Tuesday 24 November 2020

वे आँखें- श्री सुमित्रानंदन पंत

 वे आँखें- श्री सुमित्रानंदन पंत




























1.1 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

उत्तर:- आमतौर पर हमें अंधकार, आर्थिक हानि, अपमान, हत्याकांड, प्रियजन की मृत्यु आदि बातों से डर लगता है।


1.2 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

उत्तर:- ‘उन आँखों’ से किसान की ओर संकेत किया गया है।


1.3 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?

उत्तर:- कवि को उन आँखों की असीम वेदना से डर लगता है।


1.4 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

उत्तर:- डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन समाज को किसान की स्थिति से अवगत कराने के लिए किया है ताकि लोग किसान के प्रति सहानुभूति रखें और अत्याचारी महाजनों और थानेदारों का पर्दाफाश कर सके।


1.5 अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन।

यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?

उत्तर:- यदि कवि को किसान की आँखों को देखकर भय न लगता, तो शायद उसे उसकी पीड़ा का बोध न होता और कविता न लिखी जाती क्योंकि कविता लिखने के लिए मन में भावों का होना आवश्यक है।




2. कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें ज़िम्मेदार बताया गया है?

उत्तर:- कविता में किसान की पीड़ा के लिए जमींदार, महाजन व कोतवाल को ज़िम्मेदार बताया है। महाजन ने अपना ब्याज और ऋण वसूलने के लिए किसान के खेत, गाय-बैल और घर-बार बिकवा दिया। उसके कारकुनों ने विरोध करने के कारण उसके जवान बेटे को मरवा दिया। दवाई के अभाव में उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई और इसी कारण उसकी दूध-मुँही बच्ची की भी मृत्यु हो गई।




3. पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षण भर एक चमक है लाती –

इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर:- उपर्युक्त पंक्ति में किसान के निम्न सुखों की ओर संकेत किया गया है – किसान कभी स्वाधीन था उसके घर के पास लहलहाते खेत थे। दुधारू गाय और हृष्ट-पुष्ट बैलों की जोड़ी थी। घर में उसका एक जवान पुत्र, पत्नी, बेटी और पुत्र-वधू भी थी इस तरह से किसान एक सुखी और संतुष्ट किसान था और इन्हीं सब की स्मृति उसकी आँखों में चमक ला देती थी।




4.1 संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें –

उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

उत्तर:-संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। उपर्युक्त पंक्तियों में किसान की उजरी गाय की दुर्दशा का वर्णन किया गया है।

आशय – कवि कहते हैं कि किसान के पास उजरी नाम की एक गाय थी उस गाय के प्रति किसान का कुछ विशेष स्नेह था वह गाय भी केवल किसान को ही दूध दूहने देती थी।


4.2 संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें –

घर में विधवा रही पतोहू

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

उत्तर:-संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। यहाँ पर किसान के जवान पुत्र के मरने का संदर्भ है कि किस प्रकार किसान के बेटे को विरोध करने के लिए मार दिया गया।

आशय – किसान के बेटे को कारकूनों ने मार दिया और उसकी मृत्यु का आरोप जमींदार और पुलिस की मिलीभगत से उसकी पत्नी पर मढ़ दिया गया। उसके मरने में उसकी पत्नी का कोई दोष नहीं था फिर भी समाज ने उसे पति घातिन करार दे दिया जबकि वह विधवा होते हुए भी लक्ष्मी के समान थी। वही कमाकर घर चला रही थी।


4.3 संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें –

पिछले सुख की स्मृति आँखों में

क्षण भर एक चमक है लाती,

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती।

उत्तर:-संदर्भ – प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इस कविता के रचयिता ‘सुमित्रानंदन पंत’ हैं। यहाँ पर किसान के पूर्व सुखों के बारे में बताया गया है।

आशय – किसान जब अपने पूर्व वैभव को याद करता है तो क्षण भर के लिए उसे सुख और आनंद का अनुभव होता है। उसकी आँखों में चमक उभर आती है परंतु किसान का यह सुखद अहसास क्षण भर में विलीन भी हो जाता है और उसे तीखी नोक की भाँति वह सारी सुख की बातें चुभने लगती है।


5. “घर में विधवा रही पतोहू ……/ खैर पैर की जूती, जोरू/एक न सही दूजी आती” इन पंक्तियों को ध्यान में रखते हुए ‘वर्तमान समाज और स्त्री’ विषय पर एक लेख लिखें।

उत्तर:- प्रस्तुत कविता में स्त्री की स्थिति बड़ी ही दयनीय बताई गई है। विधवा स्त्री से सहानुभूति रखने की अपेक्षा उसे पति की हत्यारिन करार दिया जाता है। कोतवाल उसे बिना किसी कारण के धमकाता है और उसके साथ कुकर्म करने से भी नहीं चुकता। उसे इतना पीड़ित किया जाता है कि वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दी जाती है।


