भक्तिन भाग-1
भक्तिन भाग-2
भक्तिन
श्रीमती महादेवी वर्मा
लेखिका परिचय
जीवन
परिचय-श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फ़रुखाबाद (उ०प्र०) में 1907 ई० में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर
के मिशन स्कूल में हुई थी। नौ वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया था। परंतु इनका
अध्ययन चलता रहा। 1929 ई० में इन्होंने
बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहा, परंतु महात्मा
गांधी के संपर्क में आने पर ये समाज-सेवा की ओर उन्मुख हो गई। 1932 ई० में इन्होंने इलाहाबाद से संस्कृत में
एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण कीं और प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना करके उसकी
प्रधानाचार्या के रूप में कार्य करने लगीं। मासिक पत्रिका ‘चाँद’ का भी इन्होंने कुछ समय तक संपादन-कार्य किया।
इनका कर्मक्षेत्र बहुमुखी रहा है। इन्हें 1952 ई० में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया
गया। 1954 ई० में ये साहित्य
अकादमी की संस्थापक सदस्या बनीं। 1960 ई० में इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति बनाया गया। इनके व्यापक
शैक्षिक, साहित्यिक और सामाजिक
कार्यों के लिए भारत सरकार ने 1956 ई० में इन्हें
पद्मभूषण से सम्मानित किया। 1983 ई० में ‘यामा’ कृति पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी
संस्थान ने भी इन्हें ‘भारत-भारती’
पुरस्कार से सम्मानित किया। सन 1987 में इनकी मृत्यु हो गई।
रचनाएँ – इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
काव्य-संग्रह –
नीहार, रश्मि, नीरजा, यामा, दीपशिखा।
संस्मरण –
अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ पथ के साथी, मेरा परिवार।
निबंध-संग्रह –
श्रृंखला की कड़ियाँ आपदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर।
साहित्यिक
विशेषताएँ – साहित्य सेविका
और समाज-सेविका दोनों रूपों में महादेवी वर्मा की प्रतिष्ठा रही है। महात्मा गाँधी
की दिखाई राह पर अपना जीवन समर्पित करके इन्होंने शिक्षा और समाज-कल्याण के
क्षेत्र में निरंतर कार्य किया। ये बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं। ये छायावाद के चार
स्तंभों में से एक हैं। इनकी चर्चा निबंधों और संस्मरणात्मक रेखाचित्रों के कारण
एक अप्रतिम गद्यकार के रूप में भी होती है। कविताओं में ये अपनी आंतरिक वेदना और
पीड़ा को व्यक्त करती हुई इस लोक से परे किसी और सत्ता की ओर अभिमुख दिखाई पड़ती
हैं, तो गद्य में इनका गहरा
सामाजिक सरोकार स्थान पाता है। इनकी श्रृंखला की कड़ियाँ कृति एक अद्वतीय रचना है
जो हिंदी में स्त्री-विमर्श की भव्य प्रस्तावना है। इनके संस्मरणात्मक रेखाचित्र
अपने आस-पास के ऐसे चरित्रों और प्रसंगों को लेकर लिखे गए हैं जिनकी ओर साधारणतया
हमारा ध्यान नहीं खिच पाता। महादेवी जी की मर्मभेदी व करुणामयी दृष्टि उन चरित्रों
की साधारणता में असाधारण तत्वों का संधान करती है। इस तरह इन्होंने समाज के
शोषित-पीड़ित तबके को अपने साहित्य में नायकत्व प्रदान किया है।
भाषा-शैली –
लेखिका ने अंतर्मन की अनुभूतियों का अंकन
अत्यंत मार्मिकता से किया है। इनकी भाषा में बनावटीपन नहीं है। इनकी भाषा में
संस्कृतनिष्ठ शब्दों की प्रमुखता है। इनके गद्य-साहित्य में भावनात्मक, संस्मरणात्मक, समीक्षात्मक, इत्तिवृत्तात्मक आदि अनेक शैलियों का रूप दृष्टिगोचर होता है। मर्मस्पर्शिता
इनके गद्य की प्रमुख विशेषता है।
पाठ का प्रतिपादय
एवं सारांश
प्रतिपादय-‘भक्तिन’ महादेवी जी का प्रसिद्ध संस्मरणात्मक रेखाचित्र है जो ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत
और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का दिलचस्प खाका खींचा है। महादेवी
के घर में काम शुरू करने से पहले उसने कैसे एक संघर्षशील, स्वाभिमानी और कर्मठ जीवन जिया, कैसे पितृसत्तात्मक मान्यताओं और छल-छद्म भरे समाज में अपने
और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती रही और हारकर कैसे ज़िंदगी की राह पूरी तरह
बदल लेने के निर्णय तक पहुँची, इसका संवेदनशील
चित्रण लेखिका ने किया है। साथ ही, भक्तिन लेखिका के
जीवन में आकर छा जाने वाली एक ऐसी परिस्थिति के रूप में दिखाई पड़ती है, जिसके कारण लेखिका के व्यक्तित्व के कई अनछुए
आयाम उद्घाटित होते हैं। इसी कारण अपने व्यक्तित्व का जरूरी अंश मानकर वे भक्तिन
को खोना नहीं चाहतीं। सारांश-लेखिका कहती है कि भक्तिन का कद छोटा व शरीर दुबला
था। उसके होंठ पतले थे। वह गले में कंठी-माला पहनती थी। उसका नाम लक्ष्मी था,
परंतु उसने लेखिका से यह नाम प्रयोग न करने की
प्रार्थना की। उसकी कंठी-माला को देखकर लेखिका ने उसका नाम ‘भक्तिन’ रख दिया।
सेवा-धर्म में वह हनुमान से स्पद्र्धा करती थी।
उसके अतीत के
बारे में यही पता चलता है कि वह ऐतिहासिक झूसी के गाँव के प्रसिद्ध अहीर की इकलौती
बेटी थी। उसका लालन-पालन उसकी सौतेली माँ ने किया। पाँच वर्ष की उम्र में इसका
विवाह हैंडिया गाँव के एक गोपालक के पुत्र के साथ कर दिया गया था। नौ वर्ष की उम्र
में गौना हो गया। भक्तिन की विमाता ने उसके पिता की मृत्यु का समाचार देर से भेजा।
सास ने रोनेपीटने के अपशकुन से बचने के लिए उसे पीहर यह कहकर भेज दिया कि वह बहुत
दिनों से गई नहीं है। मायके जाने पर विमाता के दुव्र्यवहार तथा पिता की मृत्यु से
व्यथित होकर वह बिना पानी पिए ही घर वापस चली आई। घर आकर सास को खरी-खोटी सुनाई
तथा पति के ऊपर गहने फेंककर अपनी व्यथा व्यक्त की। भक्तिन को जीवन के दूसरे भाग में
भी सुख नहीं मिला। उसके लगातार तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जेठानियों ने उसकी
उपेक्षा करनी शुरू कर दी। इसका कारण यह था कि सास के तीन कमाऊ बेटे थे तथा
जेठानियों के काले-काले पुत्र थे। जेठानियाँ बैठकर खातीं तथा घर का सारा काम-चक्की
चलाना, कूटना, पीसना, खाना बनाना आदि कार्य-भक्तिन करती। छोटी लड़कियाँ गोबर उठातीं तथा कंडे थापती
थीं। खाने के मामले में भी भेदभाव था। जेठानियाँ और उनके लड़कों को भात पर सफेद
राब, दूध व मलाई मिलती तथा
भक्तिन को काले गुड़ की डली, मट्ठा तथा
लड़कियों को चने-बाजरे की घुघरी मिलती थी। इस पूरे प्रकरण में भक्तिन के पति का
व्यवहार अच्छा था। उसे अपनी पत्नी पर विश्वास था।
पति-प्रेम के बल
पर ही वह अलग हो गई। अलग होते समय अपने ज्ञान के कारण उसे गाय-भैंस, खेत, खलिहान, अमराई के पेड़
आदि ठीक-ठाक मिल गए। परिश्रम के कारण घर में समृद्ध आ गई। पति ने बड़ी लड़की का
विवाह धूमधाम से किया। इसके बाद वह दो कन्याओं को छोड़कर चल बसा। इस समय भक्तिन की
आयु 29 वर्ष की थी। उसकी
संपत्ति देखकर परिवार वालों के मुँह में पानी आ गया। उन्होंने दूसरे विवाह का
प्रस्ताव किया तो भक्तिन ने स्पष्ट मना कर दिया। उसने केश कटवा दिए तथा गुरु से
मंत्र लेकर कंठी बाँध ली। उसने दोनों लड़कियों की शादी कर दी और पति के चुने दामाद
को घर-जमाई बनाकर रखा। जीवन के तीसरे परिच्छेद में दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं
छोड़ा। उसकी लड़की भी विधवा हो गई। परिवार वालों की दृष्टि उसकी संपत्ति पर थी।
उसका जेठ अपनी विधवा बहन के विवाह के लिए अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया
क्योंकि उसका विवाह हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता।
भक्तिन की लड़की
ने उस वर को नापसंद कर दिया। माँ-बेटी मन लगाकर अपनी संपत्ति की देखभाल करने लगीं।
एक दिन भक्तिन की अनुपस्थिति में उस तीतरबाज वर ने बेटी की कोठरी में घुसकर भीतर
से दरवाजा बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँव वालों को बुलाने लगे। लड़की ने उसकी
खूब मरम्मत की तो पंच समस्या में पड़ गए। अंत में पंचायत ने कलियुग को इस समस्या
का कारण बताया और अपीलहीन फैसला हुआ कि दोनों को पति-पत्नी के रूप में रहना
पड़ेगा। अपमानित बालिका व माँ विवश थीं। यह संबंध सुखकर नहीं था। दामाद निश्चित
होकर तीतर लड़ाता था, जिसकी वजह से
पारिवारिक द्वेष इस कदर बढ़ गया कि लगान अदा करना भी मुश्किल हो गया। लगान न
पहुँचने के कारण जमींदार ने भक्तिन को कड़ी धूप में खड़ा कर दिया।
यह अपमान वह सहन
न कर सकी और कमाई के विचार से शहर चली आई। जीवन के अंतिम परिच्छेद में, घुटी हुई चाँद, मैली धोती तथा गले में कंठी पहने वह लेखिका के पास नौकरी के
लिए पहुँची और उसने रोटी बनाना, दाल बनाना आदि
काम जानने का दावा किया। नौकरी मिलने पर उसने अगले दिन स्नान करके लेखिका की धुली
धोती भी जल के छींटों से पवित्र करने के बाद पहनी। निकलते सूर्य व पीपल को अर्घ
दिया। दो मिनट जप किया और कोयले की मोटी रेखा से चौके की सीमा निर्धारित करके खाना
बनाना शुरू किया। भक्तिन छूत-पाक को मानने वाली थी। लेखिका ने समझौता करना उचित
समझा। भोजन के समय भक्तिन ने लेखिका को दाल के साथ मोटी काली चित्तीदार चार
रोटियाँ परोसीं तो लेखिका ने टोका। उसने अपना तर्क दिया कि अच्छी सेंकने के प्रयास
में रोटियाँ अधिक कड़ी हो गई। उसने सब्जी न बनाकर दाल बना दी। इस खाने पर प्रश्नवाचक
दृष्टि होने पर वह अमचूरण, लाल मिर्च की
चटनी या गाँव से लाए गुड़ का प्रस्ताव रखा।
भक्तिन के लेक्चर
के कारण लेखिका रूखी दाल से एक मोटी रोटी खाकर विश्वविद्यालय पहुँची और न्यायसूत्र
पढ़ते हुए शहर और देहात के जीवन के अंतर पर विचार करने लगी। गिरते स्वास्थ्य व परिवार
वालों की चिंता निवारण के लिए लेखिका ने खाने के लिए अलग व्यवस्था की, किंतु इस देहाती वृद्धा की सरलता से वह इतना
प्रभावित हुई कि वह अपनी असुविधाएँ छिपाने लगी। भक्तिन स्वयं को बदल नहीं सकती थी।
वह दूसरों को अपने मन के अनुकूल बनाने की इच्छा रखती थी। लेखिका देहाती बन गई,
परंतु भक्तिन को शहर की हवा नहीं लगी। उसने
लेखिका को ग्रामीण खाना-खाना सिखा दिया, परंतु स्वयं ‘रसगुल्ला’
भी नहीं खाया। उसने लेखिका को अपनी भाषा की
अनेक दंतकथाएँ कंठस्थ करा दीं, परंतु खुद ‘आँय’ के स्थान पर ‘जी’ कहना नहीं सीखा। भक्तिन में दुर्गुणों का अभाव
नहीं था। वह इधर-उधर पड़े पैसों को किसी मटकी में छिपाकर रख देती थी जिसे वह बुरा
नहीं मानती थी। पूछने पर वह कहती कि यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है! अपनी मालकिन को खुश करने
के लिए वह बात को बदल भी देती थी। वह अपनी बातों को शास्त्र-सम्मत मानती थी। वह
अपने तर्क देती थी। लेखिका ने उसे सिर घुटाने से रोका तो उसने ‘तीरथ गए मुँड़ाए सिद्ध।’ कहकर अपना कार्य शास्त्र-सिद्ध बताया। वह स्वयं पढ़ी-लिखी
नहीं थी। अब वह हस्ताक्षर करना भी सीखना नहीं चाहती थी। उसका तर्क था कि उसकी
मालकिन दिन-रात किताब पढ़ती है। यदि वह भी पढ़ने लगे तो घर के काम कौन करेगा।
भक्तिन अपनी मालकिन को असाधारणता का दर्जा देती थी। इसी से वह अपना महत्व साबित कर
सकती थी। उत्तर-पुस्तिका के निरीक्षण-कार्य में लेखिका का किसी ने सहयोग नहीं दिया।
इसलिए वह कहती फिरती थी कि उसकी मालकिन जैसा कार्य कोई नहीं जानता। वह स्वयं
सहायता करती थी। कभी उत्तर-पुस्तिकाओं को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह
जो सहायता करती थी उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना
प्रमाणित हो जाता है। लेखिका की किसी पुस्तक के प्रकाशन होने पर उसे प्रसन्नता
होती थी। उस कृति में वह अपना सहयोग खोजती थी। लेखिका भी उसकी आभारी थी क्योंकि जब
वह बार-बार के आग्रह के बाद भी भोजन के लिए न उठकर चित्र बनाती रहती थी, तब भक्तिन कभी दही का शरबत अथवा कभी तुलसी की
चाय पिलाकर उसे भूख के कष्ट से बचाती थी।
भक्तिन में गजब
का सेवा-भाव था। छात्रावास की रोशनी बुझने पर जब लेखिका के परिवार के सदस्य-हिरनी
सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि भी-आराम करने लगते थे, तब भी भक्तिन लेखिका के साथ जागती रहती थी। वह
उसे कभी पुस्तक देती, कभी स्याही तो
कभी फ़ाइल देती थी। भक्तिन लेखिका के जागने से पहले जागती थी तथा लेखिका के बाद
सोती थी। बदरी-केदार के पहाड़ी तंग रास्तों पर वह लेखिका से आगे चलती थी, परंतु गाँव की धूलभरी पगडंडी पर उसके पीछे रहती
थी। लेखिका भक्तिन को छाया के समान समझती थी। युद्ध के समय लोग डरे हुए थे,
उस समय वह बेटी-दामाद के आग्रह पर लेखिका के
साथ रहती थी। युद्ध में भारतीय सेना के पलायन की बात सुनकर वह लेखिका को अपने गाँव
ले जाना चाहती थी। वहाँ वह लेखिका के लिए हर तरह के प्रबंध करने का आश्वासन देती
थी। वह अपनी पूँजी को भी दाँव पर लगाने के लिए तैयार थी। लेखिका का मानना है कि
उनके बीच स्वामी-सेवक का संबंध नहीं था।
इसका कारण यह था
कि वह उसे इच्छा होने पर भी हटा नहीं सकती थी और भक्तिन चले जाने का आदेश पाकर भी
हँसकर टाल रही थी। वह उसे नौकर भी नहीं मानती थी। भक्तिन लेखिका के जीवन को घेरे
हुए थी। भक्तिन छात्रावास की बालिकाओं के लिए चाय बना देती थी। वह उन्हें लेखिका
के नाश्ते का स्वाद भी लेने देती थी। वह लेखिका के परिचितों व साहित्यिक बंधुओं से
भी परिचित थी। वह उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी जैसा लेखिका करती थी। वह
उन्हें आकारप्रकार, वेश-भूषा या नाम
के अपभ्रंश द्वारा जानती थी। कवियों के प्रति उसके मन में विशेष आदर नहीं था,
परंतु दूसरे के दुख से वह कातर हो उठती थी।
किसी विद्यार्थी के जेल जाने पर वह व्यथित हो उठती थी। वह कारागार से डरती थी,
परंतु लेखिका के जेल जाने पर खुद भी उनके साथ
चलने का हठ किया। अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के हक के लिए वह बड़े लाट तक से
लड़ने को तैयार थी। भक्तिन का अंतिम परिच्छेद चालू है। वह इसे पूरा नहीं करना
चाहती।
शब्दार्थ
संकल्य – निश्चय। विचित्र-आश्चर्यजनक। जिज़ासु – उत्सुक। चिंतन – विचार। स्यदध – मुकाबला। अंजना – हनुमान की माता।
दुवह – जिसे ढोना मुश्किल हो।
कयाल – भाग्य, माथा। कुचित – सिकुड़ी हुई। शेष द्वतिवृत्त – पूरी कथा। अंशत: – थोड़ा-सा।
विमाता – सौतेली माता। किंवदंती – जनता में प्रचलित बातें। वय – आयु, जवानी। गोना –
विवाह के बाद पति का अपने ससुराल से अपनी पत्नी
को पहली बार अपने घर ले आना। अगाध – अधिक, गहरा । मरयातक – जानलेवा। नेहर – मायका। अप्रत्याशित – जिसकी आशा न हो। अनुग्रह – कृपा। युनरावृतियाँ – बार-बार कहना। ठेले ले जाना –पहुँचाना। लेश – तनिक। चिर बिछह – स्थायी वियोग।
ममव्यथा – हृदय को कष्ट देने वाली
पीड़ा। परिच्छेद – अध्याय। विधात्री
– जन्म देने वाली। माचिया –
खाट की तरह बुनी हुई छोटी चौकी (बैठकी) ।
विराजमान – बैठना। युरखिन – बड़ी-बूढ़ी। अभिषिक्त – जिसका अभिषेक हुआ हो, अधिका-प्राप्त। काकभुशडी – राम का एक भक्त जो शापवश एक कौआ बना। सृष्टि – रचना, संसार। लीक छोड़ना – परंपरा को
तोड़ना। राब – खाँड़, गाढ़ा सीरा। औटना – ताप से गाढ़ा करना। टकसाल – वह स्थान जहाँ सिक्के ढाले जाते हैं। चुगली-चबाड़ – निंदा। परिणति – निष्कर्ष।
अलगढ़ा – बँटवारा। खलिहान – कटी फसल को रखने का स्थान। निरंतर – लगातार। कुकुरी – कुतिया। बिलारी – बिल्ली। होरहा –
होला, आग पर भुना हरे चने का रूप। आजिया ससुर – पति का बाबा। कै – कितने ही। उपार्जित – कमाई। कटिबद्ध –
तैयार। जिठत – पति के बड़े भाई का पुत्र। गठबंधन – विवाह, शादी।
परिमार्जन –
शुद्ध करना, सुधार करना। कर्मठता – मेहनत। दीक्षित – जिसने दीक्षा ग्रहण किया हो। अथ – प्रारंभ। अभिनदन – स्वागत।
नितांत – पूर्णत:। वीतराग – आसक्तिरहित। आसीन – बैठा। निर्दिष्ट – निश्चित। पितिया
ससुर – पति का चाचा। मौखिक –
जबानी। निवारण – दूर करना। उपचार – इलाज। जाग्रत – सचेत।
मकड़ – मक्का। लयसी-पतला – सा हलुवा। क्रियात्मक – व्यावहारिक। पोयला – दाँतरहित मुँह। दत-कथाएँ – परंपरा से चले आ रहे किस्से। कंठस्थ – याद। नरो वा कुंजरो वा – मनुष्य या हाथी। सिर घुटाना – जड़ से बाल कटवाना। अंकुरित भाव – बिना संकोच के। चूड़ाकम – सिर के बाल को पहले-पहल कटवाना। नायित – नाई। निष्यन्न – पूर्ण।अपमान – निरादर। मंथरता – धीमी गति। पटु –
चतुर। पिंड छुड़ाया – छुटकारा पाया।
अतिशयोक्तियाँ –
बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बातें। अमरबेल – जड़रहित बेल जो दूसरे वृक्षों से जीवनरस लेकर
फैलती है। आभा – प्रकाश। उदभासित –
आलोकित। पागुर –जुगाली। निस्तब्धता – शांति। प्रशांत – पूरी तरह शांत।
आतांकित –
भयभीत। नाती – बेटी का पुत्र। विनीत – विनम्र। मचान – बाँस आदि की सहायता से बनाया गया ऊँचा आसन।
स्नेह – प्रेम। सम्मान – आदर। अपभ्रंश – बिगड़ा हुआ। कारागार – जेल।
माड़ – माँ। बड़े लाट – वायसराय। विषम – विपरीत। दुलभ – कठिन।
अर्थग्रहण संबंधी
प्रश्न
निम्नलिखित
गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1:
सेवक-धर्म में
हनुमान जी से स्पद्र्धा करने वाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक
अनामधन्या गोपालिका की कन्या है-नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की
विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी
की समृद्ध भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बँध सकी। वैसे तो जीवन में
प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है; पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धसूचक नाम किसी को बताती
नहीं।
प्रश्न:
1. भक्तिन के सदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख क्यों
हुआ हैं?
2. भक्तिन के नाम और उसके जीवन में क्या विरोधाभास
था?
3. ‘जीवन में प्राय: सभी को अपने-अपने नाम का
विरोधाभास लेकर जीना पड़ता हैं”-अपने आस-पास के
जगत से उदाहरण देकर प्रस्तुत कथन की पुष्टि कीजिए।
4. भक्तिन ने लेखिका
से क्या प्रार्थना की ?क्यों ?
उत्तर –
1. भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख
इसलिए हुआ है क्योंकि भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेवा उसी नि:स्वार्थ भाव से
करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री
राम की सेवा नि:स्वार्थ भाव से किया करते थे।
2. भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था जो वैभव,
सुख, संपन्नता आदि का प्रतीक, जबकि भक्तिन की
अपनी वास्तविक स्थिति इसके ठीक विपरीत थी। वह अत्यंत गरीब, दीन-हीन महिला थी, जिसे वैभव, सुख आदि से कुछ
लेना-देना न था। यही उसके नाम और जीवन में विरोधाभास था।
3. लेखिका का मानना है कि नाम व गुणों में साम्यता (समानता) अनिवार्य तो नहीं है। अकसर देखा जाता है कि नाम और गुणों में बहुत अंतर होता है। ‘शांति’ नाम वाली लड़की सदैव झगड़ती नजर आती है, जबकि ‘गरीबदास’ के पास धन की कमी नहीं होती।
4. भक्तिन ने लेखिका से क्या प्रार्थना की कि वे उसका नाम 'लक्ष्मी' लेकर उसे न बुलाएँ।शायद भक्तिन अपना असली नाम सबको बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती। उस जैसी दीन
महिला का नाम ‘लक्ष्मी’ सुनकर लोगों को हँसने का अवसर मिलेगा।
प्रश्न 2:
पिता का उस पर
अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावत: ईष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता
ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए
सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे,
यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर
दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। ‘हाय लछमिन अब आई’ की अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
दृष्टियाँ उसे घर तक ठेल ले गई। पर वहाँ न पिता का चिहन शेष था, न विमाता के व्यवहार में शिष्टाचार का लेश था।
दुख से शिथिल और अपमान से जलती हुई वह उस घर में पानी भी बिना पिए उलटे पैरों
ससुराल लौट पड़ी। सास को खरी-खोटी सुनाकर उसने विमाता पर आया हुआ क्रोध शांत किया
और पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर उसने पिता के चिर विछोह की मर्मव्यथा व्यक्त की।
प्रश्न:
1. भक्तिन की विमाता ने पिता की बीमारी का समाचार
देर से क्यों भेजा?
2. सास ने लछमिन को क्या बहाना बनाकर मायके भेजा?
क्यों?
3. गाँव में जाकर लछमिन को कैसा व्यवहार मिला?
4. भक्तिन ने पितृशोक किस प्रकार जताया?
उत्तर –
1. लछमिन से पिता को अगाध प्रेम था। इस कारण
विमाता उससे ईष्र्या करती थी। दूसरे, लछमिन इकलौती संतान थी। इसलिए पिता की संपूर्ण संपत्ति की वह हकदार थी। विमाता
उस संपत्ति में हिस्सा नहीं देना चाहती थी। अत: विमाता ने पिता की मरणांतक बीमारी का
समाचार लछमिन को देर से दिया।
2. सास ने लछमिन को यह कहकर विदा किया कि ‘तू बहुत दिन से अपने पिता के घर नहीं गई। इसलिए
वहाँ जाकर उन्हें देख आ’। उसने ऐसा इसलिए
किया क्योंकि वह अपने घर में रोने-पीटने के अपशकुन से बचना चाहती थी।
3. गाँव जाकर लछमिन को पता चला कि उसके पिता की
मृत्यु हो चुकी थी। लोगों की शिकायतें व सहानुभूति उसे मिली। घर में विमाता ने
उससे सीधे मुँह बात नहीं की। अत: वह दुख व अपमान से पीड़ित होकर घर लौट आई।
4. मायके से घर आकर उसने अपनी सास को खूब खरी-खोटी
सुनाई तथा पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर पिता के वियोग की व्यथा व्यक्त की।
प्रश्न:
1. लछमन के लिए अप्रत्याशित अनुग्रह क्या था?
लछमन पर उसका क्या प्रभाव पड़ा?
2. भक्तिन को उसके पिता की बीमारी का समाचार क्यों
नहीं दिया गया?
3. लछमन (भक्तिन) की सास ने उससे पिता की मृत्यु
का समाचार क्यों छिपाया?
4. पिता के घर पहुँचकर भी लछमन बिना पानी पिए उलटे
पैरों क्यों लौट गई?
उत्तर –
1. सास द्वारा लछमिन को नए कपड़े पहनाना, मायके भेजना, नम्र व्यवहार करना-सब कुछ लछमिन के लिए अप्रत्याशित अनुग्रह
था। इस ‘अप्रत्यक्ष छल’ को लछमिन न समझ सकी और वह खुशी-खुशी मायके चली
गई।
2. भक्तिन (लछमिन) के पिता इसे अगाध प्रेम करते
थे। इसी कारण विमाता ईष्या करती थी। उसे यह डर था कि भक्तिन आई तो कहीं उसके पिता
अपनी संपत्ति उसके नाम न कर दें। इसी भय और द्वेष के कारण विमाता ने उसे पिता की
बीमारी की सूचना नहीं दी।
3. लछमिन की सास ने सोचा कि पिता की लाडली लछमिन
बहुत रोना-धोना मचाएगी, इससे घर में
अपशकुन का बखेड़ा फैलेगा। इसी झंझट से बचने के लिए उसने लछमिन को उसके पिता की
मृत्यु की सूचना नहीं दी।
4. लछमिन तो उत्साह से भरकर पिता के घर आई थी।
स्नेही पिता से मिलने की खुशी से उसका मन प्रफुल्लित था। हालाँकि जैसे ही उसने
जाना कि पिता की मृत्यु भी हो चुकी और उसे सूचित भी नहीं किया गया, उसका मन दुख एवं अवसार से भर गया। कम से कम समय
से सूचना लेती होती तो बीमार पिता से मिल तो लेती तो विमाता की सारी चाल वह समझ गई
और दुख से शिथिल तथा अपमान से जलती हुई लछमिन पानी भी बिना पिए लौट गई।
प्रश्न 3:
जीवन के दूसरे
परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख ही अधिक है। जब उसने गेहुँए रंग और बटिया जैसे
मुख वाली पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर
उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास
तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर
अभिषिक्त हो चुकी थी और दोनों जिठानियाँ काक-भुशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध
सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे
दंड मिलना आवश्यक हो गया।
प्रश्न:
1. भक्तिन के जीवन के दूसरे परिच्छेद में ऐसा क्या
हुआ जिसके कारण उसकी उपेक्षा शुरू हो गई?
2. लेखिका की राय में भक्तिन की उपेक्षा उचित थी
या नहीं ?
3. जेठानियों को सम्मान क्यों मिलता था?
4. छोटी बहू कौन थी ? उसने कौन -सा अपराथ किया था ?
