Tuesday 24 November 2020

वे आँखें- श्री सुमित्रानंदन पंत

 वे आँखें- श्री सुमित्रानंदन पंत




























1.1 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

उत्तर:- आमतौर पर हमें अंधकार, आर्थिक हानि, अपमान, हत्याकांड, प्रियजन की मृत्यु आदि बातों से डर लगता है।


1.2 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

उत्तर:- ‘उन आँखों’ से किसान की ओर संकेत किया गया है।


1.3 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?

उत्तर:- कवि को उन आँखों की असीम वेदना से डर लगता है।


1.4 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

उत्तर:- डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन समाज को किसान की स्थिति से अवगत कराने के लिए किया है ताकि लोग किसान के प्रति सहानुभूति रखें और अत्याचारी महाजनों और थानेदारों का पर्दाफाश कर सके।


1.5 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?

उत्तर:- यदि कवि को किसान की आँखों को देखकर भय न लगता, तो शायद उसे उसकी पीड़ा का बोध न होता और कविता न लिखी जाती क्योंकि कविता लिखने के लिए मन में भावों का होना आवश्यक है।




2. कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें ज़िम्मेदार बताया गया है?

उत्तर:- कविता में किसान की पीड़ा के लिए जमींदार, महाजन व कोतवाल को ज़िम्मेदार बताया है। महाजन ने अपना ब्याज और ऋण वसूलने के लिए किसान के खेत, गाय-बैल और घर-बार बिकवा दिया। उसके कारकुनों ने विरोध करने के कारण उसके जवान बेटे को मरवा दिया। दवाई के अभाव में उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई और इसी कारण उसकी दूध-मुँही बच्ची की भी मृत्यु हो गई।




3. पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर एक चमक है लाती –

इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर:- उपर्युक्त पंक्ति में किसान के निम्न सुखों की ओर संकेत किया गया है – किसान कभी स्वाधीन था उसके घर के पास लहलहाते खेत थे। दुधारू गाय और हृष्ट-पुष्ट बैलों की जोड़ी थी। घर में उसका एक जवान पुत्र, पत्नी, बेटी और पुत्र-वधू भी थी इस तरह से किसान एक सुखी और संतुष्ट किसान था और इन्हीं सब की स्मृति उसकी आँखों में चमक ला देती थी।




4.1 संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें –

उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

उत्तर:-संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। उपर्युक्त पंक्तियों में किसान की उजरी गाय की दुर्दशा का वर्णन किया गया है।

आशय – कवि कहते हैं कि किसान के पास उजरी नाम की एक गाय थी उस गाय के प्रति किसान का कुछ विशेष स्नेह था वह गाय भी केवल किसान को ही दूध दूहने देती थी।


4.2 संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें –

घर में विधवा रही पतोहू

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

उत्तर:-संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। यहाँ पर किसान के जवान पुत्र के मरने का संदर्भ है कि किस प्रकार किसान के बेटे को विरोध करने के लिए मार दिया गया।

आशय – किसान के बेटे को कारकूनों ने मार दिया और उसकी मृत्यु का आरोप जमींदार और पुलिस की मिलीभगत से उसकी पत्नी पर मढ़ दिया गया। उसके मरने में उसकी पत्नी का कोई दोष नहीं था फिर भी समाज ने उसे पति घातिन करार दे दिया जबकि वह विधवा होते हुए भी लक्ष्मी के समान थी। वही कमाकर घर चला रही थी।


4.3 संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें –

पिछले सुख की स्मृति आँखों में

क्षण भर एक चमक है लाती,

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती।

उत्तर:-संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। यहाँ पर किसान के पूर्व सुखों के बारे में बताया गया है।

आशय – किसान जब अपने पूर्व वैभव को याद करता है तो क्षण भर के लिए उसे सुख और आनंद का अनुभव होता है। उसकी आँखों में चमक उभर आती है परंतु किसान का यह सुखद अहसास क्षण भर में विलीन भी हो जाता है और उसे तीखी नोक की भाँति वह सारी सुख की बातें चुभने लगती है।


5. “घर में विधवा रही पतोहू ……/ खैर पैर की जूती, जोरू/एक न सही दूजी आती” इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए ‘वर्तमान समाज और स्त्री’ विषय पर एक लेख लिखें।

उत्तर:- प्रस्तुत कविता में स्त्री की स्थिति बड़ी ही दयनीय बताई गई है। विधवा स्त्री से सहानुभूति रखने की अपेक्षा उसे पति की हत्यारिन करार दिया जाता है। कोतवाल उसे बिना किसी कारण के धमकाता है और उसके साथ कुकर्म करने से भी नहीं चुकता। उसे इतना पीड़ित किया जाता है कि वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दी जाती है।


वर्तमान युग की बात करें तो स्त्रियों की स्थिति पहले की तुलना में कई बेहतर है। आज एक बार लगभग सभी देशों में स्त्री पुनः अपनी शक्ति का लोहा मनवा रही है। हम कह सकते हैं कि आज का युग स्त्री-जागरण का युग है। भारत में तो सर्वोच्च राष्ट्रपति पद की कमान भी स्त्री ने सँभाली है। शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान, चिकित्सा, शासन कार्य और यहाँ तक कि सैनिक बनकर देश की रक्षा के लिए मोर्चों पर जाने में भी वे पीछे नहीं रही है। अब स्त्री अबला नहीं अपराजिता है और उसकी जीत में पुरुषों का योगदान ठीक वैसे ही है जैसे एक पुरुष की जीत में स्त्री का हाथ होता है।




6. किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।

उत्तर:- किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं इस विषय पर निम्न मुद्दों के आधार पर परिचर्चा कर सकते हैं –

1. खेती व्यावसायिक दृष्टिकोण से लाभ-प्रद नहीं रह गई है।

2. इस व्यवसाय में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है जिसे आज का पढ़ा-लिखा और युवावर्ग नहीं करना चाहता है।

3. सरकार का कृषि के प्रति उदासीन रवैया।

4. अनाज की बिक्री की समुचित व्यवस्था का अभाव।

कृषि व्यवसाय से पलायन के निम्न कारण हैं –

1. कम आय होना

2. घोर परिश्रम के बाद भी सफलता न मिलना

3. समाज में उचित सम्मान न मिलना

4. प्रकृति और वर्षा पर निर्भरता

5. नुकसान की भरपाई की सुविधा का अभाव आदि कारण भी लोग कृषि से पलायन कर रहें हैं।

कविता का सारांश

यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। यह कविता दुश्चक्र में फैसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है।


कवि कहता है कि किसान की अंधकार की गुफा के समान आँखों में दुख की पीड़ा भरी हुई है। इन आँखों को देखने से डर लगता है। वह किसान पहले स्वतंत्र था। उसकी आँखों में अभिमान झलकता था। आज सारे संसार ने उसे अकेला छोड़ दिया है। उसकी आँखों में लहलहाते खेत झलकते हैं जिनसे अब उसे बेदखल कर दिया गया है। उसे अपने बेटे की याद आती है जिसे जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीटकर मार डाला। कर्ज के कारण उसका घर बिक गया। महाजन ने ब्याज की कौड़ी नहीं छोड़ी तथा उसके बैलों की जोड़ी भी नीलाम कर दी। उसकी उजरी गाय भी अब उसके पास नहीं है।



 

किसान की पत्नी दवा के बिना मर गई और देखभाल के बिना दुधर्मुही बच्ची भी दो दिन बाद मर गई। उसके घर में बेटे की विधवा पत्नी थी, परंतु कोतवाल ने उसे बुला लिया। उसने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी। किसान को पत्नी का नहीं, जवान लड़के की याद बहुत पीड़ा देती थी। जब वह पुराने सुखों को याद करता है तो आँखों में चमक आ जाती है, परंतु अगले ही क्षण सच्चाई के धरातल पर आकर पथरा जाती है।


व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1.


अधिकार की गुहा सरीखी

उन अखिों से डरता है मन,

भरा दूर तक उनमें दारुण

दैन्य दुख का नीरव रांदन!


