नाटक की तरह ही यहाँ भी पात्र-चरित्र होते हैं, नायक-प्रतिनायक होते हैं, अलग-अलग घटनास्थल होते हैं, दृश्य होते हैं, कहानी का क्रमिक विकास होता है, वंद्व-टकराहट और फिर समाधान। ये सब कुछ पटकथा के भी आवश्यक अंग होते हैं। मंच के नाटक और फ़िल्म की पटकथा में कुछ मूलभूत अंतर भी होते हैं। पहली चीज़ है दृश्य की लंबाई, नाटक के दृश्य अकसर अधिक लंबे होते हैं और फ़िल्मों में छोटे-छोटे।

इसी प्रकार नाटक में आमतौर पर सीमित घटनास्थल होते हैं, जबकि फ़िल्म में इसकी कोई सीमा नहीं, हर दृश्य किसी नए स्थान पर घटित हो सकता है। इसकी वजह है दोनों माध्यमों में मूलभूत अंतरनाटक एक सजीव कला माध्यम है, जहाँ अभिनेता अपने ही जैसे जीवंत दर्शकों के सामने, अपने कला का प्रदर्शन करते हैं। सब कुछ वहीं, उसी वक्त घट रहा होता है। जबकि सिनेमा या टेलीविज़न में पूर्व रिकॉर्डेड छवियाँ एवं ध्वनियाँ होती हैं।

नाटक का पूरा कार्य-व्यापार एक ही मंच पर घटित होता है एक निश्चित अवधि के दौरान। जबकि फ़िल्म या टेलीविज़न की शूटिंग अलग-अलग सेटों या लोकेशनों पर दो दिन से लेकर दो साल तक की अवधि में की जा सकती है इसीलिए नाटक का कार्य-व्यापार, दृश्यों की संरचना और चरित्रों की संख्या आदि को सीमित रखना पड़ता है, लेकिन सिनेमा या टेलीविज़न में ऐसा कोई बंधन नहीं होता। सबसे बड़ी बात नाटक की कथा का विकास ‘लीनियर’ मतलब एक-रेखीय होता है, जो एक ही दिशा में आगे बढ़ता है। जबकि सिनेमा में फ़्लैशबैक या फ़्लैश फ़ॉरवर्ड तकनीकों का इस्तेमाल करके आप घटनाक्रम को किसी भी रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। फ़्लैशबैक वो तकनीक होती है, जिसमें आप अतीत में घटी किसी घटना को दिखाते हैं और फ्लैश फ़ॉरवर्ड में आप भविष्य में होने वाले किसी हादसे को पहले दिखा देते हैं। इन दोनों तकनीकों को हम एक-एक उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं।

मान लीजिए हम रांगेय राघव की कहानी गूंगे पर फ़िल्म बना रहे हैं, और हमारी फ़िल्म शुरू होती है सड़क के दृश्य से (जहाँ कुछ किशोर लड़के मिलकर एक दुबले-पतले लड़के को पीट रहे हैं। मार खा रहा लड़का भाग कर एक घर के दरवाजे पर पहुँचता है। घर के भीतर से भाग कर चमेली आती है, उसके साथ उसके छोटे-छोटे बच्चे शकुंतला और बसंता भी हैं।

चमेली घर की दहलीज़ पर सर रखे, खून से लथपथ गूंगे को देखती है, जो अपनी व्यथा को व्यक्त करने में असमर्थ है और चमेली को वो दिन याद आता है, जिस दिन अनाथालय में पहली बार उसकी मुलाकात गूंगे से हुई थी। अब हम पागलखाने का वो दृश्य दिखाते हैं, जहाँ कुछ दिन पहले चमेली अपनी सहेलियों के साथ गई थी और जहाँ पहली बार उसकी गँगे से मुलाकात हुई थी। यही, वर्तमान से अतीत में जाना, फ़्लैशबैक की तकनीक कहलाता है। फ़्लैश फ़ॉरवर्ड समझने के लिए मोहन राकेश के नाटक अंडे के छिलके का वो दृश्य लेते हैं जहाँ श्याम के बाज़ार जाने के बाद वीना बस ठीक-ठाक कर रही है और उसे वो मोज़ा मिलता है जिसमें अंडे के छिलके भरे हुए हैं।

वैसे मूल नाटक में यह दृश्य इस प्रकार नहीं है लेकिन अगर इसकी पटकथा लिखी जाए और हम इस दृश्य में फ़्लैश फ़ॉरवर्ड तकनीक का प्रयोग करें तो दृश्य कुछ इस तरह से बनाया जा सकता है कि अचानक वीना के मन में यह विचार कौंधता है कि ये मोज़े उसकी सास जमुना देवी के हाथों लग गए हैं (वो पूरे परिवार तथा पड़ोसियों के सामने मोज़ों में से अंडे के छिलके ज़मीन पर गिर कर उसे बुरा-भला कह रही हैं।

