Wednesday 2 February 2022

जनसंचार माध्यम और लेखन – विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन

जनसंचार माध्यम और लेखन – विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन











































 

प्रमुख जनसंचार माध्यम (प्रिंट, टी०वी०, रेडियो और इंटरनेट)

जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और कमियाँ।

प्रिंट (मुद्रित ) माध्यम

प्रिंट (मुद्रित) माध्यम में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें।

रेडियो

रेडियो समाचार की संरचना।

रेडियो के लिए समाचार-लेखन संबंधी बुनियादी बातें।

टेलीविजन

टीoवीo खबरों के विभिन्न चरण।

रेडियो और टेलीविजन समाचार की भाषा और शैली

इंटरनेट

इंटरनेट पत्रकारिता।

इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास।

भारत में इंटरनेट पत्रकारिता।

हिंदी नेट संसार

अलग-अलग जनसंचार माध्यम और उनके लेखन के अलग-अलग तरीके

विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लिए लेखन के अलग-अलग तरीके हैं। अखबार और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की अलग शैली है, जबकि रेडियो और टेलीविजन के लिए लिखना एक अलग कला है। चूँकि माध्यम अलग-अलग हैं, इसलिए उनकी जरूरतें भी अलग-अलग हैं। विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन के अलग-अलग तरीकों को समझना बहुत जरूरी है। इन माध्यमों के लेखन के लिए बोलने, लिखने के अतिरिक्त पाठकों- श्रोताओं और दर्शकों की जरूरत को भी ध्यान में रखा जाता है।

 

प्रमुख जनसंचार प्रमुख माध्यम

जनसंचार के प्रमुख माध्यम हैं-

हम नियमित रूप से अखबार पढ़ते हैं। इसके अलावा मनोरंजन या समाचार जानने के लिए टी०वी० भी देखते और रेडियो भी सुनते हैं। संभव है कि हम कभी-कभार इंटरनेट पर भी समाचार पढ़ते, सुनते या देखते हैं। हमने गौर किया है कि जनसंचार के इन सभी प्रमुख माध्यमों में, समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में अंतर है। कभी ध्यान से किसी शाम या रात को टी०वी० और रेडियो पर सिर्फ़ समाचार सुनें और इंटरनेट पर जाकर उन्हीं समाचारों को फिर से पढ़ें। अगले दिन सुबह अखबार ध्यान से पढ़ने पर ज्ञात होता है कि इन सभी माध्यमों में पढ़े, सुने या देखे गए समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में आपको फ़र्क नजर आता है।

 

 

 

निश्चय ही, इन सभी माध्यमों में समाचारों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में हमें कई अंतर देखने को मिलते हैं। सबसे सहज और आसानी से नजर आने वाला अंतर तो यही दिखाई देता है कि

 

अखबार पढ़ने के लिए है।

रेडियो सुनने के लिए है।

टी०वी० देखने के लिए है।

इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने, तीनों की ही सुविधा है।

जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फ़र्क समझने के लिए सभी माध्यमों के लेखन की बारीकियों को समझना जरूरी है। लेकिन इन माध्यमों के बीच के फ़र्क को आप तभी समझ सकते हैं जब आप हर माध्यम की विशेषताओं, उसकी खूबियों और खामियों से परिचित हों। हर माध्यम की अपनी कुछ खूबियाँ हैं तो कुछ खामियाँ भी। खबर लिखते समय हमें इनका पूरा ध्यान रखना पड़ता है और इन माध्यमों की जरूरत को समझना पड़ता है।

 

जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और कमियाँ

 

जनसंचार के विभिन्न माध्यमों से हमारा रोज, कम या ज्यादा, वास्ता पड़ता है। अगर हमसे पूछा जाए कि आप इन सभी माध्यमों में से सबसे अधिक किसे पसंद करते हैं और क्यों, तो हमारा जवाब होगा क्या होगा? शायद हम थोड़ा सोच में पड़ जाएँ। हमारा उत्तर चाहे जो हो, इतना तो तय है कि इस सवाल का कोई एक निश्चित जवाब नहीं है। संभव है हमें टी०वी० ज्यादा पसंद हो और हमारे दोस्त को रेडियो।

 

हमारा दोस्त रेडियो अपने पढ़ने के कमरे में फुरसत में या कुछ और काम करते हुए सुनता हो। इसी तरह हमारे किसी और साथी को पढ़ना पसंद हो और उसके फुरसत के क्षण अखबार तथा पत्रिकाओं के साथ गुजरते हों जबकि हमारा कोई अन्य दोस्त इंटरनेट पर चौटिंग करते या कुछ और पढ़ते/देखते हुए उसी से चिपके रहना पसंद करता हो।

 

 

 

हम या हमारे अन्य दोस्त अलग-अलग जनसंचार माध्यमों को इसलिए अधिक पसंद करते हैं क्योंकि उनकी विशेषताएँ या खूबियाँ, हमारी और हमारे अन्य दोस्तों के मिजाज, रुचियों, जरूरतों और पहुँच के अनुकूल हैं। स्पष्ट है कि हम सब अपनी-अपनी रुचियों, जरूरतों और स्वभावों के मुताबिक माध्यम चुनते और उनका इस्तेमाल करते हैं। इसका अर्थ यह भी है कि हर माध्यम की अपनी कुछ विशेषताएँ या खूबियाँ हैं, तो कुछ कमियाँ भी हैं, जिनके कारण कोई माध्यम-विशेष किसी को अधिक पसंद आता है तो किसी को कम।

 

इससे हमें यह नहीं समझना चाहिए कि जनसंचार का कोई एक माध्यम सबसे अच्छा या बेहतर है या कोई एक किसी दूसरे से कमतर है। सबकी अपनी कुछ खूबियाँ और कमियाँ हैं। जैसे इंद्रधनुष की छटा अलग-अलग रंगों के एक साथ आने से बनती है, वैसे ही जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की असली शक्ति उनके परस्पर पूरक होने में है। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फ़र्क चाहे जितना हो लेकिन वे आपस में प्रतिदवंदवी नहीं बल्कि एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।

 

इससे हमें यह ज्ञात होता है कि

 

अखबार में समाचार पढ़ने और रुककर उस पर सोचने में एक अलग तरह की संतुष्टि मिलती है, जबकि टी०वी० पर घटनाओं की तसवीरें देखकर उसकी जीवतता का एहसास होता है। इस तरह का रोमांच अखबार या इंटरनेट पर नहीं मिल सकता।

रेडियो पर खबरें सुनते हुए हम जितना उन्मुक्त होते हैं, उतना किसी और माध्यम से संभव नहीं है।

इंटरनेट अंतरक्रियात्मकता (इंटरएक्टिविटी) और सूचनाओं के विशाल भंडार का अद्भुत माध्यम है, बस एक बटन दबाते ही हम सूचनाओं के अथाह संसार में पहुँच जाते हैं। जिस किसी भी विषय पर हम जानना चाहते हैं, इंटरनेट के जरिये वहाँ पहुँच सकते हैं।

