Saturday, 25 April 2020

काले मेघा पानी दे-श्री धर्मवीर भारती



https://youtu.be/1JwqXE4VVHU

काले मेघा पानी दे





काले मेघा पानी दे
-श्री धर्मवीर भारती

लेखक परिचय
जीवन परिचय-धर्मवीर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में सन 1926 में हुआ था। इनके बचपन का कुछ समय आजमगढ़ व मऊनाथ भंजन में बीता। इनके पिता की मृत्यु के बाद परिवार को भयानक आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा। इनका भरण-पोषण इनके मामा अभयकृष्ण ने किया। 1942 ई० में इन्होंने इंटर कॉलेज कायस्थ पाठशाला से इंटरमीडिएट किया। 1943 ई० में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० पास की तथा 1947 में (इन्होंने) एम०ए० (हिंदी) उत्तीर्ण की।
तत्पश्चात इन्होंने डॉ० धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में सिद्ध-साहित्यपर शोधकार्य किया। इन्होंने अभ्युदयसंगमपत्र में कार्य किया। बाद में ये प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्य करने लगे। 1960 ई० में नौकरी छोड़कर धर्मयुगपत्रिका का संपादन किया। दूसरा सप्तकमें इनका स्थान विशिष्ट था। इन्होंने कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, पत्रकार तथा आलोचक के रूप में हिंदी जगत को अमूल्य रचनाएँ दीं। इन्हें पद्मश्री, व्यास सम्मान व अन्य अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। इन्होंने इंग्लैंड, जर्मनी, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। 1997 ई० में इनका देहांत हो गया।
रचनाएँ इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
कविता-संग्रह कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, ठडा लोहा। कहानी-संग्रह-बंद गली का आखिरी मकान, मुर्दो का गाँव, चाँद और टूटे हुए लोग। उपन्यास-सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता
गीतिनाट्य अंधा युग।
निबंध-संग्रह पश्यंती, कहनी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय।
आलोचना प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव-मूल्य और साहित्य।
एकांकी-संग्रह नदी प्यासी थी।
साहित्यिक विशेषताएँ धर्मवीर भारती के लेखन की खासियत यह है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के बीच इनकी अलग-अलग रचनाएँ लोकप्रिय हैं। ये मूल रूप से व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संबंध एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिकता व उत्तरदायित्वों के बावजूद इनकी रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। इनकी रचनाओं में रुमानियत संगीत में लय की तरह मौजूद है। इनकी कविताएँ कहानियाँ उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य व रिपोर्ताज हिंदी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं।



