Sunday 20 December 2020

विदाई-संभाषण-बालमुकुंद गुप्त

 विदाई-संभाषण



विदाई संभाषण

लेखक परिचय

● जीवन परिचय-बालमुकुंद गुप्त का जन्म 1865 ई. में हरियाणा के रोहतक जिले के गुड़ियानी गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम लाला पूरनमल था। इनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में ही उर्दू भाषा में हुई। इन्होंने हिंदी बाद में सीखी। इन्होंने मिडिल कक्षा तक पढ़ाई की, परंतु स्वाध्याय से काफी ज्ञान अर्जित किया। ये खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य को स्थापित करने वाले लेखकों में से एक थे।

इन्होंने कई अखबारों का संपादन किया। इन्होंने उर्दू के दो पत्रों ‘अखबार-ए-चुनार’ तथा ‘कोहेनूर’ का संपादन किया। बाद में हिंदी के समाचार-पत्रों ‘हिंदुस्तान’, हिंदी बंगवासी’, ‘भारतमित्र’ आदि का संपादन किया। इनका देहावसान बहुत कम आयु में 1907 ई. में हुआ।



 

● रचनाएँ-इनकी रचनाएँ पाँच संग्रहों में प्रकाशित हुई हैं—

शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत, खेल तमाशा, गुप्त निबंधावली, स्फुट कविताएँ।



 

● साहित्यिक परिचय-गुप्त जी भारतेंदु युग और द्ववेदी युग के बीच की कड़ी के रूप में थे। ये राष्ट्रीय नवजागरण के सक्रिय पत्रकार थे। उस दौर के अन्य पत्रकारों की तरह वे साहित्य-सृजन में भी सक्रिय रहे। पत्रकारिता उनके लिए स्वाधीनता-संग्राम का हथियार थी। यही कारण है कि उनके लेखन में निभीकता पूरी तरह मौजूद है।

इनकी रचनाओं में व्यंग्य-विनोद का भी पुट दिखाई पड़ता है। इन्होंने बांग्ला और संस्कृत की कुछ रचनाओं के अनुवाद भी किए। वे शब्दों के अद्भुत पारखी थे। अनस्थिरता शब्द की शुद्धता को लेकर उन्होंने महावीर प्रसाद द्रविवेदी से लंबी बहस की।


पाठ का साराश

विदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्जन के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वोत्तम उपयोग करना था। कर्जन ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वे सरकारी निरंकुशता के पक्षधर थे। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता पर उन्होंने प्रतिबंध लगा दिया। अंततः कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उन्हें देश-विदेश दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चले गए।


लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्जन जैसा वायसराय। यह निबंध उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना है।



 

लेखक कर्जन को संबोधित करते हुए कहता है कि आखिरकार आपके शासन का अंत हो ही गया, अन्यथा आप तो यहाँ के स्थाई वायसराय बनने की इच्छा रखते थे। इतनी जल्दी देश को छोड़ने की बात आपको व देशवासियों को पता नहीं थी। इससे ईश्वर-इच्छा का पता चलता है। आपके दूसरी बार आने पर भारतवासी प्रसन्न नहीं थे। वे आपके जाने की प्रतीक्षा करते थे, परंतु आपके जाने से लोग दु:खी हैं। बिछड़न का समय पवित्र, निर्मल व कोमल होता है। यह करुणा पैदा करने वाला होता है। भारत में तो पशु-पक्षी भी ऐसे समय उदास हो जाते हैं। शिवशंभु की दो गाएँ थीं। बलशाली गाय कमजोर को टक्कर मारती रहती थी। एक दिन बलशाली गाय को पुरोहित को दान दे दिया गया, परंतु उसके जाने के बाद कमजोर गाय प्रसन्न नहीं रही। उसने चारा भी नहीं खाया। यहाँ पशु ऐसे हैं तो मानव की दशा का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है।



 

इस देश में पहले भी अनेक शासक आए और चले गए। यह परंपरा है, परंतु आपका शासनकाल दु:खों से भरा था। कर्जन ने सारा राजकाज सुखांत समझकर किया था, उसका अंत दु:ख में हुआ। वास्तव में लीलामय की लीला का किसी को पता नहीं चलता। दूसरी बार आने पर आपने ऐसे कार्य करने की सोची थी जिससे आगे के शासकों को परेशानी न हो, परंतु सब कुछ उलट गया। आप स्वयं बेचैन रहे और देश में अशांति फैला दी। आने वाले शासकों को परेशान रहना पड़ेगा। आपने स्वयं भी कष्ट सहे और जनता को भी कष्ट दिए।


लेखक कहता है कि आपका स्थान पहले बहुत ऊँचा था। आज आपकी दशा बहुत खराब है। दिल्ली दरबार में ईश्वर और एडवर्ड के बाद आपका सर्वोच्च स्थान था। आपकी कुर्सी सोने की थी। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे व ऊँचा था, परंतु जंगी लाट के मुकाबले में आपको नीचा देखना पड़ा। आप धीर व गंभीर थे, परंतु कौंसिल में गैरकानूनी कानून पास करके और कनवोकेशन में अनुचित भाषण देकर अपनी धीरता का दिवाला निकाल दिया। आपके इस्तीफे की धमकी को स्वीकार कर लिया गया। आपके इशारों पर राजा, महाराजा, अफसर नाचते थे, परंतु इस इशारे में देश की शिक्षा और स्वाधीनता समाप्त हो गई। आपने देश में बंगाल विभाजन किया, परंतु आप अपनी मजी से एक फौजी को इच्छित पद पर नहीं बैठा सके। अत: आपको इस्तीफा देना पड़ा।



 

लेखक कहता है कि आपका मनमाना शासन लोगों को याद रहेगा। आप ऊँचे चढ़कर गिरे हैं, परंतु गिरकर पड़े रहना अधिक दुखी करता है। ऐसे समय में व्यक्ति स्वयं से घृणा करने लगता है। आपने कभी प्रजा के हित की नहीं सोची। आपने आँख बंदकर हुक्म चलाए और किसी की नहीं सुनी। यह शासन का तरीका नहीं है। आपने हर काम अपनी जिद से पूरे किए। कैसर और जार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुनते थे। आपने कभी प्रजा को अपने समीप ही नहीं आने दिया। नादिरशाह ने भी आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर कत्लेआम रोक दिया था, परंतु आपने आठ करोड़ जनता की प्रार्थना पर बंग-भंग रद्द करने का फैसला नहीं लिया। अब आपका जाना निश्चित है, परंतु आप बंग-भंग करके अपनी जिद पूरा करना चाहते हैं। ऐसे में प्रजा कहाँ जाकर अपना दु:ख जताए।


यहाँ की जनता ने आपकी जिद का फल देख लिया। जिद ने जनता को दु:खी किया, साथ ही आपको भी जिसके कारण आपको भी पद छोड़ना पड़ा। भारत की जनता दु:ख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। उन्हें भगवान पर विश्वास है। वे दु:ख सहकर भी पराधीनता का कष्ट झेल रहे हैं। आप ऐसी जनता की श्रद्धा-भक्ति नहीं जीत सके।



 

कर्जन अनपढ़ प्रजा का नाम एकाध बार लेते थे। यह जनता नर सुलतान नाम के राजकुमार के गीत गाती है। यह राजकुमार संकट में नरवरगढ़ नामक स्थान पर कई साल रहा। उसने चौकीदारी से लेकर ऊँचे पद तक काम किया। जाते समय उसने नगर का अभिवादन किया कि वह यहाँ की जनता, भूमि का अहसान नहीं चुका सकता। अगर उससे सेवा में कोई भूल न हुई हो तो उसे प्रसन्न होकर जाने की इजाजत दें। जनता आज भी उसे याद करती है। आप इस देश के पढ़े-लिखों को देख नहीं सकते।


लेखक कर्जन को कहता है कि राजकुमार की तरह आपका विदाई-संभाषण भी ऐसा हो सकता है जिसमें आप-अपने स्वार्थी स्वभाव व धूर्तता का उल्लेख करें और भारत की भोली जनता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कह सकेंगे कि आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त कर। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे। आपकी इस बात पर देश आपके पिछले कार्यों को भूल सकता है, परंतु आप में इतनी उदारता कहाँ?


शब्दार्थ


पृष्ठ संख्या 46

लॉर्ड-स्वामी। चिरस्थाई-हमेशा रहने वाला। वाइसराय-शासक। करुणोत्पादक-करुणा पैदा करने वाला। पधारें-व्यंग्य अर्थ में ‘सिधारें’ है। हर्ष-खुशी विषाद-दु:ख। निर्मल-पवित्र। आविर्भाव-आना। दीन-गरीब। शिवशंभु-बालमुकुंद का कल्पित पात्र जो सदैव भाँग के नशे में रहता है, वह बहकी हुई, परंतु चुभती हुई सच्ची बातें कहता है।


पृष्ठ संख्या 47

वरंच-बल्कि। तथापि-फिर भी। घोर-अत्यंत दुखांत-दु:ख भरे अंत वाला। दर्शक-देखने वाला। सूत्रधार-संचालन करने वाला। सुखांत-जिसका अंत अच्छा हो। लीला-क्रीड़ा करने वाला। जाहिर-प्रकट। सुख की नींद सोना-आराम से रहना। नींद और भूख हराम करना-परेशानी में डालना। बिस्तरा गरम राख पर रखना-मुसीबत को बुलाना। चित्त-दिल।



 

पृष्ठ संख्या 48

विचारिए-सोचिए। शान-गौरव। चिराग-दीपक। खलीफ़ा-शासक। प्रभु महाराज-राजा। रईस-अमीर। सलाम-प्रणाम। हौदा-हाथी की पीठ पर रखा हुआ चौकोर आसन। दर्जा-श्रेणी। जंगी लाट-सेना का अफसर। पटखनी खाना-हार जाना। सिर के बल नीचे आना-बुरी तरह हारना। स्वदेश-अपना देश। धीर-गंभीर-शांत और समझदारा बेकानूनी-कानून के विरुद्ध। कनवोकेशन-दीक्षांत समारोह। वक्तृता-भाषण। दिवाला निकालना-कंगाल हो जाना। विलायत-विदेश। इस्तीफा-त्याग-पत्र। तिलांजली देना-छोड़ना। हाकिम-शासक। ताल पर नाचना-इशारे पर चलना। डोरी हिलाना-संकेत करना। हाजिर-उपस्थित। प्रलय होना-भयंकर विनाश। पायमाल होना-नष्ट होना। आरह रखना-विभाजित करना। इच्छित-चाहना। नियत-तय।


पृष्ठ संख्या 49

अदना-मामूली। नोटिस-सूचना। अवधि-समय। कान देना-ध्यान देना। कैसर-मनमाना शासन करने वाला रोम का तानाशाह। जार-रूस का स्वच्छद शासक। घेरना-घोटना-अत्यधिक आग्रह करना। फटकने देना-पास आने देना। नादिरशाह-ईरान का बादशाह। कत्लेआम-आम जनता को मारने की प्रक्रिया।


पृष्ठ संख्या 50

विच्छेद-अलग। पराधीनता-गुलामी। कृतज्ञता-उपकार को मानना। महिमा-महानता। दीन-कमजोर, गरीब। ताब न होना-चाह न होना। विपद-संकट।


पृष्ठ संख्या 51

अभिवादन-प्रणाम। जुदा-अलग। अन्नदाता-पालनकर्ता। चूक करना-कमी रखना। संभाषण-भाषण देना। बदौलत-कारण।


अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। आपको बिछड़ते देखकर आज हृदय में बड़ा दुख है। माइ लॉर्ड। आपके दूसरी बार इस देश में आने से भारतवासी किसी प्रकार प्रसन्न न थे। वे यही चाहते थे कि आप फिर न आवें। पर आप आए और उससे यहाँ के लोग बहुत ही दुखित हुए। वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें। पर अहो! आज आपके जाने पर हर्ष की जगह विषाद होता है। इसी से जाना कि बिछड़न-समय बड़ा करुणोत्पादक होता है, बड़ा पवित्र, बड़ा निर्मल और बड़ा कोमल होता है। वैर-भाव छूटकर शांत रस का आविर्भाव उस समय होता है। (पृष्ठ-46)


प्रश्न


लेखक किसके बिछड़ने की बात कर रहा है? वह कहाँ जा रहा है?

बिछड़न का समय कैसा होता हैं?

कर्ज़न के जाने के समय हर्ष की जगह विषाद क्यों हो रहा है?

उत्तर-


लेखक लॉर्ड कर्ज़न के भारत से बिछुड़ने की बात कर रहा है। वह इंग्लैंड वापस जा रहा है।

बिछड़न का समय करुणा उत्पन्न करने वाला होता है। इस समय मन बड़ा पवित्र, निर्मल व कोमल हो जाता है। इस समय वैर-भाव समाप्त होने लगता है और शांत रस अपने-आप आ जाता है।

कर्ज़न के जाने के समय हर्ष की जगह विषाद हो रहा है, क्योंकि कर्ज़न सर्वाधिक शक्तिशाली वायसराय होते हुए भी उसने देश-हित में कोई काम न्हीं किया। अहंकार, गलत नीतियों व कार्यों के कारण उसके त्याग-पत्र की पेशकश को स्वीकार कर लिया गया। अब वह इंग्लैंड वापस जा रहा है। ऐसे में भारतीयों को हर्ष होना चाहिए किंतु भारतीय संस्कृति में विदाई के वक्त लोग दु:खी हो जाते हैं। इसलिए कर्जन के जाते समय भारतीयों को विषाद हो रहा है।

2. आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अंत में उनको जाना पड़ा। इससे आपका जाना भी परंपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासन-काल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ कैसे हुआ? आह! घमंडी खिलाड़ी समझता है कि दूसरों को अपनी लीला दिखाता हूँ। किंतु पर्दे के पीछे एक और ही लीलामय की लीला हो रही है, यह उसे खबर नहीं। (पृष्ठ-47)


प्रश्न


कर्ज़न के शासनकाल का नाटक दुखांत क्यों हैं?

सबसे अधिक आश्चर्य की बात क्या है?

सूत्रधार कौन हैं? उसके द्वारा खेल खेलने से क्या अभिप्राय हैं?

उत्तर-


कर्ज़न को भारत पर अंग्रेजी प्रभुत्व सुदृढ़ करने के लिए भेजा गया था, परंतु उसकी नीतियों के कारण देश में समस्याएँ बढ़ती गई। समस्याओं का समाधान करने के बजाय दमन का रास्ता अपनाया गया। इससे इंग्लैंड के शासक उससे नाराज हो गए और कर्ज़न को बीच में ही पद से हटा दिया गया। अत: कर्ज़न के शासनकाल का नाटक दुखांत में बदल गया।

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वयं सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जाएगा। जिसके आदि में सुख था, मध्य में सीमा से बाहर सुख था, उसका अंत ऐसे घोर दुख के साथ हुआ।

सूत्रधार इंग्लैंड का शासक है। वह भारत पर वायसराय के जरिए शासन करता था। वायसराय को अंग्रेजी प्रभुत्व स्थापित करने हेतु कार्य करने की छूट दी जाती थी। अगर वह सही ढंग से काम नहीं करता तो उसे हटाने का अधिकार राजा को था। उसने कर्ज़न को दोबारा वायसराय बनाया ताकि वह भारत में अंग्रेजों के अनुकूल नीतियाँ बनाएँगे, परंतु कर्ज़न के निरंकुश शासन से अंग्रेज-विरोधी माहौल बन गया। अत: कर्ज़न को बीच में ही हटा दिया गया। इसी को सूत्रधार को खेल खेलना कहा गया।

3. विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई। कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे! अलिफ़ लैला के अलहदीन ने चिराग रगड़कर और अबुलहसन ने बगदाद के खलीफा की गद्दी पर आँख खोलकर वह शान न देखी, जो दिल्ली-दरबार में आपने देखी। आपकी और आपकी लेडी की कुर्सी सोने की थी और आपके प्रभु महाराज के छोटे भाई और उनकी पत्नी की चाँदी की। आप दाहिने थे, वह बाएँ, आप प्रथम थे, वह दूसरे। इस देश के सब रईसों ने आपको सलाम पहले किया और बादशाह के भाई को पीछे। जुलूस में आपका हाथी सबसे आगे और सबसे ऊँचा था, हौदा, चवर, छत्र आदि सबसे बढ़-चढ़कर थे। सारांश यह है कि ईश्वर और महाराज एडवर्ड के बाद इस देश में आप ही का एक दर्जा था। किंतु अब देखते हैं कि जंगी लाट के मुकाबले में आपने पटखनी खाई, सिर के बल नीच आ रहे! आपके स्वदेश में वही ऊँचे माने गए, आपको साफ़ नीचा देखना पड़ा! पद-त्याग की धमकी से भी ऊँचे न हो सके। (पृष्ठ-48)


प्रश्न


‘कितने ऊँचे होकर आप कितने नीचे गिरे’ किसे कहा गया और क्यों?