ये सभी माध्यम हमारी अलग-अलग जरूरतों को पूरा करते हैं और इन सभी की हमारे दैनिक जीवन में कुछ-न-कुछ उपयोगिता है। यही कारण है कि अलग-अलग माध्यम होने के बावजूद इनमें से कोई समाप्त नहीं हुआ, बल्कि इन सभी माध्यमों का लगातार विस्तार और विकास हो रहा है।

अब हम इन सभी माध्यमों की अलग-अलग खूबियों और कमियों को जानने का प्रयास करते हैं।

 

1. प्रिंट ( मुद्रित ) माध्यम

 

प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। असल में आधुनिक युग की शुरुआत ही मुद्रण यानी छपाई के आविष्कार से हुई। हालाँकि मुद्रण की शुरुआत चीन से हुई, लेकिन आज हम जिस छापेखाने को देखते हैं, उसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी।

 

यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की अह भूमिका थी। भारत में पहला छापाखाना सन 1556 में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म-प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से अब तक मुद्रण तकनीक में काफ़ी बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हुआ है।

 

 

 

प्रिंट (मुद्रित) माध्यमों की विशेषताएँ

प्रिंट माध्यमों के वर्ग में अखबारों, पत्रिकाओं, पुस्तकों आदि को शामिल किया जाता है। हमारे दैनिक जीवन में इनका विशेष महत्व है। प्रिंट माध्यमों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

 

प्रिंट माध्यमों के छपे शब्दों में स्थायित्व होता है।

हम उन्हें अपनी रुचि और इच्छा के अनुसार धीरे-धीरे पढ़ सकते हैं।

पढ़ते-पढ़ते कहीं भी रुककर सोच-विचार कर सकते हैं।

इन्हें बार-बार पढ़ा जा सकता है।

इसे पढ़ने की शुरुआत किसी भी पृष्ठ से की जा सकती है।

इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखकर संदर्भ की भाँति प्रयुक्त किया जा सकता है।

यह लिखित भाषा का विस्तार है, जिसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ निहित हैं।

लिखित और मौखिक भाषा में सबसे बड़ा अंतर यह है कि लिखित भाषा अनुशासन की माँग करती है। बोलने में एक स्वत:स्फूर्तता होती है लेकिन लिखने में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के उपयुक्त इस्तेमाल का ध्यान रखना पड़ता है। इसके अलावा उसे एक प्रचलित भाषा में लिखना पड़ता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोग समझ पाएँ।

 

मुद्रित माध्यमों की अन्य विशेषता यह है कि यह चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम से आप गंभीर और गूढ़ बातें लिख सकते हैं क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ़ उसे पढ़ने, समझने और सोचने का समय होता है बल्कि उसकी योग्यता भी होती है। असल में, मुद्रित माध्यमों का पाठक वही हो सकता है जो साक्षर हो और जिसने औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा के जरिये एक विशेष स्तर की योग्यता भी हासिल की हो।

 

प्रिंट (मुद्रित) माध्यमों की सीमाएँ या कमियाँ

 

मुद्रित माध्यमों की कमियाँ निम्नलिखित हैं-

 

निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं।

मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा-ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।

पाठकों की रुचियों और जरूरतों का भी पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

ये रेडियो, टी०वी० या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते। ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होते हैं। जैसे अखबार 24 घंटे में एक बार या साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार प्रकाशित होती है।

अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है इसलिए मुद्रित माध्यमों के लेखकों और पत्रकारों को प्रकाशन की समय-सीमा का पूरा ध्यान रखना पड़ता है।

प्रिंट (मुद्रित) माध्यम में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें

 

मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए। जैसे किसी अखबार या पत्रिका के संपादक ने अगर 250 शब्दों में रिपोर्ट या फ़ीचर लिखने को कहा है तो उस शब्द-सीमा का ध्यान रखना पड़ेगा। इसकी वजह यह है कि अखबार या पत्रिका में असीमित जगह नहीं होती।

मुद्रित माध्यम के लेखक या पत्रकार को इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता है कि छपने से पहले आलेख में मौजूद सभी गलतियों और अशुद्धयों को दूर कर दिया जाए क्योंकि एक बार प्रकाशन के बाद वह गलती या अशुद्ध वहीं चिपक जाएगी। उसे सुधारने के लिए अखबार या पत्रिका के अगले अंक का इंतजार करना पड़ेगा।

भाषा सरल, सहज तथा बोधगम्य होनी चाहिए।

शैली रोचक होनी चाहिए।

विचारों में प्रवाहमयता एवं तारतम्यता होनी चाहिए।

प्रिंट (मुद्रित) माध्यम के कुछ उदाहरण

 

नेपोलियन बोनापार्ट का जहाज़ ऑस्ट्रेलिया में मिला

 

कॅनबरा, एजेंसी। नेपोलियन बोनापार्ट का जहाज ऑस्ट्रेलिया में मिला है। इस जहाज का इस्तेमाल उन्होंने अपने निर्वासन के दौरान फ्रांस में दुबारा प्रवेश करने के लिए किया था। ऑस्ट्रेलियाई फ़िल्मकार और टूटे जहाज के खोजकर्ता बेन क्रॉप का दावा है कि उत्तरी क्वीन्सलैंड से दूर गहरे पानी में ‘स्वीफ़्टस्योर’ जहाज मिला।

 

क्रॉप ने केप यार्क प्रायद्वीप जाने के लिए लॉकहार्ट रिवर से दूर मगरमच्छ से भरे पानी में तैराकी का खतरा मोल लिया। वे आश्वस्त होना चाहते थे कि जिसकी तलाश वे वर्षों से कर रहे थे, वह वही जहाज है या नहीं। क्रॉप बोल्ट मिट्टी के बर्तन और कंकड़ों को देखकर इस नतीजे पर पहुँचे कि वह स्वीफ़्टस्योर ही है। जहाज वर्ष 1815 का है, जब नेपोलियन इटली से दूर अल्बा द्वीप में निर्वासन में रह रहे थे। वे 337 टन वाले इस जहाज के जरिये द्वीप से भागे थे व अपने देश को दुबारा हासिल करने के लिए जहाज का नाम स्वीफ़्टस्योर रख दिया।

 

 

 

इसके बाद उन्होंने लुई 18वें को हराया व उन्हें निर्वासन में जाने को मजबूर किया। ब्रिटेन ने वॉटरलू की लड़ाई जीतने के ७बाद पुरस्कारस्वरूप जहाज कब्जे में लिया व नाम बदलकर इसका इस्तेमाल इग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया जलमार्ग में करने लगा।

 

फजर्ती दिल्ली शिक्षा बोर्ड का खेल

 

नई दिल्ली, विशेष सवाददाता। दिल्ली सरकार के पूर्व कानून मंत्री जितेंद्र सिंह तोमर असली कॉलेज की फ़र्जी डिग्री मामले में फैंसे हैं। मगर दिल्ली में तो पूरा बोर्ड ही फ़र्जी चल रहा है। इससे बिना परीक्षा 10वीं और 12वीं कक्षा पास कराने का खेल होता है। दिल्ली शिक्षा निदेशालय इस पर कार्रवाई की तैयारी में है।