इनका लोकप्रिय उपन्यास गुनाहों का देवताएक सरस और भावप्रवण प्रेम-कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास सूरज का सातवाँ घोड़ापर हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केंद्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद गिरते हुए जीवन-मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्व-युद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति अंधा युगमें हुई है। अंधा युगगीति-साहित्य के श्रेष्ठ गीतिनाट्यों में है। मानव-मूल्य और साहित्य पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है।
भाषा-शैली भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। इनके गद्य लेखन में सहजता व आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात को बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। इन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्रिका, धर्मयुग, के संपादक रहते हुए हिंदी पत्रकारिता को सजा-सँवारकर गंभीर पत्रकारिता का एक मानक बनाया। वस्तुत: धर्मवीर भारती का स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है।
पाठ का प्रतिपादय एवं सारांश
प्रतिपादय-काले मेघा पानी देसंस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामथ्र्य। इनकी सार्थकता के विषय में शिक्षित वर्ग असमंजस में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निराकरण नहीं कर पाता तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।
सारांश -लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग किशोर शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। ये दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर गंगा मैया की जयबोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। जयकारा सुनते ही स्त्रियाँ व लड़कियाँ छज्जे व बारजों से झाँकने लगती हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं
काले मेघा पानी द                
पानी दे, गुड़धानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा       
काले मेघा पानी दे।
जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर पानीकी पुकार लगाती थी तो घरों में सहेजकर रखे पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते तथा कीचड़ में लथपथ हो जाते। यह वह समय होता था जब हर जगह लोग गरमी में भुनकर त्राहि-त्राहि करने लगते थे; कुएँ सूखने लगते थे; नलों में बहुत कम पानी आता था, खेतों की मिट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के कारण व्यक्ति बेहोश होने लगते थे।
पशु पानी की कमी से मरने लगते थे, लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाती थी तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी। लेखक को यह समझ में नहीं आता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग घरों में कठिनाई से इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। इस प्रकार के अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? ऐसे पाखंडों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन गए।
लेखक स्वयं मेढक-मंडली वालों की उमर का था। वह आर्यसमाजी था तथा कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। उसमें समाजसुधार का जोश ज्यादा था। उसे सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जीजी से थी जो उम्र में उसकी माँ से बड़ी थीं। वे सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को लेखक के हाथों पूरा करवाती थीं। जिन अंधविश्वासों को लेखक समाप्त करना चाहता था। वे ये सब कार्य लेखक को पुण्य मिलने के लिए करवाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेना पर पानी फेंकवाने का काम करवाना चाहती थीं। उसने साफ़ मना कर दिया। जीजी ने काँपते हाथों व डगमगाते पाँवों से इंदर सेना पर पानी फेंका। लेखक जीजी से मुँह फुलाए रहा। शाम को उसने जीजी की दी हुई लड्डू-मठरी भी नहीं खाई। पहले उन्होंने गुस्सा दिखाया, फिर उसे गोद में लेकर समझाया। उन्होंने कहा कि यह अंधविश्वास नहीं है।
यदि हम पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्र्य है। दान में देने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है। बिना त्याग के दान नहीं होता। करोड़पति दो-चार रुपये दान में दे दे तो वह त्याग नहीं होता। त्याग वह है जो अपनी जरूरत की चीज को जनकल्याण के लिए दे। ऐसे ही दान का फल मिलता है। लेखक जीजी के तकों के आगे पस्त हो गया। फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। जीजी ने फिर समझाया कि तू बहुत पढ़ गया है। वह अभी भी अनपढ़ है। किसान भी तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह हम अपने घर का पानी इन पर फेंककर बुवाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं।
ऋषि-मुनियों ने भी यह कहा है कि पहले खुद दो, तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे। यह आदमी का आचरण है जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजासच है। गाँधी जी महाराज भी यही कहते हैं। लेखक कहता है कि यह बात पचास साल पुरानी होने के बावजूद आज भी उसके मन पर दर्ज है। अनेक संदर्भों में ये बातें मन को कचोटती हैं कि हम देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। आज स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु खुद अपनी जाँच नहीं करते। काले मेघ उमड़ते हैं, पानी बरसता है, परंतु गगरी फूटी की फूटी रह जाती है। बैल प्यासे ही रह जाते हैं। यह स्थिति कब बदलेगी, यह कोई नहीं जानता?
शब्दार्थ
इंदर सेना इंद्र के सिपाही। काँदी कीचड़। अगवानी स्वागत। जाँधया कच्छा। जयकारा नारा, उद्घोष। छज्जा दीवार से बाहर निकला हुआ छत का भाग। बारजा छत पर मुँडेर के साथ वाली जगह। समवेत सामूहिक। गुड़धानी गुड में मिलाकर बनाया गया लड्डू। धकियाते धक्का देते। दुमहले दो मंजिलों वाला। जेठ जून का महीना। सहेजकर सँभालकर। तर करना अच्छी तरह भिगो देना। लोट लगाना जमीन में लेटना। लथपथ होना पूरी तरह सराबोर हो जाना। बदन शरीर। हाँक जोर की आवाज। मंडली बाँधना समूह बनाना। टेरना आवाज़ लगाना। भुनना जलना। त्राहिमाम मुझे बचाओ। दसतपा भयंकर गरमी के दस दिन। पखवारा पंद्रह दिन का समय। क्षितिज-धरती आकाश के मिलन का काल्पनिक स्थान। खौलता हुआ उबलता हुआ, बहुत गर्म।
कथा-विधान धार्मिक कथाओं का आयोजन। निमम कठोर। बरबादी व्यर्थ में नष्ट करना।
याखड ढोंग, दिखावा। संस्कार आदत। कायम स्थापित होना। तरकस में तीर रखना हमले के लिए तैयार होना। प्राया बसना प्रिय होना। खान भंडार। सतिया स्वास्तिक का निशान। यजीरी गुड़ और गेहूँ के भुने आटे से बना भुरभुरा खाद्य। हरछठ जन्माष्टमी के दो दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला पर्व। कुल्ही मिट्टी का छोटा बर्तन। भूजा भुना हुआ अन्न। अरवा चावल बिना उबाले धान से निकाला चावल। मुहफुलाना नाराजगी व्यक्त करना। तमतमाना क्रोध में आना। अर्घ्य जल चढ़ाना।
ढकोसला दिखावा। किला यस्त होना हारना। ज़िद्द पर अड़ना अपनी बात पर अड़ जाना। मदरसा स्कूल। आचरण व्यवहार। दज होना लिखा होना। संदर्भ प्रसंग। कचोटना बुरा लगना। चटखारे लेना मज़े लेना। दायरा सीमा। अंग बनना हिस्सा बनना। झमाझम भरपूर, निरंतर।

1. क्या इंदर सेना आज के युवा वर्ग का प्रेरणा-स्रोत बन सकती है?

 A. हाँ
 B. नहीं
 C. कह नहीं सकते
 D. इनमें से कोई नहीं

 

2. 'काले मेघा पानी दे' पाठ के लेखक का नाम है-

 A. जैनेंद्र कुमार
 B. महादेवी वर्मा
 C. रघुवीर सहाय
 D. धर्मवीर भारती

 

3. 'इंदर सेना' को लेखक ने क्या नाम दिया है?

 A. वानर सेना
 B. राम सेना
 C. मेढक-मंडली
 D. कछुआ मंडली

 

4. इंदर सेना द्वारा जल का दान माँगने को लेखक क्या कहता है?

 A. अंधविश्वास
 B. लोक विश्वास
 C. धार्मिक विश्वास
 D. लोक परंपरा

 

5. इंदर सेना के किशोर पानी और कीचड़ में लोट-लोट कर क्या माँगते हैं?

 A. रोटी
 B. वर्षा
 C. जल
 D. पैसे

 

6. लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक-मंडली नाम क्यों दिया?

 A. नंग-धडंग शरीर के साथ कीचड़-कांदों में लोटने के कारण
 B. अनावृष्टि में जल माँगने के कारण
 C. शोर-शराबे द्वारा गाँव की शांति भंग करने के कारण
 D. तालाब में मेंढकों के समान उछलने के कारण

 

7. किशोर अपने-आप को इंदर सेना क्यों कहते हैं?

 A. वर्षा के लिए इंद्र को प्रसन्न करने के लिए
 B. लोगों से जल माँगने के लिए
 C. इंद्र देवता से प्यार करने के लिए
 D. इंद्र के समान आचरण करने के लिए

 

8. 'गुड़धानी' से क्या अभिप्राय है?

 A. अनाज
 B. पानी
 C. गुड़ और चने से बना लड्डू
 D. धन-संपत्ति

 

9. लंगोटधारी युवक किसकी जय बोलते हैं?