वह स्वाधीन किसान रहा,

अभिमान भरा अखिों में इसका,

छोड़ उसे मंझधार आज

संसार कगार सदृश बह खिसका। (पृष्ठ-147)


शब्दार्थ


गुहा-गुफा। सरीखी-समान। दारुण-निर्दय, कठोर। दैन्य-दीनता। नीरव-शब्द रहित। रोदन-रोना। स्वाधीन-स्वतंत्र। अभिमान-गर्व। मैंझधार-समस्याओं के बीच। कगार-किनारा। सदृश-समान।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-कवि कहता है कि शोषित किसान की गड्ढों में धैसी हुई आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं जिनसे मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है कि उनमें बहुत दूर तक कोई कष्टप्रद दयनीयता व दुख का मौन रुदन भरा हुआ है। उसकी आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है। किसान का अतीत अच्छा था। वह सदैव स्वाधीन था। उसके पास अपने खेत थे। उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था, परंतु आज वह अकेला पड़ गया है। संसार ने उसे समस्याओं के बीच में छोड़कर किनारे की तरह बहकर उससे दूर चला गया है। विशेष-



 

1. किसान की उपेक्षा का मार्मिक चित्रण है।

2. ‘अंधकार की गुह गुहा सरीखी’ में उपमा अलंकर है।

3. ‘दारुण दैन्य दुख’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. ‘ कगार सदृश ‘ में उपमा अलंकार।

5. भाषा में लाक्षणिकता है।

6. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।

7. भाषा में प्रवाह है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1. कवि किसके बारे में बात कर रहा है?

2. कवि को किससे डर लगता है तथा क्यों?

3. पहले किसान की दशा कैसी थी? अब उसमें क्या परिवर्तन आ गया है?

4. किसान की आँखों के विषय में कवि क्या कहता है?


उत्तर-


कवि उस शोषित किसान के बारे में बात कर रहा है जिसकी आँखें गड्ढों में धंस चुकी हैं और वे अँधेरी गुफा के समान डरावनी प्रतीत हो रही हैं।

कवि को किसान की आँखों से डर लगता है, क्योंकि उनमें गहरी निराशा, हताशा व उदासीनता भरी है।

पहले किसान की दशा अच्छी थी। वह अपनी खेती का मालिक था। उसमें आत्मगर्व भरा था। आज उसकी हालत खराब है। उसकी दीन दशा के कारण समाज ने उससे मुँह मोड़ लिया है। उसका साथ देने वाला कोई नहीं है।

कवि कहता है कि किसान की आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं। इनको देखने से मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है जैसे उनमें बहुत दूर तक कष्टप्रद दयनीयता का भाव व दुख का रुदन भरा पड़ा है। कुल मिलाकर कवि का मानना है कि किसान की आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है।

2.


लहराते वे खेत द्वगों में

हुआ बेदखल वह अब जिनसे,

हसती थी उसके जीवन की

हरियाली जिनके तृन-तृन से !


आँखों ही में घूमा करता

वह उसकी अखिों का तारा, 

कारकुनों की लाठी से जो 

गया जवानी ही में मारा। (पृष्ठ-147)


शब्दार्थ


लहराते-लहलहाते, झूमते। दृग-ऑख। बेदखल-अधिकार से वचित। तृन-तिनका। आँखों का तारा-बहुत प्यारा। कारकुन-जमींदार के कारिंदे।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।



 

व्याख्या-किसान अपने अतीत की याद करता है। उसकी आँखों के समक्ष खेत लहलहाते नजर आते हैं जबकि अब उन खेतों से उसे बेदखल कर दिया गया है अर्थात् जमींदारों ने उसकी जमीन हड़प ली है। कभी इन खेतों के तिनके-तिनके में कभी हरियाली लहराती थी तथा उसके जीवन को सुखमय बनाती थी। आज वह सब कुछ खत्म हो गया है।


किसान की आँखों में उसके प्यारे पुत्र का चित्र घूमता रहता है। उसे वह दृश्य याद आता है। जब उसके जवान बेटे को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। यह बड़े दुख की बात थी।


विशेष-


1. इन पंक्तियों में जमींदार के अत्याचारों का वर्णन है।

2. ‘लहराते खेत’ तथा जमींदारों की लाठी से पिटकर मरे पुत्र में दृश्य बिंब साकार हो उठता है।

3. ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

4. ‘जीवन की हरियाली’ में रूपक अलंकार है।

5. ‘आँखों में घूमना’, ‘आँखों का तारा’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

6. भाषा में लाक्षणिकता है।

7. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


‘वह’ कौन है? उसके साथ क्या हुआ था?

खेती के कारण किसान का जीवन कैसा था?

‘अखों का तारा’ कौन था? वह किसान की आँखों के सामने क्यों घूमता है?

कारकुनों ने क्या किया था?

उत्तर-


1. ‘वह’ भारतीय किसान है। उसकी जमीन को जमींदारों ने कानून का सहारा लेकर हड़प लिया था।

2. खेती के कारण किसान का जीवन खुशहाल था। खेतों में हरियाली लहराती थी। किसान की जरूरतें पूरी हो जाती थीं।

3. ‘आँखों का तारा’ किसान का जवान बेटा था। उसकी हत्या जमींदार के कारिंदों ने पीट-पीटकर कर दी थी। किसान की आँखों में वह दृश्य घूमता रहता है।

4. कारकुन जमींदार के कारिंदे होते थे। वे जमीन पर कब्जा करने का काम करते थे। उन्होंने किसान के जवान बेटे की लाठियों से पीट-पीटकर हत्या की थी।


3.


बिका दिया घर द्वार,

महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,

रह-रह आँखों में चुभती वह

कुक हुई बरधों की जोड़ी !


उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती? 

अह, आँखों में नाचा करती 

उजड़ गई जो सुख की खेती !(पृष्ठ-148)


शब्दार्थ


महाजन-साहूकार, ऋणदाता। कौड़ी-एक पैसा। कुर्क-नीलाम। बरधों की जोड़ी-बैलों की जोड़ी। उजरी-उजली। सिवा-बिना। दुहाने-दूध दुहने के लिए। अह-आह। आँखों में नाचना-बार-बार सामने आना।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।



 

व्याख्या-कवि किसान की दयनीय दशा का वर्णन करता है। किसान कर्ज में डूब गया। महाजन ने धन व ब्याज की वसूली के लिए किसान की स्थायी संपत्ति को नीलाम कर दिया। उसे घर से बेघर कर दिया, परंतु अपने ऋण के ब्याज की पाई-पाई चुका ली। किसान को सर्वाधिक पीड़ा तब हुई जब बैलों की जोड़ी को भी नीलाम कर दिया गया। यह बात उसकी आँखों में आज भी चुभती है। उसके रोजगार का साधन छीन लिया गया।


किसान के पास दुधारू गाय उजली (जिसे वह प्यार से उजरी कहता था) थी वह उसके सिवाय किसी और को अपने पास दूध दुहने नहीं आने देती थी। मजबूरी के कारण किसान को उसे बेचना पड़ा। इन सब बातों को याद करके किसान बहुत व्यथित होता है। ये सारे दृश्य उसकी आँखों के सामने नाचते हैं। उसकी सुखभरी खेती उजड़ चुकी है, अत: वह निराश व हताश है।

विशेष-


1. किसान पर महाजनों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है।

2. कुकीं व गरीबी के कारण बैल व गाय बेचने का दृश्य कारुणिक है।

3. ‘घर-द्वार’, ‘की कौड़ी’, ‘ने न’, ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

5. ‘आँखों में चुभना’, ‘आँखों में नाचना’ आदि मुहावरों का सार्थक प्रयोग है।

6. देशज शब्द ‘बरधों’ का सटीक प्रयोग है।

7. ग्रामीण परिवेश साकार हो उठा है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1. महाजन ने किसान पर क्या-क्या अत्याचार किए?

2. महाजन ने बैलों की जोड़ी का क्या किया?

3. उजरी कौन थी? किसान उसे इतना याद क्यों करता है?

4. किसान की सुख की खेती क्यों उजड़ गई?


उत्तर-


1. महाजन ने किसान से अपने ऋण की वसूली के लिए उसके खेत, घर तक नीलाम कर दिए। ब्याज की वसूली के लिए उसने किसान को बेघर कर दिया तथा कौड़ी-कौड़ी वसूल ली।

2. महाजन ने कर्ज न चुका पाने की दशा में मजबूर किसान के बैलों की जोड़ी को नीलाम करवा दिया। यह बात किसान के दिल को कचोटती है।

3. उजरी किसान की प्रिय दुधारू गाय थी। वह किसान के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति को अपने पास दूध दुहने के लिए आने नहीं देती थी। इस कारण किसान को उसकी याद बहुत आती है।

4. किसान ने लगान चुकाने के लिए महाजन से कर्ज लिया। इसके बाद वह अपना कर्ज चुका नहीं पाया। उसका सब कुछ नीलाम कर दिया गया, इसलिए उसके सुख की खेती उजड़ गई।


4.


बिना दवा-दपन के घरनी

स्वरगा चली,-अखं आती भर,

देख-रेख के बिना दुधमुही

बिटिया दो दिन बाद गई मर!


