https://youtu.be/-HbueLhxjfY

1.
बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फैंस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा की उलट-पालट
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।
शब्दार्थ-सीधी-सरल, सहज। चक्कर-प्रभाव। टेढ़ा फंसना-बुरा फँसना। पेचीदा-कठिन, मुश्किल।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर ’’ से ली गई है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। इस कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है और बताया गया है कि अकसर चमत्कार के चक्कर में भाषा दुरूह हो जाती है।
व्याख्या-कवि कहता है कि वह अपने मन के भावों को सहज रूप से अभिव्यक्त करना चाहता था, परंतु समाज की प्रकृति को देखते हुए उसे प्रभावी भाषा के रूप में प्रस्तुत करना चाहा। पर भाषा के चक्कर में भावों की सहजता नष्ट हो गई। कवि कहता है कि मैंने मूल बात को कहने के लिए शब्दों, वाक्यांशों, वाक्यों आदि को बदला। फिर उसके रूप को बदला तथा शब्दों को उलट-पुलट कर प्रयोग किया। कवि ने कोशिश की कि या तो इस प्रयोग से उसका काम बच जाए या फिर वह भाषा के उलट-फेर के जंजाल से मुक्त हो सके, परंतु कवि को कोई भी सफलता नहीं मिली। उसकी भाषा के साथ-साथ कथ्य भी जटिल होता गया।
विशेष-
कवि ने भाषा की जटिलता पर कटाक्ष किया है।
भाषा सरल, सहज साहित्यिक खड़ी बोली है।
काव्यांश रचना मुक्त छंद में है।
‘टेढ़ी फंसना’, ‘पेचीदा होना’ मुहावरों का सुंदर प्रयोग है।
‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
प्रश्न
(क) ‘भाषा के चक्कर” का तात्पर्य बताइए।
(ख) कवि अपनी बात के बारे में क्या बताता है?
(ग) कवि ने बात को पाने के चक्कर में क्या-क्या किया?
(घ) कवि की असफलता का क्या कारण था?
उत्तर –
(क) ‘भाषा के चक्कर’ से तात्पर्य है-भाषा को जबरदस्ती अलंकृत करना।
(ख) कवि कहता है कि उसकी बात साधारण थी, परंतु वह भाषा के चक्कर में उलझकर जटिल हो गई।
(ग) कवि ने बात को प्राप्त करने के लिए भाषा को घुमाया-फिराया, उलटा-पलटा, तोड़ा-मरोड़ा। फलस्वरूप वह बात पेचीदा हो गई।
(घ) कवि ने अपनी बात को कहने के लिए भाषा को जटिल व अलंकारिक बनाने की कोशिश की। इस कारण बात अपनी सहजता खो बैठी और वह पेचीदा हो गई।
2.
सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
में फेंच को खोलने की बजाय
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतब पर मुझे
साफ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
शब्दार्थ-मुश्किल-कठिन। धैर्य-धीरज। पेंच-ऐसी कील जिसके आधे भाग पर चूड़ियाँ बनी होती हैं, उलझन। बेतरह-बुरी तरह। करतब-चमत्कार। तमाशवन-दर्शक, तमाशा देखने वाले। शाबाशी-प्रशंसा, प्रोत्साहन।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर’ से ली गई है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। इस कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है और बताया गया है कि अकसर चमत्कार के चक्कर में भाषा दुरूह हो जाती है।
व्याख्या-कवि कहता है कि जब उसकी बात पेचीदा हो गई तो उसने सारी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। हल ढूँढ़ने की बजाय वह और अधिक शब्दजाल में फैस गया। बात का पेंच खुलने के स्थान पर टेढ़ा होता गया और कवि उसे अनुचित रूप से कसता चला गया। इससे भाषा और कठिन हो गई। शब्दों के प्रयोग पर दर्शक उसे प्रोत्साहन दे रहे थे, उसकी प्रशंसा कर रहे थे।
विशेष-
कवि धैर्यपूर्वक सरलता से काम करने की सलाह दे रहा है।
‘वाह-वाह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
‘पेंच कसने’ के बिंब से कवि का कथ्य प्रभावी बना है।
‘बेतरह’ विशेषण सटीक है।
‘करतब’ शब्द में व्यंग्यात्मकता का भाव निहित है।
लोकप्रिय उर्दू शब्दों-बेतरह, करतब, तमाशबीन, साफ़ आदि का सुंदर प्रयोग है।
मुक्तक छंद है।
प्रश्न
(क) कवि की क्या कमी थी?