 A. इंद्र देवता की
 B. गंगा मैया की
 C. भगवान की
 D. बादलों की

 

10. लेखक बचपन से किससे प्रभावित है?

 A. ब्रह्म समाज से
 B. सनातन धर्म से
 C. प्रार्थना सभा से
 D. आर्य समाज से

 

11. लेखक किस सभा का उपमंत्री था?

 A. युवक सभा का
 B. बटता सभा का
 C. कुमार सुधार सभा का
 D. आर्य सभा का

 

12. जीजी लेखक के हाथों पूजा-अनुष्ठान क्यों कराती थी?

 A. अपने कल्याण के लिए
 B. लेखक के कल्याण के लिए
 C. समाज-कल्याण के लिए
 D. परिवार के कल्याण के लिए

 

13. जीजी ने इंदर सेना पर डाले हुए पानी को क्या कहा?

 A. सूर्य देवता को अर्घ्य
 B. बादल को अर्घ्य
 C. इंद्र देवता को अर्घ्य
 D. किसान को अर्घ्य

 

14. किन लोगों ने त्याग और दान की महिमा का गुणगान किया है?

 A. ऋषि-मुनियों ने
 B. देवताओं ने
 C. राजनीतिज्ञों ने
 D. शिक्षकों में



 

15. किस वस्तु का दान महत्त्वपूर्ण है?

 A. जो वस्तु तुम्हारे पास बहुत अधिक है
 B. जो वस्तु तुम्हारे पास बहुत कम है
 C. जो वस्तु तुम्हारे पास नहीं है
 D. जो वस्तु तुमने किसी से उधार ली है


 

16. 'काले मेघा पानी दे' में लेखक ने किस भाषा का प्रयोग किया है?

 A. साहित्यिक ब्रज भाषा का
 B. सामान्य बोलचाल की ब्रज भाषा का
 C. साहित्यिक हिंदी भाषा का
 D. उर्दू प्रधान हिंदी भाषा का

 


अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
प्रश्न 1:
उन लोगों के दो नाम थे-इंदर सेना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीर, उनकी उछल-कूद, उनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थे, वे उन्हें कहते थे मेढ़ क-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़के, साँवला नंगा बदन सिर्फ एक जाँधिया या कभी-कभी सिर्फ़ लैंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय।जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जे, बारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी :
प्रश्न:
गाँव से पानी माँगने वालों के नाम क्या थे? ये पानी क्यों माँगते थे?
मेढ़क-मंडली से क्या तात्पर्य है?
मेढ़क-सडली में कैसे लड़के होते थे?
इंदर सेना के जयकारे की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
उत्तर
गाँव से पानी माँगने वालों के नाम थे-मेढक-मंडली या इंदर सेना। गाँवों में जब आषाढ़ में पानी नहीं बरसता था या सूखा पड़ने का अंदेशा होता था तो लड़के इंद्र देवता से पानी माँगते थे।
जो बच्चे मेढक की तरह उछल-कूद, शोर-शराबा व कीचड़ करते थे, उन्हें मेढक-मंडली कहा जाता था।
मेढक-मंडली में दस-बारह वर्ष से सोलह-अठारह वर्ष के लड़के होते थे। इनका रंग साँवला होता था तथा ये वस्त्र के नाम पर सिर्फ़ एक जाँधिया या कभी-कभी सिर्फ़ लैंगोटी पहनते थे।
इंदर सेना या मेढक-मंडली का जयकारा बोल गंगा मैया की जयसुनते ही लोगों में हलचल मच जाती थी। स्त्रियाँ और लड़कियाँ बारजे से इस टोली के क्रियाकलाप देखने लगती थीं।
प्रश्न 2:
सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ़ का पहला पखवारा भी बीत चुका होता, पर क्षितिज पर कहीं बादल की रेख भी नहीं दिखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को भी मानो खौलता हुआ पानी हो। शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब होती थी। जहाँ जुताई होनी चाहिए वहाँ खेतों की मिट्टी सूख कर पत्थर हो जाती, फिर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लूऐसी कि चलते-चलते आदमी आधे रास्ते में लू खाकर गिर पड़े। ढोर-ढंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इंदर सेना। वर्षा के बादलों के स्वामी हैं इंद्र और इंद्र की सेना टोली बाँधकर कीचड़ में लथपथ निकलती, पुकारते हुए मेघों को, पानी माँगते हुए प्यासे गलों और सूखे खेतों के लिए।
प्रश्न:
लोगों की परेशानी का क्या कारण था?
गाँव में लोगों की क्या दशा होती थी ?
गाँव वाले बारिश के लिए क्या उपाय करते थे?
इंदर सेना क्या है? वह क्या करती हैं?
उत्तर
जब आषाढ़ के पंद्रह दिन बीत चुके होते थे तथा बादलों का नामोनिशान नहीं दिखाई होता था। कुओं का पानी सूख रहा होता था। नलों में पानी नहीं आता। यदि आता भी था तो वह बेहद गरम होता था इसी कारण लोगों का परेशानी होती थी
गाँव में बारिश न होने से हालत अधिक खराब होती थी। खेतों में जहाँ जुताई होनी चाहिए, वहाँ की मिट्टी सूखकर पत्थर बन जाती थी, फिर उसमें पपड़ी पड़ जाती थी और जमीन फटने लगती थी। लू के कारण लोग चलते-चलते गिर जाते थे। पशु प्यास के कारण मरने लगे थे।
गाँव वाले बारिश के देवता इंद्र से प्रार्थना करते थे। वे कहीं पूजा-पाठ करते थे तो कहीं कथा-कीर्तन करते थे। इन सबमें विफल होने के बाद इंदर सेना कीचड़ व पानी में लथपथ होकर वर्षा की गुहार लगाती थी।
इंदर सेना उन किशोरों का झुंड होता था जो भगवान इंद्र से वर्षा माँगने के लिए गली-गली घूमकर लोगों से पानी माँगते थे। वे लोगों से मिले पानी में नहाते थे, उछलते-कूदते थे तथा कीचड़ में लथपथ होकर मेघों से पानी माँगते थे।
प्रश्न 3:
पानी की आशा पर जैसे सारा जीवन आकर टिक गया हो। बस एक बात मेरे समझ में नहीं आती थी कि जब चारों ओर पानी की इतनी कमी है तो लोग घर में इतनी कठिनाई से इकट्ठा करके रखा हुआ पानी बाल्टी भर-भरकर इन पर क्यों फेंकते हैं। कैसी निर्मम बरबादी है पानी की। देश की कितनी क्षति होती है इस तरह के अंधविश्वासों से। कौन कहता है इन्हें इंद्र की सेना? अगर इंद्र महाराज से ये पानी दिलवा सकते हैं तो खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेते? क्यों मुहल्ले भर का पानी नष्ट करवाते घूमते हैं? नहीं यह सब पाखंड है। अंधविश्वास है। ऐसे ही अंधविश्वासों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए और गुलाम बन गए।
प्रश्न:
लेखक को कौन-सी बात समझ में नहीं आती?
देश को किस तरह के अंधविश्वास से क्षति होती हैं?
कौन कहता है इन्हे इंद्र की सेना ? – इस कथन का व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
इंदर सेना के विरोध में लेखक क्या तर्क देता हैं?
उत्तर
लेखक को यह समझ में नहीं आता कि जब पानी की इतनी कमी है तो लोग कठिनाई से इकट्ठे किए हुए पानी को बाल्टी भर-भरकर इंदर सेना पर क्यों फेंकते हैं। यह पानी की बरबादी है।
वर्षा न होने पर पानी की कमी हो जाती है। ऐसे समय में ग्रामीण बच्चों की मंडली पर पानी फेंककर गलियों में पानी बरबाद करने जैसे अंधविश्वासों से देश की क्षति होती है।
इस कथन से लेखक ने इंदर सेना और मेढक-मंडली पर व्यंग्य किया है। ये लोग पानी की बरबादी करते हैं तथा पाखंड फैलाते हैं। यदि ये इंद्र से औरों को पानी दिलवा सकते हैं तो अपने लिए ही क्यों नहीं माँग लेते।
इंदर सेना के विरोध में लेखक तर्क देता है कि यदि यह सेना इंद्र महाराज से पानी दिलवा सकती है तो यह अपने लिए घड़ा-भर पानी क्यों नहीं माँग लेती? यह सेना मुहल्ले का पानी क्यों बरबाद करवा रही है?
प्रश्न 4:
मैं असल में था तो इन्हीं मेढक-मंडली वालों की उमर का, पर कुछ तो बचपन के आर्यसमाजी संस्कार थे और एक कुमारसुधार सभा कायम हुई थी उसका उपमंत्री बना दिया गया था-सी समाज-सुधार का जोश कुछ ज्यादा ही था। अंधविश्वासों के खिलाफ तो तरकस में तीर रखकर घूमता रहता था। मगर मुश्किल यह थी कि मुझे अपने बचपन में जिससे सबसे ज्यादा प्यार मिला वे थीं जीजी। यूँ मेरी रिश्ते में कोई नहीं थीं। उम्र में मेरी माँ से भी बड़ी थीं, पर अपने लड़के-बहू सबको छोड़कर उनके प्राण मुझी में बसते थे। और वे थीं उन तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों की खान जिन्हें कुमारसुधार सभा का यह उपमंत्री अंधविश्वास कहता था, और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहता था। पर मुश्किल यह थी कि उनका कोई पूजा-विधान, कोई त्योहार अनुष्ठान मेरे बिना पूरा नहीं होता था।
प्रश्न:
लेखक बचपन में क्या काम करता था?
लेखक का जीजी से क्या संबंध था ?
लेखक अंधविश्वासों को मानने के लिए क्यों विवश होता था?
अधविश्वासों के खिलाफ तरकस में तीर रखकर घूमने का आशय क्या हैं?
उत्तर
लेखक बचपन में आर्यसमाजी संस्कारों से प्रभावित था। वह कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। वह अंधविश्वासों के खिलाफ़ प्रचार करता था। वह मेढक-मंडली को नापसंद करता था।
जीजी का लेखक के साथ कोई रिश्ता नहीं था। वे लेखक की माँ से भी बड़ी उम्र की थीं और लेखक को सर्वाधिक प्यार करती थीं। उनके प्राण अपने लड़के-बहू की बजाय लेखक में बसते थे।
जीजी तमाम रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को मानती थीं तथा वे इन सबके विधि-विधान लेखक से पूरा करवाती थीं। वे लेखक को बहुत चाहती थीं। इस कारण लेखक को इन अंधविश्वासों को मानने के लिए विवश होना पड़ता था।
अंधविश्वासों के खिलाफ़ तरकस में तीर रखकर घूमने का आशय है-अंधविश्वासों के खिलाफ़ जन-जागृति फैलाते हुए उन्हें समाप्त करने का प्रयास करना।
प्रश्न 5:
लेकिन इस बार मैंने साफ़ इन्कार कर दिया। नहीं फेंकना है मुझे बाल्टी भर-भरकर पानी इस गंदी मेढक-मंडली पर। जब जीजी बाल्टी भरकर पानी ले गईं-उनके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे, हाथ काँप रहे थे, तब भी मैं अलग मुँह फुलाए खड़ा रहा। शाम को उन्होंने लड्डू-मठरी खाने को दिए तो मैंने उन्हें हाथ से अलग खिसका दिया। मुँह फेरकर बैठ गया, जीजी से बोला भी नहीं। पहले वे भी तमतमाई, लेकिन ज्यादा देर तक उनसे गुस्सा नहीं रहा गया। पास आकर मेरा सर अपनी गोद में लेकर बोलीं, ‘देख भइया, रूठ मत। मेरी बात सुन। यह सब अंधविश्वास नहीं है। हम इन्हें पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे?” मैं कुछ नहीं बोला। फिर जीजी बोलीं, “तू इसे पानी की बरबादी समझता है पर यह बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्र्य चढ़ाते हैं, जो चीज मनुष्य पाना चाहता है उसे पहले देगा नहीं तो पाएगा कैसे? इसीलिए ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।
प्रश्न:

