Wednesday 3 February 2021

स्पीति में बारिश-श्री कृष्णनाथ

स्पीति में बारिश-श्री कृष्णनाथ













स्पीति में बारिश-श्री  कृष्णनाथ




 

लेखक परिचय
● जीवन परिचय-कृष्णनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 1934 ई. में हुआ। इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की। इसके बाद इनका झुकाव समाजवादी आंदोलन और बौद्ध दर्शन की ओर हो गया। बौद्ध दर्शन में इनकी गहरी पैठ है। वे अर्थशास्त्र के विद्वान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे। इनका अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर अधिकार है। वे दोनों भाषाओं की पत्रकारिता से जुड़े रहे। ये हिंदी की साहित्यिक पत्रिका कल्पना के संपादक मंडल में कई वर्ष तक रहे। इन्होंने अंग्रेजी के मैनकाइंड का कुछ वर्षों तक संपादन भी किया।
वे राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन की प्रक्रिया से बौद्ध दर्शन की ओर मुड़े। इन्होंने भारतीय व तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर नागार्जुन के दर्शन और वज़यानी परंपरा का अध्यापन किया। इन्होंने भारतीय चिंतक जे. कृष्णमूर्ति के साथ बौद्ध दर्शन पर काम किया। इन्हें लोहिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया।


 
● रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
लद्दाख में राग-विराग, किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी परिकमा, हिमालय यात्रा. अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली।
इसके अलावा, इन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन भी किया।

● साहित्यिक परिचय-कृष्णनाथ उच्चकोटि के रचनाकार थे। इन्होंने सृजन-आकांक्षा की पूर्ति हेतु यायावरी की। एक यायावरी इन्होंने वैचारिक धरातल पर की थी, दूसरी सांसारिक अर्थ में। उन्होंने हिमालय की यात्रा शुरू की तथा बौद्ध धर्म व भारतीय मिथकों से जुड़े स्थलों को खोजना व खैगालना शुरू किया। इन्होंने अपनी इस यात्रा को शब्दों में बाँधा। वे जहाँ की यात्रा करते हैं, वहाँ पर्यटक के साथ तत्ववेत्ता की तरह अध्ययन करते चलते हैं। वे वहाँ की विशेष स्मृतियों को भी उघाड़ते हैं। ये वे स्मृतियाँ होती हैं जो इतिहास के प्रवाह में सिर्फ स्थानीय होकर रह गई हैं, लेकिन जिनका संपूर्ण भारतीय लोकमानस से गहरा रिश्ता रहा है। पहाड़ के किसी छोटे-बड़े शिखर पर दुबककर बैठी वह विस्मृत-सी-स्मृति मानो कृष्णनाथ की प्रतीक्षा कर रही हो।
इनके यात्रा-वृत्तांत स्थान-विशेष से जुड़े होकर भी भाषा, इतिहास, पुराण का संसार समेटे हुए हैं। पाठक उनके साथ खुद यात्रा करने लगता है। जो लोग इन स्थानों की यात्रा कर चुके होते हैं, वे कृष्णनाथ के यात्रा-वृत्तांत को पढ़कर अपनी यात्रा को पूरा मानेंगे।

पढ़ने के लिए-

पाठ का सारांश
यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति, हिमालय के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। कुछ युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंदों भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।

लेखक बताता है कि हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील स्पीति है। ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसका नाम कम ही रहा है। आजकल संचार के आधुनिक साधनों में वायरलेस के जरिए ही केलग व काजा के बीच संबंध रहता है। केलग के बादशाह को हमेशा अवज्ञा या बगावत का डर रहता है। यह क्षेत्र प्राय: स्वायत्त रहा है चाहे कोई भी राजा रहा हो। इसका कारण यहाँ का भूगोल है। भूगोल ही इसकी रक्षा तथा संहार करता है। पहले राजा का हरकारा आता था तो उसके आने तक अल्प वसंत बीत जाता था। जोरावर सिंह हमले के समय स्पीति के लोग घर छोड़कर भाग गए थे। उसने यहाँ के घरों और विहारों को लूटा।

