Monday, 13 April 2020

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा- बाबा साहेब आंबेडकर /मेरी कल्पना का आदर्श समाज

श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा- बाबा साहेब आंबेडकर मेरी कल्पना का आदर्श समाज














कॉपी में करने वाले प्रश्न 
5.    निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही उत्तर वाले विकल्प चुनिए।                     1×5=5
 श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति - प्रथा गंभीर दोषों से युक्त है। जाति - प्रथा का श्रम विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा  पर निर्भर नहीं रहता। मनुष्य की व्यक्तिगत भावना तथा व्यक्तिगत रूचि का इसमें कोई स्थान अथवा महत्व नहीं रहता । ‘पूर्व लेख’ ही इसका आधार है। इस आधार पर हमें यह स्वीकार करना पड़ेगा कि आज के उद्योगों में गरीब तो अरुचि के साथ केवल वि वर्ष कार्य करते हैं ऐसी स्थिति सभ्यता मनुष्य को दुर्भावना से प्राप्त भ्रष्ट कर चालू काम करने और कम काम करने के लिए प्रेरित करती है ऐसी स्थिति में जहां काम करने वालों का ना दिल लगता हो ना दिमाग वहां कोई कुशलता कैसे प्राप्त की जा सकती है अतः यह निर्विवाद रूप से सिद्ध हो जाता है कि आर्थिक पहलू से भी जाति प्रथा हानिकारक प्रथा है क्योंकि यह मनुष्य के संभावित प्रेरणा रुचि व आत्मशक्ति को दबा कर उन्हें आशा भाविक नियमों में जकड़ कर निष्क्रिय बना देती है
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार विकल्प का चयन कीजिए
क) गद्यांश के अनुसार श्रम विभाजन की दृष्टि से जाति प्रथा दोषपूर्ण क्यों है?
1.  व्यक्तिगत रुचियों को ध्यान में न रखने के कारण
2.  मनुष्य के पेशे को पूर्व लेख से जोड़े रखने के कारण
3   मनुष्य को स्वतंत्र छोड़े जाने के कारण
4.  व्यक्तिगत भावनाओं को ध्यान में रखने के कारण
ख. कारण(A) आर्थिक पहलू से जाति प्रथा हानिकारक है।
 कारण (R) जाति- प्रथा मनुष्य के रूचि एवं आत्मशक्ति को कम करके उसे निष्क्रिय बना देती हैं ।
कूट
1. कथन (A) और कारण (R) दोनों सही है तथा कारण(R) कथन(A) की सही व्याख्या करता है
  2. कथन (A) गलत है, किंतु कारण (R)सही है ।
   3. कथन (A)तथा कारण (A)दोनों गलत है ।
  4. कथन (A) सही है, किंतु कारण(R) उसकी गलत व्याख्या करता है।
ग.  कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए क्या आवश्यक है ?
   1. रूचि के अनुसार काम करने का अवसर प्रदान करना
  2. कार्य कोजबरनथोपाजाना
  3. कार्यकरनेकी विशेष छूट प्रदान करना
  4.  उत्पादकता को कम कर देना
घ. श्रम के क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या .............है।
1.  आर्थिक ढांचे की
2.  स्वेच्छानुसार काम न मिलने की
3.  जनसंख्या वृद्धि की
4. कार्य के प्रति उदासीन न होने की
ङ. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए
1.  कार्य निर्धारित होने से कार्य का महत्व बढ़ता है
2. जाति - प्रथा के कारण श्रमिकअरुचि के साथ विवशतावशही उद्योगों में कार्य कर रहे हैं।
3.  जाति प्रथा का श्रम - विभाजन मनुष्य की स्वेच्छा पर निर्भर करता है ।
4. उपर्युक्त में से कौन सा /सेसही है/ हैं ?
1.केवल  1.           2. केवल 2
3. 1 और 2           4. 1और3
 
उत्तर
क.  2. मनुष्यकेपेशेकोपूर्वलेखसेजोड़ेजानेकेकारण
ख. 1. कथन (A) औरकारण (R) दोनोंसहीहैतथाकारण(R)  कथन (A) कीसहीव्याख्याकरताहै।
ग. 1. रूचिकेअनुसारकामकरनेकाअवसरप्रदानकरना
घ.  2.  स्वेच्छानुसारकामनमिलनेकी
ङ. 2. केवल2.
 