लेखक ने किस काय से इनकार किया तथा क्यों?
पानी डालते समय जीजी की क्या हालत थी?
जीजी ने नाराज लेखक से क्या कहा?
जीजी ने दान के पक्ष में क्या तर्क दिए?
उत्तर
लेखक ने मेंढक-मंडली पर बाल्टी भर पानी डालने से साफ़ इनकार कर दिया क्योंकि वह इसे पानी की बरबादी समझता है और इसे अंधविश्वास मानता है।
पानी डालते समय जीजी के हाथ काँप रहे थे तथा उसके बूढ़े पाँव डगमगा रहे थे।
जीजी ने नाराज लेखक को पहले लड्डू-मठरी खाने को दिए पर लेखक के न खाने पर वे तमतमाई तथा फिर उसे स्नेह से कहा कि यह अंधविश्वास नहीं है। यदि हम इंद्र को अध्र्य नहीं चढ़ाएँगे तो भगवान इंद्र हमें पानी कैसे देंगे।
जीजी ने दान के पक्ष में यह तर्क दिया कि यदि हम इंदर सेना को पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देगा। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह बादलों पर अध्र्य चढ़ाना है। जो हम पाना चाहते हैं, उसे पहले दान देना पड़ता है। तभी हमें वह बढ़कर मिलता है। ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है।
प्रश्न 6:
फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है । कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे के समय हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजासिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यह तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका था, तब से जीजी गाँधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।
प्रश्न:
जीजी अपनी बात के समर्थन में क्या तर्क देती है ?
जीजी पानी की बुवाई के संबंध में क्या बात कहती है ?
जीजी द्वारा गांधी जी का नाम लेने के पीछे क्या कारण था ?
यथा राजा तथा प्रजायथा प्रजा तथा राजामें क्या अंतर है ?
उत्तर
जीजी अपनी बात के समर्थन में खेत की बुवाई का तर्क देती हैं। किसान तीस-चालीस मन गेहूँ की फसल लेने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से खेत में क्यारियाँ बनाकर डालता है।
जीजी पानी की बुवाई के विषय में कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँव, शहर, कस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।
जीजी के लड़के को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थीं। उसके बाद से जीजी गांधी महाराज की बात करने लगी थीं।
यथा राजा तथा प्रजाका अर्थ है-राजा के आचरण के अनुसार ही प्रजा का आचरण होना। यथा प्रजा तथा राजाका आशय है-जिस देश की जनता जैसी होती है, वहाँ का राजा वैसा ही होता है।
प्रश्न 7:
कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैं, हम आज देश के लिए करते क्या हैं? माँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने  स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैं? काले मेघा दल के दल उमड़ते हैं, पानी झमाझम बरसता है, पर गगरी फूटी की फूटी रह जाती है, बैल पियासे के पियासे रह जाते हैं? आखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?
प्रश्न:

लेखक के मन को क्या बातें कचोटती हैं और क्यों?
गगरी तथा बैल के उल्लख से लखक क्या कहना चाहता हैं?
भ्रष्टाचार की चचा करते समय क्या आवश्यक हैं और क्यों?
आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?’-आपके विचार से यह स्थिति कब और कैसे बदल सकती है?
उत्तर

लेखक के मन को यह बात बहुत कचोटती है कि लोग आज अपने स्वार्थ के लिए बड़ी-बड़ी माँगें करते हैं, स्वार्थों की घोषणा करते हैं। उसे यह बात इसलिए कचोटती है क्योंकि वे न तो त्याग करते हैं और न अपना कर्तव्य करते हैं।
गगरी और बैल के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि आज हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है परंतु भ्रष्टाचार के कारण वे साधन लोगों के पास तक नहीं पहुँच पाते। इससे देश की जनता की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं।
भ्रष्टाचार की चर्चा करते समय यह आवश्यक है कि हम ध्यान रखें कि कहीं हम उसमें लिप्त तो नहीं हो रहे हैं, क्योंकि हम भ्रष्टाचार में शामिल हो जाते हैं और हमें यह पता भी नहीं चल पाता है।
आखिर कब बदलेगी यह स्थितिमेरे विचार से यह स्थिति तब बदल सकती है जब समाज और सरकार में इसे बदलने की दृढ़ इच्छा-शक्ति जाग्रत हो जाए और लोग स्वार्थ तथा भ्रष्टाचार से दूरी बना लें।