घर में विधवा रही पताहू,

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

 पकडु मॅाया, कोतवाल ने,

डूब कुएँ में मरी एक दिन। (पृष्ठ-148-149)


शब्दार्थ


दवा-दर्पन-दवा आदि। घरनी-पत्नी। स्वरग-स्वर्ग। दुधमुँही-नन्हीं। पतोहू-पुत्रवधू। लछमी-लक्ष्मी। घातिन-मारने वाली।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।



 

व्याख्या-किसान की पारिवारिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि बताता है कि उसकी पत्नी दवा-दारू के अभाव में मर गई। उसके पास संसाधनों की इतनी कमी थी कि वह उसका इलाज भी नहीं करा सका। यह सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। पत्नी की मृत्यु के बाद उस पर आश्रित किसान की नन्हीं बच्ची भी दो दिन बाद मर गई।


किसान के घर में उसकी विधवा पुत्रवधू बची हुई थी। उसका नाम लक्ष्मी था, परंतु उसे पति को मारने वाला समझा जाता था। समाज में पति की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी को हत्या का जिम्मेदार मान लिया जाता है। एक दिन कोतवाल ने उसे बुलवाकर उसकी इज्जत लूटी। लाज के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस प्रकार से किसान का पूरा परिवार ही बिखर गया था।


विशेष-


किसान की गरीबी, शोषण व लाचारी का सजीव वर्णन है।

‘आँखें भर आना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

घरनी, स्वरग, लछमी आदि तद्भव शब्दों का प्रयोग भाषा को सहजता प्रदान करता है।

अनुप्रास अलंकार है-दवा-दर्पन, दो दिन।

पति की हत्या के बाद नारी के प्रति समाज के कटु दृष्टिकोण का पता चलता है।

खड़ी बोली है।

पुलिस के अत्याचार का वर्णन है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


किसान की पत्नी व बच्ची की मृत्यु का वक्या कारण था?

किसान की आँखें भर आने का क्या कारण था?

किसान की पतोहू को क्या कहा जाता था? क्यों?

किसान की पतोहू ने आत्महत्या क्यों की?

उत्तर-


किसान की आर्थिक हालत दयनीय थी। उसकी पत्नी बीमार थी। वह उसका इलाज नहीं करवा पाया। इस कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसकी बेटी नवजात थी जो माँ के दूध पर आश्रित थी। माँ के मरने के बाद वह भी दो दिन बाद मर गई।

आर्थिक अभावों की वजह से किसान अपनी पत्नी की बीमारी का इलाज नहीं कर पाया, जिसकी वजह से वह मर गई। अपनी इस विवशता को सोचकर उसकी आँखें भर आती हैं।

किसान की पतोहू को ‘पति घातिन’ कहा जाता था, क्योंकि उसके पति की हत्या कारकूनों ने कर दी थी। समाज इस हत्या के लिए पतोहू को दोषी मानता है।

किसान की पुत्रवधू पर कोतवाल की बुरी नीयत थी। उसने उसे थाने में बुलवाया तथा उसका शारीरिक शोषण किया। इस कलंक व विवशता के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली।

5.


खैर, पैर की जूती, जोरू

न सही एक, दूसरी आती,

पर जवान लड़के की सुध कर

साँप लौटते, फटती छाती।


पिछले सुख की स्मृति आँखों में 

क्षण भर एक चमक हैं लाती, 

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती। (पृष्ठ-149)


शब्दार्थ


पैर की जूती-उपेक्षित। जोरू-पत्नी। सुधकर-याद करना। साँप लोटते-अत्यधिक व्याकुल होना। फटती छाती-बहुत दुख होना। स्मृति-याद। चमक लाना-खुशी लाना। चितवन-दृष्टि। शून्य-आकाश। सदृश-समान।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।


व्याख्या-किसान को अपनी पत्नी की मृत्यु पर विशेष शोक नहीं है। वह उसे पैर की जूती के समान समझता है। यदि एक नहीं रहती तो दूसरी से विवाह करके लाया जा सकता है, परंतु उसे अपने जवान बेटे की याद आने पर बहुत कष्ट होता है। उसकी छाती पर साँप लौट जाते हैं तथा छाती फटने लगती है। उसे बेटे की मृत्यु का असहनीय कष्ट है।

किसान जब पिछले खुशहाल जीवन को याद करता है तो उसकी आँखों में एक क्षण के लिए प्रसन्नता की चमक आती है, परंतु अगले ही क्षण जब वह सच्चाई के धरातल पर सोचता है, वर्तमान में झाँकता है तो उसकी नजर शून्य में अटककर गड़ जाती है, वह विचार शून्य होकर टकटकी लगाकर देखता है और उसकी नजर तीखी नोक के समान चुभने वाली हो जाती है।


विशेष-


पत्नी के प्रति किसान की मानसिकता घटिया है। वह पुत्र को अधिक महत्त्व देता है।

साँप लोटना, छाती फटना, पैर की जूती आदि मुहावरों का सजीव प्रयोग है।

‘तीखी नोक सदृश’ में उपमा अलंकार है।

खड़ी बोली है।

ग्रामीण परिवेश का चित्रण है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


पैर की जूती किसे कहा गया है? इससे क्या सिदध होता है?

किसान के मन में सर्वाधिक दुख किसका है?

किसान की आँखों में चमक आने का कारण बताइए।

वास्तविकता का आभास होने पर किसान को कैसा अनुभव होता है?

उत्तर-


प्रस्तुत काव्यांश में पत्नी को ‘पैर की जूती’ कहा गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों की दश्ग बहुत दयनीय थी।

किसान के मन में सर्वाधिक दुख अपने जवान बेटे की मृत्यु का है। उसकी याद आते ही उसकी छाती पर साँप लोटने लगते हैं। वह ही खेती में उसका एकमात्र सहारा था तथा आँखों का तारा था।

जब किसान अपने पुराने दिनों की याद करता है तो उसकी आँखों में चमक आ जाती है। लहलहाते खेत, घर-द्वार, बैल, गाय, जवान बेटा आदि सभी सुखदायी थे।

वास्तविकता का आभास होने पर किसान को सुखद यादें तीखी नोक के समान उसके दिल में चुभने लगती हैं। उसके मन में आक्रोश उमड़ आता है।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न


अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन,

भरा दूर तक उनमें दारुण

दैन्य दुख की नीरव रोदन।


वह स्वाधीन किसान रहा,

अभिमान भरा आँखों में इसका, 

छोड़ उसे माँझधार आज 

संसार कगार सदृश बह खिसका।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इस अंश में कवि ने किसान की दयनीय दशा का वर्णन किया है। वह हताश व उदासीन है। समाज द्वारा उसकी उपेक्षा करना सर्वथा अनुचित है।

● ‘अंधकार की गुहा सरीखी’ में उपमा

● ‘दारुण दैन्य दुख’ में अनुप्रास अलंकार है। अलंकार है।

● ‘संसार कगार सदृश’ में उपमा अलंकार है।

● संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग है।

● करुण रस है।

● भाषा में लाक्षणिकता है।

● ‘संसार’ में विशेषण विपर्यय अलंकार है।

2.


लहराते वे खेत द्वगों में

हुआ बदलखल वह अब जिनसे,

हँसती थी उसके जीवन की

गया जवानी ही में मारा।


आँखों ही में घूमा करता

वह उसकी अखिों का तारा,

कारकुनों की लाठी से जो

हरियाली जिनके तृन-तृन से।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इन पंक्तियों में जमींदारों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है। जमींदार किसानों की जमीन पर कब्जा करते हैं तथा विरोध करने पर युवाओं की हत्या तक कर दी जाती है।

● ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

● ‘जीवन की हरियाली’ में रूपक अलंकार है।

● ‘हँसना’ प्रसन्नता का परिचायक है।

● भाषा में लाक्षणिकता है।

● ‘आँखों का तारा’ व ‘आँखों में घूमना’ मुहावरे

● कारकूनों द्वारा लाठी से मारे जाने से दृश्य बिंब का सशक्त प्रयोग है। साकार हुआ है।

3.


बिका दिया घर द्वार,

महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,

रह-रह आँखों में चुभती वह अह,

कुर्क हुई बरधों की जोड़ी।


उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

अखिों में नाचा करती

उजड़ गई जो सुख की खेती।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इस काव्यांश में महाजनी शोषण का मर्मस्पर्शी चित्र है। किसान से कर्ज वसूली के लिए उसके खेत, घर, आदि बिकवा दिया जाता है। ब्याज की वसूली के लिए बैल तक नीलाम करवाए जाते हैं।

● बैलों की कुकी जैसे दृश्य कारुणिक हैं।

● ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।

● ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।

● ‘बरधों’ शब्द से ग्रामीण परिवेश प्रस्तुत हो जाता है।

● खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।

● मिश्रित शब्दावली है।

● ‘उजरी ….. देती?’ में प्रश्न अलंकार है।

● ‘आँखों में चुभना’ व ‘आँखों में नाचना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

4.