 

दिल्ली उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद’ और ‘उच्चतर माध्यमिक शिक्षा परिषद दिल्ली’ नाम से चल रहे फ़जीं बोडों की वेबसाइट delhiboard.org www.bhse.co.in पर दावा किया गया है कि वे भारतीय शिक्षा अधिनियम के तहत बोर्ड परीक्षा दिलाते हैं। एक संस्था ने अपनी वेबसाइट पर गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का पत्र लगाया है।

 

इस बोर्ड से यू०पी० के स्कूल से परीक्षा देने वाले छात्र अमृत (बदला नाम) ने बताया कि उससे फ़ॉर्म भरवाते समय बताया गया कि यह बोर्ड सी०बी०एस०ई० की तरह है। इस बोर्ड से मान्यता-प्राप्त स्कूल का दावा है कि इसे दिल्ली सरकार चलाती है। (इस फ़र्जी बोर्ड की साइट पर दिए ई-मेल पते पर सवाल पूछे गए तो कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।

 

देश में 14 नए मेडिकल कॉलेजों को हरी झंडी

 

नई दिल्ली, विशेष सवाददाता। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एमसीआई की सिफ़ारिश पर देश में 14 मेडिकल कॉलेजों की स्थापना की हरी झंडी दे दी है। इससे इस बार एमबीबीएस की 1900 सीटें बढ़ जाएँगी। इसके अलावा छह कॉलेजों को पहली बार सीटें बढ़ाने की अनुमति दी गई है। इससे 290 एमबीबीएस सीटें बढ़ेगी।

 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, जिन 14 नए कॉलेजों को मंजूरी दी गई है, उनमें से तीन कॉलेज उत्तर प्रदेश के हैं। इनमें से सहारनपुर में शेख-उल-हिंद मौलाना हसन मेडिकल कॉलेज इसी सत्र से शुरू होगा। पहले साल इसमें एमबीबीएस की 100 सीटें होंगी। यह सरकारी कॉलेज होगा। दो अन्य कॉलेज निजी होंगे।

 

 

 

सीतापुर में हिंद इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में 150 सीटें और वाराणसी में हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में 150 सीटें होंगी। यूपी में इससे (एमबीबीएस में 400 सीटें बढ़ी हैं। (16 जून, 2015 हिंदुस्तान से साभार)/

 

2. रेडियो

 

रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। इन सब वजहों से रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। रेडियो पत्रकारों को अपने श्रोताओं का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसकी वजह यह है कि अखबार के पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं। अगर किसी समाचार/लेख या फ़ीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ सकता है, लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती।

 

वह अखबार की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतजार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। इस बीच, वह इधर-उधर नहीं आ-जा सकता और न ही उसके पास किसी गूढ़ शब्द या वाक्यांश के आने पर शब्दकोश का सहारा लेने का समय होता है। अगर वह शब्दकोश में अर्थ ढूँढ़ने लगेगा तो बुलेटिन आगे निकल जाएगा।

 

इस तरह स्पष्ट है कि-

 

रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।

अगर रेडियो बुलेटिन में कुछ भी भ्रामक या अरुचिकर है, तो संभव है कि श्रोता तुरंत स्टेशन बंद कर दे।

दरअसल, रेडियो मूलत: एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार बुलेटिन का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार पर ही तय होती है।

रेडियो की तरह टेलीविजन भी एकरेखीय माध्यम है, लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों/तस्वीरों का महत्व सर्वाधिक होता है। टी०वी० में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं। लेकिन रेडियो में शब्द और आवाज ही सब कुछ हैं।

रेडियो समाचार की संरचना

रेडियो के लिए समाचार-लेखन अखबारों से कई मामलों में भिन्न है। चूँकि दोनों माध्यमों की प्रकृति अलग-अलग है, इसलिए समाचार-लेखन करते हुए उसका ध्यान जरूर रखा जाना चाहिए।

 

रेडियो समाचार की संरचना अखबारों या टी०वी० की तरह उलटा पिरामिड (इंवटेंड पिरामिड) शैली पर आधारित होती है। चाहे आप किसी भी माध्यम के लिए समाचार लिख रहे हों, समाचार-लेखन की सबसे प्रचलित, प्रभावी और लोकप्रिय शैली उलटा पिरामिड़ शैली ही है। सभी तरह के जनसंचार माध्यमों में सबसे अधिक यानी 90 प्रतिशत खबरें या स्टोरीज़ इसी शैली में लिखी जाती हैं।

 

 

 

समाचार-लेखन की उलटा पिरामिड-शैली

उलटा पिरामिड शैली में समाचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्त्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है। इस शैली में किसी घटना/विचार/समस्या का ब्यौरा कालानुक्रम की बजाय सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। तात्पर्य यह है कि इस शैली में कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं, बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है। उलटा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता।

 

इस शैली में समाचार को तीन भागों में बाँट दिया जाता है-

 

इंट्रो-समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में ‘मुखड़ा’ भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्व को शुरू की दो-तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अह हिस्सा होता है।

बॉडी-इस भाग में समाचार के विस्तृत ब्यौरे को घटते हुए महत्त्वक्रम में लिखा जाता है।

समापन-इस शैली में अलग से समापन जैसी कोई चीज नहीं होती। इसमें प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं। अकड़ने समाया औ जहक कमा क देतेहुएआखी कुठलों या पैमाफक हवाक समाचरसमाप्त कर दिया जाता है।

रेडियो समाचार के इंट्रो के उदाहरण

 

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक बस दुर्घटना में आज बीस लोगों की मौत हो गई। मृतकों में पाँच महिलाएँ और तीन बच्चे शामिल हैं।

महाराष्ट्र में बाढ़ का संकट गहराता जा रहा है। राज्य में बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर चार सौ पैंसठ हो गई है।

रेडियो के लिए समाचार-लेखन संबंधी बुनियादी बातें

रेडियो के लिए समाचार-कॉपी तैयार करते हुए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।

 

(क) साफ़-सुथरी और टाइप्ड कॉपी-रेडियो समाचार कानों के लिए यानी सुनने के लिए होते हैं, इसलिए उनके लेखन में इसका ध्यान रखना जरूरी हो जाता है। लेकिन एक महत्वपूर्ण तथ्य नहीं भूलना चाहिए कि सुने जाने से पहले समाचार-वाचक या वाचिका उसे पढ़ते हैं और तब वह श्रोताओं तक पहुँचता है। इसलिए समाचार-कॉपी ऐसे तैयार की जानी चाहिए कि उसे पढ़ने में वाचक/वाचिका को कोई दिक्कत न हो। अगर समाचार-कॉपी टाइप्ड और साफ़-सुथरी नहीं है तो उसे पढ़ने के दौरान वाचक/वाचिका के अटकने या गलत पढ़ने का खतरा रहता है और इससे श्रोताओं का ध्यान बँटता है या वे भ्रमित हो जाते हैं। इससे बचने के लिए-

 

प्रसारण के लिए तैयार की जा रही समाचार-कॉपी को कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।

कॉपी के दोनों ओर पर्याप्त हाशिया छोड़ा जाना चाहिए।

एक लाइन में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए।

पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए।

पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए।

समाचार-कॉपी में ऐसे जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर (एब्रीवियेशन्स), अंक आदि नहीं लिखने चाहिए, जिन्हें पढ़ने में जबान लड़खड़ाने लगे।

रेडियो समाचार लेखन में अंक कैसे लिखें?