हम वापस वर्तमान में आते हैं और वीना अपना संवाद पूरा करती है-“कितनी बार कहा छिलके मोज़े में मत रखा करो, कहीं किसी के हाथ लग गए, तो लेने के देने पड़ जाएँगे।” और चाय का पानी हीटर पर रखने के लिए चली जाती है।) यहाँ एक तथ्य गौर करने लायक है, वो यह कि फ़्लैशबैक और फ़्लैश फ़ॉरवर्ड दोनों ही युक्तियों का इस्तेमाल करने के पश्चात वापस वर्तमान में आना ज़रूरी है। ताकि दर्शकों के मन में किसी किस्म का असमंजस न रहे। फ़िल्म या टेलीविज़न माध्यम में एक सुविधा यह भी है कि एक ही समय-खंड में अलग-अलग स्थानों पर क्या घटित हो रहा है, दिखाया जा सकता है।

पटकथा की मूल इकाई होती है दृश्य। एक स्थान पर, एक ही समय में लगातार चल रहे कार्य व्यापार के आधार पर एक दृश्य निर्मित होता है। इन तीनों में से किसी भी एक के बदलने से दृश्य भी बदल जाता है। हम आपके पाठ्यक्रम में से रजनी का ही उदाहरण लेते हैं दृश्य-एक लीला बेन महिला के फ्लैट में शुरू होता है, समय शायद दोपहर का, क्योंकि उनका बेटा अमित स्कूल से वापस आने वाला है। दृश्य-दो अगले दिन, अमित के स्कूल के हैडमास्टर के कमरे में और वक्त दिन का ही है। दृश्य-तीन उसी दिन, रजनी का फ़्लैट और वक्त है शाम का। ये सारे अलग-अलग लोकेशंस पर अलग-अलग दृश्य हैं।

दूसरी गौर करने लायक बात है, पटकथा लिखने का विशिष्ट ढंग। हमेशा दृश्य संख्या के साथ दृश्य की लोकेशन या घटनास्थल लिखा जाता है-वो कमरा है, पार्क है, रेलवे स्टेशन है या शेर की माँद। उसके बाद लिखा जाता है घटना का समय-दिन/रात/सुबह/शाम। तीसरी जानकारी जो दृश्य के शुरू में दी जानी ज़रूरी होती है वो ये कि घटना खुले में घट रही है या किसी बंद जगह में, अंदर या बाहर? आमतौर पर ये सूचनाएँ अंग्रेज़ी में लिखी जाती हैं और अंदर या बाहर के लिए अंग्रेजी शब्दों इंटीरियर या एक्सटीरियर के तीन शुरुआती अक्षरों का इस्तेमाल किया जाता है, मतलब INT. या EXT.

ये पटकथा लिखने का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत प्रारूप है। सिनेमा या टेलीविज़न के कार्यक्रमों के निर्माण में कई टेक्निकल चीज़ों का सहारा लेना पड़ता है। पटकथा के शुरू में दिए गए संकेत फ़िल्म या टी.वी. के कार्यक्रम के निर्देशक, कैमरामैन, साउंडरिकॉर्डिस्ट, आर्ट डायरेक्टर, प्रोडक्शन मैनेजर तथा उनके सहायकों की अपने-अपने काम में काफ़ी मदद करते हैं। इसी प्रकार दृश्य के अंत में कट टू, डिज़ॉल्व टू, फ़ेड आउट आदि जैसी जानकारी निर्देशक व एडीटर को उनके काम में सहायता पहुँचाती है।


पाठ से संवाद


प्रश्नः 1.

फ़्लैशबैक तकनीक और फ़्लैश फ़ॉरवर्ड तकनीक क्या है ?के दो-दो उदाहरण दीजिए। आपने कई फ़िल्में देखी होंगी। अपनी देखी किसी एक फ़िल्म को ध्यान में रखते हुए बताइए कि उनमें दृश्यों का बँटवारा किन आधारों पर किया गया।

उत्तरः

फ़्लैशबैक तकनीक वह होती है जिसमें अतीत में घटी हुई किसी घटना को दिखाया जाता है। फ़्लैश फ़ॉरवर्ड वह तकनीक है जिसमें भविष्य में होनी वाली किसी घटना को पहले दिखा देते हैं। पाठ्यपुस्तक ‘आरोह’ की कहानी ‘गलता लोहा’ में मोहन जब घर से हँसुवे की धार लगवाने के लिए शिल्पकार टोले की ओर जाने लगता है तो वह फ़्लैशबैक में चला जाता है और उसे याद आ जाती है स्कूल में प्रार्थना करना। इसी कहानी में मोहन का लखनऊ पहुंचकर मुहल्ले में सब के लिए घरेलू नौकर जैसा काम करना।