स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है। 1901 में यहाँ 3231 लोग थे, अब यहाँ 34,000 लोग हैं। लाहुल स्पीति का क्षेत्रफल 12210 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ जनसंख्या प्रति वर्गमील बहुत कम है। भारत को यहाँ का प्रशासन ब्रिटिश राज से मिला। अंग्रेजों ने 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से यहाँ का प्रशासन लिया था ताकि वे पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में जा सकें। लद्दाख मंडल के समय यहाँ का शासन स्थानीय राजा (नोनी) द्वारा चलाया जाता था। अंग्रेजी काल में कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से नोनो काम करता था। स्थानीय लोग इसे अपना राजा मानते थे।

1873 ई. में स्पीति रेगुलेशन में लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया। यहाँ पर अन्य कानून लागू नहीं होते थे। यहाँ के नोनो को मालगुजारी इकट्ठा करने तथा छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। उससे ऊपर के मामले वह कमिश्नर के पास भेज देता था। 1960 में इस क्षेत्र को पंजाब राज्य में तथा 1966 में हिमाचल प्रदेश बनने के बाद राज्य के उत्तरी छोर का जिला बनाया गया।

स्पीति 31.42 और 32.59 अक्षांश उत्तर और 77.26 और 78.42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यहाँ चारों तरफ पहाड़ हैं। इसकी मुख्य घाटी स्पीति नदी की घाटी है। स्पीति नदी तिब्बत की तरफ से आती है तथा किन्नौर जिले से बहती हुई सतलुज में मिलती है। लेखक पारा नदी, पिन की घाटी के बारे में भी मान भाई से सुना है। यह क्षेत्र अत्यंत बीहड़ और वीरान है। यहाँ लोग रहते कैसे हैं? स्पीति के बारे में बताने पर यह सवाल लोग लेखक से पूछते हैं। ये क्षेत्र आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। वे एक फसल उगाते हैं तथा लकड़ी व रोजगार भी नहीं है, फिर भी वे यहाँ रह रहे हैं, क्योंकि वे यहाँ रहते आए हैं। यह तर्क से परे की चीज है।

स्पीति के पहाड़ लाहुल से अधिक ऊँचे, भव्य व नंगे हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद जमा हुआ है। यहाँ हिम का आर्तनाद है, ठिठुरन है और व्यथा है। स्पीति मध्य हिमालय की घाटी है। यह हिमालय का तलुआ है। लाहुल । समुद्र की तरह से 10535 फीट ऊँचा है तो स्पीति 12986 फीट ऊँचा। स्पीति घाटी को घेरने वाली पर्वत श्रेणियों की ऊँचाई 16221 से 16500 फीट है। दो चोटियाँ 21,000 फीट से भी ऊँची हैं। इन्हें बारालचा श्रेणियाँ कहते हैं। दक्षिण की पर्वत श्रेणियों को माने श्रेणियाँ कहते हैं। शायद बौद्धों के माने मंत्रों के नाम पर इनका नामकरण किया गया हो। बौद्धों का बीज मंत्र ‘ओों मणि पद्भे हु’ है। इसे संक्षेप में माने कहते है।

स्पीति के पार बाह्य हिमालय दिखता है। इसकी एक चोटी 23,064 फीट ऊँची बताई जाती है। लेखक चोटियों से होड़ लगाने के पक्ष में नहीं है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। कभी-कभी उनका मान-मर्यादा करना मर्द और औरत की शान है। लेखक चाहता है कि देश-दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आकर अपने अहंकार को गलाकर फिर चोटियों के अहंकार को चूर करें। माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई। युवक-युवतियाँ यहाँ आकर किलोल करें तो यहाँ आनंद का प्रसार हो।