1. 'श्रम विभाजन और जाति-प्रथा' के लेखक का नाम क्या है?
  A. डॉ० भीमराव आंबेडकर
  B. हजारी प्रसाद द्विवेदी
  C. विष्णु खरे
  D. धर्मवीर भारती
 
2. जाति-प्रथा व्यक्ति को जीवन भर के लिए किससे बाँध देती है?
  A. एक ही व्यवसाय से
  B. अनेक व्यवसायों से
  C. व्यवसाय बदलने से
  D. व्यवसाय छोड़ने से
 
3. लेखक ने भारतीय समाज में बेरोज़गारी और भुखमरी का क्या कारण बताया है?
  A. गरीबी
  B. पूँजीवाद
  C. जाति-प्रथा
  D. सांप्रदायिकता
 
4. जाति-प्रथा का श्रम विभाजन किस प्रकार का है?
  A. स्वाभाविक
  B. अस्वाभाविक
  C. सार्थक
  D. निरर्थक
5. जाति-प्रथा से व्यक्ति को कौन-सा पेशा मिलता है?
  A. पैतृक पेशा
  B. स्वतंत्र पेशा
  C. उच्च पेशा
  D. तकनीकी पेशा
6. कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्त्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर करना क्या कहलाता है?
  A. स्वतंत्रता
  B. आज्ञा पालन
  C. दासता
  D. गरीबी
7. लेखक समाज के सभी सदस्यों को कौन-से अवसर प्रदान करने के पक्ष में है?
  A. समान अवसर
  B. असमान अवसर
  C. व्यावहारिक अवसर
  D. अव्यावहारिक अवसर
8. लेखक ने आदर्श समाज में कितने तत्त्वों की चर्चा की है?
  A. एक
  B. दो
  C. तीन
  D. चार
9. जाति-प्रथा समाज में क्या पैदा करती है?
  A. समानता
  B. ऊँच-नीच का भेदभाव
  C. गरीबी
  D. कार्यकुशलता
10. आदर्श समाज में परिवर्तन का लाभ किन्हें प्राप्त होगा?
  A. अमीरों को
  B. गरीबों को
  C. ऊँची जाति के लोगो को
  D. सभी को
11. जाति-प्रथा का सबसे बड़ा दोष क्या है?
  A. यह लोगों को एक पेशे से जोड़ देती है
  B. यह लोगों को अनेक पेशों से जोड़ देती है
  C. यह पेशों में परिवर्तन कर देती है
  D. यह रोज़गार देती है
12. बाबा साहेब आंबेडकर ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है?
  A. स्वतंत्र समाज की
  B. समान समाज की
  C. आदर्श समाज की
  D. गतिशील समाज की
13. लेखक ने दूध और पानी के मिश्रण से किसकी तुलना की है?
  A. जातिवाद की
  B. भाईचारे की
  C. स्वतंत्रता की
  D. श्रम विभाजन की
14. लेखक के अनुसार दासता का संबंध किससे नहीं है?
  A. समाज से
  B. कानून से
  C. शिक्षा से
  D. धन से
15. आर्थिक विकास के लिए जाति-प्रथा का परिणाम कैसा है?
  A. हानिकारक
  B. लाभकारी
  C. उपयोगी
  D. इनमें से कोई नहीं
16. श्रम के परंपरागत तरीकों में किस कारण से परिवर्तन हो रहा है ?
  A. शिक्षा के कारण
  B. गरीबी के कारण
  C. बेरोज़गारी के कारण
  D. आधुनिक तकनीक के कारण
17. लेखक के अनुसार मनुष्य की कार्यकुशलता किस प्रकार बढ़ायी जा सकती है?
  A. जाति-प्रथा द्वारा श्रम विभाजन करके
  B. जनसंख्या बढ़ाकर
  C. अधिक उद्योग बढ़ाकर
  D. सबको समान अवसर देकर
एक शब्द के उत्तर
1.           श्रम विभाजन और जाति प्रथा पाठ के लेखक कौन हैं – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर
2.           प्राचीन काल में भारतीय समाज कितने वर्गों में बंटा था – चार वर्गों (ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र)
3.           बाबा साहेब का आदर्श समाज किस पर आधारित है  – स्वतंत्रता , समता और भ्रातृता
4.           बाबासाहेब आंबेडकर ने किस प्रकार के समाज की कल्पना की है – आदर्श समाज
5.           हमारा समाज कैसा होना चाहिए – आदर्श
6.           स्वतंत्रता , समता व भ्रातृता पर आधारित समाज को अंबेडकर ने कैसा समाज कहा है – सभ्य एवं आदर्श समाज