‘गलता लोहा’ कहानी में ही मोहन को जब मास्टर त्रिलोक सिंह ने पूरे स्कूल का मॉनीटर बनाकर उस पर बहुत आशाएँ लगा रखी थीं। उस समय मोहन फ़्लैशफॉरवर्ड में जाकर सोच सकता है कि वह एक बहुत बड़ा अफ़सर बन गया है और उसके पास अनेक लोग अपना काम करवाने आये हैं। मोहन जब लखनऊ पढ़ने जाता है तो वहाँ की भीड़-भाड़ देखकर फ़्लैशफॉरवर्ड में जाकर सोचता है कि वह भी अच्छे-अच्छे कपड़े पहनकर बस में बैठकर बहुत बड़े स्कूल में पढ़ने जा रहा है। ‘शोले’ फ़िल्म में वीरू का टंकी पर चढ़ना, धन्नो का टांगा चलाना, गब्बर सिंह का पहाड़ियों पर अपने साथियों के साथ वार्तालाप, डाकूओं से लड़ाई आदि दृश्य घटनाओं के आधार पर बदल जाते हैं।

प्रश्नः 2.

पटकथा लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है? और क्यों?

उत्तरः

पटकथा लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।


प्रत्येक दृश्य के साथ होने वाली घटना के समय का संकेत भी दिया जाना चाहिए।

पात्रों की गतिविधियों के संकेत भी प्रत्येक दृश्य के प्रारंभ में देने चाहिए। जैसे-रजनी चपरासी को घूर रही है, चपरासी मज़े से स्टूल पर बैठा है। साहब मेज़ पर पेपरवेट घुमा रहा है। फिर घड़ी देखता है।

किसी भी दृश्य का बँटवारा करते समय यह ध्यान रखा जाए कि किन आधारों पर हम दृश्य का बँटवारा कर रहे हैं।

प्रत्येक दृश्य के साथ होने की सूचना देनी चाहिए।

प्रत्येक दृश्य के साथ उस दृश्य के घटनास्थल का उललेख अवश्य करना चाहिए; जैसे-कमरा, बरामदा, पार्क, बस स्टैंड, हवाई अड्डा, सड़क आदि।

पात्रों के संवाद बोलने के ढंग के निर्देश भी दिए जाने चाहिए; जैसे-रजनी (अपने में ही भुनभुनाते हुए)।

प्रत्येक दृश्य के अंत में डिज़ॉल्व, फ़ेड आउट, कटटू जैसी जानकारी आवश्य देनी चाहिए। इससे निर्देशक, अडीटर आदि निर्माण कार्य में लगे हुए व्यक्तियों को बहुत सहायता मिलती है।

डायरी लेखन

प्रश्न 1. डायरी लेखन से आप क्या समझते हैं?

उत्तर 1. डायरी निजी सत्यों को शब्द देने का ज़रिया है।यह एक तरह का व्यक्तिगत दस्तावेज़ भी है, जिसमें अपने जीवन के खास क्षणों, किसी समय विशेष में मन के अंदर कौंध जानेवाले विचारों, यादगार मुलाकातों और अनुभवों को हम दर्ज कर लेते हैं।

प्रश्न 2. डायरी लेखन में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर 2.डायरी लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. डायरी या तो किसी नोटबुक में या पुराने साल की डायरी में लिखी जानी चाहिए।

2. लेखन करते हुए आप स्वयं तय करें कि आप क्या सोचते हैं और खुद को क्या कहना चाहते हैं।

3. डायरी निजी वस्तु है और यह मान कर ही उसे लिखा जाना चाहिए कि वह किसी और के द्वारा पढ़ी नहीं जाएगी।

4. यह कतई ज़रूरी नहीं कि डायरी परिष्कृत और मानक भाषा-शैली में लिखी जाए।

5. डायरी नितांत निजी स्तर की घटनाओं और भावनाओं का लेखा-जोखा होने के साथ-साथ, आपके मन का आईना होती  है।

कथा और पटकथा

प्रश्न 3.कथा और पटकथा में क्या अंतर है?

उत्तर 3.कथा:हमारे स्वयं के साथ या आसपास की ज़िंदगी में घटी कोई घटना, अखबार में छपा कोई समाचार, हमारी कल्पनाशक्ति से उपजी कोई कहानी, इतिहास के पन्नों से झाँकता कोई व्यक्तित्व या सच्चा किस्सा अथवा साहित्य की किसी अन्य विधा की कोई रचना कथा कहलाती है।

पटकथा :अंग्रेजी में इसे ‘स्क्रीनप्ले’ कहते  हैं। नाटक की तरह इसमें पात्र-चरित्र , नायक-प्रतिनायक , अलग-अलग घटनास्थल , दृश्य और कहानी का क्रमिक विकास होता है।

प्रश्नः 4.फ़्लैशबैक तकनीक और फ़्लैश फ़ॉरवर्ड तकनीक क्या है ?