बिना दवा-दपन के घरनी

स्वरग चली, अखें आती भर,

देख-रेख के बिना दुधर्मुही

बिटिया दो दिन बाद गई मर।


घर में विधवा रही पतोहू,

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन, 

पकड़ माया, कोतवाल ने, 

डूब कुएँ में मरी एक दिन।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इस काव्यांश में किसान की फटेहाली, विवशता व शोषण का सजीव चित्रण है। अभाव के कारण पत्नी व बच्ची की मृत्यु, पुलिस द्वारा पुत्रवधू का शोषण होना, फिर उसका आत्महत्या करना आदि परिस्थितियाँ किसान की लाचारी को व्यक्त करती हैं। पति की मृत्यु के लिए पत्नी को दोषी मानना भी समाज की रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।

● करुण रस की अभिव्यक्ति हुई है।

● ‘आँखें भर आना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

● खड़ी बोली है।

● अनुप्रास अलंकार है-दवा-दर्पन, दो दिन, में मरी। भाषा प्रवाहमयी है।

● घरनी, स्वरग, लछमी, कोतवाल, पतोहू आदि शब्द ग्रामीण परिवेश को व्यक्त करते हैं।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

कविता के साथ


प्रश्न 1:


अधकार की गुहा सरीखी

उन आखों से डरता है मन।


(क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

(ख) उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

(ग) कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?

(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

(ङ) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?


उत्तर-

(क) हमें दुख, पीड़ा और वेदना पहुँचानेवाली बातों से डर लगता है।

(ख) किसान की सूनी, अँधेरे की गुफा जैसी आँखों की ओर संकेत किया गया है।

(ग) कवि को उन आँखों में भरा हुआ दारुण, दुख, गरीबी, अभाव और सूनापन देखकर भय लगता है।

(घ) कवि के मन का भय वास्तव में उसको किसान से होनेवाली सहानुभूति है। किसान का वर्णन भी कवि इसी उद्देश्य से करता है कि समाज किसान की पीड़ा को जाने और उसे समझकर किसान की दशा सुधारने के लिए कुछ कार्य करे।

(ङ) डर ही पीड़ा का अनुभव है, यदि वह न होता तो उद्देश्य के अभाव में कवि कविता नहीं लिख पाता।


प्रश्न 2:

कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है?

उत्तर-

कविता में किसान की पीड़ा के लिए जमींदार, महाजन व कोतवाल को जिम्मेदार बताया है। जमींदार ने षड्यंत्रों से उसे जमीन से बेदखल कर दिया। उसके कारिदों ने किसान के जवान बेटे की पीट-पीटकर हत्या कर दी। महाजन ने मूलधन व ब्याज की वसूली के लिए उसके घर, बैल, गाय तक नीलाम करवा दिए। आर्थिक अभाव के कारण इलाज न करवा पाने की वजह से किसान की पत्नी मर गई। कोतवाल ने अपनी वासना की पूर्ति के लिए उसकी पुत्रवधू को शिकार बनाया। पीड़ा एवं लज्जा के कारण उसकी पुत्रवधू ने आत्महत्या कर ली। समाज उस पर होने वाले अत्याचारों को मूक दर्शक बनकर देखता रहा।


प्रश्न 3:

‘पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षणभर एक चमक है लाती’-इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर-

जब किसान के पास प्राणों से लहलहाते प्यारे खेत थे, बैलों की जोड़ी, गाय, जवान बेटा, स्त्री, पुत्री, पतोहू सबसे भरा-पूरा घर-बार था तो वह सुखी था। खेत की हरियाली को एक-एक तिनका किसान के जीवन की हँसी-खुशी था। जवान बेटा उसकी आँखों का तारा था। बैलों की जोड़ी थी और उजली गाय जो उसकी पत्नी के अलावा किसी को दूध नहीं निकालने देती थी। ये सब किसान के सुख भरे दिन थे। इन बातों से उसका मन सुखी रहता था; आज इनमें से कुछ भी उसके पास नहीं है, केवल स्मृतियाँ शेष रह गई हैं।


प्रश्न 4:

संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें-


(क)

उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

(ख)

घर में विधवा रही पतोहू

लछमी थी , यद्यपि पति घातिन,

(ग)

पिछले सुख की स्मृति अखिों में

क्षण भर एक चमक है लाती,

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती।


उत्तर-


(क) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में महाजनी अत्याचार से पीड़ित किसान की उजरी गाय की दुर्दशा का वर्णन किया गया है।

आशय-कवि बताता है कि किसान का अपनी गाय के साथ विशेष लगाव था। गाय भी उससे अत्यधिक स्नेह रखती थी। वह उसके बिना किसी और को दूध दूहने नहीं देती थी। नीलामी के बाद उसने दूध देना बंद कर दिया।

(ख) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में किसान के बेटे की हत्या का दोषी उसकी पुत्रवधू को बताया जाता है। यह नारी पर होने वाले अत्याचारों की पराकाष्ठा है।

आशय-किसान के घर में सिर्फ विधवा पुत्रवधू बची थी। उसका नाम लक्ष्मी थी, परंतु उसे पति को मारने वाली कहा जाता था। समाज में विधवा के प्रति नकारात्मक रवैया है। कसूर न होते हुए पुत्रवधू को पति घातिन कहा जाता है।

(ग) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। ।

आशय-किसान जब पिछले खुशहाल जीवन को याद करता है उसकी आँखों में एक क्षण के लिए प्रसन्नता की चमक आ जाती है, परंतु अगले ही क्षण जब वह सच्चाई के धरातल पर सोचता है, वर्तमान में झाँकता है तो उसकी नजर शून्य में अटककर गड़ जाती है, वह विचार शून्य होकर टकटकी लगाकर देखता है और नजर तीखी नोक के समान चुभने वाली हो जाती है।


कविता के आस-पास


प्रश्न 1:

किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।

उत्तर-

छात्र स्वयं करें।


अन्य हल प्रश्न

● लघूत्तरात्मक प्रश्न


प्रश्न 1:

‘वे आँखें’ कविता का उददेश्य बताइए।

उत्तर-

यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। यह कविता दुश्चक्र में फैसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है।


प्रश्न 2:

किसान के रोदन को ‘नीरव’ क्यों कहा गया है?

उत्तर-

कवि किसान की दयनीय स्थिति का वर्णन करता है। उसकी आँखें अंधकार की गुफा के समान हैं। उनमें दारुण दुख भीतर तक समाया हुआ है। उसकी आँखों में उसी दुख की छाया के रूप में रोने का भाव अनुभव किया जा सकता है। उसका रोदन नीरव है, क्योंकि किसान की आँखों से ही उसकी पीड़ा को महसूस किया जा सकता है। उसके ऊपर हुए अत्याचारों की झलक आँखों से मिलती है।


प्रश्न 3:

किसान की आँखों में किसका अभिमान भरा था?

उत्तर-

किसान की आँखों में कृषक व्यवसाय का अभिमान भरा था। खेत की जमीन पर उसका स्वामित्व था। वे स्वयं को अन्नदाता समझता था। वह दूसरों की सहायता करता था। खेती से ही उनके परिवार का गुजारा होता था।


प्रश्न 4:

पुत्र और पुत्रवधू के प्रति किसान का क्या वृष्टिकोण था?

