Monday 1 February 2021

गज़ल-दुष्यंत कुमार

 



गज़ल-दुष्यंत कुमार

कवि परिचय

  • जीवन परिचय-दुष्यंत कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के राजपुर नवादा गाँव में 1933 ई में हुआ। इनके बचपन का नाम दुष्यंत नारायण था। प्रयाग विश्वविद्यालय से इन्होंने एम. ए. किया तथा यहीं से इनका साहित्यिक जीवन आरंभ हुआ। वे वहाँ की साहित्यिक संस्था परिमल की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे और नए पते जैसे महत्वपूर्ण पत्र के साथ भी जुड़े रहे। उन्होंने आकाशवाणी और मध्यप्रदेश के राजभाषा विभाग में काम किया। अल्पायु में इनका निधन 1975 ई. में हो गया।
  • रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
  • काव्य-सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप, जलते हुए वन का वसंत।
  • गीति-नाट्य-एक कंठ विषपायी।
  • उपन्यास-छोटे-छोटे सवाल, आँगन में एक वृक्ष, दोहरी जिंदगी।
  • साहित्यिक विशेषताएँ-दुष्यंत कुमार की साहित्यिक उपलब्धियाँ अद्भुत हैं। इन्होंने हिंदी में गजल विधा को प्रतिष्ठित किया। इनके कई शेर साहित्यिक एवं राजनीतिक जमावड़ों में लोकोक्तियों की तरह दुहराए जाते हैं। साहित्यिक गुणवत्ता से समझौता न करते हुए भी इन्होंने लोकप्रियता के नए प्रतिमान कायम किए। गजल के बारे में वे लिखते हैं- “मैं स्वीकार करता हूँ कि गजल को किसी की भूमिका की जरूरत नहीं होती. मैं प्रतिबद्ध कवि हूँ. यह प्रतिबद्धता किसी पार्टी से नहीं, आज के मनुष्य से है और मैं जिस आदमी के लिए लिखता हूँ. यह भी चाहता हूँ कि वह आदमी उसे पढ़े और समझे।”
  • इनकी गजलों में तत्सम शब्दों के साथ उर्दू के शब्दों का काफी प्रयोग किया है; जैसेमेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही।
  • हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
  • ‘एक कंठ विषपायी’ शीर्षक गीतिनाट्य हिंदी साहित्य की एक महत्वपूर्ण व बहुप्रशंसित कृति है।
  • कविता का सारांश

  • ‘साये में धूप‘ गजल संग्रह से यह गजल ली गई है। गजल का कोई शीर्षक नहीं दिया जाता, अत: यहाँ भी उसे शीर्षक न देकर केवल गजल कह दिया गया है। गजल एक ऐसी विधा है जिसमें सभी शेर स्वयं में पूर्ण तथा स्वतंत्र होते हैं। उन्हें किसी क्रम-व्यवस्था के तहत पढ़े जाने की दरकार नहीं रहती। इसके बावजूद दो चीजें ऐसी हैं जो इन शेरों को आपस में गूँथकर एक रचना की शक्ल देती हैं-एक, रूप के स्तर पर तुक का निर्वाह और दो, अंतर्वस्तु के स्तर पर मिजाज का निर्वाह। इस गजल में पहले शेर की दोनों पंक्तियों का तुक मिलता है और उसके बाद सभी शेरों की दूसरी पंक्ति में उस तुक का निर्वाह होता है। इस गजल में राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश को मान्यता देने का भाव प्रमुख बिंदु है।
  •  
  • कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य करता है कि वे हर घर में चिराग उपलब्ध कराने का वायदा करते हैं, पंरतु यहाँ तो पूरे शहर में भी एक चिराग नहीं है। कवि को पेड़ों के साये में धूप लगती है अर्थात् आश्रयदाताओं के यहाँ भी कष्ट मिलते हैं। अत: वह हमेशा के लिए इन्हें छोड़कर जाना ठीक समझता है। वह उन लोगों के जिंदगी के सफर को आसान बताता है जो परिस्थिति के अनुसार स्वयं को बदल लेते हैं। मनुष्य को खुदा न मिले तो कोई बात नहीं, उसे अपना सपना नहीं छोड़ना चाहिए। थोड़े समय के लिए ही सही. हसीन सपना तो देखने को मिलता है। कुछ लोगों का विश्वास है कि पत्थर पिघल नहीं सकते। कवि आवाज के असर को देखने के लिए बेचैन है। शासक शायर की आवाज को दबाने की कोशिश करता है, क्योंकि वह उसकी सत्ता को चुनौती देता है। कवि किसी दूसरे के आश्रय में रहने के स्थान पर अपने घर में जीना चाहता है।

  • व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  • 1.

  • कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
  • कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
  • यहाँ दरखतों के साय में धूप लगती है,
  • चलो यहाँ से चल और उम्र भर के लिए।

  • शब्दार्थ
  • तय-निश्चित। चिराग-दीपक। हरेक-प्रत्येक। मयस्सर-उपलब्ध। दरख्त-पेड़। साये-छाया। धूप-कष्ट, रोशनी। उप्रभर-जीवन भर।
  • प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत हैं। यह गजल दुष्यंत कुमार द्वारा रचित है। यह उनके गजल संग्रह ‘साये में धूप’ से ली गई है। इस गजल का केंद्रीय भाव है-राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करना और नए विकल्प की तलाश करना। व्याख्या-कवि कहता है कि नेताओं ने घोषणा की थी कि देश के हर घर को चिराग अर्थात् सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करवाएँगे। आज स्थिति यह है कि शहरों में भी चिराग अर्थात् सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। नेताओं की घोषणाएँ कागजी हैं। दूसरे शेर में, कवि कहता है कि देश में अनेक संस्थाएँ हैं जो नागरिकों के कल्याण के लिए काम करती हैं। कवि उन्हें ‘दरख्त’ की संज्ञा देता है। इन दरख्तों के नीचे छाया मिलने की बजाय धूप मिलती है अर्थात् ये संस्थाएँ ही आम आदमी का शोषण करने लगी हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है। कवि इन सभी व्यवस्थाओं से दूर रहकर अपना जीवन बिताना चाहता है। ऐसे में आम व्यक्ति को निराशा होती है।

  • विशेष-

  • कवि ने आजाद भारत के कटु सत्य का वर्णन किया है। नेताओं के झूठे आश्वासन व संस्थाओं द्वारा आम आदमी के शोषण के उदाहरण आए दिन मिलते हैं।
  • चिराग, मयस्सर, दरखत, साये आदि उर्दू शब्दों के प्रयोग से भाव में गहनता आई है।
  • खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
  • ‘चिराग’ व ‘दरख्त’ आशा व सुव्यवस्था के प्रतीक हैं।
  • अंतिम पंक्ति में निराशा व पलायनवाद की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
  • लक्षणा शक्ति का निर्वाह है।
  • ‘साये में धूप लगती है’ में विरोधाभास अलंकार है।
  • अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  • आजादी के बाद क्या तय हुआ था?
  • आज की स्थिति के विषय में कवि क्या बताना चाहता है?
  • कवि के पलायनवादी बनने का कारण बताइए।
  • कवि ने किस व्यवस्था पर कटाक्ष किया है? इसका जनसामान्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  • उत्तर –

  • आजादी के बाद नेताओं ने जनता को यह आश्वासन दिया था कि हर घर में सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी।
  • आज स्थिति बेहद निराशाजनक है। प्रत्येक घर की बात छोड़िए, पूरे शहर में कहीं भी जनसुविधाएँ नहीं हैं, लोगों का निर्वाह मुश्किल से होता है।
  • कवि कहता है कि प्रशासन की अनेक संस्थाएँ लोगों का कल्याण करने की बजाय उनका शोषण कर रही हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है। इस कारण वह इस भ्रष्ट-तंत्र से दूर जाना चाहता है।
  • कवि ने नेताओं की झूठी घोषणाओं तथा भ्रष्ट शासन पर करारा व्यंग्य किया है। झूठी घोषणाओं तथा भ्रष्टाचार के कारण आम व्यक्ति में घोर निराशा फैली हुई है।
  • 2.

  • न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढक लगे,
  • ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।
  • खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
  • कोई हसीन नजारा तो हैं नजर के लिए।

  • शब्दार्थ
  • मुनासिब-अनुकूल, उपयुक्त। सफ़र-रास्ता। खुदा-भगवान। ख्वाब-सपना। हसीन-सुंदर। नजारा-दृश्य। नजर-देखना, आँख।
  • प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत हैं। यह गजल दुष्यंत कुमार द्वारा रचित है। यह उनके गजल संग्रह ‘साये में धूप’ से ली गई है। इस गजल का केंद्रीय भाव है-राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करना और नए विकल्प की तलाश करना। व्याख्या-कवि आम व्यक्ति के विषय में बताता है कि ये लोग गरीबी व शोषित जीवन को जीने पर मजबूर हैं। यदि । इनके पास वस्त्र भी न हों तो ये पैरों को मोड़कर अपने पेट को ढँक लेंगे। उनमें विरोध करने का भाव समाप्त हो चुका है। ऐसे लोग ही शासकों के लिए उपयुक्त हैं, क्योंकि इनके कारण उनका राज शांति से चलता है। दूसरे शेर में, कवि कहता है कि संसार में भगवान नहीं है तो कोई बात नहीं। आम आदमी का वह सपना तो है। कहने का तात्पर्य है कि ईश्वर मानव की कल्पना तो है ही। इस कल्पना के जरिये उसे आकर्षक दृश्य देखने के लिए मिल जाते हैं। इस तरह उनका जीवन कट जाता है।