(ख) ‘पेंच को खोलने की बजाय कसना’-पक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
(ग) कवि ने अपने किस काय को करतब कहा है?
(घ) कवि के करतब का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर –
(क) कवि ने अपनी समस्या को ध्यान से नहीं समझा। वह धैर्य खो बैठा।
(ख) इसका अर्थ यह है कि उसने बात को स्पष्ट नहीं किया। इसके विपरीत, वह शब्दजाल में उलझता गया।
(ग) कवि ने अभिव्यक्ति को बिना सोचे-समझे उलझाने व कठिन बनाने को करतब कहा है।
(घ) कवि ने भाषा को जितना ही बनावटी ढंग और शब्दों के जाल में उलझाकर लाग-लपेट करने वाले शब्दों में कहा, सुनने वालों द्वारा उसे उतनी ही शाबाशी मिली।
3.
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हारकर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
परअंदर से
न तो उसमें कसाव था
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा-
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा?’
शब्दार्थ-जोर-बल । चूड़ी मरना-पेंच कसने के लिए बनी चूड़ी का नष्ट होना, कथ्य का मुख्य भाव समाप्त होना। कसाव-खिंचाव, गहराई। सहूलियत-सहजता, सुविधा। बरतना-व्यवहार में लाना।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘बात सीधी थी पर ’ से ली गई है। इसके रचयिता कुंवर नारायण हैं। इस कविता में भाषा की सहजता की बात कही गई है और बताया गया है कि चमत्कार के चक्कर में भाषा कैसे दुरूह और अप्रभावी हो जाती है।
व्याख्या-कवि अपनी बात कहने के लिए बनावटी भाषा का प्रयोग करने लगा। परिणाम वही हुआ जिसका कवि को डर था। जैसे पेंच के साथ जबरदस्ती करने से उसकी चूड़ियाँ समाप्त हो जाती हैं, उसी प्रकार शब्दों के जाल में उलझकर कवि की बात का प्रभाव नष्ट हो गया और वह बनावटीपन में ही खो गई। उसकी अभिव्यंजना समाप्त हो गई।
अंत में, कवि जब अपनी बात को स्पष्ट नहीं कर सका तो उसने अपनी बात को वहीं पर छोड़ दिया जैसे पेंच की चूड़ी समाप्त होने पर उसे कील की तरह ठोंक दिया जाता है।
ऐसी स्थिति में कवि की अभिव्यक्ति बाहरी तौर पर कविता जैसी लगती थी, परंतु उसमें भावों की गहराई नहीं थी, शब्दों में ताकत नहीं थी। कविता प्रभावहीन हो गई। जब वह अपनी बात स्पष्ट न कर सका तो बात ने शरारती बच्चे के समान पसीना पोंछते कवि से पूछा कि क्या तुमने कभी भाषा को सरलता, सहजता और सुविधा से प्रयोग करना नहीं सीखा।
विशेष-
कवि ने कविताओं की आडंबरपूर्ण (बनावटी) भाषा पर व्यंग्य किया है।
बात का मानवीकरण किया है इसलिए मानवीकरण अलंकार है ।
‘कील की तरह’, ‘शरारती बच्चे की तरह’ में उपमा अलंकार है।
‘ज़ोर ज़बरदस्ती’, ‘पसीना पोंछते’ में अनुप्रास तथा ‘बात की चूड़ी’ में रूपक अलंकार है।
‘ कील की तरह ठोंकना’ भाषा को ज़बरदस्ती जटिल बनाने का परिचायक है।
मुक्तक छंद है।
काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग है।
प्रश्न
(क) बात की चूड़ी मर जाने और बेकार घूमने के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता हैं?
(ख) काव्यांश में प्रयुक्त दोनों आयामों के प्रयोग-सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए/
(ग) भाष को सहूलियत से बरतने का क्या अभिप्राय हैं?
(घ) बात ने कवि से क्या पूछा तथा क्यों?
