काव्यगत विशेषताएँ-कवि की 1972-73 में प्रकाशित कविताएँ हिंदी
के अनेक गंभीर काव्य-प्रेमियों को जबानी याद रही हैं। आलोचकों का मानना है कि इनकी
कविताओं के प्रभाव का अभी तक ठीक से मूल्यांकन नहीं किया गया है। इसी कारण शायद
कवि ने अधिक लेखन नहीं किया। इनके काव्य में भारतीय संस्कृति का चित्रण है। ये बाल
मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझते हैं। ‘पतंग’ कविता बालसुलभ इच्छाओं व उमंगों का सुंदर चित्रण है।
भाषा-शैली-कवि ने शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया
है। ये बिंबों का सुंदर प्रयोग करते हैं। इनकी भाषा सहज व सरल है। इन्होंने
अलंकारों का सुंदर व कुशलता से प्रयोग किया है।
कविता का प्रतिपादय एवं सार
‘पतंग’ कविता
कवि के ‘दुनिया रोज़ बनती है’व्यंग्य संग्रह से ली गई है। इस कविता में कवि ने
बालसुलभ इच्छाओं और उमंगों का सुंदर चित्रण किया है। बाल क्रियाकलापों एवं प्रकृति
में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए इन्होंने सुंदर बिंबों का उपयोग किया
है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है जिसके जरिये वे आसमान की
ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं तथा उसके पार जाना चाहते हैं।
यह कविता बच्चों को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ शरद
ऋतु का चमकीला इशारा है, जहाँ तितलियों की रंगीन दुनिया है, दिशाओं
के मृदंग बजते हैं, जहाँ छतों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर भय
पर विजय पाते बच्चे हैं जो गिरगिरकर सँभलते हैं तथा पृथ्वी का हर कोना खुद-ब-खुद
उनके पास आ जाता है। वे हर बार नई-नई पतंगों को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए
औधेरे के बाद उजाले की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सार-कवि कहता है कि भादों के बरसते मौसम के बाद शरद ऋतु आ
गई। इस मौसम में चमकीली धूप थी तथा उमंग का माहौल था। बच्चे पतंग उड़ाने के लिए
इकट्ठे हो गए। मौसम साफ़ हो गया तथा आकाश मुलायम हो गया। बच्चे पतंगें उड़ाने लगे
तथा सीटियाँ व किलकारियाँ मारने लगे। बच्चे भागते हुए ऐसे लगते हैं मानो उनके शरीर
में कपास लगे हों। उनके कोमल नरम शरीर पर चोट व खरोंच अधिक असर नहीं डालती। उनके
पैरों में बेचैनी होती है जिसके कारण वे सारी धरती को नापना चाहते हैं।
वे मकान की छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं मानी छतें नरम
हों। खेलते हुए उनका शरीर रोमांचित हो जाता है। इस रोमांच मैं वे गिरने से बच जाते
हैं। बच्चे पतंग के साथ उड़ते-से लगते हैं। कभी-कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से
गिरकर भी बच जाते हैं। इसके बाद इनमें साहस तथा आत्मविश्वास बढ़ जाता है।व्याख्या
एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
वस्तुपरक प्रश्न-
1. बच्चे पतंगों के साथ-साथ किस के सहारे उड़ रहे हैं?
2. 'पतंग' कविता में 'कपास' किसकी प्रतीक है?
3. पतंग उड़ाने वाले बच्चे दिशाओं को किसके समान बजाते हैं?
4. पृथ्वी किनके बेचैन पैरों के पास घूमती हुई आती है?
5. कौन-सी ऋतु आकाश को मुलायम बना देती है?
6. पतंग कविता में लाल सवेरा को कैसा कहा गया है?
7. दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज़ किसे कहा गया है?
8. 'पतंग' कविता के कवि हैं-
9. कवि ने तेज़ बौछारों के जाने के साथ ही किस महीने के भी चले जाने की बात कही है?
10. किस की आँखों जैसा लाल सवेरा हुआ?
11. पुलों को पार करते हुए कौन-सी ऋतु आई?
12. शरद क्या चलाते हुए आता है?
13. शरद क्या बजा रहा है?
14. शरद बच्चों के झुंड को कैसे इशारों से बुलाता है?
15. पतंग के साथ बच्चे कैसे दौड़ते हैं?