वर्तमान युग की बात करें तो स्त्रियों की स्थिति पहले की तुलना में कई बेहतर है। आज एक बार लगभग सभी देशों में स्त्री पुनः अपनी शक्ति का लोहा मनवा रही है। हम कह सकते हैं कि आज का युग स्त्री-जागरण का युग है। भारत में तो सर्वोच्च राष्ट्रपति पद की कमान भी स्त्री ने सँभाली है। शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान, चिकित्सा, शासन कार्य और यहाँ तक कि सैनिक बनकर देश की रक्षा के लिए मोर्चों पर जाने में भी वे पीछे नहीं रही है। अब स्त्री अबला नहीं अपराजिता है और उसकी जीत में पुरुषों का योगदान ठीक वैसे ही है जैसे एक पुरुष की जीत में स्त्री का हाथ होता है।




6. किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।

उत्तर:- किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं इस विषय पर निम्न मुद्दों के आधार पर परिचर्चा कर सकते हैं –

1. खेती व्यावसायिक दृष्टिकोण से लाभ-प्रद नहीं रह गई है।

2. इस व्यवसाय में अधिक परिश्रम की आवश्यकता होती है जिसे आज का पढ़ा-लिखा और युवावर्ग नहीं करना चाहता है।

3. सरकार का कृषि के प्रति उदासीन रवैया।

4. अनाज की बिक्री की समुचित व्यवस्था का अभाव।

कृषि व्यवसाय से पलायन के निम्न कारण हैं –

1. कम आय होना

2. घोर परिश्रम के बाद भी सफलता न मिलना

3. समाज में उचित सम्मान न मिलना

4. प्रकृति और वर्षा पर निर्भरता

5. नुकसान की भरपाई की सुविधा का अभाव आदि कारण भी लोग कृषि से पलायन कर रहें हैं।

कविता का सारांश

यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। यह कविता दुश्चक्र में फैसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है।


कवि कहता है कि किसान की अंधकार की गुफा के समान आँखों में दुख की पीड़ा भरी हुई है। इन आँखों को देखने से डर लगता है। वह किसान पहले स्वतंत्र था। उसकी आँखों में अभिमान झलकता था। आज सारे संसार ने उसे अकेला छोड़ दिया है। उसकी आँखों में लहलहाते खेत झलकते हैं जिनसे अब उसे बेदखल कर दिया गया है। उसे अपने बेटे की याद आती है जिसे जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीटकर मार डाला। कर्ज के कारण उसका घर बिक गया। महाजन ने ब्याज की कौड़ी नहीं छोड़ी तथा उसके बैलों की जोड़ी भी नीलाम कर दी। उसकी उजरी गाय भी अब उसके पास नहीं है।



 

किसान की पत्नी दवा के बिना मर गई और देखभाल के बिना दुधर्मुही बच्ची भी दो दिन बाद मर गई। उसके घर में बेटे की विधवा पत्नी थी, परंतु कोतवाल ने उसे बुला लिया। उसने कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी। किसान को पत्नी का नहीं, जवान लड़के की याद बहुत पीड़ा देती थी। जब वह पुराने सुखों को याद करता है तो आँखों में चमक आ जाती है, परंतु अगले ही क्षण सच्चाई के धरातल पर आकर पथरा जाती है।


व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1.


अधिकार की गुहा सरीखी

उन अखिों से डरता है मन,

भरा दूर तक उनमें दारुण

दैन्य दुख का नीरव रांदन!


वह स्वाधीन किसान रहा,

अभिमान भरा अखिों में इसका,

छोड़ उसे मंझधार आज

संसार कगार सदृश बह खिसका। (पृष्ठ-147)


शब्दार्थ


गुहा-गुफा। सरीखी-समान। दारुण-निर्दय, कठोर। दैन्य-दीनता। नीरव-शब्द रहित। रोदन-रोना। स्वाधीन-स्वतंत्र। अभिमान-गर्व। मैंझधार-समस्याओं के बीच। कगार-किनारा। सदृश-समान।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। व्याख्या-कवि कहता है कि शोषित किसान की गड्ढों में धैसी हुई आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं जिनसे मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है कि उनमें बहुत दूर तक कोई कष्टप्रद दयनीयता व दुख का मौन रुदन भरा हुआ है। उसकी आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है। किसान का अतीत अच्छा था। वह सदैव स्वाधीन था। उसके पास अपने खेत थे। उसकी आँखों में स्वाभिमान झलकता था, परंतु आज वह अकेला पड़ गया है। संसार ने उसे समस्याओं के बीच में छोड़कर किनारे की तरह बहकर उससे दूर चला गया है। विशेष-



 

1. किसान की उपेक्षा का मार्मिक चित्रण है।

2. ‘अंधकार की गुह गुहा सरीखी’ में उपमा अलंकर है।

3. ‘दारुण दैन्य दुख’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. ‘ कगार सदृश ‘ में उपमा अलंकार।

5. भाषा में लाक्षणिकता है।

6. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।

7. भाषा में प्रवाह है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1. कवि किसके बारे में बात कर रहा है?