उत्तर –
(क) जब हम पेंच को ज़बरदस्ती कसते चले जाते हैं तो वह अपनी चूड़ी खो बैठता है तथा स्वतंत्र रूप से घूमने लगता है। इसी तरह जब किसी बात में जबरदस्ती शब्द ढूँसे जाते हैं तो वह अपना प्रभाव खो बैठती है तथा शब्दों के जाल में उलझकर रह जाती है।
(ख) बात के प्रभाव के लिए कवि ने पेंच और कील की उपमा दी है। इन शब्दों के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि निरर्थक व आलंकारिक शब्दों के प्रयोग से बात शब्द-जाल में घूमती रहती है। उसका प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(ग) ‘भाषा को सहूलियत से बरतने’ का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपनी अभिव्यक्ति सहज तरीके से करनी चाहिए। शब्द-जाल में उलझने से बात का प्रभाव समाप्त हो जाता है और केवल शब्दों की कारीगरी रह जाती है।
(घ) बात ने शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा कि क्या उसने भाषा के सरल, सहज प्रयोग को नहीं सीखा। इसका कारण यह था कि कवि ने भाषा के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती की थी।
काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
(ख) बात सीधी थी पर…..
निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जोर जबरदती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!
हारकर मेंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
ना ताकत
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा—
” क्या तुमने भाता की
सहूलियत से बरतना कभी नहीं तीखा? “
प्रश्न
(क) रचनाकार के सामने कथ्य और माध्यम की क्या समस्या थी?
(ख) भाव स्पष्ट कीजिए- जोर जबरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई।
(ग) कोई रचना ढील पेंच की तरह कब और कैसे प्रभावहीन हो जाती हैं?
उत्तर –
(क) रचनाकार का कथ्य सरल व प्रभावी था। वह अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहना चाहता था, परंतु वह वक्र शैली के चक्कर में उलझ गया तथा शब्दों के जाल में उलझकर रह गया।
(ख) कवि कहता है कि जब हम बात को सरल ढंग से न कहकर आलंकारिक, जटिल या वक्र शैली में कहना चाहते हैं तो उस कथन का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
(ग) कोई भी रचना ढीले पेंच की तरह तब प्रभावहीन हो जाती है जब गलत व जटिल शब्दों का प्रयोग वक्र शैली में प्रस्तुत की जाती है। जटिलता के चक्कर में कथन सही रूप नहीं ले पाता।
पाठ्यपुस्तक से हल
प्रश्न 5:
भाषा को ‘सहूलियत’ से बरतने से क्या अभिप्राय हैं?
उत्तर –
कवि कहता है कि मानव मन में भावों का उदय होता है। यदि वह भाषा के चमत्कार में उलझ जाता है तो वह अपने भावों को सही ढंग से अभिव्यक्त नहीं कर पाता। वह तभी उन्हें प्रकट कर सकता है जब भाषा को वह साधन बनाए, साध्य नहीं। साधन बनाने पर भाषा सहजता से इस्तेमाल हो सकती है। वह लोगों तक अपनी बात कह सकता है।
प्रश्न 6:
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, किंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में ‘सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती हैं? कैसे?
उत्तर –
बात और भाषा परस्पर जुड़े होते हैं, परंतु कभी-कभी भाषा के चक्कर में सीधी बात भी टेढ़ी हो जाती है। इसका कारण उपयुक्त शब्दों का प्रयोग न करना होता है। मनुष्य अपनी भाषा को कठिन बना देता है तथा आडंबरपूर्ण या चमत्कारपूर्ण शब्दों से अपनी बात को कहने में स्वयं को श्रेष्ठ समझता है। इससे वह अपनी मूल बात को कहने में असफल हो जाता है। मनुष्य को समझना चाहिए कि हर शब्द का अपना विशिष्ट अर्थ होता है, भले ही वह समानार्थी या पर्यायवाची हो। शब्दों के चक्कर में उलझकर भाव अपना अर्थ खो बैठते हैं।
कविता के बहाने/ बात सीधी थी पर
1. 'बात की पेंच खोलना' से कवि का क्या तात्पर्य है?
A. बात का उलझना
B. बात का प्रभावहीन होना
C. बात का स्पष्ट होना
D. बात का तर्कपूर्ण होना
2. कवि से शरारती बच्चे के समान कौन खेल रही थी?