उत्तर-

किसान पुत्र को अधिक महत्व देता है। उसकी याद के कारण उसकी छाती फटने लगती है तथा साँप लोटने लगता है। वह उसे अपना प्रमुख सहारा समझता था। पुत्रवधू को पुत्र के जीवित रहते हुए ही सम्मान मिलता था। पुत्र के मरने के बाद वह उसे पति घातिनी कहने लगा। वह स्त्री को पैर की जूती के समान समझता है। उसकी मान्यता है कि एक स्त्री जाती है तो दूसरी आ जाती है।


प्रश्न 5:

‘नारी को समाज में आज भी उचित सम्मान नहीं मिल रहा।’-कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

कविता में नारी के प्रति समाज की मानसिकता को प्रकट किया गया है। उस समय समाज में नारी की हीन स्थिति थी। नारी का इलाज तक नहीं कराया जाता था। उसे पैर की जूती के समान नगण्य महत्व दिया जाता था। समाज में आज भी नारी को उचित सम्मान नहीं मिलता। उसे अनेक आर्थिक, सामाजिक अधिकार मिल गए हैं, परंतु उसका स्थान दोयम दर्जे का है। नौकरी करते हुए भी उसे सभी जिम्मेदारी पूरी करनी पड़ती है। उसे ससुर व पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता। यहाँ तक कि कानून के रक्षक भी उसका शोषण करते हैं।


Wednesday 18 November 2020

मियां नसीरुद्दीन- सुश्री कृष्णा सोबती

 मियां नसीरुद्दीन- सुश्री कृष्णा सोबती 







मियाँ नसीरूद्दीन

लेखिका परिचय

● जीवन परिचय-कृष्णा सोबती का जन्म 1925 ई. में पाकिस्तान के गुजरात नामक स्थान पर हुआ। इनकी शिक्षा लाहौर, शिमला व दिल्ली में हुई। इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया।

● रचनाएँ-कृष्णा सोबती ने अनेक विधाओं में लिखा। उनके कई उपन्यासों, लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास-जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम।
कहानी-संग्रह-डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी औधेरे के।
शब्दचित्र, संस्मरण-हम-हशमत, शब्दों के आलोक में।

● साहित्यिक परिचय-हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है। वे मानती हैं कि कम लिखना विशिष्ट लिखना है। यही कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है; जैसेमित्रो, शाहनी, हशमत आदि।
भारत-पाकिस्तान पर जिन लेखकों ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखीं, उनमें कृष्णा सोबती का नाम पहली कतार में रखा जाएगा। यह कहना उचित होगा कि यशपाल के झूठा-सच, राही मासूम रज़ा के आधा गाँव और भीष्म साहनी के तमस के साथ-साथ कृष्णा सोबती का जिंदगीनामा इस प्रसंग में विशिष्ट उपलब्धि है। संस्मरण के क्षेत्र में हम-हशमत कृति का विशिष्ट स्थान है। इसमें उन्होंने अपने ही एक-दूसरे व्यक्तित्व के रूप में हशमत नामक चरित्र का सृजन कर एक अद्भुत प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
इनके भाषिक प्रयोग में विविधता है। उन्होंने हिंदी की कथा-भाषा को एक विलक्षण ताजगी दी है। संस्कृतनिष्ठ तत्समता, उर्दू का बाँकपन, पंजाबी की जिंदादिली, ये सब एक साथ उनकी रचनाओं में मौजूद हैं।

मियाँ नसीरुद्दीन

1. 'मियाँ नसीरुद्दीन' नामक पाठ की लेखिका का नाम है-

  A. महादेवी वर्मा

  B. कृष्णा सोबती

  C. सुभद्रा कुमारी चौहान

  D. अमृता प्रीतम

2. 'मियाँ नसीरुद्दीन' नामक पाठ में किसके व्यक्तित्व का शब्द-चित्र अंकित किया गया है?

  A. मियाँ नसीरुद्दीन के दादा का

  B. मियाँ नसीरुद्दीन के पिता का

  C. मियाँ नसीरुद्दीन का

  D. मियाँ नसीरुद्दीन के भाई का

3.मियाँ नसीरुद्दीन किस कला में प्रवीण थे?

  A. वस्तुकला

  B. चित्रकला

  C. भाषण-कला

  D. रोटी बनाने की कला

4. मियाँ नसीरुद्दीन कैसे इंसान का प्रतिनिधित्व करते थे?

  A. चालाक इंसान का

  B. त्यागशील इंसान का

  C. जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं

  D. जो अपने खानदान का नाम डुबोते हैं

5. जब लेखिका गढ़ैया मुहल्ले से गुजर रही थी तो उसे एक दुकान से कैसी आवाज़ सुनाई दी?"

  A. पटापट की

  B. नृत्य करने की

  C. गीत की

  D. रोने की

6. पटापट आटे के ढेर को सानने की आवाज़ को सुनकर लेखिका ने क्या सोचा था?

  A. पराँठे बन रहे हैं

  B. सेवइयों की तैयारी हो रही है

  C. दाल को तड़का लग रहा है

  D. हलवा बनाया जा रहा है

7. मियाँ नसीरुद्दीन कितने प्रकार की रोटी बनाने के लिए मशहूर हैं?

  A. बत्तीस

  B. चालीस

  C. छयालीस

  D. छप्पन

8. लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से सबसे पहले कौन-सा प्रश्न किया था?

  A. आप से कुछ सवाल पूछने थे?

  B. आप से रोटियाँ बनवानी थीं?

  C. आप क्या कर रहे हैं?

  D. आपका नाम क्या है?

9. मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका को क्या समझा था?

  A. अभिनेत्री

  B. नेत्री

  C. अखबारनवीस

  D. कवयित्री

10. मियाँ नसीरुद्दीन ने अखबार के विषय में क्या कहा था?

  A. खोजियों की खुराफात

  B. धार्मिक लोगों का प्रयास

  C. आय का साधन

  D. प्रसिद्धि का आसान तरीका

11. अखबार बनाने वाले और अखबार पढ़ने वाले दोनों को मियाँ नसीरुद्दीन ने क्या कहा था?

  A. कामकाजी

  B. निठल्ला

  C. ईमानदार

  D. बेईमान

12. लेखिका के अनुसार नसीरुद्दीन का खानदानी पेशा क्या था?

  A. नगीनासाज

  B. आईनासाज

  C. रंगरेज

  D. नानबाई

13. मियाँ नसीरुद्दीन अपना उस्ताद किसे मानते हैं?

  A. अपने वालिद को

  B. अपने दादा को

  C. अपने मामा को

  D. अपने नाना को

14. मियाँ नसीरुद्दीन के वालिद का नाम था-

  A. मियाँ शाहरुख

  B. मियाँ अखतर

  C. बरकत शाही

  D. मियाँ कल्लन

15. मियाँ नसीरुद्दीन के दादा का क्या नाम था?

  A. मियाँ कल्लन

  B. मियाँ बरकत शाही

  C. मियाँ दादूदीन

  D. मियाँ सलमान अली

16. 'काम करने से आता है, नसीहतों से नहीं' ये कथन किसका है?

  A. लेखिका का

  B. नसीरुद्दीन के दादा का

  C. नसीरुद्दीन के पिता का

  D. नसीरुद्दीन का

17. 'तालीम की तालीम भी बड़ी चीज़ होती है'-इस वाक्य में दूसरी बार प्रयुक्त तालीम का क्या अर्थ है-

  A. शिक्षा

  B. शिक्षा का ज्ञान

  C. उपदेश

  D. नसीहत

18. 'कोई ऐसी चीज खिलाओ जो न आग से पके, न पानी से बने' ये शब्द किसने कहे थे?

  A. बादशाह सलामत

  B. मियाँ नसीरुद्दीन

  C. लेखिका

  D. मियाँ कल्लन

 पाठ का सारांश

मियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोट्री पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारत बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।

लेखिका बताती है कि एक दिन वह मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की तरफ निकली तो एक अँधेरी व मामूली-सी दुकान पर आटे का ढेर सनते देखकर उसे कुछ जानने का मन हुआ। पूछताछ करने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। ये छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। उनके चेहरे पर अनुभव और आँखों में चुस्ती व माथे पर कारीगर के तेवर थे।

लेखिका के प्रश्न पूछने की बात पर उन्होंने अखबारों पर व्यंग्य किया। वे अखबार बनाने वाले व पढ़ने वाले दोनों को निठल्ला समझते हैं। लेखिका ने प्रश्न पूछा कि आपने इतनी तरह की रोटियाँ बनाने का गुण कहाँ से सीखा? उन्होंने बेपरवाही से जवाब दिया कि यह उनका खानदानी पेशा है। इनके वालिद मियाँ बरकत शाही नानबाई थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे। उन्होंने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा।

नसीरुद्दीन ने बताया कि हमने यह सब मेहनत से सीखा। जिस तरह बच्चा पहले अलिफ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुँच जाता है, उसी तरह हमने भी छोटे-छोटे काम-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना आदि करके यह हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है।

खानदान के नाम पर वे गर्व से फूल उठते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार बादशाह सलामत ने उनके बुर्जुगों से कहा कि ऐसी चीज बनाओ जो आग से न पके, न पानी से बने। उन्होंने ऐसी चीज बनाई और बादशाह को खूब पसंद आई। वे बड़ाई करते हैं कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। लेखिका ने इस कहावत की सच्चाई पर प्रश्नचिहन लगाया तो वे भड़क उठे। लेखिका जानना चाहती थी कि उनके बुजुर्ग किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। अब उनका स्वर बदल गया। वे बादशाह का नाम स्वयं भी नहीं जानते थे। वे इधर-उधर की बातें करने लगे। अंत में खीझकर बोले कि आपको कौन-सा उस बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्री भेजनी है।