स्पीति में दो ही ऋतुएँ होती हैं। जून से सितंबर तक अल्पकालिक वसंत ऋतु तथा शेष वर्ष शीत ऋतु होती है। बसंत में जुलाई में औसत तापमान 15० सेंटीग्रेड तथा शीत में, जनवरी में औसत तापमान 8० सेंटीग्रेड होता है। वसंत में दिन गर्म तथा रात ठंडी होती है। शीत ऋतु की ठंड की कल्पना ही की जा सकती है। यहाँ वसंत का समय लाहुल से कम होता है। इस ऋतु में यहाँ फूल, हरियाली आदि नहीं आते। दिसंबर से मई तक बर्फ रहती है। नदी-नाले जम जाते हैं। तेज हवाएँ मुँह, हाथ व अन्य खुले अंगों पर शूल की तरह चुभती हैं।

यहाँ मानसून की पहुँच नहीं है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने ‘ऋतु संहार’ ग्रंथ में से वर्षा ऋतु का वर्णन हटाना होगा। उसका वर्षा वर्णन लाहुल-स्पीति के लोगों की समझ से परे है। वे नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं,बादल बरसते हैं और मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं। जंगलों में हरियाली छा जाती है और वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं। यहाँ के लोगों ने कभी पर्याप्त वर्षा नहीं देखी। धरती सूखी, ठंडी व वंध्या रहती है।

स्पीति में एक ही फसल होती है जिनमें जौ, गेहूँ, मटर व सरसों प्रमुख है। इनमें भी जो मुख्य है। सिंचाई के साधन पहाड़ों से बहने वाले झरने हैं। स्पीति नदी का पानी काम में नहीं आता। स्पीति की भूमि पर खेती की जा सकती है बशर्त वहाँ पानी पहुँचाया जाए। यहाँ फल, पेड़ आदि नहीं होते। भूगोल के कारण स्पीति नंगी व वीरान है। वर्षा यहाँ एक घटना है। लेखक एक घटना का वर्णन करता है। वह काजा के डाक बंगले में सो रहा था। आधी रात के समय उन्हें लगा कि कोई खिड़की खड़का रहा है। उसने खिड़की खोली तो हवा का तेज झोंका मुँह व हाथ को छीलने-सा लगा। उसने पल्ला बंद किया तथा आड़ में देखा कि बारिश हो रही है। बर्फ की बारिश हो रही थी। सुबह उठने पर पता चला कि लोग उनकी यात्रा को शुभ बता रहे थे। यहाँ बहुत दिनों बाद बारिश हुई।

शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 7o
योग-मिलाप। आकस्मिक-अचानक हुई घटना। अलंध्य-जो पार न किया जा सके। संचार-संदेश भेजने का साधन। अवज़ा-आज्ञा को न मानना। बगावत-विद्रोह। वायरलेस – बिना तार संदेश भेजना। तहत-साथ। स्वायत्त-स्वतंत्र। सिरजी-रची। संहार-अंत। हरकारा-डाकिया। अल्प-थोड़ा, कम।

पृष्ठ संख्या 71
हदस-डर। चाँग्मा-एक पेड़ का नाम! अप्रतिकार-विरोध न करना। पदधति-तरीका। जस का तस-ज्यों-का-त्यों। दूरगामी-दूर तक जाने वाला। अधीनता-गुलामी। शरीक-लम्मिलित

पृष्ठ संख्या 72
रेगुलेशन-कानून। मालगुजारी-कर। फौजदारी-मारपीट। वृत्तात-हाल। स्वराज्य-अपना राज्य। छोर-किनारा। दुर्गम-जहाँ जाना कठिन हो। प्रीति-प्रेम। वीरान-जहाँ लोग न रहते हों। आबाद-बसी हुई। अचरज-हैरानी।

पृष्ठ संख्या 73
वृत्ति-जीविका। निर्वाण-वैराग्य। अतक्र्य-तर्क से परे। भव्य-विशाल। आर्तनाद-पीड़ा भरी आवाज। अट्टहास-ठहाका लगाना। बखशना-छोड़ना। तलहटी-पहाड़ से नीचे का क्षेत्र।