कज़न की भारत में कैसी शान-शौकत थी?

पद-त्याग की धमकी से ऊंचे न होने से का अभिप्राय है?

उत्तर-


यह पंक्ति लॉर्ड कर्ज़न के लिए कही गई है। भारत में वायसराय का पद सर्वोच्च होता था। एक तरह से सम्राट की शक्तियों से युक्त था। उसे कोई चुनौती नहीं दे सकता था, परंतु गलत नीतियों के चलते किसी को उस पद से हटना पड़े तो यह अपमानजनक होता है। कर्ज़न के साथ भी ऐसा हुआ था।

कर्ज़न बहुत शक्तिशाली वायसराय था। उसे कल्पना से अधिक मान-सम्मान व शान-शौकत मिली। उसने दिल्ली के दरबार में इतना वैभव देखा जितना अलादीन ने चिराग रगड़कर व अबुलहसन ने बगदाद का खलीफा बनकर भी नहीं देखा था। उसकी व उसकी पत्नी की कुर्सी सोने की बनी थी। इन्हें इंग्लैंड के राजा के भाई से भी अधि क सम्मान मिलता था। जुलूस में इसका हाथी सबसे आगे व सबसे ऊँचा चलता था। ईश्वर व महाराज एडवर्ड के बाद कर्जन को ही माना जाता था।

. कर्जन ने वायसराय की कौंसिल में मनपसंद फौजी अफसर रखना चाहा। इसके लिए गैरकानूनी बिल भी पास किया। इस कार्य की हर जगह निदा हुई। इस पर उसने पद-त्याग की धमकी दी। उसके इस्तीफे को बादशाह ने मंजूर किया। कर्ज़न का पासा उलट गया। पद लेने के बजाय पद छोड़ना पड़ा।

4. आप बहुत धीर-गंभीर प्रसिद्ध थे। उस सारी धीरता-गंभीरता का आपने इस बार कौंसिल में बेकानूनी कानून पास करते और कनवोकेशन वक्तृता देते समय दिवाला निकाल दिया। यह दिवाला तो इस देश में हुआ। उधर विलायत में आपके बार-बार इस्तीफा देने की धमकी ने प्रकाश कर दिया कि जड़ हिल गई है। अंत में वहाँ भी आपको दिवालिया होना पड़ा और धीरता-गंभीरता के साथ दृढ़ता को भी तिलांजलि देनी पड़ी। इस देश के हाकिम आपकी ताल पर नाचते थे, राजा-महाराजा डोरी हिलाने से सामने हाथ बाँधे हाज़िर होते थे। आपके एक इशारे में प्रलय होती थी। कितने ही राजों को मट्टी के खिलौने की भाँति आपने तोड़-फोड़ डाला। कितने ही मट्टी-काठ के खिलौने आपकी कृपा के जादू से बड़े-बड़े पदाधिकारी बन गए। आपके इस इशारे में इस देश की शिक्षा पायमाल हो गई, स्वाधीनता उड़ गई। बंग देश के सिर पर आरह रखा गया। आह, इतने बड़े माइ लॉर्ड का यह दर्जा हुआ कि फौजी अफसर उनके इच्छित पद पर नियत न हो सका और उनको उसी गुस्से के मारे इस्तीफा दाखिल करना पड़ा, वह भी मंजूर हो गया। उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा, उलटा उन्हीं को निकल जाने का हुक्म मिला! (पृष्ठ-48)


प्रश्न


कर्ज़न किसलिए प्रसिद्ध थे? उनका भारत व इंग्लैंड में दिवाला कैस निकला?

कज़न का भारत में कैसा प्रभाव था?

कज़न को इस्तीफा क्यों देना पड़ा?

उत्तर-


कर्ज़न धीरता व गंभीरता के लिए प्रसिद्ध थे। कर्ज़न ने कौंसिल में बंगाल-विभाजन जैसा गैरकानूनी कानून पास करवाया। कनवोकेशन में भारत-विरोधी बातें कहीं। इससे इनकी घटिया मानसिकता का पता चल गया। भारत में इनका पुरजोर विरोध किया गया। उधर इंग्लैंड में इस्तीफे की धमकी से इनकी कमजोर स्थिति का पता चल गया। ब्रिटिश सरकार ने इनकी कमजोर हालत के कारण इनका इस्तीफा मंजूर कर लिया।

कर्ज़न का भारत में जबरदस्त प्रभाव था। यहाँ के अफसर इसके इशारों पर नाचते थे तथा राजा-महाराजा उसकी सेवा में हाज़िर रहते थे। उसने अनेक राजाओं का शासन छीन लिया तथा अनेक निकम्मों को बड़े-बड़े पदों पर बैठाया।

कर्ज़न एक फौजी अफसर को अपनी इच्छा के पद पर रखवाना चाहते थे, परंतु उनकी बात नहीं मानी गई। इस पर क्रोधित होकर इसने अपना इस्तीफा भेज दिया जिसे स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार ये अपमानित हुए।

5. जिस प्रकार आपका बहुत ऊँचे चढ़कर गिरना यहाँ के निवासियों को दुखित कर रहा है, गिरकर पड़ा रहना उससे भी अधिक दुखित करता है। आपका पद छूट गया तथापि आपका पीछा नहीं छूटा है। एक अदना क्लर्क जिसे नौकरी छोड़ने के लिए एक महीने का नोटिस मिल गया हो नोटिस की अवधि को बड़ी घृणा से काटता है। आपको इस समय अपने पद पर रहना कहाँ तक पसंद है-यह आप ही जानते होंगे। अपनी दशा पर आपको कैसी घृणा आती है, इस बात के जान लेने का इन देशवासियों की अवसर नहीं मिला, पर पतन के पीछे इतनी उलझन में पड़ते उन्होंने किसी को नहीं देखा। (पृष्ठ-49)


प्रश्न


‘गिरकर पड़ रहना’ से क्या आशय हैं?

लखक ने भारतवासियों के किससे छुटकारा पाने की बात कही हैं?

कज़न अपने ही फैलाए जाल में फँसकर रह गए। कैसे?

उत्तर-


लेखक कहता है कि कर्ज़न ने पद से त्याग-पत्र दे दिया, जिसे मंजूर कर लिया गया तथा अगले वायसराय के आने तक पद पर बने रहने को कहा गया। इस बात पर लेखक व्यंग्य करता है कि जिस पद से कर्ज़न ने प्रतिष्ठा के कारण त्याग-पत्र दिया था, उसी पर कुछ दिन काम करने से गिरकर पड़े रहने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह समय अत्यंत अपमानजनक होता है।

लेखक ने भारतवासियों के कर्ज़न से छुटकारा पाने की बात कही है। भारतीय उसके इंग्लैंड वापसी के दिन गिन रहे थे।

कर्ज़न ने जो कुछ सोचा, उसके उलट हो गया। इस्तीफे की धमकी से उसने अपने पक्ष को सही ठहराना चाहा, परंतु उसका इस्तीक ही मंजूर कर लिया गया।  वह इस घटनाक्रम को संभाल नहीं पाया तथा अपने ही फैलाए जाल में फैलाई जाल में फँस गया।

6. क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने का नाम ही शासन है? क्या प्रजा की बात पर कभी कान न देना और उसको दबाकर उसकी मर्जी के विरुद्ध जिद्द से सब काम किए चले जाना ही शासन कहलाता है? एक काम तो ऐसा बतलाइए, जिसमें आपने जिद्द छोड़कर प्रजा की बात पर ध्यान दिया हो। कैसर और ज़ार भी घेरने-घोटने से प्रजा की बात सुन लेते हैं पर आप एक मौका तो बताइए, जिसमें किसी अनुरोध या प्रार्थना सुनने के लिए प्रजा के लोगों को आपने अपने निकट फटकने दिया हो और उनकी बात सुनी हो। नादिरशाह ने जब दिल्ली में कत्लेआम किया तो आसिफजाह के तलवार गले में डालकर प्रार्थना करने पर उसने कत्लेआम उसी क्षण रोक दिया। पर आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आपने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया। इस समय आपकी शासन-अवधि पूरी हो गई है तथापि बंग-विच्छेद किए बिना घर जाना आपको पसंद नहीं है! नादिर से भी बढ़कर आपकी जिद्द है। क्या समझते हैं कि आपकी जिद्द से प्रजा के जी में दुख नहीं होता? आप विचारिए तो एक आदमी को आपके कहने पर पद न देने से आप नौकरी छोड़े जाते हैं, इस देश की प्रजा को भी यदि कहीं जाने की जगह होती, तो क्या वह नाराज होकर इस देश को छोड़ न जाती? (पृष्ठ-49-50)


प्रश्न


कज़न ने किस प्रकार शासन किया था? क्या उसका शासन उचित था?

कैसर और ज़ार कौन थे? इन्हें किस काम के लिए जाना जाता है?

कज़न और नादिरशाह के बीच क्या तुलना की गई है?

उत्तर-


कर्ज़न ने सदा निरंकुश शासन किया। उसने मनमाने आदेश दिए तथा प्रजा की हर बात को अनसुना कर दिया। यह शासन पूर्णतया अनुचित था। लोकहित से बड़ी शासक की जिद नहीं होती।

‘कैसर’ और ‘ज़ार’ शब्द रोम के तानाशाह जूलियस सीज़र से बने हैं। कैसर शब्द का प्रयोग ‘मनमानी करने वाले शासकों’ तथा ‘ज़ार’ शब्द का प्रयोग रूस के तानाशाहों के लिए किया जाता था।

नादिरशाह ने जिद के कारण दिल्ली में भयंकर कत्लेआम करवाया। इसी तरह कर्ज़न ने बंगाल-विभाजन कर दिया तथा आम जनता के जीने के अधिकार छीने। कर्ज़न नादिरशाह से भी अधिक जिद्दी था। नादिरशाह ने आसिफजाह की प्रार्थना पर तत्काल कत्लेआम रुकवाया, परंतु कर्ज़न पर आठ करोड़ लोगों की गिड़गड़ाहट का कोई असर नहीं पडा।

7. यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिद्द ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वयं उसका शिकार हुए। यहाँ की प्रजा वह प्रजा है, जो अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। वह जानती है कि संसार में सब चीज़ों का अंत है। दुख का समय भी एक दिन निकल जाएगा, इसी से सब दुखों को झेलकर, पराधीनता सहकर भी वह जीती है। माइ लॉर्ड! इस कृतज्ञता की भूमि की महिमा आपने कुछ न समझी और न यहाँ की दीन प्रजा की श्रद्धा-भक्ति अपने साथ ले जा सके, इसका बड़ा दुख है। (पृष्ठ-50)


प्रश्न


लॉर्ड कर्ज़न की जिद्द से भारतीय जनता ने क्या पीड़ा सही ?

भारतीय प्रजा की क्या विशेषता है?

लखक को किस बात का दुख हैं?

उत्तर-


लॉर्ड कर्ज़न को बंगाल विभाजन की जिद्द थी। उसने 1905 में बंगाल विभाजन किया। जनता की प्रार्थनाओं व विरोध पर उसने कोई ध्यान नहीं दिया। इससे जनता बहुत परेशान हो गई थी। कर्ज़न को इंग्लैंड वापस जाना था, परंतु जाते-जाते वह बंगाल का विभाजन भी कर गया।

भारतीय प्रजा की विशेषता यह है कि यह अपने दुख और कष्टों की अपेक्षा परिणाम का अधिक ध्यान रखती है। उसे पता है कि संसार में हर चीज का अंत है। दुख का समय भी धीरे-धीरे निकल जाएगा। इसी से वह सब दुखों को झेलकर पराधीनता सहकर भी जीती है।

लेखक को इस बात का दुख है कि कर्ज़न ने भारत-भूमि की गरिमा को नहीं समझा। उसने भारत के कृतज्ञता भाव को नहीं समझा। यदि वह भारतीयों की भलाई के लिए कुछ करता तो अपने साथ गरीब प्रजा की श्रद्धा-भक्ति को ले जाता।

8.‘अभागे भारत! मैंने तुमसे सब प्रकार का लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी, जो इस जीवन में असंभव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़ने में कुछ कमी न की। संसार के सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथ में शक्ति थी, तेरी भलाई की इच्छा मेरे जी में न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिएँ कुछ कर सकूं। पर आशीर्वाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे। मेरे बाद आने वाले तेरे गौरव को समझे।’ आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ? (पृष्ठ-51)


प्रश्न


लेखक ने लार्ड कज़न पर क्या व्यय किया हैं?

भारत ने लार्ड कज़न से कैसा व्यवहार किया?

‘इतनी उदारता माई लॉर्ड में कहाँ?’—का व्यग्य बताइए।

उत्तर-


लेखक लॉर्ड कर्ज़न पर व्यंग्य करता है कि उसने भारत से हर तरह के लाभ उठाए। उसने वह शान देखी। जिसे वह कभी नहीं पा सकता। उसने भारतीयों का बहुत कुछ बिगाड़ा तथा भारत की भलाई नहीं की।

भारत ने लॉर्ड कर्ज़न का कुछ नहीं बिगाड़ा। उसे पूरा मान-सम्मान दिया। उसकी शान-शौकत बढ़ाई तथा उसके अत्याचार सहकर भी कुछ नहीं किया।

लेखक व्यंग्य करता है कि कर्ज़न जाते समय भारतीयों की प्रशंसा, अपने कुकृत्यों को स्वीकारना तथा भारत के अच्छे भविष्य की कामना कर दे तो यह देश उसकी सारी पिछली बातें भूल सकता है, परंतु कर्ज़न में उदारता नहीं है। वह घमंडी तथा नस्ल-भेद से ग्रस्त है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

प्रश्न 1:

शिवशंभु की दो गायों की कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?

उत्तर-

लेखक ‘शिवशंभु की दो गायों’ की कहानी के माध्यम से कहना चाहता है कि भारत में मनुष्य ही नहीं, पशुओं में भी साथ रहने वालों के साथ लगाव होता है। वे उस व्यक्ति के बिछुड़ने पर भी दुखी होते हैं जो उन्हें कष्ट पहुँचाता है। यहाँ भावना प्रमुख होती है। हमारे देश में पशु-पक्षियों को भी बिछड़ने के समय उदास देखा गया है। बिछड़ते समय वैर-भाव को भुला दिया जाता है। विदाई का समय बड़ा करुणोत्पादक होता है। लॉर्ड कर्जन जैसे क्रूर आततायी के लिए भी भारत की निरीह जनता सहानुभूति का भाव रखती है।


प्रश्न 2:

आठ करोड़ प्रजा के गिड़गिड़ाकर विच्छेद न करने की प्रार्थना पर आयने ज़रा भी ध्यान नहीं दिया-यहाँ किस ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर-

लेखक ने यहाँ बंगाल के विभाजन की ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत किया है। लॉर्ड कर्ज़न दो बार भारत का वायसराय बनकर आया। उसने भारत पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थाई करने के लिए अनेक काम किए। भारत में राष्ट्रवादी भावनाओं को कुचलने के लिए उसने बंगाल का विभाजन करने की योजना बनाई। कज़न की इस चाल को देश की जनता समझ गई और उसने इस योजना का विरोध किया, परंतु कर्ज़न ने अपनी जिद्द को पूरा किया। बंगाल के दो हिस्से कर दिए गए-पूर्वी बंगाल तथा पश्चिमी बंगाल।



 

प्रश्न 3:

कर्जन को इस्तीफा क्यों देना पड़ गया?

उत्तर-

कर्जन को इस्तीफा निम्नलिखित कारणों से देना पड़ा –

1. कर्जन ने बंगाल का विभाजन राष्ट्रवादी ताकतों को तोड़ने के लिए किया था, परंतु इसका परिणाम उलटा हुआ। सारा देश एकजुट हो गया और ब्रिटिश शासन की जड़े हिल गईं।

2. कर्जन इंग्लैंड में एक फ़ौजी अफ़सर को इच्छित पद पर नियुक्त करवाना चाहता था। उसकी सिफारिश को नहीं माना। गया। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने इस्तीफा देने की धमकी दी। ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तीफा की मंजूर कर लिया।


प्रश्न 4:

विचारिए तो, क्या शान आपकी इस देश में थी और अब क्या हो गई! कितने ऊँचे होकर आप कितने गिरे!-आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

लेखक कहता है कि कर्ज़न की भारत में शान थी। दिल्ली दरबार में उसका वैभव चरम सीमा पर था। पति-पत्नी की कुर्सी सोने की थी। उसका हाथी सबसे ऊँचा व सबसे आगे रहता था। सम्राट के भाई का स्थान भी इनसे नीचा था। इसके इशारे पर प्रशासन, राजा, धनी नाचते थे। इसके संकेत पर बड़े-बड़े राजाओं को मिट्टी में मिला दिया गया तथा अनेक निकम्मों को बड़े पद मिले। इस देश में भगवान और एडवर्ड के बाद उसका स्थान था, परंतु इस्तीफा देने के बाद सब कुछ खत्म हो गया। इसकी सिफारिश पर एक आदमी भी नहीं रखा गया। जिद के कारण इसका वैभव नष्ट हो गया।


प्रश्न 5:

आपके और यहाँ के निवासियों के बीच में कोई तीसरी शक्ति और भी है-यहाँ तीसरी शक्ति किसे कहा गया है?