उत्तर –
1. भक्तिन ने जीवन के दूसरे परिच्छेद में
एक-के-बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया। इस कारण सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा
शुरू कर दी।
2. लेखिका ने यह बात व्यंग्य में कही है। इसका
कारण यह है कि भारतीय समाज में उसी स्त्री को सम्मान मिलता है जो पुत्र को जन्म
देती है। लड़कियों को जन्म देने वाली स्त्री को अशुभ माना जाता है। भक्तिन ने तो
तीन लड़कियों को जन्म दिया। अत: उसकी उपेक्षा उचित ही थी।
3. जेठानियों ने काक-भुशंडी जैसे काले पुत्रों को
जन्म दिया था। इस कार्य के बाद वे पुरखिन पद की दावेदार बन गई थीं।
4. छोटी बहू लछमिन थी। उसने तीन लड़कियों को जन्म
देकर घर की पुत्र जन्म देने की लीक को तोड़ा था।
प्रश्न 4:
इस दंड-विधान के
भीतर कोई ऐसी धारा नहीं थी, जिसके अनुसार
खोटे सिक्कों की टकसाल-जैसी पत्नी से पति को विरक्त किया जा सकता। सारी चुगली-चबाई
की परिणति उसके पत्नी-प्रेम को बढ़ाकर ही होती थी। जिठानियाँ बात-बात पर धमाधम
पीटी-कूटी जातीं, पर उसके पति ने
उसे कभी उँगली भी नहीं छुआई। वह बड़े बाप की बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था।
इसके अतिरिक्त परिश्रमी, तेजस्विनी और पति
के प्रति रोम-रोम से सच्ची पत्नी को वह चाहता भी बहुत रहा होगा, क्योंकि उसके प्रेम के बल पर ही पत्नी ने
अलगोझा करके सबको अँगूठा दिखा दिया। काम वही करती थी, इसलिए गाय-भैंस, खेत-खलिहान, अमराई के पेड़
आदि के संबंध में उसी का ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उसने छाँट-छाँट कर, ऊपर से असंतोष की मुद्रा के साथ और भीतर से
पुलकित होते हुए जो कुछ लिया, वह सबसे अच्छा भी
रहा, साथ ही परिश्रमी दंपति के
निरंतर प्रयास से उसका सोना बन जाना भी स्वाभाविक हो गया।
प्रश्न:
1. यहाँ दंड-विधान की बात जिसके संदर्भ में र्का
जा रहाँ हैं? क्यो?
2. ‘खोटे सिक्कों की टकसाल हैं किसे और क्यों कहा
गया हैं?
3. चुगली -चबाई की परिणति उसके पत्नी-प्रेम की
बढाकर हैंरे होती था ।’-स्यष्ट कीजिए?
4. भक्तिन को अलग होते समय सबसे अच्छा भाग कैसे
मिला? उसका परिणाम क्या रहा?
उत्तर –
1. यहाँ दंड-विधान की बात लछमिन के संदर्भ में की
जा रही है। इसका कारण यह है कि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया, जबकि जेठानियों के सिर्फ पुत्र थे। अत: उसे दंड
देने की बात हो रही थी।
2. ‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ लछमिन को कहा गया है क्योंकि उसने तीन पुत्रियों को जन्म
दिया था। भारत में लड़कियों को ‘खोटा सिक्का’
कहा जाता है। उनकी दशा हीन होती है।
3. इसका अर्थ यह है कि भक्तिन की सास व जेठानियाँ
सदैव उसकी चुगली उसके पति से करती रहती थीं ताकि उसकी पिटाई हो, परंतु इसका प्रभाव उलटा होता था।
4. भक्तिन को पशु, जमीन व पेड़ों की सही जानकारी थी। इसी ज्ञान के कारण उसने
हर चीज को छाँटकर लिया। उसने पति के साथ मिलकर मेहनत करके जमीन को सोना बना दिया।
प्रश्न 5:
भक्तिन का
दुर्भाग्य भी उससे कम हठी नहीं था, इसी से किशोरी से
युवती होते ही बड़ी लड़की भी विधवा हो गई। भइयहू से पार न पा सकने वाले जेठों और
काकी को परास्त करने के लिए कटिबद्ध जिठौतों ने आशा की एक किरण देख पाई। विधवा
बहिन के गठबंधन के लिए बड़ा जिठौत अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया,
क्योंकि उसका गठबंधन हो जाने पर सब कुछ उन्हीं
के अधिकार में रहता। भक्तिन की लड़की भी माँ से कम समझदार नहीं थी, इसी से उसने वर को नापसंद कर दिया। बाहर के
बहनोई का आना चचेरे भाइयों के लिए सुविधाजनक नहीं था, अत: यह प्रस्ताव जहाँ-का-तहाँ रह गया। तब वे दोनों माँ-बेटी
खूब मन लगाकर अपनी संपत्ति की देख-भाल करने लगीं और ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की कहावत चरितार्थ करने वाले वर के समर्थक उसे किसी-न-किसी
प्रकार पति की पदवी पर अभिषिक्त करने का उपाय सोचने लगे।
प्रश्न:
1. भक्तिन का दुर्भाग्य क्या था ? उसे हठी क्यों कहा गया है ?
2. जेठों और जिठौतों को आशा की कौन – सी किरण दिखाई दी ?
3. जिठौत किसके लिए विवाह का प्रस्ताव लाया ?
उसका क्या हस्र हुआ ?
4. ‘वर की पदवी पर अभिषिक्त करने” का-क्या आशय हैं?
उत्तर –
1. भक्तिन का दुर्भाग्य यह था कि उसकी बड़ी लड़की
किशोरी से युवती बनी ही थी कि उसका पति मर गया। वह असमय विधवा हो गई। दुर्भाग्य को
हठी इसलिए कहा गया है क्योंकि बेटी के विधवा होने के दुख से पहले भक्तिन को बचपन
से ही माता का बिछोह, अल्पायु में
विवाह, विमाता का दंश, पिता की अकाल मृत्यु व असमय पति की मृत्यु जैसे जीवन में अनेक कष्ट सहने पड़े।
2. जेठ और जिठौत भक्तिन की जायदाद पर नजर रखे हुए
थे। इस कार्य में वे अभी सफल नहीं हुए थे। भक्तिन के उत्तराधिकारी दामाद की
आकस्मिक मृत्यु से उन्हें अपनी मनोकामना सफल होती नजर आई।
3. जिठौत भक्तिन की विधवा लड़की के पुनर्विवाह के
लिए अपने तीतर लड़ाने वाले साले का प्रस्ताव लाया। इस विवाह के बाद भक्तिन की सारी
संपत्ति जिठौत के कब्जे में आ जाती। जिठौत के विवाह-प्रस्ताव को भक्तिन की लड़की
ने नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई से चचेरे भाइयों को फ़ायदा नहीं मिलता। अत:
विवाह-प्रस्ताव असफल हो गया।
4. भक्तिन के जेठ व जिठौत किसी भी तरीके से अपने
किसी संबंधी का विवाह विधवा लड़की से कराकर संपत्ति पर कब्जा करना चाहते थे। यहाँ
वर की योग्यता का प्रश्न नहीं था। यहाँ सिर्फ़ शादी का मामला था।
प्रश्न 6:
तीतरबाज युवक
कहता था, वह निमंत्रण पाकर भीतर
गया और युवती उसके मुख पर अपनी पाँचों उँगलियों के उभार में इस निमंत्रण के अक्षर
पढ़ने का अनुरोध करती थी। अंत में दूध-का-दूध पानी-का-पानी करने के लिए पंचायत
बैठी और सबने सिर हिला-हिलाकर इस समस्या का मूल कारण कलियुग को स्वीकार किया।
अपीलहीन फैसला हुआ कि चाहे उन दोनों में एक सच्चा हो चाहे दोनों झूठे; जब वे एक कोठरी से निकले, तब उनका पति-पत्नी के रूप में रहना ही कलियुग
के दोष का परिमार्जन कर सकता है। अपमानित बालिका ने होंठ काटकर लहू निकाल लिया और
माँ ने आग्नेय नेत्रों से गले पड़े दामाद को देखा। संबंध कुछ सुखकर नहीं हुआ,
क्योंकि दामाद अब निश्चित होकर तीतर लड़ाता था
और बेटी विवश क्रोध से जलती रहती थी। इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बारी जब पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए
कि लगान अदा करना भी भारी हो गया, सुख से रहने की
कौन कहे। अंत में एक बार लगान न पहुँचने पर जमींदार ने भक्तिन को बुलाकर दिन भर
कड़ी धूप में खड़ा रखा। यह अपमान तो उसकी कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया,
अत: दूसरे ही दिन भक्तिन कमाई के विचार से शहर
आ पहुँची।
प्रश्न:
1. युवती व तीतरबाज युवक ने अपने-अपने पक्ष में
क्या तक दिए?
2. पंचायत ने समस्या का मूल कारण क्या माना?
उन्होंने क्या फैसला किया?
3. नए दामाद का स्वागत कैसे हुआ? इस बेमेल विवाह का क्या परिणाम हुआ?
4. भक्तिन को शहर क्यों आना पड़ा?
उत्तर –
1. तीतरबाज युवक ने अपने पक्ष में कहा कि उसे
भक्तिन की बेटी ने ही अंदर बुलाया था, जबकि युवती का कहना था कि उसने जबरदस्त विरोध किया। इसका प्रमाण युवक के मुँह
पर छपी उसकी पाँचों औगुलियाँ हैं।
2. पंचायत ने समस्या का मूल कारण कलियुग को माना।
उन्होंने निर्णय किया कि चाहे कोई सच्चा है या झूठा, पर कुछ समय के लिए पति-पत्नी के रूप में रहे। इस स्थिति में
इन्हें आजीवन पति-पत्नी के रूप में ही रहना पड़ेगा।
3. पंचायत के फ़ैसले पर भक्तिन व उसकी बेटी खून का
घूंट पीकर रह गई। लड़की ने अपमान के कारण होठ काटकर खून निकाल लिया तथा माँ ने
क्रोध से जबरदस्ती के दामाद को देखा। इस बेमेल विवाह से उत्पन्न क्लेश के कारण खेत,
पशु आदि सब का सर्वनाश हो गया। अंत में लगान
अदा करने के पैसे भी न रहे।
4. नए दामाद के आने से घर में क्लेश बढ़ा। इस कारण
खेती-बारी चौपट हो गई। लगान अदा न करने पर जमींदार ने भक्तिन को दिन भर कड़ी धूप
में खड़ा रखा। इस अपमान व कमाई के विचार से भक्तिन शहर आई।
प्रश्न 7:
दूसरे दिन तड़के
ही सिर पर कई लोटे औधाकर उसने मेरी धुली धोती जल के छींटों से पवित्र कर पहनी और
पूर्व के अंधकार और मेरी दीवार से फूटते हुए सूर्य और पीपल का दो लोटे जल से
अभिनंदन किया। दो मिनट नाक दबाकर जप करने के उपरांत जब वह कोयले की मोटी रेखा से
अपने साम्राज्य की सीमा निश्चित कर चौके में प्रतिष्ठित हुई, तब मैंने समझ लिया कि इस सेवक का साथ टेढ़ी खीर
है। अपने भोजन के संबंध में नितांत वीतराग होने पर भी मैं पाक-विद्या के लिए
परिवार में प्रख्यात हूँ और कोई भी पाक-कुशल दूसरे के काम में नुक्तानीनी बिना किए
रह नहीं सकता। पर जब छूत-पाक पर प्राण देने वाले व्यक्तियों का बात-बात पर भूखा
मरना स्मरण हो आया और भक्तिन की शंकाकुल दृष्टि में छिपे हुए निषेध का अनुभव किया,
तब कोयले की रेखा मेरे लिए लक्ष्मण के धनुष से
खींची हुई रेखा के सामने दुलध्य हो उठी। निरुपाय अपने कमरे में बिछौने में पड़कर
नाक के ऊपर खुली हुई पुस्तक स्थापित कर मैं चौके में पीढ़े पर आसीन अनाधिकारी को
भूलने का प्रयास करने लगी। ।
प्रश्न:
1. नौकरी मिलने के दूसरे दिन भक्तिन ने क्या काम
किया?
2. लेखिका को भक्तिन से निपटना टेढ़ी खीर क्यों लगा
?
3. लिखिका के लिए कोयले की रेखा लक्ष्मण रेखा कैसे
बन गई ?
4. अनाधिकारी को भूलने से लेखिका का क्या अभिप्राय
है ?
उत्तर –
1. नौकरी मिलने पर भक्तिन दूसरे दिन सबसे पहले
नहाई, फिर उसने लेखिका द्वारा
दी गई धुली धोती जल के छींटों से पवित्र करके पहनी और उगते सूर्य व पीपल को जल
अर्पित किया। फिर उसने दो मिनट तक नाक दबाकर जप किया और कोयले की मोटी रेखा से
रसोईघर की सीमा निश्चित की।
2. लेखिका को भक्तिन से निपटना टेढ़ी खीर लगा
क्योंकि उसे पता था कि भक्तिन जैसे लोग पक्के इरादों के होते हैं। ऐसे लोगों के
कार्य में बाधा होने पर ये खाना-पीना छोड़कर जान देने तक को तैयार रहते हैं।
3. भक्तिन धार्मिक
प्रवृत्ति की औरत थी। वह रसोई के मामले में बेहद पवित्रता रखती थी। रसोई बनाते समय
वह कोयले से मोटी रेखा खींच देती थी ताकि बाहरी व्यक्ति प्रवेश न कर सके। स्वयं
लेखिका का प्रवेश भी वर्जित था। यदि वह रेखा का उल्लंघन करती तो भक्तिन जैसे लोग
भूखे मरने को तैयार हो जाते हैं। अत: कोयले की रेखा लक्ष्मण रेखा जैसी बन गई थी।
4. लेखिका को अभी तक भक्तिन की पाक कला का ज्ञान
नहीं था। उसे संशय था कि वह उसकी पसंद का खाना बना पाएगी या नहीं। भक्तिन स्वच्छता
के नाम पर उसे रसोई में घुसने नहीं दे रही थी। इस कारण लेखिका को लगा कि शायद उसने
किसी अनाधिकारी को नियुक्त कर दिया, किंतु अब कोई उपाय न था। अत: वह उसे भूलकर किताब में ध्यान लगाने लगी।
प्रश्न 8:
भोजन के समय जब
मैंने अपनी निश्चित सीमा के भीतर निर्दिष्ट स्थान ग्रहण कर लिया, तब भक्तिन ने प्रसन्नता से लबालब दृष्टि और
आत्मतुष्टि से आप्लावित मुसकुराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और
गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखकर उसे टेढ़ी कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके
उत्साह पर तुषारपात करते हुए मैंने रुआँसे भाव से कहा-‘यह क्या बनाया है?’ तब वह हतबुद्धि हो रही।
प्रश्न:
1. भक्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता और आत्मतुष्टि के
भाव क्यों थे?
2. लेखिका दवारा स्थान ग्रहण करने पर भक्तिन ने
क्या परोसा ?
3. लेखिका ने क्या प्रतिक्रिया जाहिर की ?
4. लेखिका की प्रतिक्रिया का भक्तिन पर क्या असर
हुआ ?
उत्तर –
1. लेखिका ने भक्ति की धार्मिक प्रवृत्ति और
पवित्रता को स्वीकार लिया था। उसने भक्तिन द्वारा खींची गई रेखा का उल्लंघन भी
नहीं किया। यह देखकर भक्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता तथा आत्मतुष्टि के भाव थे।
2. लेखिका द्वारा स्थान ग्रहण करने पर भक्तिन ने
प्रसन्नता के साथ फूल की थाली में एक तरफ एक अंगुल मोटी व गहरी काली चित्तीदार चार
रोटियाँ रखीं और दूसरी तरफ थाली टेढ़ी करके गाढ़ी दाल परोसी।
3. मोटी-मोटी रोटियाँ देखकर लेखिका ने रुआँसे भाव
से उससे पूछा कि ‘तुमने यह क्या
बनाया है?’
