Monday 25 May 2020

गोस्वामी तुलसीदास-कवितावली




गोस्वामी तुलसीदास-कवितावली
















केवल पढ़ने व समझने के लिए


कवितावली (उत्तर कांड से) 
कवि परिचय
जीवन परिचय- गोस्वामी तुलसीदास का जन्म बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन 1532 में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों मानते हैं। इनका बचपन कष्ट में बीता। बचपन में ही इन्हें माता-पिता का वियोग सहना पड़ा। गुरु नरहरिदास की कृपा से इनको रामभक्ति का मार्ग मिला। इनका विवाह रत्नावली नामक युवती से हुआ। कहते हैं कि रत्नावली की फटकार से ही वे वैरागी बनकर रामभक्ति में लीन हो गए थे। विरक्त होकर ये काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि तीर्थों पर भ्रमण करते रहे। इनका निधन काशी में सन 1623 में हुआ।
रचनाएँ- गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
रामचरितमानस, कवितावली, रामलला नहछु, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, रामाज्ञा-प्रश्न, कृष्ण गीतावली, पार्वती–मंगल, जानकी-मंगल, हनुमान बाहुक, वैराग्य संदीपनी। इनमें से ‘रामचरितमानस’ एक महाकाव्य है। ‘कवितावली’ में रामकथा कवित्त व सवैया छंदों में रचित है। ‘विनयपत्रिका’ में स्तुति के गेय पद हैं।
काव्यगत विशेषताएँ- गोस्वामी तुलसीदास रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि हैं। ये लोकमंगल की साधना के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह तथ्य न सिर्फ़ उनकी काव्य-संवेदना की दृष्टि से, वरन काव्यभाषा के घटकों की दृष्टि से भी सत्य है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि शास्त्रीय भाषा (संस्कृत) में सर्जन-क्षमता होने के बावजूद इन्होंने लोकभाषा (अवधी व ब्रजभाषा) को साहित्य की रचना का माध्यम बनाया।
तुलसीदास में जीवन व जगत की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की अचूक समझ है। यह विशेषता उन्हें महाकवि बनाती है। ‘रामचरितमानस’ में प्रकृति व जीवन के विविध भावपूर्ण चित्र हैं, जिसके कारण यह हिंदी का अद्वतीय महाकाव्य बनकर उभरा है। इसकी लोकप्रियता का कारण लोक-संवेदना और समाज की नैतिक बनावट की समझ है। इनके सीता-राम ईश्वर की अपेक्षा तुलसी के देशकाल के आदशों के अनुरूप मानवीय धरातल पर पुनः सृष्ट चरित्र हैं।
भाषा-शैली- गोस्वामी तुलसीदास अपने समय में हिंदी-क्षेत्र में प्रचलित सारे भावात्मक तथा काव्यभाषायी तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें भाव-विचार, काव्यरूप, छंद तथा काव्यभाषा की बहुल समृद्ध मिलती है। ये अवधी तथा ब्रजभाषा की संस्कृति कथाओं में सीताराम और राधाकृष्ण की कथाओं को साधिकार अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं। उपमा अलंकार के क्षेत्र में जो प्रयोग-वैशिष्ट्य कालिदास की पहचान है, वही पहचान सांगरूपक के क्षेत्र में तुलसीदास की है।