7.           जातिवाद के समर्थकों द्वारा क्या तर्क दिया जाता है – आधुनिक सभ्य समाज में कार्यकुशलता के लिए श्रम विभाजन (कार्य विभाजन /कार्य का बंटवारा) करना आवश्यक है और जातिप्रथा , श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है।
8.           जातिवाद के समर्थकों ने क्या तर्क दिया है – जातिप्रथा , श्रम विभाजन का ही दूसरा रूप है
9.           जातिप्रथा का सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू क्या है – व्यक्ति को उसकी पसंद का पेशा चुनने की आजादी न देना।
10.         लेखक के अनुसार श्रम विभाजन जाति के आधार पर न होकर किस आधार पर होना चाहिए –  व्यक्ति की योग्यता  , उसकी रूचि , कार्य कुशलता व निपुणता के आधार पर
11.         जाति प्रथा का श्रम विभाजन किस प्रकार का है – अस्वाभाविक
12.         जाति प्रथा , श्रम विभाजन (काम का बंटवारा)  के साथ-साथ क्या करती हैं – श्रमिक विभाजन (लोगों का बंटवारा)
13.         जाति प्रथा व्यक्ति को जीवन भर के लिए किससे बांध देती है – अपने पैतृक व्यवसाय से या एक ही व्यवसाय से
14.         जाति प्रथा के तहत व्यक्ति को कौन सा पेशा जबरदस्ती अपनाना पड़ता है – पैतृक पेशा
15.         अंबेडकर के अनुसार हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी व्यक्ति को कौन सा पेशा चुनने की अनुमति देती है – पैतृक
16.         लेखक ने भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी का क्या कारण बताया है – जाति प्रथा
17.         जाति प्रथा , समाज में क्या पैदा करती है – ऊंच – नीच का भेदभाव
18.         जाति प्रथा के अनुसार व्यक्ति की निजी क्षमता , रूचि व कार्यकुशलता का विचार किए बिना मनुष्य का पेशा किस प्रकार निर्धारित होता है – उसके माता-पिता के सामाजिक स्तर के अनुसार
19.         लेखक समाज के सभी सदस्यों को कौन सा अवसर प्रदान करने के पक्ष में है – हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के समान अवसर
20.         लेखक के अनुसार समाज की कार्यकुशलता किस प्रकार बढ़ाई जा सकती है – सबको समान अवसर देकर
21.         लेखक ने दूध और पानी के मिश्रण से किसकी तुलना की है – भाईचारे की
22.         अंबेडकर ने भाईचारे को वास्तविक रूप से किस मिश्रण की तरह माना है – दूध और पानी
23.         कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने के लिए मजबूर करना , क्या कहलाता है – गुलामी या दासता
24.         लेखक के अनुसार मनुष्य किन तीन बातों पर समान नहीं होते हैं – शारीरिक वंश परंपरा , सामाजिक उत्तराधिकार व मनुष्य के अपने प्रयत्न
25.         कौन सा धर्म व्यक्ति को जाति प्रथा के अनुसार पैतृक काम अपनाने को मजबूर करता है – हिंदू धर्म
26.         किस देश की जाति प्रथा समाज में भेदभाव पैदा करती हैं  – भारत की जाति प्रथा
27.         लेखक ने आदर्श समाज में कितने तत्वों की चर्चा की है – तीन
28.         मनुष्य की समता कितनी बातों पर निर्भर करती है – तीन(शारीरिक वंश परंपरा , सामाजिक उत्तराधिकार व मनुष्य के अपने प्रयत्न)
29.         आदर्श समाज में परिवर्तन का लाभ किन्हें प्राप्त होता है – समाज के सभी लोगों को
30.         जाति , धर्म , संप्रदाय से ऊपर उठकर हमें मानव मात्र के प्रति कैसा व्यवहार रखना चाहिए – एक समान
31.         जाति प्रथा का सबसे बड़ा दोष क्या है – यह लोगों को एक ही पेशे से बांधे रखता हैं