  • विशेष-

  • कवि ने भारतीयों में विरोध-भावना का न होना तथा खुदा को कल्पना माना है।
  • ‘पाँवों से पेट ढँकना’ नयी कल्पना है।
  • उर्दू मिश्रित खड़ी बोली है।
  • ‘सफ़र’ जीवन यात्रा का पर्याय है।
  • संगीतात्मकता है।
  • ‘सफ़र’ जीवन यात्रा का पर्याय है।
  • संगीतात्मकता है।
  • अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  • पाँवों से पेट ढंकने का अर्थ स्पष्ट करें।
  • पहले शेर के अनुसार सरकार किनसे खुश रहती है और क्यों?
  • खुदा के बारे में कवि क्या व्यंग्य करता है? इसका आम आदमी के जीवन पर क्या असर होता है?
  • भारतीयों का भगवान के साथ कैसा संबंध होता है?
  • उत्तर –

  • इसका अर्थ यह है कि गरीबी व शोषण के कारण लोगों में विरोध करने की क्षमता समाप्त हो चुकी है। वे न्यूनतम वस्तुएँ उपलब्ध न होने पर भी अपना गुजारा कर लेते हैं।
  • सरकार ऐसे लोगों से खुश रहती है जो उसके कार्यों का विरोध न करें। ऐसे लोगों के कारण ही सरकार निरंकुश हो मनमाने फैसले लेती है जिसमें उसकी भलाई तथा जनता का शोषण निहित रहता है।
  • खुदा के बारे में कवि व्यंग्य करता है कि खुदा का अस्तित्व नहीं है। यह मात्र कल्पना है, आम आदमी ईश्वर के बारे में लुभावनी कल्पना करता है, इसी कल्पना के सहारे उसका जीवन कट जाता है।
  • भारतीय लोग ईश्वर के अस्तित्व में पूरा विश्वास नहीं रखते, परंतु इसके बहाने उन्हें सुंदर दृश्य देखने को मिलते हैं। इनकी कल्पना करके वे अपना जीवन जीते हैं।
  • 3.

  • वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
  • मैं बकरार हूँ आवाज में असर के लिए।
  • तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,

  • ये एहतियात जरूरी हैं इस बहर के लिए।
  • जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
  • मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

  • शब्दार्थ
  • मुतमइन-आश्वस्त। बेकरार-बेचैन। आवाज़-वाणी। असर-प्रभाव। निजाम-शासक। सिलदे-बंद कर देना। जुबान-आवाज। शायर-कवि। एहतियात-सावधानी। बहर-शेर का छद। गुलमोहर-एक प्रकार के फूलदार पेड़ का नाम। गैर-अन्य। गलियों-रास्ते।
  • प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘गज़ल’ से उद्धृत हैं। यह गजल दुष्यंत कुमार द्वारा रचित है। यह उनके गजल संग्रह ‘साये में धूप’ से ली गई है। इस गजल का केंद्रीय भाव है-राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है, उसे खारिज करना और नए विकल्प की तलाश करना।
  • व्याख्या-पहले शेर में कवि आम व्यक्ति के विश्वास की बात बताता है। आम व्यक्ति को विश्वास है कि भ्रष्ट व्यक्तियों के दिल पत्थर के होते हैं। उनमें संवेदना नहीं होती । कवि को इसके विपरीत इंतजार है कि इन आम आदमियों के स्वर में असर (क्रांति की चिनगारी) हो। इनकी आवाज बुलंद हो तथा आम व्यक्ति संगठित होकर विरोध करें तो भ्रष्ट व्यक्ति समाप्त हो सकते हैं। दूसरे शेर में, कवि शायरों और शासक के संबंधों के बारे में बताता है। शायर सत्ता के खिलाफ लोगों को जागरूक करता है। इससे सत्ता को क्रांति का खतरा लगता है। वे स्वयं को बचाने के लिए शायरों की जबान अर्थात् कविताओं पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। जैसे गजल के छद के लिए बंधन की सावधानी जरूरी है, उसी तरह शासकों को भी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए विरोध को दबाना जरूरी है। तीसरे शेर में, शायर कहता है कि जब तक हम अपने बगीचे में जिएँ, गुलमोहर के नीचे जिएँ और जब मृत्यु हो तो दूसरों की गलियों में गुलमोहर के लिए मरें। दूसरे शब्दों में, मनुष्य जब तक जिएँ, वह मानवीय मूल्यों को मानते हुए शांति से जिएँ। दूसरों के लिए भी इन्हीं मूल्यों की रक्षा करते हुए बाहर की गलियों में मरें।