कविताओं का प्रतिपादय एवं सार-

(क) कवितावली (उत्तरकांड से)
प्रतिपादय-कवित्त में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है।
सार-कवित्त में कवि ने पेट की आग को सबसे बड़ा बताया है। मनुष्य सारे काम इसी आग को बुझाने के उद्देश्य से करते हैं चाहे वह व्यापार, खेती, नौकरी, नाच-गाना, चोरी, गुप्तचरी, सेवा-टहल, गुणगान, शिकार करना या जंगलों में घूमना हो। इस पेट की आग को बुझाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेचने के लिए विवश हो जाते हैं। यह पेट की आग समुद्र की बड़वानल से भी बड़ी है। अब केवल रामरूपी घनश्याम ही इस आग को बुझा सकते हैं।
पहले सवैये में कवि अकाल की स्थिति का चित्रण करता है। इस समय किसान खेती नहीं कर सकता, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी व्यापार नहीं कर पाता तथा नौकरी की चाह रखने वालों को नौकरी नहीं मिलती। लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। वे विवश हैं। वेद-पुराणों में कही और दुनिया की देखी बातों से अब यही प्रतीत होता है कि अब तो भगवान राम की कृपा से ही कुशल होगी। वह राम से प्रार्थना करते हैं कि अब आप ही इस दरिद्रता रूपी रावण का विनाश कर सकते हैं।
दूसरे सवैये में कवि ने भक्त की गहनता और सघनता में उपजे भक्त-हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण किया है। वे कहते हैं कि चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, अवधूत या जोगी कहे, कोई राजपूत या जुलाहा कहे, किंतु मैं किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करने वाला और न किसी की जाति बिगाड़ने वाला हूँ। मैं तो केवल अपने प्रभु राम का गुलाम हूँ। जिसे जो अच्छा लगे, वही कहे। मैं माँगकर खा सकता हूँ तथा मस्जिद में सो सकता हूँ किंतु मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं तो सब प्रकार से भगवान राम को समर्पित हूँ।
(क) कवितावली
1. किसबी, किसान.. आग पेटकी।। (पृष्ठ-48)




शब्दार्थ-किसबी-धंधा। कुल- परिवार। बनिक- व्यापारी। भाट- चारण, प्रशंसा करने वाला। चाकर- घरेलू नौकर। चपल- चंचल। चार- गुप्तचर, दूत। चटकी- बाजीगर। गुनगढ़त- विभिन्न कलाएँ व विधाएँ सीखना। अटत- घूमता। अखटकी- शिकार करना। गहन गन- घना जंगल। अहन- दिन। करम-कार्य। अधरम- पाप। बुझाड़- बुझाना, शांत करना। घनश्याम- काला बादल। बड़वागितें- समुद्र की आग से। आग येट की- भूख।
प्रसंग- प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में मजदूर, किसान-वर्ग, व्यापारी, भिखारी, चारण, नौकर, चंचल नट, चोर, दूत, बाजीगर आदि पेट भरने के लिए अनेक काम करते हैं। कोई पढ़ता है, कोई अनेक तरह की कलाएँ सीखता है, कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई दिन भर गहन जंगल में शिकार की खोज में भटकता है। पेट भरने के लिए लोग छोटे-बड़े कार्य करते हैं तथा धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते। पेट के लिए वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हैं। तुलसीदास कहते हैं कि अब ऐसी आग भगवान राम रूपी बादल से ही बुझ सकती है, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र की आग से भी भयंकर है।
विशेष-

(i) समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है।
(ii) कवित्त छंद है।
(iii) तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।
(iv) ब्रजभाषा  है।
(v) ‘राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार  है।
(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
‘किसबी, किसान-कुल’, ‘भिखारी, भाट’, ‘चाकर, चपल’, ‘चोर, चार, चेटकी’, ‘गुन, गढ़त’, ‘गहन-गन’, ‘अहन अखेटकी ‘, ‘ बचत बेटा-बेटकी’, ‘ बड़वागितें  बड़ी  ‘
(vii) अभिधा शब्द-शक्ति है।

प्रश्न

(क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक काय करते हैं ?
(ख) कवि ने समाज के किन-किन लोगों का वर्णन किया है ? उनकी क्या परेशानी है ?
(ग) कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है ? यह आग कैसे है ?
(घ) उन कमों का उल्लेख कीजिए, जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं ?

उत्तर-

(क) पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते है ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ?
(ख) कवि ने मज़दूर, किसान-कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चोर, दूत, जादूगर आदि वर्गों का वर्णन किया है। वे भूख व गरीबी से परेशान हैं।
(ग) कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है।
(घ) कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।

2.