पृष्ठ संख्या 74
महात्म्य-महिमा। गजेटियर-राजपत्र। बाहय-बाहरी। मान-मर्दन-कुचलना। कूवत-सामथ्र्य, बल। किलोल-खेल।

पृष्ठ संख्या 7s
अल्पकालिक-थोड़े समय के लिए। शूल-काँटा। बरखा-बहार-वर्षा की बहार। संहार-अंत।

पृष्ठ संख्या 76
मतवाला-मस्त। नगाड़े बजाना-बैंड बजाना। कामीजन-विलास करने वाले लोग। पावस-वर्षा ऋतु का महीना। लालित्य-सौंदर्य। संवेदन-अनुभव। कलपती-चीत्कार करती। साध-इच्छा। वध्या-बेकार। कुल-दो हलों से जोती जा सकने वाली धरती। उलीचना-हाथ से बाहर फेंकना।

पृष्ठ संख्या 77
पहर-समय। पल्ला-हिस्सा। आड़-ओट। तुषार-बर्फ।


 
2. अचरज यह नहीं कि इतने कम लोग क्यों हैं? अचरज यह है कि इतने लोग भी कैसे बसे हुए हैं? मैंने जब भी स्पीति की विपत्ति बताई है तो लोगों ने यही पूछा कि आखिर तब लोग वहाँ रहते क्यों हैं? आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। ठंड में ठिठुर रहे हैं। सिर्फ एक फसल उगाते हैं। लकड़ी भी नहीं है कि घर गरम रख सकें। वृत्ति नहीं है। फिर क्यों रहते हैं? क्या अपने धर्म की रक्षा के लिए रहते हैं? अपनी जन्मभूमि के ममत्व के कारण रहते हैं? या इस मजबूरी में रहते हैं कि कहीं और जा नहीं सकते? कहाँ जाएँ? या फिर और बातों के साथ-साथ यह सब कारण हैं? मैं नहीं जानता। मैं तो इतना ही देखता हूँ कि यहाँ रह रहे हैं, इसलिए रह रहे हैं। और कोई तर्क नहीं है। तर्क से हम किसी चीज को भले सिद्ध कर सकें, स्पीति में रहने को सिद्ध नहीं कर सकते। लेकिन तर्क का इतना मोह क्यों? ज्यादा करके संसार और निर्वाण अतक्र्य है। तर्क के परे है। (पृष्ठ-72-73)
प्रश्न

लेखक को स्पीति में लोगों के रहने पर आश्चर्य क्यों है?
स्पीति में कोन-सी कठिन परिस्थितियाँ हैं?
ससार और निवाण अतक्र्य क्यों हैं?
उत्तर-

लेखक कहता है कि यहाँ भयंकर ठंड होती है। यहाँ लकड़ी, रोजगार नहीं है। फसल भी एक ही होती है। ऐसी दुर्गम स्थितियों में भी लोग यहाँ रहते हैं। इसी बात पर लेखक को हैरानी है।
स्पीति में निम्नलिखित कठिन परिस्थितियाँ हैं-
(क) भयंकर ठंड ।
(ख) आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे रहना
(ग) एक फसल ले पाना
(घ) घर गर्म करने हेतु लकडी तक का न होना
(ङ) रोजगार न होना

 
संसार और निर्वाण तर्क से परे हैं। लेखक कहना चाहता है कि संसार की हर वस्तु को तर्क के आधार पर सिद्ध नहीं किया जा सकता। प्राणी की उत्पत्ति, संसार का चक्र आदि को कभी समझा नहीं जा सका। इसी तरह मृत्यु के कारण, मृत्यु के बाद जीव का स्थान आदि का सटीक उत्तर नहीं है।
3. मध्य हिमालय की जो श्रेणियाँ स्पीति को घेरे हुए हैं उनमें से जो उत्तर में हैं उसे बारालाचा श्रेणियों का विस्तार समझे। बारालाचा दरें की ऊँचाई का अनुमान 16221 फीट से लगाकर 16,500 फीट का लगाया गया है। इस पर्वत-श्रेणी में दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में जो श्रेणी है वह माने श्रेणी कहलाती है। इसका क्या अर्थ है? कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं है? ‘ओों मणि पद्मे हु’ इनका बीज मंत्र है इसका बड़ा महात्म्य है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं। कहीं इस श्रेणी का नाम इस माने के नाम पर तो नहीं है? अगर नहीं है तो करने जैसा है। यहाँ इन पहाड़ियों में माने का इतना जाप हुआ है कि यह नाम उन श्रेणियों को दे डालना ही सहज है। (पृष्ठ-73-74)