उत्तरः फ़्लैशबैक तकनीक वह होती है जिसमें अतीत में घटी हुई किसी घटना को दिखाया जाता है। फ़्लैश फ़ॉरवर्ड वह तकनीक है जिसमें भविष्य में होनी वाली किसी घटना को पहले दिखा देते हैं।

प्रश्नः 5.पटकथा लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है? और क्यों?

उत्तरः पटकथा लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।

i.        समय का संकेत हो।

ii.       पात्रों की गतिविधियों के संकेत हों।

iii.      दृश्य के घटनास्थल का उल्लेख अवश्य हो।

iv.      पात्रों के संवाद बोलने के ढंग के निर्देश भी दिए जाने चाहिए।

 

 

डायरी लेखन

                                                                                 डायरी लेखन 

डायरी :


डायरी सिर्फ ऐसे ही निजी सत्यों को शब्द देने का ज़रिया हो, जिनकी जिंदगी और रूप में अभिव्यक्ति वर्जित है। वह एक तरह का व्यक्तिगत दस्तावेज़ भी है, जिसमें अपने जीवन के खास क्षणों, किसी समय विशेष में मन के अंदर कौंध जानेवाले विचारों, यादगार मुलाकातों और बहस-मुबाहिसों को हम दर्ज कर लेते हैं। अपनी कई तरह की स्मृतियों को हम कैमरे की मदद से भी रिकॉर्ड करते हैं, पर खुद अपना पाठ तैयार करना और जो कुछ घटित हुआ, सबकी कहानी कहना एक ऐसा तरीका है, जो हमें आनेवाले दिनों में उन लम्हों को दुबारा जीने का मौका देता है। आज की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में यह तरीका सचमुच नायाब है। जिंदगी की तेज़ रफ़्तार में इस बात की आशंका हमेशा बनी रहती है कि सतही और फ़ौरी किस्म की चिंताओं के अनवरत मामलों के बीच गहरे आशय वाली घटनाओं और वैचारिक उत्तेजनाओं को हम भूल जाएँ।


डायरी हमें भूलने से बचाती है। यात्राओं के दौरान डायरी लिखना तो बहुत ही उपयोगी साबित होता है। एक लंबे सफ़र का वृत्तांत अगर आप सफ़र से लौट कर लिखना चाहें, तो शायद पूरे अनुभव का दो-तिहाई हिस्सा ही बच-बचा कर शब्दों में उतर पाएगा, लेकिन अगर आपने सफ़र के दरम्यान प्रतिदिन अपनी डायरी लिखी है, तो अपने तजुर्बे को लगभग मुकम्मल तौर पर दुहरा पाना आपके लिए संभव होगा। डायरी लिखना अपने साथ एक अच्छी दोस्ती कायम करने का बेहतरीन ज़रिया है। डायरी लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. डायरी या तो किसी नोटबुक में या पुराने साल की डायरी में लिखी जानी चाहिए। पुराने साल की डायरी में पहले की पड़ी हुई तिथियों की जगह अपने हाथ से तिथि डालें। यह सुझाव इसलिए दिया जा रहा है कि आप कहीं मौजूदा साल की डायरी में तिथियों के अनुसार बने हुए सीमित स्थान से अपने को बंधा हुआ न महसूस करें। सभी दिन एक समान नहीं होते। ऐसे में डायरी का किसी निश्चित तिथि के साथ दिया गया सीमित स्थान हमारे लिए बंधन बन जाएगा। इसीलिए नोटबुक या पुराने साल की डायरी अधिक उपयोगी साबित हो सकती है। उसमें अपनी सुविधा के अनुसार तिथियाँ डाली जा सकती हैं और स्थान का उपयोग किया जा सकता है।

2. लेखन करते हुए आप स्वयं तय करें कि आप क्या सोचते हैं और खुद को क्या कहना चाहते हैं। यह तय करते हुए आपको यथासंभव सभी तरह के बाहरी दबावों से मुक्त होना चाहिए। अपनी दिनभर की घटनाओं, मुलाकातों, खयालातों इत्यादि में से कौन-कौन सी आपको दर्ज करने लायक लगती हैं, किन्हें आप किन-किन वजहों से भविष्य में भी याद करना चाहेंगे यह विचार कर लेने के बाद ही उन्हें शब्दबद्ध करने की ओर बढ़ें।