खेती न किसान को.. तुलसी हहा करी। 

शब्दार्थ-बलि- दान-दक्षिणा। बनिक- व्यापारी। बनिज- व्यापार। चाकर- घरेलू नौकर। चाकरी- नौकरी। जीविका बिहीन- रोजगार से रहित। सदयमान-दुखी। सोच- चिंता। बस- वश में। एक एकन सों- आपस में। का करी- क्या करें। बेदहूँ- वेद। पुरान- पुराण। लोकहूँ- लोक में भी। बिलोकिअत- देखते हैं। साँकरे- संकट। रावरें- आपने। दारिद- गरीबी। दसानन- रावण। दबाढ़- दबाया। दुनी- संसार। दीनबंधु- दुखियों पर कृपा करने वाला। दुरित- पाप। दहन-जलाने वाला, नाश करने वाला। हहा करी-दुखी हुआ।
प्रसंग-प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि अकाल की भयानक स्थिति है। इस समय किसानों की खेती नष्ट हो गई है। उन्हें खेती से कुछ नहीं मिल पा रहा है। कोई भीख माँगकर निर्वाह करना चाहे तो भीख भी नहीं मिलती। कोई बली भोजन भी नहीं देता। व्यापारी को व्यापार का साधन नहीं मिलता। नौकर को नौकरी नहीं मिलती। इस प्रकार चारों तरफ बेरोज़गारी है। आजीविका के साधन न रहने से लोग दुखी हैं तथा चिंता में डूबे हैं। वे एक-दूसरे से पूछते हैं-कहाँ जाएँ? क्या करें? वेदों-पुराणों में ऐसा कहा गया है और लोक में ऐसा देखा गया है कि जब-जब भी संकट उपस्थित हुआ, तब-तब राम ने सब पर कृपा की है। हे दीनबंधु! इस समय दरिद्रतारूपी रावण ने समूचे संसार को त्रस्त कर रखा है अर्थात सभी गरीबी से पीड़ित हैं। आप तो पापों का नाश करने वाले हो। चारों तरफ हाय-हाय मची हुई है।
विशेष-

(i) तत्कालीन समाज की बेरोजगारी व अकाल की भयावह स्थिति का चित्रण है।
(ii) तुलसी की रामभक्ति प्रकट हुई है।
(iii) ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।
(iv) ‘दारिद-दसानन’ व ‘दुरित दहन’ में रूपक अलंकार है।
(v) कवित्त छंद है।
(vi) तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है ‘किसान को’, ‘सीद्यमान सोच’, ‘एक एकन’, ‘का करी’, ‘साँकरे सबैं’, ‘राम-रावरें’, ‘कृपा करी’, ‘दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु’, ‘दुरित-दहन देखि’।

प्रश्न

(क) कवि ने समाज के किन-किन वरों के बारे में बताया है?
(ख) लोग चिंतित क्यों हैं तथा वे क्या सोच रहे हैं?
(ग) वेदों वा पुराणों में क्या कहा गया है ?
(घ) तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की हैं तथा क्यों ?

उत्तर-

(क) कवि ने किसान, भिखारी, व्यापारी, नौकरी करने वाले आदि वर्गों के बारे में बताया है कि ये सब बेरोजगारी से परेशान हैं।
(ख) लोग बेरोजगारी से चिंतित हैं। वे सोच रहे हैं कि हम कहाँ जाएँ क्या करें?
(ग) वेदों और पुराणों में कहा गया है कि जब-जब संकट आता है तब-तब प्रभु राम सभी पर कृपा करते हैं तथा सबका कष्ट दूर करते हैं।
(घ) तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है। दरिद्रतारूपी रावण ने पूरी दुनिया को दबोच लिया है तथा इसके कारण पाप बढ़ रहे हैं।

3.

धूत कहो, अवधूत कहों.. लेबोको एकु न दैबको दोऊ।।
शब्दार्थ- धूत- त्यागा हुआ। अवधूत– संन्यासी। रजपूतु- राजपूत। जलहा- जुलाहा। कोऊ- कोई। काहू की- किसी की। ब्याहब- ब्याह करना है। बिगार-बिगाड़ना। सरनाम- प्रसिद्ध। गुलामु- दास। जाको- जिसे। रुच- अच्छा लगे। आोऊ- और। खैबो- खाऊँगा। मसीत- मसजिद। सोढ़बो- सोऊँगा। लैंबो-लेना। वैब-देना। दोऊ- दोनों।
प्रसंग- प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- कवि समाज में व्याप्त जातिवाद और धर्म का खंडन करते हुए कहता है कि वह श्रीराम का भक्त है। कवि आगे कहता है कि समाज हमें चाहे धूर्त कहे या पाखंडी, संन्यासी कहे या राजपूत अथवा जुलाहा कहे, मुझे इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे अपनी जाति या नाम की कोई चिंता नहीं है क्योंकि मुझे किसी के बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करना और न ही किसी की जाति बिगाड़ने का शौक है। तुलसीदास का कहना है कि मैं राम का गुलाम हूँ, उसमें पूर्णत: समर्पित हूँ, अत: जिसे मेरे बारे में जो अच्छा लगे, वह कह सकता है। मैं माँगकर खा सकता हूँ, मस्जिद में सो सकता हूँ तथा मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। संक्षेप में कवि का समाज से कोई संबंध नहीं है। वह राम का समर्पित भक्त है।
विशेष-