32.         लेखक के अनुसार दासता का संबंध किससे नहीं है – कानून से
33.         आर्थिक विकास के लिए जाति प्रथा का परिणाम कैसा है – हानिकारक
34.         श्रम के परंपरागत तरीकों में किस कारण से परिवर्तन हो रहा है – आधुनिक तकनीक के कारण
35.         किस पेशे से जुड़ा व्यक्ति देश की बड़ी जनसंख्या के संपर्क में रहता है – राजनीति से
36.         भारत में पेशा परिवर्तन की अनुमति ना देकर जाति प्रथा किसको बढ़ावा दे रही हैं  – बेरोजगारी को
37.         लेखक के अनुसार आज भी समाज में किसके पोषकों या संरक्षकों की कमी नहीं है – जातिवाद
38.         कौन सा समाज कार्य कुशलता के लिए श्रम विभाजन को आवश्यक मानता है – आधुनिक व शिक्षित समाज
39.         श्रम विभाजन किस पर आधारित होना चाहिए –  व्यक्ति की व्यक्तिगत रूचि और कार्य क्षमता पर
40.         जाति प्रथा का श्रम विभाजन किस पर निर्भर नहीं रहता है – मनुष्य की व्यक्तिगत इच्छा पर
41.         श्रम विभाजन में मनुष्य की किस भावना का कोई महत्व नहीं रहता है – व्यक्तिगत भावना का
42.         जब व्यक्ति दिल और दिमाग से काम नहीं करता , तब व्यक्ति को क्या प्राप्त नहीं होती है – कार्यकुशलता और आत्म संतुष्टि
43.         जाति प्रथा किस पहलू के लिए हानिकारक है – आर्थिक पहलू के लिए
44.         जाति प्रथा मनुष्य की स्वाभाविक रुचि व आत्मशक्ति को दबाकर उसे क्या बना देती है – निष्क्रिय
45.         श्रम विभाजन की दृष्टि से भी जाति प्रथा किससे युक्त है – गंभीरदोषों से
46.         मनुष्य को अपनी कार्यकुशलता व दक्षता दिखाने के लिए क्या प्रदान करना आवश्यक हैं  – स्वतंत्रता
47.         प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने के लिए क्या देना सर्वदा उचित है – प्रोत्साहन
48.         समाज में क्या होनी चाहिए – गतिशीलता
49.         किस जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन और अवसर उपलब्ध हैं – सामाजिक जीवन में
50.         फ्रांसीसी क्रांति के नारे में कौन सा शब्द विवाद का विषय रहा – समता
51.         समाज के सदस्यों को आरंभ से ही क्या उपलब्ध कराना चाहिए – समान अवसर व समान व्यवहार
52.         समाज को किस दृष्टिकोण से दो वर्गों और श्रेणियों में बांटना अनुचित है – मानवता के दृष्टिकोण से
53.         “समता” राजनीति के व्यवहार की एकमात्र क्या है – कसौटी
54.         आधुनिक सभ्य समाज कार्य कुशलता के लिए किसे आवश्यक मानता है – श्रम विभाजन को
55.         पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा , भारत में किसका प्रमुख एवं प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है – बेरोजगारी और भुखमरी का
56.         जाति प्रथा समाज में किन समस्याओं को जन्म देती हैं – बेरोजगारी और भुखमरी को
57.         लेखक के अनुसार क्या काल्पनिक जगत की वस्तु है – समानता या समता
58.         सामूहिक जीवनचर्या की एक रीति तथा समाज में सम्मिलित अनुभवों के आदान-प्रदान का क्या नाम है  – लोकतंत्र
प्रश्न 1.जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर के क्या तर्क हैं ?
उत्तर-जाति प्रथा को श्रम विभाजन का ही एक रूप न मानने के पीछे अंबेडकर जी के निम्नलिखित तर्क हैं।
1.           जाति प्रथा , श्रम विभाजन के साथ – साथ श्रमिक विभाजन भी करती हैं।