उत्तर-

लॉर्ड कर्जन स्वयं को निरंकुश, सर्वशक्ति संपन्न मान बैठा था। भारतीय जनता उसकी मनमानी सह रही थी। अचानक गुस्साए लार्ड का इस्तीफा मंजूर हो गया और उसे जाना पड़ा। यहाँ लेखक कहना चाहते हैं कि लॉर्ड कर्जन और भारतीय जनता के बीच एक तीसरी शक्ति अर्थात् ब्रिटिश सरकार है जिस पर न तो लॉर्ड कर्जन का नियंत्रण है और न ही भारत के निवासियों का ही नियंत्रण है। इंग्लैंड की महारानी का शासन न तो कर्जन की बात सुनता है और न ही कर्जन के खिलाफ भारतीय जनता की गुहार सुनता है। उस पर इस निरंकुश का अंकुश भी नहीं चलता।


पाठ के आस-पास

प्रश्न 1:

पाठ का यह अंश शिवशभू के चिट्ठे से लिया गया है। शिवशंभु नाम की चर्चा पाठ में भी हुई है। बालमुकुंद गुप्त ने इस नाम का उपयोग क्यों किया होगा?

उत्तर-

शिवशंभु एक काल्पनिक पात्र है जो भाँग के नशे में खरी-खरी बात कहता है। यह पात्र अंग्रेजों की कुनीतियों को उजागर करता है। लेखक ने इस नाम का उपयोग सरकारी कानून के कारण किया। कर्जन ने प्रेस की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य से सीधी टक्कर लेने के हालात नहीं थे, परंतु शासन की पोल खोलकर जनता को जागरूक भी करना था। अतः काल्पनिक पात्र के जरिए अपनी मरजी की बातें कहलवाई जाती थीं।


प्रश्न 2:

नादिर से भी बढ़कर आपकी जिदद हैं-कर्जन के संदर्भ में क्या आपको यह बात सही लगती है? पक्ष या विपक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर-

जी हाँ! कर्ज़न के संदर्भ में हमें यह बात सही लगती है। नादिरशाह एक क्रूर राजा था। उसने दिल्ली में कत्लेआम करवाया, परंतु आसिफजाह ने तलवार गले में डालकर उसके आगे समर्पण कर कत्लेआम रोकने की प्रार्थना की, तो तुरंत कत्लेआम रोक दिया गया। कर्ज़न ने बंगाल का विभाजन किया। आठ करोड़ भारतवासियों की बार-बार विनती करने पर भी उसने अपनी जिद्द नहीं छोड़ी। इस संदर्भ में कर्ज़न की जिद्द नादिरशाह से बड़ी है। वह नादिरशाह से अधिक क्रूर था। उसने जनहित की उपेक्षा की।


प्रश्न 3:

क्या आँख बंद करके मनमाने हुक्म चलाना और किसी की कुछ न सुनने  का नाम ही शासन है ? इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए शासन क्या है? इस यर अचा कीजिए।

उत्तर-

‘शासन’ किसी एक व्यक्ति की इच्छा से नहीं चलता। यह नियमों का समूह है जो अच्छी व्यवस्था का गठन करता है। यह प्रबंध जनहित के अनुरूप होनी चाहिए। निरंकुश शासक से जनता दुखी रहती है तथा कुछ समय बाद उसे शासक का विनाश हो जाता है। प्रजा को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हर नीति में जनकल्याण का भाव होना चाहिए।


प्रश्न 4:

इस पाठ में आए अलिफ लैला, अलहदीन, अबुल हसन और बगदाद के खलीफ़ा के बारे में सूचना एकत्रित कर कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर-

विद्यार्थी स्वयं करें।


गौर करने की बात

(क) इससे आपका जाना भी परपरा की चाल से कुछ अलग नहीं है, तथापि आपके शासनकाल का नाटक घोर दुखांत है, और अधिक आश्चर्य की बात यह है कि दर्शक तो क्या, स्वय सूत्रधार भी नहीं जानता था कि उसने जो खेल सुखांत समझकर खेलना आरंभ किया था, वह दुखांत हो जावेगा।

(ख) यहाँ की प्रजा ने आपकी जिद्द का फल यहीं देख लिया। उसने देख लिया कि आपकी जिस जिदद ने इस देश की प्रजा को पीड़ित किया, आपको भी उसने कम पीड़ा न दी, यहाँ तक कि आप स्वय उसका शिकार हुए।


भाषा की बात

प्रश्न 1:

वे दिन-रात यही मनाते थे कि जल्द श्रीमान् यहाँ से पधारें सामान्य तौर पर आने के लिए यधारें शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ पधारें शब्द का क्या अर्थ है?

उत्तर-

यहाँ पधारें शब्द का अर्थ है-चले जाएँ।


प्रश्न 2:

पाठ में से कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं, जिनमें भाषा का विशिष्ट प्रयोग (भारतेंदु युगीन हिंदी) हुआ है। उन्हें सामान्य हिंदी में लिखिए


(क) आगे भी इस देश में जो प्रधान शासक आए, अत को उनकी जाना पड़ा।

(ख) आप किस को आए थे और क्या कर चले?

(ग) उनका रखाया एक आदमी नौकर न रखा।

(घ) पर आशीवाद करता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से लाभ करें।


उत्तर-

(क) पहले भी इस देश में जो प्रधान शासक हुए, अंत में उन्हें जाना पड़ा।

(ख) आप किसलिए आए थे और क्या करके चले ?

(ग) उनके रखवाने से एक आदमी नौकर न रखा गया।

(घ) आशीर्वाद देता हूँ कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यश को फिर से प्राप्त करे।


अन्य हल प्रश्न

● बोधात्मक प्रशन


प्रश्न 1:

‘विदाई-संभाषण’ पाठ का प्रतिपादय स्पष्ट करें।

उत्तर-

विदाई-संभाषण पाठ वायसराय कर्जन जो 1899-1904 व 1904-1905 तक दो बार वायसराय रहे, के शासन में भारतीयों की स्थिति का खुलासा करता है। यह अध्याय शिवशंभु के चिट्ठे का अंश है। कर्ज़न के शासनकाल में विकास के बहुत कार्य हुए, नए-नए आयोग बनाए गए, किंतु उन सबका उद्देश्य शासन में गोरों का वर्चस्व स्थापित करना तथा इस देश के संसाधनों का अंग्रेजों के हित में सर्वाधिक उपयोग करना था। कर्ज़न ने हर स्तर पर अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करने की चेष्टा की। वह सरकारी निरंकुशता का पक्षधर था। लिहाजा प्रेस की स्वतंत्रता तक पर उसने प्रतिबंध लगा दिया। अंतत: कौंसिल में मनपसंद अंग्रेज सदस्य नियुक्त करवाने के मुद्दे पर उसे देश-विदेश-दोनों जगहों पर नीचा देखना पड़ा। क्षुब्ध होकर उसने इस्तीफा दे दिया और वापस इंग्लैंड चला गया। लेखक ने भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की लाचारी से जोड़ने की कोशिश की है। साथ ही यह बताने की कोशिश की है कि शासन के आततायी रूप से हर किसी को कष्ट होता है चाहे वह सामान्य जनता हो या फिर लॉर्ड कर्ज़न जैसा वायसराय। यह निबंध भी उस समय लिखा गया है जब प्रेस पर पाबंदी का दौर चल रहा था। ऐसी स्थिति में विनोदप्रियता, चुलबुलापन, संजीदगी, नवीन भाषा-प्रयोग एवं रवानगी के साथ यह एक साहसिक गद्य का नमूना भी है।


प्रश्न 2:

कैसर, ज़ार तथा नादिरशाह पर टिप्पणियाँ लिखिए।

उत्तर-

कैसर-यह शब्द रोमन तानाशाह जूलियस सीजर के नाम से बना है। यह शब्द तानाशाह जर्मन शासकों के लिए प्रयोग होता था। जार-यह भी जूलियस सीजर से बना शब्द है जो विशेष रूप से रूस के तानाशाह शासकों (16वीं सदी से 1917 तक) के लिए प्रयुक्त होता था। इस शब्द का पहली बार बुल्गेरियाई शासक (913 में) के लिए प्रयोग हुआ था। नादिरशाह-यह 1736 से 1747 तक ईरान का शाह रहा। तानाशाही स्वरूप के कारण ‘नेपोलियन ऑफ परशिया’ के नाम से भी जाना जाता था। पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमदशाह अब्दाली को नादिरशाह ने भी आक्रमण के लिए भेजा था।


प्रश्न 3:

राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से किन शब्दों में विदा ली थी?

उत्तर-

राजकुमार सुल्तान ने नरवरगढ़ से विदा लेते समय कहा-‘प्यारे नरवरगढ़! मेरा प्रणाम स्वीकार ले। आज मैं तुझसे जुदा होता हूँ। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपद के दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋण का बदला यह गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! यदि मैंने जानबूझकर एक दिन भी अपनी सेवा में चूक की हो, यहाँ की प्रजा की शुभ चिंता न की हो, यहाँ की स्त्रियों को माता और बहन की दृष्टि से न देखा हो तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जाने की आज्ञा दे।’


प्रश्न 4: ‘विदाई-संभाषण’ तत्कालीन साहसिक लेखन का नमूना है। सिदध कीजिए।

उत्तर-

विदाई-संभाषण व्यंग्यात्मक, विनोदपूर्ण, चुलबुला, ताजगीवाला गद्य है। यह गद्य आततायी को पीड़ा की चुभन का अहसास कराता है। इससे यह नहीं लगता कि कर्ज़न ने प्रेस पर पाबंदी लगाई थी। इसमें इतने व्यंग्य प्रहार हैं कि कठोर-से-कठोर शासक भी घायल हुए बिना नहीं रह सकता। इसे साहसिक लेखन के साथ-साथ आदर्श भी कहा जा सकता है।


प्रश्न 5:

कर्ज़न के कौन-कौन-से कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं?

उत्तर-

कर्ज़न के निम्नलिखित कार्य क्रूरता की सीमा में आते हैं


(क) प्रेस पर प्रतिबंध।

(ख) करोड़ों लोगों की विनती के बावजूद बंगाल का विभाजन।

(ग) देश के संसाधनों का अंग्रेजी-हित में प्रयोग।

(घ) अंग्रेजों का वर्चस्व स्थापित करना।

आलो-आंधारि लेखिका -बेबी हालदार

आलो-आंधारि 
लेखिका -बेबी हालदार



















आलो-आँधार
लेखिका परिचय
बेबी हालदार

लेखिका बेबी हालदार का जन्म जम्मू कश्मीर के किसी स्थान पर हुआ, जहाँ सेना की नौकरी में उनके पिता तैनात थे। इनका जन्म संभवतया 1974 ई. में हुआ। परिवार की आर्थिक दशा कमजोर होने के कारण तेरह वर्ष की आयु में इनका विवाह दुगुनी उम्र के व्यक्ति से कर दिया गया। इस कारण उन्हें सातवीं कक्षा में पढ़ाई छोड़नी पड़ी। 12-13 वर्षों के बाद पति की ज्यादतियों से परेशान होकर वे तीन बच्चों सहित पति का घर छोड़कर दुर्गापुर से फरीदाबाद आ गई। कुछ समय बाद वे गुड़गाँव चली आई और घरेलू नौकरानी के रूप में काम कर रही हैं। इनकी एकमात्र रचना है-आलो-आँधारि। यह मूल रूप से बांग्ला भाषा में लिखी गई तथा बाद में इसका हिंदी अनुवाद किया गया।


 
पाठ का साराशी

आलो-आँधारि-लेखिका की आत्मकथा है-यह उन करोड़ों झुग्गियों की कहानी है जिसमें झाँकना भी भद्रता के तकाजे से बाहर है। यह साहित्य के उन पहरुओं के लिए चुनौती है जो साहित्य को साँचे में देखने के आदी हैं, जो समाज के कोने-अँतरे में पनपते साहित्य को हाशिए पर रखते हैं और भाषा एवं साहित्य को भी एक खास वर्ग की जागीर मानते हैं। यह एक ऐसी आपबीती है जो मूलत: बांग्ला में लिखी गई, लेकिन पहली ऐसी रचना जो छपकर बाज़ार में आने से पहले ही अनूदित रूप में हिंदी में आई। अनुवादक प्रबोध कुमार ने एक जबान को दूसरी जबान दी. पर रूह को छुआ नहीं। एक बोली की भावना दूसरी बोली में बोली, रोई, मुसकराई।

लेखिका अपने पति से अलग किराए के मकान में अपने तीन छोटे बच्चों के साथ रहती थी। उसे हर समय काम की तलाश रहती थी। वह सभी को अपने (लेखिका) लिए काम ढूँढ़ने के लिए कहती थी। शाम को जब वह घर वापिस आती तो पड़ोस की औरतें काम के बारे में पूछतीं। काम न मिलने पर वे उसे सांत्वना देती थीं। लेखिका की पहचान सुनील नामक युवक से थी। एक दिन उसने किसी मकान मालिक से लेखिका को मिलवाया। मकान मालिक ने आठ सौ रुपये महीने पर उसे रख लिया और घर की सफाई व खाना बनाने का काम दिया। उसने पहले काम कर रही महिला को हटा दिया। उस महिला ने लेखिका से भला-बुरा कहा। लेखिका उस घर में रोज सवेरे आती तथा दोपहर तक सारा काम खत्म करके चली जाती। घर जाकर बच्चों को नहलाती व खिलाती। उसे बच्चों के भविष्य की चिंता थी।


 
जिस मकान में वह रहती थी, उसका किराया अधिक था। उसने कम सुविधाओं वाला नया मकान ले लिया। यहाँ के लोग उसके अकेले रहने पर तरह-तरह की बातें बनाते थे। घर का खर्च चलाने के लिए वह और काम चाहती थी। वह मकान मालिक से काम की नयी जगह ढूँढ़ने को कहती है। उसे बच्चों की पढ़ाई, घर के किराए व लोगों की बातों की भी चिंता थी। मालिक सज्जन थे। एक दिन उन्होंने लेखिका से पूछा कि वह घर जाकर क्या-क्या करती है। लेखिका की बात सुनकर उन्हें आश्चर्य हुआ। उन्होंने स्वयं को ‘तातुश’ कहकर पुकारने को कहा। वे उसे बेबी कहते थे तथा अपनी बेटी की तरह मानते थे। उनका सारा परिवार लेखिका का ख्याल रखता था। वह पुस्तकों की अलमारियों की सफाई करते समय पुस्तकों को उत्सुकता से देखने लगती। यह देखकर तातुश ने उसे एक किताब पढ़ने के लिए दी।

तातुश ने उससे लेखकों के बारे में पूछा तो उसने कई बांग्ला लेखकों के नाम बता दिए। एक दिन तातुश ने उसे कॉपी व पेन दिया और कहा कि समय निकालकर वह कुछ जरूर लिखे। काम की अधिकता के कारण लिखना बहुत मुश्किल था, परंतु तातुश के प्रोत्साहन से वह रोज कुछ पृष्ठ लिखने लगी। यह शौक आदत में बदल गया। उसका अकेले रहना समाज में कुछ लोगों को सहन नहीं हो रहा था। वे उसके साथ छेड़खानी करते थे और बेमतलब परेशान करते थे। बाथरूम न होने से भी विशेष दिक्कत थी। मकान मालिक के लड़के के दुव्र्यवहार की वजह से वह नया घर तलाशने की सोचने लगी।


 
एक दिन लेखिका काम से घर लौटी तो देखा कि मकान टूटा हुआ है तथा उसका सारा सामान खुले में बाहर पड़ा हुआ है। वह रोने लगी। इतनी जल्दी मकान ढूँढ़ने की भी दिक्कत थी। दूसरे घरों के लोग अपना सामान इकट्ठा करके नए घर की तलाश में चले गए। वह सारी रात बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे बैठी रही। उसे दुख था कि दो भाई नजदीक रहने के बावजूद उसकी सहायता नहीं करते। तातुश को बेबी का घर टूटने का पता चला तो उन्होंने अपने घर में कमरा दे दिया। इस प्रकार वह तातुश के घर में रहने लगी। उसके बच्चों को ठीक खाना मिलने लगा। तातुश उसका बहुत ख्याल रखते।

