शिक्षा का
उद्देश्य
श्लोकेन वा तदधेन
पादेनैकाक्षरेन वा।
अबंध्यं दिवसं कुर्याद्
दानाध्ययन कर्मभिः।।
चाणक्य के
अनुसार व्यक्ति को एक श्लोक, एक श्लोक ना हो सके, तो
आधे श्लोक का ही या जितना हो सके उतना ही अध्ययन करना चाहिए। व्यक्ति को ज्ञान
अर्जित करते हुए अपने दिन को सार्थक बनाना चाहिए।
शिक्षा ज्ञान, उचित
आचरण, तकनीकी दक्षता, विद्या आदि को प्राप्त करने की प्रक्रिया को
कहते हैं। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण
और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं। इस प्रकार यह कौशलों, व्यापारों
या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्यविषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित
है।
शिक्षा, समाज
एक पीढ़ी द्वारा अपने से निचली पीढ़ी को अपने ज्ञान के हस्तांतरण का प्रयास है। इस
विचार से शिक्षा एक संस्था के रूप में काम करती है, जो व्यक्ति विशेष को समाज से जोड़ने
में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज की संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती
है। बच्चा शिक्षा द्वारा समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, समाज
के प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस
समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है।
शिक्षा व्यक्ति
की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्त्व का विकसित करने वाली प्रक्रिया है।
यही प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए समाजीकृत करती है
तथा समाज के सदस्य एवं एक जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान
तथा कौशल उपलब्ध कराती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’
प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का
अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। शिक्षा
के अनेक उद्देश्य हैं-
1.ज्ञान अर्जन का उद्देश्य :-
शिक्षा में ज्ञानार्जन के उद्देश्य के
प्रतिपादक सुकरात, प्लेटो, अरस्तु,
दांते, तथा बेकन आदि आदर्शवादी संप्रदायिक के
विद्वानों ने किया है इन सभी का मानना है कि ज्ञान से ही सभी मनुष्यों का संपूर्ण
विकास होता है वह ज्ञान से ही अपने जीवन में सुखी से एवं शांतिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत
करता है इस प्रकार कह सकते हैं कि ज्ञान अर्जन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान
रखता है और या शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है अतः शिक्षा जगत में
ज्ञान अर्जन का महत्वपूर्ण स्थान है।
2. सांस्कृतिक विकास का उद्देश्य:-
शिक्षा का उद्देश्य हमारी संस्कृति को
बचाना तथा उसका विकास एवं उन्नति करना भी है। संस्कृति शब्द का अर्थ अलग-अलग देशों
में अलग-अलग तरह से बताया जाता है जैसे कहीं वहां के रहन-सहन आचार विचार आदि को
संस्कृति बताई जाती है तो कहीं सिगरेट शराब एवं युवा आधी को संस्कृति के अंतर्गत
शामिल किया जाता है तो किसी देश में संगीत वहां की कला संस्कृति परंपरा रीति रिवाज
आदि को संस्कृति में शामिल किया जाता है कुछ देशों में संगीत कला वस्तु कला
साहित्य में रुचि रखना एवं चरित्रवान बनाना आदि संस्कार आदि संस्कृति के विशेष
लक्षण है संस्कृति से तात्पर्य है व्यक्ति के रहन-सहन, चाल
ढाल, आचार विचार,विशेष आदतें, संस्कार आदि उनके अंदर हो तभी उन्हें
सही मायने में संस्कारी या उनकी संस्कृति कह सकते हैं। यह सभी उन्हें शिक्षा के
माध्यम से ही प्राप्त होता है। शिक्षा प्राप्त करके ही व्यक्ति का आदर होता है।
अंत में कह सकते है कि संस्कृति का अभिप्राय सर्वोच्च विचारों की जानकारी प्राप्त
करके उन्हें अपने दैनिक जीवन में प्रयोग करना है। इस प्रकार संस्कृति का अर्थ
संपूर्ण सामाजिक संपत्ति से है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होती
रहती है।
3. चरित्र निर्माण का उद्देश्य या
चरित्र का विकास: -
शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य बालक का
