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जनसंचार माध्यम और लेखन
पत्रकारीय लेखन के विभिन्न रूप और लेखन
प्रक्रिया
एक अच्छा पत्रकार कैसे बनें?
एक अच्छा पत्रकार या लेखक बनने के लिए विभिन्न
जनसंचार माध्यमों में लिखने की अलग-अलग शैलियों से परिचित होना जरूरी है। अखबारों
या पत्रिकाओं में समाचार, फ़ीचर, विशेष रिपोर्ट, लेख और
टिप्पणियाँ प्रकाशित होती हैं। इन सबको लिखने की अलग-अलग पद्धतियाँ हैं, जिनका
ध्यान रखा जाना चाहिए। समाचार-लेखन में उलटा पिरामिड-शैली का उपयोग किया जाता है।
समाचार लिखते हुए छह ककारों का ध्यान रखना जरूरी है।
फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड की बजाय फ़ीचर की शुरुआत
कहीं से भी हो सकती है। जबकि विशेष रिपोर्ट के लेखन में तथ्यों की खोज और विश्लेषण
पर जोर दिया जाता है। समाचार-पत्रों में विचारपरक लेखन के तहत लेख, टिप्पणियों
और संपादकीय लेखन में भी विचारों और विश्लेषण पर जोर होता है।
अच्छे लेखन में ध्यान देने योग्य बातें
छोटे-छोटे वाक्य लिखें। जटिल वाक्य की तुलना में सरल
वाक्य की संरचना को वरीयता दें।
आम बोलचाल की भाषा और शब्दों का इस्तेमाल करें।
गैर-जरूरी शब्दों के इस्तेमाल से बचें। शब्दों को उनके वास्तविक अर्थ समझकर ही प्रयोग
करें।
अच्छा लिखने के लिए अच्छा पढ़ना भी बहुत जरूरी है।
जाने-माने लेखकों की रचनाएँ ध्यान से पढ़ें।
लेखन में विविधता लाने के लिए छोटे वाक्यों के
साथ-साथ कुछ मध्यम आकार के और कुछ बड़े आकार के वाक्यों का प्रयोग कर सकते हैं।
इसके साथ-साथ मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से लेखन में रंग भरने की कोशिश
करें।
अपने लिखे को दुबारा जरूर पढ़ें और अशुद्धयों के
साथ-साथ गैर-जरूरी चीजों को हटाने में संकोच न करें। लेखन में कसावट बहुत जरूरी
है।
लिखते हुए यह ध्यान रखें कि आपका उद्देश्य अपनी
भावनाओं, विचारों और तथ्यों को व्यक्त करना है, न कि दूसरे को
प्रभावित करना।
एक अच्छे लेखक को पूरी दुनिया से लेकर अपने आस-पास
घटने वाली घटनाओं,
समाज और पर्यावरण पर गहरी निगाह रखनी चाहिए और उन्हें
इस तरह से देखना चाहिए कि वह अपने लेखन के लिए उससे विचारबिंदु निकाल सके। एक
अच्छे लेखक में तथ्यों को जुटाने और किसी विषय पर बारीकी से विचार करने का धैर्य
होना चाहिए।
पत्रकारीय लेखन क्या है?
अखबार पाठकों को सूचना देने, उन्हें
जागरूक और शिक्षित बनाने तथा उनका मनोरंजन करने का दायित्व निभाते हैं।
लोकतांत्रिक समाजों में वे एक पहरेदार, शिक्षक और जनमत-निर्माता
के तौर पर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अपने पाठकों के लिए वे बाहरी
दुनिया में खुलने वाली ऐसी खिड़की हैं, जिनके जरिये असंख्य
पाठक हर रोज सुबह देश-दुनिया और अपने पास-पड़ोस की घटनाओं, समस्याओं, मुद्दों
तथा विचारों से अवगत होते हैं।
अखबार या अन्य समाचार माध्यमों में काम करने वाले
पत्रकार अपने पाठकों, दर्शकों और श्रोताओं तक सूचनाएँ पहुँचाने के लिए लेखन
के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं। इसे ही पत्रकारीय लेखन कहते हैं।
पत्रकार तीन प्रकार के होते हैं-
1. पूर्णकालिक
2. अंशकालिक और
3. फ्रीलांसर यानी स्वतंत्र।
पूर्णकालिक पत्रकार-इस
श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन में कमकने वाले नाम बेनोग कर्मबारी होते हैं।
अंशकालिक पत्रकार-इस
श्रेणी के पत्रकार किसी समाचार संगठन के लिए एक निश्चित मानदेय पर एक निश्चित
समयावधि के लिए कार्य करते हैं।
फ्रीलांसर पत्रकार-इस
श्रेणी के पत्रकारों का संबंध किसी विशेष समाचार-पत्र से नहीं होता, बल्कि वे
भुगतान के आधार पर अलग-अलग समाचार-पत्रों के लिए लिखते हैं।
साहित्यिक और पत्रकारीय लेखन में अंतर
पत्रकारीय लेखन का संबंध तथा दायरा समसामयिक और
वास्तविक घटनाओं,
समस्याओं तथा मुद्दों से होता है। यह साहित्यिक और
सृजनात्मक लेखन-कविता, कहानी, उपन्यास आदि-इस मायने
में अलग है कि इसका रिश्ता तथ्यों से होता है, न कि कल्पना से।
पत्रकारीय लेखन साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन से इस
मायने में भी अलग है कि यह अनिवार्य रूप से तात्कालिकता और अपने पाठकों की रुचियों
तथा जरूरतों को ध्यान में रखकर किया जाने वाला लेखन है, जबकि
साहित्यिक और सृजनात्मक लेखन में लेखक को काफी छूट होती है।
पत्रकारीय लेखन के स्मरणीय तथ्य
पत्रकारीय लेखन करने वाले विशाल जन-समुदाय के लिए
लिखते हैं, जिसमें पाठकों का दायरा और ज्ञान का स्तर विस्तृत होता है।
इसके पाठक मजदूर से विद्वान तक होते हैं, अत: उसकी
लेखन-शैली और
भाषा-सरल, सहज और रोचक होनी
चाहिए।
अलंकारिक और संस्कृतनिष्ठ होने की बजाय आम बोलचाल
वाली होनी चाहिए।
शब्द सरल और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।
वाक्य छोटे और सहज होने
चाहिए।
समाचार कैसे लिखा जाता है?