(i) कवि समाज के आक्षेपों से दुखी है। उसने अपनी रामभक्ति को स्पष्ट किया है।
(ii) दास्यभक्ति का भाव चित्रित है।
(iii) ‘लैबोको एकु न दैबको दोऊ’ मुहावरे का सशक्त प्रयोग है।
(iv) सवैया छंद है।
(v) ब्रजभाषा है।
(vi) मस्जिद में सोने की बात करके कवि ने धार्मिक उदारता और समरसता का परिचय दिया है।
(vii) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
‘कहौ कोऊ’, ‘काहू की’, ‘कहै कछु’।

प्रश्न

(क) कवि किन पर व्यंग्य करता है और क्यों ?
(ख) कवि अपने  किस रुप पर गर्व करता है ?
(ग) कवि समाज से क्या चाहता हैं?
(घ) कवि अपने जीवन-निर्वाह किस प्रकार करना चाहता है ?

उत्तर-

(क) कवि धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वाले ठेकेदारों पर व्यंग्य करता है, क्योंकि समाज के इन ठेकेदारों के व्यवहार से ऊँच-नीच, जाति-पाँति आदि के द्वारा समाज की सामाजिक समरसता कहीं खो गई है।
(ख) कवि स्वयं को रामभक्त कहने में गर्व का अनुभव करता है। वह स्वयं को उनका गुलाम कहता है तथा समाज की हँसी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(ग) कवि समाज से कहता है कि समाज के लोग उसके बारे में जो कुछ कहना चाहें, कह सकते हैं। कवि पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह किसी से कोई संबंध नहीं रखता।
(घ) कवि भिक्षावृत्ति से अपना जीवनयापन करना चाहता है। वह मस्जिद में निश्चित होकर सोता है। उसे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। वह अपने सभी कार्यों के लिए अपने आराध्य श्रीराम पर आश्रित है।




कॉपी में करने के लिए-


1. बेकारी की समस्या तुलसी के जमाने में भी थी, उस बेकारी का वर्णन तुलसी के कवित्त के आधार पर कीजिए।

उत्तर-
तुलसीदास के युग में जनसामान्य के पास आजीविका के साधन नहीं थे। किसान की खेती नष्ट हो चुकी थी। भिखारी को भीख नहीं मिलती थी। दान-कार्य भी बंद  था। व्यापारी का व्यापार ठप्प था। नौकरी भी लोगों को नहीं मिलती थी। चारों तरफ बेरोज़गारी थी। लोगों को समझ में नहीं आता था कि वे कहाँ जाएँ? क्या करें?

2. तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए।

उत्तर-
तुलसीदास के समय का समाज मध्ययुगीन विचारधारा का था। उस समय बेरोज़गारी थी तथा आम व्यक्ति की हालत दयनीय थी। समाज में कोई नियम-कानून नहीं था। लोग अपनी भूख शांत करने के लिए सारे गलत कार्य भी करते थे। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। जाति व संप्रदाय के बंधन कठोर थे। नारी की दशा हीन थी। नारी की हानि को विशेष नहीं माना जाता था।

3. तुलसी  युग की आर्थिक स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन र्काजिए।

उत्तर-
तुलसी के समय आर्थिक दशा खराब थी। किसान के पास खेती न थी, व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। यहाँ तक कि भिखारी को भीख भी नहीं मिलती थी। लोग यही सोचते रहते थे कि क्या करें, कहाँ जाएँ? वे धन-प्राप्ति के उपायों के बारे में सोचते थे। वे अपनी संतानों तक को बेच देते थे। भुखमरी का साम्राज्य फैला हुआ था।