4. लेखिका की प्रतिक्रिया जानकर भक्तिन की
प्रसन्नता खत्म हो गई और वह हतबुद्धि (हैरान) हो गई तथा बहाने बनाने लगी।
प्रश्न 9:
मेरे इधर-उधर
पड़े पैसे-रुपये, भंडार-घर की किसी
मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिन जानती है। पर, उस संबंध में किसी के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे
डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना
किसी तर्क-शिरोमणि के लिए संभव नहीं यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है! उसके जीवन का परम
कर्तव्य मुझे प्रसन्न रखना है-जिस बात से मुझे क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है! इतनी चोरी और इतना झूठ तो धर्मराज
महाराज में भी होगा।
प्रश्न:
1. अनुच्छेद किसके बारे में हैं? किस रहस्य के बारे में पूछे जाने पर वह
शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती हैं?
2. इधर-उधर बिखरे रुपये-पैसों का भक्तिन जो कुछ
करती हैं, क्या आप उसे चोरी मानेंगे?
क्यों?
3. महादेवी जी को सच न बताकर इधर-उधर की बातें
बताने को वह झूठ क्यों नहीं मानती?
4. भक्तिन का परम कतव्य क्या था। वह इसे कैसे पूरा
करती थी?
उत्तर –
1. अनुच्छेद भक्तिन के बारे में है। भक्तिन चोरी
के पैसे कहाँ और कैसे रखती है, इसके बारे में
पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती है।
2. इधर-उधर बिखरे रुपये-पैसों का भक्तिन जो कुछ
करती है, उसे हम चोरी मानेंगे।
इसका कारण यह है कि वह घर में नौकरी करती है। घर की किसी वस्तु पर उसका स्वामित्व
नहीं है। पैसे या अन्य सामान मिलने पर उसका दायित्व यह है कि वह उन चीजों को घर के
मालिक को दे। ऐसा न करने पर उसका कार्य चोरी के अंतर्गत आता है।
3. लेखिका की शैली व्यंग्यपूर्ण है। वे भक्तिन को
प्रत्यक्ष तौर पर चोर नहीं कहतीं, परंतु अप्रत्यक्ष
तौर पर अपनी सारी बात कह देती हैं। चोरी पकड़े जाने पर चोर अपने बचाव में आधारहीन
अनेक तर्क देता है। इन सब बातों को लेखिका व्यंग्यात्मक शैली में कहती हैं।
4. भक्तिन का परम कर्तव्य था-लेखिका को हर प्रकार
से खुश रखना। इसके लिए वह उन बातों से बचती थी, जिससे लेखका को क्रोध आता हो। वह हर बात का जवाब वाक्पटुता से
देती थी।
प्रश्न 10:
पर वह स्वयं कोई
सहायता नहीं दे सकती, इसे मानना अपनी
हीनता स्वीकार करना है-इसी से वह द्वार पर बैठकर बार-बार कुछ काम बताने का आग्रह
करती है। कभी उत्तर-पुस्तकों को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जैसी सहायता
पहुँचाती है, उससे भक्तिन का
अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। वह जानती है कि जब
दूसरे मेरा हाथ बँटाने की कल्पना तक नहीं कर सकते, तब वह सहायता की इच्छा को क्रियात्मक रूप देती है।
प्रश्न:
1. भक्तिन किससे
क्या आग्रह करती हैं?
2. भक्तिन किस बात में अपनी हीनता मानती हैं?
3. भक्तिन किस बात में अपकी हीनता मानती है ?
4. भक्तिन अन्य व्याथियों से किस प्रकार अधिक
बुदिधमान प्रमाणित होती है ?
उत्तर –
1. भक्तिन लेखिका से आग्रह करती है कि वह उसे कुछ
काम करने को बताए।
2. भक्तिन इस बात में अपनी हीनता मानती है कि वह
महादेवी की चित्रकला और कविता लिखने के दौरान किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती।
3. भक्तिन लेखिका की सहायता अनेक प्रकार से करती
थी। कभी वह उत्तर-पुस्तकों को बाँध देती थी तो कभी अधूरे चित्र को कोने में रख
देती थी। कभी वह रंग की प्याली धोती थी तो कभी चटाई को आँचल से झाड़ती थी।
4. अन्य व्यक्ति लेखन या चित्रकारी में सहायता
करने के विषय में सोचते हैं, परंतु भक्तिन
सदैव लेखिका के सामने बैठकर कुछ-न-कुछ क्रियात्मक सहयोग देती रहती थी। अन्य लोग
जहाँ लेखिका का हाथ बँटाने की कल्पना तक नहीं कर पाते थे, वहीं भक्तिन सदैव उनके सामने बैठकर सहयोग करती थी। इससे
सिद्ध होता है कि वह अन्य लोगों से बुद्धमान थी।
प्रश्न 11:
इसी से मेरी किसी
पुस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उद्भासित हो
उठती है जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर,
आँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर
मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि
उसे निराश नहीं होना पड़ता। यह स्वाभाविक भी है। किसी चित्र को पूरा करने में
व्यस्त, मैं जब बार-बार कहने पर
भी भोजन के लिए नहीं उठती, तब वह कभी दही का
शर्बत, कभी तुलसी की चाय वहीं
देकर भूख का कष्ट नहीं सहने देती।
प्रश्न:
1. पुस्तक प्रकाशित
होने पर भक्तिन कैसे अपनी प्रसन्नता प्रकट करती थी ?
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे
कैसे देखती थी?
3. भक्तिन लेखिका को किस प्रकार भूख का कष्ट नही
सहने देती थी?
4. अनपढ़ भक्तिन को लेखिका की नवप्रकाशित पुस्तकों
से निराश नहीं होना पड़ता था – स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर –
1. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मुख से
प्रसन्नता ऐसे प्रकट हो जाती थी जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा प्रकाश
उद्भासित हो जाता है।
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन बहुत
प्रसन्न होती थी। अकेले में वह उसे बार-बार छूती थी। उसे आँखों के समीप ले जाकर
तथा चारों तरफ घुमाकर अपनी सहायता का अंश खोजती थी।
3. जब लेखिका चित्र को पूरा करने में व्यस्त रहती
थी तब भक्तिन कभी दही का शर्बत तो कभी-कभी तुलसी की चाय बनाकर लेखिका को देती थी।
इस तरह वह लेखिका को भूख का कष्ट नहीं सहने देती थी।
4. पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन पुस्तक को
चारों ओर से छूकर तथा अपनी आँखों के समीप लाकर असीम आनंद की अनुभूति करती थी। इस
तरीके से वह अपनी सहायता का अंश खोजती थी। उसकी नजरों से आत्मतुष्टि की झलक मिलती
थी। इससे लगता है कि भक्तिन को निराश नहीं होना पड़ता।
प्रश्न 12:
मेरे भ्रमण की भी
एकांत साथिन भक्तिन ही रही है। बदरी-केदार आदि के ऊँचे-नीचे और तंग पहाड़ी रास्ते
में जैसे वह हठ करके मेरे आगे चलती रही है, वैसे ही गाँव की धूलभरी पगडंडी पर मेरे पीछे रहना नहीं
भूलती। किसी भी समय, कहीं भी जाने के
लिए प्रस्तुत होते ही मैं भक्तिन को छाया के समान साथ पाती हूँ। देश की सीमा में
युद्ध को बढ़ते देखकर जब लोग आतंकित हो उठे, तब भक्तिन के बेटी-दामाद उसके नाती को लेकर बुलाने आ पहुँचे;
पर बहुत समझाने-बुझाने पर भी वह उनके साथ नहीं
जा सकी। सबको वह देख आती है; रुपया भेज देती
है; पर उनके साथ रहने के लिए
मेरा साथ छोड़ना आवश्यक है; जो संभवत: भक्तिन
को जीवन के अंत तक स्वीकार न होगा।
प्रश्न:
1. पहाड़ी तंग रास्तों पर भक्तिन महादेवी के आगे
क्यों चलती थी?
2. गाँव की पगडंडी पर महादेवी के पीछे भक्तिन के
चलने का कारण बताइए।
3. युदध के दिनों में भक्तिन गाँव क्यों नहीं गई ?
4. परिवार वालों के साथ भक्तिन का व्यवहार कैसा था?
उत्तर –
1. भक्तिन महादेवी की सच्ची सेविका थी। पहाड़ों के
तंग व ऊँचे-नीचे रास्तों पर वह हठ करके महादेवी के आगे चलती थी ताकि आगे आने वाले खतरे को वह स्वयं उठा ले।
2. गाँव की पगडंडी धूलभरी होती है। व्यक्ति के
पीछे चलने वाले व्यक्ति को धूल सहनी पड़ती है। यही कारण है कि विकल पड़ी परभक्त
महादेव के पछे भक्त चली थी ताकि चलने से ध्लउड्ने पारवहउसे स्वय सहन कर।
3. युद्ध के दिनों में सभी लोग आतंकित थे। भक्तिन
के दामाद-बेटी व नाती उसे लेने के लिए आए, परंतु वह उनके साथ नहीं गई क्योंकि वह महादेवी को अकेले छोड़कर नहीं जाना
चाहती थी।
4. परिवार वालों के साथ भक्तिन के संबंध मात्र
औपचारिक थे। वह उन्हें रुपया भेज देती थी, कभी-कभी सबको देख आती थी, परंतु वह उनके
साथ रहना पसंद नहीं करती थी।
प्रश्न 13:
गत वर्ष जब युद्ध
के भूत ने वीरता के स्थान में पलायन-वृत्ति जगा दी थी, तब भक्तिन पहली ही बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ मुझसे
गाँव चलने का अनुरोध करने आई। वह लकड़ी रखने के मचान पर अपनी नयी धोती बिछाकर मेरे
कपड़े रख देगी, दीवाल में कीलें
गाड़कर और उन पर तख्ते रखकर मेरी किताबें सजा देगी, धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर और उस पर अपना कंबल बिछाकर वह
मेरे सोने का प्रबंध करेगी। मेरे रंग, स्याही आदि को नयी हैंड़ियों में सँजोकर रख देगी और कागज-पत्रों को छींके में
यथाविधि एकत्र कर देगी।
प्रश्न:
1. लेखिका और भक्तिन में आप कैसे अधिक साहसी मानता
है और क्यों ?
2. लेखिका के मन में क्या प्रवृत्ति आई ? उसका कारण क्या था ?
3. भक्तिन ने लेखिका से क्या आग्रह किया ?
4. भक्तिन ने उन्हें क्या – क्या कार्य करने का आशवासन दिया ?
उत्तर –
1. लेखिका और भक्तिन दोनों में मैं भक्तिन को अधिक
साहसी मानता हूँ क्योंकि युद्ध का डर लेखिका को विचलित कर गया परंतु भक्तिन को
नहीं। इस डर से लेखिका अन्यत्र रहने को तैयार हो गई।
2. लेखिका के मन में पलायन प्रवृत्ति आई। इसका
कारण युद्ध का भूत था।
3. भक्तिन ने पहली बार सेवक की विनीत मुद्रा के
साथ लेखिका से गाँव चलने का अनुरोध किया।
4. भक्तिन ने लेखिका को निम्नलिखित कार्य करने का
आश्वासन दिया—
1. लकड़ी रखने के मचान पर नयी धोती बिछाकर कपड़े
रखना।
2. दीवार में कीलें गाड़कर व उन पर तख्ते रखकर
किताबें रखना।
3. सोने के लिए धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर उस
पर कंबल बिछाना।
4. रंग, स्याही आदि को नयी हँड़ियों में रखना।
5. कागज-पत्रों को सही तरीके से छींके में रखना।
प्रश्न 14:
भक्तिन और मेरे
बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है;
क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा
न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना
उतना ही असंगत है, जितना अपने घर
में बारी-बारी से आने-जाने वाले अँधेरे-उजाले और आँगन में फूलने वाले गुलाब और आम
को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं,
उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने
विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है।
प्रश्न:
उपर्युक्त गदयांश
में किनके स्वामी – सेवक संबंधों की
चर्चा की गई है ?उन संबंधों की
क्या विशेषता बताई गई है ?
लेखिका के लिए
आँगन में फूलने वाला गुलाब और आम सेवक क्यों नहीं है ? क्या यह बात भक्तिन पर भी लागू होती है ?
आम और गुलाब किन
रूपों में लेखिका से सुख -दुःख के कारण है और क्यों ?
भक्तिन का लेखिका
के साथ किस प्रकार का संबंध है ?
उत्तर –
1. उपर्युक्त गद्यांश में लेखिका और भक्तिन के
संबंधों की चर्चा की गई है। इन दोनों में मालकिन और सेविका का संबंध नहीं है।
भक्तिन ने लेखिका को अपनी संरक्षिका मान लिया है। लेखिका भी उसे अपने परिवार का
सदस्य मानती है।
2. लेखिका के लिए आँगन में फूलने वाला गुलाब व आम
सेवक नहीं हैं। इसका कारण यह है कि ये हमें सुख देते हैं, परंतु हमसे कोई अपेक्षा नहीं रखते। इनका अपना अस्तित्व है।
भक्तिन पर भी यह बात लागू होती है।
3. आम और गुलाब का स्वतंत्र अस्तित्व है। ये
लेखिका के सुख-दुख के साझीदार हैं। ये फल व फूल प्रदान करके सुख की अनुभूति कराते
हैं तथा काँटों व पत्तों के बिखराव से कष्ट भी उत्पन्न करते हैं।
4. भक्तिन लेखिका को अपना संरक्षक मानती है।वह उसे
छोड़ने की सोच भी नहीं सकती। महादेव ने भी उसे रूपा में स्वीकार किया है।
पाठ्यपुस्तक से
हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
भक्तिन अपना
वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी2 भक्तिन नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तर –
भक्तिन का
वास्तविक नाम लछमिन अर्थात् लक्ष्मी था जिसका अर्थ है धन की देवी। लेकिन लक्ष्मी
के पास धन बिलकुल नहीं था। वह बहुत गरीब थी। इसलिए वह अपना वास्तविक नाम छुपाती
थी। उसे यह नाम उसके घरवालों ने दिया होगा। भारतीय समाज में लड़की का पैदा होना
वास्तव में लक्ष्मी का घर आना माना जाता है। इसलिए उसके जन्म लेने पर उसका यह नाम
रख दिया।
प्रश्न 2:
दो कन्या-रत्न
पैदा करने पर भी भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व
उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर
यह धारणा चलती है की स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। क्या इससे आप
सहमत है ?