पत्रकारीय लेखन का सबसे जाना-पहचाना रूप समाचार-लेखन
है। आमतौर पर समाचार-पत्रों में समाचार पूर्णकालिक और अंशकालिक पत्रकार लिखते हैं, जिन्हें
संवाददाता या रिपोर्टर भी कहते हैं।
समाचार-लेखन की विशेष शैली
अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में
लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना, समस्या या विचार के
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य, सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ़ में लिखा
जाता है। उसके बाद के पैराग्राफ़ में उससे कम महत्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी
दी जाती है। यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।
उलटा पिरामिड शैली
समाचार-लेखन की एक विशेष शैली है, जिसे
उलटा पिरामिड शैली (इन्वर्टेड पिरामिड टी या स्टाइल) के नाम से जाना जाता है। यह
समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी और बुनियादी शैली है। यह शैली कहानी या
कथा-लेखन की शैली के ठीक उलटी है, जिसमें क्लाइमेक्स बिलकुल आखिर में आता है। इसे ‘उलटा
पिरामिड शैली’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना
यानी ‘क्लाइमेक्स’ पिरामिड के सबसे निचले उलटा पिरामिड में हिस्से में नहीं होती, बल्कि इस
शैली में पिरामिड को उलट दिया जाता है।
समाचार – लेखन और छह ककार
किसी समाचार को लिखते हुए जिन छह सवालों का जवाब देने
की कोशिश की जाती है, वे हैं-
क्या हुआ?
किसके साथ हुआ?
कब हुआ?
कहाँ हुआ?
कैसे हुआ?
क्यों हुआ?
इस क्या, किसके (या कौन), कब, कहाँ, कैसे और
क्यों को ही छह ककारों के रूप में जाना जाता है।
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) यानी पहले पैराग्राफ़ या
शुरुआती दो-तीन पंक्तियों में आमतौर पर तीन या चार ककारों को आधार बनाकर खबर लिखी
जाती है। ये चार ककार हैं-क्या, कौन, कब और कहाँ? इसके बाद समाचार की
बॉडी में और समापन के पहले बाकी दो ककारों-कैसे ‘ और क्यों-का जवाब दिया जाता है।
इस तरह छह ककारों के आधार पर समाचार तैयार होता है। इनमें से पहले चार ककार-क्या, कौन, कब और
कहाँ-सूचनात्मक और तथ्यों पर आधारित होते हैं जबकि बाकी दो ककारों-कैसे और
क्यों-में विवरणात्मक, व्याख्यात्मक और विश्लेषणात्मक पहलू पर जोर दिया जाता
है।
फीचर क्या है?
समकालीन घटना या किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट
जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फ़ीचर कहा जाता है। इसमें तथ्यों को मनोरंजक
ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। इसके संवादों में गहराई होती है। यह सुव्यवस्थित, सृजनात्मक
व अद्धि न है जिक उद्देश्य पाठकों को स्चना ने तथा उह शतकने के साथ मुष्यरूप सेउक
मोजना करना होता है।
फ़ीचर में विस्तार की अपेक्षा होती है। इसकी अपनी एक
अलग शैली होती है। एक विषय पर लिखा गया फ़ीचर प्रस्तुति
विविधता के कारण अलग अंदाज प्रस्तुत करता है। इसमें भूत, वर्तमान
तथा भविष्य का समावेश हो सकता है। इसमें तथ्य, कथन व कल्पना का
उपयोग किया जा सकता है। फ़ीचर में आँकड़े, फोटो, कार्टून, चार्ट, नक्शे
आदि का उपयोग उसे रोचक बना देता है।
फीचर व समाचार में अंतर.