2. कवि को किससे डर लगता है तथा क्यों?

3. पहले किसान की दशा कैसी थी? अब उसमें क्या परिवर्तन आ गया है?

4. किसान की आँखों के विषय में कवि क्या कहता है?


उत्तर-


कवि उस शोषित किसान के बारे में बात कर रहा है जिसकी आँखें गड्ढों में धंस चुकी हैं और वे अँधेरी गुफा के समान डरावनी प्रतीत हो रही हैं।

कवि को किसान की आँखों से डर लगता है, क्योंकि उनमें गहरी निराशा, हताशा व उदासीनता भरी है।

पहले किसान की दशा अच्छी थी। वह अपनी खेती का मालिक था। उसमें आत्मगर्व भरा था। आज उसकी हालत खराब है। उसकी दीन दशा के कारण समाज ने उससे मुँह मोड़ लिया है। उसका साथ देने वाला कोई नहीं है।

कवि कहता है कि किसान की आँखें अँधेरी गुफा के समान दिखती हैं। इनको देखने से मन में अज्ञात भय उत्पन्न होता है। ऐसा लगता है जैसे उनमें बहुत दूर तक कष्टप्रद दयनीयता का भाव व दुख का रुदन भरा पड़ा है। कुल मिलाकर कवि का मानना है कि किसान की आँखों में भयानक गरीबी का दुख व्याप्त है।

2.


लहराते वे खेत द्वगों में

हुआ बेदखल वह अब जिनसे,

हसती थी उसके जीवन की

हरियाली जिनके तृन-तृन से !


आँखों ही में घूमा करता

वह उसकी अखिों का तारा, 

कारकुनों की लाठी से जो 

गया जवानी ही में मारा। (पृष्ठ-147)


शब्दार्थ


लहराते-लहलहाते, झूमते। दृग-ऑख। बेदखल-अधिकार से वचित। तृन-तिनका। आँखों का तारा-बहुत प्यारा। कारकुन-जमींदार के कारिंदे।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।



 

व्याख्या-किसान अपने अतीत की याद करता है। उसकी आँखों के समक्ष खेत लहलहाते नजर आते हैं जबकि अब उन खेतों से उसे बेदखल कर दिया गया है अर्थात् जमींदारों ने उसकी जमीन हड़प ली है। कभी इन खेतों के तिनके-तिनके में कभी हरियाली लहराती थी तथा उसके जीवन को सुखमय बनाती थी। आज वह सब कुछ खत्म हो गया है।


किसान की आँखों में उसके प्यारे पुत्र का चित्र घूमता रहता है। उसे वह दृश्य याद आता है। जब उसके जवान बेटे को जमींदार के कारिंदों ने लाठियों से पीट-पीटकर मार डाला था। यह बड़े दुख की बात थी।


विशेष-


1. इन पंक्तियों में जमींदार के अत्याचारों का वर्णन है।

2. ‘लहराते खेत’ तथा जमींदारों की लाठी से पिटकर मरे पुत्र में दृश्य बिंब साकार हो उठता है।

3. ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

4. ‘जीवन की हरियाली’ में रूपक अलंकार है।

5. ‘आँखों में घूमना’, ‘आँखों का तारा’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

6. भाषा में लाक्षणिकता है।

7. संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


‘वह’ कौन है? उसके साथ क्या हुआ था?

खेती के कारण किसान का जीवन कैसा था?

‘अखों का तारा’ कौन था? वह किसान की आँखों के सामने क्यों घूमता है?

कारकुनों ने क्या किया था?

उत्तर-


1. ‘वह’ भारतीय किसान है। उसकी जमीन को जमींदारों ने कानून का सहारा लेकर हड़प लिया था।

2. खेती के कारण किसान का जीवन खुशहाल था। खेतों में हरियाली लहराती थी। किसान की जरूरतें पूरी हो जाती थीं।

3. ‘आँखों का तारा’ किसान का जवान बेटा था। उसकी हत्या जमींदार के कारिंदों ने पीट-पीटकर कर दी थी। किसान की आँखों में वह दृश्य घूमता रहता है।

4. कारकुन जमींदार के कारिंदे होते थे। वे जमीन पर कब्जा करने का काम करते थे। उन्होंने किसान के जवान बेटे की लाठियों से पीट-पीटकर हत्या की थी।


3.


बिका दिया घर द्वार,

महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,

रह-रह आँखों में चुभती वह

कुक हुई बरधों की जोड़ी !


उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती? 

अह, आँखों में नाचा करती 

उजड़ गई जो सुख की खेती !(पृष्ठ-148)


शब्दार्थ


महाजन-साहूकार, ऋणदाता। कौड़ी-एक पैसा। कुर्क-नीलाम। बरधों की जोड़ी-बैलों की जोड़ी। उजरी-उजली। सिवा-बिना। दुहाने-दूध दुहने के लिए। अह-आह। आँखों में नाचना-बार-बार सामने आना।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।



 

व्याख्या-कवि किसान की दयनीय दशा का वर्णन करता है। किसान कर्ज में डूब गया। महाजन ने धन व ब्याज की वसूली के लिए किसान की स्थायी संपत्ति को नीलाम कर दिया। उसे घर से बेघर कर दिया, परंतु अपने ऋण के ब्याज की पाई-पाई चुका ली। किसान को सर्वाधिक पीड़ा तब हुई जब बैलों की जोड़ी को भी नीलाम कर दिया गया। यह बात उसकी आँखों में आज भी चुभती है। उसके रोजगार का साधन छीन लिया गया।


किसान के पास दुधारू गाय उजली (जिसे वह प्यार से उजरी कहता था) थी वह उसके सिवाय किसी और को अपने पास दूध दुहने नहीं आने देती थी। मजबूरी के कारण किसान को उसे बेचना पड़ा। इन सब बातों को याद करके किसान बहुत व्यथित होता है। ये सारे दृश्य उसकी आँखों के सामने नाचते हैं। उसकी सुखभरी खेती उजड़ चुकी है, अत: वह निराश व हताश है।

विशेष-


1. किसान पर महाजनों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है।

2. कुकीं व गरीबी के कारण बैल व गाय बेचने का दृश्य कारुणिक है।

3. ‘घर-द्वार’, ‘की कौड़ी’, ‘ने न’, ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।

4. ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

5. ‘आँखों में चुभना’, ‘आँखों में नाचना’ आदि मुहावरों का सार्थक प्रयोग है।

6. देशज शब्द ‘बरधों’ का सटीक प्रयोग है।

7. ग्रामीण परिवेश साकार हो उठा है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1. महाजन ने किसान पर क्या-क्या अत्याचार किए?

2. महाजन ने बैलों की जोड़ी का क्या किया?

3. उजरी कौन थी? किसान उसे इतना याद क्यों करता है?

4. किसान की सुख की खेती क्यों उजड़ गई?


उत्तर-


1. महाजन ने किसान से अपने ऋण की वसूली के लिए उसके खेत, घर तक नीलाम कर दिए। ब्याज की वसूली के लिए उसने किसान को बेघर कर दिया तथा कौड़ी-कौड़ी वसूल ली।

2. महाजन ने कर्ज न चुका पाने की दशा में मजबूर किसान के बैलों की जोड़ी को नीलाम करवा दिया। यह बात किसान के दिल को कचोटती है।

3. उजरी किसान की प्रिय दुधारू गाय थी। वह किसान के अतिरिक्त किसी दूसरे व्यक्ति को अपने पास दूध दुहने के लिए आने नहीं देती थी। इस कारण किसान को उसकी याद बहुत आती है।

4. किसान ने लगान चुकाने के लिए महाजन से कर्ज लिया। इसके बाद वह अपना कर्ज चुका नहीं पाया। उसका सब कुछ नीलाम कर दिया गया, इसलिए उसके सुख की खेती उजड़ गई।


4.


बिना दवा-दपन के घरनी

स्वरगा चली,-अखं आती भर,

देख-रेख के बिना दुधमुही

बिटिया दो दिन बाद गई मर!


घर में विधवा रही पताहू,

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,

 पकडु मॅाया, कोतवाल ने,

डूब कुएँ में मरी एक दिन। (पृष्ठ-148-149)


शब्दार्थ


दवा-दर्पन-दवा आदि। घरनी-पत्नी। स्वरग-स्वर्ग। दुधमुँही-नन्हीं। पतोहू-पुत्रवधू। लछमी-लक्ष्मी। घातिन-मारने वाली।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।



 

व्याख्या-किसान की पारिवारिक स्थिति का वर्णन करते हुए कवि बताता है कि उसकी पत्नी दवा-दारू के अभाव में मर गई। उसके पास संसाधनों की इतनी कमी थी कि वह उसका इलाज भी नहीं करा सका। यह सोचकर उसकी आँखों में आँसू आ जाते हैं। पत्नी की मृत्यु के बाद उस पर आश्रित किसान की नन्हीं बच्ची भी दो दिन बाद मर गई।