लेखिका से पीछा छुड़ाने की गरज से उन्होंने बब्बन मियाँ को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उन्हें मजदूरी देते हैं। लेखिका ने रोटियों की किस्में जानने की इच्छा जताई तो उन्होंने फटाफट नाम गिनवा दिए। फिर तुनक कर बोले-तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। फिर वे यादों में खो गए और कहने लगे कि अब समय बदल गया है। अब खाने-पकाने का शौक पहले की तरह नहीं रह गया है और न अब कद्र करने वाले हैं। अब तो भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। हर व्यक्ति जल्दी में है।

शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 22
साहबों-दोस्तों। अपन-हम। हज़ारों-हजार-अनगिनत। मसीहा-देवदूत। धूमधड़क्के-भीड़। नानबाई-रोटी बनाने और बेचने वाला। लुत्फ-आनंद। अंदाज-ढंग। आड़े-तिरछे। निहायत-बिल्कुल। पटापट-पट-पट की आवाज़। सनते-मलते। काइयाँ-चालाकी। पेशानी-माथा। तेवर-मुद्रा। पंचहज़ारी-पाँच हज़ार सैनिकों का अधिकारी। अखबारनवीस-पत्रकार। खुराफ़ात-शरारत।

पृष्ठ संख्या 23
निठल्ला-खाली। किस्म-प्रकार। इल्म-ज्ञान। हासिल-प्राप्त। कंचे-पुतली। तरेरकर-तानकर। नगीनासाज़-नगीना जड़ने वाला। आईनासाज-दर्पण बनाने वाला। मीनासाज-सोने-चाँदी पर रंग करने वाला। रफूगर-फटे कपड़ों के धागे जोड़कर पहले जैसा बनाने वाला। रँगरेज़-कपड़े रंगने वाला। तंबोली-पान लगाने वाला। फरमाना-कहना। खानदानी-पारिवारिक। पेशा-धंधा। वालिद-पिता। उस्ताद-गुरु। अख्तियार करना-स्वीकार करना।

पृष्ठ संख्या 24
हुनर-कला। मरहूम-स्वर्गीय उठ जाने-मृत्यु हो जाने। ठीया-जगह। लमहा-क्षण। आला-श्रेष्ठ। नसीहत-सीख। बजा फरमाना-ठीक कहना। कश खींचना-साँस खींचना। अलिफ-बे-जीम-फारसी लिपि के अक्षरों के नाम। सिर पर धरना-सिर पर मारना। शागिर्द-चेला। परवान करना-उन्नति की तरफ बढ़ना।

पृष्ठ संख्या 25
मदरसा-स्कूल। कच्ची-औपचारिक कक्षा, पहली कक्षा से पहले की पढ़ाई। जमात-श्रेणी। दागना-प्रश्न करना। मैंजे-कुशल तरीके से।

पृष्ठ संख्या 26
जिक्र-वर्णन। बहुतेरे-बहुत अधिक। चक्कर काटना-घूमते रहना। जहाँपनाह-राजा। रंग लाना-मजेदार बात कहना बेसब्री-अधीरता। रुखाई-रुखापन। इत्ता-इतना। गढ़ी-रची। करतब-कार्य।

पृष्ठ संख्या 27
लौंडिया-लड़की। रूमाली-रूमाल की तरह बड़ी और पतली रोटी। जहमत उठाना-कष्ट उठाना। कूच करना-मृत्यु होना। मोहलत-समय सीमा। मज़मून-विषय। शाही बावचीखाना-राजकीय भोजनालय। बेरुखी-उपेक्षा से। बाल की खाल उतारना-अधिक बारीकी में जाना। खिसियानी हँसी-शर्म से हँसना। वक्त-समय। खिल्ली उड़ाना-मज़ाक उडाना। रुक्का भेजना-संदेश भेजना।

पृष्ठ संख्या 28
बिटर-बिटर-एकटक। अंधड़-रेतीली आँधी, तीव्र भाव। आसार-संभावना। महीन-पतली। कौंधना-प्रकट होना। गुमशुदा-भूली हुई। कद्रदान-कला के पारखी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. साहबों, उस दिन अपन मटियामहल की तरफ से न गुज़र जाते तो राजनीति, साहित्य और कला के हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़क्के में नानबाइयों के मसीहा मियाँ नसीरुद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुत्फ उनके मसीही अदाज़ का!
हुआ यह कि हम एक दुपहरी जामा मस्जिद के आड़े पड़े मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की ओर निकल गए। एक निहायत मामूली अँधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देख ठिठके। सोचा, सेवइयों की तैयारी होगी, पर पूछने पर मालूम हुआ खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर खड़े हैं। मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए। (पृष्ठ-22)

प्रश्न

  1. ‘हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़ाके ‘ से क्या अभिप्राय हैं?
  2. नानबाई किसे कहते हैं? यहाँ किस नानबाई का जिक्र हुआ है?
  3. मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान कहाँ स्थित थी?

उत्तर-

  1. इसका अभिप्राय यह है कि दिल्ली में राजनीति, साहित्य और कला में हजारों प्रतिभाशाली लोग अपनी प्रतिभा से हलचल बनाए रखते हैं।
  2. नानबाई उस व्यक्ति को कहते हैं जो कई तरह की रोटियाँ बनाने और बेचने का काम करता है। यहाँ मियाँ नसीरुद्दीन नामक खानदानी नानबाई का जिक्र हुआ है।
  3. मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान जामा मस्जिद के पास मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले में थी।

2. मियाँ नसीरुद्दीन ने पंचहज़ारी अंदाज़ से सिर हिलाया-‘निकाल लेंगे वक्त थोड़ा, पर यह तो कहिए, आपको पूछना क्या है? ‘फिर घूरकर देखा और जोड़ा-‘मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है। हम तो अखबार बनानेवाले और अखबार पढ़नेवाले-दोनों को ही निठल्ला समझते हैं। हाँ-कामकाजी आदमी को इससे क्या काम है। खैर, आपने यहाँ तक आने की तकलीफ़ उठाई ही है तो पूछिए-क्या पूछना चाहते हैं!’ ” (पृष्ठ-22-23)

प्रश्न

  1. पंचहजारी अदाज से क्या अभिप्राय है?
  2. मियाँ ने लेखिका को घूरकर क्यों देखा?
  3. अखबार वालों के बारे में उनकी क्या राय है?

उत्तर-

  1. पंचहजारी अंदाज-बड़े सेनापतियों जैसा अंदाज। मुगलों के समय में पाँच हजार सिपाहियों के अधिकारी को पंचहजारी कहते थे। यह ऊँचा पद होता था। नसीरुद्दीन में भी उस पद की तरह गर्व व अकड़ थी।
  2. मियाँ नसीरुद्दीन को शक था कि कहीं लेखिका अखबार वाली तो नहीं हैं। वे उन्हें खुराफाती मानते हैं जो खोज करते रहते हैं। इस कारण उन्होंने लेखिका को घूरकर देखा।
  3. अखबार वालों के बारे में मियाँ की राय पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। वे अखबार बनाने वालों के साथ-साथ अखबार पढ़ने वालों को भी निठल्ला मानते हैं। इससे लोगों को कोई फायदा नहीं मिलता।

3. मियाँ नसीरुद्दीन ने आँखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर बोले-‘क्या मतलब? पूछिए साहब-नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज़ के पास? क्या आईनासाज़ के पास? क्या मीनासाज़ के पास? या रफूगर, रैंगरेज़ या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब-यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा। हाँ, इल्म की बात पूछिए तो जो कुछ भी सीखा, अपने वालिद उस्ताद से ही। मतलब यह कि हम घर से न निकले कि कोई पेशा अख्तियार करेंगे। जो बाप-दादा का हुनर था, वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के उठ जाने पर बैठे उन्हीं के ठीये पर!’ (पृष्ठ-23-24)

प्रश्न

1. मियाँ ने लखिका को अखें तरेरकर क्यों उत्तर दिया
2. मियाँ ने किन-किन खानदानी व्यवसायों का उदाहरण दिया? क्यों?
3. मियाँ ने नानबाई का काम क्यों किया?