इसमें अंकों को लिखने के मामले में खास सावधानी रखनी चाहिए; जैसे-

 

एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए।

2837550 लिखने की बजाय ‘अट्ठाइस लाख सैंतीस हजार पाँच सौ पचास’ लिखा जाना चाहिए अन्यथा वाचक/वाचिका को पढ़ने में बहुत मुश्किल होगी।

अखबारों में % और $ जैसे संकेत-चिहनों से काम चल जाता है, लेकिन रेडियो में यह पूरी तरह वर्जित है। अत: इन्हें ‘प्रतिशत’ और ‘डॉलर’ लिखा जाना चाहिए। जहाँ भी संभव और उपयुक्त हो, दशमलव को उसके नजदीकी पूर्णाक में लिखना बेहतर होता है। इसी तरह 2837550 रुपये को रेडियो में, लगभग अट्ठाइस लाख रुपये, लिखना श्रोताओं को समझाने के लिहाज से बेहतर है।

वित्तीय संख्याओं को उनके नजदीकी पूर्णाक में लिखना चाहिए।

खेलों के स्कोर को उसी तरह लिखना चाहिए। सचिन तेंदुलकर ने अगर 98 रन बनाए हैं तो उसे ‘लगभग सौ रन” नहीं लिख सकते।

मुद्रा-स्फीति के आँकड़े नजदीकी पूर्णाक में नहीं, बल्कि दशमलव में ही लिखे जाने चाहिए।

वैसे रेडियो समाचार में आँकड़ों और संख्याओं का अत्यधिक इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि श्रोताओं के लिए उन्हें समझ पाना काफ़ी कठिन होता है।

रेडियो समाचार कभी भी संख्या से नहीं शुरू होना चाहिए। इसी तरह तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं-‘ 15 अगस्त उन्नीस सौ पचासी’ न कि ‘अगस्त 15, 1985’

(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग-रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं, बल्कि समाचार से ही गुंथी होती है। अखबार दिन में एक बार और वह भी सुबह (और कहीं शाम) छपकर आता है जबकि रेडियो पर चौबीसो घंटे समाचार चलते रहते हैं। श्रोता के लिए समय का फ्रेम हमेशा ‘आज’ होता है। इसलिए समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, आज तड़के आदि का इस्तेमाल किया जाता है।

 

इसी तरह ‘.बैठक कल होगी’ या ‘.कल हुई बैठक में..’ का प्रयोग किया जाता है। इसी सप्ताह, अगले सप्ताह, पिछले सप्ताह, इस महीने, अगले महीने, पिछले महीने, इस साल, अगले साल, अगले बुधवार या पिछले शुक्रवार का इस्तेमाल करना चाहिए।

 

संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल में काफ़ी सावधानी बरतनी चाहिए। बेहतर तो यही होगा कि उनके प्रयोग से बचा जाए और अगर जरूरी हो तो समाचार के शुरू में पहले उसे पूरा दिया जाए, फिर संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग किया जाए।

 

3. टेलीविजन

 

टेलीविजन में दृश्यों की महत्ता सबसे ज्यादा है। यह कहने की जरूरत नहीं कि टेलीविजन देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिए समाचार या आलेख (स्क्रिप्ट) लिखते समय इस बात पर खास ध्यान रखने की जरूरत पड़ती है-

 

हमारे शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनुकूल हों।

टेलीविजन लेखन प्रिंट और रेडियो दोनों ही माध्यमों से काफ़ी अलग है। इसमें कम-से-कम शब्दों में ज्यादा-से-ज्यादा खबर बताने की कला का इस्तेमाल होता है।

टी०वी० के लिए खबर लिखने की बुनियादी शर्त दृश्य के साथ लेखन है। दृश्य यानी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके आधार पर खबर बुनी जाती है। अगर शॉट्स आसमान के हैं तो हम आसमान की ही बात लिखेंगे, समंदर की नहीं। अगर कहीं आग लगी हुई है तो हम उसी का जिक्र करेंगे, पानी का नहीं।

दिल्ली की किसी इमारत में आग लगने की खबर लिखनी है। अखबार में आमतौर पर इस खबर का इंट्रो कुछ इस तरह का बन सकता है-दिल्ली के लाजपत नगर की एक दुकान में आज शाम आग लगने से दो लोग घायल हो गए और लाखों रुपये की सपति जलकर राख हो गई। यह आग शॉट सर्किट की वजह से लगी।

 

लेकिन टी०वी० में इस खबर की शुरुआत कुछ अलग होगी। दरअसल टेलीविज़न पर खबर दो तरह से पेश की जाती है। इसका शुरुआती हिस्सा, जिसमें मुख्य खबर होती है, बगैर दृश्य के न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरा हिस्सा वह होता है, जहाँ से परदे पर एंकर की जगह खबर से संबंधित दृश्य दिखाए जाते हैं। इसलिए टेलीविजन पर खबर दो हिस्सों में बँटी होती है। अगर खबरों के प्रस्तुतिकरण के तरीकों पर बात करें तो इसके भी कई तकनीकी पहलू हैं।

 

दिल्ली में आग की खबर को टी०वी० में पेश करने के लिए प्रारंभिक सूचना के बाद हम इसे इस तरह लिख सकते हैं-आग की ये लपटें सबसे पहले शाम चार बजे दिखीं, फिर तेजी से फैल गई…….।

 

टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण

 

किसी भी टी०वी० चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है, यानी सबसे पहले सूचना देना। टी०वी० में भी ये सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं-

 

फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज

ड्राई एंकर

फ़ोन-इन

एंकर-विजुअल

एंकर-बाइट

लाइव।

एंकर-पैकेज

अब हम इनके बारे में जानते हैं

 

फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज-सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज सूचना दी जाती है।

ड्राई एंकर-इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते तब तक एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।

फोन-इन-इसके बाद खबर का विस्तार होता है और एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज्यादा-से-ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, वह दर्शकों को बताता है।

एंकर-विजुअल-जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं, तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।

एंकर-बाइट-बाइट यानी कथन। टेलीविजन पत्रकारिता में बाइट का काफ़ी महत्व है। टेलीविजन में किसी भी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ ही उस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।

लाइव-लाइव यानी किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण। सभी टी०वी० चैनल कोशिश करते हैं कि किसी बड़ी घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक सीधे पहुँचाए जा सकें। इसके लिए मौके पर मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन ओ०बी० वैन के जरिये घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।

एंकर-पैकेज-एंकर-पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक जरिया है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, उससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के जरिये जरूरी सूचनाएँ आदि होती हैं। टेलीविजन लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर किया जाता है। जहाँ जैसी जरूरत होती है, वहाँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताकि वह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें निहित अर्थ को सामने लाए, ताकि खबर के सारे आशय खुल सकें।