A. बात
B. भाषा
C. कविता
D. पतंग
3. भाषा के साथ-साथ बात कैसी होती गई थी?
A. सरल
B. दुष्कर
C. पेचीदा
D. बोधगम्य
4. भाषा के क्या करने से बात और अधिक पेचीदा हो गई?
A. तोड़ने-मरोड़ने
B. उलटने-पलटने
C. घुमाने-फिराने
D. उपर्युक्त सभी
5. बात कवि के साथ किसके समान खेल रही थी?
A. खिलौने
B. पेंच
C. बच्चे
D. भाषा
6. 'कविता के बहाने' कविता के रचनाकार हैं-
A. कुँवर सिंह
B. कुँवर प्रसाद
C. कुँवर प्रकाश
D. कुँवर नारायण
7. कविता किस के बहाने एक उड़ान है?
A. अतीत
B. बालक
C. चिड़िया
D. प्रेमिका
8. कविता फूलों के बहाने क्या है?
A. गिनना
B. खिलना
C. मुरझाना
D. बहकना
9. कविता किस के बहाने खेल रही थी?
A. बच्चे के
B. खिलौने के
C. पेंच के
D. भाषा के
10. 'सब घर एक कर देने' का आशय है-
A. भेदभाव नहीं रखना
B. तोड़-फोड़ करना
C. सीमा में रहना
D. शोर मचाना
11. सीधी सी बात किस के चक्कर में फंस गई?
A. भाव के
B. छंद के
C. अलंकार के
D. भाषा के
12. कवि किसे पाने की कोशिश करता है?
A. बात को
B. पेंच को
C. कील को
D. कलम को
13. बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई?
A. व्यर्थ
B. अनर्गल
C. पेचीदा
D. सहज
14. कवि क्या करतब कर रहा था?
A. मेज़ पर पेंच ठोक रहा था
B. बात सुलझाने की कोशिश कर
रहा था
C. नाटक कर रहा था
D. लोगों को बात समझा रहा था
15. बात कवि के साथ कैसे खेल रही थी?
A. खिलौने के समान
B. खिलाड़ी के समान
C. बच्चे के समान
D. भाग्य के समान
16. 'बात की चूड़ी मर जाना' से कवि का तात्पर्य है-
A. स्पष्ट होना
B. तर्कपूर्ण होना
C. प्रभावपूर्ण होना
D. प्रभावहीन होना
17. 'बात की पेंच खोलना' प्रतीक से स्पष्ट होता है-
A. स्पष्ट होना
B. समझ न आना
C. उलझ जाना
D. बहस करना।
18. बात का शरारती बच्चे की तरह खेलना है बात-
A. समझ जाना
B. तर्कपूर्ण होना
C. समझ नहीं आना
D. प्रभावी होना
19. कविता किस का खेल है?
A. बच्चों का
B. चिड़िया का
C. शब्दों का
D. फूलों का
20. 'बात सीधी थी पर' में किस की सहजता की बात कही गई है?
A. व्यक्ति
B. समाज
C. देश
D. भाषा
21. कविता की उड़ान को कौन नहीं जान सकता?
A. रसिक व्यक्त
B. चिड़िया
C. कवि
D. समीक्षक
22. 'कविता के पंख लगा उड़ने' से तात्पर्य है-
A. व्यर्थ लिखना
B. शब्द-अर्थ में विसंगति
C. कल्पना करना
D. स्पष्ट करना
23. बात बाहर निकलने की अपेक्षा कैसी हो गई थी?
A. पेचीदा
B. सरल
C. वक्र
D. व्यर्थ
24. आडंबरपूर्ण शब्दों के प्रयोग से भाषा कैसी हो जाती है?
A. अस्पष्ट
B. स्पष्ट
C. सहज
D. सुंदर
25. 'बात सीधी थी पर' में कवि ने किस पर बल दिया है?
A. भाषा की जटिलत
B. भावों की सरसता
C. भाषा की सहजता
D. भावों की गरिमा
26. 'बात की पेंच खोलना'
से कवि का क्या तात्पर्य है?