फ़ीचर में लेखक के पास अपनी राय या दृष्टिकोण और
भावनाएँ जाहिर करने का अवसर होता है। जबकि समाचार-लेखन में वस्तुनिष्ठता और तथ्यों
की शुद्धता पर जोर दिया जाता है।
फ़ीचर-लेखन में उलटा पिरामिड शैली का प्रयोग नहीं
होता। इसकी शैली कथात्मक होती है।
फ़ीचर-लेखन की भाषा सरल, रूपात्मक
व आकर्षक होती है,
परंतु समाचार की भाषा में सपाटबयानी होती है।
फ़ीचर में शब्दों की अधिकतम सीमा नहीं होती। ये आमतौर
पर 200 शब्दों से लेकर 250 शब्दों तक के होते हैं, जबकि समाचारों पर
शब्द-सीमा लागू होती है।
फ़ीचर का विषय कुछ भी हो सकता है, समाचार
का नहीं।
फ़ीचर के प्रकार
फ़ीचर के प्रकार निम्नलिखित हैं
समाचार फीचर
घटनापरक फीचर
व्यक्तिपरक फीचर
लोकाभिरुचि फ़ीचर
सांस्कृतिक फ़ीचर
साहित्यिक प्रफीचर
विश्लेषण प्रफीचर
विज्ञान फ़ीचर।
फीचर-लेखन संबंधी मुख्य बातें
फ़ीचर को सजीव बनाने के लिए उसमें उस विषय से जुड़े
लोगों की मौजूदगी जरूरी होती है।
फ़ीचर के कथ्य को पात्रों के माध्यम से बताना चाहिए।
कहानी को बताने का अंदाज ऐसा हो कि पाठक यह महसूस
करें कि वे घटनाओं को खुद देख और सुन रहे हैं।
फ़ीचर मनोरंजक व सूचनात्मक होना चाहिए।
फ़ीचर शोध रिपोर्ट नहीं है।
इसे किसी बैठक या सभा के कार्यवाही विवरण की तरह नहीं
लिखा जाना चाहिए।
फ़ीचर का कोई-न-कोई उद्देश्य होना चाहिए। उस उद्देश्य
के इर्द-गिर्द सभी प्रासंगिक सूचनाएँ तथ्य और विचार गुंथे होने चाहिए।
फ़ीचर तथ्यों, सूचनाओं और विचारों
पर आधारित कथात्मक विवरण और विश्लेषण होता है।
फ़ीचर-लेखन का कोई निश्चित ढाँचा या फ़ॉर्मूला नहीं
होता। इसे कहीं से भी अर्थात प्रारंभ, मध्य या अंत से शुरू
किया जा सकता है।
फ़ीचर का हर पैराग्राफ अपने पहले के पैराग्राफ से सहज
तरीके से जुड़ा होना चाहिए तथा उनमें प्रारंभ से अंत तक प्रवाह व गति रहनी चाहिए।
पैराग्राफ छोटे होने चाहिए तथा एक पैराग्राफ में एक
पहलू पर ही फोकस करना चाहिए।
प्रश्न 1:
पत्रकारिता के विभिन्न पहलू कौन-कौन-से हैं?
उत्तर –
पत्रकारिता के विभिन्न पहलू हैं-
समाचारों का संकलन,
उनका संपादन कर छपने योग्य बनाना,
उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में छापकर पाठकों तक पहुँचाना
आदि।
प्रश्न 2:
पत्रकार किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में
छपने के लिए लिखित रूप में सामग्री देने, सूचनाएँ और समाचार
एकत्र करने वाले व्यक्ति को पत्रकार कहते हैं।
प्रश्न 3:
संवाददाता के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
संवाददाता का प्रमुख कार्य विभिन्न स्थानों से खबरें
लाना है।
प्रश्न 4:
संपादक के कार्य लिखिए।
उत्तर –
संपादक संवाददाताओं तथा रिपोर्टरों से प्राप्त
समाचार-सामग्री की अशुद्धयाँ दूर करते हैं तथा उसे त्रुटिहीन बनाकर प्रस्तुति के
योग्य बनाते हैं। वे रिपोर्ट की महत्वपूर्ण बातों को पहले तथा कम महत्व की बातों
को अंत में छापते हैं तथा समाचार-पत्र की नीति, आचार-संहिता और
जन-कल्याण का विशेष ध्यान रखते हैं।
प्रश्न 5:
किन गुणों के होने से कोई घटना समाचार बन जाती है?
उत्तर –
नवीनता, लोगों की रुचि, प्रभाविकता, निकटता
आदि तत्वों के होने से घटना समाचार बन जाती है।
प्रश्न 6:
पत्रकारिता किस सिदधांत पर कार्य करती है?
उत्तर –
पत्रकारिता मनुष्य की सहज जिज्ञासा शांत करने के
सिद्धांत पर कार्य करती है।
प्रश्न 7:
पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर –
पत्रकारिता के कई प्रमुख प्रकार हैं। उनमें से खोजपरक
पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता और एडवोकेसी पत्रकारिता प्रमुख हैं।
प्रश्न 8:
समाचार किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार किसी भी ऐसी घटना, विचार या
समस्या की रिपोर्ट होता है, जिसमें अधिक-से-अधिक लोगों की रुचि हो और जिसका
अधिकाधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो।
प्रश्न 9:
संपादन का अर्थ बताइए।
उत्तर –
संपादन का अर्थ है-किसी सामग्री से उसकी भाषा-शैली, व्याकरण, वर्तनी
एवं तथ्यात्मक अशुद्धयों को दूर करते हुए पठनीय बनाना।
प्रश्न 10:
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए कौन-कौन-से
सिदभांत अपनाए जाते हैं?