अकसर टी०वी० पर खबर लिखने की एक प्रचलित शैली दिखाई पड़ती है। पहला वाक्य दृश्य के वर्णन से शुरू होता है; जैसे-दिल्ली के रामलीला मैदान में हो रही यह सभा ……। या फिर-झील में छलांग लगाते बच्चे……।

 

इस प्रचलित शैली में आसानी यह है कि बिना किसी कल्पनाशीलता के टी०वी० रिपोर्टिग का बुनियादी अनुशासन, यानी दृश्य पर लेखन निभ जाता है, लेकिन कोई कल्पनाशील रिपोर्टर इन्हीं दृश्यों को अपने शब्दों से ज्यादा बड़े मायने दे सकता है। जैसे-दिल्ली के रामलीला मैदान में हो रही इस सभा में लोग लाए नहीं, गए हैं, अपनी मर्जी से आए हैं। या फिर झील में छलांग लगाते बच्चों के शॉट्स के साथ लिखा जा सकता है-इन दिनों तेज गरमी से निजात पाने का एक तरीका यह भी है ……।

 

ध्वनियाँ-टी०वी० सिर्फ़ दृश्य और शब्द नहीं होता, बीच में होती हैं- ध्वनियाँ। टी०वी० में दृश्य और शब्द यानी विजुअल और वॉयस ओवर (वीओ) के साथ दो तरह की आवाजें और होती हैं। एक तो वे कथन या बाइट जो खबर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और वे प्राकृतिक आवाजें जो दृश्य के साथ-साथ चली आती हैं—यानी चिड़ियों का चहचहाना या फिर गाड़ियों के गुजरने की आवाजें या फिर किसी कारखाने में किसी मशीन के चलने की ध्वनि।

 

टी०वी० के लिए खबर लिखते हुए इन दोनों तरह की आवाजों का ध्यान रखना जरूरी है। पहली तरह की आवाज़ यानी कथन या बाइट का तो खैर ध्यान रखा ही जाता है। अकसर टी०वी० की खबर बाइट्स के आस-पास ही बुनी जाती है। लेकिन यह काम पर्याप्त सावधानी से किया जाना चाहिए। कथनों से खबर तो बनती ही है, टी०वी० के लिए उसका फ़ॉर्म भी बनता है। बाइट सिर्फ़ किसी का बयान मात्र नहीं होते, जिन्हें खबर के बीच उसकी पुष्टिभर के लिए डाल दिया जाता है। वह दो वॉयस ओवर या दृश्यों का अंतराल भरने के लिए पुल का भी काम करता है।

 

लेकिन टी०वी० में सिर्फ़ बाइट या वॉयस ओवर ही नहीं होते, और भी ध्वनियाँ होती हैं। उन ध्वनियों से भी खबर बनती है। इसलिए किसी खबर का वॉयस ओवर लिखते हुए, उसमें शॉट्स के मुताबिक ध्वनियों के लिए गुंजाइश छोड़ देनी चाहिए। टी०वी० में ऐसी ध्वनियों को नेट या नेट साउंड यानी प्राकृतिक आवाजें कहते हैं-यानी वे आवाजें जो शूट करते समय खुद-ब-खुद चली आती हैं। जैसे रिपोर्टर किसी आंदोलन की खबर ला रहा हो, जिसमें खूब नारे लगे हों। वह अगर सिर्फ़ इतना बताकर निकल जाता है कि उसमें कई नारे लगे और उसके बाद किसी नेता की बाइट का इस्तेमाल कर लेता है तो यह अच्छी खबर का नमूना नहीं कहलाएगा। उसे नारे लगते हुए आंदोलनकारियों को भी दिखाना होगा और इसकी गुंजाइश अपने वीओ में छोड़नी चाहिए।

 

रेडियो और टेलीविजन समाचार की भाषा तथा शैली

रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत जैसे विकासशील देश में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मजदूर तक सभी होते हैं। इन सभी लोगों की सूचना की जरूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी०वी० का उद्देश्य है। जाहिर है कि लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी की समझ में आसानी से आ सके, लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और उसकी गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े।

 

रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों में आपसी बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए-

 

वाक्य छोटे, सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।

जब भी कोई खबर लिखनी हो तो पहले उसकी प्रमुख बातों को ठीक से समझ लेना चाहिए।

हम कितनी सरल, संप्रेषणीय और प्रभावी भाषा लिख रहे हैं, यह जाँचने का एक बेहतर तरीका यह है कि हम समाचार लिखने के बाद उसे बोल-बोलकर पढ़ लें।

भाषा प्रवाहमयी होनी चाहिए।

सावधानियाँ

रेडियो और टी०वी० समाचार में भाषा और शैली के स्तर पर काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है-

 

ऐसे कई शब्द हैं, जिनका अखबारों में धडल्ले से इस्तेमाल होता है लेकिन रेडियो और टी०वी० में उनके प्रयोग से बचा जाता है। जैसे-निम्नलिखित, उपयुक्त, अधोहस्ताक्षरित और क्रमाक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है। इसी तरह ‘ द्वारा ‘शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है; जैसे-‘पुलिस दवारा चोरी करते हुए दो व्यक्तियों को पकड़ लिया गया।’ इसकी बजाय ‘पुलिस ने दो व्यक्तियों को चोरी करते हुए पकड़ लिया।’ ज्यादा स्पष्ट है।

तथा, एव, अथवा, , किंतु, परतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।

साफ़-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैरजरूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए। इनसे भाषा कई बार बोझिल होने लगती है।

मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है, इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए। लेकिन मुहावरों का इस्तेमाल स्वाभाविक रूप से और जहाँ जरूरी हो, वहीं होना चाहिए अन्यथा वे भाषा के स्वाभाविक प्रवाह को बाधित करते हैं।

वाक्य छोटे-छोटे हों। एक वाक्य में एक ही बात कहनी चाहिए।

वाक्यों में तारतम्य ऐसा हो कि कुछ टूटता या छूटता हुआ न लगे।

शब्द प्रचलित हों और उनका उच्चारण सहजता से किया जा सके। क्रय-विक्रय की जगह खरीदारी-बिक्री, स्थानांतरण की जगह तबादला और पंक्ति की जगह कतार टी०वी० में सहज माने जाते हैं।

4. इंटरनेट

 

इंटरनेट को इंटरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। नई पीढ़ी के लिए अब यह एक आदत-सी बनती जा रही है। जो लोग इंटरनेट के अभ्यस्त हैं या जिन्हें चौबीसो घंटे इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें अब कागज पर छपे हुए अखबार उतने ताजे और मनभावन नहीं लगते। उन्हें हर घंटे-दो घंटे में खुद को अपडेट करने की लत लगती जा रही है।

 