2.           श्रम विभाजन किसी भी सभ्य समाज के लिए आवश्यक है। मगर भारत की जाति प्रथा श्रमिकों का अस्वाभाविक विभाजन करती हैं। उन्हें उच्च जाति (ब्राह्मण) और निम्न जाति (शुद्र) में बाँट देती हैं। ऐसा विभाजन विश्व के किसी भी समाज में नहीं देखा जाता है।
3.           जाति प्रथा में श्रम विभाजन मनुष्य की इच्छा के अनुसार नहीं बल्कि उसके जन्म के आधार पर निर्धारित होता है।
4.           व्यक्ति अपना पेशा (कार्यक्षेत्र) चुनने के लिए स्वतंत्र नहीं होता हैं।
5.           जाति प्रथा में मनुष्य की क्षमता , उसकी कार्य कुशलता व उसकी रूचि का कोई महत्व नहीं होता है। उसे वही कार्य करना पड़ता है जो उसका पैतृक पेशा होता है।
6.           जाति प्रथा , विपरीत परिस्थितियों में भी व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने की इजाजत नही देती है भले ही वह भूखा मर जाए।
प्रश्न 2.जाति प्रथा , भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है ? क्या यह स्थिति आज भी है ?
उत्तर –जाति प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी और भुखमरी का एक प्रमुख कारण बनती आयी है क्योंकि जाति प्रथा में व्यक्ति के पेशे का निर्धारण उसके जन्म से पूर्व ही कर दिया जाता है। साथ ही साथ उसे , उसी पेशे के साथ जीवन भर बंधे रहने को भी मजबूर किया जाता है।
आधुनिक समय में अत्याधुनिक मशीनों व नई टेक्नोलॉजी के आ जाने के बाद कुछ पुराने व्यवसाय बंद होने के कगार में हैं। जिस कराण व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ रही है । ऐसी परिस्थितियों में भी अगर व्यक्ति को अपना पेशा बदलने की अनुमति ना मिले तो भुखमरी और बेरोज़गारी तो बढ़ेगी ही बढ़ेगी।
मगर अब समय काफी बदल चुका हैं। सरकार द्वारा दलित , निम्न व पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जा रही हैं। उन्हें शिक्षा व नौकरी में आरक्षण भी दिया जा रहा है ताकि वो समाज में स्वतंत्रतापूर्वक सम्मान के साथ जी सकें। आज हर जाति , हर वर्ग का व्यक्ति अपनी रूचि के अनुसार अपना व्यवसाय व नौकरी आदि चुनने के लिए स्वतंत्र है।
प्रश्न 3.लेखक के मत से “दासता” की व्यापक परिभाषा क्या है ?
उत्तर-लेखक के अनुसार दासता या गुलामी सिर्फ कानूनी पराधीनता नहीं है। बल्कि जब व्यक्ति को अपनी शिक्षा , रोजगार या व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता ना हो और उसे दूसरे लोगों के द्वारा बनाए गए नियम कानून के अनुसार अपना जीवन यापन करना पड़े तो , यह भी एक तरह की दासता (गुलामी) ही है।
प्रश्न 4.‘श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर मनुष्य की क्षमता किन-किन बातों पर निर्भर रहती है?
उत्तरजाति-भेद-उच्छेद’ पाठ के आधार पर मनुष्य की क्षमता निम्नलिखित बातों के आधार पर निर्भर रहती है
(i) शारीरिक वंश परंपरा के आधार पर।
(ii) सामाजिक उत्तराधिकार अर्थात सामाजिक परंपरा के रूप में माता-पिता की कल्याण कामना, शिक्षा तथा वैज्ञानिक ज्ञानार्जन आदि सभी उपलब्धियाँ जिनके कारण सभ्य समाज, जंगली लोगों की अपेक्षा विशिष्टता प्राप्त करता है।
(iii) मनुष्य के अपने प्रयत्न।
प्रश्न 5.लेखक की दृष्टि में आदर्श समाज क्या है?
उत्तर-लेखक की दृष्टि में आदर्श समाज वह है
1. जिसमें स्वतंत्रता, समता और भाईचारे का भाव मिले।
2. समाज में परिवर्तन का लाभ सभी को प्राप्त हो।
3. समाज में सभी हितों में सबकी सहभागिता हो।
4. समाज के हित के लिए सभी सजग-सचेत हों।
5. समाज में सभी को संपर्क हेतु समान साधन और अवसर प्राप्त हों।
6. समाज का भाईचारा दूध-पानी के मिश्रण के समान हो।