A. बात का उलझना
B. बात का प्रभावहीन होना
C. बात का स्पष्ट होना
D. बात का तर्कपूर्ण होना
27. कवि से शरारती बच्चे के
समान कौन खेल रही थी?
A. बात
B. भाषा
C. कविता
D. पतंग
28. भाषा के साथ-साथ बात कैसी
होती गई थी?
A. सरल
B. दुष्कर
C. पेचीदा
D. बोधगम्य
29. भाषा के क्या करने से बात
और अधिक पेचीदा हो गई?
A. तोड़ने-मरोड़ने
B. उलटने-पलटने
C. घुमाने-फिराने
D. उपर्युक्त सभी
30. बात कवि के साथ किसके
समान खेल रही थी?
A. खिलौने
B. पेंच
C. बच्चे
D. भाषा
31. 'कविता के बहाने' कविता के रचनाकार हैं-
A. कुँवर सिंह
B. कुँवर प्रसाद
C. कुँवर प्रकाश
D. कुँवर नारायण
32. कविता किस के बहाने एक
उड़ान है?
A. अतीत
B. बालक
C. चिड़िया
D. प्रेमिका
33. कविता फूलों के बहाने
क्या है?
A. गिनना
B. खिलना
C. मुरझाना
D. बहकना
34. कविता किस के बहाने खेल
रही थी?
A. बच्चे के
B. खिलौने के
C. पेंच के
D. भाषा के
35. 'सब घर एक कर देने'
का आशय है-
A. भेदभाव नहीं रखना
B. तोड़-फोड़ करना
C. सीमा में रहना
D. शोर मचाना
36. सीधी सी बात किस के चक्कर
में फंस गई?
A. भाव के
B. छंद के
C. अलंकार के
D. भाषा के
37. कवि किसे पाने की कोशिश
करता है?
A. बात को
B. पेंच को
C. कील को
D. कलम को
38. बात बाहर निकलने की
अपेक्षा कैसी हो गई?
A. व्यर्थ
B. अनर्गल
C. पेचीदा
D. सहज
39. कवि क्या करतब कर रहा था?
A. मेज़ पर पेंच ठोक रहा था
B. बात सुलझाने की कोशिश कर
रहा था
C. नाटक कर रहा था
D. लोगों को बात समझा रहा था
40. बात कवि के साथ कैसे खेल
रही थी?
A. खिलौने के समान
B. खिलाड़ी के समान
C. बच्चे के समान
D. भाग्य के समान
41. 'बात की चूड़ी मर जाना'
से कवि का तात्पर्य है-
A. स्पष्ट होना
B. तर्कपूर्ण होना
C. प्रभावपूर्ण होना
D. प्रभावहीन होना
42. 'बात की पेंच खोलना'
प्रतीक से स्पष्ट होता है-
A. स्पष्ट होना
B. समझ न आना
C. उलझ जाना
D. बहस करना।
43. बात का शरारती बच्चे की
तरह खेलना है बात-
A. समझ जाना
B. तर्कपूर्ण होना
C. समझ नहीं आना
D. प्रभावी होना
44. कविता किस का खेल है?
A. बच्चों का
B. चिड़िया का
C. शब्दों का
D. फूलों का
45. 'बात सीधी थी पर' में किस की सहजता की बात कही गई है?
A. व्यक्ति
B. समाज
C. देश
D. भाषा
46. कविता की उड़ान को कौन
नहीं जान सकता?
A. रसिक व्यक्त
B. चिड़िया
C. कवि
D. समीक्षक
47. 'कविता के पंख लगा उड़ने'
से तात्पर्य है-
A. व्यर्थ लिखना
B. शब्द-अर्थ में विसंगति
C. कल्पना करना
D. स्पष्ट करना
48. बात बाहर निकलने की
अपेक्षा कैसी हो गई थी?
A. पेचीदा
B. सरल
C. वक्र
D. व्यर्थ
49. आडंबरपूर्ण शब्दों के
प्रयोग से भाषा कैसी हो जाती है?
A. अस्पष्ट
B. स्पष्ट
C. सहज
D. सुंदर
50. 'बात सीधी थी पर' में कवि ने किस पर बल दिया है?
A. भाषा की जटिलता
B. भावों की सरसता
C. भाषा की सहजता
D. भावों की गरिमा