16. 'मृदंग' क्या है?
17. उन बच्चों का शरीर किस की तरह लचीला है?
18. 'पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं' से आशय है-
19. शरद की साइकिल कैसी है?
20. बच्चों के रोमांचित शरीर का संगीत क्या करता है?
21. पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ क्या करती हैं?
22. 'पतंग' कविता में 'चमकीले विशेषण' किस के लिए है?
1पतंग कविता के कवि कौन है – आलोक धन्वा जी
2पतंग कविता के माध्यम से कवि ने क्या बताने की कोशिश की है – बच्चों और पतंग के बीच के गहरे संबंध को
3आसमान कब एकदम साफ , स्वच्छ व निर्मल होता हैं – शरद ऋतु में
4“खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा” , में कौन सा अलंकार हैं – उपमा अलंकार
5 पिछले साल की शरद ऋतु से इस साल की शरद ऋतु के आने तक , बीच में कई और ऋतुएँ भी आयी और गई । कवि ने उन सभी ऋतुओं को किसका नाम दिया हैं – पुल का
6शरद ऋतु में , आसमान में चारों ओर फैली चमकीली सूरज की किरणें कवि को कैसी प्रतीत होती हैं – किसी साइकिल की भांति
7“सुनहरे सूरज” , में कौन सा अलंकार हैं – अनुप्रास अलंकार
8कवि ने शरद ऋतु की तुलना किससे की हैं – साइकिल चलाने वाले किसी छोटे बच्चे से
9“शरद आया पुलों को पार करते हुए” , पंक्ति की विशेषता बताइये – “शरद आया” में शरद ऋतु का मानवीकरण किया है।
10“ज़ोर-ज़ोर” , में कौन सा अलंकार हैं – पुरुक्तिप्रकाश अलंकार
11आकाश को एकदम मुलायम किसने बनाया – बालक शरद ने
12बालक शरद ने आकाश को एकदम मुलायम क्यों बनाया – ताकि बच्चे पतंग उडा सकें
13बालक शरद क्या चाहता हैं – दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन पतंग आसमान में ऊंची उड़ें
14“आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए” , में कौन सा बिम्ब हैं – स्पर्श्य बिम्ब
15“पतंग ऊपर उठ सके” , में कौन सा बिम्ब हैं – दृश्य बिम्ब
16कवि ने बच्चों की तुलना कपास के साथ क्यों की – क्योंकि बच्चों का मन व भावनाएं कपास की तरह ही स्वच्छ , कोमल और पवित्र होती हैं।
17बच्चे पतंग की डोर खींचते-खींचते कहाँ तक पहुंच जाते हैं – छत के एकदम किनारे तक
18आसमान की ऊंचाइयों पर लहराती पतंग बच्चों के दिलों को किससे भर देती हैं – उत्साह , उमंग व खुशी से
19“पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास” , की क्या विशेषता हैं – यहाँ पृथ्वी का मानवीकरण किया है।
20“दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए” और “डाल की तरह लचीले वेग से अकसर” , में कौन सा अलंकार हैं – उपमा अलंकार
21बच्चे अपनी पतंग के साथ आसमान में कैसे उड़ते हैं – अपने रंध्रों के सहारे (यानी अपनी कल्पनाओं , भावनाओं व खुशी के सहारे)
22“धड़कती ऊचाइयाँ” , पंक्ति की क्या विशेषता हैं – इसमें दृश्य बिंब है
23“पतंगों के साथ वो भी उड़ रहे हैं” , से कवि का क्या आशय हैं – बच्चों के मन में आकाश छू लेने का अहसास
24बच्चे और निडर कब हो जाते हैं – जब वो एक बार छत से नीचे गिर कर बच जाते हैं
25पतंग उड़ाते बच्चे छतों के किनारों से नीचे गिर जाते हैं और बच जाते हैं तो क्या होता हैं – उनके अंदर आत्मविश्वास और अधिक बढ़ जाता है और उनका डर खत्म हो जाता हैं।
26“गिरकर बच जाते हैं” में कौन सा अलंकार हैं – विरोधाभास अलंकार
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
कविता के साथ
प्रश्न 1:
‘सबसे तेज बौछारें गयीं, भादो गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवतन कवि ने दिखाया हैं, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
अथवा
सबसे तेज बौछारों के साथ भादों के बीत जाने के बाद प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण ‘पतग’ कविता के आधार पर अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर –
इस कविता में कवि ने प्राकृतिक वातावरण का सुंदर वर्णन किया है। भादों माह में तेज वर्षा होती है। इसमें बौछारें पड़ती हैं। बौछारों के समाप्त होने पर शरद का समय आता है। मौसम खुल जाता है। प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं-
सवेरे का सूरज खरगोश की आँखों जैसा लाल-लाल दिखाई देता है।
शरद ऋतु के आगमन से उमस समाप्त हो जाती है। ऐसा लगता है कि शरद अपनी साइकिल को तेज गति से चलाता हुआ आ रहा है।
वातावरण साफ़ व धुला हुआ-सा लगता है।
धूप चमकीली होती है।
फूलों पर तितलियाँ मंडराती दिखाई देती हैं।
प्रश्न 2:
सोचकर बताएँ कि पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया गया है?