प्रश्न

स्पीति की किन पवतश्रेणियों ने घर रखा है? उनकी ऊँचाई कितनी हैं?
दक्षिण की श्रेणी के नामकरण का क्या आधार हैं?
स्पीति में किस धर्म का प्रभाव है? सप्रमाण उत्तर दीजिए।
उत्तर-

स्पीति मध्य हिमालय पर बसा हुआ है। इसके उत्तर की ओर बारालाचा श्रेणियाँ हैं। इनकी ऊँचाई 16221 फीट से लेकर 16500 फीट तक है। इस पर्वत-श्रेणी की दो चोटियों की ऊँचाई 21,000 फीट से अधिक है। दक्षिण में माने श्रेणी है।
दक्षिण की श्रेणी का नाम माने है। बौद्धों में भी माने एक बीज मंत्र है-‘ओों मणि पद्मे हु।’ इसकी बड़ी मान्यता है। इसे माने कहते हैं। लेखक का मानना है कि शायद माने मंत्र के अत्यधिक जप के कारण इसे माने श्रेणी कहने लगे हों।
स्पीति में बौद्ध धर्म का प्रभाव है। यहाँ की पर्वत श्रेणी को माने श्रेणी कहा जाता है। शायद इसका नाम माने के नाम पर ही हुआ हो। यदि ऐसा नहीं है तो भी यहाँ माने का जाप हुआ है, जिससे स्पष्ट होता है कि यहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव है।
4. मैं ऊँचाई के माप के चक्कर में नहीं हूँ। न इनसे होड़ लगाने के पक्ष में हूँ। वह एक बार लोसर में जो कर लिया सो बस है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। हाँ, कभी-कभी उनका मान-मर्दन करना मर्द और औरत की शान है। मैं सोचता हूँ कि देश और दुनिया के मैदानों से और पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आएँ और पहले तो स्वयं अपने अहंकार को गलाएँ-फिर इन चोटियों के अहंकार को चूर करें। उस आनंद का अनुभव करें जो साहस और कूवत से यौवन में ही प्राप्त होता है। अहंकार का ही मामला नहीं है। ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं। युवक-युवतियाँ किलोल करें तो यह भी हर्षित हों। अभी तो इन पर स्पीति का आर्तनाद जमा हुआ है। वह इस युवा अट्टहास की गरमी से कुछ तो पिघले। यह एक युवा निमंत्रण है। (पृष्ठ-74)

प्रश्न

लखक क्या नहीं चाहता तथा क्यों? W.
लेखक किन्हें यहाँ बुलाना चाहता है? क्यों?
लखक के अनुसार, माने की चोटियाँ उदास क्यों हैं?
उत्तर-