किसान के घर में उसकी विधवा पुत्रवधू बची हुई थी। उसका नाम लक्ष्मी था, परंतु उसे पति को मारने वाला समझा जाता था। समाज में पति की मृत्यु होने पर उसकी पत्नी को हत्या का जिम्मेदार मान लिया जाता है। एक दिन कोतवाल ने उसे बुलवाकर उसकी इज्जत लूटी। लाज के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस प्रकार से किसान का पूरा परिवार ही बिखर गया था।


विशेष-


किसान की गरीबी, शोषण व लाचारी का सजीव वर्णन है।

‘आँखें भर आना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

घरनी, स्वरग, लछमी आदि तद्भव शब्दों का प्रयोग भाषा को सहजता प्रदान करता है।

अनुप्रास अलंकार है-दवा-दर्पन, दो दिन।

पति की हत्या के बाद नारी के प्रति समाज के कटु दृष्टिकोण का पता चलता है।

खड़ी बोली है।

पुलिस के अत्याचार का वर्णन है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


किसान की पत्नी व बच्ची की मृत्यु का वक्या कारण था?

किसान की आँखें भर आने का क्या कारण था?

किसान की पतोहू को क्या कहा जाता था? क्यों?

किसान की पतोहू ने आत्महत्या क्यों की?

उत्तर-


किसान की आर्थिक हालत दयनीय थी। उसकी पत्नी बीमार थी। वह उसका इलाज नहीं करवा पाया। इस कारण उसकी मृत्यु हो गई। उसकी बेटी नवजात थी जो माँ के दूध पर आश्रित थी। माँ के मरने के बाद वह भी दो दिन बाद मर गई।

आर्थिक अभावों की वजह से किसान अपनी पत्नी की बीमारी का इलाज नहीं कर पाया, जिसकी वजह से वह मर गई। अपनी इस विवशता को सोचकर उसकी आँखें भर आती हैं।

किसान की पतोहू को ‘पति घातिन’ कहा जाता था, क्योंकि उसके पति की हत्या कारकूनों ने कर दी थी। समाज इस हत्या के लिए पतोहू को दोषी मानता है।

किसान की पुत्रवधू पर कोतवाल की बुरी नीयत थी। उसने उसे थाने में बुलवाया तथा उसका शारीरिक शोषण किया। इस कलंक व विवशता के कारण उसने कुएँ में कूदकर आत्महत्या कर ली।

5.


खैर, पैर की जूती, जोरू

न सही एक, दूसरी आती,

पर जवान लड़के की सुध कर

साँप लौटते, फटती छाती।


पिछले सुख की स्मृति आँखों में 

क्षण भर एक चमक हैं लाती, 

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती। (पृष्ठ-149)


शब्दार्थ


पैर की जूती-उपेक्षित। जोरू-पत्नी। सुधकर-याद करना। साँप लोटते-अत्यधिक व्याकुल होना। फटती छाती-बहुत दुख होना। स्मृति-याद। चमक लाना-खुशी लाना। चितवन-दृष्टि। शून्य-आकाश। सदृश-समान।


प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे ऑखें’ से लिया गया है इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इस कविता में कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है।


व्याख्या-किसान को अपनी पत्नी की मृत्यु पर विशेष शोक नहीं है। वह उसे पैर की जूती के समान समझता है। यदि एक नहीं रहती तो दूसरी से विवाह करके लाया जा सकता है, परंतु उसे अपने जवान बेटे की याद आने पर बहुत कष्ट होता है। उसकी छाती पर साँप लौट जाते हैं तथा छाती फटने लगती है। उसे बेटे की मृत्यु का असहनीय कष्ट है।

किसान जब पिछले खुशहाल जीवन को याद करता है तो उसकी आँखों में एक क्षण के लिए प्रसन्नता की चमक आती है, परंतु अगले ही क्षण जब वह सच्चाई के धरातल पर सोचता है, वर्तमान में झाँकता है तो उसकी नजर शून्य में अटककर गड़ जाती है, वह विचार शून्य होकर टकटकी लगाकर देखता है और उसकी नजर तीखी नोक के समान चुभने वाली हो जाती है।


विशेष-


पत्नी के प्रति किसान की मानसिकता घटिया है। वह पुत्र को अधिक महत्त्व देता है।

साँप लोटना, छाती फटना, पैर की जूती आदि मुहावरों का सजीव प्रयोग है।

‘तीखी नोक सदृश’ में उपमा अलंकार है।

खड़ी बोली है।

ग्रामीण परिवेश का चित्रण है।

● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


पैर की जूती किसे कहा गया है? इससे क्या सिदध होता है?

किसान के मन में सर्वाधिक दुख किसका है?

किसान की आँखों में चमक आने का कारण बताइए।

वास्तविकता का आभास होने पर किसान को कैसा अनुभव होता है?