भारत में कंप्यूटर साक्षरता की दर बहुत तेजी से बढ़ रही है। पर्सनल कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या में भी लगातार इजाफ़ा हो रहा है। हर साल करीब 50-55 फ़ीसदी की रफ़्तार से इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या बढ़ रही है। इसकी वजह यह है कि इटरनेट पर आप एक ही झटके में झुमरीतलैया से लेकर होनोलूलू तक की खबरें पढ़ सकते हैं। दुनियाभर की चर्चाओं-परिचर्चाओं में शरीक हो सकते हैं और अखबारों की पुरानी फ़ाइलें खंगाल सकते हैं।

 

इंटरनेट एक टूल ही नहीं और भी बहुत कुछ है-

इंटरनेट सिर्फ़ एक टूल यानी औजार है, जिसे आप सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औजार है, वहीं वह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी जरिया है। इंटरनेट पर पत्रकारिता के भी दो रूप हैं।

 

पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औजार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ईमेल के जरिये भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन तथा पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है। रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है।

 

टेलीविजन या अन्य समाचार माध्यमों में खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने या किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फ़ाइलों को ढूँढ़ना पड़ता था, वहीं आज चंद मिनटों में इंटरनेट विश्वव्यापी संजाल के भीतर से कोई भी बैकग्राउंडर या पृष्ठभूमि खोजी जा सकती है। एक जमाना था जब टेलीप्रिंटर पर एक मिनट में 80 शब्द एक जगह से दूसरी जगह भेजे जा सकते थे, आज स्थिति यह है कि एक सेकेंड में 56 किलोबाइट यानी लगभग 70 हजार शब्द भेजे जा सकते हैं।

 

इंटरनेट पत्रकारिता

इंटरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर किसी भी रूप में खबरों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फ़ीचर, झलकियों, डायरियों के जरिये अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दर्ज करने का काम करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। आज तमाम प्रमुख अखबार पूरे-के-पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई प्रकाशन-समूहों ने और कई निजी कंपनियों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है। चूँकि यह एक अलग माध्यम है, इसलिए इस पर पत्रकारिता का तरीका भी थोड़ा-सा अलग है।

 

इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास

विश्व स्तर पर इंटरनेट पत्रकारिता के स्वरूप और विकास का पहला दौर था 1982 से 1992 तक, जबकि चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता 2002 से अब तक की है। पहले चरण में इंटरनेट खुद प्रयोग के धरातल पर था, इसलिए बड़े प्रकाशन-समूह यह देख रहे थे कि कैसे अखबारों की सुपर इन्फॉर्मेशन-हाईवे पर दर्ज हो। तब एओएल यानी अमेरिका ऑनलाइन जैसी कुछ चर्चित कंपनियाँ सामने आई। लेकिन कुल मिलाकर प्रयोगों का दौर था।

 

सच्चे अर्थों में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरुआत 1983 से 2002 के बीच हुई। इस दौर में तकनीक स्तर पर भी इंटरनेट का जबरदस्त विकास हुआ। नई वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट माक्र्डअप लैंग्वेज) आई, इंटरनेट ईमेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम के ब्राउजर (वह औजार जिसके जरिये विश्वव्यापी जाल में गोते लगाए जा सकते हैं) आए। इन्होंने इंटरनेट को और भी सुविधासंपन्न और तेज-रफ़्तार वाला बना दिया। इस दौर में लगभग सभी बड़े अखबार और टेलीविजन समूह विश्वजाल में आए।

 

न्यूयॉर्क टाइम्स’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘सीएनएन’, ‘बीबीसी’ सहित तमाम बड़े घरानों ने अपने प्रकाशनों, प्रसारणों के इंटरनेट संस्करण निकाले। दुनियाभर में इस बीच इंटरनेट का काफ़ी विस्तार हुआ। न्यू मीडिया के नाम पर डॉटकॉम कंपनियों का उफ़ान आया, पर उतनी ही तेजी के साथ इसका बुलबुला फूटा भी। सन 1996 से 2002 के बीच अकेले अमेरिका में ही पाँच लाख लोगों को डॉटकॉम की नौकरियों से हाथ धोना पड़ा। विषय सामग्री और पर्याप्त आर्थिक आधार के अभाव में ज्यादातर डॉटकॉम कंपनियाँ बंद हो गई।

 

लेकिन यह भी सही है कि बड़े प्रकाशन-समूहों ने इस दौर में भी खुद को किसी तरह जमाए रखा। चूँकि जनसंचार के क्षेत्र में सक्रिय लोग यह जानते थे कि और चाहे जो हो, सूचनाओं के आदान-प्रदान के माध्यम के तौर पर इंटरनेट का कोई जवाब नहीं। इसलिए इसकी प्रासंगिकता हमेशा बनी रहेगी। इसलिए कहा जा रहा है कि इंटरनेट पत्रकारिता का 2002 से शुरू हुआ तीसरा दौर सच्चे अथों में टिकाऊ हो सकता हैं।

 

भारत में इंटरनेट पत्रकारिता

भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर सन 2003 से शुरू हुआ है। पहले दौर में हमारे यहाँ भी प्रयोग हुए। डॉटकॉम का तूफान आया और बुलबुले की तरह फूट गया। अंतत: वही टिके रह पाए जो मीडिया उद्योग में पहले से ही टिके हुए थे। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडी टी०वी०’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक ‘ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे” जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं।

 

जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडी टी०वी० ‘, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं। लेकिन भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रीडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रीडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।

 

हिंदी नेट संसार

हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के ‘नई दुनिया समूह’ से शुरू हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबारों ने भी विश्वजाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नई दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण शुरू हुए। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ़ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है, जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है। वेब दुनिया ने शुरू में काफी आशाएँ जगाई थीं, लेकिन धीरे-धीरे स्टाफ़ और साइट की अपडेटिंग में कटौती की जाने लगी, जिससे पत्रकारिता की वह ताजगी जाती रही जो शुरू में नजर आती थी।

 

हिंदी वेबजगत का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर हिंदी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशव काल में ही है। सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फ़ौंट की है। अभी भी हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’ नहीं है। डायनमिक फ़ौंट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की ज्यादातर साइटें खुलती ही नहीं हैं। इसके लिए ‘की-बोर्ड’ का मानकीकरण करना चाहिए।

 

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

 

प्रश्न 1:

नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर () का निशान लगाइए :

(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि

 

इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है।

इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं।

इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है।

इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।

उत्तर –

4. इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन ही होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।

 

(ख) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है-

 

विजुअल

नेट

बाइट

उपर्युक्त सभी

उत्तर –

4. उपर्युक्त सभी।

 

(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो-

 

जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो।

जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके।

जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो।

जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो।

उत्तर –

2. जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके।

 

प्रश्न 2:

विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट-से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को लिखते हुए एक तालिका तैयार करें।

उत्तर –

 

माध्यम खूबियाँ (विशेषताएँ)         खामियाँ (कमियों)

प्रिंट          1. छपाई के कारण शब्दों में स्थायित्वा।   1. निरक्षरों के लिए अनुपयोगी।

  2. रुचि एवं इच्छानुसार समय मिलने पर पढना।                2. घटना की तात्कालिक जानकारी न मिल पाना।

