https://youtu.be/8EztClxaJS8
(ख)
कबि की मनःस्थिति कैसी है?
(ग)‘ नादान ‘ कौन है तथा क्यो?
(घ) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं?
(ख)
कवि और संसार के बीच क्या विरोधी स्थिति है?
(ग)‘शीतल वाणी में’ आग लिए फिरता हूँ’ -से कवि का क्या तात्पर्य है?
(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं?
(ख)
कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता हैं और क्यों?
(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?
आत्मपरिचय-2
-श्री हरिवंश राय बच्चन
मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादाँ’ में अवसाद लिए
फिरता हूँ,
जो
मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं
, हाय, किसी की याद लिए
फिरता हूँ!
शब्दार्थ-
यौवन-जवानी
उन्माद-जोश
अवसाद-उदासी,निराशा, खेद
अलंकार-
‘उन्मादों में अवसाद’ में विरोधाभास
अलंकार है।
कवि कहता है कि उसके मन में यौवन का जोश है। वह उसकी मस्ती में घूमता
रहता है। इस दीवानेपन के कारण उसे अनेक दुख भी मिले हैं। वह इन दुखों का भार को
उठाए हुए घूमता है। कवि को जब किसी प्रिय की याद आ जाती है तो वह बाहर से हँसता है, परंतु उसका मन अंदर
ही अंदर रो देता है अर्थात याद आने पर कवि-मन व्याकुल हो जाता है। वह अपने हृदय के
दुखों को किसी को दिखाना नहीं चाहता क्योंकि वह जानता है कि उसके हृदय के दुखों को
समझने वाला कोई नहीं है ।
कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?
नादान
वही है, हाय, जहाँ पर दाना!
फिर
मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना
!
शब्दार्थ-
यत्न-प्रयास
नादान-नासमझ, अनाड़ी
दाना-चतुर, ज्ञानी
मूढ़-मूर्ख
अलंकार-
‘सब, सत्य किसी’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
‘सत्य किसी ने जाना ?’ और ‘इस पर भी सीखे ?’ में प्रश्न अलंकार है
कवि कहता है कि इस संसार में
लोगों ने जीवन-सत्य को जानने की कोशिश की, परंतु कोई भी सत्य
नहीं जान पाया। इस कारण हर व्यक्ति नादानी करता दिखाई देता है। ये मूर्ख (नादान)
वे ही लोग हैं जो स्वयं को समझदार एवं चतुर समझते हैं।
हर व्यक्ति वैभव, समृद्ध, भोग-सामग्री की तरफ
भाग रहा है। हर व्यक्ति अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए प्रयत्नशील रहता है। वे
इस सत्य को नहीं समझते। कवि कहता है कि मैं सीखे हुए ज्ञान को भूलकर नई बातें सीख
रहा हूँ अर्थात सांसारिक ज्ञान की बातों को भूलकर मैं अपने मन के कहने के अनुसार
चलना सीख रहा हूँ।
प्रश्न
(क)
‘यौवन का उन्माद’ का तात्पर्य बताइए।
(ग)‘ नादान ‘ कौन है तथा क्यो?
(घ) संसार के बारे में कवि क्या कह रहा हैं?
(ड)
कवि सीखे ज्ञान की क्यों भूलना चाहता है?
उत्तर –
(क) यौवन का उन्माद- यौवन का उत्साह और जोश । कवि प्रेम का
दीवाना है। उस पर प्रेम का नशा छाया हुआ है, परंतु उसकी प्रिया उसके पास नहीं है, अत: वह निराश भी है।
(ख) कवि संसार के समक्ष हँसता दिखाई देता है, परंतु अंदर से वह
रो रहा है क्योंकि उसे अपनी प्रिया की याद आ जाती है।
(ग) जो लोग संसार के सत्य की खोज में लगे रहते हैं और स्वयं
को ज्ञानी समझने लगते हैं, वे वास्तव में ऐसे मूर्ख हैं, जो स्वयं को बुद्धिमान समझने लगते हैं ।
(घ) कवि संसार के बारे में कहता है कि यहाँ लोग जीवन-सत्य जानने के लिए
प्रयास करते हैं, परंतु वे कभी सफल
नहीं हुए। जीवन का सच आज तक कोई नहीं जान पाया।
(ड) कवि संसार से सीखे ज्ञान को भुला रहा है क्योंकि उसने अभी तक सांसारिक ज्ञान सीखा था, जिसे कवि व्यर्थ समझता
है और भूल जाना चाहता है।
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं
बना-बना कितने जग रोज मिटाता,
जग
जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं
प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
शब्दार्थ-
नाता-संबंध
वैभव-समृद्ध
पग-पैर
अलंकार-
‘मैं और, और जग और’ में यमक अलंकार है।
‘कहाँ का नाता’ में प्रश्न अलंकार
है।
‘कहाँ का’ और ‘जग जिस पृथ्वी पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा
है।
कवि कहता है कि मुझमें और संसार-दोनों में कोई संबंध नहीं है। संसार के
साथ मेरा टकराव चल रहा है। कवि अपनी कल्पना के अनुसार संसार का निर्माण करता है, फिर उसे मिटा देता
है। यह संसार इस धरती पर सुख के साधन एकत्रित करता है, परंतु कवि हर कदम
पर धरती को ठुकराया करता है। अर्थात वह जिस संसार में रह रहा है, उसी के प्रतिकूल
आचार-विचार रखता है।
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल
वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों
जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं
वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
शब्दार्थ-
निज- अपने
रोदन-रोना
राग-प्रेम
आग-जोश
भूपों-राजाओं
प्रासाद-महल
निछावर-कुर्बान
खंडहर-टूटा हुआ भवन
भाग-हिस्सा,अंश
अलंकार-
‘रोदन में राग’ और ‘शीतल वाणी में आग’ में विरोधाभास अलंकार है।
‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार
है।
कवि कहता है कि वह अपने रोदन (रोने) में भी प्रेम के गीत लिए फिरता है।
उसकी शीतल वाणी में भी आग समाई हुई है अर्थात उसकी मीठे और शांत स्वर में भी जोश
और उत्साह है। उसका जीवन प्रेम में निराशा के कारण खंडहर-सा है, परंतु यह खंडहर भी
इतना सुंदर व मनोहर है कि उस पर राजाओं के महल न्योछावर किए जा सकते हैं। ऐसे
खंडहर का वह एक हिस्सा लिए घूमता है ।
प्रश्न
(क)
कवि और संसार के बीच क्या संबंध है?