उत्तर –
दो कन्या-रत्न
पैदा करने पर भी भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व
उपेक्षा की शिकार बनी। भक्तिन की सास ने तीन पुत्रों को जन्म दिया तथा जिठानियाँ
भी पुत्रों को जन्म देकर सास की बराबरी कर रही थीं। ऐसी स्थिति में भक्तिन द्वारा
सिर्फ़ कन्याओं के जन्म देने से वे उसकी उपेक्षा करने लगीं। यह सही है कि स्त्री
ही स्त्री की दुश्मन होती है। भक्तिन को उसके पति से अलग करने के लिए अनेक
षड्यंत्र भी सास व जिठानियों ने किए। एक नारी दूसरी नारी के सुख को देखकर कभी खुश
नहीं होती। पुत्र न होना, संतान न होना,
दहेज आदि सभी मामलों में नारी ही समस्या को
गंभीर बनाती है। वे ताने देकर समस्याग्रस्त महिला का जीना हराम कर देती हैं। दूसरी
तरफ पुरुष को भी गलत कार्य के लिए उकसाती है। नवविवाहिता को दहेज के लिए प्रताड़ित
करने वाली भी स्त्रियाँ ही होती हैं।
प्रश्न 3:
भक्तिन की बेटी
पर पंचायत दवारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं ,बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह
करें या न करें अथवा किससे करें) की स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली आ
रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक हैं। कैसे?
अथवा
भक्तिन की बेटी
पर पंचायत दवारा ज़बरन पति थोपा जाना स्त्री के के मानवाधिकार को कुचलने की परंपरा
का प्रतिक है। ।’ इस कथन पर
तक्रसम्मत टिप्पणी कीजिए?
उत्तर –
नारी पर अनादिकाल
से हर फैसला थोपा जाता रहा है। विवाह के बारे में वह निर्णय नहीं ले सकती।
माता-पिता जिसे चाहे वही उसका पति बन जाता है। लड़की की इच्छा इसमें बिलकुल शामिल
नहीं होता। लड़की यदि मान जाती है, तो ठीक वरना उसकी
शादी जबरदस्ती करवा दी जाती है। उसे इस बात का कोई अधिकार नहीं है कि वह किससे
विवाह करे या किससे न करे। उसके इस मानवाधिकार को तो माता-पिता सदियों से कुचलते
रहे हैं।
प्रश्न 4:
भक्तिन अच्छी है ,यह कहना कठीन होगा ,क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। लेखिका ने ऐसा क्यों
कहा होगा ?
उत्तर –
भक्तिन में
सेवा-भाव है, वह कर्तव्यपरायणा
है, परंतु इसके बावजूद उसमें
अनेक दुर्गुण भी हैं। लेखिका उसे अच्छा कहने में कठिनाई महसूस करती है। लेखिका को
भक्तिन के निम्नलिखित कार्य दुर्गुण लगते हैं –
1. वह लेखिका के
इधर-उधर पड़े पैसे-रुपये भंडार-घर की मटकी में छिपा देती है। जब उससे इस कार्य के
लिए पूछा जाता है तो वह स्वयं को सही ठहराने के लिए अनेक तरह के तर्क देती है।
2. वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए बात को
इधर-उधर घुमाकर बताती है। वह इसे झूठ नहीं मानती।
3. शास्त्र की बातों को भी वह अपनी सुविधानुसार
सुलझा लेती है। वह किसी भी तर्क को नहीं मानती।
4. वह दूसरों को अपने अनुसार ढालना चाहती है,
परंतु स्वयं में कोई परिवर्तन नहीं करती।
5. पढ़ाई-लिखाई में उसकी कोई रुचि नहीं है।
प्रश्न 5:
भक्तिन द्वारा
शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया हैं?
उत्तर –
जब लेखिका चोरी
हुए पैसों के बारे में लछमिन से पूछती है तो वह कहती है कि पैसे मैंने सँभालकर रख लिए
हैं। क्या अपने ही घर में पैसे सँभालकर रखना चोरी है। वह कहती है कि चोरी और झूठ
तो धर्मराज युधिष्ठिर में भी होगा। नहीं तो वे श्रीकृष्ण को कैसे खुश रख सकते थे
और संसार (अपने राज्य को कैसे) चला सकते थे। चोरी करने की घटनाओं और महाराज
युधिष्ठिर के उदाहरणों के माध्यम से लेखिका ने शास्त्र प्रश्न को सुविधा से सुलझा
लेने का वर्णन किया है।
प्रश्न 6:
भक्तिन के आ जाने
से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गईं?
अथवा
भक्तिन के आ जाने
से महादेवी अधिक देहाती हो गई, कैस? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर –
भक्तिन देहाती
महिला थी। शहर में आकर उसने स्वयं में कोई परिवर्तन नहीं किया। ऊपर से वह दूसरों
को भी अपने अनुसार बना लेना चाहती है, पर अपने मामले में उसे किसी प्रकार का हस्तक्षेप पसंद नहीं था। उसने लेखिका का
मीठा खाना बिल्कुल बंद कर दिया। उसने गाढ़ी दाल व मोटी रोटी खिलाकर लेखिका की
स्वास्थ्य संबंधी चिंता दूर कर दी। अब लेखिका को रात को मकई का दलिया, सवेरे मट्ठा, तिल लगाकर बाजरे के बनाए हुए ठंडे पुए, ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे-हरे दानों की
खिचड़ी व सफेद महुए की लपसी मिलने लगी। इन सबको वह स्वाद से खाने लगी। इसके
अतिरिक्त उसने महादेवी को देहाती भाषा भी सिखा दी। इस प्रकार महादेवी भी देहाती बन
गई।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
‘आलो आँधारि’
की नायिका और लिखिका बेबी हलदार और भक्तिन के
व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते है ?
उत्तर –
बेबी हालदार का
जीवन भी संघर्षशील रहा है। वह भी भक्तिने की तरह लोगों के घरों में काम करती है।
लोगों के चौका बर्तन साफ़ कर अपना पेट पालती है। यही स्थिति भक्तिन की है। यद्यपि
उसके पास सबकुछ था लेकिन जेठ-जेठानियों और दामाद ने उसे कंगाल बना दिया। वह काम की
तलाश में शहर आ गई। बेबी हालदार और भक्तिन दोनों ही शोषण का शिकार रहीं।
प्रश्न 2:
भक्तिन की बेटी
के मामले में जिम तरह का फ़ैसलापंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज़ बात नहीं है।अखबयों या टी०वी०
समाचारों में आने वार्ता किसी ऐसी ही घटना
की भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस परचर्चा करें?
उत्तर –
भक्तिन की बेटी
के मामले में जिस तरह का केसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज बात नहीं है । अब भी पंचायतों का
तानाशाही रवैया बरकरार है । अखबारों या सी०ची० पर अकसर समाचार सुनने को मिलते हैं
कि प्रेम विवाह को पंचायतें अवैध करार देती हैं तथा पति–पत्नी को भाई–बहिन की तरह रहने के लिए विवश करती हैं । वे उन्हें सजा भी देती हैं । कईं बार
तो उनकी हत्या भी कर दी जाती है । यह मध्ययुगीन बर्बरता आज भी विदूयमान है।
प्रश्न 3:
पाँच वर्ष की वय
में ब्याही जाने वाली लड़कियों में सिर्फ भक्तिन नहीं हैं, बल्कि आज भी हज़ारों अभागिनियाँ हैं।बाल–विवाह और उप्र के अनर्मलपन वाले विवाह की अपने
उम–पास हरे सारे घटनाओं पर
लेस्ली‘ के साथ परिचर्चा करें।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं
परिचर्चा करें।
प्रश्न 4:
महादेवी जी इस
पाठ में हिरनी सोना, कुत्ता बसंत,
बिल्ली गोधूलि आदि के माध्यम से पशु-पक्षी को
मानवीय संवेदना से उकेरने वाली लेखिका के रूप में उभरती हैं। उन्होंने अपने घर में
और भी कई पशु-पक्षी पाल रखे थे तथा उन पर रेखाचित्र भी लिखे हैं। शिक्षक की सहायता
से उन्हें ढूँढ़कर पढ़ें। जो ‘मेरा परिवार’
नाम से प्रकाशित हैं।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं
पढ़ें।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
नीचे दिए गए
विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट
कीजिए –
1. पहली कन्या के दो संस्करण और कर डाले।
2. खोटे सिक्कों की टकसाल जैसी पत्नी।
3. अस्पष्ट पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूति।
उत्तर –
1. इसका अर्थ है कि भक्तिन (लछमिन) ने एक कन्या को
जन्म देने के बाद दो कन्याएँ और पैदा कीं। अब वह तीन कन्याओं की माँ बन चुकी थी।
कन्या के संस्करण से आशय है कि उसी कन्या जैसी दो और कन्याएँ पैदा हुईं।
2. खोटा सिक्का कमियों से भरपूर होता है। उसमें
बहुत कमियाँ होती हैं। पत्नी भी यदि खोटे सिक्कों की टकसाल हो तो वह कमियों की खान
हैं अर्थात् उसमें बहुत से अवगुण हैं।
3. अस्पष्ट पुनरावृत्तियों से आशय है कि कि वही
बातें बार-बार हो रही हैं जो पहले (अतीत) में होती रही हैं। स्पष्ट सहानुभूति से
आशय है कि लोगों का दूसरों (अन्य लोगों) के प्रति झूठ-मूठ की सहानुभूति जताना
अर्थात् संवेदनाहीन सहानुभूति प्रदर्शित करना। केवल औपचारिकता निभाने के लिए
मेल-जोल रखना।
प्रश्न 2:
‘बहनोई’ शब्द ‘बहन (स्त्री) + ओई’ से बना है। इस
शब्द में हिंदी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई हैं। पुलिंलग शब्दों में कुछ
स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषाओं
में दिखती हैं, पर स्त्रीलिंग
शब्द में कुछ पुलिंलग प्रत्यय जोड़कर पुलिंलग शब्द बनाने की घटना प्राय: अन्य
भाषाओं में दिखाई नहीं पड़ती। यहाँ पुलिंलग प्रत्यय ‘ओई’ हिंदी की अपनी
विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और उनमें लगे पुलिंलग प्रत्ययों की हिंदी तथा और
भाषाओं में खोज करें।
उत्तर –
इसी प्रकार का
शब्द है-ननदोई = ननद + ओई।
प्रश्न 3:
पाठ में आए
लोकभाषा के इन संवादों को समझकर इन्हें खड़ी बोली हिंदी में ढालकर प्रस्तुत कीजिए।
1. ई कउन बड़ी बात आय ।रोटी बनार्वे जानित हैं,
दाल राँध लड़त हैं, साग-भाजी छउक सकित हैं, अउर का रहा ।
2. हमारे मालकिन तो रात-दिन कितबियन मां गाड़ी रहती
हैं ।अब हमहूँ पढॅ लाराब तो घर-गिरिस्ति कउन देखी -सुनी ।
3. ऊ विवरिअउ तो रात-दिन काम माँ झुकी रहती हँ,
अउर तुम पचै घूमती–फिरती हाँ, चलों तनिक हाथ
बटाय लेऊ।
4. तब ऊ कुच्छों करिहैं- धरिहैं ना-बस गली-गली
गाउत-बजाउत फिरिहैं।
5. हुम पली का का बताई यहै पचास बरिस से साथ रहित
हैं।
6. हुम कुकुरी विलारी न होयं, हमार मन पुसाई तौ हम दूसरा के जाब नाहि‘
त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा भूँजब और करब ,समुझे रहो।
उत्तर –
1. यह कौन – सी बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ। दाल राँधना (पकाना)
जानती हूँ। साग-सब्जी छौंक सकती हूँ। इतने काम कर लेती हूँ तो और बाकी क्या रहा।
2. हमारी मालकिन (अर्थात् महादेवी) तो दिन रात
किताबों में गड़ी रहती हैं अर्थात् किताबें पढ़ती रहती हैं। यदि अब मैं भी पढ़ने
लगी तो घर गृहस्थी कौन देखेगा।
3. वह बेचारी तो रात दिन काम में झुकी (डूबी) रहती
है और तुम इधर-उधर घूमती रहती हो। चलो थोड़ा-सा काम में हाथ बटा लो।
4. तब वह कुछ भी करेगी – धरेगी नहीं। केवल गली-गली में गाती-बजाती फिरेगी अर्थात्
बेकार में ही गलियों में घूमती रहेगी।
5. तुम्हें लिखा – पढ़ी के बारे में क्या बताएँ। यह तो पचास वर्ष से मेरे साथ
रहती है।
6. हम कोई कुतिया या बिल्ली नहीं है। हमारे मन आया
है तो यहीं रहेगी किसी दूसरे मर्द के घर नहीं जाएगी। हम तो तुम्हारी छाती पर बैठकर
दलिया बनाएगी और राज करेंगी समझे।
प्रश्न 4:
‘भक्तिन’ पाठ में ‘पहली कन्या के दो संस्करण’ जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता है,
साथ ही ये प्रयोग कथ्य को संप्रेषणीय बनाने में
भी मददगार हैं। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की शब्दावली समाहित हुई है।
नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता की खास पसंद का पता चलता है। आप वाक्य
पढ़कर बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं
विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा
करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्ध में कहाँ तक सहायक हैं?
प्रश्न:
1. अरे! उससे सावधान रहना वह नीचे से ऊपर तक वायरस
से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता हैं उसे हैंग कर देता हैं।
2. घबरा मत! मेरी इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस
घुटने टेकेंगे। अगर ज्यादा फाउल मारा तो रेड कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन
भेज दूँगा ।
3. जानी टेंसन नई लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता
हैं अपुन उसका हेडमास्टर हैं।
उत्तर –
1. इस वाक्य में कंप्यूटर की तकनीकी भाषा का
प्रयोग है। यहाँ ‘वायरस’ का अर्थ है-दोष, ‘सिस्टम’ का अर्थ
है-व्यवस्था, प्रणाली,
‘हैंग’ का अर्थ है-ठहराव।
2. इस वाक्य में खेल से संबंधित शब्दावली का
प्रयोग है। इसमें ‘इनस्वींगर’
का अर्थ है-गहराई तक भेदने वाली कार्रवाई,
‘फाउल’ का अर्थ है—गलत काम,
‘रेड कार्ड’ का अर्थ है—बाहर जाने का
संकेत तथा ‘पवेलियन’ का अर्थ है-वापस भेजना।
3. इस वाक्य में मुंबई भाषा का प्रयोग है। ‘जानी’ शब्द का अर्थ है-कोई भी व्यक्ति, ‘टेंसन लेना’ का अर्थ है-परवाह
करना, ‘स्कूल में पढ़ना’ का अर्थ है-काम करना तथा ‘हेडमास्टर होना’ का अर्थ है-कार्य में निपुण होना।
अन्य हल प्रश्न
बोधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
भक्तिन पाठ के
अधार पर भक्तिन का चरित्र – चित्रण कीजिए।
अथवा
भक्तिन के चरित्र
की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
पाठ के आधार पर
भक्तिन की तीन विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
‘भक्तिन’ लेखिका की सेविका है। लेखिका ने उसके
जीवन-संघर्ष का वर्णन किया है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं?