4. क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज में भी विद्यमान हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-
तुलसी ने लगभग 500 वर्ष पहले जो कुछ कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुरावस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन-निर्वाह के लिए गलत-सही कार्य करते हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम पर भेदभाव होता है। कृषि, वाणिज्य, रोज़गार की स्थिति में बहुत बदलाव आया है,परंतु सामाजिक दशा अभी भी शोचनीय है। तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।

5. 'कवितावली' में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।

त्तर:- कवितावली में उद्दृत छंदों से यह ज्ञात होता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। उन्होंने देखा कि उनके समय में बेरोज़गारी की समस्या से मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी परेशान थे। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच रहे थे। सभी ओर भुखमरी और विवशता थी।


6. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है – तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।

उत्तर:- तुलसी ने कहा है कि पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है। मनुष्य का जन्म, कर्म, कर्म-फल सब ईश्वर के अधीन हैं। निष्ठा और पुरुषार्थ से ही मनुष्य के पेट की आग का शमन हो सकता है। फल प्राप्ति के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है। पेट की आग बुझाने के लिए मेहनत के साथ-साथ ईश्वर कृपा का होना जरूरी है।

7. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत क्यों समझी?
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ / काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सोऊ।
इस सवैया में काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?

उत्तर:- तुलसी इस सवैये में यदि अपनी बेटी की शादी की बात करते तो सामाजिक संदर्भ में अंतर आ जाता क्योंकि विवाह के बाद बेटी को अपनी जाति छोड़कर अपनी पति की ही जाति अपनानी पड़ती है। दूसरे यदि तुलसी अपनी बेटी की शादी न करने का निर्णय लेते तो इसे भी समाज में गलत समझा जाता और तीसरे यदि किसी अन्य जाति में अपनी बेटी का विवाह संपन्न करवा देते तो इससे भी समाज में एक प्रकार का जातिगत या सामाजिक संघर्ष बढ़ने की संभावना पैदा हो जाती।


8. धूत कहौ… वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखलाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहां तक सहमत हैं?

उत्तर:- हम इस बात से सहमत है कि तुलसी स्वाभिमानी भक्त हृदय व्यक्ति है क्योंकि ‘धूत कहौ…’ वाले छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्तहृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है, जिससे समाज में व्याप्त जात-पांत और दुराग्रहों के तिरस्कार का साहस पैदा होता है। तुलसी राम में एकनिष्ठा रखकर समाज के रीती-रिवाजों का विरोध करते है तथा अपने स्वाभिमान को महत्त्व देते हैं।


9. व्याख्या करें –
माँगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ।।

उत्तर:- तुलसीदास को समाज की उलाहना से कोई फ़र्क नहीं पड़ता। वे किसी पर आश्रित नहीं है। वे श्री राम का नाम लेकर दिन बिताते हैं और मस्जिद में सो जाते हैं।(धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक)


10. व्याख्या करें –
ऊँचे नीचे करम, धरम-अधरम करि, पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।।

उत्तर:- तुलसीदास ने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। उन्होंने देखा कि उनके समय में बेरोजगारी की समस्या से मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी परेशान थे। अपनी भूख मिटाने के लिए सभी अनैतिक कार्य कर रहे हैं। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेच रहे थे। पेट भरने के लिए मनुष्य कोई भी पाप कर सकता है।


11. पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी-तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।

उत्तर:- तुलसीदास के समय में बेरोज़गारी के कारण अपनी भूख मिटाने के लिए सभी अनैतिक कार्य कर रहे थे। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेच रहे थे। वे कहते है कि पेट भरने के लिए मनुष्य कोई भी पाप कर सकता है। वर्तमान समय में भी बेरोज़गारी और गरीबी के कारण समाज में अनैतिकता बढ़ती जा रही है। आज भी कई लोग अपने बच्चों को पैसे के लिए बेच देते है।


................................................................................................................................

No comments:

Post a Comment

अक्क महादेवी

  पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न कविता के साथ प्रश्न 1: ‘लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं’-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए। उत्तर – ज्ञ...