उत्तर-

1. मियाँ से जब लेखिका ने पूछा कि आपने नानबाई का काम किससे सीखा तो उन्हें क्रोध आ गया। उन्हें यह प्रश्न ही गलत लगा। वे अपनी आँखें तरेरकर अपनी प्रतिक्रिया जता रहे थे।
2. मियाँ ने नगीनासाज़, आईनासाज़, मीनासाज़, रफूगर, रैंगरेज व तेली-तंबोली व्यवसायों का उदाहरण दिया। उन्होंने लेखिका को समझाया कि इन लोगों के पास नानबाई का ज्ञान नहीं है। खानदानी पेशे को अपने बुर्जुगों से ही सीखा जाता है।
3. मियाँ ने नानबाई का काम किया, क्योंकि यह उनका खानदानी पेशा था। इनके पिता व दादा मशहूर नानबाई थे। मियाँ ने भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाया।

4. मियाँ कुछ देर सोच में खोए रहे। सोचा पकवान पर रोशनी डालने को है कि नसीरुद्दीन साहिब बड़ी रुखाई से बोले-‘यह हम न बतावेंगे। बस, आप इत्ता समझ लीजिए कि एक कहावत है न कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। कहावत जब भी गढ़ी गई हो, हमारे बुजुर्गों के करतब पर ही पूरी उतरती है।’ मज़ा लेने के लिए टोका-‘कहावत यह सच्ची भी है कि.।’ मियाँ ने तरेरा-‘और क्या झूठी है? आप ही बताइए, रोटी पकाने में झूठ का क्या काम! झूठ से रोटी पकेगी? क्या पकती देखी है कभी! रोटी जनाब पकती है आँच से, समझे!’ (पृष्ठ-26)

प्रश्न

  1. मियाँ नसीरुद्दीन ने किस चीज के लिए कहा कि-यह हम न बतावेंगे?
  2. मियाँ किस सोच में खो गए?
  3. मियाँ किस बात का दावा करते हैं?

उत्तर-

  1. मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने पुरखों के करतबों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने बादशाह को ऐसी चीज खिलाई जो न आग से और न पानी से पकी थी। लेखिका ने जब चीज का नाम पूछा तो उन्होंने बेरुखाई से नाम बताने से इंकार कर दिया।
  2. मियाँ से जब अद्भुत चीज के बारे में पूछा गया तो वे सोच में पड़ गए। वास्तव में मियाँ को ऐसी चीज के बारे में पता ही नहीं था। उन्होंने अपने बुजुर्गों की प्रशंसा के लिए यह बात कह दी थी।
  3. मियाँ इस बात का दावा करते हैं कि खानदानी नानबाई कुछ भी पका सकता है। रोटी आँच से पकती है, झूठ से नहीं।

5. ‘अजी साहिब, क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं!’ कह दिया न कि बादशाह के यहाँ काम करते थे-सो क्या काफी नहीं?’
हम खिसियानी हँसी हँसे-‘है तो काफ़ी, पर ज़रा नाम लेते तो उसे वक्त से मिला लेते।’
‘वक्त से मिला लेते-खूब! पर किसे मिलाते जनाब आप वक्त से?’-मियाँ हँसे जैसे हमारी खिल्ली उड़ाते हों।
‘वक्त से वक्त को किसी ने मिलाया है आज तक! खैर-पूछिए-किसका नाम जानना चाहते हैं? दिल्ली के बादशाह का ही ना! उनका नाम कौन नहीं जानता-जहाँपनाह बादशाह सलामत ही न!’ (पृष्ठ-27)

प्रश्न

  1. मियाँ किस बात से भड़क उठे?
  2. मियाँ लेखिका की बात से क्यों खीझ गए?
  3. लेखिका ने बादशाह का नाम क्यों पूछा?

उत्तर-

  1. मियाँ ने बताया कि उनके पूर्वज बादशाह के नानबाई थे तो लेखिका ने उनसे बादशाह का नाम पूछा। इस बात परवे भड़क उठे।
  2. लेखिका उनसे यह जानना चाहती थी कि उनके पूर्वज दिल्ली के किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। मियाँ को इसका जवाब नहीं पता था। लेखिका द्वारा बार-बार यह प्रश्न पूछे जाने पर वे खीझ उठे।
  3. लेखिका बादशाह का नाम जानना चाहती थी ताकि उसके समय से मियाँ के व्यवसाय के काल का पता चल सके और मियाँ के कथन की पुष्टि हो सके।

6. फिर तेवर चढ़ा हमें घूरकर कहा-‘तुनकी पापड़ से ज़्यादा महीन होती है, महीन। हाँ किसी दिन खिलाएँगे, आपको।’ एकाएक मियाँ की आँखों के आगे कुछ कौंध गया। एक लंबी साँस भरी और किसी गुमशुदा याद को ताज़ा करने को कहा-‘उतर गए वे ज़माने। और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। मियाँ अब क्या रखा है. निकाली तंदूर से-निगली और हज़म!’ (पृष्ठ-28)
प्रश्न

  1. तुनकी क्या है? उसकी विशेषता बताइए।
  2. मियाँ के आगे क्या काँध गया?
  3. ‘उतर गए वे जमान।’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

  1. तुनकी विशेष प्रकार की रोटी है। यह पापड़ से भी अधिक पतली होती है।
  2. मियाँ को अपने पुराने जमाने के दिन याद आने लगे जब लोग उनकी दुकान से तरह-तरह की रोटियाँ लेने आते थे।
  3. इसका अर्थ है कि पहले जमाने में लोग कलाकारों की कद्र करते थे। वे पकाने वालों की मेहनत, कलाकारी, योग्यता आदि का मान करते थे। आज जमाना बदल गया। अब किसी के पास समय नहीं है। हर व्यक्ति केवल पेट भरने का काम करता है। उसे स्वाद की कोई परवाह नहीं है।

 

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

प्रश्न 1:
मियाँ नसीरुददीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया है क्योंकि वे मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला का बखान करते थे। वे नानबाई हुनर में माहिर थे। उन्हें छप्पन तरह की रोटियाँ बनानी आती थी। यह तीन पीढियों से उनका खानदानी पेशा था। उनके दादा और पिता बादशाह सलामत के यहाँ शाही बावर्ची खाने में बादशाह की खिदमत किया करते थे। मियाँ रोटी बनाने को कला मानते हैं तथा स्वयं को उस्ताद कहते हैं। उनका बातचीत करने का ढंग भी महान कलाकारों जैसा है।

प्रश्न 2:
लेखिका मियाँ नसीरुददीन के पास क्यों गई थी?
उत्तर-

लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई थी ताकि वे रोटी बनाने की कारीगरी को जाने तथा उसे लोगों को बता सके। मियाँ छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर थे। वह उनकी इस कारीगरी का रहस्य भी जानना चाहती थी। इसलिए उसने मियाँ से अनेक प्रश्न पूछे।

प्रश्न 3:
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुददीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने 
लगी?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन अपनी कला में माहिर सुप्रसिद्ध नानबाई थे। वे स्वभाव से बड़े बातूनी और अपनी तारीफ़ स्वयं करनेवाले भी थे। बातचीत के दौरान उन्होंने लेखक को बताया कि तीन पीढ़ियों से वे खानदानी नानबाई हैं। उनके दादा और वालिद मरहूम बादशाह सलामत के शाही बावर्चीखाने में ऐसे पकवान पकाया करते थे कि बादशाह सलामत खूब खाते और सराहते थे। इस पर लेखिका ने उनसे बादशाह का नाम पूछा तो वे नाराज होकर बोले क्या कीजिएगा? कोई चिट्ठी-रुक्का भेजना है? और यह कहकर वे उखड़ गए? ऐसा जान पड़ता है कि बादशाह के विषय में वे झूठ कह रहे थे। इसी कारण रुखाई से अपने काम में लग गए।

प्रश्न 4:
मियाँ नसीरुददीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजूमून न छेड़ने का फैसला किया-इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से बादशाह का नाम पूछा तो वे सही उत्तर नहीं दे पाए। लेखिका द्वारा बहादुरशाह जफ़र का नाम लेने पर वह चिढ़ गए और बोले कि यही नाम लिख लीजिए, आपको कौन-सी बादशाह के नाम चिट्ठी भेजनी है। वह लेखिका की बातों से उकता गए थे इसलिए उन्होंने उसे नज़रअंदाज़ करने के लिए अपने कारीगर बब्बन मियाँ को भट्ठी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका उनके बेटे-बेटियों के बारे में जानना चाहती थी, परंतु मियाँ को चिढ़ता देख वह चुप रह गई, फिर उसने पूछा कि कारीगर लोग आपकी शागिर्दी करते हैं? तो मियाँ ने गुस्से में उत्तर दिया कि खाली शागिर्दी ही नहीं, दो रुपये मन आटा और चार रुपये मन मैदा के हिसाब से इन्हें गिन-गिन कर मजूरी भी देता हूँ। लेखिका द्वारा रोटियों के नाम पूछने पर मियाँ ने पल्ला झाड़ते हुए कुछ रोटियों के नाम गिना दिए। इसके बाद लेखिका ने उनके चेहरे पर तनाव देखा।

प्रश्न 5:
पाठ में मियाँ नसीरुददीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?