चरित्र का विकास करना होता है। चरित्र का अर्थ है आंतरिक दृढ़ता और एकता।
चरित्रवान व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कार्य करता है वह उसके आदेशों से तथा
सिद्धांतों के अनुसार होता है। शिक्षा का उद्देश्य यह होना चाहिए कि मानव की
प्रवृत्तियों का परिमार्जन हो। जिससे उसके आचरण नैतिक बन जाए। हरबर्ट का इस बारे
में यह विचार है कि बालक जन्म से ही कभी सदाचारी नहीं होता। उसकी सारी प्रवृतियां
मानवीय होती है। बालक का नैतिक विकास करने के लिए उसकी दानवीय प्रवृत्तियों को छोड़ना
आवश्यक होता है। शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा उसके मन में पुण्य के
प्रति प्रेम, पाप के प्रति घृणा, उत्पन्न करके बालक के अंदर प्रेम, सहानुभूति, दया, सद्भावना, न्याय
आदि सामाजिक एवं नैतिक गुणों को विकसित करके उसको चरित्रवान बनाया जा सकता है।
4. जीविकोपार्जन
का उद्देश्य व्यावसायिक :-
शिक्षा को केवल ज्ञान और संस्कृति से
ही अलंकृत करना उचित नहीं है शिक्षा का उद्देश्य व्यवसायिक भी होना चाहिए। वर्तमान
युग में व्यक्ति के समक्ष जीविका का समस्या प्रमुख समस्या है रोटी कपड़ा और मकान
यह एक प्रमुख समस्या है अगर व्यक्ति स्वयं के लिए शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद भी
यह सभी प्राप्त नहीं कर सकता है तो उनकी शिक्षा व्यर्थ है। अतः आधुनिक शिक्षा का
प्रमुख उद्देश्य व्यवसायिक अथवा जीविकोपार्जन होना चाहिए। इस उद्देश्य को सामने
रखकर अधिकांश माता-पिता अपने बालकों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूल भेजते
हैं। जिससे वे शिक्षा प्राप्त करके किसी नौकरी में आ जाए और अपने परिवार का भरण
पोषण कर सके।
5. सम विकास का उद्देश्य : -
शिक्षा के सम विकास के उद्देश्य का
अर्थ यह है कि प्रत्येक बालक की शारीरिक, मानसिक,
भावात्मक, कलात्मक, नैतिकता
तथा सामाजिक आदि सभी शक्तियों का समान रूप से विकास करना है। यह उद्देश्य
मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं। शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन करने से पता चलता
है कि प्रत्येक बालक कुछ जन्मजात शक्तियों को लेकर जन्म लेता है। बालक के
व्यक्तित्व को को संतुलित रूप से विकसित करने के लिए इन सभी शक्तियों का समान रूप
से विकसित होना आवश्यक है। यदि शिक्षा के द्वारा बालक की इन सभी शक्तियों का विकास
समान रूप से ना किया गया अर्थात् उसकी किसी प्रवृत्ति तथा शक्ति का कम तथा किसी का
अधिक विकास कर दिया गया तो उसके व्यक्तित्व का संतुलन बिगड़ जाएगा इसलिए बालक की
सभी शक्तियों का सम विकास करना परम आवश्यक है इसके लिए सही रणनीति एवं शिक्षा की
आवश्यकता होती है बालक के सम विकास में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है।
6. नागरिकता का उद्देश्य :
जनतंत्र में या प्रजातंत्र में बालक को
सभ्य तथा ईमानदार नागरिक बनना आवश्यक है इस उद्देश्य का अनुसार शिक्षा की व्यवस्था
इस प्रकार से की जानी चाहिए कि प्रत्येक बालक में इन सभी गुणों, रुचियों, योग्यताओं
तथा क्षमताओं के अनुसार विकसित हो जाए। इसके लिए उसे ऐसे अवसरों कीअधिकारों का
पालन करते हुए राज्य की सामाजिक,स्वतंत्र रुप से चिंतन कर सके।एवं उन्हें
सफलतापूर्वक सुलझते हुए अपने भार स्वयं वाहन कर सके या उठा सके। बालक की शिक्षा
ऐसी होनी चाहिए जिससे प्राप्त करके वाह अपनी स्वतंत्र व्यक्तित्व को विकसित करते
हुए अपनी योग्यता तथा क्षमताओं के अनुसार स्वतंत्र नागरिक के रूप में राष्ट्रीय के
तन मन और धन से सेवा कर सके। आधुनिक काल में राष्ट्रों में नागरिकता की शिक्षा पर
है विशेष बल दिया जाता है।
7. पूर्ण जीवन का उद्देश्य :
शिक्षा का उद्देश्य जीवन को पूर्णता
प्रदान करने पर बल दिया जाता है शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के जीवन में विभिन्न
अंगों का विकास इस प्रकार से होना चाहिए कि वह अपने भावी जीवन की समस्त समस्याओं