उत्तर –
पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित
सिद्धांत अपनाए जाते हैं
तथ्यों की शुद्धता
वस्तु परकता
निष्पक्षता
संतुलन
स्रोत
प्रश्न 11:
किन्हीं दो राष्ट्रीय समाचार-पत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर –
नवभारत टाइम्स (हिंदी)
हिंदुस्तान (हिंदी)
प्रश्न 12:
समाचार-पत्र संपूर्ण कब बनता है?
उत्तर –
जब समाचार-पत्र में समाचारों के अलावा विचार, संपादकीय, टिप्पणी, फोटो और
कार्टून होते हैं तब समाचार-पत्र पूर्ण बनता है।
प्रश्न 13:
खोजपरक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर –
सार्वजानिक महत्व के भ्रष्टाचार और अनियमितता को
लोगों के सामने लाने के लिए खोजपरक पत्रकारिता की मदद ली जाती है। इसके अंतर्गत
छिपाई गई सूचनाओं की गहराई से जाँच की जाती है। इसके प्रमाण एकत्र करके इसे
प्रकाशित भी किया जाता है।
प्रश्न 14:
वॉचडॉग पत्रकारिता क्या है?
उत्तर –
जो पत्रकारिता सरकार के कामकाज पर निगाह रखती है और
कोई गड़बड़ी होते ही उसका परदाफ़ाश करती है, उसे वॉचडॉग
पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 15:
एडवोकेसी पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर –
जो पत्रकारिता किसी विचारधारा या विशेष उद्देश्य या
मुद्दे को उठाकर उसके पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और जोर-शोर से अभियान
चलाती है, उसे एडवोकेसी पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 16:
वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
उत्तर –
जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और
उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करते हैं, उसे वैकल्पिक
पत्रकारिता कहते हैं।
प्रश्न 17:
पेज थ्री पत्रकारिता क्या है?
उत्तर –
पेज श्री पत्रकारिता का आशय उस पत्रकारिता से है, जिसमें
फ़ैशन, अमीरों की बड़ी-बड़ी पार्टियों, महफ़िलों तथा
लोकप्रिय लोगों के निजी जीवन के बारे में बताया जाता है। ऐसे समाचार सामान्यत:
समाचार-पत्र के पृष्ठ तीन पर प्रकाशित होते हैं।
प्रश्न 18:
पत्रकारीय लेखन किसे कहते हैं?
उत्तर –
पत्रकार अखबार या अन्य समाचार माध्यमों के लिए लेखन
के विभिन्न रूपों का इस्तेमाल करते हैं, इसे पत्रकारीय लेखन
कहते हैं।
प्रश्न 19:
स्वतंत्र या फ्री-लांसर पत्रकार किसे कहा जाता है?
उत्तर –
फ्री-लांसर पत्रकार को स्वतंत्र पत्रकार भी कहा जाता
है। ये किसी विशेष समाचार-पत्र से संबद्ध नहीं होते। ये किसी भी समाचार-पत्र के
लिए लेखन करके पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।
प्रश्न 20:
पत्रकारीय लेखन संबंधी भाषा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
पत्रकारीय भाषा सीधी, सरल, साफ़-सुथरी
परंतु प्रभावपूर्ण होनी चाहिए। वाक्य छोटे, सरल और सहज होने
चाहिए। भाषा में कठिन और दुरूह शब्दावली से बचना चाहिए, ताकि
भाषा बोझिल न हो।
प्रश्न 21:
समाचार-लेखन की कितनी शैलियाँ होती हैं?
उत्तर –
समाचार-लेखन की दो प्रमुख शैलियाँ होती हैं-
सीधा पिरामिड शैली,
उलटा पिरामिड शैली।
प्रश्न 22:
सीधा पिरामिड शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
सीधा पिरामिड शैली में सबसे महत्वपूर्ण समाचार (घटना, समस्या, विचार के
सबसे महत्वपूर्ण अंश) को पहले पैराग्राफ में लिखा जाता है। इसके बाद कम महत्वपूर्ण
समाचार की जानकारी दी जाती है।
प्रश्न 23:
उलटा पिरामिड शैली (इंवटेंड पिरामिड शैली) से आप क्या
समझते हैं?
उत्तर –
यह समाचार-लेखन की सबसे लोकप्रिय, उपयोगी
और बुनियादी शैली है। यह कहानी या कथा लेखन शैली की ठीक उलटी होती है। इसमें आधार
ऊपर और शीर्ष नीचे होता है। इसमें शुरू में समापन, मध्य में बॉडी और अंत
में मुखड़ा होता है।
प्रश्न 24:
समाचार-लेखन के छह ककारों के नाम लिखिए।
उत्तर –
क्या, कौन, कहाँ, कब, क्यों और
कैसे-ये समाचार-लेखन के छह ककार हैं।
प्रश्न 25:
समाचार-लेखन में छह ककारों का महत्व क्या है?