बच्चों के बीमार होने पर वे उनकी दवा का प्रबंध करते। उनके सद्व्यवहार को देखकर बेबी हैरान थी। उसका बड़ा लड़का किसी के घर में काम करता था। वह उदास रहती थी। तातुश ने उसके लड़के को खोजा तथा उसे बेबी से मिलवाया। उस लड़के को दूसरी जगह काम दिलवाया। लेखिका सोचती कि तातुश पिछले जन्म में उसके बाबा रहे होंगे। तातुश उसे लिखने के लिए निरंतर प्रोत्साहित करते थे। उन्होंने अपने कई मित्रों के पास बेबी के लेखन के कुछ अंश भेज दिए थे। उन्हें यह लेखन पसंद आया और वे भी लेखिका का उत्साह बढ़ाते रहे। तातुश के छोटे लड़के अर्जुन के दो मित्र वहाँ आकर रहने लगे, परंतु उनके अच्छे व्यवहार से लेखिका बढ़े काम को खुशी-खुशी करने लगी। तातुश ने सोचा कि सारा दिन काम करने के बाद बेबी थक जाती होगी। उसने उसे रोजाना शाम के समय पार्क में बच्चों को घुमा लाने के लिए कहा। इससे बच्चों का दिल बहल जाएगा। अब वह पार्क में जाने लगी।


 
पार्क में नए-नए लोगों से मुलाकात होती। उसकी पहचान बंगाली लड़की से हुई जो जल्दी ही वापिस चली गई। लोगों के दुव्र्यवहार के कारण उसने पार्क में जाना छोड़ दिया। लेखिका को किताब, अखबार पढ़ने व लेखन-कार्य में आनंद आने लगा। तातुश के जोर देने पर वह अपने जीवन की घटनाएँ लिखने लगी। तातुश के दोस्त उसका उत्साह बढ़ाते रहे। एक मित्र ने उसे आशापूर्णा देवी का उदाहरण दिया। इससे लेखिका का हौसला बढ़ा और उसने उन्हें जेलू कहकर संबोधित किया। एक दिन लेखिका के पिता उससे मिलने पहुँचे। उसने उसकी माँ के निधन के बारे में बताया। लेखिका के भाइयों को पता था, परंतु उन्होंने उसे बताया नहीं। लेखिका काफी देर तक माँ की याद करके रोती रही। बाबा ने बच्चों से माँ का ख्याल रखने के लिए समझाया। लेखिका पत्रों के माध्यम से कोलकाता और दिल्ली के मित्रों से संपर्क रखने लगी। उसे हैरानी थी कि लोग उसके लेखन को पसंद करते हैं।

शर्मिला उससे तरह-तरह की बातें करती थी। लेखिका सोचती कि अगर तातुश उससे न मिलते तो यह जीवन कहाँ मिलता। लेखिका का जीवन तातुश के घर में आकर बदल गया। उसका बड़ा लड़का काम पर लगा था। दोनों छोटे बच्चे स्कूल में पढ़ रहे थे। वह स्वयं लेखिका बन गई थी। पहले वह सोचती थी कि अपनों से बिछुड़कर कैसे जी पाएगी, परंतु अब उसने जीना सीख लिया था। वह तातुश से शब्दों के अर्थ पूछने लगी थी। तातुश के जीवन में भी खुशी आ गई थी। अंत में वह दिन भी आ गया जब लेखिका की लेखन-कला को पत्रिका में जगह मिली। पत्रिका में उसकी रचना का शीर्षक था- ‘आलो-आँधारि” बेबी हालदार। लेखिका अत्यंत प्रसन्न थी। तातुश के प्रति उसका मन कृतज्ञता से भर आया। उसने तातुश के पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया।

शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 21
स्वामी-पति’ चुक-चुक-अफसोस जताने का भाव। अनसुनी-बिना सुने हुए।

पृष्ठ संख्या 22
फौरन-तुरंत। गेट-दरवाजा। विधवा-वह महिला जिसका पति मर गया हो।


 
पृष्ठ संख्या 23
राजी-सहमत। बकते-बकते-गालियाँ देते हुए। आश्चर्य-हैरान। ढेर-काफी। बाबा-पिता। सुयोग-अच्छा अवसर। चेष्टा-प्रयास। रोज-प्रतिदिन।

पृष्ठ संख्या 24
दादा-बड़ा भाई। भाड़ा-किराया। रेडी-तैयार। गुजारा-निर्वाह। हठात्-हठपूर्वक अचानक। माया-दया।

पृष्ठ संख्या 25
दरकार-जरूरत। चेहरा खिल उठना-प्रसन्न होना। बाध्य-मजबूर। तीसरे पहर-दोपहर और शाम के बीच का समय। चारा-रास्ता। रव्याल-ध्यान।

पृष्ठ संख्या 26
बंधु-मित्र। तातुश-पिता के समान। जबान-आवाज।

पृष्ठ संख्या 27
डस्टिग-झाड़-पोंछ करना। मन मसोसना-मन की बात मन में रखना।

पृष्ठ संख्या 28
आहिस्ता-धीमे से। विश्वास-यकीन। आमार मेये बेला-पुस्तक का नाम। तसलीमा नसरिन-बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका।


 
पृष्ठ संख्या 29
पेज-पृष्ठ। दिक्कत-कठिनाई। टेबिल-मेज। ड्रार-मेज के अंदर वस्तु रखने की बनी जगह। ऊँह-टालने का भाव।

पृष्ठ संख्या 30
चैन-आराम। बेमतलब-बिना अर्थ की। बाँदी-दासी। नागा करना-अंतराल या छुट्टी करना। हाट-स्थानीय बाजार। पाड़ा-मोहल्ला।

पृष्ठ संख्या 31
चेष्टा-प्रयास। ताने मारना-व्यंग्यात्मक बातें। फर्क-अंतर। शरम-लज्जा।

पृष्ठ संख्या 32
सिर पकड़कर बैठना-अत्यधिक परेशान होना। सहेजकर-सँभालकर। मोह-प्रेम।

पृष्ठ संख्या 33
लगाव-प्यार। बुलडोजर-तोड़-फोड़ करने वाली मशीन। राजी-सहमत।

पृष्ठ संख्या 34
नाश्ता-सुबह का हल्का भोजन। तबीयत-सेहत।

पृष्ठ संख्या 36
मास-महीना। वयस-उम्र। सिर्फ-केवल।

पृष्ठ संख्या 37
गैरकानूनी-कानून के विरुद्ध। खटना-काम में लगातार लगे रहना। भाग-दौड़-ज्यादा काम करना।

पृष्ठ संख्या 38
उत्साह-जोश। दोष-भूल। हुनर-कला। स्नेह-प्रेम। महीना-मासिक वेतन।

पृष्ठ संख्या 39
फट-से-तत्काल। चौपट-बेकार।

पृष्ठ संख्या 40
पार्क-बगीचा। आशय-मतलब। खातिर-के लिए।

पृष्ठ संख्या 41
दीदीमा-नानी।

पृष्ठ संख्या 42
फोटो कॉपी-नकल। आवाक्-हैरानी से चुप रह जाना। उत्कृष्ट-बहुत अच्छा। अभिधान-उपाधि, शब्दकोश।

पृष्ठ संख्या 43
क्षमता-योग्यता। माथा-पच्ची-दिमाग पर जोर देना। व्यवस्था-प्रबंध। कांड-घटना। 蛾…

पृष्ठ संख्या 44
जेदू-पिता के बड़े भाई। मरजी-इच्छा।

पृष्ठ संख्या 45
खड-भाग। खबर-समाचार।

पृष्ठ संख्या 47
स्मरणीय-याद आने योग्य। असाधारण-जो सामान्य न हो। दुर्दशा-बुरी हालत। आर्थिक-धन संबंधी।

पृष्ठ संख्या 48
खाते-कमाते-मेहनत के साथ निर्वाह करना। रुद्ध-रुका हुआ। दादा-बड़ा भाई। भर्ती-दाखिल। बऊदी-भाभी। भाड़ा-किराया।

पृष्ठ संख्या 49
ख्याल-ध्यान। अंतिम-आखिरी। भेंट-मुलाकात। क्रिया-कर्म-मृत्यु के बाद तौर-तरीके।

पृष्ठ संख्या 50
दी-दीदी। बहलना-बदलना। राय-विचार, मत। मल्लेश्वरी-भारोत्तोलना की प्रसिद्ध महिला खिलाड़ी। अंत-समाप्त। अभिज्ञता-ज्ञान।

पृष्ठ संख्या 51
बांधवी-सहेली। आहलादित-आनंदित। आयना-दर्पण।

पृष्ठ संख्या 52
खुसर-फुसर-कानाफूसी करना। तुच्छ-छोटी।

पृष्ठ संख्या 53
मगन-मस्त। भटकना-बेकार में इधर-उधर घूमना। उकताना-परेशान होना।

पृष्ठ संख्या 54
हिलोरें मारना-अत्यधिक प्रसन्न होना।


कॉपी में करने के पाठ्यपुस्तक से प्रश्न


प्रश्न 1:
पाठ के किन अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है। क्या वर्तमान समय में स्त्रियों की इस सामाजिक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर –
पाठ के निम्नलिखित अंशों से समाज की यह सच्चाई उजागर होती है कि पुरुष के बिना स्त्री का कोई अस्तित्व नहीं है-

घर में अकेले रहते देख आस-पास के सभी लोग पूछते, तुम यहाँ अकेली रहती हो? तुम्हारा स्वामी कहाँ रहता है? तुम कितने दिनों से यहाँ हो? तुम्हारा स्वामी वहाँ क्या करता है? तुम क्या यहाँ अकेली रह सकोगी। तुम्हारा स्वामी क्यों नहीं आता? ऐसी बातें सुन मेरी किसी के पास खड़े होने की इच्छा नहीं होती, किसी से बात करने की इच्छा नहीं होती।
उसके यहाँ से लौटने में कभी देर हो जाती तो सभी मुझे ऐसे देखते जैसे में कोई अपराध कर आ रही हूँ। बाजार-हाट करने भी जाना होता तो वह बूढ़े मकान मालिक की स्त्री, कहती, “कहाँ जाती है रोज-रोज? तेरा स्वामी है नहीं, तू तो अकेली ही है। तुझे इतना घूमने-घामने की क्या दरकार?” मैं सोचती, मेरा स्वामी मेरे साथ नहीं है तो क्या मैं कहीं घूम-फिर भी नहीं सकती और फिर उसका साथ में रहना भी तो न रहने जैसा है। उसके साथ रहकर भी क्या मुझे शांति मिली। उसके होते हुए भी पाड़े के लोगों की क्या-क्या बातें मैंने नहीं सुनीं।
जब मैं बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग तरह-तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते, कितने ताने मारते।
आसपास के लोग एक-दूसरे को बताते कि इस लड़की का स्वामी यहाँ नहीं रहता है, वह अकेली ही भाड़े के घर में बच्चों के साथ रहती है। दूसरे लोग यह सुनकर मुझसे छेड़खानी करना चाहते। वे मुझसे बातें करने की चेष्टा करते और पानी पीने के बहाने मेरे घर आ जाते। मैं अपने लड़के से उन्हें पानी पिलाने को कह कोई बहाना बना बाहर निकल आती।
मैंने सोचा यह क्या इतना सहज है। घर में कोई मर्द नहीं है तो क्या इसी से मुझे हर किसी की कोई भी बात माननी होगी। वर्तमान समय में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। वे अपने पैरों पर खड़ी हैं तथा अनेक तरह के कार्य कर रही हैं। महानगरों में तो अविवाहित युवतियाँ भी अकेली रहकर अपना जीवन-यापन करती हैं। कुछ मनचले अवश्य उन्हें तंग करने की कोशिश करते हैं, परंतु आम व्यक्ति का व्यवहार अपमानजनक नहीं होता।
प्रश्न 2:
अपने परिवार से लेकर तातुश के घर तक के सफ़र में बेबी के सामने रिश्तों की कौन-सी सच्चाई उजागर होती है?
उत्तर –
अपने परिवार से लेकर तातुश के घर तक के सफर में बेबी ने रिश्तों की सच्चाई जानी। उसने जाना कि रिश्तों का संबंध दिल से होता है, अन्यथा रिश्ते बेगाने होते हैं। पति का घर छोड़कर आने के बाद वह अकेली व असहाय थी। वह अकेले ही बच्चों के साथ किराये के मकान में रहने लगी। वह खुद ही काम ढूँढ़ने जाती। हालाँकि उसके समीप ही भाई व रिश्तेदार रहते थे, परंतु किसी ने उसकी सहायता नहीं की। वे उससे मिलने तक नहीं आए। उसे अपनी माँ की मृत्यु का समाचार तक छह महीन बाद अपने पिता से मिला। दूसरी तरफ, बाहरी व्यक्तियों ने उसकी सहायता की। सुनील नामक युवक ने उसे काम दिलवाया, तातुश ने उसे बेटी के समान माना तथा उसकी हर तरीके से मदद की। उनके प्रोत्साहन से वह लेखिका बन पाई। मकान टूटने के बाद भोला दा उसके साथ रात भर खुले आसमान में बैठा रहा। इस प्रकार दिल में स्नेह हो तो रिश्ते बन जाते हैं।

प्रश्न 3:
इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की जटिलताओं का पता चलता है। घरेलू नौकरों को और । किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है? इस पर विचार करिए।
उत्तर –
इस पाठ से घरों में काम करने वालों के जीवन की निम्नलिखित जटिलताओं का पता चलता है-

घरेलू नौकरों को आर्थिक सुरक्षा नहीं मिलती। उनकी नौकरी कभी भी खत्म हो सकती है।
उन्हें गदे व सस्ते मकानों में रहना पड़ता है, क्योंकि ये अधिक किराया नहीं दे पाते।
इन लोगों का शारीरिक शोषण भी किया जाता है। नौकरानियों को अकसर शोषण का शिकार होना पड़ता है।
इन लोगों के साथ मकान मालिक अशिष्ट व्यवहार करते हैं।
बेबी की तरह इन्हें सुबह से देर रात तक काम करना पड़ता है।
अन्य समस्याएँ

अपूर्ण भोजन व दवाइयों के अभाव में ये अकसर बीमार रहते हैं।
धन के अभाव में इनके बच्चे अशिक्षित रह जाते हैं। उन्हें कम उम्र में ही दूसरों के यहाँ काम करना पड़ता है।
ये अकसर आर्थिक संकट में फँसे रहते हैं।
प्रश्न 4:
‘आलो-आँधारि’ रचना बेबी की व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ कई सामाजिक मददों को समेटे है। किन्हीं दो मुख्य समस्याओं पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर –
‘आलो-आँधारि’ एक ऐसी रचना है जो बेबी हालदार की आत्मकथा होने के साथ-साथ एक अनदेखी दुनिया के दर्शन करवाती है। यह ऐसी दुनिया है जो हमारे पड़ोस में है, फिर भी हम इसमें झाँकना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। दो प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(क) परित्यक्ता स्त्री की स्थिति-इस रचना में बेबी एक परित्यक्ता स्त्री है। वह किराए के मकान में रहकर घरों में नौकरानी का काम करके गुजारा कर रही है। समाज का व्यवहार उसके प्रति कटु है। स्वयं औरतें ही उस पर ताना मारती हैं। हर व्यक्ति उस पर अपना अधिकार समझता है तथा उसका शोषण करना चाहता है। उसका मानसिक, शारीरिक व आर्थिक शोषण किया जाता है। उस पर तरह-तरह की वर्जनाएँ थोपी जाती हैं तथा सहायता के नाम पर उसका मजाक उड़ाया जाता है।
(ख) गंदी बस्तियाँ-इस रचना में गंदी बस्तियों के बारे में बताया गया है। घरेलू नौकर तंग बस्तियों में रहते हैं। वहाँ शौचालय की सुविधा भी नहीं होती। महिलाओं को इस मामले में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। नालियों. कूड़ेदानों आदि के निकट बसी इन बस्तियों में अनेक बीमारियाँ फैलने का भय रहता है। सरकार भी अपनी आँखें मूंदे रहती है।

प्रश्न 5:
तुम दूसरी आशापूर्णा देवी बन सकती हो-जेदू का यह कथन रचना संसार के किस सत्य को उद्घाटित करता है?
उत्तर –
जेलू का यह कथन यह बताता है कि परिस्थितियाँ चाहे कितनी ही विकट क्यों न हों, मनुष्य इच्छाशक्ति से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आशापूर्णा देवी भी आम गृहणी थीं। वे सारा दिन घर के काम-काज में व्यस्त रहती थीं, परंतु वे लेखन में रुचि रखती थीं। परिवार के सो जाने के बाद वे लिखती थीं और लिखते-लिखते विश्व प्रसिद्ध कथाकार बन गई। बेबी की स्थिति उनसे भी खराब है। वह आर्थिक संकट से ग्रस्त है, फिर भी वह निरंतर लिखकर अपनी शैली को सुधार सकती है। वह थोड़ा समय निकालकर लिख सकती है। इस तरह वह भी प्रसिद्ध लेखिका बन सकती है।