  3. संदर्भ की त्तरह प्रयोगा।             3. स्पेस का ध्यान रखना होता है।

  4. पढ़ते समय सोचने-समझने के लिए अपनी सुविधानुसार आजादी             4. छपी हुई त्रुटियों का निराकरण नहीं।

 

 

  5. इसकी भाषा अनुशासनपूर्ण होती है।      5. लेखक पाठक के शैक्षिक ज्ञान के अंतर्गत ही लिख सकता है।

रेडियों      1. कहीं भी सुना जा सकता है।    1. समाचारों पर विचार करते हुए रुक-रुककर नहीं सुना जा सकता।

  2. शब्दों का माध्यम है।                2. एकरेखीय माध्यम है।

  3. उलटा पिरामिड शैली में समाचार।         3. समाचार के समय का इंतजार करना पड़ता है।

  4. साक्षर-निरक्षर सभी के लिए समान से उपयोगी।            4. कम आकर्षका।

  5. रेडियों श्रोताओं रने संचालित माध्यम मना जाता है।     5. श्रोताओ को बाँधकर रखना प्रसारण कर्ताओं के लिए कठिन होता है।

टेलीविजन             1. देखने एबं सुनने का माध्यम।                1. घटनाओँ क्रो बढ़।-चढाकर दिखाना।

  2. सजीव प्रसारणा।           2. विज्ञापनों को अधिकता।

  3. ब्रेकिंग न्यूज को व्यवस्था।       3. निष्पक्षता संदिग्ध।

  4. आकर्षक माध्यम।        4. अत्यधिक बाजारोन्मुखा।

  5. कम-रने-कम शब्दों में अधिकतम खबरें पहुँचाने में समर्था।        5. मानक एवं शिष्ट भाया का अभाव।

इंटरनेट    1. हर समय समाचार एवं सूचनाएँ उपलब्ध।          1. अश्लीलता फैलाने वाला।

  2. अत्यंत तीव्र गति वाला माध्यम।           2. दुष्प्रचार का साधना।

  3. ज्ञान एवं मनोरंजन का अदृभुत खजाना।           3. महँगा साधना।

  4. समूचा अखबार इंटरनेट पर।    4. श्रामक खबरों का भरमार।

  5. साहित्यक पत्रकारिता हेतु उचित मंच।                5. हिंदी के किसी मानक फैंट का अभाव।

प्रश्न 3:

इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर –

जिस तरह से हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार इंटरनेट के भी दो पक्ष हैं। इसके द्वारा अर्थात इंटरनेट पत्रकारिता से हमें सूचनाएँ तत्काल उपलब्ध हो जाती हैं परंतु इसका दूसरा पक्ष उतना उजला नहीं है। इसके अनेक दुष्परिणाम भी हैं, जैसे-

 

यह समाज में अश्लीलता और गंदगी फैलाने का साधन है।

इसके कारण युवा अनैतिक कार्यों की ओर आकृष्ट हुए हैं।

यह दुष्प्रचार का साधन है।

यह अत्यंत महँगा साधन है।

प्रश्न 4:

श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन है? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।

उत्तर –

श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सात माध्या है-टी०वी०।

 

इसके पक्ष में प्रस्तुत तर्क निम्नलिखित हैं-

 

टी०वी० पर समाचार सुनाई देने के अलावा दिखाई भी देते हैं, जिससे यह दर्शकों को बाँधे रखता है।

सचित्र प्रसारण से समाचार अधिक तथ्यपरक और प्रामाणिक बन जाते हैं।

इससे साक्षर-निरक्षर दोनों ही तरह के दर्शक लाभान्वित होते हैं।

कम समय में अधिक समाचार दिखाए जा सकते हैं।

समाचारों को अलग-अलग रुचिकर ढंग से दर्शाया जाता है।

विपक्ष में प्रस्तुत तर्क-

 

टी०वी० समाचार सुनने और देखने का महँगा साधन है।

दूर-दराज और दुर्गम स्थानों पर अभी इसकी पहुँच नहीं है।

समाचार सुनने के लिए निश्चित समय का इंतजार करना पड़ता है।

इच्छानुसार रुककर सोच-विचार करते हुए अगले समाचार को नहीं सुना जा सकता।

प्रश्न 5:

नीचे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इनके आधार पर टी०वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।

ncert-solutions-class-12-hindi-core-janasanchaar-maadhyam-aur-lekhan-vibhinn-maadhyamon-ke-lie-lekhan(153-1)

उत्तर –

 

यह स्थान फुर्सत के दो पल बिताने लायक है। यह प्राकृतिक सौंदर्य एवं शांति से भरपूर है। पहाड़ की ऊँची-ऊँची चोटियाँ मानो आसमान को छू लेना चाहती हैं। आसमान नीले दर्पण जैसा है। नीचे विस्तृत झील में व्यक्ति को एक बड़ी-सी नाव चलाने का आनंद उठाते हुए देखा जा सकता है। खिले कमल से झील का सौंदर्य बढ़ गया है, पर मनुष्य ने लिफ़ाफ़े, खाली डिब्बे जैसे अपशिष्ट पदार्थ झील में फेंककर इसके सौंदर्य पर धब्बा लगाने में कसर नहीं छोड़ी है।

गर्मी आई नहीं कि जलसंकट बढ़ा और पानी की कमी का रोना शुरू। हम यह क्यों नहीं सोचते कि पानी की बर्बादी में भी तो मनुष्य का ही हाथ है। लोग नलों को खुला छोड़ देते हैं और बहते पानी को रोकने में कोई रुचि नहीं लेते। बहते नलों को बंद करना अपनी शान में कमी समझते हैं। पानी की इस बर्बादी को रोका जाना चाहिए। यह बर्बाद होता पानी किसी को जीवन दे सकता है। बढ़ते जलसंकट को कम करने के लिए सरकार के साथ-साथ लोगों को भी आगे आना होगा और मिल-जुलकर जलसंकट का हल खोजते हुए उस पर अमल करना होगा।

आज के बच्चे कल के नागरिक हैं। इन्हीं पर देश का भविष्य टिका है। पर इन बच्चों का क्या दोष, जिनकी कमर बस्ते के बोझ से टूटी जा रही है। बस्ते का वजन उनके वजन से भारी हो गया है। कमर सीधी करके चलना भी कठिन हो गया है। आज बच्चों की शिक्षा और उनके बस्ते का बोझ कम करने के लिए समय-समय पर सेमीनार आयोजित किए जाते हैं, पर स्थिति वही ढाक के तीन पात वाली ही है। प्रतियोगिता का समय होने की बात कहकर पुस्तकों की संख्या बढ़ा दी जाती है। बच्चों के लिए उनका यह निर्णय कितना भारी पड़ता है, इसकी चिंता किसी को नहीं है। पता नहीं हमारे देश के शिक्षाविदों को बच्चों के स्वास्थ्य का ध्यान कब आएगा?

अन्य हल प्रश्न

 

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

 

प्रश्न 1:

प्रमुख जनसंचार माध्यम कौन-से हैं?

उत्तर –

जनसंचार के प्रमुख माध्यम हैं-समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, फ़िल्म, टेलीविजन, रेडियो, टेलीफोन, इंटरनेट, पुस्तकें आदि।

 

प्रश्न 2:

प्रिंट माध्यम से आप क्या समझते हैं?