उत्तर –
किसी समाचार को लिखते समय मुख्यत: छह सवालों के जवाब
देने की कोशिश की जाती है। समाचार लिखते समय क्या हुआ, किसके
साथ हुआ, कहाँ हुआ,
कब हुआ, कैसे और क्यों हुआ का
उत्तर दिया जाता है।
प्रश्न 26:
समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में किन ककारों का
प्रयोग किया जाता है?
उत्तर –
समाचारों के मुखड़े (इंट्रो) में तीन या चार
ककारों-क्या, कौन, कब और कहाँ-का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि ये सूचनात्मक
और तथ्यों पर आधारित होते हैं।
रिपोर्ट
रिपोर्ट समाचार-पत्र, रेडियो और टेलीविजन
की एक विशेष विधा है। इसके माध्यम से किसी घटना, समारोह या आँखों-देखे
किसी अन्य कार्यक्रम की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। चूँकि दूरदर्शन दृश्य एवं
श्रव्य दोनों ही उद्देश्य पूरा करने वाला माध्यम है, अत: इसके लिए
आँखों-देखी घटना की रिपोर्ट तैयार की जाती है जबकि रेडियो के लिए केवल सुनने योग्य
रिपोर्ट तैयार करने से काम चल जाता है। कभी संचालक द्वारा दी जा रही कार्यवाही का
विवरण देखकर ही उसे रिपोर्ट का आधार बनाकर रिपोर्ट तैयार कर ली जाती है।
रिपोर्ट की विशेषताएँ-
रिपोर्ट की पहली मुख्य विशेषता उसकी संक्षिप्तता है।
संक्षिप्त रिपोर्ट को ही लोग पढ़ पाते हैं। ज्यादा विस्तृत रिपोर्ट पढ़ी नहीं जाती, अत: उसे
तैयार करना उद्देश्यहीन हो जाता है।रिपोर्ट की दूसरी मुख्य विशेषता उसकी
निष्पक्षता है। रिपोर्ट को प्रभावशाली बनाने के लिए निष्पक्ष रिपोर्ट तैयार करनी
चाहिए।
रिपोर्ट की तीसरी प्रमुख विशेषता उसकी सत्यता है। इस
तथ्य से रहित रिपोर्ट अप्रासंगिक और निरुद्देश्य हो जाती है। असत्य रिपोर्ट पर न
कोई विश्वास करता है और न कोई पढ़ना पसंद करता है।
रिपोर्ट की अगली विशेषता उसकी पूर्णता है। आधी-अधूरी
रिपोर्ट से रिपोर्टर का न उद्देश्य पूरा होता है और न वह पाठकों की समझ में आती
है।
रिपोर्ट की अगली विशेषता है-उसका संतुलित होना।
अर्थात इसे सभी पक्षों को समान महत्व देते हुए तैयार करना चाहिए।
विशेष रिपोर्ट के प्रकार
विशेष रिपोर्ट कई प्रकार की होती है –
खोजी रिपोर्ट (इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट)
इन-डेप्थ रिपोर्ट
विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
विवरणात्मक रिपोर्ट
खोजी रिपोर्ट (इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट)-इस प्रकार की
रिपोर्ट में रिपोर्टर मौलिक शोध और छानबीन के जरिये ऐसी सूचनाएँ या तथ्य सामने
लाता है जो सार्वजानिक तौर पर पहले से उपलब्ध नहीं थीं। खोजी रिपोर्ट का इस्तेमाल
आमतौर पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया
जाता है।
इन-डेप्थ रिपोर्ट-इस प्रकार की रिपोर्ट में
सार्वजानिक तौर पर उपलब्ध तथ्यों, सूचनाओं और आँकड़ों की गहरी छानबीन की जाती है और
उसके आधार पर किसी घटना, समस्या या मुद्दे से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं को
सामने लाया जाता है।
विश्लेषणात्मक रिपोर्ट- किसी घटना या समाचार के
विश्लेषण युक्त रिपोर्ट
विवरणात्मक रिपोर्ट-इस तरह की रिपोर्ट में किसी घटना
या समस्या के विस्तृत और बारीक विवरण को प्रस्तुत करने की कोशिश की जाती है।
विभिन्न प्रकार की विशेष रिपोर्टों को समाचार-लेखन की
उलटा पिरामिड-शैली में ही लिखा जाता है लेकिन कई बार ऐसी रिपोर्टों को फ़ीचर शैली
में भी लिखा जाता है। चूँकि ऐसी रिपोर्ट सामान्य समाचारों की तुलना में बड़ी और
विस्तृत होती हैं,
इसलिए पाठकों की रुचि बनाए रखने के लिए कई बार उलटा
पिरामिड और फ़ीचर दोनों ही शैलियों को मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। रिपोर्ट बहुत
विस्तृत और बड़ी हो तो उसे श्रृंखलाबद्ध करके कई दिनों तक किस्तों में छापा जाता
है। विशेष रिपोर्ट की भाषा सरल, सहज और आम बोलचाल की होनी चाहिए।
प्रश्न 1:
‘रिपोर्ताजन’ शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से मानी जाती है?