उत्तर –
कवि ने पतंग के लिए सबसे हलकी और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग किया है। वह इसके माध्यम से पतंग की विशेषता तथा बाल-सुलभ चेष्टाओं को बताना चाहता है। बच्चे भी हलके होते हैं, उनकी कल्पनाएँ रंगीन होती हैं। वे अत्यंत कोमल व निश्छल मन के होते हैं। इसी तरह पतंगें भी रंगबिरंगी, हल्की होती हैं। वे आकाश में दूर तक जाती हैं। इन विशेषणों के प्रयोग से कवि पाठकों का ध्यान आकर्षित करना चाहता है।
प्रश्न 3:
बिंब स्पष्ट करें-
सबसे तेज़ बौछारें गयीं। भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नई चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतग उड़ाने वाले बच्चों के झुड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके
उत्तर –
इस अंश में कवि ने स्थिर व गतिशील आदि दृश्य बिंबों को उकेरा है। इन्हें हम इस तरह से बता सकते हैं-
तेज बौछारें – दृश्य बिंब।
सवेरा हुआ – दृश्य बिंब।
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा – दृश्य बिंब।
पुलों को पार करते हुए – दृश्य बिंब।
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए – दृश्य बिंब।
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से – श्रव्य बिंब।
चमकीले इशारों से बुलाते हुए – दृश्य बिंब।
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए – स्पर्श्य और दृश्य बिंब।
पतंग ऊपर उठ सके – दृश्य बिंब।
प्रश्न 4:
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास – कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बन सकता हैं?
उत्तर –
कपास व बच्चों के मध्य गहरा संबंध है। कपास हलकी, मुलायम, गद्देदार व चोट सहने में सक्षम होती है। कपास की प्रकृति भी निर्मल व निश्छल होती है। इसी तरह बच्चे भी कोमल व निश्छल स्वभाव के होते हैं। उनमें चोट सहने की क्षमता भी होती है। उनका शरीर भी हलका व मुलायम होता है। कपास बच्चों की कोमल भावनाओं ,उज्ज्वलता, पवित्रता व उनकी मासूमियत का प्रतीक है।
प्रश्न 5:
पतगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं- बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता हैं?
उत्तर –
पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं की परिचायिका है। जब पतंग उड़ती है तो बच्चों का मन भी उड़ता है। पतंग उड़ाते समय बच्चे अत्यधिक उत्साहित होते हैं। पतंग की तरह बालमन भी हिलोरें लेता है। वह भी आसमान की ऊँचाइयों को छूना चाहता है। इस कार्य में बच्चे रास्ते की कठिनाइयों को भी ध्यान में नहीं रखते।उनकी आशाएं, कल्पनाएं,आशाएं और सपने सब पतंग के साथ जुड़े हैं।
प्रश्न 6:
निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
(क) छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं की मृदंग की तरह बजाते हुए
(ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं।
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य हैं?
जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती हैं?
खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?
