Tuesday 6 September 2022

कबीर

 कबीर 

 हम तौ एक एक करि जांनां, संतों देखत जग बौराना

कबीर

1. संत कबीर ने जगत को कैसा बताया?

 A. सच्चा
 B.
बौराना
 C.
झूठा
 D.
ज्ञानी 

2. कबीर जी ने सत्य को जानने के लिए क्या आवश्यक बताया है?

 A. रामनाम को
 B.
योग को
 C.
समाधि को
 D.
आत्मज्ञान को

3. कबीर जी ने किसका विरोध किया है?

 A. भक्ति का
 B.
पूजा का
 C.
आडंबर का
 D.
ज्ञान का 

4. सत्य को न जानने वाले लोग कैसे बैठते हैं?

 A. आसन पर समाधि में
 B.
नदी के किनारे पर
 C.
मंदिर में
 D.
रास्ते पर

5. सच्चे मार्ग से भटककर लोग क्या गाते हैं?

 A. भजन
 B.
आरती
 C.
राग
 D.
साखी सबद

6. लोग किसके नाम पर दिखावा करते हैं?

 A. धर्म के
 B.
समाज के
 C.
संप्रदाय के
 D.
जाति के

7. घर-घर मंत्र देने वाले लोगों को किसका अभिमान है?

 A. शरीर का
 B.
धन का
 C.
शक्ति का
 D.
ज्ञान का 

8. माया जाल में फँसे गुरु एवं शिष्य को क्या करना पड़ेगा?

 A. पछतावा
 B.
त्याग
 C.
लोभ
 D.
आश्चर्य

9. कबीर ने खुदा किसे कहा है?

 A. ईश्वर को
 B.
पाखंडी को
 C.
भक्त को
 D.
ब्रह्मचारी को

10. कुरान शरीफ का अध्ययन कौन करते हैं?

 A. हिंदू
 B.
ईसाई
 C.
सिक्ख
 D.
मुसलमान 

11. धर्म के नाम पर कौन-कौन आपस में लड़कर मर रहे हैं?

 A. हिंदू और ईसाई
 B.
हिंदू और सिक्ख
 C.
हिंदू और मुसलमान
 D.
बौद्ध और जैन 

12. कबीर ने किसको एक माना है?

 A. ईश्वर को
 B.
धर्म को
 C.
माया को
 D.
गुरु को 

13. 'कोंहरा' शब्द किसके लिए प्रयोग किया गया है?

 A. कोहरा
 B.
कलाकार
 C.
ईश्वर
 D.
धर्मात्मा

14. कबीर ने 'तूँही' किसके लिए प्रयोग किया है?

 A. अपने लिए
 B.
गुरु के लिए
 C.
परमात्मा के लिए
 D.
शिष्य के लिए

 

15. कबीर के अनुसार किसे देखकर गर्व नहीं करना चाहिए?

 A. माया
 B.
धन
 C.
शक्ति
 D.
शरीर

 

16. जगत किसे देखकर आकृष्ट हो जाता है?

 A. ईश्वर
 B.
गुरु.
 C.
माया
 D.
संत

 

17. कबीर के अनुसार मनुष्य निर्भय कब होता है?

 A. माया का त्याग करने पर
 B.
समाधि लगाकर
 C.
ज्ञान प्राप्ति पर
 D.
गुरु की शरण में जाकर

 

18. क्या कहने पर जग मारने के लिए दौड़ता है?

 A. झूठ
 B.
सत्य
 C.
निंदा
 D.
प्रशंसा

 

 

19. सबके हृदय में क्या व्याप्त रहता है?

 A. खून
 B.
वायु
 C.
ईश्वर
 D.
धड़कन

 

कवि परिचय

कबीर 

जीवन परिचय: कबीरदास का नाम संत कवियों में सर्वोपरि है। इनके जन्म और मृत्यु के बारे में अनेक किवदंतियाँ प्रचलित हैं। इनका जन्म 1398 ई में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ। कबीरदास ने स्वयं को काशी का जुलाहा कहा है। इनके विधिवत् साक्षर होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। ये स्वयं कहते हैं- “ससि कागद छुयो नहि कलम गहि नहि हाथ।”

इन्होंने देशाटन और सत्संग से ज्ञान प्राप्त किया। किताबी ज्ञान के स्थान पर आँखों देखे सत्य और अनुभव को प्रमुखता दी-‘‘में कहता हों आँखन देखी, तू कहता कागद की लखी।” इनका देहावसान 1518 ई में बस्ती के निकट मगहर में हुआ।

रचनाएँ: कबीरदास के पदों का संग्रह बीजक नामक पुस्तक है, जिसमें साखी. सबद एवं रमैनी संकलित हैं।