काले मेघा पानी दे-डॉ धर्मवीर भारती

पाठ का प्रतिपादय-

‘काले मेघा पानी दे’ संस्मरण में लोक-प्रचलित विश्वास और विज्ञान के द्वंद्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास का अपना सामथ्र्य। इनकी सार्थकता के विषय में शिक्षित वर्ग असमंजस में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में प्रसंग रचा है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चुनौतियों का घर बन जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निराकरण नहीं कर पाता तो उत्सवधर्मी भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, प्रपंच रचता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है।

सारांश –

लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग किशोर शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। ये दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। जयकारा सुनते ही स्त्रियाँ व लड़कियाँ छज्जे व बारजों से झाँकने लगती हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –

काले मेघा पानी दे               

पानी दे, गुड़धानी दे

गगरी फूटी बैल पियासा      

काले मेघा पानी दे।

जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में सहेजकर रखे पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। ये भीगे बदन मिट्टी में लोट लगाते तथा कीचड़ में लथपथ हो जाते। यह वह समय होता था जब हर जगह लोग गरमी में भुनकर त्राहि-त्राहि करने लगते थे; कुएँ सूखने लगते थे; नलों में बहुत कम पानी आता था, खेतों की मिट्टी में पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती थी। लू के कारण व्यक्ति बेहोश होने लगते थे।

पशु पानी की कमी से मरने लगते थे, लेकिन बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाती थी तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी। लेखक को यह समझ में नहीं आता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग घरों में कठिनाई से इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। इस प्रकार के अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? ऐसे पाखंडों के कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन गए।

लेखक स्वयं मेढक-मंडली वालों की उमर का था। वह आर्यसमाजी था तथा कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था। उसमें समाजसुधार का जोश ज्यादा था। उसे सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जीजी से थी जो उम्र में उसकी माँ से बड़ी थीं। वे सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-अनुष्ठानों को लेखक के हाथों पूरा करवाती थीं। जिन अंधविश्वासों को लेखक समाप्त करना चाहता था। वे ये सब कार्य लेखक को पुण्य मिलने के लिए करवाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेना पर पानी फेंकवाने का काम करवाना चाहती थीं। उसने साफ़ मना कर दिया। जीजी ने काँपते हाथों व डगमगाते पाँवों से इंदर सेना पर पानी फेंका। लेखक जीजी से मुँह फुलाए रहा। शाम को उसने जीजी की दी हुई लड्डू-मठरी भी नहीं खाई। पहले उन्होंने गुस्सा दिखाया, फिर उसे गोद में लेकर समझाया। उन्होंने कहा कि यह अंधविश्वास नहीं है।

यदि हम पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह पानी का अध्र्य है। दान में देने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है। बिना त्याग के दान नहीं होता। करोड़पति दो-चार रुपये दान में दे दे तो वह त्याग नहीं होता। त्याग वह है जो अपनी जरूरत की चीज को जनकल्याण के लिए दे। ऐसे ही दान का फल मिलता है। लेखक जीजी के तकों के आगे पस्त हो गया। फिर भी वह अपनी जिद पर अड़ा रहा। जीजी ने फिर समझाया कि तू बहुत पढ़ गया है। वह अभी भी अनपढ़ है। किसान भी तीस-चालीस मन गेहूँ उगाने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह हम अपने घर का पानी इन पर फेंककर बुवाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं।

ऋषि-मुनियों ने भी यह कहा है कि पहले खुद दो, तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे। यह आदमी का आचरण है जिससे सबका आचरण बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सच है। गाँधी जी महाराज भी यही कहते हैं। लेखक कहता है कि यह बात पचास साल पुरानी होने के बावजूद आज भी उसके मन पर दर्ज है। अनेक संदर्भों में ये बातें मन को कचोटती हैं कि हम देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। आज स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु खुद अपनी जाँच नहीं करते। काले मेघ उमड़ते हैं, पानी बरसता है, परंतु गगरी फूटी की फूटी रह जाती है। बैल प्यासे ही रह जाते हैं। यह स्थिति कब बदलेगी, यह कोई नहीं जानता?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए 

प्रश्न 1:

उन लोगों के दो नाम थे-इंदर सेना या मेढक-मंडली। बिलकुल एक-दूसरे के विपरीत। जो लोग उनके नग्नस्वरूप शरीरउनकी उछल-कूदउनके शोर-शराबे और उनके कारण गली में होने वाले कीचड़ काँदो से चिढ़ते थेवे उन्हें कहते थे मेढ़ क-मंडली। उनकी अगवानी गालियों से होती थी। वे होते थे दस-बारह बरस से सोलह-अठारह बरस के लड़केसाँवला नंगा बदन सिर्फ एक जाँधिया या कभी-कभी सिर्फ़ लैंगोटी। एक जगह इकट्ठे होते थे। पहला जयकारा लगता था, “बोल गंगा मैया की जय।” जयकारा सुनते ही लोग सावधान हो जाते थे। स्त्रियाँ और लड़कियाँ छज्जेबारजे से झाँकने लगती थीं और यह विचित्र नंग-धडंग टोली उछलती-कूदती समवेत पुकार लगाती थी :

प्रश्न:

·      गाँव से पानी माँगने वालों के नाम क्या थेये पानी क्यों माँगते थे?

·      मेंढक-मंडली से क्या तात्पर्य है?

·      मेंढक-मंडली में कैसे लड़के होते थे?

·      इंदर सेना के जयकारे की क्या प्रतिक्रिया होती थी?