उत्तर –
इसका तात्पर्य है कि पतंग उड़ाते समय बच्चे ऊँची दीवारों से छतों पर कूदते हैं तो उनकी पदचापों से एक मनोरम संगीत उत्पन्न होता है। यह संगीत मृदंग की ध्वनि की तरह लगता है। साथ ही बच्चों का शोर भी चारों दिशाओं में गूँजता है।
जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए छत कठोर नहीं लगती। इसका कारण यह है कि इस समय हमारा सारा ध्यान पतंग पर ही होता है। हमें कूदते हुए छत की कठोरता का अहसास नहीं होता। हम पतंग के साथ ही खुद को उड़ते हुए महसूस करते हैं।
खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद हम दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को अधिक सक्षम मानते हैं। हममें साहस व निडरता का भाव आ जाता है। हम भय को दूर छोड़ देते हैं।
कविता के आस-पास
प्रश्न 1:
आसमान में रंग-बिरंगी पतगों को देखकर आपके मन में कैसे खयाल आते हैं? लिखिए
उत्तर –
आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर मेरा मन खुशी से भर जाता है। मैं सोचता हूँ कि मेरे जीवन में भी पतंगों की तरह अनगिनत रंग होने चाहिए ताकि मैं भरपूर जीवन जी सकूं। मैं भी पतंग की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहता हूँ। मैं भी नयी ऊँचाइयों को छूना चाहता हूँ।
प्रश्न 2:
“रोमांचित शरीर का संगति’ का जीवन के लय से क्या संबंध है?
उत्तर –
‘रोमांचित शरीर का संगीत’ जीवन की लय से उत्पन्न होता है। जब मनुष्य किसी कार्य में पूरी तरह लीन हो जाता है तो उसके शरीर में अद्भुत रोमांच व संगीत पैदा होता है। वह एक निश्चित दिशा में गति करने लगता है। मन के अनुकूल कार्य करने से हमारा शरीर भी उसी लय से कार्य करता है।
प्रश्न 3:
‘महज एक धागे के सहारे, पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ” उन्हें (बच्चों को) कैसे थाम लेती हैं? चचा करें।
उत्तर –
पतंग बच्चों की कोमल भावनाओं से जुड़ी होती है। पतंग आकाश में उड़ती है, परंतु उसकी ऊँचाई का नियंत्रण बच्चों के हाथ की डोर में होता है। बच्चे पतंग की ऊँचाई पर ही ध्यान रखते हैं। वे स्वयं को भूल जाते हैं। पतंग की बढ़ती ऊँचाई से बालमन और अधिक ऊँचा उड़ने लगता है। पतंग का धागा पतंग की ऊँचाई के साथ-साथ बालमन को भी नियंत्रित करता है।
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग
व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1.सबसे तेज़ बौछारें...... दुनिया।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘पतंग’ से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता आलोक धन्वा हैं। प्रस्तुत
कविता में कवि ने मौसम के साथ प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों व बालमन की सुलभ
चेष्टाओं का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि बरसात के मौसम में जो तेज बौछारें
पड़ती थीं, वे समाप्त हो गई। तेज बौछारों और भादों माह की विदाई के
साथ-साथ ही शरद ऋतु का आगमन हुआ। अब शरद का प्रकाश फैल गया है। इस समय सवेरे उगने
वाले सूरज में खरगोश की आँखों जैसी लालिमा होती है। कवि शरद का मानवीकरण करते हुए
कहता है कि वह अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज गति से चलाते हुए और जोर-जोर से घंटी
बजाते हुए पुलों को पार करते हुए आ रहा है। वह अपने चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने
वाले बच्चों के झुंड को बुला रहा है।
दूसरे शब्दों में, कवि कहना चाहता है कि शरद ऋतु के आगमन से उत्साह, उमंग का
माहौल बन जाता है। कवि कहता है कि शरद ने आकाश को मुलायम कर दिया है ताकि पतंग ऊपर
उड़ सके। वह ऐसा माहौल बनाता है कि दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके।
यानी बच्चे दुनिया के सबसे पतले कागज व बाँस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंग उड़ा
सकें। इन पतंगों को उड़ता देखकर बच्चे सीटियाँ किलकारियाँ मारने लगते हैं। इस ऋतु
में रंग-बिरंगी तितलियाँ भी दिखाई देने लगती हैं। बच्चे भी तितलियों की भाँति कोमल
व नाजुक होते हैं।
विशेष-
कवि ने बिंबात्मक शैली में शरद ऋतु का सुंदर चित्रण किया
है।
बाल-सुलभ चेष्टाओं का अनूठा वर्णन है।
शरद ऋतु का मानवीकरण किया गया है।
उपमा, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
मिश्रित शब्दावली है।
प्रश्न
(क) शरद ऋतु का आगमन कैसे हुआ?