उत्तर –
फ्रेंच भाषा से।
प्रश्न 2:
रिपोर्ताज रिपोर्ट की परिभाषा दीजिए।
उत्तर –
किसी घटना का उसके वास्तविक रूप में वर्णन, जो पाठक
के सम्मुख घटना का चित्र सजीव रूप में उपस्थित कर, उसे प्रभावित कर सके, रिपोर्ताज
रिपोर्ट कहलाता है।
प्रश्न 3:
रिपोर्ताज लेखन में क्या आवश्यक है?
उत्तर –
संबंधित घटना-स्थल की यात्रा, साक्षात्कार, तथ्यों
की जाँच।
प्रश्न 4:
रिपोर्ताज की मुख्य विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
तथ्यता, कलात्मकता, रोचकता।
प्रश्न 5:
हिंदी में रिपोर्ताज प्रकाशित करने का श्रेय किस
पत्रिका को है?
उत्तर –
हंस को।
प्रश्न 6:
रिपोर्ट की परिभाषा दीजिए।
उत्तर –
किसी योजना, परियोजना या कार्य के
नियोजन एवं कार्यान्वयन के पश्चात उसके ब्यौरे के प्रस्तुतीकरण को रिपोर्ट कहते
हैं।
प्रश्न 7:
विशेष रिपोर्ट किसे कहते हैं?
उत्तर –
किसी विषय पर गहरी छानबीन, विश्लेषण
और व्याख्या के आधार पर बनने वाली रिपोर्टों को विशेष रिपोर्ट कहते हैं।
प्रश्न 8:
विशेष रिपोर्ट के दो प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
खोजी रिपोर्ट, इन—डेप्थ रिपोर्ट।
प्रश्न 9:
विशेष रिपोर्ट के लेखन में किन बातों पर अधिक बल दिया
जाता है?
उत्तर –
विशेष रिपोर्ट के लेखन में घटना, समस्या
या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों को इकट्ठा करके उनका
विश्लेषण किया जाता है।
प्रश्न 10:
रिपोर्ट व रिपोर्ताज में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
रिपोर्ट में शुष्कता होती है, रिपोर्ताज
में नहीं। रिपोर्ट का महत्व सामयिक होता है, जबकि रिपोर्ताज का
शाश्वत।
प्रश्न 11:
खोजी रिपोर्ट का प्रयोग कहाँ किया जाता है?
उत्तर –
इस रिपोर्ट का प्रयोग आमतौर पर भ्रष्टाचार, अनियमितताओं
और गड़बड़ियों को उजागर करने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 12:
इन-डेप्थ रिपोर्ट क्या होती है?
उत्तर –
सार्वजनिक क्षेत्र में उपलब्ध समाचारों की तह में
जाकर छान-बीन करके तैयार रिपोर्ट।
प्रश्न 13:
विशेषीकृत रिपोर्टिग की एक प्रमुख विशेषता लिखिए।
उत्तर –
इसमें घटना या घटना के महत्व का स्पष्टीकरण किया जाता
है।
प्रश्न 14:
रिपोर्ट-लेखन की भाषा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
रिपोर्ट-लेखन की भाषा सरल व सहज होनी चाहिए। उसमें
संक्षिप्तता का गुण भी होना चाहिए।
आलेख
किसी एक विषय पर विचार प्रधान एवं गद्य प्रधान
अभिव्यक्ति को ‘आलेख’ कहा जाता है। आलेख वस्तुत: एक प्रकार के लेख होते हैं जो
अधिकतर संपादकीय पृष्ठ पर ही प्रकाशित होते हैं। इनका संपादकीय से कोई संबंध नहीं
होता। ये लेख किसी भी क्षेत्र से संबंधित हो सकते हैं, जैसे-खेल, समाज, राजनीति, अर्थ, फिल्म
आदि। इनमें सूचनाओं का होना अनिवार्य है।
आलेख के मुख्य अंग
आलेख के मुख्य अंग हैं-भूमिका, विषय का
प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्चा व निष्कर्ष। सर्वप्रथम, शीर्षक के अनुकूल
भूमिका लिखी जाती है। यह बहुत लंबी न होकर संक्षेप में होनी चाहिए। विषय के
प्रतिपादन में विषय का वर्गीकरण, आकार, रूप व क्षेत्र आते
हैं। इसमें विषय का क्रमिक विकास किया जाता है। विषय में तारतम्यता व क्रमबद्धता
अवश्य होनी चाहिए। तुलनात्मक चर्चा में विषयवस्तु का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता
है और अंत में,
विषय का निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।
आलेख रचना के संबंध में प्रमुख बातें
लेख लिखने से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषयवस्तु
का विश्लेषण करना चाहिए।
विषयवस्तु से संबंधित आँकड़ों व उदाहरणों का उपयुक्त
संग्रह करना चाहिए।
लेख में श्रृंखलाबद्धता होना जरूरी है।
लेख की भाषा सरल, बोधगम्य व रोचक होनी
चाहिए। वाक्य बहुत बड़े नहीं होने चाहिए। एक परिच्छेद में एक ही भाव व्यक्त करना
चाहिए।
लेख की प्रस्तावना व समापन में रोचकता होनी जरूरी है।
विरोधाभास, दोहरापन, असंतुलन, तथ्यों
की असंदिग्धता आदि से बचना चाहिए।
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
आलेख किसे कहते हैं?