लेखक यह नहीं चाहता कि ऊँचाइयों के माप के चक्कर में पड़ा जाए। वह उनसे होड़ लगाने के पक्ष में भी नहीं है। इसका कारण यह है कि ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु का कारण बन सकता है।
लेखक दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियों को बुलाना चाहता है ताकि वे यहाँ आकर पहले अपने अहंकार को गलाएँ तथा फिर चोटियों का मान-मर्दन करें। इससे उन्हें आनंद की अनुभूति होगी।
लेखक के अनुसार माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हैं। दूसरे, यहाँ के भूगोल के कारण बर्फ का आर्तनाद छाया रहता है। अत: ये चोटियाँ उदास हैं।
5. यह पावस यहाँ नहीं पहुँचता है। कालिदास की वर्षा की शोभा विंध्याचल में है। हिमाचल की इन मध्य की घाटियों में नहीं है। मैं नहीं जानता कि इसका लालित्य लाहुल-स्पीति के नर-नारी समझ भी पाएँगे या नहीं। वर्षा उनके संवेदन का अंग नहीं है। वह यह जानते नहीं हैं कि ‘बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, अपने प्यारों से बिछुड़ी हुई स्त्रियाँ रोती-कलपती हैं, मोर नाचते हैं और बंदर चुप मारकर गुफाओं में जा छिपते हैं।’ अगर कालिदास यहाँ आकर कहें कि ‘अपने बहुत से सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करें’ तो शायद स्पीति के नर-नारी यही पूछेगे कि यह देवता कौन है? कहाँ रहता है? यहाँ क्यों नहीं आता? स्पीति में कभी-कभी बारिश होती है। वर्षा ऋतु यहाँ मन की साध पूरी नहीं करती। धरती सूखी, ठंडी और वंध्या रहती है। (पृष्ठ-76)

प्रश्न

स्पीति में पावस क्यों नहीं आता?
स्पीति के लोग क्या नहीं जानते? और क्यों?
कालिदास यहाँ आकर क्या कहगे?
उत्तर-

स्पीति हिमालय की मध्य घाटियों में स्थित है। यहाँ वर्षा ऋतु नहीं होती, क्योंकि यहाँ बादल नहीं पहुँचते। यहाँ कभी-कभी वर्षा होती भी है तो बर्फ की, जिसे अत्यंत शुभ माना जाता है।
स्पीति के लोग यह नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं, मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं, जंगल हरे-भरे हो जाते हैं, वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं, मोर नाचते हैं तथा बंदर गुफाओं में जा छिपते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहाँ वर्षा न के बराबर ही होती है।
कालिदास यहाँ आकर कहेंगे कि अपने बहुत-से-सुंदर गुणों से सुहानी लगने वाली, स्त्रियों का जी खिलाने वाली, पेड़ों की टहनियों और बेलों की सच्ची सखी तथा सभी जीवों का प्राण बनी हुई वर्षा ऋतु आपके मन की सब साधे पूरी करें।
कॉपी में करने वाले प्रश्न

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। लाहुल-स्पीति का यह योग भी आकस्मिक ही है। इनमें बहुत योगायोग नहीं है। ऊँचे दरों और कठिन रास्तों के कारण इतिहास में भी कम रहा है। अलध्य भूगोल यहाँ इतिहास का एक बड़ा कारक है। अब जबकि संचार में कुछ सुधार हुआ है तब भी लाहुल-स्पीति का योग प्रात: ‘वायरलेस सेट’ के जरिए है जो केलग और काजा के बीच खड़कता रहता है। फिर भी केलंग के बादशाह को भय लगा रहता है कि कहीं काजा का सूबेदार उसकी अवज्ञा तो नहीं कर रहा है? कहीं बगावत तो नहीं करने वाला है? लेकिन सिवाय वायरलेस सेट पर संदेश भेजने के वह कर भी क्या सकता है? वसंत में भी 170 मील जाना-आना कठिन है। शीत में प्राय: असंभव है। (पृष्ठ-70)
प्रश्न

1.स्पीति कहाँ स्थित हैं?
2.स्पीति का नाम इतिहास में कम क्यों हैं?
3.केलंग के बादशाह को क्या भय रहता हैं?
उत्तर-

1.स्पीति हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील है। यह पहाड़ी भू-भाग बहुत ऊँचा-नीचा है। यहाँ के दरें और पहाड़ इसे दुर्गम बनाते हैं।
2.स्पीति का इतिहास में कम ही नाम आता है, क्योंकि ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण यह आम संसार से कटा रहता है। वहाँ आवागमन अत्यंत कठिन है।
3.केलंग के बादशाह को भय रहता है कि काजा का सूबेदार उसकी आज्ञा का पालन करता है या नहीं? कहीं वह बगावत तो नहीं करने वाला। उसके पास संचार का साधन मात्र वायरलेस सेट था।