साहित्यिक परिचय: कबीरदास भक्तिकाल की निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। इन पर नाथों. सिद्धों और सूफी संतों की बातों का प्रभाव है। वे कमकांड और वेद-विचार के विरोधी थे तथा जाति-भेद, वर्ण-भेद और संप्रदाय-भेद के स्थान पर प्रेम, सद्भाव और समानता का समर्थन करते थे: कबीर घुमक्कड़ थे। इसलिए इनकी भाषा में उत्तर भारत की अनेक बोलियों के शब्द पाए जाते हैं। वे अपनी बात को साफ एवं दो टूक शब्दों में प्रभावी ढंग से कह देने के हिमायती थे ‘‘बन पड़ तो सीधे-सीधे, नहीं तो दरेरा देकर।”

पाठ का सारांश

पहले पद में कबीर ने परमात्मा को सृष्टि के कण-कण में देखा है, ज्योति रूप में स्वीकारा है तथा उसकी व्याप्ति चराचर संसार में दिखाई है। इसी व्याप्ति को अद्वैत सत्ता के रूप में देखते हुए विभिन्न उदाहरणों के द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति दी है। कबीरदास ने आत्मा और परमात्मा को एक रूप में ही देखा है। संसार के लोग अज्ञानवश इन्हें अलग-अलग मानते हैं। कवि पानी, पवन, प्रकाश आदि के उदाहरण देकर उन्हें एक जैसा बताता है। बाढ़ी लकड़ी को काटता है, परंतु आग को कोई नहीं काट सकता। परमात्मा सभी के हदय में विद्यमान है। माया के कारण इसमें अंतर दिखाई देता है।



दूसरे पद में कबीर ने बाहय आडंबरों पर चोट करते हुए कहा है कि अधिकतर लोग अपने भीतर की ताकत को न पहचानकर अनजाने में अवास्तविक संसार से रिश्ता बना बैठते हैं और वास्तविक संसार से बेखबर रहते हैं। कवि के अनुसार यह संसार पागल हो गया है। यहाँ सच कहने वाले का विरोध तथा झूठ पर विश्वास किया जाता है हिंदू और मुसलमान राम और रहीम के नाम पर लड़ रहे हैं, जबकि दोनों ही ईश्वर का मर्म नहीं जानते। दोनों बाहय आडंबरों में उलझे हुए हैं। नियम, धर्म, टोपी, माला, छाप. तिलक, पीर, औलिया, पत्थर पूजने वाले और कुरान की व्याख्या करने वाले खोखले गुरु-शिष्यों को आडंबर बताकर, उनकी निंदा की गई है। 


व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 

1.


हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।

दोइ कहैं तिनहीं कौं  दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।

जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।

सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।


एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।

एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।

माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां

निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां। (पृष्ठ 131)


शब्दार्थ


एक-परमात्मा, एक। दोई-दो। तिनहीं-उनको। दोजग-नरक। नाहिंन-नहीं। एकै-एक। पवन-हवा। जोति-प्रकाश। समाना-व्याप्त। खाक-मिट्टी। गढ़े-रचे हुए। भांड़े-बर्तन। कोहरा-कुम्हार। सांनां-एक साथ मिलकर। बाढ़ी-बढ़ई। काष्ट-लकड़ी। अगिनि-आग। घटि-घड़ा, हृदय। अंतरि-भीतर, अंदर। व्यापक-विस्तृत। धरे-रखे। सरूपै-स्वरूप। सोई-वही। जगत-संसार। लुभाना-मोहित होना। नर-मनुष्य। गरबानां-गर्व करना। निरभै-निडरा भया-हुआ। दिवानां-बैरागी।


प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।



व्याख्या-कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।


विशेष-


1. कबीर ने आत्मा और परमात्मा को एक बताया है।

2. उन्होंने माया-मोह व गर्व की व्यर्थता पर प्रकाश डाला है।

3. ‘एक-एक’ में यमक अलंकार है।

4. ‘खाक’ और ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

5. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

6. सधुक्कड़ी भाषा है।

7. उदाहरण अलंकार है।

8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।


● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न


1. कबीरदास परमात्मा के विषय में क्या कहते हैं?

2. भ्रमित लोगों पर कवि की क्या टिप्पणी है?

3. संसार नश्वर है, परंतु आत्मा अमर है-स्पष्ट कीजिए।

4. कबीर ने किन उदाहरणों दवारा सिदध किया है कि जग में एक सत्ता है?