 (ख) मेरी कल्पना का आदर्श समाज


प्रश्न 4:
फिर मेरी दृष्टि में आदर्श समाज क्या हैठीक हैयदि ऐसा पूछेगेतो मेरा उत्तर होगा कि मेरा आदर्श समाज स्वतंत्रतासमताभ्रातृता पर आधारित होगाक्या यह ठीक नहीं हैभ्रातृता अर्थात भाईचारे में किसी को क्या आपत्ति हो सकती हैकिसी भी आदर्श समाज में इतनी गतिशीलता होनी चाहिए जिससे कोई भी वांछित परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे तक संचारित हो सके। ऐसे समाज के बहुविधि हितों में सबका भाग होना चाहिए तथा सबको उनकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए। सामाजिक जीवन में अबाध संपर्क के अनेक साधन व अवसर उपलब्ध रहने चाहिए। तात्पर्य यह कि दूध-पानी के मिश्रण की तरह भाईचारे का यही वास्तविक रूप हैऔर इसी का दूसरा नाम लोकतंत्र है।
प्रश्न:

लेखक ने किन विशेषताओं को आदर्शा समाज की धुरी माना हैं और क्यों?
भ्रातृता के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
अबाध संपर्क ‘ से लेखक का क्या अभिप्राय है ?
लोकतत्र का वास्तविक स्वरूप किसे कहा गया हैंस्पष्ट कीजिए।
उत्तर 

