आत्मपरिचय पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1:
कविता एक ओर जग-जीवन
का मार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर ‘मैं कभी
न जग का ध्यान किया करता हूँ’-विपरीत से लगते इन
कथनों का क्या आशय हैं?
उत्तर –
जग-जीवन का भार लेने
से कवि का अभिप्राय यह है कि वह सांसारिक दायित्वों का निर्वाह कर रहा है। आम
व्यक्ति से वह अलग नहीं है तथा सुख-दुख, हानि-लाभ
आदि को झेलते हुए अपनी यात्रा पूरी कर रहा है। दूसरी तरफ कवि कहता है कि वह कभी
संसार की तरफ ध्यान नहीं देता। यहाँ कवि सांसारिक दायित्वों की अनदेखी की बात नहीं
करता। वह संसार की निरर्थक बातों पर ध्यान न देकर केवल प्रेम पर केंद्रित रहता है।
आम व्यक्ति सामाजिक बाधाओं से डरकर कुछ नहीं कर पाता। कवि सांसारिक बाधाओं की
परवाह नहीं करता। अत: इन दोनों पंक्तियों के अपने निहितार्थ हैं। ये एक-दूसरे के
विरोधी न होकर पूरक हैं।
प्रश्न 2:
जहाँ पर दाना रहते
हैं, वहीं नादान भी होते हैं-कवि ने ऐसा क्यों कहा
होगा?
उत्तर –
नादान यानी मूर्ख
व्यक्ति सांसारिक मायाजाल में उलझ जाता है। मनुष्य इस मायाजाल को निरर्थक मानते
हुए भी इसी के चक्कर में फैसा रहता है। संसार असत्य है। मनुष्य इसे सत्य मानने की
नादानी कर बैठता है और मोक्ष के लक्ष्य को भूलकर संग्रहवृत्ति में पड़ जाता है।
इसके विपरीत, कुछ ज्ञानी लोग भी समाज में रहते हैं जो मोक्ष के
लक्ष्य को नहीं भूलते। अर्थात संसार में हर तरह के लोग रहते हैं।
प्रश्न 3:
मैं और, और जग और कहाँ का नाता- पंक्ति में ‘और’ शब्द की
विशेषता बताइए।
उत्तर –
यहाँ ‘और’ शब्द का
तीन बार प्रयोग हुआ है। अत: यहाँ यमक अलंकार है। पहले ‘और’ में कवि
स्वयं को आम व्यक्ति से अलग बताता है। वह आम आदमी की तरह भौतिक चीजों के संग्रह के
चक्कर में नहीं पड़ता। दूसरे ‘और’ के प्रयोग में संसार की विशिष्टता को बताया गया
है। संसार में आम व्यक्ति सांसारिक सुख-सुविधाओं को अंतिम लक्ष्य मानता है। यह
प्रवृत्ति कवि की विचारधारा से अलग है। तीसरे ‘और’ का प्रयोग ‘संसार
और कवि में किसी तरह का संबंध नहीं’ दर्शाने
के लिए किया गया है।
प्रश्न 4:
शीतल वाणी में आग’ के होने का क्या अभिप्राय हैं?
अयवा
‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’-इस कथन से कवि का क्या आशय है?
अयवा
‘आत्मपरिचय’ में कवि
के कथन- ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ – का विरोधाभास स्पष्ट र्काजिए।
उत्तर –
कवि ने यहाँ विरोधाभास
अलंकार का प्रयोग किया है। कवि की वाणी यद्यपि शीतल है, परंतु उसके मन में विद्रोह, असंतोष का भाव प्रबल है। वह समाज की व्यवस्था से
संतुष्ट नहीं है। वह प्रेम-रहित संसार को अस्वीकार करता है। अत: अपनी वाणी के
माध्यम से अपनी असंतुष्टि को व्यक्त करता है। वह अपने कवित्व धर्म को ईमानदारी से
निभाते हुए लोगों को जाग्रत कर रहा है।
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