उत्तर-


1. कबीरदास कहते हैं कि परमात्मा एक है। वह हर प्राणी के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी स्वरूप धारण किया हो।

2. जो लोग आत्मा व परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं, वे भ्रमित हैं। वे ईश्वर को पहचान नहीं पाए। उन्हें नरक की प्राप्ति होती है।



3. कबीर का कहना है कि जिस प्रकार लकड़ी को काटा जा सकता है, परंतु उसके अंदर की अग्नि को नहीं काटा जा सकता, उसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु आत्मा अमर है। उसे समाप्त नहीं किया जा सकता।

4. कबीर ने जना की सत्ता एक होने यानी ईश्वर एक है के समर्थन में कई उदाहरण दिए हैं। वे कहते हैं कि संसार में एक जैसी पवन, एक जैसा पानी बहता है। हर प्राणी में एक ही ज्योति समाई हुई है। सभी बर्तन एक ही मिट्टी से बनाए जाते हैं, भले ही उनका स्वरूप अलग-अलग होता है।

काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न


हम तो एक एक करि जाना।

दोइ कहैं तिनहीं कों दोजग जिन नाहिन पहिचाना।

एकै पवन एक ही पानीं एके जोति समाना।

एकै खाक गढ़े सब भाड़े एकै कांहरा सना।


जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटे अगिनि न काटे कोई।

सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपैं सोई।

माया देखि के जगत लुभाना काहे रे नर गरबाना।

निरर्भ भया कछू नहि ब्याएँ कहैं कबीर दिवाना।


प्रश्न


1. भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।

2. शिल्प-सौदर्य बताइए।


उत्तर-


1. इस पद में कवि ने ईश्वर की एक सत्ता को माना है। संसार के हर प्राणी के दिल में ईश्वर है, उसका रूप चाहे कोई भी हो। कवि माया-मोह को निरर्थक बताता है।

2.


● इस पद में कबीर की अक्खड़ता व निभीकता का पता चलता है।

● आम बोलचाल की सधुक्कड़ी भाषा है।

● ‘जैसे बाढ़ी. काटै। कोई’ में उदाहरण अलंकार है। बढ़ई, लकड़ी व आग का उदाहरण प्रभावी है।

● ‘एक एक’ में यमक अलंकार है-एक-परमात्मा, एक-एक।

● अनुप्रास अलंकार की छटा है-काटै। कोई, सरूप सोई, कहै कबीर।

● ‘खाक’ व ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

● पूरे पद में गेयता व संगीतात्मकता है।




प्रश्न 1:

कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है। इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए हैं?

उत्तर-

कबीर ने एक ही ईश्वर के समर्थन में अनेक तर्क दिए हैं, जो निम्नलिखित हैं


संसार में सब जगह एक ही पवन व जल है।

सभी में एक ही ईश्वरीय ज्योति है।

एक ही मिट्टी से सभी बर्तनों का निर्माण होता है।

एक ही परमात्मा का अस्तित्व सभी प्राणों में है।

प्रत्येक कण में ईश्वर है।

दुनिया के हर जीव में ईश्वर व्याप्त है।

प्रश्न 2:

मानव शरीर का निर्माण किन पंच तत्वों से हुआ है?

उत्तर-

मानव शरीर का निर्माण निम्नलिखित पाँच तत्वों से हुआ है-


अग्नि

वायु

पानी

मिट्टी

आकाश

प्रश्न 3:

जैसे बाढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न कार्ट कोई।

सब छटि अंतरि तूही व्यापक धरे सरूपै सोई।

इसके आधार पर बताइए कि कबीर की वृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है?

उत्तर-

प्रस्तुत पंक्तियों का अर्थ है कि बढ़ई काठ (लकड़ी) को काट सकता है, पर आग को नहीं काट सकता, इसी प्रकार ईश्वर घट-घट में व्याप्त है अर्थात् कबीर कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार आग को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता और न ही आरी से काटा जा सकता है, उसी प्रकार परमात्मा हम सभी के भीतर व्याप्त है। यहाँ कबीर का आध्यात्मिक पक्ष मुखर हो रहा है कि आत्मा (ईश्वर का रूप) अजर-अमर, सर्वव्यापक है। आत्मा को न मारा जा सकता है, न यह जन्म लेती है, इसे अग्नि जला नहीं सकती और पानी भिगो नहीं सकता। यह सर्वत्र व्याप्त है।


प्रश्न 4:

कबीर ने अपने को दीवाना क्यों कहा है?

उत्तर-

यहाँ ‘दीवाना’ का अर्थ है-पागल। कबीरदास ने परमात्मा का सच्चा रूप पा लिया है। वे उसकी भक्ति में लीन हैं, जबकि संसार बाहय आडंबरों में उलझकर ईश्वर को खोज रहा है। अत: कबीर की भक्ति आम विचारधारा से अलग है इसलिए वह स्वयं को दीवाना कहता है।


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