प्रश्न 6:
बेबी की जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन कैसा होता? कल्पना करें और लिखें।
उत्तर –
तातुश के संपर्क में आने से पहले बेबी कई घरों में काम कर चुकी थी। उसका जीवन कष्टों से भरा था। तातुश के परिवार में आने के बाद उसे आवास, वित्त, भोजन आदि समस्याओं से राहत मिली। यहाँ उसके बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से होने लगा। यदि उसकी जिंदगी में तातुश का परिवार न आया होता तो उसका जीवन अंधकारमय होता। उसे गंदी बस्ती में रहने के लिए विवश होना पड़ता। उसके बच्चों को शिक्षा शायद नसीब ही नहीं होती, क्योंकि उसके पास आय के स्रोत सीमित होते। बच्चे या तो आवारा बन जाते या बाल मजदूर बनते। अकेली औरत होने के कारण उसे समाज के लोगों के मात्र अश्लील व्यवहार का ही सामना नहीं करना पड़ता, अपितु उसे अवारा लोगों के शोषण का शिकार भी होना पड़ सकता था। बड़ा लड़का तो शायद ही उसे मिल पाता। उसके पिता भी उसे याद नहीं करते और माँ की मृत्यु का समाचार भी नहीं मिलता। इस तरह बेबी का जीवन चुनौतीपूर्ण तथा अंधकारमय होता।

II. निबंधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘आलो-आँधारि’ पाठ के आधार पर तातुश का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर –
तातुश सज्जन प्रवृत्ति के अधेड़ अवस्था के शिक्षक हैं, वे दयालु हैं तथा करुण भाव से युक्त हैं। जब बेबी उनके घर काम करने आई तो उन्होंने उसके काम की प्रशंसा की। वे उसे अपनी बेटी के समान समझते थे। वे उसे कदम-कदम पर प्रोत्साहित करते थे। बेबी की पढ़ने के प्रति रुचि देखकर वे कॉपी व पेन देते हैं तथा उसे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। वे उसके बच्चों को स्कूल में भेजने की व्यवस्था करते हैं। उसका घर टूट जाने के बाद उसे अपने घर में जगह देते हैं। वे उसके बड़े लड़के को ढूँढ़कर उससे मिलवाते हैं तथा बाद में अच्छी जगह पर उसे काम दिलवाते हैं। जब कभी बेबी के बच्चे बीमार होते हैं तो उनका इलाज भी करवाते थे। तातुश बेबी के लेखन को अपने मित्रों के पास भेजते थे। वे कोई ऐसी बात नहीं करते थे जिससे बेबी को ठेस लगे। ऐसे चरित्र समाज में दुर्लभ होते हैं तथा आदर्श रूप प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 2:
बेबी के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
‘आलो-आँधारि’ रचना की प्रमुख पात्र बेबी है। यह उसकी आत्मकथा है उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(क) परित्यक्ता-बेबी की शादी अपने से दुगुनी उम्र के व्यक्ति के साथ हुई। उसे ससुराल में सदा प्रताड़ना मिली। वह किसी दूसरी महिला के साथ रहने लगा था। अंत में वह अपने पति को छोड़कर अलग रहने लगी और घरेलू कामकाज करके निर्वाह करने लगी। उसे अनेक तरह की सामाजिक कठिनाइयों का सामना करना पडा।
(ख) साहसी व परिश्रमी-बेबी पति के अत्याचारों को सहन न करके उससे अलग किराए के मकान में रहने लगी। वह लोगों के घरों में काम करके गुजारा करने लगी। वह दिन-रात काम करती थी। तातुश के घर का अत्यधिक काम वह शीघ्रता से कर लेती थी। वह हर स्थिति का सामना करती है। घर तोड़े जाने के बाद वह रात खुले आसमान के नीचे गुजारती है।
(ग) अध्ययनशील-बेबी को पढ़ने-लिखने का चाव था। तातुश की पुस्तकों की अलमारियाँ साफ करते समय वह उन पुस्तकों को खोलकर देखती थी। तातुश ने उसे ‘आमार मेये बेला’ पुस्तक पढ़ने के लिए दी तथा बाद में कॉपी व पेन भी लिखने के लिए दिया। तातुश की प्रेरणा से उसने लिखना शुरू किया।
(घ) स्नेहमयी माता-बेबी अपने बच्चों के भविष्य की बहुत चिंता करती है। वह उन्हें पढ़ाना-लिखाना चाहती है। तातुश की मदद से वह दो बच्चों को स्कूल भेजती है। वह बड़े लड़के के लिए भी व्याकुल रहती है जो किसी के घर काम करता है। तातुश उसे घर लाते हैं। निष्कर्षत: बेबी साहसी, परिश्रमी, अध्ययनशील व स्नेहमयी चरित्र की है।

प्रश्न 3:
सजने-सँवरने के बारे में बेबी की क्या राय थी?
उत्तर –
कोलकाता की शर्मिला दीदी ने लेखिका को अपने घर आने का निमंत्रण दिया तथा सजने-सँवरने आदि की बात कही। सजने-सँवरने की बात पर लेखिका को हैरानी होती है। बचपन से ही उसे सजने का शौक नहीं था। उसे ये काम फालतू के लगते थे। उसने देखा कि लड़कियाँ व बहुएँ घंटों शीशे के सामने खड़ी होकर श्रृंगार करती हैं। वे नयी साड़ी पहनती हैं ताकि पति उनकी तारीफ करे। वे दूसरों से प्रशंसा भी चाहती हैं। कई प्रकार के गहने पहनकर वे घूमने जाती हैं। लेखिका स्वयं को औरों से अलग मानती है। वह तो शादी के बाद भी इन चीजों से दूर रही। उसने सीधी तरह कंघी करके माँग से सिंदूर लगाना ही सीखा था।

III. लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
शर्मिला दी और बेबी के संबंधों के बारे में बताइए।
उत्तर –
शर्मिला दी कोलकाता में रहती थीं। वह बेबी को हिंदी में चिट्ठयाँ लिखती थीं। उनकी चिट्ठयों में अलग तरह की ही बात होती थी। बेबी सोचती थी कि वे भी तो घर के काम के लिए कोई लड़की रखी होंगी। क्या वह उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करती होंगी जैसा मेरे साथ। उसे तो वह किसी के घर काम करने वाली लड़की की तरह नहीं देखतीं और चिट्ठयाँ भी अपनी बाँधवी की तरह लिखती हैं। तातुश उसकी चिट्ठयों को पढ़कर सुनाते तो वह अपनी टूटी-फूटी बांग्ला में उन्हें लिख लेती थी। उदास होने पर वह इन्हें पढ़ती तथा प्रसन्न होती थी।

प्रश्न 2:
‘बेबी के लिए तातुश के हृदय में माया है।’-स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
तातुश ने बेबी को काम पर रखा। वे उसके बच्चों के बारे में पूछते हैं तथा उन्हें स्कूल में भेजने के लिए उसे प्रेरित करते हैं। वे बच्चों के स्कूल में प्रवेश के लिए बेबी की मदद करते हैं। जब बेबी उन्हें दूसरे घर में काम तलाशने के लिए कहती तो वे उसे दूसरी कोठी में काम न करने की सलाह देते थे। वे कहते तो कुछ न थे, परंतु कुछ ऐसा सोचा करते थे कि बेबी को महसूस होता था कि वे बेबी के प्रति माया रखते हैं, कभी-कभी वे बरतन पोंछ रहे होते थे तो कभी जाले ढूँढ़ रहे होते थे।

प्रश्न 3:
सुनील ने बेबी की सहायता कैसे की?
उत्तर –
सुनील तीस-बत्तीस साल का युवक था जो एक कोठी में ड्राइवर का काम करता था। बेबी ने उसे कहीं काम दिलवाने के लिए कह रखा था, जब सुनील को पता चला कि बेबी को डेढ़ सप्ताह से कोई काम नहीं मिला तो वह उसे तातुश के घर ले गया। उनसे बातचीत करके उसने बेबी को उनके घर का काम दिलवा दिया।

प्रश्न 4: तातुश ने बेबी को क्या दिया? उस पर बेबी की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर –
तातुश ने बेबी की पढ़ने-लिखने में रुचि देखी तो उसने उसे पेन व कॉपी दी तथा लिखने को कहा। उसने कहा कि होश सँभालने के बाद से अब तक की जितनी भी बातें तुम्हें याद आएँ, सब इस कॉपी में रोज थोड़ा-थोड़ा लिखना। पेन-कॉपी लेकर बेबी सोचने लगी कि इसका तो कोई ठिकाना नहीं कि जो लिखेंगी, वह कितना गलत या सही होगा। तातुश ने पूछा तो वह चौंक पड़ी। उसने कहा कि सोच रही थी कि लिख सकूंगी या नहीं।

प्रश्न 5:
लखिका को लेखन के लिए किन-किन लोगों ने उत्साहित किया?
उत्तर –
लेखिका को लेखन के लिए सबसे पहले तातुश ने प्रेरित किया। उन्होंने ही उसका परिचय कोलकाता और दिल्ली के लोगों से करवाया। इसके अतिरिक्त कोलकाता के जेलू आनंद, अध्यापिका शर्मिला आदि पत्र लिखकर उसे प्रोत्साहित करते थे। दिल्ली के रमेश बाबू उनसे फोन पर बातें करते थे।

प्रश्न 6: तातुश के घर बेबी सुखी थी, फिर भी उदास हो जाती थी। क्यों?
उत्तर –
तातुश के घर पर बेबी को बहुत सुविधाएँ व सहायता मिली, परंतु उसे अपने बड़े लड़के की याद आती थी। उसकी सूचना दो महीने से नहीं आई थी। जो लोग उसके लड़के को लेकर गए थे, उनके दिए पते पर वह लड़का नहीं रहता था। उसने कुछ दूसरे लोगों से पूछा तो किसी ने संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। इसलिए वह कभी-कभी उदास हो जाती थी।

प्रश्न 7:
मोहल्लेवासियों का लेखिका के प्रति कैसा रवैया था?
उत्तर –
लेखिका अकेली रहती थी, इस कारण मोहल्लेवासियों का रवैया अच्छा नहीं था। वे उसे हर समय परेशान करते थे। महिलाएँ उससे तरह-तरह के सवाल करती थीं। कुछ पुरुष उसके साथ बात करने की कोशिश करते थे तो कुछ उसे ताने देते थे। औरतें उसके अकेले रहने का कारण पूछती थीं। लोग पानी के बहाने उसके घर के अंदर तक आ जाते थे। वे उससे अजीबो-गरीब सवाल पूछते जिनके जवाब लोकलिहाज से परे थे। दुखी होकर उसने मकान बदलने का फैसला किया।

प्रश्न 8: बेबी को अपनी माँ की मृत्यु का समाचार कैसे मिला?
उत्तर –
एक दिन बेबी के पिता उससे मिलने आए। उसने अपनी माँ के बारे में पूछा तो उन्होंने इधर-उधर की बातें करनी आरंभ कर दीं, फिर बताया कि उसकी माँ तो छह-सात महीने पहले ही दुनिया छोड़ गई है। उसके भाइयों ने उसे नहीं बताया। बेबी सिसक-सिसक कर रोने लगी।

प्रश्न 9:
बेबी ने पार्क में घूमना क्यों छोड़ दिया?
उत्तर –
तातुश के कहने पर बेबी बच्चों को पार्क में घुमाने ले जाती थी। वहाँ अनेक बंगाली औरतें भी थीं। वे उससे उसके पति के बारे में तथा यहाँ अकेली रहने के बारे में तरह-तरह के सवाल पूछती थीं। बेबी को इन बातों का जबाव देना तथा पुरानी बातों को फिर से दोहराना अच्छा नहीं लगता था। पार्क में आने वाले बंगाली लड़के भी उद्दंडतापूर्ण व्यवहार करते थे। इन सब कारणों से उसने पार्क में घूमना छोड़ दिया।

प्रश्न 10:
अपनी प्रकाशित रचना देखने से बेबी पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर –
बेबी को जैसे ही पैकेट में पत्रिका मिली। उसे पत्रिका के पन्ने पर अपना नाम दिखाई दिया-“आलो-आँधारि” बेबी हालदार। वह प्रसन्नता से झूम उठी। उसने अपने बच्चों से उसे पढ़वाया। बच्चे नाम पढ़कर हँसने लगे। उन्हें हँसता देख बेबी ने उन्हें अपने पास खींच लिया। तभी उसे तातुश की याद आई, जिनकी प्रेरणा से उसने लिखना शुरू किया था। वह बच्चों को छोड़कर भागती हुई तातुश के पास गई और उन्हें प्रणाम किया। तातुश ने उसके सिर पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया।

अन्य हल प्रश्न

I. मूल्यपरक प्रश्न
निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए मूल्यपरक प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(क) मेम साहब की कोठी के सामने की एक कोठी में सुनील नाम का तीस-बत्तीस साल का एक युवक मोटर चलाता था। वह मुझे पहचानता था इसलिए मैंने उससे भी अपने काम के बारे में कह रखा था। एक दिन रास्ते में मुझे देखकर उसने पूछा, तुम क्या अब उस कोठी में काम नहीं करतीं? मैंने कहा, मुझे उस कोठी को छोड़े डेढ़ सप्ताह हो गए। अभी तक मुझे कोई काम नहीं मिला है। वह बोला, ठीक है, मुझे काम के बारे में कुछ पता चलेगा तो बताऊँगा। दो-एक दिन बाद दोपहर को बच्चों को खिला-पिलाकर मैं उनके साथ सो रही थी कि सुनील आया और बोला, क्यों, काम मिला? मैंने कहा, नहीं, अभी तक कुछ नहीं मिला। वह बोला, तो चलो मेरे साथ। मैंने पूछा, कहाँ? तो वह बोला, काम करना है तो मैं तुम्हें लिए चलता हूँ, बाकी बातें तुम स्वयं वहाँ कर लेना।
प्रश्न

सुनील के व्यवहार में कौन-कौन से मूल्य उभरकर सामने आते हैं, लिखिए? 1
आप सुनील की जगह होते और कहानी की अन्य परिस्थितियाँ यथावत होतीं तो आप क्या करते? 2
इस गदयांश में किस सामाजिक समस्या की झलक मिलती है? इसे दूर करने के लिए कोई दो उपाय सुझाइए। 2
उत्तर –

बेरोजगार लेखिका से सुनील से काम के लिए कह रखा था, जिसे उसने पूरा भी किया। इस प्रकार उसके व्यवहार में परोपकार, सहानुभूति, सदयता तथा पर दुखकातरता जैसे मूल्य उभरकर सामने आते हैं।
यदि में सुनील की जगह होता तो लेखिका को हर प्रकार से मदद करने का आश्वासन देता। उसके लिए काम तलाशने का काम पहली प्राथमिकता के आधार पर करता। काम न मिलने तक मैं लेखिका के समक्ष आर्थिक मदद का भी प्रस्ताव रखता। काम मिलने पर उसकी पहचान की जिम्मेदारी मैं स्वयं लेता।
इस गद्यांश में बेरोजगारी की समस्या की झलक मिलती है। इसे दूर करने के लिए मैं अनपढ़ों में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करता तथा लोगों की शिल्प प्रशिक्षण लेने की प्रेरणा देता।
(ख) मैं इसी तरह रोज सबेरे आती और दोपहर तक सारा काम खत्म कर चली जाती। बीच-बीच में साहब मेरे बारे में इधर-उधर की बातें पूछ लेते। एक दिन उन्होंने मेरे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा तो मैंने कहा, ‘मैं तो पढ़ाना चाहती हूँ लेकिन वैसा सुयोग कहाँ है, फिर भी चेष्टा तो करूंगी ही बच्चों के लिए। उन्होंने एक दिन बुलाकर फिर कहा, तुम अपने लड़के और लड़की को लेकर आना। यहाँ एक छोटा-सा स्कूल है। मैं वहाँ बोल दूँगा। तुम रोज बच्चों को वहाँ छोड़ देना और घर जाते समय अपने साथ ले जाना। मैं अब बच्चों को साथ लेकर आने लगी। उन्हें स्कूल में छोड़, घर आकर अपने काम में लग जाती। स्कूल से बच्चे जब मेरे पास आते तो साहब कुछ-न-कुछ उन्हें खाने को देते।
प्रश्न

शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा की ओर मोड़ने के लिए आप क्या क्या करना चाहेंगे?
‘आज बच्चों का अनपढ़ रहना कल के समाज पर बोझ बन जाएगा।” इस कथन से आप कितना सहमत हैं और क्यों?
आप ‘साहब’ के व्यक्तित्व के किन-किन मूल्यों को अपनाना चाहेंगे?
उत्तर –

शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा की ओर मोड़ने के लिए मैं-
(क) उनके माता-पिता की शिक्षा का महत्व समझाऊँगा।
(ख) सायंकाल में ऐसे बच्चों को एकत्रकर पढ़ाऊँगा।
(ग) शिक्षा से वंचित इन बच्चों को अपनी पुरानी कापियाँ, किताबें तथा अपने बचाए जेब खर्च से पेंसिल, कापियाँ तथा स्लेट आदि दूँगा।
(घ) समाज के धनाढ्य लोगों से ऐसे बच्चों की मदद के लिए आगे आने को कहूँगा।
‘आज बच्चों का अनपढ़ रहना कल के समाज पर बोझ बन जाएगा।” इस कथन से मैं पूर्णतया सहमत हूँ। अनपढ़ बच्चे अपने जीवन में कोई विशेष प्रशिक्षण प्राप्त नहीं कर पाएँगे। ऐसे में वे आजीवन मजदूर बनकर रह जाएँगे। उचित कौशल के अभाव में शायद वे अपराध की ओर कदम बढ़ा दें और समाज-देश के लिए अपना योगदान न दे सकें।
साहब’ के व्यक्तित्व से परोपकार, सदयता, दूसरों के जीवन में उजाला फैलाने जैसे मूल्यों को अपनाना चाहूगा।
(ग) मैं सवेरे उठकर बच्चों को खिला-पिलाकर रेडी करती और घर में ताला लगाकर उनके साथ निकल पड़ती। मैं एक ही कोठी में काम करते कैसे अपना काम चलाऊँगी और कैसे घर का किराया दूँगी, इस बात को लेकर लोग आपस में खूब बातें करते। मैं स्वयं भी चिंतित थी कि मुझे और दो-एक कोठियों में काम नहीं मिला तो इतने पैसों में गुजारा कैसे होगा। मैं रोज साहब से पूछती कि किसी ने उन्हें काम के बारे में कुछ बताया क्या। वह मेरा प्रश्न और कोई बात कर टाल देते लेकिन उन्हें देखकर मुझे लगता जैसे वह नहीं चाहते कि मैं कहीं और भी काम करूं। शायद वह सोचते रहे हों कि मुझसे वह सब होगा नहीं और हेागा भी तो उससे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई ठीक से नहीं चल पाएगी। शायद इसीलिए उन्होंने एक दिन हठात् मुझसे पूछा, बेबी, महीने में तुम्हारा कितना खर्चा हो जाता है? शरम से मैं कुछ नहीं बोली और उन्होंने भी दुबारा नहीं पूछा।
प्रश्न

‘साहब’ की जगह आप होते तो लेखिका को अन्यत्र काम करने के प्रोत्साहित करते या नहीं और क्यों? 2
साहब का व्यक्तित्व समाज के लिए आप कितना प्रेरक मानते हैं और क्यों? 2
आप लेखिका की परिस्थितियों में रह रहे होते तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के प्रति क्या दृष्टिकोण रखते? और क्यों? 1
उत्तर –

यदि मैं ‘साहब’ की जगह होता तो लेखिका को अन्यत्र काम करने के लिए प्रोत्साहित न करता, क्योंकि समाज में अकेली रह रही औरत के प्रति कुछ लोगों का दृष्टिकोण अच्छा नहीं होता। ऐसे लोग इस तरह की औरतों से अनुचित फायदा का अवसर खोजते रहते हैं।
मैं ‘साहब’ के व्यक्तित्व को समाज के लिए प्रेरणादायक मानता हूँ. क्योंकि उन्होंने अपने घर में काम करने वाली को भरपूर सम्मान दिया और उसकी मदद की। उन्होंने अपने अनुभव के कारण ही लेखिका को अन्यत्र काम करने से मना ही नहीं किया वरन् लेखिका के सारे खचों का भी ध्यान रखते थे।
यदि मैं लेखिका जैसी परिस्थितियों में जी रहा होता मैं भी अपने बच्चों की शिक्षा का समुचित प्रबंध करने के लिए चिंतित रहता, क्योंकि अनपढ़ बच्चे बाद में समाज पर बोझ साबित होते हैं।
(घ) देखो बेबी, तुम समझो कि मैं तुम्हारा बाप, भाई, माँ, बंधु, सब कुछ हूँ। यह कभी मत सोचना कि यहाँ तुम्हारा कोई नहीं है। तुम अपनी सारी बातें मुझे साफ-साफ बता सकती हो, मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा। थोड़ा रुककर उन्होंने फिर कहा, देखो, मेरे बच्चे मुझे तातुश कहते हैं, तुम भी मुझे वही कहकर बुला सकती हो। उस दिन से मैं उन्हें तातुश कहने लगी। मैं तातुश कहकर उन्हें बुलाती तो वह बहुत खुश होते और कहते, तुम मेरी लड़की जैसी हो। इस घर की लड़की हो। कभी यह मत सोचना कि तुम परायी हो। वहाँ कोई भी मेरे साथ पराये जैसा व्यवहार नहीं करता। तातुश के तीन लड़के थे। उस समय तक मैंने एक ही को देखा था और वह उनका सबसे छोटा लड़का था। उसके मुँह में जैसे जबान ही नहीं थी।
प्रश्न

तातुश का व्यवहार वर्तमान समय में और भी प्रासंगिक हो जाता है। इस बारे में आपकी क्या राय है? 2
यदि आप तातुश की जगह होते तथा कहानी की अन्य परिस्थितियाँ वही होती तो आप क्या करते? 2
तातुश के व्यक्तित्व से आप किन-किन गुणों को अपनाना चाहेंगे? 1
उत्तर –

वर्तमान समय में जब विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रही स्त्रियों के प्रति समाज के कुछ लोगों की सोच स्वस्थ नहीं है, ऐसे में तातुश ने लेखिका को अपने परिवार की सदस्या की तरह रखा और उसकी हर प्रकार से मदद करते हुए सम्मान दिया। उनका यह व्यवहार आज और भी प्रासंगिक हो जाता है।
यदि मैं तातुश की जगह होता तो तातुश की तरह ही नारी जाति का सम्मान करता तथा लेखिका को भरपूर मदद करता। मैं लेखिका की भावनाओं का सम्मान करता और उसके बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करता।
मैं तातुश के व्यक्तित्व से नारी जाति का सम्मान करने की भावना, परोपकार, सदयता तथा सहानुभूति जैसे गुणों को अपनाना चाहुँगा।
(ड) किताब पढ़ना मुझे बहुत अच्छा लगता। कुछ दिनों बाद तातुश ने एक दिन पूछा, तुम जो किताब ले गई थीं उसे ठीक से पढ़ तो रही हो? मैंने हाँ कहा तो वह बोले, मैं तुम्हें एक चीज दे रहा हूँ, तुम उसका इस्तेमाल करना। समझना कि वह भी मेरा ही एक काम है। मैंने पूछा, कौन-सी चीज? तातुश ने अपनी लिखने की टेबिल के ड्रार से एक पेन और कॉपी निकाली और बोले, इस कॉपी में तुम लिखना। लिखने को तुम अपनी जीवन-कहानी भी लिख सकती हो। होश सँभालने के बाद से अब तक की जितनी भी बातें तुम्हें याद आएँ सब इस कॉपी में रोज थोड़ा-थोड़ा लिखना। पेन और कॉपी हाथ में लिए मैं सोचने लगी कि इसका तो कोई ठिकाना नहीं कि जो लिखूंगी वह कितना गलत या सही होगा। तातुस ने पूछा, क्यों, क्या हुआ? क्या सोचने लगी? मैं चौंक पड़ी। फिर बोली, सोच रही थी कि लिख सकूंगी या नहीं। वह बोले, जरूर लिख सकोगी। लिख क्यों नहीं सकोगी! जैसा बने वैसा लिखना।
प्रश्न

तातुश दवारा लेखिका को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करने को आप कितना उचित मानते हैं और क्यों?
आपके आसपास भी ऐसे बच्चे होंगे जिनकी पढ़ाई-लिखाई छूट चुकी होगी, ऐसे बच्चों की पढ़ाई के लिए आप क्या-क्या मदद कर सकते हैं?
तातुश के व्यक्तित्व से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर –

तातुश द्वारा लेखिका को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करने को मै पूर्णतया उचित मानता हूँ। तातुश ने अपने घर में काम करने वाली महिला की लेखन अभिरुचि को पहचाना और प्रोत्साहित किया, जिसके फलस्वरूप उसका लेखिका वाला रूप समाज के सम्मुख आ सका।
हमारे आसपास भी अनेक ऐसे बच्चे हैं जिनकी पढ़ाई प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण छूट चुकी है। ऐसे बच्चों की मैं हर संभव मदद करूंगा और उन्हें पुन: पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करूंगा और शिक्षा का महत्व समझाऊँगा। उन्हें शाम को कुछ समय पढ़ाऊँगा और निकटवर्ती पाठशाला में प्रवेश दिलाऊँगा।
तातुश के व्यक्तित्व से हमें दूसरों की मदद करने की प्रेरणा, शिक्षा के प्रति बच्चों को जागरूक बनाने, सहृदय बनने, दूसरों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैलाने की प्रेरणा मिलती है।
(च) जब मेरे स्वामी के सामने वहाँ के लोगों के मुँह बंद नहीं होते थे तो यहाँ तो बच्चों को लेकर मैं अकेली थी! यहाँ तो वैसी बातें और भी सुननी पड़तीं। मैं काम पर आती-जाती तो आस-पास के लोग एक-दूसरे को बताते कि इस लड़की का स्वामी यहाँ नहीं रहता है, यह अकेली ही भाड़े के घर में बच्चों के साथ रहती है। दूसरे लोग यह सुनकर मुझसे छेड़खानी करना चाहते। वे मुझसे बातें करने की चेष्टा करते और पानी पीने के बहाने मेरे घर आ जाते। मैं अपने लड़के से उन्हें पानी पिलाने को कह कोई बहाना बना बाहर निकल आती। इसी तरह मैं जब बच्चों के साथ कहीं जा रही होती तो लोग जबरदस्ती न जाने कितनी तरह की बातें करते, कितनी सीटियाँ मारते, कितने ताने मारते! लेकिन मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं उनसे बचकर निकल जाती। तातुश के यहाँ जब पहुँचती और वह बताते कि उनके किसी बंधु ने उनसे फिर मेरे पढ़ाई-लिखाई के बारे में पूछा है तो खुशी में मैं वह सब भूल जाती जो रास्ते में मेरे साथ घटता।
प्रश्न

आप समाज में अकेली रहने वाली महिलाओं के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण तथा सम्मान की भावना प्रगाढ़ करने के लिए युवाओं को क्या सुझाव देंगे? 2
यदि आप तातुश की जगह होते और कहानी की अन्य परिस्थितियाँ वही होती तो आप क्या करते? 2
आपके विचार से तातुश लेखिका को पढ़ने-लिखने के लिए इतना प्रोत्साहित क्यों करते थे? 1
उत्तर –

समाज में अकेली रहने वाली महिलाओं के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण और सम्मान की भावना प्रगाढ़ करने के लिए मैं युवाओं से संयमित एवं मर्यादित व्यवहार करने का अनुरोध करूंगा। उन्हें नारी की महत्ता से भी अवगत कराऊँगा तथा संस्कार एवं नैतिक मूल्यों का ज्ञान कराऊँगा।
यदि मैं तातुश की जगह होता तो लेखिका को जिस तरह तातुश ने प्रोत्साहित करके उसके अंदर छिपी प्रतिभा को निखारा उसी तरह मैं भी लेखिका को पढ़ने-लिखने का पर्याप्त अवसर देता। उसे काम करने वाली महिला मात्र न मानकर उसके घर की सदस्य जैसा व्यवहार करता।
मेरे विचार से तातुश को जिंदगी का अनुभव था। वे जानते थे कि शिक्षा से व्यक्ति का जीवन, रहन-सहन बदल जाता है तथा व्यक्ति अधिक सभ्य एवं समाजोपयोगी नागरिक बनता है। इसीलिए वे लेखिका को इतना पढ़ने-लिखने के लिए प्रोत्साहित करते थे।



 


Thursday 3 December 2020

घर की याद-श्रीभवानी प्रसाद मिश्र

घर की याद-श्रीभवानी प्रसाद मिश्र


कवि परिचय


जीवन परिचय-भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 1913 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में हुआ। इन्होंने जबलपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इनका हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषाओं पर अधिकार था। इन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया। फिर वे कल्पना पत्रिका, आकाशवाणी व गाँधी जी की कई संस्थाओं से जुड़े रहे। इनकी कविताओं में सतपुड़ा-अंचल, मालवा आदि क्षेत्रों का प्राकृतिक वैभव मिलता है। इन्हें साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान, दिल्ली प्रशासन का गालिब पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी साहित्य व समाज सेवा के मद्देनजर भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया। इनका देहावसान 1985 ई. में हुआ।

 रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

सतपुड़ा के जंगल, सन्नाटा, गीतफ़रोश, चकित है दुख, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, अनाम तुम आते हो, इदं न मम् आदि। गीतफ़रोश इनका पहला काव्य संकलन है। गाँधी पंचशती की कविताओं में कवि ने गाँधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की है।

काव्यगत विशेषताएँ-सहज लेखन और सहज व्यक्तित्व का नाम है-भवानी प्रसाद मिश्र। ये कविता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। गाँधीवाद में इनका अखंड विश्वास था। इन्होंने गाँधी वाडमय के हिंदी खंडों का संपादन कर कविता और गाँधी जी के बीच सेतु का काम किया। इनकी कविता हिंदी की सहज लय की कविता है। इस सहजता का संबंध गाँधी के चरखे की लय से भी जुड़ता है, इसलिए उन्हें कविता का गाँधी भी कहा गया है। इनकी कविताओं में बोलचाल के गद्यात्मक से लगते वाक्य-विन्यास को ही कविता में बदल देने की अद्भुत क्षमता है। इसी कारण इनकी कविता सहज और लोक के करीब है।

पढ़ने के लिए-


कविता का सारांश

प्रस्तुत कविता में घर के मर्म का उद्घाटन है। कवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है। कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते हैं। घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय संवेदना है। सावन के बादलों को देखकर कवि को घर की याद आती है। वह घर के सभी सदस्यों को याद करता है। उसे अपने भाइयों व बहनों की याद आती है। उसकी बहन भी मायके आई होगी। कवि को अपनी अनपढ़, पुत्र के दुख से व्याकुल, परंतु स्नेहमयी माँ की याद आती है। वह अनपढ़ है इसलिए पत्र भी नहीं लिख पाती है।

कवि को अपने पिता की याद आती है जो बुढ़ापे से दूर हैं। वे दौड़ सकते हैं, खिलखिलाते हैं। वे मौत या शेर से नहीं डरते। उनकी वाणी में जोश है। आज वे गीता का पाठ करके, दंड लगाकर जब नीचे परिवार के बीच आए होंगे, तो अपने पाँचवें बेटे को न पाकर रो पड़े होंगे। माँ ने उन्हें समझाया होगा। 

कवि सावन से निवेदन करता है कि तुम खूब बरसो, किंतु मेरे माता-पिता को मेरे लिए दुखी न होने देना। उन्हें मेरा संदेश देना कि मैं जेल में खुश हूँ। मुझे खाने-पीने की दिक्कत नहीं है। मैं स्वस्थ हूँ। उन्हें मेरी सच्चाई मत बताना कि मैं निराश, दुखी व असमंजस में हूँ। हे सावन! तुम मेरा संदेश उन्हें देकर धैर्य बँधाना। 

इस प्रकार कवि ने घर की अवधारणा का चित्र प्रस्तुत किया है।


व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1.


आज पानी गिर रहा है, 

बहुत पानी गिर रहा है, 

रात भर गिरता रहा है, 

प्राण-मन घिरता रहा है, 

बहुत पानी गिर रहा हैं,

घर नजर में तिर रहा है, 

घर कि मुझसे दूर है जो,

घर खुशी का पूर हैं जो,


घर कि घर में चार भाई,

मायके में बहिन आई,

बहिन आई बाप के घर,

हाय रे परिताप के घर।

घर कि घर में सब जुड़े हैं,

सब कि इतने कब जुड़े हैं,

चार भाई चार बहिन,

भुजा भाई प्यार बहिन,


शब्दार्थ–

गिर रहा-बरसना। 

प्राण-मन धिरना-प्राणों और मन में छा जाना। 

तिरना-तैरना। 

नज़र-निगाह। 

खुशी का पूर-खुशी का भंडार। 

परिताप-कष्ट।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।

व्याख्या-कवि बताता है कि आज बहुत तेज बारिश हो रही है। रातभर वर्षा होती रही है। ऐसे में उसके मन और प्राण घर की याद से घिर गए। बरसते हुए पानी के बीच रातभर घर कवि की नजरों में घूमता रहा। उसका घर बहुत दूर है, परंतु वह खुशियों का भंडार है। उसके घर में चार भाई हैं। बहन मायके में यानी पिता के घर आई है। यहाँ आकर उसे दुख ही मिला, क्योंकि उसका एक भाई जेल में बंद है। घर में आज सभी एकत्र होंगे। वे सब आपस में जुड़े हुए हैं। उसके चार भाई व चार बहने हैं। चारों भाई भुजाएँ हैं तथा बहनें प्यार हैं। भाई भुजा के समान कर्मशील व बलिष्ठ हैं तथा बहनें स्नेह की भंडार हैं।


विशेष-


सावन के महीने का स्वाभाविक वर्णन है।

घर की याद आने के कारण स्वाभाविक अलंकार है।

‘पानी गिर रहा है’ में यमक अलंकार तथा आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

‘घर नजर में तिर रहा है’ में चाक्षुष बिंब है।

खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

‘भुजा भाई’ में उपमा व अनुप्रास अलंकार हैं।

प्रश्न शैली का सुंदर प्रयोग है।

संयुक्त परिवार का आदर्श उदाहरण है।


अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


‘पानी गिरने’ से कवि क्या कहना चाहता है?