(ग)‘शीतल वाणी में’ आग लिए फिरता हूँ’ -से कवि का क्या तात्पर्य है?
(घ) कवि के पास ऐसा क्या हैं जिस पर बड़े-बड़े राजा न्योछावर हो जाते हैं?
उत्तर
–
(क)
कवि और संसार के बीच खट्टा-मीठा संबंध है। संसार में संग्रह वृत्ति है, कवि में नहीं है। वह अपनी मजी के संसार
बनाता व मिटाता है यानी संसार सांसारिकता के पीछे भागता है,परंतु कवि को सांसारिकता में कोई रुचि नहीं है।
(ख)
कवि को सांसारिक आकर्षणों का मोह नहीं है। वह इन्हें ठुकराता है। इसके अलावा वह
अपने अनुसार व्यवहार करता है, जबकि
संसार में लोग अपार धन-संपत्ति एकत्रित करते हैं तथा सांसारिक नियमों के अनुरूप
व्यवहार करते हैं।
(ग)
उक्त पंक्ति से तात्पर्य यह है कि कवि अपनी शीतल व मधुर आवाज में भी जोश, आत्मविश्वास, साहस, दृढ़ता जैसी भावनाएँ बनाए रखता है ताकि वह दूसरों को भी जाग्रत कर
सके।
(घ)
कवि के पास प्रेम महल के खंडहर का अवशेष (भाग) है। संसार कोमहलों से प्यार है,पर उसे अपने खंडहरों से क्योंकि उसके खंडहर भी बड़े-बड़े राजाओं के महलों से बेहतर हैं ।
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं
फूट पडा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों
कवि कहकर संसार मुझे अपनाए ?,
मैं
दुनिया का हूँ एक नया दीवाना ।
शब्दार्थ-
फूट पड़ा-जोर से रोया।
दीवाना-मस्त
अलंकार-
‘क्यों कवि कहकर’ तथा ‘झूम झुके’ में अनुप्रास अलंकार
‘क्यों कवि......अपनाए’ में प्रश्न अलंकार
है।
कवि कहता है कि प्रेम की
पीड़ा के कारण उसका मन रोता है। अर्थात हृदय की व्यथा शब्दों के रूप में प्रकट
होती है, तो उसके रोने को संसार गाना मान बैठता है।
जब वेदना की अधिकता हो जाती है और वह
दुख को शब्दों के माध्यम से व्यक्त करता है
संसार इस प्रक्रिया को छंद बनाना कहती है।
कवि प्रश्न करता है कि यह संसार मुझे
कवि के रूप में अपनाने के लिए तैयार क्यों है? वह केवल कवि के रूप
में ही बंधना नहीं चाहता । वह स्वयं को नया दीवाना मानता है, जो हर स्थिति में
मस्त रहता है।
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ
मैं
मादकता निःशेष लिए फिरता ही
जिसकी
सुनकर ज़ग झूम, झुके; लहराए,
मैं
मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ ।
शब्दार्थ-
दीवाना- मस्त
मादकता-मस्ती
नि:शेष-कभी शेष न होने वाला।
कवि का कहना है कि समाज उसे
दीवाने के रूप में क्यों नहीं स्वीकार करता। वह दीवानों का रूप धारण करके संसार
में घूमता रहता है। उसके जीवन में जो निःशेष मस्ती है, अर्थात ऐसी मस्ती
जो कभी शेष,कभी समाप्त नहीं होगी, उसे लिए वह घूमता रहता है।
इस मस्ती को सुनकर सारा संसार झूम
उठता है। कवि के गीतों की मस्ती सुनकर लोग प्रेम में झुक जाते हैं तथा आनंद से
झूमने लगते हैं। मस्ती के संदेश को लेकर कवि संसार भर में घूमता है जिसे सुनकर लोग
आनंद में डूब जाते हैं
प्रश्न
(क)
कवि की किस बात को संसार क्या समझता हैं?
(ग) कवि की मनोदशा कैसी हैं?
(घ)
कवि संसार को क्या संदेश देता हैं? संसार पर उसकी क्या
प्रतिक्रिया होती है?
उत्तर –
(क) कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार
उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद
बनाना समझा जाता है।
(ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह
अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है।
(ग) कवि की मनोदशा दीवानों जैसी है। वह मस्ती में चूर है। उसके गीतों पर
दुनिया झूमती है।
(घ) कवि संसार को प्रेम की मस्ती का संदेश देता है। उसके इस संदेश पर
संसार झूमता है, झुकता है तथा आनंद
से लहराता है।
No comments:
Post a Comment