उत्तर 

·      गाँव से पानी माँगने वालों के नाम थे-मेढक-मंडली या इंदर सेना। गाँवों में जब आषाढ़ में पानी नहीं बरसता था या ‘ सूखा पड़ने का अंदेशा होता था तो लड़के इंद्र देवता से पानी माँगते थे।

·      जो बच्चे मेंढक की तरह उछल-कूदशोर-शराबा व कीचड़ करते थेउन्हें मेढक-मंडली कहा जाता था।

·      मेंढक-मंडली में दस-बारह वर्ष से सोलह-अठारह वर्ष के लड़के होते थे। इनका रंग साँवला होता था तथा ये वस्त्र के नाम पर सिर्फ़ एक जाँधिया या कभी-कभी सिर्फ़ लैंगोटी पहनते थे।

·      इंदर सेना या मेंढक-मंडली का जयकारा बोल गंगा मैया की जय” सुनते ही लोगों में हलचल मच जाती थी। स्त्रियाँ और लड़कियाँ बारजे से इस टोली के क्रियाकलाप देखने लगती थीं।

·      प्रश्न 2.

·      फिर जीजी बोलीं, “देख तू तो अभी से पढ़-लिख गया है। मैंने तो गाँव के मदरसे का भी मुँह नहीं देखा। पर एक बात देखी है । कि अगर तीस-चालीस मन गेहूँ उगाना है तो किसान पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से लेकर जमीन में क्यारियाँ बनाकर फेंक देता है। उसे बुवाई कहते हैं। यह जो सूखे के समय हम अपने घर का पानी इन पर फेंकते हैं वह भी बुवाई है। यह पानी गली में बोएँगे तो सारे शहरकस्बागाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैंफिर काले मेघा से पानी माँगते हैं। सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएँगे। भइयायह तो हर आदमी का आचरण हैजिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा’ सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा। यह तो गाँधी जी महाराज कहते हैं।” जीजी का एक लड़का राष्ट्रीय आंदोलन में पुलिस की लाठी खा चुका थातब से जीजी गाँधी महाराज की बात अकसर करने लगी थीं।

·      प्रश्न:

·      जीजी अपनी बात के समर्थन में क्या तर्क देती है ?

·      जीजी पानी की बुवाई के संबंध में क्या बात कहती है ?

·      जीजी द्वारा गांधी जी का नाम लेने के पीछे क्या कारण था ?

·      यथा राजा तथा प्रजा’  यथा प्रजा तथा राजा’ में क्या अंतर है ?

·      उत्तर 

·      जीजी अपनी बात के समर्थन में खेत की बुवाई का तर्क देती हैं। किसान तीस-चालीस मन गेहूँ की फसल लेने के लिए पाँच-छह सेर अच्छा गेहूँ अपने पास से खेत में क्यारियाँ बनाकर डालता है।

·      जीजी पानी की बुवाई के विषय में कहती हैं कि सूखे के समय हम अपने घर का पानी इंदर सेना पर फेंकते हैं तो यह भी एक प्रकार की बुवाई है। यह पानी गली में बोया जाता है जिसके बदले में गाँवशहरकस्बों में बादलों की फसल आ जाती है।

·      जीजी के लड़के को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थीं। उसके बाद से जीजी गांधी महाराज की बात करने लगी थीं।

·      यथा राजा तथा प्रजा’ का अर्थ है-राजा के आचरण के अनुसार ही प्रजा का आचरण होना। यथा प्रजा तथा राजा’ का आशय है-जिस देश की जनता जैसी होती हैवहाँ का राजा वैसा ही होता है।

·      प्रश्न 3:

·      कभी-कभी कैसे-कैसे संदर्भों में ये बातें मन को कचोट जाती हैंहम आज देश के लिए करते क्या हैंमाँगें हर क्षेत्र में बड़ी-बड़ी हैं पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। अपना स्वार्थ आज एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम चटखारे लेकर इसके या उसके भ्रष्टाचार की बातें करते हैं पर क्या कभी हमने जाँचा है कि अपने  स्तर पर अपने दायरे में हम उसी भ्रष्टाचार के अंग तो नहीं बन रहे हैंकाले मेघा दल के दल उमड़ते हैंपानी झमाझम बरसता हैपर गगरी फूटी की फूटी रह जाती हैबैल पियासे के पियासे रह जाते हैंआखिर कब बदलेगी यह स्थिति ?

·      प्रश्न:

 

·      लेखक के मन को क्या बातें कचोटती हैं और क्यों?

·      गगरी तथा बैल के उल्लख से लखक क्या कहना चाहता हैं?

·      भ्रष्टाचार की चचा करते समय क्या आवश्यक हैं और क्यों?

·      आखिर कब बदलेगी यह स्थिति?’-आपके विचार से यह स्थिति कब और कैसे बदल सकती है?

·      उत्तर 

·      लेखक के मन को यह बात बहुत कचोटती है कि लोग आज अपने स्वार्थ के लिए बड़ी-बड़ी माँगें करते हैंस्वार्थों की घोषणा करते हैं। उसे यह बात इसलिए कचोटती है क्योंकि वे न तो त्याग करते हैं और न अपना कर्तव्य करते हैं।

·      गगरी और बैल के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि आज हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है परंतु भ्रष्टाचार के कारण वे साधन लोगों के पास तक नहीं पहुँच पाते। इससे देश की जनता की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं।

·      भ्रष्टाचार की चर्चा करते समय यह आवश्यक है कि हम ध्यान रखें कि कहीं हम उसमें लिप्त तो नहीं हो रहे हैंक्योंकि हम भ्रष्टाचार में शामिल हो जाते हैं और हमें यह पता भी नहीं चल पाता है।

·      आखिर कब बदलेगी यह स्थिति’ मेरे विचार से यह स्थिति तब बदल सकती है जब समाज और सरकार में इसे बदलने की दृढ़ इच्छा-शक्ति जाग्रत हो जाए और लोग स्वार्थ तथा भ्रष्टाचार से दूरी बना लें।