3. डायरी निजी वस्तु है और यह मान कर ही उसे लिखा जाना चाहिए कि वह किसी और के द्वारा पढ़ी नहीं जाएगी। अगर आप किसी और को पढ़वाने की बात सोच कर डायरी लिखते हैं, तो उसका आपकी लेखन-शैली, विषय-वस्तु के चयन और बातों के बेबाकपन पर पूरा असर पड़ेगा। इसलिए यह मानते हुए डायरी लिखें कि उसका पाठक आपके अलावा कोई और नहीं है।

4. यह कतई ज़रूरी नहीं कि डायरी परिष्कृत और मानक भाषा-शैली में लिखी जाए। परिष्कृत और मानकता का दबाव कथ्य के स्तर पर कई तरह के समझौतों के लिए आपको बाध्य कर सकता है। डायरी-लेखन में इस समझौता परस्ती के लिए कोई जगह नहीं है। डायरी का डायरीपन इसी में है कि आप जो कुछ दर्ज करना चाहते हैं और जिस तरीके से दर्ज करना चाहते हैं, करें। इस सिलसिले में भाषाई शुद्धता कितनी बरकरार रहती है और शैली-सौंदर्य कितना सध पाता है, इसकी चिंता न करें। आपके अंदर के स्वाभाविक वेग से शैली जो रूप ग्रहण करती है, वही डायरी की उचित शैली है।

5. आखिरी, पर बहुत अहम बात ये कि डायरी नितांत निजी स्तर की घटनाओं और भावनाओं का लेखा-जोखा होने के साथ-साथ, आपके मन के आईने में आपके दौर का अक्स भी है। वह अपने जिन अनुभवों को वहाँ दर्ज करते हैं, उनमें आपकी नज़र से देखा-परखा गया समकालीन इतिहास किसी-न-किसी मात्रा में मौजूद रहता है। डायरी लिखते हुए अगर यह बात हमारे बीच में रहे, तो अपने काम के महत्त्व को लेकर हम अधिक आश्वस्त हो सकते हैं।


पाठं से संवाद


प्रश्नः 1.

निम्नलिखित में से तीन अवसरों की डायरी लिखिए –

(क) आज आपने पहली बार नाटक में भाग लिया।

(ख) प्रिय मित्र से झगड़ा हो गया।

(ग) परीक्षा में आपको सर्वोत्तम अंक मिले हैं।

(घ) परीक्षा में आप अनुत्तीर्ण हो गए हैं।

(ङ) सड़क पर रोता हुआ 10 वर्षीय बच्चा मिला।

(च) कोई ऐसा दिन जिसकी आप डायरी लिखना चाहते हैं।

उत्तरः

(क) दिनांक 20 जनवरी, 2016 – आज का दिन मेरे लिए बहुत प्रसन्नता एवं उपलब्धि का है। मैं किसी नाटक में अभिनय करना चाहता था। आज मेरी यह इच्छा पूरी हुई। इस अवसर ‘अधिकार का रक्षक’ शीर्षक नाटक रंगमंच पर प्रस्तुत किया गया। यह नाटक वर्तमान समय के राजनीतिक नेताओं के दोहरे चरित्र का पर्दाफाश करता है। इसमें संपादक बना जो नेता के समक्ष कार्य की अधिकता का बोझ (चुनाव के दौरान) उठाने में असमर्थता व्यक्त करता । है। इसमें मुझे अपनी दीनता का अभिनय करना था। मैं स्वयं को दीन-हीन, साधनहीन संपादक ही अनुभव कर रहा था। नाटक की समाप्ति पर मुझे भरपूर प्रशंसा मिली।


(ख) 2 फरवरी, 2017-मोहन मेरा प्रिय मित्र है। आज मेरा उसी से झगड़ा हो गया। वह मेरे हर निर्णय का विरोध करने लगा है। मैं उसके परिवर्तित व्यवहार का कारण नहीं जान सका हूँ। इस झगड़े से बहुत दुखी हूँ।



(ग) 27 मार्च, 2017-आज मुझे पता चला कि मुझे सर्वोत्तम अंक मिले हैं तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मुझे सर्वोत्तम अंक पाने की कल्पना तक न थी। अतः मुझे हर्ष मिश्रित आश्चर्य की सुखद अनुभूति हुई है। मेरे मित्रों के बधाई-फ़ोन लगातार आ रहे हैं।


(घ) 25 मार्च, 2017-आज मेरा परीक्षा परिणाम आया है। अनुत्तीर्ण होने का परिणाम सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मेरे मित्रों ने मुझे ढाढस दिलाया। बाद में मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैं खेलों में ज़्यादा ध्यान देता रहा। अतः अनुत्तीर्ण हो गया अपनी गलती को सुधारने के प्रति सचेष्ट रहूँगा।