उत्तर-


प्रस्तुत काव्यांश में पत्नी को ‘पैर की जूती’ कहा गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों की दश्ग बहुत दयनीय थी।

किसान के मन में सर्वाधिक दुख अपने जवान बेटे की मृत्यु का है। उसकी याद आते ही उसकी छाती पर साँप लोटने लगते हैं। वह ही खेती में उसका एकमात्र सहारा था तथा आँखों का तारा था।

जब किसान अपने पुराने दिनों की याद करता है तो उसकी आँखों में चमक आ जाती है। लहलहाते खेत, घर-द्वार, बैल, गाय, जवान बेटा आदि सभी सुखदायी थे।

वास्तविकता का आभास होने पर किसान को सुखद यादें तीखी नोक के समान उसके दिल में चुभने लगती हैं। उसके मन में आक्रोश उमड़ आता है।

● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न


अंधकार की गुहा सरीखी

उन आँखों से डरता है मन,

भरा दूर तक उनमें दारुण

दैन्य दुख की नीरव रोदन।


वह स्वाधीन किसान रहा,

अभिमान भरा आँखों में इसका, 

छोड़ उसे माँझधार आज 

संसार कगार सदृश बह खिसका।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इस अंश में कवि ने किसान की दयनीय दशा का वर्णन किया है। वह हताश व उदासीन है। समाज द्वारा उसकी उपेक्षा करना सर्वथा अनुचित है।

● ‘अंधकार की गुहा सरीखी’ में उपमा

● ‘दारुण दैन्य दुख’ में अनुप्रास अलंकार है। अलंकार है।

● ‘संसार कगार सदृश’ में उपमा अलंकार है।

● संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग है।

● करुण रस है।

● भाषा में लाक्षणिकता है।

● ‘संसार’ में विशेषण विपर्यय अलंकार है।

2.


लहराते वे खेत द्वगों में

हुआ बदलखल वह अब जिनसे,

हँसती थी उसके जीवन की

गया जवानी ही में मारा।


आँखों ही में घूमा करता

वह उसकी अखिों का तारा,

कारकुनों की लाठी से जो

हरियाली जिनके तृन-तृन से।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इन पंक्तियों में जमींदारों के अत्याचारों का सजीव वर्णन है। जमींदार किसानों की जमीन पर कब्जा करते हैं तथा विरोध करने पर युवाओं की हत्या तक कर दी जाती है।

● ‘तृन-तृन’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।

● ‘जीवन की हरियाली’ में रूपक अलंकार है।

● ‘हँसना’ प्रसन्नता का परिचायक है।

● भाषा में लाक्षणिकता है।

● ‘आँखों का तारा’ व ‘आँखों में घूमना’ मुहावरे

● कारकूनों द्वारा लाठी से मारे जाने से दृश्य बिंब का सशक्त प्रयोग है। साकार हुआ है।

3.


बिका दिया घर द्वार,

महाजन ने न ब्याज की कड़ी छोड़ी,

रह-रह आँखों में चुभती वह अह,

कुर्क हुई बरधों की जोड़ी।


उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

अखिों में नाचा करती

उजड़ गई जो सुख की खेती।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इस काव्यांश में महाजनी शोषण का मर्मस्पर्शी चित्र है। किसान से कर्ज वसूली के लिए उसके खेत, घर, आदि बिकवा दिया जाता है। ब्याज की वसूली के लिए बैल तक नीलाम करवाए जाते हैं।

● बैलों की कुकी जैसे दृश्य कारुणिक हैं।

● ‘किसे कब’ में अनुप्रास अलंकार है।

● ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार हैं।

● ‘बरधों’ शब्द से ग्रामीण परिवेश प्रस्तुत हो जाता है।

● खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।

● मिश्रित शब्दावली है।

● ‘उजरी ….. देती?’ में प्रश्न अलंकार है।

● ‘आँखों में चुभना’ व ‘आँखों में नाचना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।

4.


बिना दवा-दपन के घरनी

स्वरग चली, अखें आती भर,

देख-रेख के बिना दुधर्मुही

बिटिया दो दिन बाद गई मर।


घर में विधवा रही पतोहू,

लछमी थी, यद्यपि पति घातिन, 

पकड़ माया, कोतवाल ने, 

डूब कुएँ में मरी एक दिन।


प्रश्न


भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-


इस काव्यांश में किसान की फटेहाली, विवशता व शोषण का सजीव चित्रण है। अभाव के कारण पत्नी व बच्ची की मृत्यु, पुलिस द्वारा पुत्रवधू का शोषण होना, फिर उसका आत्महत्या करना आदि परिस्थितियाँ किसान की लाचारी को व्यक्त करती हैं। पति की मृत्यु के लिए पत्नी को दोषी मानना भी समाज की रुग्ण मानसिकता का परिचायक है।

● करुण रस की अभिव्यक्ति हुई है।

● ‘आँखें भर आना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

● खड़ी बोली है।

● अनुप्रास अलंकार है-दवा-दर्पन, दो दिन, में मरी। भाषा प्रवाहमयी है।

● घरनी, स्वरग, लछमी, कोतवाल, पतोहू आदि शब्द ग्रामीण परिवेश को व्यक्त करते हैं।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

कविता के साथ


प्रश्न 1:


अधकार की गुहा सरीखी

उन आखों से डरता है मन।


(क) आमतौर पर हमें डर किन बातों से लगता है?

