सृजनात्मक लेखन
कैसे बनती है कविता?
कविता इंसान के मन को
अभिव्यक्त करने वाली सबसे पुरानी कला है। मौखिक युग में कविता
के द्वारा इंसान ने अपने भावों को दूसरों तक पहुंचाया होगा। इससे स्पष्ट होता है
कि कविता मन में उमड़ने-घुमड़ने वाले भावों और विचारों को अभिव्यक्त करने का
काव्यात्मक माध्यम है।
वाचिक परंपरा में
जन्मी कविता आज लिखित रूप में मौजूद है। पारंपरिक लोरियां, मांगलिक गीतों, श्रमिकों द्वारा
गुनगुनाए जाने वाले गीत, लोकगीतों और तुकबंदी में
कविता के स्वर मुखरित होते हैं। कविता को आज तक किसी एक परिभाषा में बांध पाना
संभव नहीं हो पाया है। अनेक प्राचीन काव्य शास्त्रियों और पश्चिमी विद्वानों ने
कविता की अनेक परिभाषाएं दी हैं, जैसे शब्द और अर्थ का संयोग, रसयुक्त वाक्य, संगीतमय विचार आदि।
कविता लेखन के संबंध
में दो मत मिलते हैं, एक का मानना है कि अन्य
कलाओं के समान कविता-लेखन की कला को प्रशिक्षण द्वारा नहीं सिखाया जा सकता क्योंकि
इसका संबंध मानवीय भावों से है, जबकि दूसरा मत कहता है कि
अन्य कलाओं की भांति प्रशिक्षण के द्वारा कविता-लेखन को भी सरल बनाया जा सकता है।
कविता का पहला उपकरण
शब्द है। डब्ल्यू एच ऑर्डेन ने कहा है कि शब्दों से खेलना सीखें, अर्थात कविता-लेखन में सबसे पहले शब्दों से खेलना सीखें, उनके अर्थ की परतों को खोलें क्योंकि शब्द ही भावनाओं और
संवेदनाओं को आकार देते हैं।
बिंब और छंद (आंतरिक
लय) कविता को इंद्रियों से पकड़ने में सहायक होते हैं। बाह्य संवेदनाएं मन के स्तर
पर बिंब के रूप में परिवर्तित हो जाती है। छंद के अनुशासन की जानकारी के बिना
आंतरिक लय का निर्वाह असंभव है। कविता की भाषा, बिंब, छंद, संरचना सभी परिवेश के
इर्द-गिर्द घूमते हैं इसलिए इनके अनुसार ही भाषा और छंद का चयन किया जाता है।
कविता के घटक तत्व-
·
भाषा का सम्यक ज्ञान
·
शब्द विन्यास
·
छंद विषयक बुनियादी जानकारी
·
अनुभव और कल्पना का सामंजस्य
·
सहज संप्रेषण शक्ति
·
भाव एवं विचार की अनुभूति
नवीन दृष्टिकोण और
प्रस्तुतीकरण की कला न हो, तो कविता लेखन संभव ही नहीं
है। प्रतिभा को किसी नियम या सिद्धांत द्वारा पैदा नहीं किया जा सकता, किंतु परिश्रम और अभ्यास से विकसित किया जा सकता है। कविता
लेखन के ये घटक कविता लेखन भले ही ना सिखाएं, पर कविता की सराहना
एवं कविता विषय ज्ञान देने में सहायक हैं।
प्रश्न-
कविता लेखन के लिए आवश्यक प्रमुख घटकों का
वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कविता लेखन के लिए आवश्यक प्रमुख घटक
निम्नलिखित हैं-
भाषा का सम्यक ज्ञान- कविता में भाषा की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण
है। भावों और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति के लिए यह ज़रूरी है कि कवि कविता में भाषा
के नए प्रयोग द्वारा अपने अनुभवों को रुप प्रदान करता रहे।
शब्द विन्यास- शब्द मनुष्य के सबसे प्रिय मित्र होते हैं।
इसलिए कविता लेखन के समय कवि को अपने भावों और विचारों के अनुरूप शब्दों का चयन कर
उनका प्रयोग करना चाहिए।