लेखक उस समाज को आदर्श मानता है जिसमें स्वतंत्रतासमानता व भाईचारा हो। उसमें इतनी गतिशीलता हो कि सभी लोग एक साथ सभी परिवर्तनों को ग्रहण कर सकें। ऐसे समाज में सभी के सामूहिक हित होने चाहिएँ तथा सबको सबकी रक्षा के प्रति सजग रहना चाहिए।
भ्रातृता’ का अर्थ है-भाईचारा। लेखक ऐसा भाईचारा चाहता है जिसमें बाधा न हो। सभी सामूहिक रूप से एक-दूसरे के हितों को समझे तथा एक-दूसरे की रक्षा करें।
अबाध संपर्क’ का अर्थ है-बिना बाधा के संपर्क। इन संपकों में साधन व अवसर सबको मिलने चाहिए।
लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप भाईचारा है। यह दूध-पानी के मिश्रण की तरह होता है। इसमें उदारता होती है।
प्रश्न 5:
जाति-प्रथा के पोषक जीवनशारीरिक-सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेंगेपरंतु मनुष्य के सक्षम एवं प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए जल्दी तैयार नहीं होंगेक्योंकि इस प्रकार की स्वतंत्रता का अर्थ होगा अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता किसी को नहीं हैतो उसका अर्थ उसे दासता’ में जकड़कर रखना होगाक्योंकि दासता’ केवल कानूनी पराधीनता को नहीं कहा जा सकता। दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरणार्थजाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना संभव हैजहाँ कुछ लोगों की अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं।
प्रश्न:

लेखक के अनुसार जाति-प्रथा के समर्थक किन अधिकारों को देने के लिए राजी हो सकते हैं और किन्हें नहीं?
दासता’ के दो लक्षण स्पष्ट कीजिए।
व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता न दिए जाने पर लेखक ने क्या संभावना व्यक्त की हैंस्पष्ट कीजिए।
जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ण होना’ से आबेडकर का क्या आशय हैं?
उत्तर 

लेखक के अनुसारजाति-प्रथा के समर्थक जीवनशारीरिक सुरक्षा व संपत्ति के अधिकार को देने के लिए राजी हो सकते हैंकिंतु मनुष्य के सक्षम व प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए तैयार नहीं हैं।
दासता’ के दो लक्षण हैं-पहला लक्षण कानूनी है। दूसरा लक्षण वह है जिसमें कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों द्वारा निर्धारित व्यवहार व कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश किया जाता है।
व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता न दिए जाने पर लेखक यह संभावना व्यक्त करता है कि समाज उन लोगों को दासता में जकड़कर रखना चाहता है।
इसका आशय यह है कि समाज में अनेक ऐसे वर्ग हैं जो अपनी इच्छा के विरुद्ध थोपे गए व्यवसाय करते हैं। वे चाहे कितने ही योग्य होंउन्हें परंपरागत व्यवसाय करने पड़ते हैं।
प्रश्न 6:
व्यक्ति-विशेष के दृष्टिकोण सेअसमान प्रयत्न के कारणअसमान व्यवहार को अनुचित नहीं कहा जा सकता। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता का विकास करने का पूरा प्रोत्साहन देना सर्वथा उचित है। परंतु यदि मनुष्य प्रथम दो बातों में असमान है तो क्या इस आधार पर उनके साथ भिन्न व्यवहार उचित हैंउत्तम व्यवहार के हक की प्रतियोगिता में वे लोग निश्चय ही बाजी मार ले जाएँगेजिन्हें उत्तम कुलशिक्षापारिवारिक ख्यातिपैतृक संपदा तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त है। इस प्रकार पूर्ण सुविधा संपन्नों को ही उत्तम व्यवहार’ का हकदार माना जाना वास्तव में निष्पक्ष निर्णय नहीं कहा जा सकता। क्योंकि यह सुविधा-संपन्नों के पक्ष में निर्णय देना होगा। अत: न्याय का तकाजा यह है कि जहाँ हम तीसरे (प्रयासों की असमानताजो मनुष्यों के अपने वश की बात है) आधार पर मनुष्यों के साथ असमान व्यवहार को उचित ठहराते हैंवहाँ प्रथम दो आधारों (जो मनुष्य के अपने वश की बातें नहीं हैं) पर उनके साथ असमान व्यवहार नितांत अनुचित है। और हमें ऐसे व्यक्तियों के साथ यथासंभव समान व्यवहार करना चाहिए। दूसरे शब्दों मेंसमाज को यदि अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करनी हैतो यह तो संभव हैजब समाज के सदस्यों को आरंभ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराए जाएँ।
प्रश्न:

लेखक किस असमान व्यवहार को अनुचित नहीं मानता ?
लेखक किस बात को निष्पक्ष निर्णय नहीं मानता?
न्याय का तकाजा क्या हैं?
समाज अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता कैसे प्राप्त कर सकता हैं?
उत्तर 

लेखक उस असमान व्यवहार को अनुचित नहीं मानता जो व्यक्ति-विशेष के दृष्टिकोण से असमान प्रयत्न के कारण किया जाता है।
लेखक कहता है कि उत्तम व्यवहार प्रतियोगिता में उच्च वर्ग बाजी मार जाता है क्योंकि उसे शिक्षापारिवारिक ख्यातिपैतृक संपदा व व्यावसायिक प्रतिष्ठा का लाभ प्राप्त है। ऐसे में उच्च वर्ग को उत्तम व्यवहार का हकदार माना जाना निष्पक्ष निर्णय नहीं है।
न्याय का तकाजा यह है कि व्यक्ति के साथ वंश परंपरा व सामाजिक उत्तराधिकार के आधार पर असमान व्यवहार न करके समान व्यवहार करना चाहिए।
समाज अपने सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता तभी प्राप्त कर सकता है जब समाज के सदस्यों को आरंभ से ही समान अवसर व समान व्यवहार उपलब्ध कराए जाएँगे।



प्रश्न 3:
लेखक के मत से दासता’ की व्यापक परिभाषा क्या हैंसमझाइए।
उत्तर 
लेखक के अनुसारदासता केवल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है। जिससे कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है।



प्रश्न 4:
शारीरिक वंश – परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद समता’ को एक व्यवहाय सिद्धांत मानने का आग्रह क्यों करते हैंइसके पीछे उनके क्या तर्क हैं?
उत्तर 
शारीरिक वंश-परंपरा और सामाजिक उत्तराधिकार की दृष्टि से मनुष्यों में असमानता संभावित रहने के बावजूद आंबेडकर समता’ को एक व्यवहार्य सिद्धांत मानने का आग्रह करते हैं क्योंकि समाज को अपने सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता तभी प्राप्त हो सकती है जब उन्हें आरंभ से ही समान अवसर एवं समान व्यवहार उपलब्ध कराए जाएँ। व्यक्ति को अपनी क्षमता के विकास के लिए समान अवसर देने चाहिए। उनका तर्क है कि उत्तम व्यवहार के हक में उच्च वर्ग बाजी मार ले जाएगा। अत: सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।

प्रश्न 5:
सही में अबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दूष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहा हैंजिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन-सुविधाओं का तक दिया हैं। क्या इससे आप सहमत हैं?
उत्तर 
आंबेडकर ने भावनात्मक समत्व की मानवीय दृष्टि के तहत जातिवाद का उन्मूलन चाहाजिसकी प्रतिष्ठा के लिए भौतिक स्थितियों और जीवन सुविधाओं का तर्क दिया है। हम उनकी इस बात से सहमत हैं। आदमी की भौतिक स्थितियाँ उसके स्तर को निर्धारित करती है। जीवन जीने की सुविधाएँ मनुष्य को सही मायनों में मनुष्य सिद्ध करती हैं। व्यक्ति का रहन सहन और चाल चलन काफी हद तक उसकी जातीय भावना को खत्म कर देता है।


प्रश्न 6:
आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया हैं अथवा नहींआप इस भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत हैंयदि नहींतो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/ समझेगी?
उत्तर 
आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। लेखक समाज की बात कर रहा है और समाज स्त्री-पुरुष दोनों से मिलकर बना है। उसने आदर्श समाज में हर आयुवर्ग को शामिल किया है। भ्रातृता’ शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है-भाईचारा। यह सर्वथा उपयुक्त है। समाज में भाईचारे के सहारे ही संबंध बनते हैं। कोई व्यक्ति एक-दूसरे से अलग नहीं रह सकता। समाज में भाईचारे के कारण ही कोई परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचता है।

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