(ख) उन आँखों से किसकी ओर संकेत किया गया है?

(ग) कवि को उन आँखों से डर क्यों लगता है?

(घ) डरते हुए भी कवि ने उस किसान की आँखों की पीड़ा का वर्णन क्यों किया है?

(ङ) यदि कवि इन आँखों से नहीं डरता क्या तब भी वह कविता लिखता?


उत्तर-

(क) हमें दुख, पीड़ा और वेदना पहुँचानेवाली बातों से डर लगता है।

(ख) किसान की सूनी, अँधेरे की गुफा जैसी आँखों की ओर संकेत किया गया है।

(ग) कवि को उन आँखों में भरा हुआ दारुण, दुख, गरीबी, अभाव और सूनापन देखकर भय लगता है।

(घ) कवि के मन का भय वास्तव में उसको किसान से होनेवाली सहानुभूति है। किसान का वर्णन भी कवि इसी उद्देश्य से करता है कि समाज किसान की पीड़ा को जाने और उसे समझकर किसान की दशा सुधारने के लिए कुछ कार्य करे।

(ङ) डर ही पीड़ा का अनुभव है, यदि वह न होता तो उद्देश्य के अभाव में कवि कविता नहीं लिख पाता।


प्रश्न 2:

कविता में किसान की पीड़ा के लिए किन्हें जिम्मेदार बताया गया है?

उत्तर-

कविता में किसान की पीड़ा के लिए जमींदार, महाजन व कोतवाल को जिम्मेदार बताया है। जमींदार ने षड्यंत्रों से उसे जमीन से बेदखल कर दिया। उसके कारिदों ने किसान के जवान बेटे की पीट-पीटकर हत्या कर दी। महाजन ने मूलधन व ब्याज की वसूली के लिए उसके घर, बैल, गाय तक नीलाम करवा दिए। आर्थिक अभाव के कारण इलाज न करवा पाने की वजह से किसान की पत्नी मर गई। कोतवाल ने अपनी वासना की पूर्ति के लिए उसकी पुत्रवधू को शिकार बनाया। पीड़ा एवं लज्जा के कारण उसकी पुत्रवधू ने आत्महत्या कर ली। समाज उस पर होने वाले अत्याचारों को मूक दर्शक बनकर देखता रहा।


प्रश्न 3:

‘पिछले सुख की स्मृति आँखों में क्षणभर एक चमक है लाती’-इसमें किसान के किन पिछले सुखों की ओर संकेत किया गया है?

उत्तर-

जब किसान के पास प्राणों से लहलहाते प्यारे खेत थे, बैलों की जोड़ी, गाय, जवान बेटा, स्त्री, पुत्री, पतोहू सबसे भरा-पूरा घर-बार था तो वह सुखी था। खेत की हरियाली को एक-एक तिनका किसान के जीवन की हँसी-खुशी था। जवान बेटा उसकी आँखों का तारा था। बैलों की जोड़ी थी और उजली गाय जो उसकी पत्नी के अलावा किसी को दूध नहीं निकालने देती थी। ये सब किसान के सुख भरे दिन थे। इन बातों से उसका मन सुखी रहता था; आज इनमें से कुछ भी उसके पास नहीं है, केवल स्मृतियाँ शेष रह गई हैं।


प्रश्न 4:

संदर्भ सहित आशय स्पष्ट करें-


(क)

उजरी उसके सिवा किसे कब

पास दुहाने आने देती?

(ख)

घर में विधवा रही पतोहू

लछमी थी , यद्यपि पति घातिन,

(ग)

पिछले सुख की स्मृति अखिों में

क्षण भर एक चमक है लाती,

तुरत शून्य में गड़ वह चितवन

तीखी नोक सदृश बन जाती।


उत्तर-


(क) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में महाजनी अत्याचार से पीड़ित किसान की उजरी गाय की दुर्दशा का वर्णन किया गया है।

आशय-कवि बताता है कि किसान का अपनी गाय के साथ विशेष लगाव था। गाय भी उससे अत्यधिक स्नेह रखती थी। वह उसके बिना किसी और को दूध दूहने नहीं देती थी। नीलामी के बाद उसने दूध देना बंद कर दिया।

(ख) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में किसान के बेटे की हत्या का दोषी उसकी पुत्रवधू को बताया जाता है। यह नारी पर होने वाले अत्याचारों की पराकाष्ठा है।