(ङ) 15 अगस्त, 2016 -आज जब मैं पार्क की ओर जा रहा था तो मुझे सड़क पर एक दस वर्षीय बालक रोता हुआ दिखाई दिया। मैं उसके पास गया और उससे रोने का कारण पूछा। वह अपने माता-पिता से बिछुड़ गया था। मैं उसे अपने घर ले गया। वहाँ उसे कुछ खिलाया-पिलाया तथा उससे उसका पता पूछकर उसे उसके घर छोड़ आया। अब वह खुश था। मुझे भी संतोष हुआ।


(च) 10 फरवरी 2017-आज का दिन मेरे जीवन में विशेष महत्त्वपूर्ण रहा। आज मुझे स्कूल की फुटबॉल टीम का कप्तान चुना गया। यह मेरी योग्यता एवं क्षमता की स्वीकृति थी। मैं अपनी उपलब्धि पर बहुत प्रसन्न हूँ।



प्रश्नः 2.

नीचे दिए गए कथनों के सामने ‘सही’ या ‘गलत’ का चिन्ह लगाते हुए कारण भी दें –

(क) डायरी नितांत वैयक्तिक रचना है।

(ख) डायरी स्वलेखन है इसलिए उसमें किसी घटना का एक ही पक्ष उजागर होता है।

(ग) डायरी निजी अनुभूतियों के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक परिप्रेक्ष्य का भी ब्योरा प्रस्तुत करता है।

(घ) डायरी अंतरंग साक्षात्कार है।

(ङ) डायरी हमारी सबसे अच्छी दोस्त है।

उत्तरः

(क) (सही)

(ख) (सही)

(ग) (सही)

(घ) (सही)

(ङ) (सही)

कारण –

(क) इसमें लेखक अपने व्यक्तिगत सुख-दु:ख, अनुभव का वर्णन करता है।

(ख) डायरी में लिखनेवाले व्यक्ति का ही पक्ष हमारे सामने आता है।

(ग) डायरी लिखने वाला व्यक्ति अपनी अनुभूतियों के साथ तत्कालीन घटनाओं पर भी टिप्पणी करता है।

(घ) डायरी में लेखक अपने साथ ही संवाद स्थापित करता है।

(ङ) डायरी हमारे सुख-दुःख की साथी होती है।

Friday 9 September 2022

शिक्षा का उद्देश्य

 

शिक्षा का उद्देश्य



श्लोकेन वा तदधेन पादेनैकाक्षरेन वा।

अबंध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययन कर्मभिः।।

चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को एक श्लोक, एक श्लोक ना हो सके, तो आधे श्लोक का ही या जितना हो सके उतना ही अध्ययन करना चाहिए। व्यक्ति को ज्ञान अर्जित करते हुए अपने दिन को सार्थक बनाना चाहिए।

शिक्षा ज्ञान, उचित आचरण, तकनीकी दक्षता, विद्या आदि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को कहते हैं। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों, व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है।

शिक्षा, समाज एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।

शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। शिक्षा के अनेक उद्देश्य हैं-

1.ज्ञान अर्जन का उद्देश्य :-

शिक्षा में ज्ञानार्जन के उद्देश्य के प्रतिपादक सुकरात, प्लेटो, अरस्तु, दांते, तथा बेकन आदि आदर्शवादी संप्रदायिक के विद्वानों ने किया है इन सभी का मानना है कि ज्ञान से ही सभी मनुष्यों का संपूर्ण विकास होता है वह ज्ञान से ही अपने जीवन में सुखी से एवं शांतिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करता है इस प्रकार कह सकते हैं कि ज्ञान अर्जन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है और या शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है अतः शिक्षा जगत में ज्ञान अर्जन का महत्वपूर्ण स्थान है।

2. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य:-

शिक्षा का उद्देश्य हमारी संस्कृति को बचाना तथा उसका विकास एवं उन्नति करना भी है। संस्कृति शब्द का अर्थ अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरह से बताया जाता है जैसे कहीं वहां के रहन-सहन आचार विचार आदि को संस्कृति बताई जाती है तो कहीं सिगरेट शराब एवं युवा आधी को संस्कृति के अंतर्गत शामिल किया जाता है तो किसी देश में संगीत वहां की कला संस्कृति परंपरा रीति रिवाज आदि को संस्कृति में शामिल किया जाता है कुछ देशों में संगीत कला वस्तु कला साहित्य में रुचि रखना एवं चरित्रवान बनाना आदि संस्कार आदि संस्कृति के विशेष लक्षण है संस्कृति से तात्पर्य है व्यक्ति के रहन-सहन, चाल ढाल, आचार विचार,विशेष आदतें, संस्कार आदि उनके अंदर हो तभी उन्हें सही मायने में संस्कारी या उनकी संस्कृति कह सकते हैं। यह सभी उन्हें शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त होता है। शिक्षा प्राप्त करके ही व्यक्ति का आदर होता है। अंत में कह सकते है कि संस्कृति का अभिप्राय सर्वोच्च विचारों की जानकारी प्राप्त करके उन्हें अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करना है। इस प्रकार संस्कृति का अर्थ संपूर्ण सामाजिक संपत्ति से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती रहती है।