उत्तर –
समाचार-पत्रों, पत्र-पत्रिकाओं में
संपादकीय पृष्ठ पर कुछ लेख छपे होते हैं जो समसामयिक घटनाओं पर आधारित होते हैं।
उन्हें ही आलेख कहते हैं।
प्रश्न 2:
आलेख किन-किन क्षेत्रों से संबंधित होते हैं?
उत्तर –
आलेख खेल, समाज, राजनीति, अर्थजगत, व्यापार, खेल आदि
क्षेत्रों से संबंधित हो सकते हैं।
प्रश्न 3:
अच्छे आलेख के गुण/विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
अच्छे आलेख में सूचनाओं का होना अनिवार्य होता है
जिसमें नवीनता एवं ताजगी हो।
विचारों में स्पष्टता तथा भाषा में सरलता, बोधगम्यता
तथा रोचकता होनी चाहिए।
प्रश्न 4:
आलेख में किसकी प्रमुखता होती है?
उत्तर –
आलेख में लेखक के विचारों की प्रमुखता होती है। इसी
कारण इसे विचार-प्रधान गदय भी कहा जाता है।
प्रश्न 5:
आलेख के मुख्य अंग कौन-कौन-से हैं?
उत्तर –
आलेख के मुख्य अंग हैं-भूमिका, विषय का
प्रतिपादन व निष्कर्ष।
प्रश्न 6:
आलेख लिखते समय क्या-क्या तैयारियाँ आवश्यक होती हैं?
उत्तर –
आलेख लिखते समय संबंधित विषय से जुड़े आँकड़ों व
उदाहरणों का संग्रह करना आवश्यक होता है।
लेखन से पूर्व विषय का चिंतन-मनन करके विषयवस्तु का
विश्लेषण करना भी आवश्यक होता है।
विचारपरक लेखन
अखबारों में समाचार और फ़ीचर के अलावा विचारपरक सामग्री
का भी प्रकाशन होता है। कई अखबारों की पहचान उनके वैचारिक रुझान से होती है। एक
तरह से अखबारों में प्रकाशित होने वाले विचारपूर्ण लेखन से उस अखबार की छवि बनती
है। अखबारों में संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले संपादकीय अग्रलेख, लेख और
टिप्पणियाँ इसी विचारपरक पत्रकारीय लेखन की श्रेणी में आते हैं। इसके अलावा, विभिन्न
विषयों के विशेषज्ञों या वरिष्ठ पत्रकारों के स्तंभ (कॉलम) भी विचारपरक लेखन के
तहत आते हैं। कुछ अखबारों में संपादकीय पृष्ठ के सामने ऑप-एड पृष्ठ पर भी विचारपरक
लेख, टिप्पणियाँ और स्तंभ प्रकाशित होते हैं।
संपादकीय लेखन संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले
संपादकीय को उस अखबार की आवाज माना जाता है। संपादकीय के जरिये अखबार किसी घटना, समस्या
या मुद्दे के प्रति अपनी राय प्रकट करते हैं। संपादकीय किसी व्यक्ति-विशेष का
विचार नहीं होता,
इसलिए उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता।
संपादकीय लिखने का दायित्व उस अखबार में काम करने वाले संपादक और उनके सहयोगियों
पर होता है। आमतौर पर अखबारों में सहायक संपादक ही संपादकीय लिखते हैं। कोई बाहर
का लेखक या पत्रकार संपादकीय नहीं लिख सकता।
हिंदी के अखबारों में कुछ में तीन, कुछ में
दो और कुछ में केवल एक ही संपादकीय प्रकाशित होता है। संपादकीय का एक उदाहरण
प्रस्तुत है-
स्तंभ-लेखन
स्तंभ-लेखन भी विचारपरक लेखन का एक प्रमुख रूप है।
कुछ महत्वपूर्ण लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं। उनकी अपनी एक लेखन-शैली
भी विकसित हो जाती है। ऐसे लेखकों की लोकप्रियता को देखकर अखबार उन्हें एक नियमित
स्तंभ लिखने का जिम्मा दे देते हैं। स्तंभ का विषय चुनने और उसमें अपने विचार
व्यक्त करने की स्तंभ लेखक को पूरी छूट होती है। स्तंभ में लेखक के विचार
अभिव्यक्त होते हैं। यही कारण है कि स्तंभ अपने लेखकों के नाम पर जाने और पसंद किए
जाते हैं। कुछ स्तंभ इतने लोकप्रिय होते हैं कि अखबार उनके कारण भी पहचाने जाते
हैं।
संपादक के नाम पत्र
अखबारों के संपादकीय पृष्ठ पर और पत्रिकाओं की शुरुआत
में संपादक के नाम पाठकों के पत्र भी प्रकाशित होते हैं। सभी अखबारों में यह एक
स्थायी स्तंभ होता है। यह पाठकों का अपना स्तंभ होता है। इस स्तंभ के जरिये अखबार
के पाठक न सिर्फ़ विभिन्न मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते हैं बल्कि जन-समस्याओं
को भी उठाते हैं। एक तरह से यह स्तंभ जनमत को प्रतिबिंबित करता है। जरूरी नहीं कि
अखबार पाठकों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से सहमत हो। यह स्तंभ नए लेखकों के लिए
लेखन की शुरुआत करने और उन्हें हाथ माँजने का भी अच्छा अवसर देता है।
साक्षात्कार (इंटरव्यू)
समाचार माध्यमों में साक्षात्कार का बहुत महत्व है।
पत्रकार एक तरह से साक्षात्कार के जरिये ही समाचार, फ़ीचर, विशेष
रिपोर्ट और अन्य कई तरह के पत्रकारीय लेखन के लिए कच्चा माल इकट्ठा करते हैं।
पत्रकारीय साक्षात्कार और सामान्य बातचीत में यह फ़र्क होता है कि साक्षात्कार में
एक पत्रकार किसी अन्य व्यक्ति से तथ्य, उसकी राय और भावनाएँ
जानने के लिए सवाल पूछता है। साक्षात्कार का एक स्पष्ट मकसद और ढाँचा होता है। एक
सफल साक्षात्कार के लिए आपके पास न सिर्फ़ ज्ञान होना चाहिए बल्कि आपमें
संवदेनशीलता, कूटनीति,
धैर्य और साहस जैसे गुण भी होने चाहिए।
सफल और अच्छा साक्षात्कार कैसे लें?