बरसात से कवि के हृदय पर क्या प्रभाव हुआ?

‘भुजा भाई प्यार बहिनें’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

मायके में आई बहन को क्या कष्ट हुआ होगा?

उत्तर –


कवि ने पानी गिरने के दो अर्थ दिए हैं। पहले अर्थ में यहाँ वर्षा हो रही है। दूसरे अर्थ में, बरसात को देखकर कवि को घर की याद आती है तथा इस कारण उसकी आँखों से आँसू बहने लगे हैं।

बरसात के कारण कवि को अपने घर की याद आ गई। वह स्मृतियों में खो गया। कारागार में वह अकेलेपन के कारण दुखी है। वह भावुक होकर रोने लगा।

कवि ने भाइयों को भुजाओं के समान शक्तिशाली, कर्मशील व बलिष्ठ बताया है। वे एक-दूसरे के गरीबी व सहयोगी हैं। उसकी बहनें स्नेह का भंडार हैं।

सावन के महीने में ससुराल से बहन मायके आई। वहाँ सबको देखकर वह खुश होती, परंतु बड़े भाई के कारागार में बंद होने के कारण वह दुखी है।

2.


और माँ बिन-पढ़ी मोरी,

दु:ख में वह गढ़ी मेरी 

माँ कि जिसकी गोद में सिर, 

रख लिया तो दुख नहीं फिर,

माँ कि जिसकी स्नेह-धारा, 

का यहाँ तक भी पसारा, 

उसे लिखना नहीं आता, 

जो कि उसका पत्र पाता।


पिता जी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

जो अभी भी दौड़ जाएँ

जो अभी भी खिलखिलाएँ,

मौत के आगे न हिचकें,

शर के आगे न बिचकें,

बोल में बादल गरजता,

काम में झझ लरजता,


शब्दार्थ–

गढ़ी-डूबी। 

स्नेह-प्रेम। 

पसारा-फैलाव। 

पत्र-चिट्ठी। 

व्यापा-फैला हुआ। 

खिलखिलाएँ-खुलकर हँसना। 

हिचकें-संकोच करना। 

बिचकें-डरें। 

बोल-आवाज़। 

झंझा-तूफ़ान। 

लरजता-काँपता।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है। इस काव्यांश में पिता व माँ के बारे में बताया गया है।

व्याख्या-सावन की बरसात में कवि को घर के सभी सदस्यों की याद आती है। उसे अपनी माँ की याद आती है। उसकी माँ अनपढ़ है। उसने बहुत कष्ट सहन किया है। वह दुखों में ही रची हुई है। माँ बहुत स्नेहमयी है। उसकी गोद में सिर रखने के बाद दुख शेष नहीं रहता अर्थात् दुख का अनुभव नहीं होता। माँ का स्नेह इतना व्यापक है कि जेल में भी कवि उसको अनुभव कर रहा है। वह लिखना भी नहीं जानती। इस कारण उसका पत्र भी नहीं आ सकता। कवि अपने पिता के बारे में बताता है कि वे अभी भी चुस्त हैं। बुढ़ापा उन्हें एक क्षण के लिए भी आगोश में नहीं ले पाया है। वे आज भी दौड़ सकते हैं तथा खूब खिल-खिलाकर हँसते हैं। वे इतने साहसी हैं कि मौत के सामने भी हिचकते नहीं हैं तथा शेर के आगे डरते नहीं है। उनकी वाणी में ओज है। उसमें बादल के समान गर्जना है। जब वे काम करते हैं तो उनसे तूफ़ान भी शरमा जाता है अर्थात् वे तेज गति से काम करते हैं।


विशेष–


माँ के स्वाभाविक स्नेह तथा पिता के साहस व जीवनशैली का सुंदर व स्वाभाविक वर्णन है।

माँ की गोद में सिर रखने से चाक्षुष बिंब साकार हो उठता है।

पिता के वर्णन में वीर रस का आनंद मिलता है।

‘अभी भी’ की आवृत्ति में अनुप्रास अलंकार है।

‘बोल में बादल गरजता’ तथा ‘काम में झंझा लरजता’ में उपमा अलंकार है।

खड़ी बोली है।

भाषा सहज व सरल है।


अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


माँ के बारे में कवि क्या बताता है?

कवि को माँ का पत्र क्यों नहीं मिल पाता?

कवि के पिता की चार विशेषताएँ बताइए।

‘पिता जी को बुढ़ापा नहीं व्यापा’-आशय स्पष्ट करें।

उत्तर –


माँ के बारे में कवि बताता है कि वह अपने बेटे से बिछड़ने के कारण दुखों में रची हुई है। वह निरक्षर है। वह बच्चों से बहुत स्नेह करती है।

कवि को माँ का पत्र इसलिए नहीं मिल पाता, क्योंकि वह अनपढ़ है। निरक्षर होने के कारण वह पत्र भी नहीं लिख सकती।

कवि के पिता की चार विशेषताएँ हैं-

(क) उन पर बुढ़ापे का प्रभाव नहीं है।

(ख) वे खुलकर हँसते हैं।

(ग) वे दौड़ लगाते हैं।

(घ) उनकी आवाज़ में गर्जना है।

कवि अपने पिता के विषय में बताता है कि वे सदैव हँसते रहते हैं, व्यायाम करते हैं। वे ज़िंदादिल हैं तथा मौत से नहीं घबराते। ये सभी लक्षण युवावस्था के हैं। अत: कवि के पिता जी पर बुढ़ापे का कोई असर नहीं है।

3.


आज गीता पाठ करके,

दंड दो सौ साठ करके,

खूब मुगदर हिला लेकर, 

मूठ उनकी मिला लेकर,

जब कि नीचे आए होंगे,

नैन जल से छाए होंगे, 

हाय, पानी गिर रहा है, 

घर नजर में तिर रहा हैं,


चार भाई चार बहिनें

भुजा भाई प्यार बहिनें

खेलते या खड़े होंगे,

नजर उनकी पड़े होंगे।

पिता जी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

रो पड़े होंगे बराबर,

पाँचवें का नाम लेकर,


शब्दार्थ–

दंड-व्यायाम का तरीका। 

मुगदर-व्यायाम करने का उपकरण। 

मूठ-पकड़ने का स्थान। 

नैन-नयन। 

तिर-तिरना। 

क्षण-पल। 

व्यापा-फैला।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।

व्याख्या-कवि अपने पिता के विषय में बताता है कि आज वे गीता का पाठ करके, दो सौ साठ दंड-बैठक लगाकर, मुगदर को दोनों हाथों से हिलाकर व उनकी मूठों को मिलाकर जब वे नीचे आए होंगे तो उनकी आँखों में पानी आ गया होगा। कवि को याद करके उनकी आँखें नम हो गई होंगी। कवि को घर की याद सताती है। घर में चार भाई व चार बहनें हैं जो सुरक्षा व प्यार में बँधे हैं। उन्हें खेलते या खड़े देखकर पिता जी को पाँचवें की याद आई होगों और वे जिन्हें कभी बुढ़ापा नहीं व्यापा था, कवि का नाम लेकर रो पड़े होंगे।


विशेष–


पिता के संस्कारी रूप, स्वस्थ शरीर व भावुकता का वर्णन है।

दृश्य बिंब है।

संयुक्त परिवार का आदर्श रूप प्रस्तुत है।

भाषा सहज व सरल है।

‘भुजा भाई’ में उपमा व अनुप्रास अलंकार है।

खड़ी बोली में प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति है।

शांत रस है।

मुक्त छंद है।


अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


कवि अपने पिता की दिनचर्या के बारे में क्या बताता है?

पिता की औाँखें भीगने का क्या कारण रहा होगा?

कवि ने भाई-बहन के बारे में क्या बताया है?

कवि के पिता क्यों रोने लगे होंगे?

उत्तर –


कवि के पिता गीता का पाठ करते हैं तथा दो सौ साठ दंड लगाकर मुगदर हिलाते हैं। फलस्वरूप उनका शरीर मज़बूत  है तथा गीता पाठ के कारण मन साहसी हो गया है।

कवि के पिता गीता पाठ व व्यायाम करके नीचे आए होंगे तो उन्हें अपने बड़े पुत्र भवानी की याद आई होगी। वह उस समय जेल में था। इस वियोग के कारण उनकी आँखों में पानी आ गया होगा।

कवि ने बताया कि उसके चार भाई व चार बहनें हैं, जो इकट्ठे रहते हैं।

कवि के पिता ने जब सभी भाई-बहनों को खड़े या खेलते देखा होगा तो उन्हें पाँचवें पुत्र भवानी की याद आई होगी। वे उसका नाम लेकर रो पड़े होंगे।

4.


पाँचवाँ मैं हूँ अभागा, 

जिसे सोने पर सुहागा, 

पिता जी कहते रहे हैं, 

प्यार में बहते रह हैं,


आज उनके स्वर्ण बेटे,

लगे होंगे उन्हें हेटे,

क्योंकि मैं उन पर सुहागा

बाँधा बैठा हूँ अभागा,


शब्दार्थ–

अभागा-भाग्यहीन। 

सोने पर सुहागा-वस्तु या व्यक्ति का दूसरों से बेहतर होना। 

प्यार में बहना-भाव-विभोर होना। 

स्वर्ण-सोना। 

हेटे—तुच्छ।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है, तो वह अपनी पीड़ा व्यक्त करता है।

वह पिता के प्यार के बारे में बताता है।

व्याख्या-कवि कहता है कि वह उनका भाग्यहीन पाँचवाँ पुत्र है। वह उनके साथ नहीं है, परंतु पिता जी को सबसे प्यारा है। जब भी कभी कवि के बारे में चर्चा चलती है तो वे भाव-विभोर हो जाते हैं। आज उन्हें अपने सोने जैसे बेटे तुच्छ लगे होंगे, क्योंकि उनका सबसे प्यारा बेटा उनसे दूर जेल में बैठा है। .


विशेष–


पिता को भवानी से बहुत लगाव था।

‘सोने पर सुहागा’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।

भाषा सहज व सरल है।

खड़ी बोली है।


अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


कवि स्वयं को क्या कहता है? तथा क्यों?

कवि स्वयं को अभागा क्यों कहता है?

पिता अपने पाँचों बेटों को क्या मानते हैं?

पिता को आज अपने बेटे हीन (हेटे) क्यों लग रहे होंगे?

उत्तर –


कवि स्वयं को अभागा कहता है, क्योंकि वह परिवार के सदस्यों-भाइयों, बहनों, और वृद्ध माता-पिता के सान्निध्य से दूर है। उसे उनके प्यार की कमी खल रही है।

कवि स्वयं को इसलिए अभागा कहता है, क्योंकि वह कारागार में बंद है। सावन के अवसर पर सारा परिवार इकट्ठा हुआ है और वह उनसे दूर है।

पिता अपने चार बेटों को सोने के समान तथा पाँचवें को सुहागा मानते हैं।

पिता अपने चार बेटों को सोने के समान मानते थे तथा पाँचवें को सुहागा। आज उनका पाँचवाँ बेटा जो,अपने छोटे बहन-भाइयों के गुणों को निखारता रहा है,जो उन्हें सबसे प्यारा लगता है, कारागार में उनसे दूर बैठा है। अत: उसके बिना चारों बेटे उन्हें हीन लग रहे होंगे।

5.


और माँ ने कहा होगा,

दुख कितना बहा होगा, 

आँख में किसलिए पानी 

वहाँ अच्छा है भवानी 

वह तुम्हारी मन समझकर,

और अपनापन समझकर,


गया है सो ठीक ही है,

यह तुम्हारी लीक ही है,

पाँव जो पीछे हटाता,

कोख को मेरी लजाता,

इस तरह होआो न कच्चे,

रो पड़गे और बच्चे,


शब्दार्थ–

लीक-परंपरा। 

पाँव पीछे हटाना-कर्तव्य से हटना। 

कोख को लजाना-माँ को लज्जित करना। 

कच्चे-कमज़ोर।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई है। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है। ऐसे में वह अपनी पीड़ा कविता के माध्यम से व्यक्त करता है। इस काव्यांश में कवि की माँ पिता को समझाती है।

व्याख्या-माँ ने पिता जी को समझाया होगा। ऐसा करते समय उसके मन में भी बहुत दु:ख बहा होगा। वह कहती है कि भवानी जेल में बहुत अच्छा है। तुम्हें आँसू बहाने की जरूरत नहीं है। वह आपके दिखाए मार्ग पर चला है और इसे अपना उद्देश्य बनाकर गया है। यह ठीक है। यह तुम्हारी ही परंपरा है। यदि वह आगे बढ़कर वापस आता तो यह मेरे मातृत्व के लिए लज्जा की बात होती। अत: तुम्हें अधिक कमजोर होने की जरूरत नहीं है। यदि तुम रोओगे तो बच्चे भी रोने लगेंगे।


विशेष–


माँ द्वारा धैर्य बँधाने का स्वाभाविक वर्णन है।

लीक पर चलना, पाँव पीछे हटाना, कोख लजाना, कच्चा होना आदि मुहावरों का साभिप्राय प्रयोग है।

संवाद शैली है।

खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


माँ ने भवानी के पिता को क्या सांत्वना दी?

‘वह तुम्हारा मन समझकर”-का आशय स्पष्ट कीजिए।

माँ की कोख कवि के किस कार्य से-लज्जित होती?

‘यह तुम्हारी लीक ही है’-का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –


माँ ने भवानी के पिता को कहा कि भावुक होकर आँखें नम मत करो, वह जेल में ठीक है। भवानी तुम्हारी मन की बात समझकर ही आज़ादी की लड़ाई में कूदा है तथा तुम्हारी परंपरा का निर्वाह किया है। अत: दुख जताने की आवश्यकता नहीं है।

इसका अर्थ है कि भवानी के पिता देशभक्त थे। वह ब्रिटिश सत्ता को खत्म करना चाहते थे। इसी भाव को समझकर भवानी ने स्वाधीनता आंदोलन में भाग लिया।

यदि कवि देश के सम्मान व रक्षा के कार्य से अपने कदम पीछे हटा लेता तो माँ की कोख लजा जाती।

आशय है कि माँ पिता जी को समझाती है कि भवानी तुम्हारे ही आदशों पर चलकर जेल गया है। तुम भी भारत । माता को परतंत्र नहीं देख सकते हो। वह भी अंग्रेजी शासन का विरोध करते हुए जेल गया है। यह आपकी ही तो परंपरा है।

6.


पिता जी ने कहा होगा, 

हाय, कितना सहा होगा, 

कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ 

धीर मैं खोता, कहाँ हूँ 

हे सजील हरे सावन, 

हे कि मरे पुण्य पावन,


तुम बरस लो वे न बरसें

पाँचवें को वे न तरसें,

मैं मजे में हूँ सही है,

घर नहीं हूँ बस यही है,

किंतु यह बस बड़ा बस हैं,

इसी बस से सब विरस हैं,


शब्दार्थ–

धीर खोना-धैर्य खोना। 

पुण्य पावन-अति पवित्र। 

बस- केवल। 

विरस-रसहीन, फीका।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है। ऐसे में वह अपनी पीड़ा कविता के माध्यम से व्यक्त करता है।

व्याख्या-माँ की बातें सुनकर पिता ने कहा होगा कि मैं रो नहीं रहा हूँ और न ही धैर्य खो रहा हूँ। यह बात कहते हुए उन्होंने सारी पीड़ा मन में समेटी होगी। कवि सावन को संबोधित करते हुए कहता है कि हे सजीले हरियाले सावन! तुम अत्यंत पवित्र हो। तुम चाहे बरसते रहो, परंतु मेरे माता-पिता की आँखों से आँसू न बरसें। वे अपने पाँचवें बेटे की याद करके दुखी न हों। वह मजे में है, इसमें कोई संदेह नहीं है। इसमें केवल इतना ही अंतर है कि मैं घर पर नहीं हूँ। वह घर के वियोग को मामूली मान रहा है, परंतु यह कोई साधारण घटना नहीं है। इस वियोग से मेरा जीवन दुखमय बन गया है। मैं अलगाव का नरक भोग रहा हूँ।


विशेष–


पिता की भावुकता का सजीव वर्णन है।

सावन को दूत बनाने की प्राचीन परंपरा को प्रयोग किया गया है।

संवाद शैली है।

‘पुण्य पावन’ में अनुप्रास अलंकार है।

‘बस’ शब्द में यमक अलंकार है। 

खड़ी बोली है।

मुक्त छद है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


माँ की बात पर पिता ने अपनी व्यथा को किस प्रकार छिपाने का प्रयास किया?