  • विशेष-

  • कवि सामाजिक क्रांति के लिए बेताब है, साथ ही वह मानवीय मूल्यों का संस्थापक एवं रक्षक भी है।
  • ‘पत्थर पिघल नहीं सकता’ से स्वेच्छाचारी शासकों की ताकत का पता चलता है।
  • ‘पत्थर पिघल’ में अनुप्रास अलंकार है।
  • ‘गुलमोहर’ का प्रतीकात्मक अर्थ है।
  • उर्दू शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  • ‘मैं’ और ‘तू की शैली प्रभावी है।
  • अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

  • ‘वे’ कौन हैं तथा उनकी सोच क्या है?
  • कवि किसके लिए बेकरार है?
  • शासक किस कोशिश में रहता है?
  • शायर की हसरत क्या है?
  • उत्तर –

  • ‘वे’ आम व्यक्ति हैं। उनकी सोच है कि भ्रष्ट शासकों के कारण समस्याएँ कभी नहीं समाप्त होंगी।
  • कवि का मानना है कि आवाज में प्रभाव हो तो पत्थर भी पिघल जाते हैं। वह क्रांति का समर्थक है।
  • शासक इस कोशिश में रहते हैं कि उनके खिलाफ विद्रोह की आवाज को दबा दिया जाए।
  • शायर की हसरत है कि वह बगीचे में सदैव गुलमोहर के नीचे रहे तथा मरते समय गुलमोहर के लिए दूसरों की गलियों में मरे अर्थात् वह मानवीय मूल्यों को अपनाए रखे तथा उनकी रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दे।
  • काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न

  • 1.

  • कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
  • कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए।
  • यहाँ दरखतों के साय में धूप लगती है,
  • चलो यहाँ से चल और उम्र भर के लिए।

  • प्रश्न

  • भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
  • शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालें।
  • उत्तर –

  • कवि ने राजनेताओं की झूठी घोषणाओं व सरकारी संस्थाओं के भ्रष्ट तंत्र पर व्यंग्य किया है। वह आजादी के बाद के भारत में आम व्यक्ति की निराशा को व्यक्त करता है।
  • प्रतीकों का सुंदर प्रयोग है। ‘चिराग’ व ‘दरख्त’ क्रमश: आशा व सुव्यवस्था के प्रतीक हैं।
  • ‘चिराग’, मयस्सर, दरख्त, साये, उम्र, आदि उर्दू  शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  • भाषा में प्रवाह है।
  • ‘साये में धूप’ विरोधाभास अलंकार है।
  • शांत रस है।
  • संगीतात्मकता विद्यमान है।
  • 2.

  • न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढक लगे,
  • ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।

  • प्रश्न

  • गजल क्या है?
  • शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।
  • उत्तर –

  • गजल वह विधा है जिसमें सभी शेर अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते हैं। इसका शीर्षक नहीं होता। हर शेर अपने आप में पूर्ण होता है।
  • शोषित वर्ग की पीड़ा को व्यक्त किया है।
  • ‘पाँवों से पेट ढँकना’ की कल्पना अनूठी व नयी है।
  • ‘मुनासिब’, ‘सफ़र’ आदि उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
  • खड़ी बोली में सजीव अभिव्यक्ति है।
  • ‘सफ़र’ जीवन यात्रा का प्रतीक है।
  • संगीतात्मकता है।

  • कॉपी में करने के लिए-
  • प्रश्न 1:
  • आखिरी शेर में गुलमोहर की चर्चा हुई है। क्या उसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से है या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित है। समझाकर लिखें।
  • उत्तर –
  • अंतिम शेर में गुलमोहर का शाब्दिक अर्थ तो एक खास फूलदार वृक्ष से ही है, पर सांकेतिक अर्थ बड़ा मार्मिक है। इस शेर में कवि दुष्यंत कुमारे यह बताना चाहते हैं कि जीवन वही उत्तम है जो अपने घर की सुखद छाया में है और मरना वह उत्तम है कि दूसरों को सुख देने के लिए मरा जा सके।