3. चरित्र निर्माण का उद्देश्य या चरित्र का विकास: -

शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य बालक का चरित्र का विकास करना होता है। चरित्र का अर्थ है आंतरिक दृढ़ता और एकता। चरित्रवान व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कार्य करता है वह उसके आदेशों से तथा सिद्धांतों के अनुसार होता है। शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि मानव की प्रवृत्तियों का परिमार्जन हो। जिससे उसके आचरण नैतिक बन जाए। हरबर्ट का इस बारे में यह विचार है कि बालक जन्म से ही कभी सदाचारी नहीं होता। उसकी सारी प्रवृतियां मानवीय होती है। बालक का नैतिक विकास करने के लिए उसकी दानवीय प्रवृत्तियों को छोड़ना आवश्यक होता है। शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा उसके मन में पुण्य के प्रति प्रेम, पाप के प्रति घृणा, उत्पन्न करके बालक के अंदर प्रेम, सहानुभूति, दया, सद्भावना, न्याय आदि सामाजिक एवं नैतिक गुणों को विकसित करके उसको चरित्रवान बनाया जा सकता है।

4. जीविकोपार्जन का उद्देश्य व्यावसायिक :-

शिक्षा को केवल ज्ञान और संस्कृति से ही अलंकृत करना उचित नहीं है शिक्षा का उद्देश्य व्यवसायिक भी होना चाहिए। वर्तमान युग में व्यक्ति के समक्ष जीविका का समस्या प्रमुख समस्या है रोटी कपड़ा और मकान यह एक प्रमुख समस्या है अगर व्यक्ति स्वयं के लिए शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद भी यह सभी प्राप्त नहीं कर सकता है तो उनकी शिक्षा व्यर्थ है। अतः आधुनिक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यवसायिक अथवा जीविकोपार्जन होना चाहिए। इस उद्देश्य को सामने रखकर अधिकांश माता-पिता अपने बालकों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल भेजते हैं। जिससे वे शिक्षा प्राप्त करके किसी नौकरी में आ जाए और अपने परिवार का भरण पोषण कर सके।

5. सम विकास का उद्देश्य : -

शिक्षा के सम विकास के उद्देश्य का अर्थ यह है कि प्रत्येक बालक की शारीरिक, मानसिक, भावात्मक, कलात्मक, नैतिकता तथा सामाजिक आदि सभी शक्तियों का समान रूप से विकास करना है। यह उद्देश्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन करने से पता चलता है कि प्रत्येक बालक कुछ जन्मजात शक्तियों को लेकर जन्म लेता है। बालक के व्यक्तित्व को को संतुलित रूप से विकसित करने के लिए इन सभी शक्तियों का समान रूप से विकसित होना आवश्यक है। यदि शिक्षा के द्वारा बालक की इन सभी शक्तियों का विकास समान रूप से ना किया गया अर्थात् उसकी किसी प्रवृत्ति तथा शक्ति का कम तथा किसी का अधिक विकास कर दिया गया तो उसके व्यक्तित्व का संतुलन बिगड़ जाएगा इसलिए बालक की सभी शक्तियों का सम विकास करना परम आवश्यक है इसके लिए सही रणनीति एवं शिक्षा की आवश्यकता होती है बालक के सम विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है।

6. नागरिकता का उद्देश्य :

जनतंत्र में या प्रजातंत्र में बालक को सभ्य तथा ईमानदार नागरिक बनना आवश्यक है इस उद्देश्य का अनुसार शिक्षा की व्यवस्था इस प्रकार से की जानी चाहिए कि प्रत्येक बालक में इन सभी गुणों, रुचियों, योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुसार विकसित हो जाए। इसके लिए उसे ऐसे अवसरों कीअधिकारों का पालन करते हुए राज्य की सामाजिक,स्वतंत्र रुप से चिंतन कर सके।एवं उन्हें सफलतापूर्वक सुलझते हुए अपने भार स्वयं वाहन कर सके या उठा सके। बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे प्राप्त करके वाह अपनी स्वतंत्र व्यक्तित्व को विकसित करते हुए अपनी योग्यता तथा क्षमताओं के अनुसार स्वतंत्र नागरिक के रूप में राष्ट्रीय के तन मन और धन से सेवा कर सके। आधुनिक काल में राष्ट्रों में नागरिकता की शिक्षा पर है विशेष बल दिया जाता है।