कवि ने किसे क्या कहा?

भवानी का जीवन विरस, क्यों है?

कवि सावन से अपने माता-पिता के लिए क्या कहता है?

उत्तर –


माँ की बात पर पिता ने कहा कि वह रो नहीं रहा है और न ही वह धैर्य खो रहा है। इस तरह उन्होंने अपनी व्यथा छिपाने का प्रयास किया।

कवि ने सावन को यह संदेश देने को कहा कि वह मज़े में है। घरवाले उसकी चिंता न करें। वह सिर्फ घर से दूर है।

भवानी का जीवन रसहीन है, क्योंकि वह घर से दूर है। पारिवारिक स्नेह के अभाव में वह स्वयं को अकेला महसूस कर रहा है।

कवि सावन से कहता है कि तुम चाहे जितना बरस लो, लेकिन ऐसा कुछ करो कि मेरे माता-पिता मेरे लिए न तरसें तथा आँसू न बहाएँ।

7.


किंतु उनसे यह न कहना,

उन्हें देते धीर रहना, 

उन्हें कहना लिख रहा हूँ,

उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ, 

काम करता हूँ कि कहना,

नाम करता हूँ कि कहना,

मत करो कुछ शोक कहना,


और कहना मस्त हूँ मैं,

कातने में व्यस्त हूँ मैं,

वजन सत्तर सेर मेरा,

और भोजन ढेर मरा,

कूदता हूँ खेलता हूँ,

दु:ख डटकर ठेलता हूँ,

यों न कहना अस्त हूँ मैं,


शब्दार्थ–

धीर-धैर्य। 

शोक-दुख। 

डटकर ठेलना- हटाना। 

मस्त-अपने में मग्न रहना। 

अस्त-निराश।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है। ऐसे में वह अपनी पीड़ा कविता के माध्यम व्यक्त करता है।

व्याख्या-कवि सावन से कहता है कि तुम मेरे माता-पिता से मेरे कष्टों के बारे में न बताना। तुम उन्हें धैर्य देते हुए यह कहना कि यह कहना जेल में भी पढ़ रहा है। साहित्य लिख रहा है। वह यहाँ काम करता है तथा परिवार, देश का नाम रोशन कर रहा है। उसे अनेक लोग चाहते हैं। उनसे शोक न करने की बात कहना। उन्हें यह भी बताना कि मैं यहाँ सुखी हूँ। मैं यहाँ सूत कातने में व्यस्त रहता हूँ। मेरा वजन सत्तर सेर है। मैं ढेर सारा भोजन करता हूँ, खेलता-कूदता हूँ तथा दुख को अपने नजदीक आने नहीं देता। मैं यहाँ मस्त रहता हूँ, परंतु उन्हें यह न कहना कि मैं डूबते सूर्य-सा निस्तेज हो गया हूँ।


विशेष–


कवि के संदेश का सुंदर वर्णन है।

सावन का मानवीकरण किया गया है।

‘कहना’ शब्द की आवृत्ति मनमोहक बनी है।

‘काम करता’, ‘कि कहना’ में अनुप्रास अलंकार है।

खड़ी बोली है।

‘डटकर ठेलना’, ‘अस्त होना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।

भाषा में प्रवाह है। 8. प्रसाद गुण है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


कवि कारागार की मानसिक यातना को क्यों छिपाना चाहता है?

यहाँ कौन किससे क्यों कह रहा है?

कवि अपने पुत्र धर्म का निर्वाह कैसे कर रहा है?

कवि जेल में कौन-कौन-सा कार्य करता है?

उत्तर –


कवि जेल की मानसिक यातनाओं को अपने माता-पिता से छिपाना चाहता है, ताकि उसके वृद्ध माता-पिता अपने पाँचवें बेटे के लिए चिंतित न हों।

यहाँ कवि सावन को संबोधित कर रहा है ताकि वह अपने माता-पिता को उसका संदेश दे सके।

कवि जेल में उदास है। उसे परिवार की याद आ रही है, फिर भी वह झूठ बोल रहा है; क्योंकि वह अपने परिजनों को दुखी नहीं करना चाहता। इस प्रकार कवि अपने पुत्र धर्म का निर्वाह कर रहा है।

कवि जेल में लिखता है, पढ़ता है, काम करता है, सूत कातता है तथा खेलता-कूदता है। इस प्रकार से कवि दुखों का डटकर मुकाबला करता है।

8.


हाय रे, ऐसा न कहना,

है कि जो वैसा न कहना, 

कह न देना जागता हूँ, 

आदमी से भागता हूँ 

कह न देना मौन हूँ मैं,

खुद न समझूं कौन हूँ मैं,


देखना कुछ बक न देना,

उन्हें कोई शक न देना,

हे सजीले हरे सावन,

हे कि मरे पुण्य पावन,

तुम बरस लो वे न बरसें,

पाँचवें को वे न तरसें। 


शब्दार्थ–

मौन-चुपचाप 

बक देना-फिज़ूल की बात कहना। 

शक-संदेह। 

पावन-पवित्र।

प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘घर की याद’ से लिया गया है। इसके रचयिता भवानी प्रसाद मिश्र हैं। यह कविता जेल प्रवास के दौरान लिखी गई। एक रात लगातार बारिश हो रही थी तो कवि को घर की याद आती है। ऐसे में वह अपनी पीड़ा कविता के माध्यम से व्यक्त करता है।

व्याख्या-कवि सावन को सावधान करते हुए कहता है कि मेरे परिजनों को मेरी सच्चाई न बताना। उन्हें यह न बताना कि मैं देर रात तक जागता रहता हूँ, आम व्यक्ति से दूर भागता हूँ मैं चुपचाप रहता हूँ। यह भी न बताना कि चिंता में डूबकर मैं स्वयं को भूल जाता हूँ। तुम सावधानी से बातें कहना। उन्हें कोई शक न होने देना कि मैं दुखी हूँ। हे सावन! तुम पुण्य कार्य में लीन हो, तुम स्वयं बरसकर धरती को प्रसन्न करो, परंतु मेरे माता-पिता की आँखों में आँसू न बहने देना, उन्हें मेरी याद न आने देना।


विशेष–


कवि अपनी व्यथा को अपने तक सीमित रखना चाहता है।

‘आदमी से भागता हूँ में कवि की पीड़ा का वर्णन है।

‘पाँचवें’ शब्द से अभिव्यक्त होने वाली करुणा मर्मस्पर्शी है।

सावन का मानवीकरण किया है।

‘सावन’ के लिए सजीले, हरे, पुण्य, पावन आदि विशेषणों का प्रयोग है।

‘बक’ व ‘शक’ शब्द भाषा को प्रभावी बनाते हैं।

‘पुण्य पावन’ में अनुप्रास अलंकार है।

खड़ी-बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।

संवाद शैली है।

प्रसाद गुण है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


कवि सावन से क्या आग्रह करता है? और क्यों?

कवि की वास्तविक दशा कैसी है?

कवि ने सावन को क्या उपमा दी है?

कवि सावन को क्या चेतावनी देता है?

उत्तर –


कवि सावन से आग्रह करता है कि वह उसके माता-पिता व परिजनों को उसकी वास्तविकता के बारे में न बताए ताकि वे अपने प्रिय पुत्र की दशा से दुखी न हों।

कवि निराश है। वह रातभर जागता रहता है। निराशा के कारण वह आदमी के संपर्क से दूर भागता है। वह चुप रहता है तथा स्वयं की पहचान भी भूल चुका है।

कवि ने सावन को ‘सजीले’, ‘हरे’, ‘पुण्य-पावन’ की उपमा दी है, क्योंकि वह सावन को संदेशवाहक बनाकर अपने माता-पिता तक संदेश भेजना चाहता है।

कवि सावन को चेतावनी देता है कि वह उसके परिजनों के सामने फिजूल में न बोले तथा कवि के बारे में सही तरीके से बताए ताकि उन्हें कोई शक न हो।

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न


1.


पिता जी जिनको बुढ़ापा,

एक क्षण भी नहीं व्यापा,

जो अभी भी दौड़ जाएँ

जो अभी भी खिलखिलाएँ,


मौत के आगे न हिचकें,

शर के आगे न बिचकें,

बोल में बादल गरजता,

काम में झंझा लरजता,


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।

उत्तर –


इस काव्यांश में कवि ने अपने पिता की विशेषताएँ बताई हैं। वे सहज स्वभाव के हैं तथा शरीर से स्वस्थ हैं। वे ज़िंदादिल हैं। उनकी आवाज में गंभीरता है तथा काम में तीव्रता है।

बोल, हिचकना, बिचकना, लरजना स्थानीय शब्दों के साथ मौत, शेर आदि विदेशी शब्दों का प्रयोग किया गया है।

चित्रात्मकता है।

वीर रस की अभिव्यक्ति है।

‘अभी भी’ की आवृति में अनुप्रास है।

‘बोल में बादल गरजता’ तथा ‘काम में झझा लरजता’ में उपमा अलंकार है।

खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

भाषा में प्रवाह है।

प्रसाद गुण है।



















कॉपी में करने के प्रश्न-

प्रश्न 1:

पानी के रात भर गिरने और प्राण-मन के घिरने में परस्पर क्या संबंध है?

उत्तर –

‘घर की याद’ का आरंभ इसी पंक्ति से होता है कि ‘आज पानी गिर रहा है। इसी बात को कवि कई बार अलग-अलग ढंग से कहता है-‘बहुत पानी गिर रहा है’, ‘रात भर गिरता रहा है। भाव यह है कि सावन की झड़ी के साथ-साथ ‘घर की यादों’ से कवि का मन भर आया है। प्राणों से प्यारे अपने घर को, एक-एक परिजन को, माता-पिता को याद करके उसकी आँखों से भी पानी गिर रहा है। वह कहता है कि ‘घर नज़र में तैर रहा है। बादलों से वर्षा हो रही है और यादों से घिरे मन का बोझ कवि की आँखों से बरस रहा है।


प्रश्न 2:

मायके आई बहन के लिए कवि ने घर को ‘परिताप का घर’ क्यों कहा है?

उत्तर –

कवि ने बहन के लिए घर को 'परिताप का घर' कहा है। बहन मायके में अपने परिवार वालों से मिलने के लिए खुशी से आती है। वह भाई-बहनों के साथ बिताए हुए क्षणों को याद करती है। घर पहुँचकर जब उसे पता चलता है कि उसका एक भाई जेल में है तो वह बहुत दुखी होती है। इस कारण कवि ने घर को 'परिताप का घर' कहा है।


प्रश्न 3:

पिता के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं को उकेरा गया है?

उत्तर –

कवि अपने पिता की निम्नलिखित विशेषताएँ बताता है –

1.उनके पिता को वृद्धावस्था कभी कमजोर नहीं कर पाई।

2.वे फुर्तीले हैं कि आज भी दौड़ लगा सकते हैं।

3.वे खिलखिलाकर हँस सकते हैं।

4.वे इतने उत्साही हैं कि मौत के सामने भी हिचकिचाते नहीं हैं।

5.उनमें इतना साहस है कि वे शेर के सामने भी भयभीत नहीं होंगे। उनकी आवाज़ मानो बादलों की गर्जना है।

6.हर काम को तूफ़ान की रफ़्तार से करने की उनमें अद्भुत क्षमता है।

7.वे गीता का पाठ करते हैं और आज भी 260 (दो सौ साठ) तक दंड पेलते हैं, मुगदर (व्यायाम करने का मज़बूत भारी लकड़ी का यंत्र) घुमाते हैं।

8. वे भावुक भी हैं।

प्रश्न 4:

निम्नलिखित पंक्तियों में ‘बस’ शब्द के प्रयोग की विशेषता बताइए-


मैं मज़े में हूँ सही है

घर नहीं हूँ बस यही है

किंतु यह बस बड़ा बस है।

इसी बस से सब विरस हैं।


उत्तर –

कवि ने बस शब्द का लाक्षणिक प्रयोग किया है। पहली बार के प्रयोग का अर्थ है कि वह केवल घर पर ही नहीं है। दूसरे प्रयोग का अर्थ है कि वह घर से दूर रहने के लिए विवश है। तीसरा प्रयोग उसकी लाचारी व विवशता को दर्शता है। चौथे बस से कवि के मन की व्यथा प्रकट होती है जिसके कारण उसके सारे सुख छिन गए हैं।


प्रश्न 5:

कविता की अंतिम 12 पंक्तियों को पढ़कर कल्पना कीजिए कि कवि अपनी किस स्थिति व मन:स्थिति को अपने परिजनों से छिपाना चाहता है?

उत्तर –

इन पंक्तियों में कवि स्वाधीनता आंदोलन का वह सेनानी है जो जेल की यातना झेलकर भी यातनाओं की जानकारी अपने परिवार के लोगों को इसलिए नहीं देना चाहता है क्योंकि इससे वे दुखी होंगे। कवि कहता है कि हे सावन ! उन्हें मत बताना कि मैं अस्त हूँ। यहाँ जैसा दुखदायी माहौल है उसकी जानकारी मेरे घरवालों को मत देना। उन्हें यह मत बताना कि मैं ठीक से सो भी नहीं पाता हूं और मनुष्य से भागता हूं। कहीं उन्हें यह मत बताना कि जेल की यातनाओं से मैं मौन हो गया हूं। मैं स्वयं यह नहीं समझ पा रहा कि मैं कौन हूं?  कहीं ऐसा न हो कि मेरे माता-पिता को शक हो जाए कि मैं दुखी हूँ और वे मेरे लिए रोने लगें । हे सावन! तुम बरस लो जितना तुम्हें बरसना है, पर मेरे माता-पिता को रोना न पड़े। अपने पाँचवें पुत्र के लिए वे न तरसें अर्थात् वे हर हाल में खुश रहें। कवि उन्हें ऐसा कोई संदेश नहीं देना चाहता जो उनके दुख का कारण बने।

प्रश्न 6:

‘घर की याद’ कविता का प्रतिपादय (मूलभाव) लिखिए।

उत्तर –

‘घर की याद’ कविता में घर के मर्म का उद्घघाटन है। कवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है। कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते हैं। घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय संवेदना है। सावन के बादलों को देखकर कवि को घर की याद आती है। वह घर के सभी सदस्यों को याद करता है। उसे अपने भाइयों व बहनों की याद आती है। उसकी बहन भी मायके आई होगी। कवि को अपनी अनपढ़, पुत्र के दुख से व्याकुल, परंतु स्नेहमयी माँ की याद आती है। वह सावन को दूत बनाकर अपने माता-पिता के पास अपनी कुशलक्षेम पहुँचाने का प्रयास करता है ताकि कवि के प्रति उनकी चिंता कम हो सके।


प्रश्न 7:

पिता कवि को ‘सोने पर सुहागा’ क्यों कहते हैं?

उत्तर –

पिता कवि से बहुत स्नेह करते थे। पिता की इच्छा से ही कवि ने स्वयं को देश-सेवा के लिए अर्पित किया था। जिसकी वजह से वह आज जेल में था। उसने परिवार का नाम रोशन किया। वह घर का बड़ा बेटा है,उसने अपने सोने जैसे भाइयों के गुणों को संवारा और निखारा है। इन कारणों से पिता ने कवि को सोने पर सुहागा कहा।


प्रश्न 8:

उम्र बड़ी होने पर भी पिता को बुढ़ापा क्यों नहीं छू पाया था?

उत्तर –

कवि के पिता की आयु अधिक थी, परंतु वे सरल स्वभाव के थे। निरंतर व्यायाम करते थे और दौड़ लगाते थे। वे खूब काम करते थे तथा निर्भय रहते थे। इस कारण उन्हें बुढ़ापा छू नहीं पाया था।


प्रश्न 9:

‘देखना कुछ बक न देना’ के स्थान पर ‘देखना कुछ कह न देना’ के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में क्या अंतर आ जाता?

उत्तर –

कवि यदि ‘बक’ शब्द के स्थान पर ‘कह’ शब्द रख देता तो कथन का विशिष्ट अर्थ समाप्त हो जाता। ‘बकना’ शब्द खीझ को प्रकट करता है। ‘कहना’ सामान्य शब्द है। अत: ‘बक’ शब्द अधिक सटीक है।

अक्क महादेवी

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