  • प्रश्न 2:
  • पहले शेर में ‘चिराग’ शब्द एक बार बहुवचन में आया है और दूसरी बार एकवचन में। अर्थ एवं काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से इसका क्या महत्व है?
  • उत्तर –
  • पहले शेर में ‘चिराग’ शब्द का बहुवचन, ‘चिरागाँ’ का प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ था-बहुत-सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करवाना, दूसरी बार यह एकवचन में प्रयुक्त हुआ है। इसमें इसका अर्थ है-सीमित सुविधाएँ मिलना। दोनों का अपना महत्व है। बहुवचन के रूप में यह कल्पना को बताता है, जबकि दूसरा रूप यथार्थ को दर्शाता है। कवि ने एक ही शब्द का प्रतीकात्मक व लाक्षणिक शब्द करके अपनी अद्भुत कल्पना क्षमता का परिचय दिया है।

  • प्रश्न 3:
  • गजल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें। यहाँ दुष्यंत का इशारा किस तरह के लोगों की ओर है?
  • उत्तर –
  • न हो कमीज़ तो पावों से पेट बँक लेंगे,
  • ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए।
  • यहाँ उन लोगों की ओर इशारा किया गया है जो हीनता और तंगहाली अथवा अभाव के समय तन ढकने के लिए कमीज़ पाने का प्रयास नहीं करते वरन् उस अभावग्रस्त दशा में अपने पैरों से पेट ढककर जीवन जी लेते हैं। उनके लिए मुनासिब शब्द का प्रयोग करता हुआ कवि यह भी स्पष्ट कर देना चाहता है कि जीवन की यह शैली अपनानेवाले ही आज जी सकते हैं।

  • प्रश्न 4:
  • आशय स्पष्ट करें:
  • तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
  • ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।
  • उत्तर –
  • इसमें कवि शायरों और शासक के संबंधों के बारे में बताता है। शायर सत्ता के खिलाफ लोगों को जागरूक करता है। इससे सत्ता को क्रांति का खतरा लगता है। वे स्वयं को बचाने के लिए शायरों की जबान अर्थात् कविताओं पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। जैसे गजल के छद के लिए बंधन की सावधानी जरूरी है, उसी तरह शासकों को भी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए विरोध को दबाना जरूरी है।
  • प्रश्न 5:
  • ‘गजल’ का प्रतिपाद्य लिखिए।
  • उत्तर –
  • ‘गजल” नामक इस विधा में कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य करता है कि वे हर घर में चिराग उपलब्ध कराने का वायदा करते हैं, परंतु यहाँ तो शहर में ही चिराग नहीं है। कवि को पेड़ों के साये में धूप लगती है अर्थात् आश्रयदाताओं के यहाँ भी कष्ट मिलते हैं। अत: वह हमेशा के लिए इन्हें छोड़कर जाना ठीक समझता है। वह उन लोगों के जिंदगी के सफर को आसान बताता है जो परिस्थिति के अनुसार स्वयं को बदल लेते हैं। मनुष्य को खुदा न मिले तो कोई बात नहीं, उसे अपना सपना नहीं छोड़ना चाहिए। थोड़े समय के लिए ही सही, हसीन सपना तो देखने को मिलता है। कुछ लोगों का विश्वास है कि पत्थर पिघल नहीं सकते। कवि आवाज़ के असर को देखने के लिए बेचैन है। शासक शायर की आवाज को दबाने की कोशिश करता है; क्योंकि वह उसकी सत्ता को चुनौती देता है। कवि किसी दूसरे के आश्रय में रहने के स्थान पर अपने घर में जीना चाहता है।
  • प्रश्न 6:
  • ‘दरख्तों का साया’ और ‘धूप’ का क्या प्रतीकार्थ है?
  • उत्तर –
  • ‘दरख्तों का साया’ का अर्थ है-जनकल्याण की संस्थाएँ। ‘धूप’ का अर्थ है-कष्ट। कवि कहना चाहता है कि भारत में संस्थाएँ लोगों को सुख देने की बजाय कष्ट देने लगी हैं। वे भ्रष्टाचार का अड्डा बन गई हैं।

No comments:

Post a Comment

अक्क महादेवी

  पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न कविता के साथ प्रश्न 1: ‘लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं’-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए। उत्तर – ज्ञ...