आशय-किसान के घर में सिर्फ विधवा पुत्रवधू बची थी। उसका नाम लक्ष्मी थी, परंतु उसे पति को मारने वाली कहा जाता था। समाज में विधवा के प्रति नकारात्मक रवैया है। कसूर न होते हुए पुत्रवधू को पति घातिन कहा जाता है।

(ग) संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘वे आँखें’ से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं। इन पंक्तियों में, कवि ने भारतीय किसान के भयंकर शोषण व दयनीय दशा का वर्णन किया है। ।

आशय-किसान जब पिछले खुशहाल जीवन को याद करता है उसकी आँखों में एक क्षण के लिए प्रसन्नता की चमक आ जाती है, परंतु अगले ही क्षण जब वह सच्चाई के धरातल पर सोचता है, वर्तमान में झाँकता है तो उसकी नजर शून्य में अटककर गड़ जाती है, वह विचार शून्य होकर टकटकी लगाकर देखता है और नजर तीखी नोक के समान चुभने वाली हो जाती है।


कविता के आस-पास


प्रश्न 1:

किसान अपने व्यवसाय से पलायन कर रहे हैं। इस विषय पर परिचर्चा आयोजित करें तथा कारणों की भी पड़ताल करें।

उत्तर-

छात्र स्वयं करें।


अन्य हल प्रश्न

● लघूत्तरात्मक प्रश्न


प्रश्न 1:

‘वे आँखें’ कविता का उददेश्य बताइए।

उत्तर-

यह कविता पंत जी के प्रगतिशील दौर की कविता है। इसमें विकास की विरोधाभासी अवधारणाओं पर करारा प्रहार किया गया है। युग-युग से शोषण के शिकार किसान का जीवन कवि को आहत करता है। दुखद बात यह है कि स्वाधीन भारत में भी किसानों को केंद्र में रखकर व्यवस्था ने निर्णायक हस्तक्षेप नहीं किया। यह कविता दुश्चक्र में फैसे किसानों के व्यक्तिगत एवं पारिवारिक दुखों की परतों को खोलती है और स्पष्ट रूप से विभाजित समाज की वर्गीय चेतना का खाका प्रस्तुत करती है।


प्रश्न 2:

किसान के रोदन को ‘नीरव’ क्यों कहा गया है?

उत्तर-

कवि किसान की दयनीय स्थिति का वर्णन करता है। उसकी आँखें अंधकार की गुफा के समान हैं। उनमें दारुण दुख भीतर तक समाया हुआ है। उसकी आँखों में उसी दुख की छाया के रूप में रोने का भाव अनुभव किया जा सकता है। उसका रोदन नीरव है, क्योंकि किसान की आँखों से ही उसकी पीड़ा को महसूस किया जा सकता है। उसके ऊपर हुए अत्याचारों की झलक आँखों से मिलती है।


प्रश्न 3:

किसान की आँखों में किसका अभिमान भरा था?

उत्तर-

किसान की आँखों में कृषक व्यवसाय का अभिमान भरा था। खेत की जमीन पर उसका स्वामित्व था। वे स्वयं को अन्नदाता समझता था। वह दूसरों की सहायता करता था। खेती से ही उनके परिवार का गुजारा होता था।


प्रश्न 4:

पुत्र और पुत्रवधू के प्रति किसान का क्या वृष्टिकोण था?

उत्तर-

किसान पुत्र को अधिक महत्व देता है। उसकी याद के कारण उसकी छाती फटने लगती है तथा साँप लोटने लगता है। वह उसे अपना प्रमुख सहारा समझता था। पुत्रवधू को पुत्र के जीवित रहते हुए ही सम्मान मिलता था। पुत्र के मरने के बाद वह उसे पति घातिनी कहने लगा। वह स्त्री को पैर की जूती के समान समझता है। उसकी मान्यता है कि एक स्त्री जाती है तो दूसरी आ जाती है।


प्रश्न 5:

‘नारी को समाज में आज भी उचित सम्मान नहीं मिल रहा।’-कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

कविता में नारी के प्रति समाज की मानसिकता को प्रकट किया गया है। उस समय समाज में नारी की हीन स्थिति थी। नारी का इलाज तक नहीं कराया जाता था। उसे पैर की जूती के समान नगण्य महत्व दिया जाता था। समाज में आज भी नारी को उचित सम्मान नहीं मिलता। उसे अनेक आर्थिक, सामाजिक अधिकार मिल गए हैं, परंतु उसका स्थान दोयम दर्जे का है। नौकरी करते हुए भी उसे सभी जिम्मेदारी पूरी करनी पड़ती है। उसे ससुर व पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता। यहाँ तक कि कानून के रक्षक भी उसका शोषण करते हैं।


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