(ख) भादों मास के बाद मौसम में क्या परिवतन हुआ?
(ग) पता के बारे में कवि क्या बताता हैं?
(घ) बच्चों की दुनिया कैसी होती हैं?
उत्तर –
(क) शरद ऋतु अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज़ चलाते हुए पुलों
को पार करते हुए आया। वह अपनी साइकिल की घंटी जोर-जोर से बजाकर पतंग उड़ाने वाले
बच्चों को इशारों से बुला रहा है।
(ख) भादों मास में रात अँधेरी होती है । सुबह में सूरज का
लालिमायुक्त प्रकाश होता है । चारों ओर उत्साह और उमंग का माहौल होता है ।
(ग) पतंग के बारे में कवि बताता है कि वह संसार की सबसे
हलकी, रंग-बिरंगी व हलके कागज की बनी होती है। इसमें लगी बाँस की
कमानी सबसे पतली होती है।
(घ) बच्चों की दुनिया उत्साह, उमंग व बेफ़िक्री का होता
है। आसमान में उड़ती पतंग को देखकर वे किलकारी मारते हैं तथा सीटियाँ बजाते हैं।
वे तितलियों के समान मोहक होते हैं।
2.
जन्म से...... धागे के सहारे।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘पतंग’ से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता आलोक धन्वा हैं। प्रस्तुत
कविता में कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों व बालमन की सुलभ चेष्टाओं का
सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि बच्चों का शरीर कोमल होता है। वे
ऐसे लगते हैं मानो वे कपास की नरमी, लोच आदि लेकर ही पैदा हुए हों। उनकी कोमलता को स्पर्श करने
के लिए धरती भी लालायित रहती है। वह उनके बेचैन पैरों के पास आती है-जब वे मस्त
होकर दौड़ते हैं। दौड़ते समय उन्हें मकान की छतें भी कठोर नहीं लगतीं। उनके पैरों
से छतें भी नरम हो जाती हैं। उनकी पदचापों से सारी दिशाओं में मृदंग जैसा मीठा
स्वर उत्पन्न होता है। वे पतंग उड़ाते हुए इधर से उधर झूले की पेंग की तरह
आगे-पीछे आते-जाते हैं। उनके शरीर में डाली की तरह लचीलापन होता है।
पतंग उड़ाते समय वे छतों के खतरनाक किनारों तक आ जाते हैं।
यहाँ उन्हें कोई बचाने नहीं आता, अपितु उनके शरीर का रोमांच ही उन्हें बचाता है। वे खेल के
रोमांच के सहारे खतरनाक जगहों पर भी पहुँच जाते हैं। इस समय उनका सारा ध्यान पतंग
की डोर के सहारे, उसकी उड़ान व ऊँचाई पर ही केंद्रित रहता है। ऐसा लगता है
मानो पतंग की ऊँचाइयों ने ही उन्हें केवल डोर के सहारे थाम लिया हो।
विशेष-
कवि ने बच्चों की चेष्टाओं का मनोहारी वर्णन किया है।
मानवीकरण, अनुप्रास, उपमा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
खड़ी बोली में भावानुकूल सहज अभिव्यक्ति है।
मिश्रित शब्दावली है।
पतंग को कल्पना के रूप में चित्रित किया गया है।
प्रश्न
(क) पृथ्वी बच्चों के बचन पैरों के पास कैसे आती हैं?
(ख) छतों को नरम बनाने से कवि का क्या आशय हैं?
(ग) बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की क्या
कल्पना रही होगी?
(घ) इन पक्तियों में कवि ने पतग उड़ाते बच्चों की तीव्र
गतिशीलता व चचलता का वर्णन किस प्रकार किया है?