उत्तर-
पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने इस प्रकार खींचा है-हमने जो अंदर झाँका तो पाया, मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी का मज़ा ले रहे हैं। मौसमों की मार से पका चेहरा, आँखों में काइयाँ, भोलापन और पेशानी पर मंजे हुए कारीगर के तेवर।

पाठ के आस-पास

प्रश्न 1:
मियाँ नसीरुददीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन की सबसे अच्छी बात है–अपने हुनर में माहिर होना। आज जब अधिकांश लोग अपने पारंपरिक पेशे को छोड़ते जा रहे हैं तो ऐसे लोग ही कला को जीवित रखते हैं। दूसरी बात जो उन्होंने कही थी कि ‘सीख और शिक्षा क्या? काम तो करने से आता है’-कर्म करने में विश्वास रखना एक बड़ी बात है। आज लोग आरामतलबी में पड़कर अपनी क्षमता खो देते हैं, पर वे बुजुर्ग होकर भी व्यस्त थे। और तीसरी बात, वे अखबारवालों से दूर ही रहना पसंद करते थे।

प्रश्न 2:
तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है-यहाँ लेखिका ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है? क्या आप दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए।

उत्तर-
यहाँ ‘तालीम’ शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहले ‘तालीम’ का अर्थ है-शिक्षा या प्रशिक्षण। दूसरे ‘तालीम’ का अर्थ है-पालन करना या आचरण करना। इसका अर्थ यह है कि जो शिक्षा पाई जाए, उसका पालन करना अधिक जरूरी है। दूसरी बार आए तालीम की जगह हम ‘पालन’ शब्द भी लिख सकते हैं।

प्रश्न 3:
मियाँ नसीरुददीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्राय: लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?

उत्तर-
आज के परिवेश में अनेक हुनरमंद लोग अपनी संतान को उसी कला को व्यवसाय बनाने की सलाह नहीं देते या संतान स्वयं ऐसा नहीं चाहती। इसका मुख्य कारण है कि खानदानी व्यवसाय में धन-लाभ के अवसर अपेक्षाकृत कम रहते हैं। दूसरा कारण यह भी है कि आजकल खानदानी हुनर के प्रशंसक नहीं रहे। आधुनिकता और भौतिकता के युग में कला को मान नहीं मिल रहा।

प्रश्न 4:
मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोज़ियों की खुराफात है-अखबार की भूमिका को देखते 
हुए इस पर टिप्पणी करें।
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार अखबार बनाने वाला व पढ़ने वाला-दोनों निठल्ले हैं। उनका यह दृष्टिकोण गलत है। वे उन्हें खोजियों की खुराफ़ात कहते हैं। यह कथन ठीक है। पत्रकार नए-नए तथ्यों को प्रकाश में लाते हैं। इससे लोगों का शोषण खत्म होता है। नयी खोजों से ज्ञान का प्रसार होता है, परंतु निरर्थक या भ्रम फैलाने वाली बातों को तूल देना सामाजिक दृष्टि से गलत है। सनसनीखेज खबरों से शांति भंग होती है।

प्रश्न 5:
पकवानों को जानें

● पाठ में आए रोटियों के अलग-अलग नामों की सूची बनाएँ और इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

भाषा की बात

प्रश्न 1:
तीन चार वाक्यों में अनुकूल प्रसंग तैयार कर नीचे दिए गए वाक्यों का इस्तेमाल करें-

(क) पचहज़ारी अदाज़ से सिर हिलाया।
(ख) अखों के कच्चे हम पर फेर दिए।
(ग) आ बैठे उन्हीं के ठीये पर।

उत्तर-

(क) हमारे पड़ोस में एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति रहते थे। वे लोगों के हर कष्ट में साथ होते थे। समाजसेवा के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे! मैंने एक दिन उनकी समाजसेवा की प्रशंसा की तो उन्होंने पंचहज़ारी अंदाज़ में सिर हिलाया।
(ख) इस पर वे अपने कार्यों की बड़ाई करने लगे। तभी मैंने उनके कुछ कारनामे बताए जिनमें वे समाज-सेवा के नाम अपनी सेवा करते हैं। इस पर वे बौखला गए और अपनी आँखों के कंचे हम पर फेर दिए।
(ग) वे सज्जन चाहे अपना फायदा देखते हों, परंतु समाज-सेवक अवश्य हैं। वे क्षेत्र के प्रसिद्ध समाज-सेवी के चेले हैं। उनके जाने के बाद वे उन्हीं के ठीये पर आ बैठे।

प्रश्न 2:
बिटर-बिटर देखना-यहाँ देखने के एक खास तरीके को प्रकट किया गया है? देखने संबंधी इस प्रकार के चार क्रियाविशेषणों का प्रयोग कर वाक्य बनाइए।
उत्तर-

  1. टुकुर-टुकुर देखना – बकरी सहमकर कसाई की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।
  2. घूर-घूरकर देखना – दरोगा लगातार जुम्मन को घूर घूरकर देख रहा था।
  3. चोरी-चोरी देखना – तुम जब भी मुझे चोरी-चोरी देखते हो, मुझे अच्छा लगता है।
  4. कनखियों से देखना – वह मुझे कभी मुँह उठाकर नहीं देखता, जब भी देखता है, कनखियों से देखता है।

प्रश्न 3:
नीचे दिए वाक्यों में अर्थ पर बल देने के लिए शब्द-क्रम परिवर्तित किया गया है। सामान्यत: इन वाक्यों को किस क्रम में लिखा जाता है? लिखें।

(क) मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए।
(ख) निकाल लगे वक्त थोड़ा।
(ग) दिमाग में चक्कर काट गई है बात।
(घ) रोटी जनाब पकती हैं अच स।

उत्तर-

(क) मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
(ख) थोड़ा वक्त निकाल लेंगे।
(ग) बात दिमाग में चक्कर काट गई है।
(घ) जनाब! रोटी आँच से पकती है।

अन्य हल प्रश्न

● बोधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1:
‘मियाँ नसीरुददीन’ पाठ का प्रतिपादय बताइए।
उत्तर-

मियाँ नसीरुददीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज़ से रोटी पकाने की कला और उसमें अपने खानदानी महारत को बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।

प्रश्न 2:
मियाँ नसीरुददीन के मन में कौन-सा दर्द छिपा है?

उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन को लोगों की बदली रुचि से दुख है। पहले लोग कला की कद्र करते थे। वे पकाने वाले का सम्मान भी करते थे। अब जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है। कमाने के साथ चलने की होड़ मची है। ऐसे में खाने वाला और पकाने वाला-दोनों जल्दी में हैं। इस दृष्टिकोण के कारण देश की पुरानी कलाएँ दम तोड़ रही हैं।

प्रश्न 3:
अखबार वालों के प्रति मियाँ नसीरुददीन का दृष्टिकोण कैसा है?

उत्तर-
मियाँ नसीरूददीन का मानना है कि अखबार छापने वाले व पढ़ने वाले-दोनों बेकार होते हैं। ये वक्त खराब करते हैं। वे खबरों को मसाला लगाकर छापते हैं। मियाँ अखबार पढ़ने से ज्यादा महत्व काम को देते हैं। वे अखबारों की खोजी प्रवृत्ति से भी चिढ़ते हैं।

प्रश्न 4:
मियाँ नसीरुददीन के अनुसार सच्ची तालीम क्या है?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार सच्ची तालीम व्यावहारिक प्रशिक्षण है। यदि वे बर्तन माँजना, भट्ठी सुलगाना नहीं सीखते तो वे अच्छे नानबाई नहीं बन पाते। केवल कागजी या जबानी बातों से काम नहीं सीखा जाता है। शिक्षा को अपनाना अधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 4:
मियाँ ने पढ़ाई के कितने तरीके बताए हैं?
उत्तर-

मियाँ ने पढ़ाई के दो तरीके बताएँ हैं-पहला किताबी, दूसरा व्यावहारिक। पहले तरीके में उस्ताद चेले को एक-एक शब्द का उच्चारण करवाकर पढ़ाता है। दूसरे तरीके में काम करते हुए सिखाया जाता है। इसमें छोटे काम पहले करवाए जाते हैं, फिर बड़े काम सिखाए जाते हैं।


अक्क महादेवी

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