प्रश्न 1:
इतिहास में स्पीति का वर्णन नहीं मिलता। क्यों?
उत्तर-
स्पीति हिमाचल की पहाड़ियों में एक ऐसा दुर्गम स्थल है जहाँ पहुँचना सामान्य लोगों के वश में नहीं है। संचार माध्यमों एवं आवागमन के साधनों का अभाव है। अतः यहाँ दूसरे देशों की जानकारी नहीं होती। स्पीति का भूगोल अलंघ्य है। साल में आठ-नौ महीने बर्फ़ रहती है तथा यह संसार से कटा रहता है। दुर्गम स्थान के कारण किसी राजा ने यहाँ हमला नहीं किया। इसका ज़िक्र सिर्फ राज्यों के साथ जुड़े रहने पर ही आता है। मानवीय गतिविधियों के अभाव के कारण यहाँ इतिहास नहीं बना। यह क्षेत्र प्रायः स्वायत्त ही रहा है।

प्रश्न 2:
स्पीति के लोग जीवनयापन के लिए किन कठिनाइयों का सामना करते हैं?
उत्तर-
स्पीति का जीवन बहुत कठोर है। यहाँ लंबी शीत ऋतु होती है। आठ-नौ महीने यह क्षेत्र शेष विश्व से कटा रहता है। यहाँ जलाने के लिए लकड़ी भी नहीं होती। लोग ठंड से ठिठुरते रहते हैं। यहाँ न हरियाली है और न ही पेड़। यहाँ पर्याप्त वर्षा भी नहीं होती। यहाँ साल में एक ही फ़सल उगा सकते हैं। जौ, गेहूँ, मटर व सरसों के अलावा दूसरी फसल नहीं हो सकती। किसी प्रकार का फल व सब्जियाँ पैदा नहीं होतीं। यहाँ रोजगार के साधन नहीं हैं। यहाँ की ज़मीन खेती योग्य है, परंतु सिंचाई के साधन विकसित नहीं हैं। अत: यहाँ के लोग अत्यंत जटिल परिस्थिति में रहते हैं।

प्रश्न 3:
लेखक माने श्रेणी का नाम बौदधों के माने मंत्र के नाम पर करने के पक्ष में क्यों है?
उत्तर-
माने श्रेणी के विषय में लेखक स्वयं प्रश्न करता है कि इसका क्या अर्थ है? और फिर स्वयं ही अनुमानित करता है कि कहीं यह बौद्धों के माने मंत्र के नाम पर तो नहीं है? ‘ओं मणि पद्मे हुँ’ इनका बीज मंत्र है। लेखक इसे बौद्धों का बीज मंत्र और संक्षेप में माने कहकर पाठक के समक्ष यह तथ्य रखता है कि इस श्रेणी में माने मंत्र का बहुत अधिक जाप हुआ है और उसे ध्यान में रखते हुए इस श्रेणी का नाम माने ही दे डालना चाहिए।

प्रश्न 4:
ये माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं-इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने युवा वर्ग से क्या आग्रह किया है?
उत्तर-
लेखक ने बताया है कि माने पर्वत श्रेणियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई हैं, क्योंकि उनके जाप से यहाँ का वातावरण बोझिल व नीरस हो गया है। लेखक पहाड़ों व मैदानों से युवक-युवतियों को बुलाना चाहता है ताकि वे यहाँ आकर क्रीड़ा-कौतुक करें, किलोल करें, जिससे यहाँ के वातावरण में ताज़गी व उत्साह का संचार हों। चोटियों पर चढ़ने से जीवन अंगड़ाई लेने लगेगा। युवाओं के अट्टहास से चोटियों पर जमा आर्तनाद (दुख) पिघलेगा।