एक अच्छे और सफल साक्षात्कार के लिए आवश्यक है कि-
जिस विषय पर और जिस व्यक्ति के साथ साक्षात्कार करने
आप जा रहे हैं,
उसके बारे में आपके पास पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए।
आप साक्षात्कार से क्या निष्कर्ष निकालना चाहते हैं, इसके
बारे में स्पष्ट रहना बहुत जरूरी है।
आपको वे सवाल पूछने चाहिए जो किसी अखबार के एक आम
पाठक के मन में हो सकते हैं।
साक्षात्कार को अगर रिकॉर्ड करना संभव हो तो बेहतर है, लेकिन
अगर ऐसा संभव न हो तो साक्षात्कार के दौरान आप नोट्स लेते रहें।
साक्षात्कार को लिखते समय आप दो में से कोई भी एक
तरीका अपना सकते हैं। एक आप साक्षात्कार को सवाल और फिर जवाब के रूप में लिख सकते
हैं या फिर उसे एक आलेख की तरह से भी लिख सकते हैं।
प्रश्न 1:
संपादकीय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर –
संपादकीय समाचार-पत्र का वह महत्त्वपूर्ण अंश होता है, जिसे
संपादक, सहायक संपादक तथा संपादक मंडल के सदस्य लिखते हैं।
प्रश्न 2:
संपादकीय का समाचार-पत्र के लिए क्या महत्व है?
उत्तर –
संपादकीय को किसी समाचार-पत्र की आवाज माना जाता है।
यह एक निश्चित पृष्ठ पर छपता है। यह अंश समाचारपत्र को पठनीय तथा अविस्मरणीय बनाता
है। संपादकीय से ही समाचार-पत्र की अच्छाइयाँ एवं बुराइयाँ (गुणवत्ता) का निर्धारण
किया जाता है। समाचार-पत्र के लिए इसकी महत्ता सर्वोपरि है।
प्रश्न 3:
संपादकीय किसी नाम के साथ नहीं छापा जाता, क्यों?
अथवा
संपादकीय में लेखक का नाम क्यों नहीं होता?
उत्तर –
संपादकीय किसी एक व्यक्ति या व्यक्ति-विशेष की राय, भाव या
विचार नहीं होता अत: उसे किसी के नाम के साथ नहीं छापा जाता।
प्रश्न 4:
संपादकीय पृष्ठ पर किन-किन सामग्रियों को स्थान दिया
जाता है?
उत्तर –
संपादकीय पृष्ठ पर संपादकीय, महत्वपूर्ण
लेख, फ़ीचर, सूक्तियाँ,
संपादक के नाम पत्र आदि को स्थान दिया जाता है।
प्रश्न 5:
संपादकीय का उददेश्य क्या है?
उत्तर –
किसी घटना, समस्या अथवा विशिष्ट
मुद्दे पर संपादक मंडल की राय (समाचार-पत्र के विचार) जनता तक पहुंचाना संपादकीय
का उद्देश्य होता है।
प्रश्न 6:
संपादकीय लेखन के चार कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
संपादकीय लेखन के चार कार्य हैं-समाचारों का विश्लेषण, पृष्ठभूमि
की तैयारी, भविष्यवाणी करना तथा नैतिक निर्णय देना।
प्रश्न 7:
स्तंभ-लेखन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर –
स्तंभ-लेखन विचारपरक लेखन का एक महत्वपूर्ण रूप है।
कुछ लेखक अपने खास वैचारिक रुझान के लिए जाने जाते हैं, जिनकी
लोकप्रियता देखते हुए अखबार उन्हें एक नियमित स्तंभ लिखने का जिम्मा दे देते हैं।
इसमें विषय चुनने और विचार अभिव्यक्ति की छूट लेखक को होती है।
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