छंद विषयक बुनियादी जानकारी- छंद और तुक से बंधी हुई रचना हमारी
भावनाओं को संगीत में बांधकर हमारे सामने प्रस्तुत करती है, तो उसकी छुअन हमारे हृदय से जुड़ जाती
है,
इसलिए कविता में छंद और तुक कविता को और अधिक भावमयी बना देते हैं।
अनुभव और कल्पना का सामंजस्य- कवि कविता में भावों और विचारों के
साथ अपनी कल्पना शक्ति का प्रयोग करता है कल्पना के द्वारा कवि कविता में जीवन के सत्य
के मधुर और कटु दोनों रूपों को प्रकट करता है। कवि को केवल कोरी कल्पना से बचना
चाहिए।
सहज संप्रेषण शक्ति- कवि अपने लिए कविता नहीं लिखता, वरन उसका लक्ष्य अपने भावों और
विचारों से समाज को परिचित कराना है, इसलिए वह अपने भावों का साधारणीकरण करता है।
सहज और सरल भाव पाठक को कविता के साथ बांध देते हैं।
भाव एवं विचार की अनुभूति- कविता भावों का प्रबल है और मनुष्य
भावों और विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए तत्पर रहता है। सामान्य व्यक्ति कविता
की उस ऊंचाई तक नहीं पहुंच सकता, जहां कवि पहुंच जाता है क्योंकि कवि की आत्मशक्ति प्रबल होती है।
नाटक लिखने का व्याकरण
नाटक एक दृश्य
विधा है। इसे हम अन्य गद्य विधाओं से इसलिए अलग भी मानते हैं, क्योंकि नाटक कहानी, उपन्यास, कविता, निबंध आदि की तरह साहित्य के अंतर्गत ही आता
है, पर
यह अन्य विधाओं से अलग है क्योंकि यह अपने लिखित रूप से दृश्यता की ओर बढ़ता है।
नाटक केवल अन्य विधाओं की भांति केवल एक आयामी नहीं है। नाटक का जब तक मंचन नहीं होता, तब तक वह अपने संपूर्ण रूप व सफल रूप
को प्राप्त नहीं करता है। अतः कहा जा सकता है कि नाटक को केवल पाठक वर्ग नहीं, दर्शक वर्ग भी प्राप्त होते हैं।
साहित्य की अन्य
विधाएं पढ़ने या फिर सुनने तक की यात्रा करती हैं, परंतु नाटक पढ़ने, सुनने और देखने के गुण को भी अपने
भीतर रखता है।
नाटक के प्रमुख
तत्व या अंग (घटक) इस प्रकार हैं-
समय का बंधन
शब्द
कथ्य
संवाद
द्वंद्व (प्रतिरोध)
चरित्र योजना
भाषा-शिल्प
ध्वनि योजना
प्रकाश योजना
वेशभूषा
रंगमंच
प्रश्न-
‘समय के बंधन’ का नाटक में क्या महत्व है?
उत्तर-
नाट्य विधा में ‘समय के बंधन’ का विशेष महत्व है। नाटककार को समय के बंधन का
अपने नाटक में विशेष ध्यान रखना होता है और इस बात का नाटक की रचना पर भी पूरा
प्रभाव पड़ता है। नाटक को शुरू से अंत तक एक निश्चित समय-सीमा के भीतर पूरा होना
होता है। यदि ऐसा नहीं होता, तो नाटक से प्राप्त होने वाला रस, कौतूहल आदि प्राप्त नहीं हो पाते हैं। नाटक का
मंचन हम धारावाहिक के रूप में नहीं कर सकते। नाटककार चाहे अपनी किसी भूत कालीन
रचना को ले या किसी अन्य लेखक की रचना को, चाहे वह भविष्य काल की हो, वह दोनों परिस्थितियों में नाटक का
मंचन वर्तमान काल में ही करेगा। इसलिए नाटक में मंचीय निर्देश हमेशा वर्तमान काल
में लिखे जाते हैं क्योंकि नाटक का मंचन कभी भी हो, वह वर्तमान काल में ही घटित होगा या खेला
जाएगा। इसके साथ-साथ नाटक के प्रायः 3 अंक
होते हैं। प्रारंभ, मध्य और समापन। अतः नाटक को अंकों में बांटना ज़रूरी हो जाता है।
कैसे लिखे कहानी?