1. व्यक्तित्व-भक्तिन अधेड़ उम्र की महिला है।
उसका कद छोटा व शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं तथा आँखें छोटी हैं।
2. परिश्रमी-भक्तिन कर्मठ महिला है। ससुराल में वह
बहुत मेहनत करती है। वह घर, खेत, पशुओं आदि का सारा कार्य अकेले करती है। लेखिका
के घर में भी वह उसके सारे कामकाज को पूरी कर्मठता से करती है। वह लेखिका के हर
कार्य में सहायता करती है।
3. स्वाभिमानिनी-भक्तिन बेहद स्वाभिमानिनी है।
पिता की मृत्यु पर विमाता के कठोर व्यवहार से उसने मायके जाना छोड़ दिया। पति की
मृत्यु के बाद उसने किसी का पल्ला नहीं थामा तथा स्वयं मेहनत करके घर चलाया।
जमींदार द्वारा अपमानित किए जाने पर वह गाँव छोड़कर शहर आ गई।
4. महान सेविका-भक्तिन में सच्चे सेवक के सभी गुण
हैं। लेखिका ने उसे हनुमान जी से स्पद्र्धा करने वाली बताया है। वह छाया की तरह
लेखिका के साथ रहती है तथा उसका गुणगान करती है। वह उसके साथ जेल जाने के लिए भी
तैयार है। वह युद्ध, यात्रा आदि में
हर समय उसके साथ रहना चाहती है।
प्रश्न 2:
भक्तिन की
पारिवारिक पृष्ठ्भूमि पर प्रकाश डालिये ?
उत्तर –
भक्तिन झूंसी
गाँव के एक गोपालक की इकलौती संतान थी। इसकी माता का देहांत हो गया था। फलत:
भक्तिन की देखभाल विमाता ने किया। पिता का उस पर अगाध स्नेह था। पाँच वर्ष की आयु
में ही उसका विवाह हैंडिया गाँव के एक ग्वाले के सबसे छोटे पुत्र के साथ कर दिया
गया। नौ वर्ष की आयु में उसका गौना हो गया। विमाता उससे ईष्या रखती थी। उसने उसके
पिता की बीमारी का समाचार तक उसके पास नहीं भेजा।
प्रश्न 3:
भक्तिन के ससुराल
वालों का व्यवहार कैसा था ?
उत्तर –
भक्तिन के ससुराल
वालों का व्यवहार उसके प्रति अच्छा नहीं था। घर की महिलाएँ चाहती थीं कि भक्तिन का
पति उसकी पिटाई करे। वे उस पर रौब जमाना चाहती थीं। इसके अतिरिक्त, भक्तिन ने तीन कन्याओं को जन्म दिया, जबकि उसकी सास व जेठानियों ने लड़के पैदा किए
थे। इस कारण उसे सदैव प्रताड़ित किया जाता था। पति की मृत्यु के बाद उन्होंने
भक्तिन पर पुनर्विवाह के लिए दबाव डाला। उसकी विधवा लड़की के साथ जबरदस्ती की। अंत
में, भक्तिन को गाँव छोडना
पडा।
प्रश्न 4:
भक्तिन का जीवन
सदैव दुखों से भरा रहा। स्पष्ट कीजिए ?
उत्तर –
भक्तिन का जीवन
प्रारंभ से ही दुखमय रहा। बचपन में ही माँ गुजर गई। विमाता से हमेशा भेदभावपूर्ण
व्यवहार मिला। विवाह के बाद तीन लड़कियाँ उत्पन्न करने के कारण उसे सास व
जेठानियों का दुव्र्यवहार सहना पड़ा। किसी तरह परिवार से अलग होकर समृद्ध पाई,
परंतु भाग्य ने उसके पति को छीन लिया। ससुराल
वालों ने उसकी संपत्ति छीननी चाही, परंतु वह संघर्ष
करती रही। उसने बेटियों का विवाह किया तथा बड़े जमाई को घर-जमाई बनाया। शीघ्र ही
उसका देहांत हो गया। इस तरह उसका जीवन शुरू से अंत तक दुखों से भरा रहा।
प्रश्न 5:
लछमिन के पैरों
के पंख गाँव की सीमा में आते ही क्यों झड़ गए ?
उत्तर –
लछमिन की सास का
व्यवहार सदैव कटु रहा। जब उसने लछमिन को मायके यह कहकर भेजा कि “तुम बहुत दिन से मायके नहीं गई हो, जाओ देखकर आ जाओ” तो यह उसके लिए अप्रत्याशित था। उसके पैरों में पंख से लग
गए थे। खुशी-खुशी जब वह मायके के गाँव की सीमा में पहुँची तो लोगों ने फुसफुसाना
प्रारंभ कर दिया कि ‘हाय! बेचारी लछमिन
अब आई है।” लोगों की नजरों से
सहानुभूति झलक रही थी। उसे इस बात का अहसास नहीं था कि उसके पिता की मृत्यु हो
चुकी है या वे गंभीर बीमार थे। विमाता ने उसके साथ अन्याय किया था। इसलिए वह
हतप्रभ थी। उसकी तमाम खुशी समाप्त हो गई।
प्रश्न 6:
लछमिन ससुराल
वालों से अलग क्यों हई ? इसका क्या परिणाम
हुआ ?
उत्तर –
लछमिन मेहनती थी।
तीन लड़कियों को जन्म देने के कारण सास व जेठानियाँ उसे सदैव प्रताड़ित करती रहती
थीं। वह व उसके बच्चे घर, खेत व पशुओं का
सारा काम करते थे, परंतु उन्हें
खाने तक में भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ता था। लड़कियों को दोयम दर्जे
का खाना मिलता था। उसकी दशा नौकरों जैसी थी। अत: उसने ससुराल वालों से अलग होकर
रहने का फैसला किया। अलग होते समय उसने अपने ज्ञान के कारण खेत, पशु घर आदि में अच्छी चीजें ले लीं। परिश्रम के
बलबूते पर उसका घर समृद्ध हो गया।
प्रश्न 7:
भक्तिन व
लेख्रिका के बीच कैसा संबंध था?
उत्तर –
लेखिका व भक्तिन
के बीच बाहरी तौर पर सेवक-स्वामी का संबंध था, परंतु व्यवहार में यह लागू नहीं होता था। महादेवी उसकी कुछ
आदतों से परेशान थीं, जिसकी वजह से
यदा-कदा उसे घर चले जाने को कह देती थीं। इस आदेश को वह हँसकर टाल देती थी। दूसरे,
वह नौकरानी कम, जीवन की धूप-छाँव अधिक थी। वह लेखिका की छाया बनकर घूमती
थी। वह आने-जाने वाले, अँधेरे-उजाले और
आँगन में फूलने वाले गुलाब व आम की तरह पृथक अस्तित्व रखती तथा हर सुख-दुख में
लेखिका के साथ रहती थी।
प्रश्न 8:
लेखिका के परिचित
के साथ भकितन केसा व्यवहार करती थी?
उत्तर –
लेखिका के पास
अनेक साहित्यिक बंधु आते रहते थे, परंतु भक्तिन के
मन में उनके लिए कोई विशेष सम्मान नहीं था। वह उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी
जैसा लेखिका करती थी। उसके सम्मान की भाषा, लेखिका के प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर होती थी
और सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सद्भाव से निश्चित होता था। भक्तिन उन्हें
आकार-प्रकार व वेश-भूषा से स्मरण रखती थी या किसी को नाम के अपभ्रंश द्वारा। कवि
तथा कविता के संबंध में उसका ज्ञान बढ़ा है, पर आदरभाव नहीं।
प्रश्न 9:
भक्तिन के आने से
लेखिका अपनी असुविधाएँ क्यों छिपाने लगीं?
उत्तर –
भक्तिन के आने से
लेखिका के खान-पान में बहुत परिवर्तन आ गए। उसे मीठा, घी आदि पसंद था। उसके स्वास्थ्य को लेकर उसके परिवार वाले
भी चिंतित रहते थे। घर वालों ने उसके लिए अलग खाने की व्यवस्था कर दी थी। अब वह
मीठे व घी से विरक्ति करने लगी थी। यदि लेखिका को कोई असुविधा होती भी थी तो वह
उसे भक्तिन को नहीं बताती थी। भक्तिन ने उसे जीवन की सरलता का पाठ पढ़ा दिया।
प्रश्न 10:
लछमिन को शहर
क्यों जाना पड़ा?
उत्तर –
लछमिन के बड़े
दामाद की मृत्यु हो गई। उसके स्थान पर परिवार वालों ने जिठाँत के साले को जबरदस्ती
विधवा लड़की का पति बनवा दिया। पारिवारिक द्वेष बढ़ने से खेती-बाड़ी चौपट हो गई।
स्थिति यहाँ तक आ गई कि लगान भी नहीं चुकाया गया। जब जमींदार ने लगान न पहुँचाने
पर भक्तिन को दिनभर कड़ी धूप में खड़ा रखा तो उसके स्वाभिमानी हृदय को गहरा आघात
लगा। यह उसकी कर्मठता के लिए सबसे बड़ा कलंक बन गया। इस अपमान के कारण वह दूसरे ही
दिन कमाई के विचार से शहर आ गई।
प्रश्न 11:
कारागार के नाम
से भक्तिन पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर –
वह जेल जाने के
लिए क्यों तैयार हो गई? भक्तिन को
कारागार से बहुत भय लगता था। वह उसे यमलोक के समान समझती थी। कारागार की ऊँची
दीवारों को देखकर वह चकरा जाती थी। जब उसे पता चला कि महादेवी जेल जा रही हैं तो
वह उनके साथ जेल जाने के लिए तैयार हो गई। वह महादेवी के बिना अलग रहने की कल्पना
मात्र से परेशान हो उठती थी।
प्रश्न 12:
महादेवी ने
भक्तिन के जीवन को कितने परिच्छेदों में बाँटा?
उत्तर –
महादेवी ने
भक्तिन के जीवन को चार परिच्छेदों में बाँटा जो निम्नलिखित हैं –
प्रथम – विवाह से पूर्व।
दवितीय – ससुराल में सधवा के रूप में।
तृतीय – विधवा के रूप में।
चतुर्थ – महादेवी की सेवा में।
प्रश्न 13:
भक्तिन की बेटी
पर पचायत द्वारा पति क्यों थोपा गया?
उत्तर –
इस घटना के विरोध
में दो तक दीजिए। भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा पति इसलिए थोपा गया क्योंकि
भक्तिन की विधवा बेटी के साथ उसके ताऊ के लड़के के साले ने जबरदस्ती करने की कोशिश
की थी। लड़की ने उसकी खूब पिटाई की परंतु पंचायत ने कोई भी तर्क न सुनकर एकतरफा
फैसला सुना दिया। इसके विरोध में दो तर्क निम्नलिखित हैं –
1. महिला के मानवाधिकार का हनन होता है।
2. योग्य लड़की का विवाह अयोग्य लड़के के साथ हो
जाता है।
प्रश्न 14:
‘भक्तिन’ अनेक अवगुणों के होते हुए भी महादेवी जी के लिए
अनमोल क्यों थी?
उत्तर –
अनेक अवगुणों के
होते हुए भी भक्तिन महादेवी वर्मा के लिए इसलिए अनमोल थी क्योंकि
1. भक्तिन में सेवाभाव कूट-कूटकर भरा था।
2. भक्तिन लेखिका के हर कष्ट को स्वयं झेल लेना
चाहती थी।
3. वह लेखिका द्वारा पैसों की कमी का जिक्र करने
पर अपने जीवनभर की कमाई उसे दे देना चाहती थी।
4. भक्तिन की सेवा और भक्ति में नि:स्वार्थ भाव
था। वह अनवरत और दिन-रात लेखिका की सेवा करना चाहती थी।
प्रश्न 15:
महादवी वम और
भक्तिन के सबधों की तीन विशिष्टताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
महादेवी वर्मा और
भक्तिन के संबंधों की तीन विशिष्टताएँ निम्नलिखित हैं –
1. परिश्रमी – परिश्रमी भक्तिन कर्मठ महिला है। ससुराल में वह बहुत मेहनत
करती है। वह घर, खेत, पशुओं आदि का सारा कार्य अकेले करती है। लेखिका
के घर में भी वह उसके सारे कामकाज को पूरी कर्मठता से करती है। वह लेखिका के हर
कार्य में सहायता करती है।
2. स्वाभिमानिनी – भक्तिन बेहद स्वाभिमानिनी थी। पिता की मृत्यु पर विमाता के
कठोर व्यवहार से उसने मायके जाना छोड़ दिया। पति की मृत्यु के बाद उसने किसी का
पल्ला नहीं थामा तथा स्वयं मेहनत करके घर चलाया। जमींदार द्वारा अपमानित किए जाने
पर वह गाँव छोड़कर शहर आ गई।
3. महान सेविका – भक्तिन में सच्ची सेविका के सभी गुण थे। लेखिका ने उसे
हनुमान जी से स्पर्धा करने वाली बताया है। वह छाया की तरह लेखिका के साथ रहती है
तथा उसका गुणगान करती है। वह उसके साथ जेल जाने के लिए भी तैयार है। वह युद्ध,
यात्रा आदि में हर समय उसके साथ रहना चाहती है।
प्रश्न:
1. भक्तिन सेवक-धर्म में किससे स्पद्र्धा करती थी?
उसकी इस स्पद्र्धा को आप कितना सही मानते हैं?
अपने विचार लिखिए।
2. लछमिन की विमाता ने पराया धन लौटाने वाले महाजन
का पुण्य किस प्रकार लूटा?
3. उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिनके कारण
लछमिन को भक्तिन बनना पड़ा?
4. दूध का दूध, पानी का पानी करने बैठी पंचायत ने नारी जाति की स्वतंत्रता
का हनन किस प्रकार किया?
5. भक्तिन ऊँचे-नीचे रास्तों पर आगे चलती और
धूलभरी पगडंडी पर लेखिका के पीछे-पीछे। भक्तिन ऐसा क्यों करती रही होगी ?
6. ‘भक्तिन की कंजूसी
के प्राण पूँजीभूत होते-होते पर्वताकार बन चुके थे, परंतु इस उदारता को डायनामाइट ने क्षण भर में उड़ा दिया।”-आशय स्पष्ट कीजिए।
7. जेल जाने से डरने वाली भक्तिन की दृष्टि में
ऐसा कौन-सा अन्याय था, जिसके लिए वह
बड़े लाट तक लड़ने को तैयार थी?
8. निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए
प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
1.
1. (अ) भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से
वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से।
ऊँची दीवार देखते ही, वह आँख मूँदकर
बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्ध पा चुकी है कि लोग मेरे जेल
जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे
पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ़ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या
सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ
किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का
अधिकार नहीं, यह आश्वासन
भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न
नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने
की संभावना से अपमानित। भला ऐसा अंधेर हो सकता है। जहाँ मालिक वहाँ नौकर-मालिक को
ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं, पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर
अन्याय है। ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा। किसी की माई
यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी;
पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल
सकता।
1. भक्तिन किससे डरती हैं तथा क्यों?
2. भक्तिन लेखिका के जेल जाने की खबर से क्यों
डरती हैं?