 

 पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
लोगों ने लड़कों की टोली को मेढक मंडली नाम किस आधार पर दिया ? यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहकर क्यों बुलाती थी ?
उत्तर
लोग जब इन लड़कों की टोली को कीचड़ में धंसा देखते, उनके नंगे शरीर को, उनके शोर शराबे को तथा उनके कारण गली में होने वाली कीचड़ या गंदगी को देखते हैं तो वे इन्हें मेढक-मंडली कहते हैं। लेकिन बच्चों की यह टोली अपने आपको इंदर सेना कहती थी क्योंकि ये इंदर देवता को बुलाने के लिए लोगों के घर से पानी माँगते थे और नहाते थे। प्रत्येक बच्चा अपने आपको इंद्र कहता था इसलिए यह इंदर सेना थी।
प्रश्न 2:
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने को किस तरह सही ठहराया?
उत्तर
जीजी ने इंदर सेना पर पानी फेंके जाने के समर्थन में कई तर्क दिए जो निम्नलिखित हैं

किसी से कुछ पाने के लिए पहले कुछ चढ़ावा देना पड़ता है। इंद्र को पानी का अध्र्य चढ़ाने से ही वे वर्षा के जरिए पानी देंगे।
त्याग भावना से दिया गया दान ही फलीभूत होता है। जिस वस्तु की अधिक जरूरत है, उसके दान से ही फल मिलता है। पानी की भी यही स्थिति है।
जिस तरह किसान अपनी तरफ से पाँच-छह सेर अच्छे गेहूँ खेतों में बोता है ताकि उसे तीस-चालीस मन गेहूँ मिल सके, उसी तरह पानी की बुवाई से बादलों की अच्छी फसल होती है और खूब वर्षा होती है।
प्रश्न 3:
पानी दे ,गुड़धानी देमेघों से पानी के साथ साथ गुड़धनी की माँग क्यों की जा रहा है ?
उत्तर
गुड़धानीशब्द का वैसे तो अर्थ होता है गुड़ और चने से बना लड्डू लेकिन यहाँ गुड़धानी से आशय अनाजसे है। बच्चे पानी की माँग तो करते ही हैं लेकिन वे इंदर से यह भी प्रार्थना करते हैं कि हमें खुब अनाज भी देना ताकि हम चैन से खा पी सकें। केवल पानी देने से हमारा कल्याण नहीं होगा। खाने के लिए अन्न भी चाहिए। इसलिए हमें गुड़धानी भी दो।।

प्रश्न 4:
गगरी फूटी बैल पियासासे लेखक का क्या आशय हैं?

अथवा

गगरी फूटी बैल पियासाकथन के पीछे छिपी वेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इंदर सेना गाती है काले मेधा पानी दे, गगरी फूटी बैल पियासा। इस पंक्ति में बैलको प्रमुखता दी गई है। बैलग्रामीण जीवन का अभिन्न हिस्सा है। कृषि-कार्य उसी पर आधारित है। वह खेतों को जोतकर अन्न उपजाता है। उसके प्यासे रहने से कृषि-कार्य बाधित होता है। कृषि ठीक ढंग से न हो पाने के कारण बैलों के प्यासा रहने की बात व्यक्त हुई है।

प्रश्न 5:
इंदर सेना सबसे पहले गा मैया की जय क्यों बोलती हैं? नदियों का भारतीय सामाजिक, सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्व हैं?
उत्तर
गंगा माता के समान पवित्र और कल्याण करने वाली है। इसलिए बच्चे सबसे पहले गंगा मैया की जय बोलते हैं। भारतीय संस्कृति में नदी को माँकी तरह पूजने वाली बताया गया है। सभी नदियाँ हमारी माताएँ हैं। भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में सभी नदियाँ पवित्रता और कल्याण की मूर्तियाँ हैं। ये हमारी जीवन की आधार हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय समाज गंगा और अन्य नदियों को धारित्री बताकर उनकी पूजा करता है, ताकि इनकी कृपा बनी रहे।
प्रश्न 6:
रिश्तों में हमारी भावना शक्ति का बँट जाना ,विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजनी हमारी बुदिध की शक्ति को कमज़ोर करती है। पाठ में जीजी लेखक की भावना के संदर्ब में इस कथन के ओचित्य की समीक्षा कीजिए ?
उत्तर –
यह कथन पूर्णत: सत्य है। रिश्तों में हमारी भावना-शक्ति बँट जाती है। ऐसे में विश्वासों के जंगल में सत्य की राह खोजती हमारी बुद्धि की शक्ति कमज़ोर हो जाती है। इस पाठ में जीजी लेखक को बेपनाह स्नेह करती हैं। वे अनेक तरह की धार्मिक क्रियाएँ लेखक से करवाती थीं जिन्हें लेखक अंधविश्वास मानता था। इंदर सेना पर पानी फेंकने से मना करने पर जीजी अपने तर्क देती हैं। लेखक उन तर्कों की काट नहीं दे पाता, क्योंकि उन तर्कों के पीछे भावनात्मक लगाव था। भावना में जीवन के अनेक सत्य छिप जाते हैं तो कुछ प्रकट हो जाते हैं। बुद्धि शुष्क होती है तथा तर्क पर आधारित होती है। भावना में तर्क का स्थान नहीं होता, वहाँ विश्वास ही प्रमुख होता है। विश्वास खंडित होने पर रिश्ते समाप्त हो जाते हैं तथा समाज का ढाँचा बिखर जाता है।



No comments:

Post a Comment

अक्क महादेवी

  पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न कविता के साथ प्रश्न 1: ‘लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं’-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए। उत्तर – ज्ञ...