प्रश्न 5:
वर्षा यहाँ एक घटना है, एक सुखद संयोग हैं-लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर-
स्पीति में वर्षा नहीं होती। वहाँ के लोग वर्षा की आनंददायक स्थितियों से अनभिज्ञ हैं। यहाँ की धरती सूखी, ठंडी और वंध्या (बांझ) रहती है। स्पीति में साल में केवल एक फ़सल होती है। सिंचाई का साधन हैं-पहाड़ों से आ रहे नाले। उपजाऊ और खेती के योग्य धरती का तो यहाँ अभाव नहीं है, परंतु वर्षा नहीं होती। वर्षा यहाँ के लोगों के लिए एक घटना है। इसीलिए लेखक ने इसे एक सुखद संयोग माना है। 

प्रश्न 6:
स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर-
स्पीति अन्य पर्वतीय स्थलों से बहुत भिन्न हैं; जैसे-

(क) स्पीति के पहाड़ों की ऊँचाई 13000 से 21,000 फीट तक की है। 
(ख) यहाँ के दरें बहुत ऊँचे व दुर्गम हैं।
(ग) यहाँ साल में आठ-नौ महीने बर्फ जमी रहती है तथा रास्ते बंद हो जाते हैं।
(घ) यहाँ वर्षा नहीं होती तथा पेड़ व हरियाली का नामोनिशान नहीं है।
(ङ) यहाँ मटर, जौ आदि कुछ ही फ़सलें उग पाती हैं।
(च) यहाँ सिर्फ दो ऋतुएँ होती हैं-वसंत व शीत ऋतु।
(छ) यहाँ परिवहन व संचार का कोई साधन नहीं।
(ज) यहाँ आबादी बेहद कम है। यहाँ प्रति किलोमीटर चार व्यक्ति रहते हैं।
(झ) यहाँ पर्यटक नहीं आते। अत: यहाँ का वातावरण उदास रहता है।
प्रश्न 7:
‘स्पीति में बारिश’ पाठ का प्रतिपादय  (मूलभाव) बताइए।
उत्तर-
यह पाठ एक यात्रा-वृत्तांत है। स्पीति हिमाचल के मध्य में स्थित है। यह स्थान अपनी भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशेषताओं के कारण अन्य पर्वतीय स्थलों से भिन्न है। लेखक ने यहाँ की जनसंख्या, ऋतु, फसल, जलवायु व भूगोल का वर्णन किया है। ये एक-दूसरे से संबंधित हैं। उन्होंने दुर्गम क्षेत्र स्पीति में रहने वाले लोगों के कठिनाई भरे जीवन का भी वर्णन किया है। युवा पर्यटकों का पहुँचना स्पीति के पर्यावरण को बदल सकता है। ठंडे रेगिस्तान जैसे स्पीति के लिए उनका आना, वहाँ बूंदों भरा एक सुखद संयोग बन सकता है।

प्रश्न 8:
शिव का अट्टहास नहीं, हिम का आर्तनाद है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखक बताता है कि पहाड़ के शिखरों पर जो बर्फ जमी होती है, उसे शिव की तेज हँसी का कारण माना जाता है, परंतु स्पीति में यह मान्यता लागू नहीं होती। यहाँ बर्फ कष्टों का प्रतीक है। जीवन में इतने अभाव हैं कि यहाँ दर्द के सिवाय कुछ नहीं है। यही चीख-पुकार, दर्द बर्फ के रूप में जमा हो गया है। 
प्रश्न 9:
बाहरी आक्रमण से स्पीति के लोग अपनी सुरक्षा कैसे करते हैं?
उत्तर-
बाहरी आक्रमण से रक्षा करने के लिए स्पीति के लोग अप्रतिकार का तरीका अपनाते हैं। वे उससे लड़ते नहीं। वे चाँग्मा का तना पकड़कर या एक-दूसरे को पकड़कर आँख मींचकर बैठ जाते हैं। जब आक्रमणकारी या संकट गुज़र जाता है तो वे उठकर वापस आ जाते हैं।

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अक्क महादेवी

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