को आसानी से सुलझा सके। पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए शिक्षा हमें यह बताता है कि
शरीर के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना चाहिए मन के प्रति हमें कैसा व्यवहार करना
चाहिए किस प्रकार अपनी योजना ना चाहिए किस प्रकार अपने परिवार का भरण पोषण करना
चाहिए किस प्रकार नागरिक के रूप में व्यवहार करना चाहिए किस प्रकार सुख के उन
प्रसाधनों का प्रयोग करना चाहिए जो प्रकृति ने हमें प्रदान किए हैं। किस प्रकार
समस्त शक्तियों को अपने में तथा दूसरे के हित में प्रयोग करना चाहिए। ये सभी गुण
हम शिक्षा के माध्यम से ही प्राप्त करते हैं और अपने भावी जीवन में व्यक्त करते
हैं।
8. शारीरिक विकास का उद्देश्य :
बालक की शिक्षा इस प्रकार की होनी
चाहिए जिसको प्राप्त करके उसका शरीर स्वस्थ,
सुदृढ़, सुंदर एवं बलवान बन जाए। प्राचीन तथा
मध्यकालीन इतिहास इस बात की पुष्टि करता है कि अनेक देशों में शिक्षा के पूर्ण
उद्देश्य को मान्यता प्रदान की गई है ग्रिस के प्राचीन सभ्य स्पार्टा में शारीरिक
उद्देश्य को शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य माना करते थे।
9. अवकाश के सदुपयोग का उद्देश्य :
आकाश का अर्थ है फुर्सत के समय अथवा
ऐसे समय जिसमें व्यक्ति जीविकोपार्जन संबंधित कार्य ना करता हो। वर्तमान युग में
विज्ञान में ऐसे आश्चर्य जनक मशीन का आविष्कार कर दिया गया है जिनके प्रयोग से
मानव कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य कर लेता है। फलस्वरूप अब सभी लोगों को
पर्याप्त मात्रा में अवकाश मिलने लगा है ऐसे दशा में अवकाश काल की सदुपयोग करने की
समस्या एक महत्वपूर्ण समस्या बन गई है। यही कारण है कि कुछ शिक्षा शास्त्रियों ने
अवकाश का समय का सदुपयोग करना है शिक्षा का एकमात्र उदेश्य माना है।
10. किसी भी परिस्थिति या वातावरण के
समायोजन का उद्देश्य या अनुकूलन उद्देश्य :
शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक में
ऐसी शक्ति या क्षमता का उत्पन्न करना है जिसे वह अपने आप को किसी भी परिस्थिति
अथवा वातावरण के अनुकूल बना सके। संसार के प्रत्येक प्राणी को जीवित रहने के लिए
अपने परिस्थितियों अथवा प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण से सदैव संघर्ष करना पड़ता
है। जो प्राणी इस संघर्ष में सफल हो जाता है वही जीवित रहता है इसके विपरीत जो
प्राणी वातावरण से अनुकूलन नहीं कर पाता वह नष्ट हो जाता है शिक्षा ऐसी होनी चाहिए
जिससे वह अपने भावी जीवन में विभिन्न प्रकार के वातावरण से अनुकूलन कर सके।
11. आत्मा अभिव्यक्ति का उद्देश्य :
व्यक्तिवादी विचारकों ने आत्मा व्यक्ति तथा
आत्मा प्रकाशन का समर्थन किया है। आत्म प्रकाशन का अर्थ है मूल प्रवृत्तियों को
स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने का अवसर प्रदान करना इस उद्देश्य के अनुसार बालक की
मूल प्रवृत्तियों को इस प्रकार से विकसित किया जाना चाहिए कि वह उनको स्वतंत्र रूप
से व्यक्त कर सकें। जब समाज में ऐसी स्वतंत्रता रीति रिवाज तथा परिस्थितियां हो
जिनके सहायता से बालक अपनी काम जिज्ञासा तथा आत्म गौरव आदि जन्मजात प्रवृत्तियों
को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सकें।
12. आत्मा अनुभूति का उद्देश्य :
आत्मा अनुभूति अथवा आत्मबोध का अर्थ है
प्रकृति मानव अथवा परमपिता परमेश्वर को समझना। शिक्षा का उद्देश्य बाला का आत्मिक
विकास करना है जिसे वह समाज के माध्यम से अपने सर्वोच्च गोन की अनुभूति कर सके।
निष्कर्ष :
निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि
शिक्षा का उद्देश्य मानव जीवन किस संपूर्ण विकास का एक साधन है जो मानव को सही पथ
पर ले चलता है। अगर मानव जीवन का कोई उद्देश्य नहीं होगा तो शिक्षा का भी कोई
उद्देश्य नहीं होगा क्योंकि शिक्षा के द्वारा ही मानवता का विकास होता है इसलिए
शिक्षा का उद्देश्य का पूर्णता से पालन करना मानवता का अधिकार है।
मीता गुप्ता
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