Saturday, 23 May 2020

बगुलों के पंख-श्री उमाशंकर जोशी




https://youtu.be/esM9FmUzqFI


बगुलों के पंख
-श्री उमाशंकर जोशी
कवि परिचय
जीवन परिचय- गुजराती कविता के सशक्त हस्ताक्षर उमाशंकर जोशी का जन्म 1911 ई० में गुजरात में हुआ था। 20वीं सदी में इन्होंने गुजराती साहित्य को नए आयाम दिए। इनको परंपरा का गहरा ज्ञान था। इन्होंने गुजराती कविता को प्रकृति से जोड़ा, आम जिंदगी के अनुभव से परिचय कराया और नयी शैली दी। इन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में भाग लिया तथा जेल भी गए। इनका देहावसान सन 1988 में हुआ।
रचनाएँ- उमाशंकर जोशी का साहित्यिक अवदान पूरे भारतीय साहित्य के लिए महत्वपूर्ण है। इन्होंने एकांकी, निबंध, कहानी, उपन्यास, संपादन व अनुवाद आदि पर अपनी लेखनी सफलतापूर्वक चलाई। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) एकांकी- विश्व-शांति, गंगोत्री, निशीथ, प्राचीना, आतिथ्य, वसंत वर्षा, महाप्रस्थान, अभिज्ञा आदि।
(ii) कहानी- सापनाभारा, शहीद।
(iii) उपन्यास- श्रावणी मेणी, विसामो।
(iv) निबंध- पारकांजव्या ।
(v) संपादन- गोष्ठी, उघाड़ीबारी, क्लांत कवि, म्हारा सॉनेट, स्वप्नप्रयाण तथा ‘संस्कृति’ पत्रिका का संपादन।
(vi) अनुवाद- अभिज्ञान शाकुंतलम् व उत्तररामचरित का गुजराती भाषा में अनुवाद।
काव्यगत विशेषताएँ- उमाशंकर जोशी ने गुजराती कविता को नया स्वर व नयी भंगिमा प्रदान की। इन्होंने जीवन के सामान्य प्रसंगों पर आम बोलचाल की भाषा में कविता लिखी। इनका साहित्य की विविध विधाओं में योगदान बहुमूल्य है। हालाँकि निबंधकार के रूप में ये गुजराती साहित्य में बेजोड़ माने जाते हैं। भाषा-शैली- जोशी जी की काव्य-भाषा सरल है। इन्होंने मानवतावाद, सौंदर्य व प्रकृति के चित्रण पर अपनी कलम चलाई है। इन्होंने कविता के माध्यम से शब्दचित्र प्रस्तुत किए हैं।
बगुलों के पंख
यह कविता सुंदर दृश्य बिंबयुक्त कविता है जो प्रकृति के सुंदर दृश्यों को हमारी आँखों के सामने सजीव रूप में प्रस्तुत करती है। सौंदर्य का अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करने के लिए कवियों ने कई युक्तियाँ अपनाई हैं जिनमें से सर्वाधिक प्रचलित युक्ति है-सौंदर्य के ब्यौरों के चित्रात्मक वर्णन के साथ अपने मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का वर्णन।
कवि काले बादलों से भरे आकाश में पंक्ति बनाकर उड़ते सफेद बगुलों को देखता है। वे कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की श्वेत काया के समान प्रतीत होते हैं। इस नयनाभिराम दृश्य में कवि सब कुछ भूलकर उसमें खो जाता है। वह इस माया से अपने को बचाने की गुहार लगाता है, लेकिन वह स्वयं को इससे बचा नहीं पाता।

 बगुलों के पंख



नभ में पाँती-बाँधे बगुलों के पंख,



चुराए लिए जातीं वे मेरा आँखे।

कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,

तैरती साँझ की सतेज श्वेत  काया



हले हॉले जाती मुझे बाँध निज माया से।

उसे कोई तनिक रोक रक्खो।

वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखे 

नभ में पाँती-बँधी बगुलों के पाँखें।   (पृष्ठ-65)

[CBSE, 2009 (C)]



शब्दार्थ- नभ-आकाश । पाँती-पंक्ति । कजरारे-वाले । साँझ-संध्या, सायं । सतेज-चमकीला, उज्जवल । श्वेत –सफेद। काया-शरीर। हौले-हौले-धीरे-धीरे। निज-अपनी। माया-प्रभाव, जादू। तनिक-थोड़ा। पाँखें–पंख।

प्रसंग-प्रस्तुत कविता ‘बगुलों के पंख’ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित है। इसके रचयिता उमाशंकर जोशी हैं। इस कविता में सौंदर्य की नयी परिभाषा प्रस्तुत की गई है तथा मानव-मन पर इसके प्रभाव को बताया गया है।

व्याख्या-कवि आकाश में छाए काले-काले बादलों में पंक्ति बनाकर उड़ते हुए बगुलों के सुंदर-सुंदर पंखों को देखता है। वह कहता है कि मैं आकाश में पंक्तिबद्ध बगुलों को उड़ते हुए एकटक देखता रहता हूँ। यह दृश्य मेरी आँखों को चुरा ले जाता है। काले-काले बादलों की छाया नभ पर छाई हुई है। सायंकाल चमकीली सफेद काया उन पर तैरती हुई प्रतीत होती है। यह दृश्य इतना आकर्षक है कि अपने जादू से यह मुझे धीरे-धीरे बाँध रहा है। मैं उसमें खोता जा रहा हूँ। कवि आहवान करता है कि इस आकर्षक दृश्य के प्रभाव को कोई रोके। वह इस दृश्य के प्रभाव से बचना चाहता है, परंतु यह दृश्य तो कवि की आँखों को चुराकर ले जा रहा है। आकाश में उड़तें पंक्तिबद्ध बगुलों के पंखों में कवि की आँखें अटककर रह जाती हैं।