उत्तर –
(क) पृथ्वी बच्चों के बेचैन पैरों के पास इस तरह आती है, मानो वह
अपना पूरा चक्कर लगाकर आ रही हो।
(ख) छतों को नरम बनाने से कवि का आशय यह है कि बच्चे छत पर
ऐसी तेजी और बेफ़िक्री से दौड़ते फिर रहे हैं मानो किसी नरम एवं मुलायम स्थान पर
दौड़ रहे हों, जहाँ गिर जाने पर भी उन्हें चोट लगने का खतरा नहीं है।
(ग) बच्चों की पेंग भरने की तुलना के पीछे कवि की कल्पना यह
रही होगी कि बच्चे पतंग उड़ाते हुए उनकी डोर थामे आगे-पीछे यूँ घूम रहे हैं, मानो वे
किसी लचीली डाल को पकड़कर झूला झूलते हुए आगे-पीछे हो रहे हों।
(घ) इन पंक्तियों में कवि ने पतंग उड़ाते बच्चों की तीव्र
गतिशीलता का वर्णन पृथ्वी के घूमने के माध्यम से और बच्चों की चंचलता का वर्णन डाल
पर झूला झूलने से किया है।
3.
पतंगों के.... पैरों के पास।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में
संकलित कविता ‘पतंग’ से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता आलोक धन्वा हैं। इस कविता
में कवि ने प्रकृति में आने वाले परिवर्तनों व बालमन की सुलभ चेष्टाओं का सजीव
चित्रण किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि आकाश में अपनी पतंगों को उड़ते
देखकर बच्चों के मन भी आकाश में उड़ रहे हैं। उनके शरीर के रोएँ भी संगीत उत्पन्न
कर रहे हैं तथा वे भी आकाश में उड़ रहे हैं।
कभी-कभार वे छतों के किनारों से गिर जाते हैं, परंतु
अपने लचीलेपन के कारण वे बच जाते हैं। उस समय उनके मन का भय समाप्त हो जाता है। वे
अधिक उत्साह के साथ सुनहरे सूरज के सामने फिर आते हैं। दूसरे शब्दों में, वे अगली
सुबह फिर पतंग उड़ाते हैं। उनकी गति और अधिक तेज हो जाती है। पृथ्वी और तेज गति से
उनके बेचैन पैरों के पास आती है।
विशेष-
बच्चे खतरों का सामना करके और भी साहसी बनते हैं, इस भाव
की अभिव्यक्ति है।
मुक्त छंद का प्रयोग है।
मानवीकरण, अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
दृश्य बिंब है।
भाषा में लाक्षणिकता है।
प्रश्न
(क) सुनहले सूरज के सामने आने से कवि का क्या आशय हैं?
(ख) गिरकर बचने पर बच्चों में क्या प्रतिक्रिया होती है?
(ग) पैरों को बेचैन क्यों कहा गया हैं?
(घ) ‘पतगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं”-आशय
स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) सुनहले के सामने आने का आशय है-सूरज के समान तेजमय होकर
क्रियाशील होना तथा बालसुलभ क्रियाओं जैसे-खेलना-कूदना, ऊधम
मचाना, भागदौड़ करना आदि, में शामिल हो जाना।
(ख) गिरकर बचने के बाद बच्चों की यह प्रतिक्रिया होती है कि
उनका भय समाप्त हो जाता है और वे निडर हो जाते हैं। अब उन्हें तपते सूरज के सामने
आने से डर नहीं लगता। अर्थात वे विपत्ति और कष्ट का सामना निडरतापूर्वक करने के
लिए तत्पर हो जाते हैं।
(ग) पैरों को बेचैन इसलिए कहा गया है क्योंकि बच्चे इतने
गतिशील होते हैं कि वे एक स्थान पर टिकना ही नहीं जानते। वे अपने नन्हे-नन्हे
पैरों के सहारे पूरी पृथ्वी नाप लेना चाहते हैं।
(घ) ‘पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं’ का आशय
है बच्चे खुद भी पतंगों के सहारे कल्पना के आकाश में पतंगों जैसी ही ऊँची उड़ान
भरना चाहते हैं। जिस प्रकार पतंगें ऊपर-नीचे उड़ती हैं उसी प्रकार उनकी कल्पनाएँ
भी ऊँची-नीची उड़ान भरती हैं जो मन की डोरी से बँधी होती हैं।
काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
1.
सबसे तेज बौछारें गई भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नई चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को।
प्रश्न
(क) शरद कालीन सुबह की उपमा किससे दी गई हैं? क्यों?
(ख) मानवीकरण अलकार किस पक्ति में प्रयुक्त हुआ है? उसका
सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। .