उत्तर –

संचार के जो साधन प्रिंट अर्थात छपे रूप में लोगों तक सूचनाएँ पहुँचाते हैं, उन्हें प्रिंट (मुद्रित) माध्यम कहा जाता है।

 

प्रश्न 3:

प्रिंट माध्यम के दो प्रमुख साधन कौन-कौन-से हैं?

उत्तर –

प्रिंट माध्यम के दो प्रमुख साधन है-

 

समाचार-पत्र,

पत्र-पत्रिकाएँ।

प्रश्न 4:

प्रिंट मीडिया (माध्यम) का महत्व हमेशा क्यों बना रहेगा?

उत्तर –

वाणी, विचारों, सूचनाओं, समाचारों आदि को लिखित रूप में रिकॉर्ड करने का आरंभिक साधन होने के कारण प्रिंट मीड़िया का महत्त्व हमेशा बना रहेगा।

 

प्रश्न 5:

पत्रकारिता किसे कहते हैं?

उत्तर –

प्रिंट (मुद्रित), रेडियो, टेलीविजन या इंटरनेट किसी भी माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहते हैं।

 

प्रश्न 6:

भारत में अखबारी पत्रकारिता की शुरुआत कब और कहाँ से हुई?

उत्तर –

भारत में अखबारी पत्रकारिता की शुरुआत सन 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गजट’ से हुई जो कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) से निकला था।

 

प्रश्न 7:

हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र कौन-सा था? इसके संपादक कौन थे?

उत्तर –

हिंदी का पहला साप्ताहिक ‘उदत मार्तड’ था, जिसके संपादक पं० जुगल किशोर शुक्ल थे।

 

प्रश्न 8:

स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व पत्रकारिता एक मिशन थी, कैसे?

उत्तर –

स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व पत्रकारिता का एक ही लक्ष्य था-स्वतंत्रता की प्राप्ति। इस प्रकार पत्रकारिता एक मिशन थी।

 

प्रश्न 9:

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद पत्रकारिता में किस प्रकार का बदलाव आया?

उत्तर –

स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद शुरू के दो दशकों तक पत्रकारिता राष्ट्र-निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध थी, पर बाद में उसका चरित्र व्यावसायिक (प्रोफेशनल) होने लगा।

 

प्रश्न 10:

भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला?

उत्तर –

भारत में पहला छापाखाना 1556 ई० में गोवा में खुला।

 

प्रश्न 11:

किन्हीं दो समाचार एजेंसियों के नाम लिखिए।

उत्तर –

 

पी० टी०आई०

यू०एन०आई०।

प्रश्न 12:

ड्राई एंकर किसे कहते हैं?

उत्तर –

जब एंकर खबर के बारे में सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ तथा जब तक खबर के दृश्य नहीं आते एंकर, दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है, उसे ‘ड्राई एंकर’ कहते हैं।

 

प्रश्न 13:

फोन-इन का आशय समझाइए। या फोन-इन क्या है?

उत्तर –

फोन-इन वे सूचनाएँ या समाचार होते हैं, जिन्हें एंकर रिपोर्टर से फोन पर बातें करके दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें

 

रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है।

 

प्रश्न 14:

एंकर-बाइट किसे कहते हैं?

उत्तर –

एंकर-बाइट का अर्थ है-कथन। टेलीविजन में किसी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखाकर और सुनाकर समाचारों को प्रामाणिकता प्रदान करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

 

प्रश्न 15:

एंकर-पैकेज किसे कहते हैं?

उत्तर –

पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता से पेश करने का साधन होता है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, लोगों की बाइट, ग्राफिक से जुड़ी सूचनाएँ आदि होती हैं।

 

प्रश्न 16:

रेडियो पर प्रसारण के लिए तैयार की जाने वाली समाचार कॉपी की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर –

रेडियो पर प्रसारण के लिए तैयार की जाने वाली समाचार कॉपी में एक पंक्ति में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए। वाक्यों में जटिल, उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक से दस तक के अंकों को शब्दों में तथा 11 से 999 तक को अंकों में लिखा जाना चाहिए।

 

प्रश्न 17:

प्रिंट मीडिया के लाभ कौन-कौन-से हैं?

उत्तर –

 

प्रिंट मीडिया को धीरे-धीरे, दुबारा या मजी के अनुसार पढ़ा जा सकता है।

किसी भी पृष्ठ या समाचार को पहले या बाद में पढ़ा जा सकता है।

इन्हें सुरक्षित रखकर संदर्भ की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।

प्रश्न 18:

डेड लाइन किसे कहते है?

उत्तर –

सपित्र-पित्रकओं में समार या रिपार्टप्रकश हेतुज सायसीमा नितिक जता है,उसे “डेड लाइन’ कहते हैं।

 

प्रश्न 19:

प्रिंट माध्यम के लेखकों को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

उत्तर –

प्रिंट माध्यम के लेखकों को (i) समय-सीमा (डेड लाइन), (ii) शब्द-सीमा तथा (iii) अशुद्धयों का ध्यान रखना चाहिए।

 

प्रश्न 20:

मुद्रित (प्रिंट) माध्यम की सीमा (कमजोरियों) का उल्लेख कीजिए।

उत्तर –

प्रिंट माध्यम निरक्षरों के लिए बेकार की वस्तु है। इसके अलावा वे किसी घटना को खबर एक निश्चित समय बाद ही है सकते हैं।

 

प्रश्न 21:

एनकोडिंग से आप क्या समझते हैं?

उत्तर –

संदेश को भेजने के लिए शब्दों, संकेतों या ध्वनि-चिहनों का उपयोग किया जाता है। भाषा भी एक प्रकार का कूट-चिहन या कोड है। अत: प्राप्तकर्ता को समझाने योग्य कूटों में संदेश बाँधना ‘कूटीकरण’ या ‘एनकोडिंग’ कहलाता है।

 

प्रश्न 22:

ब्रेकिंग न्यूज का क्या आशय है?

उत्तर –

ब्रेकिंग न्यूज का दूसरा नाम फ़्लैश भी है। इसके अंतर्गत अत्यंत महत्वपूर्ण या बड़े समाचार को कम-से-कम शब्दों में दर्शकों तक तत्काल पहुँचाया जाता है, जैसेनेपाल में आया भीषण भूकंप। दो रेलगाड़ियों में टक्कर, दस मरे, सैकड़ों घायल।

 

प्रश्न 23:

पत्रकारीय लेखन में सर्वाधिक महत्व किस बात का है?

उत्तर –

पत्रकारीय लेखन में सर्वाधिक महत्व समसामयिक घटनाओं की जानकारी शीघ्र देने का है।

 

प्रश्न 24:

अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय क्यों है? एक मुख्य कारण लिखिए।

उत्तर –

अखबार अन्य माध्यमों से अधिक लोकप्रिय इसलिए है, क्योंकि छपा हुआ होने के कारण इसमें स्थायित्व है। इसे अपनी इच्छनसार कहीं भी, कभी भी पढ़ा जा सकता है।

 


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