कहानी- किसी घटना, पात्र या समस्या का क्रमबद्ध विवरण, जिसमें परिवेश हो, द्वंद्वात्मकता हो, कथा का क्रमिक विकास हो, चरमोत्कर्ष का बिंदु हो, उसे कहानी कहा जाता है। कहानी जीवन का
अविभाज्य अंग है। हर व्यक्ति अपनी बातें दूसरों को सुनाता है और दूसरों की बातें
सुनना चाहता है। कहानी लिखने का मूल भाव सब में होता है, इसे कुछ लोग विकसित कर पाते हैं और
कुछ नहीं।
कहानी का इतिहास- जहां तक कहानी के इतिहास का सवाल है, वह उतना ही पुराना है, जितना मानव इतिहास क्योंकि कहानी मानव
स्वभाव और प्रकृति का हिस्सा है। मौखिक कहानी की परंपरा बहुत पुरानी है। प्राचीन
काल में मौखिक कहानियां अत्यंत लोकप्रिय थीं क्योंकि यह संचार का सबसे बड़ा माध्यम
थीं। धर्म प्रचारकों ने भी अपने सिद्धांत और विचार लोगों तक पहुंचाने के लिए कहानी
का सहारा लिया था। शिक्षा देने के लिए भी पंचतंत्र जैसी कहानियां लिखी गईं, जो जग प्रसिद्ध हैं।
कथानक- कहानी का केंद्र बिंदु कथानक होता है, जिसमें प्रारंभ से लेकर अंत तक कहानी
की सभी घटनाओं और पात्रों का उल्लेख होता है। कथानक को कहानी का प्रारंभिक नक्शा
माना जाता है।
कहानी का कथानक आमतौर पर कहानीकार के मन में
किसी घटना जानकारी, अनुभव या कल्पना के कारण आता है। कहानीकार कल्पना का विकास करते हुए
एक परिवेश,
पात्र और समस्या को आकार देता है तथा एक ऐसा काल्पनिक ढांचा तैयार करता है, जो कोरी कल्पना ना होकर संभावित हो और
लेखक के उद्देश्य से मेल खाता हो। प्रारंभ, मध्य और अंत, कथानक का यही पूरा स्वरूप होता है।
द्वंद्व-कहानी में द्वंद्व के तत्व का होना आवश्यक है। द्वंद्व
कथानक को आगे बढ़ाता है और कहानी में रोचकता बनाए रखता है। द्वंद्व के तत्वों से
अभिप्राय यह है कि परिस्थितियों के रास्ते में एक या अनेक बाधाएं होती हैं। उन
बाधाओं के समाप्त होने पर किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर कथानक पूरा हो जाता है। कहानी
की यह शर्त है कि वह नाटकीय ढंग से अपने उद्देश्य को पूरा करते हुए समाप्त हो जाए।
कहानी द्वंद्व के कारण ही पूर्ण होती है।
देशकाल और वातावरण- हर घटना,पात्र और समस्या का अपना देश काल और
वातावरण होता है। कहानी को रोचक और प्रामाणिक बनाने के लिए आवश्यक है कि लेखक देशकाल
और वातावरण का पूरा ध्यान रखें।
पात्र- पात्रों का अध्ययन कहानी की बहुत बड़ी एक बहुत
महत्वपूर्ण और बुनियादी शर्त है। हर पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। कहानीकार
के सामने पात्रों का स्वरूप जितना स्पष्ट होगा, उतनी ही आसानी से वह पात्रों का चरित्र चित्रण
करने और उसके संवाद लिखने में सक्षम होगा।
चरित्र चित्रण- पात्रों का चरित्र चित्रण, पात्रों की अभिरुचियों के माध्यम से
कहानीकार द्वारा उसके गुणों का बखान करके, उसके क्रियाकलापों, संवादों के माध्यम से किया जाता है।
संवाद संवाद कहानी में विशेष महत्व रखते हैं। संवाद ही
कहानी और पात्रों को स्थापित एवं विकसित करते हैं और कहानी को गति देते हैं, आगे बढ़ाते हैं। जो घटना या
प्रतिक्रिया कहानीकार होते हुए नहीं दिखा सकता, उसे संवादों के माध्यम से सामने लाता है।
संवाद पात्रों के स्वभाव और पूरी पृष्ठभूमि के अनुकूल होते हैं।
चरमोत्कर्ष- (क्लाइमेक्स) कथानक के अनुसार कहानी
चरमोत्कर्ष (क्लाइमेक्स) की ओर बढ़ती है। सर्वोत्तम यह है कि चरमोत्कर्ष पाठक को
स्वयं सोचने के लिए प्रेरित करे तथा उसे लगे कि उसे स्वतंत्रता दी गई है, उसने जो निष्कर्ष निकाले हैं, वह उसके अपने हैं।
कहानी लिखने की कला- कहानी लिखने की कला को सीखने का सबसे
अच्छा और सीधा रास्ता यह है कि अच्छी कहानियां पढ़ी जाएं और उनका विश्लेषण किया
जाए।
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