(ग) शरद ऋतु के आगमन वाले बिंब का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) शरत्कालीन सुबह की उपमा खरगोश की लाल आँखों से दी गई है
क्योंकि प्रात:कालीन सुबह में आसमान में लालिमा छा जाती है। वह लालिमा ठीक उसी तरह
होती है जैसे खरगोश की आँखों की लालिमा।
(ख) मानवीकरण अलंकार वाली पंक्तियाँ शरद आया पुलों को पार
करते हुए. बुलाते हुए। सौंदर्य-यहाँ शरद को नई लाल साइकिल तेजी से चलाते हुए, पुल को
पार करके आते हुए दर्शाकर उसका मानवीकरण किया गया है।
(ग) इन पंक्तियों में शरद को भी बच्चे के रूप में चित्रित
किया गया है जो अपनी नई साइकिल की घंटी जोर-जोर से बजाते हुए अपने चमकीले इशारों
से बच्चों को बुलाने आ रहा है। मानो कह रहा हो,
‘चलो चलकर पतंग उड़ाते हैं।’
2.
जन्म से ही के अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती हैं उनके बैचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लाचीले वेग स अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक-
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का सगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज एक धागे
के सहारे।
प्रश्न
(क) प्रस्तुत काव्याश में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग
किस प्रकार हुआ हैं? बताइए।
(ख) काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ग) “डाल की तरह लचीले वेग’
सौदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) कवि ने इस काव्यांश में मानवीकरण अलंकार का सुंदर
प्रयोग किया है। पृथ्वी, पतंग, दिशा आदि सभी में मानवीय क्रियाकलापों का भाव आरोपित किया
गया है; जैसे-
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास।
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए।
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं।
(ख) कवि ने साहित्यिक खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति की है।
उसने मिश्रित शब्दावली का प्रयोग किया है। पृथ्वी, दिशा, मृदंग, संगीत
आदि तत्सम शब्द तथा नरम, अकसर, सिर्फ, महज आदि उर्दू शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है। उपमा अलंकार
का सुंदर प्रयोग है; जैसे-
– दिशाओं
को मृदंग की तरह बजाते हुए, वे पेंग भरते हुए चले आते हैं, डाल की
लचीले वेग से।
कवि ने दृश्य, स्पर्श व श्रव्य बिंबों का प्रयोग किया है; जैसे-
दृश्य बिंब-पृथ्वी घूमती हुई आती है, जब वे
दौड़ते हैं बेसुध।
श्रव्य बिंब-दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए।
मुक्तक छंद है, परंतु कहीं भी टूटन नजर नहीं आती। भाव एक-दूसरे से जुड़े
हुए हैं।
(ग) इस पंक्ति में कवि ने बच्चों के शरीर के लचीलेपन की
तुलना पेड़ की डाल से की है। पेड़ की डाल एक जगह जुड़ी रहती है फिर भी वह हिलती
रहती है। बच्चे भी पतंग उड़ाते समय अपने शरीर को झुलाते, पीछे-आगे
करते रहते हैं। यह उनकी स्फूर्ति को सिद्ध करता है। यह प्रयोग सर्वथा नया है।
3.
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं। छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती हैं
उनके बचन पैरों के पास।
प्रश्न
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य बताइए।
(ख) काव्यांश में अलकार-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश की भाषागत विशेषतापर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –
(क) कवि ने इस काव्यांश में बच्चों के क्रियाकलापों व उनकी
सहनशक्ति का वर्णन किया है। वे पतंग के सहारे कल्पना में उड़ते रहते हैं। यह
लाक्षणिक प्रयोग है। ‘सुनहले सूरज के सामने आने’ का अर्थ यह है कि वे उत्साह
से आगे बढ़ते हैं।
(ख)काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है। पृथ्वी का तेज घूमते
हुए बच्चों के पास आना मानवीय क्रियाकलाप का उदाहरण है।
‘साथ-साथ’ में
पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘सुनहले
सूरज’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग)कवि ने लाक्षणिक भाषा का प्रयोग किया है।
खतरनाक, सुनहले, तेज, बेचैन आदि विशेषणों का सुंदर प्रयोग है तथा खड़ी बोली में
सहज अभिव्यक्ति है।
मिश्रित शब्दावली का प्रयोग है।
मुक्तक छंद है।
दृश्य बिंबों का ढेर है;
जैसे-
– छतों के
खतरनाक किनारे।
– पृथ्वी
और भी तेज घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास।
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