3. लेखिका किस यात्रा की बात करती है ? वहाँ किसी को साथ जाने का अधिकार क्यों नहीं है
?
4. भक्तिन किसलिए बड़े लाट से लड़ने को तैयार हो
जाती हैं?
2. (ब) ऐसे विषम प्रतिद्वंद्वयों की स्थिति कल्पना
में भी दुर्लभ है। मैं प्राय: सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुँचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा,
न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का, तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या
करूंगी।
1. लेखिका किस बुलावे की बात करती है ?स्पष्ट कीजिए ?
2. भक्तिन की सेवा भावना देखकर लेखिका क्या सोचती
हैं?
3. मृत्यु के बुलावे के समय लेखिका किन अधिकारों
के न होने की बात कहती हैं?
4. अंतिम क्षणों में लेखिका ने स्वय तथा भक्तिन को
क्यों असमर्थ पाया हैं?
1. भक्तिन अपना
वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया होगा?
उत्तर:- भक्तिन
का वास्तविक नाम लक्ष्मी था, हिन्दुओं के अनुसार
लक्ष्मी धन की देवी है। चूँकि भक्तिन गरीब थी। उसके वास्तविक नाम के अर्थ और उसके
जीवन के यथार्थ में विरोधाभास होने के कारण निर्धन भक्तिन सबको अपना असली नाम
लक्ष्मी बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी इसलिए वह अपना असली नाम छुपाती
थी।
उसे लक्ष्मी नाम
उसके माता-पिता ने दिया होगा क्योंकि उन्हें लगा होगा कि बेटी तो लक्ष्मी का अवतार
मानी जाती है इसलिए उसके आने से वे तो खुशहाल होंगें ही साथ ही वह जिसके घर जाएगी
वे भी धन्य-धान्य से भरपूर हो जाएँगे। इस के बाद उसे और एक नाम मिला भक्तिन जो कि
महादेवी वर्मा ने घुटा हुआ सिर, गले में कंठी
माला और भक्तों की तरह सादगीपूर्ण वेशभूषा देखकर रख दिया।
2. दो कन्या-रत्न
पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा
का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अकसर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की
दुश्मन होती है। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर:- हाँ,
हम इस बात से पूरी तरह सहमत हैं क्योंकि भक्तिन
के पुत्र न होने पर उपेक्षा अपने ही घर की सास और जिठानियों अर्थात् नारी जाति से
मिली। सास और जिठानियाँ आराम फरमाती थी क्योंकि उन्होंने लड़कों जन्म दिया था और
भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पड़ता था। जबकि
उसके पति का भक्तिन के प्रति स्नेह कभी भी कम न हुआ।
साथ ही मेरे
अनुसार किसी भी घर में बिना स्त्री की सहमति के भ्रूणहत्या हत्या, दहेज़ की माँग, परिवार में बेटा-बेटी में अंतर, बेटी-बहूओं पर अत्याचार आदि नहीं हो सकता।
3. भक्तिन की बेटी
पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ में स्त्री के मानवाधिकार (विवाह
करें या न करें अथवा किससे करें) इसकी स्वतंत्रता को कुचलते रहने की सदियों से चली
आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?
उत्तर:- भक्तिन
की बेटी के सन्दर्भ में पंचायत द्वारा किया गया न्याय, तर्कहीन और अंधे कानून पर आधारित है। भक्तिन के जेठ ने संपत्ति
के लालच में षडयंत्र कर भोली बच्ची को धोखे से जाल में फँसाया। पंचायत ने निर्दोष
लड़की की कोई बात नहीं सुनी और एक तरफ़ा फैसला देकर उसका विवाह जबरदस्ती जेठ के
निकम्मे तीतरबाज साले से कर दिया।
विवाह के इस
संदर्भ में स्त्री के अधिकारों को कुचलने की परंपरा हमारे देश में सदियों से चली आ
रही है। आज भी हमारे समाज में स्त्रियों के विवाह का निर्णय उसके परिवार वालों
द्वारा लिया जाता है। यदि कोई लड़की विरोध करने का साहस करती भी है तो उसके स्वर को
दबा दिया जाता है।
4. भक्तिन अच्छी है,
यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं लेखिका ने ऐसा क्यों
कहा होगा?
उत्तर:- गुणों के
साथ-साथ भक्तिन के व्यक्तित्व में अनेक दुर्गुण भी निहित थे –
1. वह घर में
इधर-उधर पड़े रुपये-पैसे को भंडार घर की मटकी में छुपा देती है और अपने इस कार्य को
चोरी नहीं मानती थी।
2. महादेवी के क्रोध
से बचने के लिए भक्तिन बात को इधर-उधर करके बताने को झूठ नही मानती। अपनी बात को
सही सिद्ध करने के लिए वह तर्क-वितर्क भी करती है।
3. वह दूसरों को
अपनी इच्छानुसार बदल देना चाहती है पर स्वयं बिलकुल नही बदलती।
4. वह शास्त्रीय
बातों की व्याख्या अपनी इच्छानुसार करती थी।
5. भक्तिन द्वारा
शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?
उत्तर:- लेखिका
को भक्तिन का सिर मुंडवाना पसंद नहीं था। लेखिका उसे ऐसा करने के लिए मना करती थी।
परन्तु भक्तिन केश मुँडाने से मना किए जाने पर शास्त्रों का हवाला देते हुए कहती
है ‘तीरथ गए मुँडाए सिद्ध’। यह बात किस शास्त्र में लिखी है इसका भक्तिन
को कोई ज्ञान नहीं था जबकि लेखिका को पता था कि यह उक्ति शास्त्र द्वारा न होकर
किसी व्यक्ति द्वारा कही गई है परन्तु तर्क में पटु होने के कारण लेखिका भक्तिन को
सिर मुंडवाने से रोक नहीं पाई।
6. भक्तिन के आ जाने
से महादेवी अधिक देहाती कैसे हो गईं?
उत्तर:- महादेवी,
भक्तिन को नहीं बदल पायी पर भक्तिन ने महादेवी
को बदल दिया। भक्तिन देहाती महिला थी और शहर में आने के बाद भी उसने अपने-आप में
कोई परिवर्तन नहीं किया। भक्तिन देहाती खाना गाढ़ी दाल, मोटी रोटी, मकई की लपसी,
ज्वार के भुने हुए भुट्टे के हरे दाने, बाजरे के तिल वाले पुए आदि बनाती और महादेवी को
वैसे ही खाना पड़ता था। भक्तिन के हाथ का मोटा-देहाती खाना खाते-खाते महादेवी का
स्वाद बदल गया और वे भक्तिन की तरह ही देहाती बन गई।
7. आलो आँधारि की
नायिका और लेखिका बेबी हालदार और भक्तिन के व्यक्तित्व में आप क्या समानता देखते
हैं?
उत्तर:- आलो
आँधारि की नायिका और भक्तिन के व्यक्तित्व में यह समानता है कि दोनों ही घरेलू
नौकरानियाँ हैं। दोनों को ही परिवार से उपेक्षा मिली और दोनों ने ही अपने आत्म
सम्मान को बचाते हुए अपने जीवन का निर्वाह किया।
8. भक्तिन की बेटी
के मामले में जिस तरह का फ़ैसला पंचायत ने सुनाया, वह आज भी कोई हैरतअंगेज है बात नहीं है। अखबारों या टी. वी.
समाचारों में आनेवाली किसी ऐसी ही घटना को भक्तिन के उस प्रसंग के साथ रखकर उस पर
चर्चा करें।
उत्तर:- आज भी
हमारे समाज में विवाह के संदर्भ में पंचायत का रुख बड़ा ही क्रूर, संकीर्ण और रुढ़िवादी है। आज भी विवाह संबंधी
निर्णय पंचायत में लिए जाते हैं। पंचायत अपनी रुढ़िवादी विचारधाराओं से प्रभावित
होकर कभी-कभी अमानवीय फैसले दे देते हैं।
आज भी पंचायतों
का तानाशाही रवैया जारी है। अखबारों तथा टी.वी में आए दिन इस प्रकार की घटनाएँ
सुनने को मिलती है कि पंचायत ने पति-पत्नी को भाई-बहन की तरह रहने पर मजबूर कर
दिया, शादी हो जाने के बाद भी
पति-पत्नी को अलग रहने पर मजबूर किया और उनकी बात न मानने पर उनकी हत्या भी कर दी।
• भाषा की बात
9. नीचे दिए गए
विशिष्ट भाषा-प्रयोगों के उदाहरणों को ध्यान से पढ़िए और इनकी अर्थ-छवि स्पष्ट
कीजिए –
1. पहली कन्या के दो
संस्करण और कर डाले
2. खोटे सिक्कों की
टकसाल जैसी पत्नी
3. अस्पष्ट
पुनरावृत्तियाँ और स्पष्ट सहानुभूतिपूर्ण
उत्तर:- 1.
जैसे किसी पुस्तक के नए रूप निकलते हैं,
ठीक उसी प्रकार भक्तिन ने अपनी पहली कन्या के
बाद दो अन्य कन्याएँ पैदा कर दीं।
2. टकसाल सिक्के
ढालने वाली मशीन को कहते हैं। भारतीय समाज में ‘लड़के’ को खरा सिक्का और
‘लड़की’ को खोटा सिक्का कहा जाता है। समाज में लड़कियों
का कोई महत्त्व नहीं होता है।
भक्तिन को खोटे
सिक्के की टकसाल की संज्ञा दी है क्योंकि उसने एक के बाद एक तीन लड़कियाँ उत्पन्न
कीं, जबकि समाज पुत्र जन्म
देने वाली स्त्रियों को महत्त्व देता है।
3. भक्तिन अपनी पिता
के देहांत के कई दिन बाद पहुँची। जब वह मायके की सीमा तक पहुँचीं तो लोग कानाफूसी
करते हुए पाए गए कि बेचारी अब आई है। आमतौर पर शोक की खबर प्रत्यक्ष तौर पर नहीं
की जाती। कानाफूसी या फुसफुसाहट के अस्पष्ट शब्दों में कहीं जाती है। अत:लेखिका ने
इसे अस्पस्ट पुनरावृत्तियाँ कहा है। वहीँ पिता के देहांत के कारण लोग उसे
सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देख रहे थे तथा ढाँढ़स बँधा रहे थे। बातें स्पष्ट तौर पर
की जा रही थीं। अत:उन्हें लेखिका ने स्पष्ट सहानुभूति कहा है।
10. ‘बहनोई‘ शब्द ‘बहन (स्त्री.)+ओई‘ से बना है। इस
शब्द में हिन्दी भाषा की एक अनन्य विशेषता प्रकट हुई है। पुल्लिंग शब्दों में कुछ
स्त्री-प्रत्यय जोड़ने से स्त्रीलिंग शब्द बनने की एक समान प्रक्रिया कई भाषाओं
में दिखती है, पर स्त्रीलिंग
शब्द में कुछ पुं. प्रत्यय जोड़कर पुल्लिंग शब्द बनाने की घटना प्रायः अन्य भाषाओं
में दिखलाई नहीं पड़ती।
यहाँ पुं.
प्रत्यय ‘ओई‘ हिन्दी की अपनी विशेषता है। ऐसे कुछ और शब्द और
उनमें लगे पुं. प्रत्ययों की हिन्दी तथा और भाषाओं में खोज करें।
उत्तर:- इसी
प्रकार का एक शब्द है
ननद + दोई =
ननदोई
11. पाठ में आए
लोकभाषा के इन संवादों को समझ कर इन्हें खड़ी बोली हिन्दी में ढाल कर प्रस्तुत
कीजिए।
क. ई कउन बड़ी
बात आय। रोटी बनाय जानित है, दाल राँध लेइत है,
साग-भाजी छँउक सकित है, अउर बाकी का रहा।
ख. हमारे मालकिन
तौ रात-दिन कितबियन माँ गड़ी रहती हैं। अब हमहूँ पढ़ै लागब तो घर-गिरिस्ती कउन
देखी-सुनी।
ग. ऊ बिचरिअउ तौ
रात-दिन काम माँ झुकी रहती हैं, अउर तुम पचै
घूमती-फिरती हौ, चलौ तनिक हाथ
बटाय लेउ।
घ. तब ऊ कुच्छौ
करिहैं-धरिहैं ना-बस गली-गली गाउत-बजाउत फिरिहैं।
ङ. तुम पचै का का
बताईयहै पचास बरिस से संग रहित है।
च. हम कुकरी
बिलारी न होयँ, हमार मन पुसाई तौ
हम दूसरा के जाब नाहिं त तुम्हार पचै की छाती पै होरहा भूँजब और राज करब, समुझे रहौ।
उत्तर:- क. यह
कौन बड़ी बात है। रोटी बनाना जानती हूँ। दाल बना लेती हूँ। साग-भाजी छौंक सकती हूँ
और शेष क्या रहा।
ख. हमारी मालकिन
तो रात दिन पुस्तकों में ही व्यस्त रहती हैं। अब यदि मैं भी पढ़ने लगूँ तो
घर-परिवार के कार्य कौन करेगा।
ग. वह बेचारी तो
रात-दिन काम में लगी रहती है और तुम लोग घूमते-फिरते हो। जाओ, थोड़ी उनकी सहायता करो।
घ. तब वह कुछ
करता धरता नहीं होगा, बस गली-गली में
गाता बजाता फिरता है।
ङ. तुम लोगों को
क्या बताऊँ पचास वर्ष से साथ में रहती हूँ।
च. मैं
कुतिया-बिल्ली नहीं हूँ। मेरा मन करेगा तो मैं दूसरे के घर जाऊँगी, अन्यथा तुम लोगों की छाती पर ही हौला भुनुँगी
राज करुँगी-यह समझ लेना।
12. भक्तिन पाठ में
पहली कन्या के दो संस्करण जैसे प्रयोग लेखिका के खास भाषाई संस्कार की पहचान कराता
है, साथ ही ये प्रयोग कथ्य को
संप्रेषणीय बनाने में भी मददगार हैं। वर्तमान हिंदी में भी कुछ अन्य प्रकार की
शब्दावली समाहित हुई है। नीचे कुछ वाक्य दिए जा रहे हैं जिससे वक्ता की खास पसंद
का पता चलता है।
आप वाक्य पढ़कर
बताएँ कि इनमें किन तीन विशेष प्रकार की शब्दावली का प्रयोग हुआ है? इन शब्दावलियों या इनके अतिरिक्त अन्य किन्हीं
विशेष शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए आप भी कुछ वाक्य बनाएँ और कक्षा में चर्चा
करें कि ऐसे प्रयोग भाषा की समृद्धि में कहाँ तक सहायक है?
1. अरे! उससे सावधन
रहना! वह नीचे से ऊपर तक वायरस से भरा हुआ है। जिस सिस्टम में जाता है उसे हैंग कर
देता है।
2. घबरा मत! मेरी
इनस्वींगर के सामने उसके सारे वायरस घुटने टेकेंगे। अगर ज्यादा फाउल मारा तो रेड
कार्ड दिखा के हमेशा के लिए पवेलियन भेज दूँगा।
3. जानी टेंसन नई
लेने का वो जिस स्कूल में पढ़ता है अपुन उसका हैडमास्टर है।
उत्तर:- 1.