विशेष-



(i) कवि ने सौंदर्य व सौंदर्य के प्रभाव का वर्णन किया है।

(ii) ‘हौले-हौले’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(iii) खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।

(iv) बिंब योजना है।

(v) ‘आँखें चुराना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।



प्रश्न

(क) कवि किस दूश्य पर मुग्ध हैं और क्यों?

(ख) ‘उसे कोई तनिक रोक रक्खी-इस पक्ति में कवि क्या कहना चाहता हैं?

(ग) कवि के मन-प्रायों को किसने अपनी आकर्षक माया में बाँध लिया हैं और कैसे?

(घ) कवि उस सौंदर्य को थोड़ी देर के लिए अपने से दूर क्यों रोके रखना चाहता हैं? उसे क्या भय हैं?

उत्तर-

(क) कवि उस समय के दृश्य पर मुग्ध है जब आकाश में छाए काले बादलों के बीच सफेद बगुले पंक्ति बनाकर उड़ रहे हैं। कवि इसलिए मुग्ध है क्योंकि श्वेत बगुलों की कतारें बादलों के ऊपर तैरती साँझ की श्वेत काया की तरह प्रतीत हो रहे हैं।

(ख) इस पंक्ति में कवि दोहरी बात कहता है। एक तरफ वह उस सुंदर दृश्य को रोके रखना चाहता है ताकि उसे और देख सके और दूसरी तरफ वह उस दृश्य से स्वयं को बचाना चाहता है।

(ग) कवि के मन-प्राणों को आकाश में काले-काले बादलों की छाया में उड़ते सफेद बगुलों की पंक्ति ने बाँध लिया है। पंक्तिबद्ध उड़ते श्वेत बगुलों के पंखों में उसकी आँखें अटककर रह गई हैं और वह चाहकर भी आँखें नहीं हटा पा रहा है।

(घ) कवि उस सौंदर्य को थोड़ी देर के लिए अपने से दूर रोके रखना चाहता है क्योंकि वह उस दृश्य पर मुग्ध हो चुका है। उसे इस रमणीय दृश्य के लुप्त होने का भय है।


 बगुलों के पंख
नभ में पाँती-बाँधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जातीं वे मेरा आँखे।
कजरारे बादलों की छाई नभ छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत  काया

हले हॉले जाती मुझे बाँध निज माया से।
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखे 
नभ में पाँती-बँधी बगुलों के पाँखें

प्रश्न
(क) ‘हौले-हौले जाती मुझे बाँध -पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) इम कविता का काव्य-सौंदर्य बताइए।
उत्तर-
(क) ‘हौले-हौले जाती मुझे बाँध’ पंक्ति का भाव यह है कि सायंकालीन आकाश में उड़ते बगुलों की कतारें अद्भुत दृश्य उपस्थित कर रही हैं, जो कवि को लुभा रही हैं।
(ख) कवि ने इस कविता में प्राकृतिक सौंदर्य के मानव-मन पर पड़ने वाले प्रभाव का चित्रण किया है। सायंकाल के समय आकाश में सफेद बगुलों की पंक्ति अद्भुत दृश्य उत्पन्न कर रही है। दृश्य बिंब साकार हो रहा है।
(ग)

(i) कवि ने प्रकृति को मानवीय क्रियाएँ करते दिखाया है, अत: मानवीकरण अलंकार है ‘तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।’
(ii) ‘कजरारे बादलों की छाई नभ छाया’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(iii) ‘हौले-हौले’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(iv) ‘आँखें चुराना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
(v) साहित्यिक खड़ी बोली है।
(vi) बिंब-योजना का सुंदर प्रयोग है।
(vii) कोमलकांत पदावली का प्रयोग है-पाँती बँधे, हौले-हौले, बगुलों की पाँखें।
1. ‘बगुलों के पंख ‘ कविता का प्रतिपाद्य बताइए। 
उत्तर-
यह सुंदर दृश्य कविता है। कवि आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्ति को देखकर तरह-तरह की कल्पनाएँ करता है। ये बगुले कजरारे बादलों के ऊपर तैरती साँझ की सफेद काया के समान लगते हैं। कवि को यह दृश्य अत्यंत सुंदर लगता है। वह इस दृश्य में अटककर रह जाता है। एक तरफ वह इस सौंदर्य से बचना चाहता है तथा दूसरी तरफ वह इसमें बँधकर रहना चाहता है।

2. ‘पाँती-बँधी’ से कवि का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इसका अर्थ है-एकता। जिस प्रकार ऊँचे आकाश में बगुले पंक्ति बाँधकर एक साथ चलते हैं। उसी प्रकार मनुष्यों को एकता के साथ रहना चाहिए। एक होकर चलने से मनुष्य अद्भुत विकास करेगा तथा उसे किसी का भय भी नहीं रहेगा।


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