7. पूर्ण जीवन का उद्देश्य :

शिक्षा का उद्देश्य जीवन को पूर्णता प्रदान करने पर बल दिया जाता है शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के जीवन में विभिन्न अंगों का विकास इस प्रकार से होना चाहिए कि वह अपने भावी जीवन की समस्त समस्याओं को आसानी से सुलझा सके। पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए शिक्षा हमें यह बताता है कि शरीर के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए मन के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए किस प्रकार अपनी योजना ना चाहिए किस प्रकार अपने परिवार का भरण पोषण करना चाहिए किस प्रकार नागरिक के रूप में व्यवहार करना चाहिए किस प्रकार सुख के उन प्रसाधनों का प्रयोग करना चाहिए जो प्रकृति ने हमें प्रदान किए हैं। किस प्रकार समस्त शक्तियों को अपने में तथा दूसरे के हित में प्रयोग करना चाहिए। ये सभी गुण हम शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं और अपने भावी जीवन में व्यक्त करते हैं।

8. शारीरिक विकास का उद्देश्य :

बालक की शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए जिसको प्राप्त करके उसका शरीर स्वस्थ, सुदृढ़, सुंदर एवं बलवान बन जाए। प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि अनेक देशों में शिक्षा के पूर्ण उद्देश्य को मान्यता प्रदान की गई है ग्रिस के प्राचीन सभ्य स्पार्टा में शारीरिक उद्देश्य को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना करते थे।

9. अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य :

आकाश का अर्थ है फुर्सत के समय अथवा ऐसे समय जिसमें व्यक्ति जीविकोपार्जन संबंधित कार्य ना करता हो। वर्तमान युग में विज्ञान में ऐसे आश्चर्य जनक मशीन का आविष्कार कर दिया गया है जिनके प्रयोग से मानव कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य कर लेता है। फलस्वरूप अब सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में अवकाश मिलने लगा है ऐसे दशा में अवकाश काल की सदुपयोग करने की समस्या एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। यही कारण है कि कुछ शिक्षा शास्त्रियों ने अवकाश का समय का सदुपयोग करना है शिक्षा का एकमात्र उदेश्य माना है।

10. किसी भी परिस्थिति या वातावरण के समायोजन का उद्देश्य या अनुकूलन उद्देश्य :

शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक में ऐसी शक्ति या क्षमता का उत्पन्न करना है जिसे वह अपने आप को किसी भी परिस्थिति अथवा वातावरण के अनुकूल बना सके। संसार के प्रत्येक प्राणी को जीवित रहने के लिए अपने परिस्थितियों अथवा प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण से सदैव संघर्ष करना पड़ता है। जो प्राणी इस संघर्ष में सफल हो जाता है वही जीवित रहता है इसके विपरीत जो प्राणी वातावरण से अनुकूलन नहीं कर पाता वह नष्ट हो जाता है शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे वह अपने भावी जीवन में विभिन्न प्रकार के वातावरण से अनुकूलन कर सके।

11. आत्मा अभिव्यक्ति का उद्देश्य :

 व्यक्तिवादी विचारकों ने आत्मा व्यक्ति तथा आत्मा प्रकाशन का समर्थन किया है। आत्म प्रकाशन का अर्थ है मूल प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर प्रदान करना इस उद्देश्य के अनुसार बालक की मूल प्रवृत्तियों को इस प्रकार से विकसित किया जाना चाहिए कि वह उनको स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें। जब समाज में ऐसी स्वतंत्रता रीति रिवाज तथा परिस्थितियां हो जिनके सहायता से बालक अपनी काम जिज्ञासा तथा आत्म गौरव आदि जन्मजात प्रवृत्तियों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें।

12. आत्मा अनुभूति का उद्देश्य :

आत्मा अनुभूति अथवा आत्मबोध का अर्थ है प्रकृति मानव अथवा परमपिता परमेश्वर को समझना। शिक्षा का उद्देश्य बाला का आत्मिक विकास करना है जिसे वह समाज के माध्यम से अपने सर्वोच्च गोन की अनुभूति कर सके।

निष्कर्ष :

निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य मानव जीवन किस संपूर्ण विकास का एक साधन है जो मानव को सही पथ पर ले चलता है। अगर मानव जीवन का कोई उद्देश्य नहीं होगा तो शिक्षा का भी कोई उद्देश्य नहीं होगा क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही मानवता का विकास होता है इसलिए शिक्षा का उद्देश्य का पूर्णता से पालन करना मानवता का अधिकार है।

मीता गुप्ता

अक्क महादेवी

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