इस वाक्य में कंप्यूटर की तकनीकी भाषा का
प्रयोग हुआ है। यहाँ ‘वायरस’ का अर्थ दोष, ‘सिस्टम‘ का अर्थ है
व्यवस्था ‘हैंग’का अर्थ है ठहराव।
इस वाक्य का अर्थ
यह है – वह पूरी तरह दूषित है। वह
जहाँ भी जाता है, पूरी
कार्यप्रणाली में खलल डाल देता है।
2. इस वाक्य में खेल
से संबंधित शब्दावली का प्रयोग हुआ है। यहाँ ‘इनस्वींगर’ का अर्थ है –
गहराई से भेदने वाली कार्यवाही, ‘फाउल’ का अर्थ गलत काम, ‘रेड कार्ड’
का अर्थ है बाहर जाने का संकेत तथा ‘पवेलियन’का अर्थ है वापिस भेजना।
इस वाक्य का अर्थ
यह है – घबरा मत। जब मैं अन्दर तक
मार करने वाली कार्यवाही करूँगा तो उसकी सारी हेकड़ी निकल जाएगी। अगर उसने अधिक
गड़बड़ की तो उसे क़ानूनी दांवपेंच में फँसाकर बाहर निकाल फेंकूँगा।
3. इस वाक्य में
मुंबई की भाषा का प्रयोग है। ‘जानी’ शब्द का अर्थ है कोई भी व्यक्ति, ‘टेंसन लेना’ का अर्थ है – परवाह करना, ‘स्कूल में पढ़ना’
का अर्थ है – काम करना तथा ‘हैडमास्टर’ होना का अर्थ है –
कार्य में निपुण होना।
इस वाक्य का अर्थ
यह है – चिंता मत करो, वह जो काम कर रहा है, उस काम में मैं उसका उस्ताद हूँ
वस्तुपरक प्रश्न-
“भक्तिन” पाठ की लेखिका कौन है – महादेवी वर्मा जी
“भक्तिन” संस्मरण महादेवी वर्मा की किस कृति में संकलित है – स्मृति की रेखाएं
भक्तिन किस विधा में लिखा गया हैं – आत्मसंस्मणात्मक रेखाचित्र
“भक्तिन” पाठ में मूलत: किन सामाजिक समस्याओं का उल्लेख किया गया है – अशिक्षा अंधविश्वास , विधवा समस्या व लड़के और लड़कियों में भेदभाव
भक्तिन , महादेवी वर्माजी से कितने वर्ष बड़ी थी – लगभग 25 वर्ष
महादेवी वर्मा जी ने भक्तिन के जीवन को कितने परिच्छेदों (भागों) में विभक्त किया है – 4
भक्तिन पाठ के आधार पर पंचायतों की क्या तस्वीर उभरती है – पंचायतें गूंगी , लाचार और अयोग्य थी।
भक्तिन कौन थी – महादेवी वर्मा जी की देहाती सेविका
भक्तिन का वास्तविक नाम क्या था – लछमिन (लक्ष्मी)
भक्तिन का शूरवीर पिता किस गांव का रहने वाला था – झूसी
भक्तिन का विवाह किस गांव में हुआ था – हँडिया
भक्तिन का विवाह किस आयु में हुआ था – 5
भक्तिन का गौना किस उम्र में हुआ था – नौ वर्ष (9)
भक्तिन की कितनी जेठानियाँ थी – दो
भक्तिन का कद व आंखें कैसी थी – छोटी आंखें , छोटा कद
भक्तिन के पति की मृत्यु के समय , भक्तिन की उम्र कितनी थी – 29 वर्ष
भक्तिन के पति की मृत्यु किस उम्र में हुई – 36 वर्ष में
“तुषारपात” का शाब्दिक अर्थ क्या है – ओले गिरना
भक्तिन की कितनी बेटियां थी – 3
भक्तिन की विशेषताएं बताइए – वह परिश्रमी व स्वाभिमानी सेविका थी
भक्तिन में कौन सा भाव प्रबल था – स्वाभिमान
पाठ के अनुसार “खोटे सिक्कों की टकसाल” का क्या अर्थ है – कन्याओं को जन्म देने वाली महिला या पत्नी
पाठ में “खोटे सिक्कों की टकसाल” किसे कहा गया है – भक्तिन को
भक्तिन का (लछमिन से भक्तिन) नामकरण किसने किया – महादेवी वर्मा
महादेवी वर्माजी ने लछमिन को “भक्तिन” कहना क्यों आरंभ कर दिया – उसके गले में कंठी माला देखकर
भक्तिन ने लेखिका से क्या प्रार्थना की – उसे उसके वास्तविक नाम (लछमिन) से न बुलाने की
लछमिन ने लेखिका से उसका असली नाम न प्रयोग करने की विनती क्यों की – क्योंकि वह अपने नाम के विपरीत बहुत गरीब थी
“वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताना नहीं चाहती थी”। यहां किस नाम को समृद्धि सूचक कहा गया है – लक्ष्मी (धन की देवी)
भक्तिन किसके लिए लड़ाई लड़ती रहती थी – अपनी बेटियों के हक के लिए
भक्तिन किस प्रकार का भोजन बनाती थी – सीधा – साधा , सरल व सात्विक
उसे किसी अन्य का कहां आना पसंद नहीं था – अपनी रसोई घर में
भक्तिन किसके समान लेखिका के साथ लगी रहती थी – छाया के समान
ससुराल में भक्तिन के साथ उसके पति का व्यवहार कैसा था – बहुत अच्छा
भक्तिन घरवालों की उपेक्षा के बाद भी “सौभाग्यशाली” क्यों थी – क्योंकि उसका पति उसे कभी डाँटता या उसके साथ अभद्र व्यवहार नहीं करता था।
भक्तिन अपने पति को क्या संबोधन कर याद करती थी – बुढ़ऊ
“वह बड़े बाप की , बड़ी बात वाली बेटी को पहचानता था” , यह कथन किसके लिए कहा है – भक्तिन के पति के लिए
जेठानिया , भक्तिन के साथ कैसा व्यवहार करती थी – क्रूरता भरा
भक्तिन को दूसरा विवाह करने के लिए कौन उकसाता था – जेठ – जेठानी
भक्तिन के ससुराल वालों ने उसके पति की मृत्यु के बाद , उसे पुनर्विवाह करने के लिए क्यों कहा – ताकि वो भक्तिन का घर , जमीन व संपत्ति हड़प सकें
हमारा समाज विधवाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है – असम्मान पूर्ण
तीन -तीन कमाऊ वीरों की विधात्री (जन्म देने वाली मां) बनकर मचिया के ऊपर पुरखिन
(बुजुर्ग पूर्वज महिला) बनकर कौन विराजमान रहती थी – भक्तिन की सास
भक्तिन की जेठानियाँ आपस में बैठकर कैसी चर्चा करती थी – लोक चर्चा
भक्तिन के हरे – भरे खेत , मोटी ताजी गाय – भैंस और फलों से लदे पेड़ों को देखकर किसके मुंह में पानी आ जाता था – जेठ -जेठानी
सास ने भक्तिन को , उसके पिता की मृत्यु की खबर क्यों नहीं दी- रोने धोने के अपशकुन से बचने के लिए
भक्तिन के आने के बाद , महादेवी वर्मा अपने आपको क्या मानने लगी थी – देहाती
भक्तिन का परम कर्तव्य क्या था – हर प्रकार से लेखिका को खुश रखना
सेवक धर्म में भक्तिन की तुलना किससे की गई है- हनुमान जी से
भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख क्यों हुआ है – सेवा भाव के लिए
लेखिका को भक्तिन क्या मानने लगी थी – अपनी संरक्षिका
भक्तिन , लेखिका को बिना बताएं घर में बिखरे हुए पैसों को उठाकर कहां रख देती थी – भंडार गृह की मटकी में
किस रहस्य के बारे में पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती थी – इधर -उधर पड़े पैसों को भंडार गृह की मटकी में रखने के संबंध में
भक्तिन के शास्त्रार्थ की चुनौती को स्वीकार करना , किसके लिए भी संभव नहीं था – तर्क शिरोमणि के लिए
भक्तिन को किस बात का दुःख होता था – चित्रकला और कविता लिखने के दौरान लेखिका की किसी प्रकार की कोई सहायता न कर पाने का
लेखिका के देर रात तक काम करते वक्त , भक्तिन कहां बैठी रहती थी – जमीन में दरी बिछा कर
लेखिका के देर रात तक काम करते वक्त , भक्तिन उनके सामने बैठकर क्या करती थी – उन्हें क्रियात्मक सहयोग देती थी
लेखिका का भक्तिन के साथ किस प्रकार का संबंध बन गया था – लेखिका ने भक्तिन को अपने ही परिवार का सदस्य मान लिया था
भक्तिन धीरे-धीरे लेखिका को किस तरह लगने लगी – एक अभिभावक की तरह
अजिया ससुर किसे कहते हैं – पति के दादा को
भक्तिन बिना पढ़े ही , पढ़ने वालों की क्या बन गई थी – गुरु
भक्तिन , लेखिका को कैसी चाय बना कर देती थी – तुलसी की
भक्तिन लेखिका को दही का शरबत या तुलसी की चाय कब बना कर देती थी – जब वह बहुत व्यस्त होती थी
किस बेटी के पति को भक्तिन ने घर दामाद बनाया – बड़ी बेटी के
बड़े दामाद की मृत्यु के बाद , जिठौत ने भक्तिन की बेटी से विवाह करने के लिए किसे बुलाया – अपने तीतर लड़ाने वाले साले को
युवक (जिठौत के साले) के गाल पर युवती (भक्तिन की बेटी) के पांच अंगुलियों के निशान किस बात के गवाह थे – तीतर बाज युवक दोषी था
भक्तिन की विधवा बेटी के न चाहने पर भी उसका दूसरा विवाह कैसे हुआ – धोखे से
भक्तिन की बेटी और जेठ के साले के लिए पंचों ने क्या फैसला सुनाया – दोनों को पति पत्नी माना
भक्तिन की बेटी के संबंध में पंचों का फैसला कैसा था – दुर्भाग्यपूर्ण , अन्यायपूर्ण और एक तरफा
बेमेल विवाह का क्या परिणाम हुआ – दोनों में अनबन का कारण बना
बेटी के दूसरे विवाह के बाद , भक्तिन की आर्थिक स्थिति कैसी हो गई थी – बहुत खराब
लगान न चुका पाने के कारण भक्तिन को क्या सजा मिली – उसे दिन भर धूप में खड़ा रहना पड़ा
भक्तिन ने दुखी होकर क्या किया- गाँव छोड़कर नौकरी के लिए शहर का रुख किया
अपमानित होने के बाद , अकेले ही गाँव छोड़कर नौकरी के लिए शहर का रुख करना ,
भक्तिन के स्वभाव की कौन सी विशेषता बताता है – स्वाभिमानी और मेहनती
भक्तिन के जीवन के किस परिच्छेद को अंतिम परिच्छेद कहा है- चौथे (4th)
चौथा परिच्छेद कब शुरू होता है – लेखिका के घर नौकरी करने से बाद
पहले दिन भक्तिन ने लेखिका को खाने में क्या दिया – गाढी दाल और चार मोटी रोटियां
लेखिका ने क्या-क्या खाया – थोड़ी दाल और सिर्फ एक रोटी
लेखिका ने यह किसके लिए कहा है ,” टेढ़ी खीर है और दूसरों को अपने अनुसार बना लेना चाहती है” – भक्तिन के लिए
भक्तिन का बनाया देहाती खाना खाकर लेखिका खुद को क्या कहने लगी – देहातिन
“सिर -घुटाना” का क्या अर्थ है – सिर के बाल उतरवाना
भक्तिन की हर वीरबार होने वाली “सिर -घुटाना” प्रक्रिया को लेखिका ने क्या नाम दिया – बाल चूड़ाकर्म
“तीर्थ गए मुंडाए सिद्ध” किसका कथन है – भक्तिन का
लेखिका के मित्र व संबंधियों को भक्तिन कैसे याद करती थी – उनके अपभ्रंश नामों से
भक्तिन लंबे बाल वालों को क्या कहती थी – कवि
भक्तिन किससे सबसे ज्यादा डरती थी – जेल या कारागार जाने से
भक्तिन जेल जाने से डरती थी परंतु लेखिका के जेल जाने पर वह क्या करना चाहती थी – उनके साथ जेल जाना चाहती थी
लेखिका के साथ जेल जाने के लिए , वह किससे लड़ने को तैयार थी – वायसराय (लाट) से
पिछले वर्ष किस भय से भक्तिन ने उन्हें गांव चलने को कहा – युद्ध के भय से
छात्रावास की लड़कियों के लिए भक्तिन , क्या बना दिया करती थी – चाय नाश्ता
पहाड़ी तंग रास्तों में या बद्री केदार के दुर्गम मार्ग में भ्रमण के समय , भक्तिन लेखिका के कहां रहती थी – आगे
धूल भरे रास्तों में वह कहां रहती थी – पीछे का
लोगों के यह पूछने पर कि , वो लेखिका के यहां कितने समय से रहती है। भक्तिन उन्हें क्या जवाब देती थी – पिछले 50 बरस से
भक्तिन की कहानी को लेखिका अधूरी क्यों रखना चाहती थी – क्योंकि वह भक्तिन को खोना नहीं चाहती थी।
“भक्तिन की कहानी अधूरी है पर उसे खोकर मैं इसे पूरा नहीं करना चाहती”। लेखिका के इस कथन के पीछे क्या कारण है – भक्तिन के अंत को स्वीकार ना करना
भक्तिन कहती थी कि ………के बुलावे को हम दोनों में से कोई भी ठुकरा नहीं पाएगा – मौत के
“कुकुरी -बिलारी” का क्या अर्थ है – कुत्ता बिल्ली
सोना , बसंत और गोधूलि कौन है – हिरनी , कुत्ता और बिल्ली
“देहातिन वृद्धा” किसे कहा गया है – भक्तिन को
गांव में भक्तिन लकड़ी रखने के मचान पर धान के पुआल से क्या बनाना चाहती थी – सोने का स्थान
भक्तिन ने कितने रुपए छुपाकर गांव में रखे थे – पांच बीसी और पांच रुपया
किसके बल पर भक्तिन अपने जीवन के संघर्ष को जीत गई – अपनी मेहनत व स्वाभिमान के बल पर
लेखिका के लिए आंगन में खिलने वाला गुलाब और आम , सेवक क्यों नहीं थे – क्योंकि इनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है।
आम और गुलाब की समानता किससे की गई है – अंधेरे और उजाले से
“पर जैसे मेरे नाम की विशालता , मेरे लिए दुर्वह है। … “। इस पंक्ति में “मेरे” शब्द किसके लिए प्रयोग हुआ है – लेखिका के लिए
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